Monday 29 August 2022

मध्य प्रदेश बन रहा है खेलों का ' हब'








 शारीरिक, मानसिक  विकास के लिए खेलों का वातावरण  जरूरी है, साथ ही  जीवन के सर्वांगीण विकास में यह आवश्यक है। पहले के दौर में कहा जाता था ' पढ़ोगे लिखोगे, बनोगे नवाब, खेलोगे कूदोगे बनोगे खराब'। उस दौर में संसाधनों  के उपलब्ध न होने के बावजूद बच्चे खिलाड़ी नहीं बन पाते थे लेकिन अब यह कहावत भी देश में  बदलती नजर आ रही है।  आज देश में खेलों को लेकर एक नया दौर शुरू  हुआ है। देश के प्रधानमंत्री  नरेन्द्र मोदी की 'खेलो इंडिया' जैसी दूरगामी सोच  और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के प्रयासों से प्रदेश की खेल प्रतिभाओं को निरंतर  नए अवसर मिल रहे  हैं।

 शहरों से लेकर गाँवों तक स्टेडियम  

खेलों में मध्य प्रदेश के खिलाड़ी देश और दुनिया  में अपना नाम रोशन करें, इसके लिए शिवराज सरकार हर संभव प्रयास कर रही है। प्रदेश के खेलों के  बजट में सरकार ने काफी इजाफा किया है। खेल गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए कई शहरोंं और तहसीलों में स्टेडियम बनाने के लिए  सरकार प्रयत्नशील है। तहसील से लेकर ग्राम स्तर पर खिलाड़ियों को आज बेहतरीन सुविधाएं उपलब्ध करवाई जा रही हैं। इसके पीछे सरकार की मंशा छोटे शहरों में छिपी प्रतिभाओं को तराशना है। सरकार का लक्ष्य खिलाड़ियों को पूर्ण संसाधन उपलब्ध कराना है, ताकि वे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी प्रतिभा का कौशल दिखा कर अपनी चमक  बिखेर सकें।

भोपाल के नाथू बरखेड़ा में अंतरराष्ट्रीय स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स का निर्माण मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की मंशा के अनुरूप तैयार किया जा रहा है ,जहां खिलाड़ियों को विश्वस्तरीय सुविधाएं मुहैया करने की कार्ययोजना तैयार की जा रही हैं। इसके अलावा भी प्रदेश के अन्य शहरों  और  ग्रामीण क्षेत्रों  में भी स्पोर्टस कॉम्पलेक्स निर्माण किया जा रहा है। इसके तहत इंदौर व ग्वालियर ,कटनी में स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्स , नरसिंहपुर में वॉलीबाल, बैडमिंटन और अन्य खेलों के लिए इंडोर स्टेडियम का निर्माण  प्रगति पर है। हरदा नगर में इनडोर स्टेडियम,होशंगाबाद इटारसी में सरकार एस्टोटर्फ , रायसेन गैरतगंज, गंजबासौदा राजौदा रोड और नटेरन में खेल स्टेडियम  बनाया जा रहा है। सागर के मकरोनिया, निवाड़ी के तरीचरकलां, छतरपुर के बक्स्वाहा, रीवा जिले के गुढ़ तहसील और माड़ा में सरकार ने स्टेडियम की सौगात  सरकार  ने अपने बजट में दी है। उमरिया के करकेली नगर व नरवार नगर मेंं स्टेडियम, सीहोर नगर में टाउन हाल स्टेडियम, मंदसौर, पन्ना व नीमच में भी अत्याधुनिक स्टेडियम का निर्माण  किया जा रहा है ।

 खेल  प्रतिभाओं को  सरकार दे रही है प्रोत्साहन 

 आज  खेल क्षेत्र में प्रदेश की प्रतिभाओं ने  विश्व पटल पर मध्य  प्रदेश का कद  ऊँचा  किया है। आज खेलों के क्षेत्र में राज्य सरकार व केंद्र सरकार कई योजनाओं के माध्यम से खिलाडियों का  प्रोत्साहन कर रही है। मध्यप्रदेश ने हॉकी,शूटिंग,सॉफ्ट टेनिस,कराटे, वुशु, तैराकी, क्रिकेट, घुड़सवारी, टेबल टेनिस,सेलिंग,शतरंज जैसे अन्य खेलों में  कई राष्ट्रीय व अंतराष्ट्रीय खिलाड़ी दिए हैं। खेल और युवा कल्याण विभाग मध्यप्रदेश शासन द्वारा चलाए जा रहे टैलेंट सर्च अभियान के माध्यम से कई उत्कृष्ट खिलाड़ियों को चिन्हित कर उचित अवसर व सुविधाएं दी जा रही हैं।सरकार के द्वारा उत्कृष्ट प्रदर्शन खिलाड़ियों को खेल अलंकृत कर एकलव्य पुरुस्कार, विक्रम अवार्ड, विश्वामित्र अवार्ड, लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड जैसे पुरुस्कार से सम्मानित कर शासकीय सेवाओं में पद देकर खिलाड़ियों का उत्साहवर्धन किया जा रहा है।कई दिव्यांगजन युवा खिलाड़ियों को पुरस्कृत कर शासकीय सेवाओं में पद देकर मध्य प्रदेश सरकार ने बड़े  मंचों में सम्मानित भी किया है। ओलंपिक, पैरा-ओलंपिक में भी मध्यप्रदेश के खिलाड़ी शामिल होकर  स्वर्णिम मध्यप्रदेश बनाने में योगदान दे रहे हैं।  

खेल एवं युवा कल्याण  विभाग तराश रहा है प्रतिभाओं को 

मध्य प्रदेश के होनहार युवा हर क्षेत्र में अपनी प्रतिभा का जलवा बिखेर रहे हैं। खेल जगत में देश के हृदयस्थल मध्य  प्रदेश की  माटी के लाल सोना बनकर अपनी चमक बिखेर रहे हैं। बेहतर कोच, संसाधनों और अच्छी सुविधाओं ने राज्य के खिलाड़ियों को ऐसा माहौल दिया है कि वे  खेलों में अपनी जी -जान  कुर्बान कर रहे  हैं। आज  मध्य प्रदेश का युवा  दिन -रात  स्टेडियम में पसीना बहाकर ओलंपिक,एशियाई खेलों समेत बड़ी प्रतिस्पर्धाओं में पदक लाने  के सपने  देख रहा है। खिलाड़ियों के इन सपनों में  मध्य प्रदेश सरकार  रंग भरने का काम कर  रही है।   

 खेल एवं युवा कल्याण मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया के कमान सँभालने के बाद से प्रदेश  के खेल विभाग द्वारा  प्रदेश भर में टैलेंट सर्च अभियान चलाये जा रहे हैं जिसमें  ग्रामीण प्रतिभाओं को  भी समुचित अवसर मिल रहे हैं। खेल विभाग और प्रशिक्षकों की कोशिशों के चलते आज कई खिलाड़ी  देश ही नहीं विदेशी  सरजमीं में भी अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं। जिलों में भी खेल विभाग द्वारा बच्चों को खेलों के प्रति जागरूक करने के साथ-साथ ट्रेनिंग दी जा रही है और सुविधाएं मुहैया कराई जा रही हैं, इससे बच्चों में खेलों के प्रति रुचि बढ़ रही है। खेल मंत्री  यशोधरा  राजे सिंधिया  के कार्यकाल में खेल  अकादमी के वीडिंग आउट प्रॉसेस में बाहर हुए बच्चों को एनआईएस कोचिंग लेने के लिए प्रेरित किया जा रहा है ताकि ये खिलाड़ी अकादमी में रह कर खेल की बारीकियों  को जान सकें और एनआईएस कोचिंग कर अपने हुनर से युवा  खिलाड़ियों को प्रशिक्षण दे सकें । 


एमपी में खिलाड़ियों को मिल रहीं बेहतर सुविधाएं 

मध्य प्रदेश देश में सबसे अधिक एस्ट्रोटर्फ हॉकी मैदान वाला प्रदेश है।  मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का हॉकी के लिए जुनून देखने लायक है। देश के इस राष्ट्रीय खेल को मुख्या धरा में लाने का काम उन्हीं के द्वारा किया गया। ऐशबाग में हॉकी इंडिया लीग जैसे आयोजनों के माध्यम से उन्होनें  हॉकी  की पुरानी साख को वापस लाने का काम किया है । राज्य सरकार के प्रयासों की वजह से भोपाल, ग्वालियर, बैतूल, गुना, मंदसौर, दमोह, सिवनी, नर्मदापुरम में एस्ट्रोटर्फ स्टेडियम खिलाड़ियों के लिए उपलब्ध हैं। इंदौर और बालाघाट में तैयारी चल रही है। प्रदेश सरकार हर जिले में एस्ट्रोटर्फ स्टेडियम बनाने के लिए प्रयासरत है।  

  खेल अकादमी शुरू करने वाला देश का  पहला  राज्य मध्य प्रदेश

मध्य प्रदेश खेल अकादमी शुरू करने वाला  देश का पहला राज्य है। खेल अकादमी  शुरू करने के साथ ही  सरकार खिलाड़ियों को प्रशिक्षित कर, उन्हें  बेहतरीन  सुविधाएं मुहैया कराने का कार्य कर रही है। इस कदम से प्रतिभावान  खिलाड़ी  अपनी मेहनत के दम पर निखर रहे हैं । मध्य प्रदेश के होनहार हॉकी खिलाडी विवेक सागर ,नीलाकांता शर्मा, शौर्य प्रताप  इसी नर्सरी की उपज हैं।  ग्वालियर की राज्य महिला हॉकी अकादमी ने भी एक से बढ़कर एक हीरे तराशे। ग्वालियर की राज्य महिला हॉकी अकादमी ने भारतीय टीम में खेलने वाली बेहतरीन खिलाड़ियों को तराशा जिसके दम  भारतीय महिला हॉकी  टीम  पहली बार  टोक्यो ओलंपिक के सेमीफाइनल में पहुंची। सुशीला चानू, मोनिका और वंदना कटारिया जैसे खिलाड़ी भी यहीं की उपज हैं। 2006 में मध्य प्रदेश सरकार ने राज्य महिला हॉकी अकादमी  की शुरुआत की थी,जहां खिलाड़ियों के रहने-खाने समेत तमाम सुविधाएं उपलब्ध हैं। अकादमी ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के कई खिलाड़ी देश को दिए हैं। मध्य प्रदेश सरकार प्रतिस्पर्धाओं में अच्छा प्रदर्शन करने वाले खिलाड़ियों को निरंतर  प्रोत्साहित कर रही है। अकादमी  के प्रशिक्षकों  के द्वारा  खेलों को लेकर बड़ी रुपरेखा  तैयार की जा रही  है  जिसमें  बचपन से ही खेलों  की बारीकियों के बारे में बच्चों को   बताया  जा रहा है जिससे भविष्य में प्रदेश में बेहतरीन खिलाडी  तैयार हो सकेंगे। 

क्रिकेट में भी बज रहा है अब मध्य प्रदेश की प्रतिभाओं का डंका 

रणजी ट्राफी  जीतने के बाद मध्य प्रदेश का नाम क्रिकेट में भी सुनहरे अक्षरों में लिखा जाने लगा है। रणजी ट्राफी में  मुंबई  की बादशाहत को चुनौती देने के बाद अब प्रदेश के क्रिकेट खिलाडियों की चर्चा देश - विदेश में होने लगी है। रणजी ट्राफी जीतने वाले 11 खिलाड़ी आज राष्ट्रीय स्तर की टीमों में चुने जा चुके हैं।  रीवा के तेज गेंदबाज आवेश खान  भारतीय  क्रिकेट टीम में शामिल हैं जहाँ उन्होंने जिम्बाब्बे  सीरीज में शामिल किया गया है। एशिया कप के लिए भी रीवा के तेज गेंदबाज कुलदीप सेन के साथ उन्हें   टीम में  जगह मिली  है। रणजी में मध्य प्रदेश का नाम रोशन करने वाले  इंदौर के रजत पाटीदार को भारत ए  के लिए  बेंगलुरु में होने वाली  सीरीज के लिए चुना गया है। रणजी में मध्य प्रदेश की विजय पताका  फहराने वाले इंदौर के शुभम शर्मा को दिलीप ट्राफी में मध्य क्षेत्र का उप कप्तान बनाया गया है।शहडोल निवासी  विजयी विकेटकीपर हिमांशु , स्पिनर कुमार कार्तिकेय, नर्मदापुरम के बल्लेबाज यश दुबे, इंदौर के गेदबाज गौरव यादव ,आल राउंडर वेंकटेश अय्यर , भोपाल के तेज गेंदबाज पुनीत दाते  और इन्दौर के आल राउंडर सारांश जैन को भी दिलीप ट्राफी के लिए टीम में जगह  मिली है। मध्य प्रदेश को रणजी ट्राफी में विजय दिलाने वाले इन खिलाडियों के साथ ही कोच चद्रकांत पाटिल चंदू दादा  भी अपनी चमक अब आईपीएल  में बिखेरेंगे। उन्हें आईपीएल  के आगामी सीजन के लिए कोलकाता नाइटराइडर्स ने अनुबंधित किया है। प्रदेश में खेलों के इतिहास में यह पहला मौका है जब रणजी ट्राफी जीतने के बाद मध्य प्रदेश की प्रतिभाएं इतने बड़े स्तर पर क्रिकेट जैसे खेल में भी अपनी छाप  छोड़ रही हैं।  

Sunday 21 August 2022

आज भी याद आते हैं रामभक्त 'कल्याण '



कल्याण सिंह का जन्म यूपी के अलीगढ़ जिले में अतरौली तहसील के मढ़ोली गांव में 5 जनवरी, 1932 में हुआ था। वहीं से राजनीति की शुरुआत कर लखनऊ, दिल्ली, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश तक राजनीति में ऊंचा कद प्राप्त किया।  एक जमाने में हिन्दू ह्रदय सम्राट के नाम से जाने वाले कल्याण सिंह की राम जन्मभूमि आंदोलन में अहम भूमिका को नकारा नहीं जा सकता है। सभी लोग कल्याण सिंह को 'बाबूजी' कहकर बुलाते थे।  उनकी सादगी और ईमानदारी के सभी लोग कायल थे। जब भी लोग उनसे मुलाकात करते और कोई राय लेते तो वह उनका मार्गदर्शन करते थे । वे हमेशा उनसे कहते थे कि सफलता के लिए धैर्य का होना बहुत जरूरी है। कल्याण  सिंह की पूरी राजनीती मेंन इस धैर्य की छाप  देखी  जा सकती है।    
उनके मुख्यमंत्री रहते हुए छह दिसम्बर 1992 को बाबरी मस्जिद गिरी थी और इस मामले में उन्हें एक दिन के लिए जेल भी जाना पड़ा था। भाजपा के सबसे पहले और सबसे सशक्त ओबीसी नेताओं में कल्याण सिंह का नाम आता है। प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह के कार्यकाल में 1990 में जब मंडल-कमंडल की राजनीति शुरू हुई तब ही बीजेपी ने राम मंदिर निर्माण आंदोलन को राजनीतिक मुद्दे के तौर पर हाथ में लिया। देश में राजनीति दो हिस्सों में बंट गई। एक तरफ मंडल की राजनीति करने वाले और दूसरे मंदिर की राजनीति के साथ,लेकिन कल्याण सिंह देश के शायद इकलौते राजनेता होगें जिन्होंने दोनों राजनीति एक साथ की। बीजेपी में सोशल इंजीनियरिंग को आगे बढ़ाने वाले नेताओं में कल्याण सिंह का नाम सबसे ऊपर गिना जाता है। पिछड़ों और दलितों की आवाज उठाने के साथ कल्याण सिंह ने राम मंदिर आंदोलन में परोक्ष और अपरोक्ष रूप से बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया।  कल्याण सिंह श्रीराम मंदिर आंदोलन के अग्रणी नेतृत्वकर्ताओं में थे। उन्होंने कहा था कि, 'प्रभु श्रीराम में मुझे अगाध श्रद्धा है। अब मुझे जीवन में कुछ और नहीं चाहिए। राम जन्मभूमि पर मंदिर बनता हुआ देखने की इच्छा थी, जो अब पूरी हो गई। सत्ता तो छोटी चीज है, आती-जाती रहती है। मुझे सरकार जाने का न तब दुख था, न अब है। मैंने सरकार की परवाह कभी नहीं की। मैंने पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि कारसेवकों पर गोली नहीं चलाऊंगा। अन्य जो भी उपाय हों, उन उपायों से स्थिति को नियंत्रण में किया जाए।'

कल्याण सिंह आठ बार विधायक भी रहे, दो बार यूपी के मुख्यमंत्री,एक बार लोकसभा सांसद और फिर राजस्थान के साथ हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल की भूमिका का भी निर्वहन किया। मुख्यमंत्री के तौर पर यूपी में नकल रोकने के लिए कड़ा कानून बनाया और नाराजगी झेलनी पड़ी। उस वक्त शिक्षा मंत्री थे राजनाथ सिंह।1991 में बीजेपी को यूपी में 425 में से 221 सीटें मिली थी । शपथ लेने के बाद पूरे मंत्रिमंडल के साथ पहुंचे अयोध्या और शपथ ली कसम राम की खाते हैं, मंदिर यहीं बनाएंगें ।अगले ही साल कारसेवकों ने बाबरी मस्जिद गिरा दी और कल्याण सिंह ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। तब के प्रधानमंत्री नरसिंहराव ने शाम को उनकी सरकार को बर्खास्त कर दिया। फिर 1993 में जब चुनाव हुए तो बीजेपी की सीटें तो घट गईं, लेकिन वोट बढ़ गए। बीजेपी की सरकार नहीं बन पाई। साल 1995 में बीजेपी और बीएसपी ने मिलकर सरकार तो बनाई,लेकिन मुख्यमंत्री नहीं बन पाए। बाद में बीजेपी ने हाथ खींच कर सरकार गिरा दी। एक साल तक राष्ट्रपति शासन रहा। 17 अक्टूबर 1996 को जब 13वीं विधानसभा बनी तो लेकिन किसी को बहुमत नहीं मिला, बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनी लेकिन सीटें 173 मिली जिससे सरकार नहीं बन सकती थी। समाजवादी पार्टी को 108, बीएसपी को 66 और कांग्रेस को 33 सीटें मिली । तब के राज्यपाल रोमेश भंडारी ने राज्य में राष्ट्रपति शासन छह महीने और बढ़ाने की सिफारिश कर दी । एक साल से पहले ही राष्ट्रपति शासन चल रहा था । सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगाते हुए केन्द्र के राष्ट्रपति शासन को बढ़ाने के निर्णय को मंजूरी दे दी। लेकिन 1997 में हिन्दुस्तान की राजनीति में नया प्रयोग हुआ अगड़ों और पिछड़ों की पार्टी ने 6-6 महीने सीएम रहने के लिए हाथ मिला लिए।

वाजपेयी और कांशीराम के बीच हुए इस समझौते के बाद मायावती पहले छह महीने के लिए मुख्यमंत्री बनी थी, लेकिन छह महीने बाद जब कल्याण सिंह का नंबर आया तो एक महीने बाद ही बीएसपी ने समर्थन वापस ले लिया,इस कहानी के बाद क्या हुआ सब जानते हैं कि किस तरह कल्याण सिंह ने कांग्रेस और बीएसपी को तोड़कर अपनी सरकार बचा ली। वाजपेयी और बीजेपी से रिश्तों में खटास आने के बाद से कल्याण सिंह को हटाने की मांग होने लगी और 12 नवम्बर 1999 को कल्याण सिंह का इस्तीफा हो गया और रामप्रकाश गुप्त को सीएम बनाया गया। नाराजगी इस कदर बढ़ गई कि पार्टी ने पहले सस्पेंड किया और फिर 09 दिसम्बर 1999 को उन्हें छह साल के लिए पार्टी से निकाल दिया।

कल्याण सिंह ने नई पार्टी बना ली ,लेकिन साल 2002 के चुनाव में उन्हें सिर्फ़ चार सीटें मिली। अगस्त 2003 में यूपी में मुलायम सिंह यादव की सरकार में कल्याण सिंह की पार्टी शामिल हो गई। साल 2004 के चुनाव में कल्याण सिंह के नेतृत्व में बीजेपी ने चुनाव लड़ा ,लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ, पार्टी तीसरे नंबर रही फिर दोनों एक दूसरे से अलग हो गए। साल 2009 का लोकसभा चुनाव कल्याण सिंह ने एसपी के समर्थन से लड़ा और लोकसभा पहुंचे,लेकिन मुलायम सिंह को नुकसान हुआ, दोनों नेताओं के बीच दोस्ती खत्म हो गई। कल्याण सिंह फिर से अपनी पार्टी को मजबूत करने लगे ,साल 2012 में यूपी में उन्होंनें बीजेपी के खिलाफ चुनाव लड़ा ,लेकिन उनकी पार्टी हार गई और बीजेपी भी।

 साल 2014 में जब बीजेपी में राष्ट्रीय स्तर पर नरेन्द्र मोदी आए तो कल्याण सिंह की एक बार फिर बीजेपी में वापसी हो गई। इस बार उन्होंने कसम खाई कि ‘ज़िंदगी  की आखिरी सांस तक अब बीजेपी का रहूंगा’। कल्याण सिंह को राज्यपाल बना कर राजस्थान भेज दिया गया। जयपुर राजभवन में भी उनका मन लखनऊ की राजनीति में लगा रहा। राजभवन के बाद वे फिर से यूपी की राजनीति में सक्रिय हो गए।राजनीति में शुचिता बरकरार रखने के लिये कठिन फैसले लेने में तनिक भी देर नहीं करने वाले  कल्याण सिंह ने अपने मुख्यमंंत्रित्व काल में उत्तर प्रदेश में पुलिस की स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) का गठन कर राज्य में कानून व्यवस्था के खिलाफ खिलवाड़ करने वालों को सख्त संदेश दिया था। वर्ष 1991 में प्रदेश में भाजपा के पहले मुख्यमंत्री के तौर पर कल्याण  सिंह ने अपने करीब डेढ़ वर्ष के संक्षिप्त कार्यकाल में 6 दिसम्बर 1992 को बाबरी विध्वंस के बाद अपने पद से इस्तीफा दे दिया था जिसके एक दिन बाद प्रधानमंत्री नरसिंहराव ने उनकी सरकार को बर्खास्त कर दिया था। अपने दूसरे कार्यकाल में श्सिंह ने 21 सितम्बर 1997 को शपथ ग्रहण करने के बाद चार मई 1998 को एसटीएफ का गठन कराया और उसे पहला टास्क आतंक का पर्याय बने गोरखपुर के दुर्दांत माफिया श्रीप्रकाश शुक्ला की दहशत को खत्म करने का दिया था।  इस निर्णय की परिणाम जल्द सामने आया जब 22 सितंबर 1998 में गाजियाबाद में एसटीएफ ने एक मुठभेड़ में श्रीप्रकाश शुक्ला को मार गिराया। नब्बे के दशक में श्रीप्रकाश का आतंक यूपी के अलावा पड़ोसी राज्य बिहार में भी था। इसके बाद एसटीएफ ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा और एक के बाद एक कई माफियाओं और दुर्दांत अपराधियों को मुठभेड़ में ढेर कर प्रदेश में शांति का माहौल बनाने में अहम योगदान दिया। यह मुहिम आज भी जारी है जिसे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का भी भरपूर सहयोग मिल रहा है।

  21 अगस्त 2021 में कल्याण सिंह ने दुनिया को अलविदा कह दिया।  भाजपा के कद्दावर नेता रहे और उत्तर प्रदेश के पूर्व सीएम कल्याण सिंह की  पहली पुण्यतिथि पर कल  मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने  कैंसर इंस्टीट्यूट में कल्याण सिंह की प्रतिमा का अनावरण किया । कांस्य की यह प्रतिमा करीब 30 लाख रुपये की लागत से बनी है। भाजपा  अभी से मिशन लोकसभा 2024  की मुनादी में  जुटी है।  दिल्ली का रास्ता उत्तर प्रदेश से ही जाता है  और  प्रदेश के लगभग 25 जिलों की 75 सीटों पर लोधी बिरादरी का प्रभाव माना जाता है। इस आयोजन के बहाने भाजपा कल्याण को याद कर  एक बार फिर से  पिछ्ड़े  वर्ग के बड़े वोट बैंक को अपने साथ जोड़े रखना चाहती है।   पहली पुण्यतिथि पर कल्याण सिंह की जन्म और कर्म भूमि अतरौली समेत अलीगढ़, लखनऊ में कई कार्यक्रम आयोजित किए  गए।   भारतीय जनता पार्टी  के वरिष्ठ नेता और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे कल्याण सिंह  भले ही अब इस दुनिया में नहीं है लेकिन दलित पिछड़ों की राजनीति से लेकर राम मंदिर आंदोलन में अहम योगदान देने के कारण वह खासकर भाजपा के नेताओं और कार्यकतार्ओं के दिलों में सदियों तक जीवित रहेंगे।

Monday 15 August 2022

मध्य प्रदेश के संवेदनशील मुखिया शिवराज !

 


चुनौतियां और संकट सरकार की अग्निपरीक्षा लेते हैं। कई बार सरकारों के हिस्से तमाम दैवी आपदाएं, प्राकृतिक झंझावात और संकट होते हैं जिनसे पार पाना आसान नहीं होता। आज़ादी के अमृत महोत्सव की तैयारियों में जब देश हर घर तिरंगा अभियान में जुटा  हुआ था, इसी दौर में  मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान मध्यप्रदेश के धार ज़िले में कारम नदी पर नवनिर्मित कोठिदा-भारुडपूरा बाँध के ऐसे ही  भीषण  संकट से दो-चार हो रहे थे। स्वतंत्रता दिवस से ठीक पहले  इस संकट  ने मुख्यमंत्री और उनकी सरकार के सामने हर मोर्चे पर चुनौतियों का अंबार ला खड़ा किया लेकिन  मुख्यमंत्री शिवराज  सिंह  चौहान ने अपने  अनुभव, समझ  और प्रदेश की भौगोलिक परिस्थितियों  के अध्ययन  और प्रशासन की मदद से  इस बड़े संकट से  जैसी निजात दिलाई है उसकी मिसाल देखने को कम ही मिलती है ।  


कोठिदा-भारुडपूरा बाँध में रिसाव बनी बड़ी चुनौती

नवनिर्मित कोठिदा-भारुडपूरा बाँध में रिसाव का संकट एक ऐसी चुनौती बनी जिससे उबरना आसान नहीं था। लगातार तेज गिरते पानी और बाँध में लहरों के तेज बहाव ने  मुख्यमंत्री  के माथे पर शिकन को बढ़ाया और उन्होनें खुद को  इस चुनौतियों  के बीच झोंककर जैसी  दक्षता दिखाई वह आज  के राजनेताओं के लिए सीखने की चीज है। मुख्यमंत्री शिवराज  की  सबसे बड़ी खूबी यह है उनकी कथनी और करनी में अन्तर नजर नहीं आता है। उनकी वाणी और कर्म में जो साम्य है, वह उन्हें देश के  राजनेताओं में एक अलग ऊंचाई पर पहुंचाता है। उनकी खूबी यह भी है कि वे  जनता की नब्ज  टटोलना जानते हैं। सिर्फ समस्याओं को देखते ही नहीं  हैं, वरन खुद को उस अभियान में पूरी तरह से झोंक  देते हैं। ऐसे  माहौल के बीच  जनता, शासन-प्रशासन और सामाजिक संगठन भी  उनके साथ  कंधे से कंधे मिलाते हुए नजर आते हैं। कोठिदा-भारुडपूरा बाँध की विकराल चुनौतियों का जिन परिस्थितियों में उन्होनें समाना किया वह उनके दूरदर्शी नेतृत्व की मिसाल है।  

शिवराज जिलाधिकारी को बोले ये परीक्षा की घड़ी  है पंकज 

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भोपाल में बल्लभ  भवन में स्थित मंत्रालय के नियंत्रण कक्ष में बैठक लेकर धार ज़िले की धर्मपुरी तहसील में कारम मध्यम सिंचाई परियोजना के निर्माणाधीन बांध से जनता की सुरक्षा के निर्देश सबसे पहले दिए और  धार के जिलाधिकारी  को कहा ये परीक्षा की घड़ी है।  धार में रिसाव वाले बांध स्थल पर सेना, एनडीआरएफ, एसडीआरएफ  की टीमें  पहुंचीं और रात भर युद्धस्तर पर  काम चला जिसकी मॉनिटरिंग खुद  मुख्यमंत्री ने की। चौबीस घंटे कंट्रोल रूम  में तैनात रहकर  मुख्यमंत्री ने इस कठिन वक्त पर  जिस संवेदनशीलता से जिम्मेदारी निभाई है उसे  धार के निवासी कभी न भूल पाएंगे। उन्होंने  घटनास्थल पर मौजूद  टीम के लोगों  में सबसे पहले  जोश भरा  फिर  लोगों को आश्वस्त किया नियंत्रित तरीक़े से पानी निकालने की कोशिशें करें। 

संवेदनशील मुखिया का ऐसा भरोसा जनता में भी नई आशा को जगाता है। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का सहज स्वभाव ऐसा है कि वो जनता की समस्याओं के प्रति संवेदनशील रहते हैं। इस मुश्किल वक्त में हर जिंदगी को बचाना उनकी पहली प्राथमिकता थी इसलिए परिस्थिति पर काबू पाने के लिए बेहतर रणनीति तैयार की गई। सबसे पहले कारम बांध में एक किनारे से सुरक्षित तरीके से पानी की निकासी शुरू की ताकि बांध की दीवारों  पर पानी का दबाव कम किया जा सके जिससे  बांध के निचले हिस्से के गांवों को सुरक्षित तरीके से खाली कराया जा सके।

 मुख्यमंत्री इन पूरी गतिविधियों पर पल-पल नजर रखने के लिए स्वयं भोपाल से घटना स्थल का मुआयना कर रहे थे लेकिन अपनी सरकार के मंत्रियों को ग्राउंड जीरों पर उतार दिया था। जल संसाधन मंत्री तुलसी सिलावट  और उद्योग संवर्धन मंत्री राजवर्धन सिंह दत्तीगांव, मंत्री प्रभुराम चौधरी, कमिश्नर, जिलाधिकारी  और पुलिस अधीक्षक को मौके पर तैनात रहे। 

जनता की सुरक्षा बनी मुख्यमंत्री की  पहली प्राथमिकता 

धार जिले के धर्मपुरी तहसील के ग्राम कोठीदा और भारुडपुरा के बीच कारम नदी पर लगभग 305 करोड़ रुपये की लागत से बने कारम बांध में गुरुवार को अधिक बरिश के चलते रिसाव शुरू हो गया था। कारम मध्यम सिंचाई परियोजना के बांध के दाएं हिस्से में मिट्टी फिसलने से बांध को खतरा पैदा हुआ था।  

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने  मंत्रालय स्थित नियंत्रण कक्ष में विशेष बैठक लेकर धार जिले की धर्मपुरी तहसील में कारम मध्यम सिंचाई परियोजना के निर्माणाधीन बांध से जनता की सुरक्षा के निर्देश सबसे पहले  दिए। 

मुख्यमंत्री ने कहा कि खतरे में आए गांव के लोगों को जनप्रतिनिधियों के सहयोग से अन्य जगह ले जाएं। तेज रिसाव की खबर मिलते ही इंदौर के आईजी और कमिश्नर तथा धार व खरगोन के एसपी घटनास्थल पर पहुंचे। आगरा-मुंबई नेशनल राजमार्ग को डायवर्ट कर दिया गया। भोपाल और इंदौर  के विशेषज्ञों की टीम मौके पर  पहुँच गई तो वहीँ और आईआईटी  रुड़की की टीमें मुख्यमंत्री के सीधे संपर्क में थी। एनडीआरएफ की सूरत, वडोदरा, दिल्ली और भोपाल से एक-एक टीम भी रवाना हो गई । 

 घटनास्थल की पल-पल की जानकारी प्रधानमंत्री कार्यालय को उपलब्ध करवाई जा रही थी। बांध का पानी खाली कर बांध की दीवार में राहत-बचाव का कार्य तेजी से शुरू करवाया गया मुख्यमंत्री ने धार  के जिलाधिकारी से कहा कि पंकज जीवन में कभी-कभी ऐसे अवसर आते हैं, जब हमें सारी कठिनाइयों से खुद लड़ना होता है।  धार के जिलाधिकारी  की भी  इस पूरे मसले पर संवेदनशीलता  देखते ही बनती थी, जिन्होनें  प्रशासन को 11 अगस्त को ही बांध के रिसने की जानकारी मिलने के बाद मुस्तैद किया । इसके बाद संबंधित विभागों और मुख्यमंत्री कार्यालय को  भरोसे में लेकर  निर्माणधीन बांध से पानी रिसने के बाद चलाए जा रहे बचाव कार्यों  की जानकारी  मंत्रालय में  बनाये गए कंट्रोल  रूम को उपलब्ध करवाई। शनिवार तड़के चार बजे तक बांध के निचले इलाकों में स्थित 18  गांवों को खाली करा लिया  जिसके बाद हालात  पूरी  तरह से काबू में आ गए। मुख्यमंत्री ने रविवार सुबह 6 बजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फ़ोन कर वस्तुस्थिति से अवगत करवाया जिसके बाद ही वह मंत्रालय की अपनी सीट से उठे।  

हर मुश्किल में जनता के साथ खड़े रहते हैं शिवराज 
 
जनता के लिए  हर मुश्किल में अपने अनुराग के लिए मुख्यमंत्री  शिवराज  सिंह चौहान जाने ही जाते हैं। जनता को किसी भी तरह का कष्ट न हो इसके लिए उनकी मुस्तैदी देखते ही बनती है। इसके साथ ही उनकी संवेदना इसमें जुड़ जाती है। वे लोगों को कष्ट को बखूब समझते हैं ,साथ ही सामाजिक सहभागिता के अवसर भी उसमें जुटाते हैं। बाँध से हुए नुकसान को छोड़कर वह ग्रामीणों और मवेशियों की जिंदगी को बचाने के लिए अपनी  पूरी टीम के साथ   सक्रियता से मैदान में डटे रहे और शनिवार की पूरी  रात नहीं सोये । मुख्यमंत्री शिवराज की खूबी है कि वे  अपनी संवाद कला से  जितनी  सहजता के साथ जनता के  के दिलों में जगह बनाते हैं  वहीं मुश्किलों में भी वे अपना धैर्य नहीं खोते। असली राजनेता की यही सबसे बड़ी यूएसपी है और मुख्यमंत्री शिवराज की यही सबसे बड़ी ताकत है।   
 
इस तरह के प्रयासों में सरकारों के साथ स्थानीय  प्रशासन,  सामाजिक संगठनों एवं जागरूक व्यक्तियों की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका  होती है। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री ने स्वतंत्रता दिवस  समारोह से ठीक एक दिन पहले कठिन परिस्थितियों में नवनिर्मित कोठिदा-भारुडपूरा बाँध में रिसाव  संकट को जिस तरीके से हल किया है वह उनकी संवेदनशीलता को दिखाता है और जनता में भी  एक आत्मविश्वास पैदा करता है, एक भरोसा जगाता है  कि कठिन परिस्थितियों में  मुख्यमंत्री शिवराज सिंह  चौहान की सरकार हमारा सहारा बनेगी और हम फिर से उठ खड़े होंगे। सुगमता से किसी बड़ी चुनौती  का सामना  अगर किया जाए तो संकट टाला  जा सकता है,जहाँ पर मुखिया का अनुभव भी काम आता है। इस प्रकार का भरोसा शिवराज जैसे  सफल और जननायक मुखिया के रहते ही प्रदेश में जग सकता है।  

Friday 5 August 2022

शौर्य स्मारक में मौजूद हैं शहीदों के बोलते निशान

                                            


                                     



                     ‘शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, 
                  वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां  होगा’


 कविता की  ये पंक्तियां किसी शहीद के स्मारक को देख कर  जेहन में आ जाती  हैं।  देश की आजादी के लिए अपने  प्राणों का बलिदान देने वाले ऐसे ही शहीदों को श्रद्धांजलि देने के उद्देश्य से भोपाल के अरेरा हिल्स पर  चिनार पार्क के नजदीक 13  एकड़ में फैले शौर्य स्मारक का निर्माण किया गया है ।  राजधानी भोपाल में मौजूद ऐसा ही  शौर्य  स्मारक  वतन पर मिटने वाले  हर जांबाज सैनिकों के जज्बे को सलाम  कर रहा है, जहां  की एक झलक  देखने से  वीरगति को पाने वाले  देश के सपूतों के नाम पर  हर देशवासी सिर का सिर  श्रद्धा से झुक जाता है। 41 करोड़ रुपए से बने इस स्मारक  को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2016 में राष्ट्र को समर्पित किया था।   

2008 में आया आईडिया  मुख्यमंत्री शिवराज ने किया साकार 

10 जुलाई 2008  को राजधानी दिल्ली में इंडिया हैबिटेट सेंटर में  कर्नल मुशरान की बरसी पर भारतीय सेना के प्रति युवाओं की अरुचि पर भव्य कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा था।  इस पर तत्कालीन सेना अध्यक्ष  जनरल दीपक कपूर ने कहा आम आदमी और युवाओं का आकर्षण बनाये रखे के लिए अब तक किया ही क्या गया  है ? तब समारोह में मौजूद मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बड़ा ऐलान करते हुए कहा दिया उनकी सरकार भोपाल में एक शौर्य स्मारक बनाएगी। 2016 में मुख्यमंत्री के प्रयासों से एक शौर्य स्मारक की परिकल्पना साकार हो पाई।  

 वास्तुकला की दृष्टि  से बेजोड़ 

ये स्मारक  शहीदों की राष्ट्र सेवा से प्रेरित  है जिसमें , शहीदों की वीरगाथा को  आम लोगों तक पहुंचाने की  कोशिशें की गई  हैं। यहाँ की मिटटी में शूरवीरों की महक नजर आती है।  शौर्य स्मारक वास्तुकला की दृष्टि से बेजोड़  है जहाँ की दीवारों  में शहीदों  के  उजले पदचिह्न नजर आते हैं। शौर्य स्मारक  की छटा भी देखते ही बनती  है। पार्क में एक लाल रंग की मूर्तिकला भी स्थापित है ।  यह देश का  पहला ऐसा स्मारक है जिसका निर्माण सेना  के द्वारा  नहीं किया गया  है।  पार्क में एक भूमिगत संग्रहालय भी  बनाया गया है  जिसमें सैनिकों की याद में समर्पित दीर्घाएँ हैं जिसमें आज़ादी के बंटवारे , भारत -पाकिस्तान और चीन के साथ हुए युद्ध , कारगिल युद्ध के दौरान की वीरता की झलक देखने को मिलती है । शौर्य स्मारक के पार्क में महाराणा प्रताप जैसे वीर नायकों के अलावा भी अन्य  शूरवीरों की वीरगाथा को भी  प्रदर्शित किया गया है। 

भारत माता की मूर्ति कराती राष्ट्रबोध  

शौर्य स्मारक पार्क में प्रवेश करते ही भारत माता की  मूर्ति  सभी का ध्यान  अपनी तरफ खींचती है।  शौर्य स्मारक  की पहली वर्षगांठ के अवसर पर  14 अक्टूबर 2017 को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने यहां भारत माता की प्रतिमा की स्थापना  करने का  संकल्प लिया था। 15 अगस्त 2020 को मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री  शिवराज सिंह चौहान ने राजधानी भोपाल में स्थित शौर्य स्मारक में भारत माता की  भव्य प्रतिमा का अनावरण किया।  भारत माता की प्रतिमा आशीर्वाद की मुद्रा में है। कमल पुष्प पर विराजमान है एवं भारत का राष्ट्र ध्वज उनके  हाथ में है। भारत माता की प्रतिमा कांस्य धातु से बनाई गई है। भारत माता की प्रतिमा की कुल ऊंचाई  37 फीट है। प्रतिमा के पेडस्टल पर अशोक चक्र के साथ राष्ट्रगान और राष्ट्रगीत भी उकेरा गया है। 

तिरंगा झंडा लगाता है भव्यता में  चार चाँद 

  भारत माता की मूर्ति के हाथों में  देश की आन , बान और शान रखने वाला तिरंगा झंडा इसकी सुंदरता और भव्यता पर चार चाँद लगाता है। भारत माता की मूर्ति के पीछे एक  संग्रहालय भी है , जहाँ  भारतीय सेना के बारे में कई जानकारियां मिलती हैं।  सैनिकों के कठिन जीवन से आम जनमानस को रूबरू करवाने के लिए यहां पर ठन्डे कमरे भी मौजूद  हैं जिसमें प्रवेश करने पर एक अलग अनुभव प्राप्त होता है। सैनिकों की तमाम उपलब्धियां और वीरता की गौरव  गाथा को यहाँ  देखा जा सकता है।    
 
मन में जगती है देशभक्ति की भावना 

 शौर्य स्मारक में युद्ध स्थल से जुड़ी  हुई तमाम जानकारी आकर्षण का केंद्र  हैं। मुंबई के एक वास्तुकार शोना जैन के द्वारा शौर्य स्मारक  डिजाइन किया गया है । इस स्मारक की बनावट  एक मंदिर की स्थापना शैली से मेल खाती है। इसमें कई कक्ष बनाए गए है, एक गर्भगृह हैं और एक मुख्य कक्ष है। इसी कक्ष में सैनिकों को श्रद्धांजलि दी जाती है । यहां पर एक हेलीकॉप्टर का मॉडल भी रखा हुआ है।  रेगिस्तान  की सीमा  के निगरानी करते टैंकों की झलक भी इसमें  देखी जा  सकती  है। हमारे वीर सैनिकों के रहन सहन को भी यहाँ देखा जा सकता है।  

सैनिकों के नाम के भव्य  शिलालेख 

62 फुट ऊँचे स्तंभ में सैनिकों के नाम के शिलालेख हैं जहाँ  शहीदों के प्रति सम्मान  को प्रकट करने  के लिए एक दीपक  जलाया जाता है। यह स्तंभ  देश के उन तमाम वीर सैनिकों को समर्पित है, जिन्होंने देश की सुरक्षा के लिए अपने जीवन को समर्पित कर दिया था। स्मारक में मृत्यु पर विजय प्राप्ति और आत्मा की मुक्ति के पहलुओं को भी दर्शाया गया है। इस पार्क में स्तंभ के नीचे लाल स्थान है जो कि खून को दर्शाता है और सफेद संगमरमर जीवन का प्रतीक है। स्मारक परिसर के अंदर एक अखाड़ा भी बनाया गया है जो इतिहास का बोध कराता है।

स्मारक में बने संग्रहालय में रामायण, महाभारत और कलिंग युद्ध के अलावा भी कई अन्य युद्ध के चित्र भी  हैं। इसमें उन युद्धों को भी दर्शाया गया है जो जंगे-आजादी के बाद लड़े गए थे। स्मारक में उन तमाम वीर सिपाहियों के चित्रों की गैलरी भी है जिन्होंने परमवीर चक्र को प्राप्त किया है। भगवत गीता में श्रीकृष्ण के द्वारा बताए गए जीवन, मृत्यु और आत्मा की अनंतता के बारे में भी संदेशों  की आहट  को भी यहाँ महसूस किया जा सकता है। यहाँ के प्रतीकों में युद्ध क्षेत्र के मैदान भी  दिखाई  देते हैं । शौर्य स्मारक में प्रकाश और ध्वनि के माध्यम से युद्ध में अपने प्राण गंवाने वाले वीर सैनिकों की  गौरव गाथा  को बयां किया गया है। आजादी के अमृत महोत्सव के इस मौके पर  हम देश के सपूतों  के संघर्ष और उनके बलिदान को करीब से महसूस कर सकते हैं ।