Sunday 13 March 2022

उत्तराखंड में खिला कमल , पुष्कर सिंह धामी ही होंगे नए सीएम


                                     हार के बाद भी पुष्कर सिंह धामी  भाजपा के लिए जरूरी 

                                      2022 का उत्तराखंड विधानसभा भाजपा के लिए शुभ साबित हुआ है । पहाड़ से लेकर मैदान तक चले मोदी मैजिक ने यहाँ उसकी फिर से एक बार सरकार बना दी है ।  राज्य गठन के बाद से ही इस राज्य में हर पांच साल में सत्ता बदलती रही है लेकिन इस बार ये परंपरा टूट गई है । सूबे के विधान सभा चुनावों में स्थानीय और राष्ट्रीय मुद्दों का असर साफ़ दिखाई दिया ।पहाड़ में मोदी की प्रचंड आंधी जहाँ चली है वहीँ मैदानी इलाकों में महंगाई और किसान आन्दोलन जैसे मुद्दों ने अपना आंशिक  असर दिखाया है । प्रदेश में एक बार फिर भाजपा अपनी वापसी कर रही है लेकिन भाजपा के जहाज के असली सेनापति पुष्कर सिंह धामी चुनाव हार गए हैं ।  धामी को कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष भुवन कापड़ी के हाथों पराजय का मुंह देखना पड़ा है ।

 

सिटिंग सी एम के कुर्सी बचाने का मिथक नहीं टूटा

मुख्यमंत्री पुष्कर धामी सिटिंग सी एम के कुर्सी बचाने के मिथक को नहीं तोड़ पाए ।  पहले बी सी खंडूडी फिर हरीश रावत और अब पुष्कर सिंह धामी मुख्यमंत्री की कुर्सी में रहते हुए चुनाव हार गए । पुष्कर ऐसे तीसरे मुख्यमंत्री हैं जो कुर्सी में रहते हुए चुनाव हारे हैं । इससे पहले भाजपा ने 2012 में खंडूडी हैं जरूरी के नारों के साथ चुनाव लड़ा। उन्होनें भी भाजपा को जीत के करीब पहुँचाया लेकिन खुद कोटद्वार सीट बचाने में कामयाब नहीं हो पाए । इसी तरह 2017 में हरीश रावत की अगुवाई में कांग्रेस ने अपना चुनाव लड़ा और वह दो सीट से चुनाव लड़े लेकिन दोनों सीटों से उनको पराजय का सामना करने पर मजबूर होना पड़ा ।  अब इस बार  भी भाजपा ने पुष्कर सिंह धामी के नाम के साथ चुनाव लड़ा और कम समय में उनके द्वारा किये गए कामों को अपना आधार बनाया जिसमें वह पूरी तरह से सफल भी हुई  लेकिन उसके सिटिंग सीएम को खटीमा से हार का मुंह देखना पड़ा । 2017 के चुनावों में भाजपा प्रचंड बहुमत से चुनाव जीतकर आई थी ।  तब त्रिवेन्द्र सिंह रावत को मुख्यमंत्री बनाया गया था लेकिन अपने कार्यकाल से पहले ही उन्हें पार्टी ने चलता किया जिसके बाद 10 मार्च 2021 को पौड़ी गढ़वाल से सांसद तीरथ सिंह रावत को राज्य की बागडोर सौंपी गई थी लेकिन वे भी तीन महीनों तक इस पद पर बने रहे ।  इसके बाद 3 जुलाई को पुष्कर सिंह धामी की ताजपोशी की गई थी । 

 

कई मिथक टूटे तो कुछ मिथक बरकरार

इस बार के चुनाव ने कई दिग्गजों को आईना दिखाने का काम किया वहीँ अब तक के कई मिथकों को तोड़ने का काम किया है । सरकार फिर से रिपीट न होने का मिथक जहाँ टूटा है वहीँ बदरीनाथ , गंगोत्री , कोटद्वार , रानीखेत के मिथक भी टूटे हैं । देखा गया है इन जगहों से जिस पार्टी का विधायक निर्वाचित होता है, उत्तराखंड में  उसी की सरकार बनती है । इसी तरह राज्य गठन के बाद ये देखा गया है शिक्षा मंत्री और पेयजल मंत्री दुबारा चुनाव नहीं जीत पाते हैं लेकिन अरविन्द पाण्डे और  बिशन सिंह चुफाल की जीत ने इस मिथक को भी तोड़ डाला है। हरक सिंह रावत को राज्य में सबसे बड़ा मौसम विज्ञानी कहा जाता है । इस बार तो उन्होनें ऐलान भी कर दिया था भाजपा उत्तराखंड से जा रही है । वो हवा का रुख भांप लिया करते हैं ऐसा गाहे –बगाहे कहा जाता रहा है लेकिन इस बार भाजपा से निष्कासित होने के बाद उन्होनें कांग्रेस की शरण ली लेकिन अपनी बहू अनुकृति को कांग्रेस के टिकट पर  जिताने में कामयाब नहीं हो सके ।

 

हरीश रावत के लिए जोर का झटका

पूर्व सी एम हरीश रावत के लिए भी इस बार का चुनाव बड़ा झटका है । उनको कांग्रेस ने अपनी कैम्पेन कमेटी का चेयरमैन बनाया था । वह अपनी सीट लालकुआँ को बचाने में कामयाब नहीं हो सके ।  2017 के चुनावों में भी रावत को हरिद्वार ग्रामीण और किच्छा से हार का सामना करना पड़ा था ।

इस बार भी कांग्रेस पार्टी के सीएम पद के चेहरे के रूप में  उन्हें देखा जा रहा था ।  पहले कांग्रेस ने उन्हें रामनगर से प्रत्याशी बनाया था । बाद में उनकी सीट बदल दी और उन्हें लालकुंआ से प्रत्याशी बनाया गया था लेकिन यहाँ भी उनको हार का मुंह देखा पड़ा । इससे पहले हरदा लोक सभा चुनावों में भी अपनी सीट नहीं बचा पाए थे । कांग्रेस के टिकट पर वह नैनीताल से लोकसभा चुनाव भी  लड़े जहाँ अजय भट्ट ने उनको पराजित किया । 

ऋतु खंडूडी ने लिया जनरल की हार का बदला

ऋतु यमकेश्वर विधान सभा सीट से 2017 में विधायक निर्वाचित हुई । वो पूर्व मुख्यमंत्री जनरल बी सी खंडूडी की बेटी हैं । भाजपा ने पहले तो उनको यमकेश्वर से टिकट नहीं दिया लेकिन अंतिम समय में कोटद्वार से अपना प्रत्याशी बनाया जहाँ उनके सामने बड़ी चुनौती थी । 2012 में उनके पिता को कांग्रेस के सुरेन्द्र नेगी के हाथों पराजित होना पड़ा था । ऐसे में इस बार उनके लिए यह चुनाव ख़ास रहा जहाँ उन्होंने अपनी पिता की हार का बदला लिया ।

 

अनुपमा रावत ने भी हरिद्वार हार का लिया बदला

पूर्व सीएम हरदा लालकुँआ से खुद तो चुनाव हार गए लेकिन हरिद्वार ग्रामीण सीट से उनकी बेटी अनुपमा रावत  ने चुनाव जीतकर उनके पिता की हार का बदला ले लिया । 2017 में भाजपा ने यतीश्वरानंद ने उनके पिता हरीश रावत को इस सीट से पराजित किया था । यतीश्वरानंद पुष्कर धामी की सरकार में कैबिनेट  मंत्री रहे लेकिन इस बार अपनी सीट बचाने में कामयाब नहीं हो सके।

पुष्कर धामी ही फिर से संभालेंगे उत्तराखंड की कमान

उत्तराखंड में भाजपा तो जीत गई लेकिन सीएम पुष्कर धामी चुनाव हार गए जिसके बाद से नए सीएम को लेकर चर्चाएं और दावेदारों की रस्साकसी शुरू हो गई है । फिलहाल भाजपा में जैसे संकेत दिल्ली से मिल रहे हैं उसके मुताबिक पीएम मोदी और अमित शाह इस पद पर अपने भरोसेमंद नेता को कमान देने के इच्छुक बताये जा रहे हैं । अपनी चुनावी रैलियों में भी इन सभी नेताओं ने पुष्कर के ही भाजपा के अगले मुख्यमंत्री होने का ऐलान किया था। राजनीतिक गलियारों में चर्चा है भाजपा फिर से धामी पर दांव लगा रही है ।   भाजपा में पुष्कर सिंह धामी की हार के बाद जिस तरह एक अनार सौ बीमार वाली स्थिति उत्पन्न हुई है और दावेदारों की सक्रियता तेज हुई है, उसके मद्देनजर आलाकमान पुष्कर सिंह धामी को दुबारा कमान देने का मूड लगभग बना चुका है । वह यहाँ पूर्व में घटित हुए घटनाक्रमों से सबक लेते हुए इस बार इस राज्य को प्रयोगशाला बनाने से बचना चाह रहा है । राज्य के प्रभारी प्रहलाद जोशी भी चुनावों में मिली शानदार जीत के लिए पुष्कर धामी  की पीठ थपथपा चुके हैं । उन्होंने इस जीत के लिए युवा  धामी की मेहनत और 6 माह में उनके कार्यकाल के दौरान जनता के हित में लिए कई फैसलों को जिम्मेदार बताया है जिसकी सार्वजनिक मंच से सराहना भी की है । इन संकेतों को डिकोड करें तो लगता है भाजपा आलाकमान चाहकर भी पुष्कर धामी को नजरअंदाज नहीं कर सकता क्योंकि त्रिवेन्द्र सिंह रावत के दौर में गर्त में जाती भाजपा को उन्होनें अपने साहसिक फैसलों और नीतियों से नया जीवन देने का काम किया है। भाजपा को ख़राब दौर से उबारने में पुष्कर धामी की मेहनत और व्यक्तित्व की बड़ी भूमिका रही है । उन्होनें सभी विधानसभा सीटों पर भाजपा के प्रत्याशियों के लिए पसीना बहाया और दिन रात एक किया जिसकी बदौलत ही भाजपा आज यहाँ तक पहुँच पायी है । ऐसा देखा गया है भाजपा में पार्टी के भीतर पुराने दिग्गज नेताओं का एक ऐसा गठबंधन बना हुआ है जो पुष्कर की लोकप्रियता से बहुत चिंतित है क्योंकि कम समय में पीएम मोदी और गृह मंत्री अमित शाह , राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा  के साथ ही राज्य के प्रभारी प्रहलाद जोशी का दिल जीतकर पुष्कर सिंह धामी ने उनके सियासी भविष्य और मुख्यमंत्री बनने के सपनों पर ग्रहण लगाने का काम किया है जिसके चलते पुष्कर उनके लिए बड़ा सरदर्द बन चुके है इसलिए राज्य भाजपा के कुछ दिग्गज नेता उन्हें निबटाना चाह रहे थे । इन नतीजों के आने के बाद शायद भीतरघातियों और बड़े नेताओं पर पार्टी शायद कुछ न कुछ बड़ा एक्शन जरूर लेगी। 

इधर चम्पावत से भाजपा विधायक कैलाश गहतोड़ी ने अपनी सीट धामी के लिए छोड़ने का ऐलान सार्वजनिक रूप से कर इस सम्भावना को जिन्दा रखा है जीत का असली सेनापति धामी हैं । विधायक गहतोड़ी ने कहा है मुख्यमंत्री धामी दुर्भाग्य से चुनाव हारे हैं लेकिन भाजपा को बहुमत में लाने में उनकी बड़ी भूमिका है। धामी को 6 महीने का छोटा सा कार्यकाल मिला लेकिन उनकी नीतियों ने आज भाजपा को विजयश्री दिलवाई है ।

 जिस सेनापति के कारण भाजपा आज यहाँ तक पहुंची है और उस सेनापति ने भाजपा का किला बचाने में सफलता पाई है उसे शायद पार्टी एक मौका और देकर पार्टी में मुख्यमंत्री पद के अन्य सभी सक्रिय दावेदारों की दावेदारी एक झटके में खत्म कर दे ऐसी संभावनाएं अभी भी जिन्दा हैं । वैसे भी राजनीती संभावनाओं का खेल है । वैसे भी भाजपा के पास बहुमत से कई अधिक सीटें इस समय हैं,  साथ ही उसकी नजर निर्दलियों पर भी टिकी हैं । भाजपा किसी निर्दलीय विधायक को पार्टी में शामिल करवाकर वहां से धामी को उपचुनाव भी लड़ा सकती है । ऐसी सूरत में  6 माह के अन्दर पुष्कर सिंह धामी को चुनाव जीतना पड़ेगा जो बहुत मुश्किल आज की सूरत में नहीं है । बड़े पैमाने पर भाजपा में विधायकों का एक तबका इस समय युवा पुष्कर धामी के साथ चट्टान की तरह खड़ा है । अगर केंद्र से भेजे गए आब्जर्वरों के रायशुमारी की नौबत भी आती है तो वे सभी पुष्कर सिंह  धामी के साथ खड़े होंगे ऐसे संकेत मिल रहे हैं । पुष्कर का काम आज बोल रहा है । असल समस्या भाजपा के दिग्गज नेताओं की तरफ से आ रही है जो किसी भी कीमत पर पुष्कर सिंह धामी की राह फिर एक बार फिर से रोकने का काम कर सकते हैं ।

भीतरघातियों का कुछ होगा

इस चुनाव में मतदान सम्पन्न होने के बाद से भाजपा और कांग्रेस में भीतरघात की बातें जोर शोर के साथ उठी हैं । पुष्कर सिंह धामी की खटीमा सीट पर भी ये आशंका है यहाँ उन्हीं की पार्टी के कई बड़े दिग्गज नेताओं ने ऐसा जाल बुना जिससे वो खटीमा में पराजित हो जाएँ । हरिद्वार ग्रामीण में भी उनके करीबी यतीश्वरानंद को हार का सामना करना पड़ा । इसी तरह उनके करीबी किच्छा से राजेश शुक्ला , संजय गुप्ता भी इस चुनाव में हार गए जिसके बाद से यह देखा जा रहा है भाजपा में कुछ नेताओं के निशाने पर पुष्कर धामी और उनके करीबी थे । ये नेता किसी भी कीमत पर उन्हें और उनके करीबियों को जीतता हुआ नहीं देखना चाहते थे । ये तो कुछ सीटों की बात है । ऐसा खेला राज्य की कई विधान सभा सीटों पर जमकर हुआ है । यही हाल कांग्रेस का भी है । रानीखेत , जागेश्वर , लालकुआँ, नैनीताल  सरीखी कई सीटों पर कांग्रेस की कहानी भी इससे जुदा नहीं है । ऐसी कई सीटें पहाड़ से लेकर मैदान तक हैं जहाँ  दोनों पार्टियाँ पार्टी हारी नहीं बल्कि यहाँ हरवाने के लिए भीतरघाती सक्रिय रहे । इन सबके चलते यह भी देखना होगा क्या चुनाव निपटने के बाद दोनों पार्टियाँ आत्ममंथन करते हुए भीतरघातियों पर कोई एक्शन लेंगी ?

पहाड़ में चला मोदी मैजिक

कुमाऊँ की 29 में से 18 सीटें अपने नाम कर भाजपा ने फिर एक बार साबित किया यहाँ के वोटरों पर आज भी मोदी का जादू चलता है । कांग्रेस को पिछली बार कुमाऊँ में केवल 4 सीट ही मिल पाई थी इस बार उसकी 6 सीटें बढ़कर 10 हुई हैं । पिथौरागढ की 4 सीटों में से 2 भाजपा और 2 कांग्रेस के नाम रही । अल्मोड़ा में 3 भाजपा तो 1 कांग्रेस के पास गई ।  बागेश्वर में दो सीटें भाजपा के पास वहीँ चम्पावत में 1 सीट भाजपा तो एक कांग्रेस ने अपने नाम की ।  नैनीताल में भी भाजपा का बेहतर प्रदर्शन रहा ।  उधमसिंह नगर में भाजपा की संभावनाओं पर ग्रहण लगाने का काम किसान आन्दोलन ने किया ।  जसपुर , बाजपुर , किच्छा, नानकमत्ता कांग्रेस के खाते में गई । 

 मनहूस बंगले का हर सी एम को अभिशाप

उत्तराखंड का जो भी मुख्यमंत्री  न्यू कैंट रोड स्थित 10 एकड़ में फैले  इस आवास में अपना आशियाना बनाता है वह अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया।  नारायण दत्त तिवारी के दौर में गढ़ी कैंट में पहाड़ी शैली के आलीशान भव्य बंगले का निर्माण किया गया । इसमें एक बैडमिन्टन कोर्ट , स्विमिंग पूल , कई लान , सीएम और उनके स्टाफ के लिए कार्यालय और कई लान मौजूद हैं।

2007 में कांग्रेस के हाथ से सत्ता निकली तो बी सी खंडूडी ने भी इस बंगले को अपना आशियाना बनाया लेकिन ढाई बरस में ही सी एम की कुर्सी गंवानी पड़ी । इसके बाद निशंक ने भी इसी बंगले से अपनी बिसात बिछाई वह भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए । 2012 में कांग्रेस सत्ता में आई तो विजय बहुगुणा को भी यह बंगला भाया लेकिन इस बंगले ने उन्हें भी पूर्व सी ऍम बनाने में देरी नहीं की । तंत्र , मंत्र में भरोसा रखने वाले हरदा तो डर के मारे इस बंगले में नहीं घुसे और बीजापुर गेस्ट हाउस से ही अपना कामकाज चलाया फिर भी उनकी कुर्सी सलामत नहीं रही और वह भी दो सीटों से पराजित हुए । 2017 में काफी ना- नुकुर के बाद त्रिवेन्द्र सिंह रावत भी  इस बंगले में गए । वहां जाने से पहले उन्होनें हवन के कार्य किये और गाय की पूजा तक की । साढ़े 4 साल तक तो सब ठीक- ठाक रहा लेकिन ये बंगला उनकी कुर्सी भी बीच कार्यकाल में खा गया । उसके बाद गढ़वाल सांसद तीरथ सिंह रावत को सूबे की कमान भाजपा ने सौंपी । उनको भी इस बंगले का का भय था लिहाजा उन्होनें भी बीजापुर गेस्ट हाउस से ही अपनी सरकार चलाना ठीक समझा । फिर एकाएक रामनगर में पार्टी के अधिवेशन के चलते समय उनको दिल्ली तलब कर लिया गया और दिल्ली से वापसी के बाद उनकी मुख्यमंत्री की कुर्सी भी चली गई । 6 माह पूर्व पुष्कर धामी को जब मुख्यमंत्री बनाया गया तो उन्होंने खुद को आशावादी और सकारात्मक बताया और इस बंगले के वास्तु दोषों तक को कई दिनों तक दूर किया । इसके साथ ही हवन और पूजा -पाठ भी करवाई । लग रहा था इसके बाद इस बंगले का अभिशाप अब मानो खत्म हो गया है लेकिन मुख्यमंत्री  पुष्कर सिंह धामी को  भी  राजनीती की पिच पर इस बंगले ने क्लीन बोल्ड कर दिया है।