Wednesday 21 May 2014

कठिन डगर के राही 'नमो'





आजाद  भारत में जन्म लेने वाले  नरेन्द्र दामोदरदास मोदी  ऐसे शख़्स  हैं जो 2001  से लगातार 14  बरस  तक गुजरात के 14 वें मुख्यमन्त्री रहे और  संयोग देखिये वह देश  के 14 वे प्रधानमन्त्री होंगे जो  26 मई  2014  को  शपथ ग्रहण करेंगे। जनआकांक्षाओं की बड़ी लहर पर सवार होकर  नमो  के कदम दिल्ली के सिंहासन पर राजतिलक के लिए तेजी से बढ रहे हैं लेकिन उनके सामने विशालकाय चुनौतियों का पहाड़ खड़ा है । भारतीय राजनीती में 2014 के लोक सभा चुनावो की बिसात कई मायनो में ऐतिहासिक है क्युकि कई दशक बीतने के बाद किसी राष्ट्रीय  पार्टी को अभूतपूर्व जनादेश और सफलता मिली है । नए दौर की इस  सफलता  में किसी का बड़ा योगदान है तो बेशक वह शख्स  मोदी ही हैं जिनके अथक प्रयासों से भारतीय जनता पार्टी ने वो चमत्कार कर दिखाया है जो पार्टी ने अटल आडवाणी के दौर में नहीं किया था । संकेतो तो डिकोड करें  तो भाजपा के लिए मोदी किसी संजीवनी बूटी से कम नहीं हैं क्युकि इस चुनाव में भाजपा का वोट प्रतिशत ही नहीं बढ़ा  बल्कि देश के युवा वोटरों की बड़ी जमात ने मोदी को वोट किया । भाजपा ने इस चुनाव में मोदी को तुरूप के इक्के के  रूप में  आगे कर वोट मांगे । 'अच्छे दिन  आने वाले हैं' से लेकर 'अबकी बार मोदी सरकार ' सरीखे नारो के केंद्र में मोदी ही रहे साथ ही उन्हें नापसंद करने वालो की एक बड़ी जमात बार  बार मोदी  को ही निशाने पर लेती रही लेकिन इसके बाद भी मोदी ने  अपने दम  पर भाजपा को बहुमत में लाकर अगर खड़ा करने किया है तो इसमें मोदी की मेहनत को नहीं नकारा जा सकता । 

                     प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के बाद मोदी के सामने चुनौतियों का पहाड़ खड़ा रहेगा ।  साथ ही लोगो की उम्मीदो पर खरा उतरने की बड़ी चुनौती भी  होगी ।  अच्छे  दिन आने  वाले हैं के नारे को साकार करने के लिए उन्हें समाज के हर तबके को साथ लेने की जरुरत है । साथ ही वह अपने उन विरोधियो को भी अपने काम के बूते करारा जवाब दे सकते हैं जो बार बार गोधरा को लेकर उन्हें सांप्रदायिक करार देते रहते थे। अब ऐतिहासिक जीत के बाद अपने  बूते वह अपने विरोधियो को आइना दिखाकर एक नई राजनीतिक लकीर अपनी इस ऐतिहासिक  पारी में खींच सकते हैं   । इस आम चुनाव मे देश के कोने कोने में ताबड़ तोड़   जनसभाएं कर मोदी ने लोगो  को सुशासन  का जो सब्जबाग दिखाया है उसे उन्हें अब पूरा करना ही होगा साथ ही राम मंदिर , धा रा 370  , कामन सिविल कोड सरीखे मुद्दो के हल की  दिशा गंभीरता से सोचना होगा क्युकि  इन्ही  नारो  के आसरे  भाजपा ने कभी  केंद्र में राजनीतिक   वैतरणी  पार करने  की कसमें   खायी थी जिनसे बाद में वह यह कहकर मुकर गयी कि  पूर्ण बहुमत ना मिल पाने के   चलते यह सभी मुद्दे गठबंधन राजनीती में हाशिये पर चले गए । 

  यह दौर ऐसा है जब  अर्थव्यवस्था  बुरे दौर से गुजर रही है । नौजवान रोजगार की आस लगाये बैठे हैं । साथ ही महंगाई के डायन बनने के चलते आम आदमी की मुश्किलें हाल के कुछ बरस में बढ़ी हैं वहीँ आतंरिक और बाह्य सुरक्षा जैसे कई मुद्दे सामने खड़े हैं ।महंगाई दर 8. 59 के स्तर पर जा पहुंची है जो  लगातार लोगो का  जीना मुश्किल किये हुए है ।   यूपीए-2 के दौर में लगातार हुए घोटालो और गड़बड़झालो से  दुनिया में माहौल खराब हो गया है । निवेशकों का भरोसा बाजार से हट चुका है । ऐसे में उनके विश्वास और  भरोसे को जीतना नमो के लिए आसान नहीं होगा । वह इस बार हुए अपने चुनाव प्रचार के दौरान बार बार मनमोहन की नीतियों का मर्सिया मंच से पढते रहे  और पॉलिसी पैरालिसिस को लेकर  यू  पी ए सरकार को निशाने पर लेते रहे हैं  । अब उनके सामने खुद बड़ी चुनौती खड़ी है क्युकि  वह नाव के मांझी हैं । उनके पक्ष में इस चुनाव में  अभूतपूर्व लहर खड़ी हुई। इस ऐतिहासिक जनादेश के प्राप्त होने के बाद उनसे लोगो की उम्मीदें  भी बढ़  गयी है । सपने बेचना आसान है । उसे हकीकत का चोला पहनाना उतना ही मुश्किल । मोदी को इसे समझना होगा । बीते दस बरस में देश में तकरीबन ढाई लाख से ज्यादा किसान हमारे देश में आत्महत्या कर चुके हैं । किसानो को लेकर इस देश में अब तक ऐसी कोई नीति नहीं बनी है जिससे कहा जा सके खेती को लाभ का सौदा बनाने की दिशा में गंभीरता से विचार हुआ है । मोदी को अब अपने इस कार्यकाल में किसानो के लिए नीतियां बनाने की जरुरत है ताकि उसको फसल का उचित दाम बाजार में मिल सके । मोदी को बड़े पैमाने पर इस चुनाव में युवाओ ने वोट दिया है । बेहतर होगा वह विभिन्न सेक्टर में रोजगार प्रदान करने के लिए कोई कारगर नीतियां इनके लिए बनाएंगे । वैसे भी यू पी ए 2  में युवाओ के लिए कोरी लफ्फाजी के सिवाय कुछ नहीं हुआ है । ऐसे में युवाओ की उम्मीदो पर खरा उतरने की बड़ी चुनौती मोदी के सामने है । 

                     उद्योग जगत मोदी की तरफ आशा भरी नजर से देख रहा है । शायद यही वजह है पहली बार इस चुनाव में मोदी कॉरपरेट के डार्लिंग बनकर उभरे और इसी कॉरपरेट ने उनके लिए चुनावी बिसात बिछाने का काम किया । अब मोदी उनके साथ कैसा तालमेल बैठाते हैं यह देखने वाली बात होगी । वैसे मनमोहन के दौर में  आर्थिक सुधारो को नई हवा नरसिम्हा राव की  उस थियोरी  के आसरे देने की पहल शुरू हुई  जिसमे आईएमएफ और वर्ल्ड बैंक से लोन लेकर खुले बाज़ार तले बडा  खेल खेला गया जिससे पहली बार मध्यम वर्ग  मनमोहनी थाप पर नाचने को मजबूर हो गया जिसके चलते एक अलग चकाचौंध  दैनिक जीवन  मे देखने  को  मिले । खनन  से लेकर  टेलीकॉम को साधकर निजी कंपनियो के  खुले बाजार में ले जाने का जो नव उदारवाद   का खुला  खेल  नरसिंह राव की सरकार  के दौर में ही शुरु हुआ वही मनमोहन के दौर  में कारपोरेट घरानो के वारे न्यारे तक जा पहुंचा  जिसके केंद्र मे मुनाफ़ा कमाने  की जैसी होड  मची जिसने कमोवेश  हर चीज को खुले बाजार मे नीलाम कर दिया । अब मोदी इस कॉरपरेट के साथ किस नीति पर चलते हैं यह भी देखने लायक होगा । नरेंद्र मोदी के सामने संघ की नीतियों को लागू  करवाने का दबाव होगा क्युकि वह खुद  उन्होंने संघ की  नर्सरी से अपनी यात्रा शुरू की है । स्वदेशी मॉडल को लागू करना इतना आसान नहीं होगा क्युकि इस दौर में एफडीआई को लेकर खूब शोर शराबा मनमोहन के दौर में हुआ है । निवेशकों का भरोसा जीतना मोदी की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए । नए रोजगार का सृजन तभी हो पायेगा जब बाजार कुलांचे मारेगा और विदेशी संस्थागत निवेशक भारत में निवेश करेंगे । मोदी को इनके अनुकूल नीतियां बनानी  होंगी साथ ही कारपरेट माडल से इतर संघ  के स्वदेशी मॉडल पर भी चलना होगा । देखने वाली बात यह होगी आने वाले दिनों में मोदी किस धारा में बहते हैं? 

   मोदी ने इस चुनाव में विकास के नारो के साथ बड़े सपने लोगो के भीतर जगाये । अब उन सपनो को हकीकत का चोला पहनाने का समय शुरू हो गया है । लोगो को मोदी से बहुत आशाएं हैं । मोदी को गाँव  के अंतिम छोर  में खड़े व्यक्ति तक विकास का लाभ पहुचाना होगा क्युकि 2014 के इस चुनाव की इबारत साफ़ कह रही है  लोगो ने जाति, धर्म से ऊपर उठकर विकास के लिए वोट किया है । अब मोदी के शपथ ग्रहण का सभी को इन्तजार है क्युकि उसके बाद ही नयी सरकार अपना काम शुरू करेगी और नीतियों को अमली जामा पहनाने की प्रक्रिया  विधिवत रूप से शुरू होगी । 

Friday 16 May 2014

जबरदस्त चली नमो लहर

20 दिसम्बर,  2012    के दिन को याद करें । इस दिन पूरे देश की नजरें गुजरात विधान सभा चुनावो पर केन्द्रित थी ।  गुजरात के साथ ही इस दिन हिमाचल के विधान सभा चुनावो के परिणाम भी सामने आये लेकिन पूरा मीडिया मोदीमय था । तीसरी बार गुजरात में  हैट्रिक लगाकर फतह करने के बाद नरेन्द्र दामोदरदास मोदी का जोश देखते ही बन रहा था । उनकी जीत ने कार्यकर्ताओ के जोश को भी दुगना कर दिया । भाजपा के अहमदाबाद  दफ्तर में उस समय  जहाँ दिवाली मनाई जा रही थी वहीँ 11 अशोका रोड स्थित भाजपा के राष्ट्रीय दफ्तर पर सन्नाटा  पसरा था । पार्टी का कोई आला नेता और
प्रवक्ता न्यूज़ चैनल्स को बाईट देने के लिए उपलब्ध नहीं था ।   इसके  ठीक 7  दिन  बाद  मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद जैसे ही मोदी के कदम दिल्ली स्थित भाजपा के दफ्तर अशोका  रोड की तरफ बढे तो पूरा माहौल मोदीमय हो गया । हर कोई उनकी तारीफों में कसीदे पढता ही  जा रहा था । यह भाजपा में मोदी के असल कद का अहसास करा रहा था जब दो बरस पहले  गुजरात जीतने के बाद दिल्ली के दफ्तर और तोरण दुर्गो में लगे बड़े बड़े कद के "ब्रांड मोदी " वाले पोस्टर मोदी की भारी  जीत की गवाही दे रहे थे । पोस्टरों में मोदी के बाँए जहाँ पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की तस्वीर लगी थी वहीँ  उनके दाएँ आडवानी और गडकरी की लगी तस्वीर और इन सबके बीच मोदी की लगी बड़ी तस्वीर भाजपा की दिल्ली वाली ड़ी कंपनी को सही रूप में आईना दिखा रही थी  और यहीं से तय हो गया था अबकी बार " मोदी सरकार  का जुमला "  घर घर चुनावी कम्पैनिंग में इस कदर हावी रहेगा कि पार्टी समाज के हर तबके  को साधगी  जिसमे स्वयंसेवको की बड़ी कतार मोदी मन्त्र घर घर पहुँचाने में लग गयी ।



     2014  की चुनावी बिसात पर  राजपथ पर   मोदी ने कांग्रेस से कई  मील आगे निकलकर अपनी चुनावी बिसात बिछाकर यह तो साबित कर दिया इस  बरस भाजपा के लिए  करो या मरो वाली स्थिति हो चली  थी जहाँ  भाजपा को लोक सभा चुनाव में अपना वोट का प्रतिशत हर हाल में बढ़ाना जरुरी था  नहीं तो  केंद्र की सत्ता से उसका सूपड़ा साफ़ होना लगभग तय है । शायद यही वजह है पहली बार मोदी ओबामा की तर्ज पर  " यस वी  कैन" और "यस वी  विल  डू  " का नारा देना पड़ा  क्यूकि  इस दौर में भाजपा के पास कोई ऐसा चेहरा बचा नहीं  जो पार्टी कैडर  में नए जोश का संचार कर सके और अपना ग्राफ  जनता के बीच सीटो  का ग्राफ बढ़ा  सके और  शायद कार्यकर्ताओ की इसी नब्ज को संघ की सहमती के आधार पर राजनाथ ने पकड़ा और  मोदी को चुनाव प्रचार समिति की कमान सौंपकर उनको अगले लोक सभा चुनाव  में प्रधान मंत्री पद का
उम्मीद वार  घोषित कर दिया ।


                भाजपा के संसदीय इतिहास में प्रचंड बहुमत पाकर  मोदी ने सही मायनों में अपनी अखिल भारतीय छवि हासिल करने के साथ ही खुद को राष्ट्रीय राजनीती में फ्रंट रनर के तौर पर पेश किया है ।  चुनावो से पहले यह भ्रम बन गया था कि मोदी पार्टी से बड़े हो गए हैं लेकिन इन  चुनाव परिणामो ने इस भ्रम को हकीकत में बदल दिया है । मोदी  ने इस चुनाव में खूब पसीना बहाया । कश्मीर से कन्याकुमारी तक 450  से ज्यादा रैलियां की और 6000 से ज्यादा जगहों पर थ्री ड़ी प्रचार किया । पूरे देश में ख़ाक छानकर तीन लाख किलोमीटर की यात्रा कर दो करोड़ से ज्यादा लोगो से चाय पर चर्चा कर सीधा संवाद किया । लोग कांग्रेस के कुशासन  , भ्रष्टाचार से आजिज आ चुकी थी और लोगो ने भाजपा में बड़ी उम्मीद देखी जो उन्हें मोदी में नजर आई । मोदी ने ना केवल देश के युवा वोटरो के दिलो में जगह  बनाई बल्कि अपनी सभाओ में भारी भीड़ जुटाकर  देश में एक लहर  खड़ी की । इस चुनाव में मोदी सबके निशाने पर थे और  छत्रपों की जातीय राजनीती में मोदी ने अपने अंदाज  में सेंध लगाई । पहली बार में जातीय बंधन टूटे और जनता ने एक स्थिर सरकार के लिए वोट किया  ।


     16 वी लोक सभा के  बारे में  मोदी के विरोधी ही नहीं भाजपा में उनको नापसंद करने वाली  जमात का एक बड़ा तबका इस बार मोदी की जीत  की राह में तमाम रोड़े डालता रहा  लेकिन   दिल्ली   फतह  कर मोदी ने  यह बता दिया पार्टी में उनको चुनौती देने की कुव्वत किसी में नहीं है और शायद यही वजह है इस दौर में मोदी की ठसक को चुनौती का मुकाबला भाजपा के किसी नेता ने नही किया  । वैसे भी केशव कुञ्ज ने  उनके नाम का डमरू बजाकर इस दौर में भाजपा के हर छोटे बड़े नेता को ना केवल अपने अंदाज में साधा  बल्कि पार्टी कैडर  में नमो नमो का जोश  भी भरा ।


                            अस्सी के दशक को याद करें तो उस दौर में एक बार इंदिरा गांधी ने तमाम सर्वेक्षणों की हवा  निकालकर दो तिहाई प्रचंड बहुमत पाकर संसदीय राजनीती को  आईना दिखा दिया था  और इस बार मोदी ने विकास के माडल को अपनी छवि के आसरे जीत में तब्दील कर दिया । जहाँ 2002 में उनकी जीत के पीछे सांप्रदायिक कारण जिम्मेदार थे वहीँ 2007 में कांग्रेस द्वारा उन्हें मौत का सौदागर बताने भर से उनकी जीत की राह आसान हो गई थी लेकिन इस बार की मोदी की जीत  अप्रत्याशित रही । विकास के नारे के आगे सारे नारे फ़ेल  हो गए । यह इस मायनों में कि जनता ने मोदी  के विकास माडल पर न केवल अपनी मुहर लगाई बल्कि  हर राज्य में  भाजपा का वोट प्रतिशत बढ़ाया ।  यही नहीं दिल्ली  फतह करने के बाद अब अब मोदित्व का परचम एक नई  बुलंदियों में पहुच गया है ।  विकास और वायब्रेन्ट गुजरात का जादू लोगो पर सर चदकर बोल रहा है अब दिल्ली की नईपारी में मोदी  के सामने  चुनौतियां का पहाड़ खड़ा है । मोदी को प्रधानमंत्री बनाने में उस जनता जनार्दन की भी बड़ी भूमिका है जिसके सरोकार इस दौर में हाशिये पर चले गए । मोदी ने अपनी  बिसात में प्यादों को पीटकर वजीर बनने की जो ऐतिहासिकइबारत गढ़ी है उसकी मिसाल अब तक देखने को नहीं मिली । मोदी मंत्र पर मतदाताओ ने भरोसा जताया । लोगो ने मोदी को  तानाशाह बताने से परहेज नहीं किया तो किसी ने उन्हें हिन्दू राजनीती का झंडाबरदार बताकर उन्हें सांप्रदायिक करार दिया । लेकिन मतदाताओ ने मोदी पर लगाये जा रहे सारे आरोपों से पल्ला झाड़ लिया । प्रचंड बहुत पाकर अब नरेंद्र मोदी भाजपा में करिश्माई नेता के दौर पर उभर गए हैं । नमो के रूप  अब राजनीती में नयीपरिभाषा गढ़ते देख रहे हैं ।  जिस मनमोहन की आर्थिक नीतियों का गुणगानकांग्रेस बीते दशको  से करती आ रही  है वही काम मोदी ने गुजरात में कर दिखाया और वहां हैट्रिक लगाकर अपने विरोधियो को चारो खाने चित्त कर दिया ।   साम्प्रदायिकता का दाव   भी  इस बार फीका पड़ गया और  इन सबके बीच जातीय समीकरण भी इस चुनाव में  धवस्त हो गए ।


                हाल के लोक सभा  चुनावो में  कश्मीर  से लेकर कन्याकुमारी  और दार्जिलिंग  से लेकर बड़ोधरा तक   हर जगह मोदी की तूती ही  बोली  । पूरा देश  इस कदर मोदीमय था कई  समाज के नाराज तबको का समर्थन जुटाने की कांग्रेस और छत्रपों  की गोलबंदी इस चुनाव में काम नहीं आ सकी । शहरी , ग्रामीण , गैर आदिवासी ,छत्रिय समाज, दलित , ओ बी सी  इस चुनाव में मोदी के साथ ही खड़ा दिखा  और उन्होंने खुलकर मोदी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए वोट किया   ।  पूरे देश का युवा वोटर अब मोदी पर गुजरात की तरह  अपनी नजरें गढाये बैठा है क्युकी पहली बार अब मोदी कोगुजरात से निकलकर अब  7  आर सी आर से अपने   कदम पूरे देश की तरफ   बढ़ाने हैं  । देश के युवा वोटरों की   मानें तो  कलह से जूझती भाजपा  का बेडा अब   मोदी ही पार लगा सकते हैं । प्रचंड बहुमत पाकर  मोदी अब बड़े नेता के तौर पर उभर कर सामने आ गए हैं । जीत के बाद मोदी निश्चित ही भाजपा में अब सबसे मजबूत हो गए हैं और संघ भी अब भाजपा की भावी रणनीतियो का खाका मोदी के आसरे ही खींचेगा ।  हिंदुत्व के पोस्टर बॉय के रूप  में मोदी का उदय छत्रपों के लिए चुनौती पेश कर सकता है । हिंदुत्व, विकास, सुशासन के जिसमॉडल को मोदी ने गुजरात में दोहराया अब उसे देश में कारगर ढंग से  लागू करना होगा । यह जीत भाजपा के ठन्डे पडे कैडर में नया जोश फूंकेगी ।2014में  अब  भाजपा  संघ  का जोश भी  बढ़  गया है । मोदी देश के वोटर को प्रभावित कर सकते हैं ।हिंदुत्व और विकास  ने गुजरात में जो लकीर खींची है वह अब गुजरात में इतिहास बन चुकी है और अब इसे मोदी के सामने इसे पूरे देश में दोहराने की बड़ी चुनौती खड़ी  है

Tuesday 13 May 2014

इतिहास मनमोहन को कैसे याद करेगा ?




सोलहवीं लोकसभा  शोरगुल थम  चुका है और इसी के साथ सभी प्रत्याशियों की किस्मत  इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन मे कैद हो चुकी है । अब १६ मई  बेसब्री से इन्तजार है लेकिन एक  सवाल  जो सभी के  जेहन  मे  है  वह मनमोहन को लेकर है आखिर इतिहास  मनमोहन को  कैसे याद रखे  ?   

 आज से  तकरीबन   एक दशक पहले सोनिया गांधी ने जब मनमोहन को प्रधानमंत्री के रूप में पेश किया  तो लोग मनमोहन की  साफगोई  के कायल थे । मनमोहन  ने आर्थिक सुधारो को नई हवा नरसिम्हा राव की  उस थियोरी  के आसरे देने की पहल शुरू की जिसमे आईएमएफ और वर्ल्ड बैंक से लोन लेकर खुले बाज़ार तले बडा  खेल खेला गया जिससे पहली बार मध्यम वर्ग  मनमोहनी थाप पर नाचने को मजबूर हो गया जिसके चलते एक अलग चकाचौंध  दैनिक जीवन  मे देखने  को  मिले । खनन  से लेकर  टेलीकॉम को साधकर निजी कंपनियो के  खुले बाजार में ले जाने का जो नव उदारवाद   का खुला  खेल  नरसिंह राव की सरकार  के दौर में ही शुरु हुआ वही मनमोहन के दौर  में कारपोरेट घरानो के वारे न्यारे तक जा पहुंचा  जिसके केंद्र मे मुनाफ़ा कमाने  की जैसी होड  मची जिसने कमोवेश  हर चीज को खुले बाजार मे नीलाम कर दिया ।   

यू पी ए  -1  में  अमरीका  के साथ नाभिकीय करार को लेकर जहॉं  उन्होने वामपंथियो की घुड़की  से बेपरवाह होकर अपनी सरकार दांव पर लगा ड़ाली थी वहीं   यू पी ए  -2 में वह   गठबंधन धर्म के आगे लाचार  से दिखाई  देने लगे ।  इस दरमियान  प्रधान मंत्री ने गठबंधन धर्म की तमाम मजबूरियां गिनाने से भी  परहेज नहीं किया ।   यूपीए 2 शासन काल में एक के बाद एक  घोटालो की गुरु घंटाल  पोल  खुलती रही  । २जी, कामनवेल्थ , आदर्श,  कोयला ,हर बार पीएमओ की भूमिका  का अस्पष्ट रही । अन्ना आंदोलन हो या दामिनी  काण्ड  हर बार प्रधानमंत्री की चुप्पी  देश को खलती रही । मनमोहन हमेशा तमाशबीन बने रहे  । अन्ना आंदोलन के मसले को वह ठीक से हैंडल  नहीं कर सके वहीँ दामिनी के मसले पर ट्वीट करने में उन्हें हफ्ते लग गए । यूपीए सरकार में सत्ता के दो केंद्र रहे।  एकधुरी  की  कमान  खुद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह संभाले थे  तो  दूसरी धुरी सोनिया गांधी रही जिनके हर आदेश  का  पालन करने की मजबूरी  मनमोहन के चेहरे  पर साफ़  देखी जा सकती थी  । यू पी ए 1  से ज्यादा भ्रष्ट्र यू पी ए 2  नजर  आया जहाँ एक से बढकर एक भ्रष्ट मंत्रियो की टोली मनमोहन सिंह की किचन  कैबिनेट को सुशोभित करती रही ।  वैसे  यू पी ए  2 ने तो भ्रष्ट्राचार के कई कीर्तिमानो को ध्वस्त कर दिया  जहाँ  सबसे ज्यादा ईमानदार  पी ऍम की ही  छवि  ख़राब हुई  ।  सी वी सी थॉमस की नियुक्ति से लेकर  महंगाई के डायन बनने   तक की कहानी यू पीए २ की विफलता को  ही उजागर करती  रही ।   आदर्श सोसाइटी से लेकर कामन वेल्थ , २ जी स्पेक्ट्रम से लेकर इसरो में एस बैंड आवंटन , कोलगेट तक के घोटाले तो  केंद्र की सरकार की सेहत के लिए कतई अच्छे नही रहे जिनसे पूरी दुनिया में एक ईमानदार प्रधानमंत्री की छवि तार तार हो गयी ।   

मनमोहन भले ही अच्छे अर्थशास्त्री रहे  हों परन्तु वह एक कुशल राजनेता की केटेगरी में तो कतई नही रखे जा सकते और ना ही वह भीड़ को खींचने वाले नेता  रहे । बीते  लोक सभा चुनावो से पहले भाजपा के पी ऍम इन वेटिंग आडवानी ने मनमोहन के बारे में कहा था वह देश के सबसे कमजोर प्रधान मंत्री है । उस समय कई लोगो ने आडवानी की बात को हल्के  में लिया था ,  पर आज 7 आर सी आर से  मनमोहन सिंह की विदाई बेला  पर यह बातें  सोलह आने सच साबित हो रही है ।

 मनमोहन सारे फैसले खुद से नही लेते थे ।  हमेशा सत्ता का केंद्र दस जनपद बना रहा  ।  व्यक्तिगत तौर पर भले ही मनमोहन की छवि इमानदार रही  परन्तु दिन पर दिन ख़राब हो रहे हालातो पर प्रधान मंत्री की  हर मामले पर चुप्पी से जनता में सही सन्देश नही गया । इकोनोमिक्स की तमाम खूबियाँ भले ही मनमोहन सिंह में रही हो पर सरकार चलाने की खूबियाँ तो उनमे कतई नही है | यू पी ए  २ में  पूरी तरह से दस जनपद का नियंत्रण बना रहा ।  मनमोहन को भले ही सोनिया का "फ्री हैण्ड" मिला हो पर उन्हें अपने हर फैसले पर सोनिया की सहमति  लेनी जरुरी हो जाती थी ।  दस जनपद में भी सोनिया के सिपैहसलार पूरी व्यवस्था को चलाते  थे ।


 चुनाव से ठीक पहले प्रधानमंत्री के पूर्व मीडिया सलाहकार संजय बारु की किताब 'एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर मनमोहन सिंह' ने  मनमोहन  की खूब फजीहत करवाई ।  इसकी नब्ज को  संजय बारु ने जिस अंदाज में पकड़ा  उससे यू  पी ए  सरकार के ईमानदार मुखिया मनमोहन सिंह  परहमले शुरू  हो गए  । एक ईमानदार  प्रधानमंत्री पहली बार कटघरे  में खड़ा रहा  ।      इस किताब के अनुसार मनमोहन सिंह एक दुर्बल मुखिया की तरह  रहे जिन्हे  महत्वपूर्ण फैसलों के लिए सोनिया गांधी का यस बॉस  बनना  पड़ा ।  लोक सभा चुनावो के  समय  इन आरोपों से विपक्ष के निशाने पर आई  कांग्रेस ने अपने बचाव में  पी एम के वर्तमान मीडिया सलाहकार  पंकज पचौरी का चेहरा सामने रखकर  अपना पक्ष जरूर रखा  जो मनमोहन के भाषणो की संख्या  और आर्थिक विकास के चमचमाते आंकड़े पेश कर यू  पी ए  2  के अभूतपूर्व विकास कहानी बताने  मे जुटी रही लेकिन  यूपीए २ के शासनकाल में हुए एक बाद एक घोटाले  जनता को यह  सोचने पर मजबूर कर देते हैं मनमोहन की  यह आखिरी  पारी कितनी विवादों से भरी रही ।  मनमोहन हमेशा से यह कहते रहे हैं कि वह गठबंधन धर्म  के आगे लाचार हैं अब  विदाई बेला में यह किताब मनमोहन की बेबसी के बोल बखूबी बोल रही   है ।


 संजय बारु के आरोपों  से भले ही पी एम ओ  पाला झाड़ लिया हो  लेकिन    विश्व के सबसेबड़े लोकतंत्र के एक अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री की क्या मजबूरी रही हो यहतो कोई नहीं जान सकता पर संजय बारु की किताब उन तमाम छिपे रहस्यों पर से पर्दा उठाती है जो यूपीए के दौरान घटे। 

इधर जाते जाते  संजय बारु का मामला ठंडा भी नहीं  हुआ था क़ि  पूर्व कोयला सचिव पीसी पारेख की किताब 'क्रूसेडर या कांसिपिरेटर' ने बाजार में आकर  बखेड़ा ही खड़ा कर दिया । पारेख पर नजर इसलिए भी थी  क्युकि सीबीआई ने  कोयला घोटाला मामले में पीसी पारेख को नोटिस भेजा।  पिछले वर्ष 2013 में सीबीआई नेपारेख समेत हिंडालको और अन्य अधिकारियों के खिलाफ मामला दर्ज किया था।मामला दर्ज किए जाने के दौरान सीबीआई ने इस बात को भी स्वीकारा था सभी अधिकारी साल 2005 से कोलगेट  घोटाले में अप्रत्यक्ष रूप से शामिलहैं। पारेख के ऊपर आरोप लगाया गया  कि उन्होंने सिर्फ कथित तौर पर हीकोल ब्लॉक आवंटन किया है।जिसमे अन्य अधिकारियों ने भी उनका साथ दिया ।इस किताब में भी  पी एम ओ  पर निशाना साधा  गया । कोलगेट  पर लिखी गई  इस किताब  में तमाम नौकरशाहों और राजनीतिक  जमात  को कठघरे में रखा गया  जहाँ मनमोहनी बिसात फीकी पढ़ गयी ।  कोयले  की आंच पहली  बार सरकार में शामिल मंत्री से  लेकर  कॉरपोरेट घरानों तक गई जहां रिश्तेदारो को आउने पौने दामो पर  कोल ब्लॉक  आवंटित कर दिए गए । कैग की रिपोर्ट में जब कोयला आवंटन में हुई धांधली को उजागरकिया गया तब तत्कालीन नियंत्रक महालेखा परीक्षक विनोद राय की भूमिका पर यूपीए ने सबसे पहले सवाल दागे जिससे यह सवाल बड़ा हो गया क्या यू पी ए  को  संवैधानिक  संस्थाओ पर   भरोसा नहीं रहा   ?    

पारिख  के अनुसार पीएम मनमोहन  ने खुली निविदा के जरिए अगस्त 2004 में कोयला आवंटन की मंजूरी दी थी। मगर उनके दो मंत्रियों शिबू सोरेन और दसई  राव ने उनकी नीतियों का पालन नहीं किया ।   दोनों मंत्रियों के कार्यकाल में कोयला मंत्रालय में निदेशक पद परनियुक्ति के लिए भी घूस ली  जाती  थी । पारिख ने कहा उन्होंने सांसदों को ब्लैकमेलिंग और वसूली करते हुए खुद देखा । यू पी ए 2  के दौर में पानी सर से इतना नीचे बह चु का था कि  अधिकारियों के   लिए ईमानदारी से काम करना मुश्किल हो गया । पारिख ने किताब में कहा है  कोयला सचिव के रूप में उनके  कार्यकाल में जो भी उपलब्धियां हासिल की गईं वह  उस दौरान की गईं जब मंत्रालय मनमोहन सिंह के पास था।
                                   
     नेहरू गांधी परिवार भले ही बीते चुनाव मे मनमोहन  को तुरूप के इक्के के रुप मे आगे कर चुका हो  लेकिन इस चुनाव  मनमोहन कहीँ नजर  नहीं आये । भ्रष्टाचार , क्रोनी कैपिटलिज्म , मंत्री  संतरी कॉरपोरेट के नेक्सस , घोटालो की पोल , मनी  लॉन्ड्रिंग  न्यायपालिका और सुप्रीम कोर्ट  निगरानी में हर जॉंच ने ईमानदार प्रधानमंत्री को अपने अंतिम कार्यकाल मे इतना झकझोर दिया कि मनमोहन 7 आर सी आर से अपनी विदाई की तैयारियों मे उसी समय से जुट गये थे जब जयपुर मे बीते बरस कांग्रेस मे  राहुल को उपाध्यक्ष बनाकर अघोषित रूप से उन्हें प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया । 

अपने आखिरी  कार्यकाल में मनमोहन अपनी कमीज साफ़ बचाने पर भले ही लगे रहे जबकि उसके छींटें कांग्रेस और उसके सहयोगियो पर भी पडते नजर आये । शायद यही वजह रही मौजूदा 2014  का  जनादेश कांग्रेस के पतन की पटकथा चुनाव परिणाम आने से पहले ही लिख चुका है जिसमे मनमोहन की हर नीति  का मर्सिया ना केवल  पढ़ा जा रहा है बल्कि 12 ,तुगलक रोड से लेकर  15  रकाबगंज  रोड और 24 रोड  तक सन्नाटा पसरा है और पहली बार मनमोहन  आंकड़ों की बाजीगरी  ना केवल कांग्रेस को डरा रही है बल्कि  राजा  से रंक बनने की पटकथा भी आंखो से सीधा संवाद स्थापित  कर रही है जहाँ जश्न की बजाए कांग्रेस वार रुम मे अब चुनाव निपटने के बाद  घुप्प अंधेरा ही पसरा है । हमेशा की तरह इस बार भी दांव पर गांधी परिवार है मनमोहन सिंह नही ।