Sunday 22 November 2009

येदियुरप्पा जी संकट अभी टला नही है ...........



भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों के माडल की बात आती है तो सभी "मोदी" की प्रशंसा में कसीदे पड़ा करते है .... गुजरात के साथ दक्षिण के राज्य कर्नाटक राज्य की चर्चा भी अब भाजपा के माडल में हाल के कुछ वर्षो से होनी शुरू हुई है ...


जिस प्रकार औरंगजेब की बीजापुर और गोलकुंडा में विजय ने उसके दक्षिण में विजय का मार्ग प्रशस्त किया था ... ठीक उसी प्रकार भाजपा की दक्षिण में विजय का मार्ग कर्नाटक ने खोला ...इस रास्ते को खोलने में किसी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई तो वह येदियुरप्पा थे .... नही तो उससे पहले भाजपा का वहां पर कोई अस्तित्व नही था.....


दक्षिणी राज्य कर्नाटक में शुरू से कांग्रेस का राज रहा ....८० के दशक में कांग्रेस की पतन की पटकथा शुरू हो गई ...इसके बाद राम कृष्ण लेकर पटेल तक का दौर आया ... जिसके झटको से वह अभी तक नही उबर पाई....



भाजपा ९० के दशक से कर्नाटक में मजबूत होनी शुरू हुई .... १९९९ के चुनावो में सात सांसदों के साथ उसने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई ॥ २००४ आते आते उसकी यह संख्या दो गुने से चार अधिक यानी १८ पहुच गई ....विधान सभा आते आते यह आंकड़ा ७९ पहुच गया ... यही वह समय था जब भाजपा को जे डी अस के साथ सरकार बनाने को मजबूर होना पड़ा ....


कुमार स्वामी और भाजपा में २०_ २० माह सरकार चलाने को लेकर सहमती बनी .... परन्तु कुमार स्वामी अपने कहे से मुकर गए ... जिस कारण जब येदियुरप्पा की बारी आई तो कुमार स्वामी ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया ... येदियुरप्पा इसी मुद्दे को लेकर जनता के बीच गए ...और उन्हें इस मुद्दे पर सहानुभूति मिली जिस कारण भाजपा राज्य में अपनी सरकार बनाने में सफल हो पायी ...



परन्तु दक्षिण के "मोदी" कहे जाने वाले येदियुरप्पा की पिछले १८ माह से चल रही सरकार पर संकट के बादल छा गए.... वैसे ही भाजपा में केन्द्रीय स्तर पर जूतम पैजार मची हुई थी अब राज्य स्तर पर भी इसकी शुरुवात हो गई.......राजस्थान की महारानी को जैसे तैसे इस्तीफे के लिए मनाया गया ...


उसके संकट से निपटने के बाद भाजपा के सामने नया संकट कर्नाटक का शुरू हो गया.... भाजपा अपने राज्यों के शासन को लेकर बड़ी मिसाले दिया करती है परन्तु अभी तक भाजपा शासित कोई भी ऐसा राज्य नही रहा होगा जहाँ कलह बाजी नही हुई हो..... दक्षिण का एकमात्र राज्य कर्नाटक भी इससे अछुता नही रह सका......


दरअसल कर्नाटक की सरकार को अस्थिर करने में दो भाईयो की बड़ी अहम भूमिका रही .... जनार्दन और करुणाकरण रेड्डी .... इन दोनों ने मुख्यमंत्री येदियुरप्पा को मुख्यमत्री की कुर्सी से बेदखल करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगवाया ....जनार्दन राजस्व मंत्री तो करुणाकरण पर्यटन मत्री की कुर्सी संभाले हुए है ...


येदियुरप्पा का कैबिनेट में लिया एक फैसला इनको नागवार गुजरा जिसमे उन्होंने कहा था बेल्लारी की खदान से अयस्क भरने वाले हर ट्रक पर १००० रूपया अतिरिक्त कर वसूला जाएगा...यही नही तभी से उन्होंने राज्य में सरकार को गिराने की तैयारी कर ली थी... इसके लिए बाकायदा येदियुरप्पा के असंतुस्ट विधायको से संपर्क साधा गया.....


कर्नाटक में येदियुरप्पा नाम के भले ही भाजपा नेतृत्व कसीदे पड़े परन्तु असलियत यह है यहाँ पर रेड्डीबंधुओं का बड़ा वर्चस्व रहा है ... दो भाई ही नही उनके तीसरे भाई सोमशेखर भी चर्चा के केन्द्र बिन्दु बने हुए है वह वर्तमान में दुग्ध संघ अध्यक्ष की कुर्सी संभाले हुए है ॥ रेड्डी बंधू कर्नाटक में उस समय चर्चा में आए जब १९९९ में सोनिया गाँधी ने वहां से लोक सभा का चुनाव लड़ा था... और वहां पर उनके विरोध में भाजपा की तेज तर्रार नेत्री सुषमा स्वराज उठ खड़ी हुई थी॥


बताया जाता है तब इन्होने सुषमा की तन, मन धन से बड़ी खिदमत की .... तभी से यह सुषमा के विश्वास पात्र बने हुए है.....हालाँकि सुषमा यहाँ से चुनाव हार गई थी लेकिन अगले लोक सभा चुनाव में जब सोनिया ने अमेठी का रुख किया तो यहाँ पर सुषमा के कहने पर रेड्डी को टिकेट दिया गया....


बताया जाता है कर्नाटक में दोनों की बहुत पहुच है जिसका फायदा वह उठाते रहे है ....महंगे बंगलो से लेकर आलीशान आशियाने .... हवाई जहाजो का काफिला इनकी शान है ..... तभी वहां पिछले विधान सभा चुनाव में कई विधायक उनके प्रसाद से चुनाव जीते थे ... यही नही येदियुरप्पा सरकार को समर्थन दिलवाने के लिए इनके द्वारा एक अभियान खरीद का चलाया गया था जिसके बाद येदियुरप्पा सरकार सदन में बहुमत साबित कर पाने में सफल हो पायी थी ....



यही नही रेड्डी के कहानी के किस्से यही खत्म नही होते..... अनंतपुर में इनके पास एक खनन की खदान लीज पर है ... यह खदान दो राज्यों की सीमा से लगी हुई है जिस कारण यहाँ वन विभाग के एक आला अधिकारी द्वारा इनको हरी झंडी नही दी गई ... जिसके बाद यह अन्दर ही अन्दर सुलग रहे थे ॥


आंखिर यह तो कोई बात ही नही हुई जिस राज्य में उनकी सरकार हो और उनके खदान के काम में कोई अदना सा आला अधिकारी अडंगा लगाये... बेल्लारी के एसपी ,कमिश्नर का तबादला बिना रेड्डी बंधुओ की स्वीकृति से कर दिया गया जिस कारण नाक तो लगनी ही थी .... ऐसा ही कुछ मामला कडप्पा में भी है॥ यहाँ पर दोनों का एक स्टील प्लांट है जिसके लिए इनको जमीन आंध्र के पूर्व सी ऍम राजशेखर रेड्डी द्वारा उपलब्ध करवाई गई..यह तकरीबन १०००० एकड़ है ....


कहा तो यह भी जा रहा है कांग्रेस ने जगन्मोहन रेड्डी को येदियुरप्पा की सरकार गिरवाने को उकसाया ... यह भी हो सकता है अगर कर्नाटक की भाजपा सरकार अल्पमत में आ जाती तो फिर आंध्र में जगन्मोहन को मुख्यमंत्री की कुर्सी मिल जाती ..... इन्ही सब बात के चलते येदियुरप्पा सरकार को अस्थिर करने की कोशिसे चलती रही..... येदियुरप्पा सरकार को अस्थिर करने में अनंत कुमार की भी कम भूमिका नही है ....उनकी नजरे कब से वहां के मुख्यमंत्री बन्ने में लगी हुई है... वह रात को इस मसले पर रेड्डी बंधुओं की क्लास तक ले लिया करते थे......


बताया जाता है राज्य विधान सभा के अध्यक्ष जगदीश को यह सभी मुख्यमंत्री का ताज पहनाना चाहते थे परन्तु उनकी यह उम्मीदे पूरी नही हो पायी...... यहाँ पर बता दे संघ परिवार इस बार येदियुरप्पा को हटाने के मूड में नही दिखाई दिया ..साथ ही जाती वाला मसला भी ध्यान में रखना था... येदियुरप्पा भी लिंगायत थे जगदीश भी ॥



असंतुष्टो की अगुवाई कर रहे रेड्डी बंधुओ ने विधायको को भड़काने के काम को बखूब अंजाम दिया ....राज्य की ग्रामीण विकास मत्री शोभा करंदलाजे की येदियुरप्पा के साथ निकटता लोगो को रस नही आ रही थी.....


बताया जाता है मुख्यमंत्री के कई निर्णयों में शोभा का दखल हुआ करता था.....जिस कारन विधायक रेड्डी के पक्ष में लामबंद होने शुरू हो गए थे...पर विरोधी खेमे की अगुवाई मे कुछ बातें मान ली गई है.... जैसे शोभा की मंत्रिमंडल से छुट्टी कर दी गई .....


मुख्य सचिव वी पी वालिगर को हटाकर प्रसाद को बैठा दिया गया ... ....साथ ही यह तय हुआ है बेल्लारी जिले के मामलो में येदियुरप्पा का अब कोई दखल नही होगा..... यहाँ पर तोपों की सलामी सिर्फ़ और सिर्फ़ रेड्डी बंधुओं को मिलेगी........यहाँ पर मुख्यमंत्री का फैसला नही वरन रेड्डी भाईयो का फैसला अंतरिम होगा ..... जगदीश को मंत्री बना दिया गया है ॥



बहरहाल जो भी हो , इस पूरे प्रकरण को हवा में रेड्डी बंधुओं की महत्वपूर्ण भूमिका रही है .... उनकी अधिकाँश मांगे मान ली गई है ...येदियुरप्पा की इस प्रकरण में हार हुई है .... उनकी कुर्सी तो बच गई है पर यह बात सामने निकालकर आ गई है अपने को दूसरो से अलग कहने वाली भाजपा में आज पैसा कैसे बोलता है...?


आज इस पार्टी में भी करोडपतियों की कमी नही रह गई है.... देश की सांसद में सैकड़ो धनी सांसदों में इसके सांसद भी किसी से कम नही है ......कर्नाटक ने पार्टी का चाल , चलन, असली चेहरा सभी के सामने दिखा दिया है ...पार्टी को आज इमानदारी से काम करने वाले मुख्यमंत्रियों की जरुरत नही है ....उसे तो बस चुनावी फंड चाहिए.........मान ना मान में तेरा मेहमान .............

येदियुरप्पा जी यह संकट तो समाप्त हो गया है ... पर आगे आपकी राह आसान नही लगती.....रेड्डी कब फिर से भड़क जाए इसका कोई भरोसा नही है..........नीचे की पंक्तिया सटीक है __________


"जुल्फों की घटाओं में बिजली ने किया डेरा ....

कब जाने बरस जाए इसका न भरोसा है ...

शैतान की नानी है ये कड़कती तडपन

कब आशिया जला दे इसका ना भरोसा है "


Friday 13 November 2009

क्या संघ करेगा गडकरी पर उपकार ?



भाजपा में नए अध्यक्ष को लेकर माथापच्चीसी शुरू हो गई है..... तीन राज्यों में पार्टी की करारी पराजय से जहाँ कार्यकर्ताओं का मनोबल टूटा है ,वही राष्ट्रीयस्वयं सेवक संघ भी अब भाजपा को नए ढंग से पुनर्गठित करना चाहता है..संघ प्रमुख मोहन भागवत के हलिया प्रकशित एक इंटरव्यू का हवाला ले तो इस बार वह संगठन में किसी भी प्रकार की ढील देने के मूड में नही दिखायी देते ....


भागवत ने दिल्ली की एक पत्रिका को दिए इंटरव्यू में साफ़ कह दिया है नया अध्यक्ष नायडू, अनंत, सुषमा , जेटली में से कोई नही होगा.... इस बयान को अगर आधार बनाया जाए तो मतलब साफ़ है भागवत नही चाहते कोई इन चार में से नया अध्यक्ष बने...शायद उनको भी पता है अगर इनमे से कोई नया अध्यक्ष बन गया तो पार्टी की गुटबाजी तेज हो जायेगी... वैसे भी पार्टी की दूसरी पंक्ति ने नेताओ में आगे जाने की लगातार होड़ किसी से छिपी नही है ... सभी राजनाथ के भावी उत्तराधिकारी होना चाहते है पर मीडिया के सामने अपना मुह खोलने से परहेज कर रहे है ...



अभी एक दो दिन पहले भाजपा के दिल्ली स्थित ऑफिस पर नए अध्यक्ष को लेकर तेज सुगबुगाहट होती दिखायी दी॥ कुछ सूत्रों की अगर माने तो ऑफिस खुलने के पीछे एक बहुत बड़ा संदेश छिपा हुआ है....अभी ३ राज्यों में करारी हार के बाद जहाँ भाजपा के ऑफिस में मायूसी देखीगई वही अब ऑफिस में कार्यकर्ताओं के लगते जमघट को नए अध्यक्ष की ताजपोशी के रूप में देखा जा रहा है...


बताया जाता है संघ ने नए अध्यक्ष पद के नाम का चयन कर लिया है अब बस बैठक द्बारा राजनाथ के भावी उत्तराधिकारी के नाम पर मुहर लगनी बाकी है... इसी कारण इन दिनों भाजपा अपने ऑफिस में नए अध्यक्ष के लिए जोर आजमाईश कर रही है ...



भाजपा भले ही कहे उसमे संघ का दखल नही है पर असलियत यह है वह कभी भी अपने को संघ की काली छाया से मुक्त नही कर पाएगी... बताया जाता है भाजपा में इस बार २ लोक सभा चुनाव हारने के बाद से गहरा मंथन चल रहा है ...


हार के कारणों की समीक्षा की जा रही है.... मोहन भागवत का कहना है अब तो हद हो गई है... समय से पार्टी के सभी नेता एकजुट हो जाए .... इस कलह का नुक्सान भाजपा को उठाना पड़ रहा है.... ऐसा नही है देश में भाजपा के विरोध में कोई लहर है... मुद्दों की कमी भी नही है पर विपक्ष के कमजोर होने का सीधा लाभ कांग्रेस को मिल रहा है ....



कल मोहन भागवत की राजनाथ के साथ मुलाकात के बाद कयासों का बाजार फिर से गर्म हो गया है ... बताया जाता है राजनाथ ने भागवत से मिलकर अपना दुखडा रोया है .... उन्होंने" संघम शरणम गच्छामी " का नारा बुलंद करते हुए साफ़ कहा है संघ भाजपा का शुरू से मार्गदर्शन करता रहा है....अब इस समय भाजपा बुरे दौर से गुजर रही है तो संघ का पार्टी में दखल होना जरूरी है ... संघ अपने विचारो से पार्टी को नई दिशा दे सकता है.....


गौरतलब है अभी कुछ समय पूर्व राजनाथ ने मीडिया से कहा था भाजपा को किसी भी प्रकार की सर्जरी की जरुरत नही है किसका दिमाग ख़राब हो गया है? राजनाथ भागवत के कामोपेरेथी वाले बयान पर अपनी प्रतिक्रिया दे रहे थे... आपको याद होगा राजनाथ ने प्रतिक्रिया में क्या कहा था... बाद में दोनों ने अपने बयानों से कन्नी काट ली थी....


खैर , अब राजनाथ सही ट्रैक पर लौटते दिखाई दे रहे है ... उनकी समझ में आ गया है भाजपा को सही दिशा देने का काम संघ के सिवाय कोई नही कर सकता है ...
प्रेक्षक कल संघ प्रमुख भागवत और राजनाथ की मुलाकात के कई अर्थ निकाल रहे है ...


महाराष्ट्र के भाजपा प्रदेश अध्यक्ष नितिन गडकरी के दिल्ली में होने के भी कई निहितार्थ निकाले जा रहे है ... कुछ लोगो का कहना है संघ प्रमुख भागवत ने गडकरी को झंडेवालान स्थित संघ मुख्यालय में आमंत्रित किया था....उनको पार्टी के संभावित राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में भी देखा जा रहा है ... गडकरी नागपुर की उसी धरती से आते है जहाँ संघ का मुख्यालय है ... इस समय संघ में मराठा लोबी पूरी तरह से हावी है॥


पार्टी के बड़े बड़े पदों पर मराठियों का कब्जा है॥ अब गडकरी को प्रदेश अध्यक्ष अगर बनाया जाता है तो संगठन में मराठी मानुष का मुद्दा जोर पकड़ सकता है... यह बताते चले संघ प्रमुख भागवत ने गडकरी का नाम संभावितों में सबसे ऊपर रखा है ... वह युवा भी है साथ में उनके नाम पर सहमती भी आसानी से हो जायेगी॥ हाँ यह अलग बात है पार्टी की डी ४ कम्पनी (सुषमा, जेटली, अनंत, नायडू) को यह बात नागवार गुजरेगी अगर उनकी ताजपोशी राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए हो जाती है....


गडकरी को केन्द्र की राजनीति का कोई अनुभव नही है... उनका महाराष्ट्र का लेखा जोखा भी कुछ ख़ास नही रहा है... इस बार पार्टी महाराष्ट्र में जीत हासिल करने के बहुत सारे दावे कर रही थी पर आखिरकार उसकी हालत पतली रह गई ...अतः गडकरी का राज्य की राजनीती से सीधे केन्द्र में दखल किसी को रास नही आएगा....


राजनाथ भी अपने कार्यकाल में कुछ ख़ास नही कर पाये....उनके गृह राज्य उत्तर प्रदेश में भाजपा की हालत बहुत पतली हो गई ....साथ ही उनके कार्यकाल में पार्टी की राज्य इकाईयों में संकट लगातार बना रहा ॥ चाहे वह उत्तराखंड का मामला रहा हो या राजस्थान में महारानी का हर जगह पार्टी की खासी फजीहत हुई है..अब ऐसे बुरे दौर में गडकरी को कमान संभालने को मिल गई तो उनको सभी को साथ लेकर चलना पड़ सकता है ...भागवत ने तो गडकरी का नाम अपनी लिस्ट में सबसे पहले रख दिया है ...


बस अब भाजपा के बड़े नेताओं से हरी झंडी मिलने का इन्तजार है॥ संभवतया इस मसले पर वह कुछ दिनों बाद आडवानी से भी चर्चा कर सकते है.. बताया जाता है इस मसले पर सुरेश सोनी भी आडवानी से गुप्तगू कर चुके है ॥ कोई कुछ क्यों नही कहे आडवानी अब पार्टी का रिमोट कंट्रोल अपने हाथ में रखना चाहते है.... उनकी मंशा तभी पूरी हो सकती है जब संघ उनकी सहमती से नए नाम का चयन करे...



नए राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के नाम की भी चर्चा है .... मोदी को आगे कर भाजपा अपनी मूल विचारधारा पर वापस लौट सकती है ... वैसे भी गुजरात में आज "मोदी" एक बहुत बड़ा ब्रांड बने हुए है... कई राज्यों के मुख्यमत्री अब अपने राज्यों में इस ब्रांड को अपना रहे है.... इसलिए बेहतर यह होगा मोदी अब केन्द्र की राजनीती करे.... पर मोदी के नाम पर आसानी से मुहर नही लग सकती..... क्युकि उनको आगे करने से भाजपा के सहयोगी दल अलग हो जायेंगे.. अब यह भाजपा को तय करना है उसको सबको साथ लेकर चलना है या कांग्रेस की तरह"चल अकेला " वाली नीति अपनानी है ....


वैसे आपको बता दूँ मोदी के नाम पर सहमती नही बन पाएगी ... "गोधरा " का जिन्न अभी भी उनके साथ लगा है.... साथ ही कट्टर उग्र हिंदुत्व की उनकी छवी उनका माईनस पॉइंट है ... विपक्षी उनको पसंद नही करते .... बिहार में लोक सभा चुनावो के दरमियान नीतीश ने सापफ तौर पर कह दिया था बिहार में उनके प्रचार की कोई आवश्यकता नही है ...


साथ ही लोक सभा के चुनाव परिणामो में भाजपा की करारी हार के लिए कुछ लोग मोदी को जिम्मेदार मान रहे है... जिन मुस्लिम बाहुल्य संसदीय इलाकों में मोदी गए भाजपा की वहां करारी हार हुई.... इसके अलावा मोदी अक्खड़ किस्म के है...एक वाक़या हमें याद है॥ गुजरात चुनावो के दौरान जब सभी लोग बैठक में टिकेट माग रहे थे......और मोदी से कह रहे थे "नरेन्द्र भाई " टिकेट दे दो तो मोदी ने संघ की पसंद को राजनाथ और आडवानी , रामलाल के सामने दरकिनार कर दिया.....अब अगर मोदी आगे हो गए तो या तो भाजपा में "मोदीत्व " आगे रहेगा या "उग्र हिंदुत्व ".... संघ को घास देना मोदी की फितरत नही है .... इसलिए मोदी की कम सम्भावना बन रही है ....


राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का दावा भी सबसे मजबूत नजर आता है ....चौहान को लेकर भाजपा पशोपेश में फसी हुई है ... शिवराज की मध्य प्रदेश सरकार के काम करने के ढंग की भाजपा के सभी बड़े दिग्गज प्रशंसा करते नही थकते.... अपने दम पर मध्य प्रदेश की सत्ता में वापसी कर उन्होंने दिखा दिया है सबको साथ लेकर कैसे चला जाता है और विकास क्या चीज है ?


बताया जाता है शिवराज की दिलचस्पी केन्द्र से ज्यादा अभी प्रदेश में है.... आडवानी के बर्थडे समारोह में शिवराज ने अपनी इस इच्छा से संघ और पार्टी के बड़े नेताओं को अवगत करवा दिया है ...बताया जाता है पार्टी में एक बड़ा तबका यह मानकर चल रहा था की शिव के आने से भाजपा मजबूत होगी॥ उनमे अटल बिहारी वाजपेयी जैसी समझ है॥ छवी भी पाक साफ है....साथ में उनको केन्द्र की राजनीती का अच्छा अनुभव भी रहा है ... इस लिहाज से वह सब पर भारी पड़ते दिखाई दे रहे है ...


पर शिवराज की मध्य प्रदेश में बदती दिलचस्पी को देखते हुए पार्टी का आलाकमान कोई रिस्क नही लेना चाहता ॥ इसके अलावा अभी प्रदेश में उनका कोई विकल्प भी नही है ..इस लिहाज से कोई उनको केन्द्र में नही लाना चाहेगा....


एक सम्भावना यह भी है अगर शिव भाजपा के तारणहार बनकर केन्द्र में भेज दिए जाते है तो मध्य प्रदेश में उनके स्थान पर नरेंद्र सिंह तोमर को लाया जा सकता है... राज्य में भाजपा को लाने में दोनों ने भरपूर योगदान दिया है ... वैसे भी इस बार तोमर का कार्य्क्काल पूरा हो रहा है ... उनके सीं ऍम बन जाने की स्थिति में प्रभात झा की प्रदेश अध्यक्ष के रूप में ताजपोशी हो सकती है ....


अभी शिव की मध्य प्रदेश में रमने की इच्छाओं को देखते हुए कहा जा सकता है संघ उनको मुख्यमंत्री के तौर पर प्रदेश की राजनीती में ही चलने दे और बाद में समय आने पर उनको आगे करे.... आने वाले लोक सभा चुनाव अभी बहुत दूर है...


गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर पारिकर का नाम भी अध्यक्षों की जमात में शामिल है... आडवानी को बासी आचार कहने के बाद से उनको भावी अध्यक्ष के तौर पर देखा जा रहा है ... कहा जा रहा है संघ ने उनसे यह बयान जबरन दिलवाया हो...इसके बाद भाजपा से इस बयान पर कोई प्रतिक्रिया नही आई ॥ जिससे अनुमान यह लगाया जा रहा है उनका नाम भी तगडे दावेदार के तौर पर संघ की सूची में बना हुआ है....


उनका प्लस पॉइंट यह है वह ईसाई है॥ उनको आगे कर भाजपा यह संदेश देने में कामयाब रह जायेगी हमारे यहाँ हिंदू ही महत्वपूर्ण कुर्सियों में आसीन नही है... साथ ही हिंदू से इतर अन्य जातिया भी भाजपा की तरफ़ झुक जायेंगी ......


पर परिकर की एक समस्या आडवानी है .... आडवानी कभी नही चाहेंगे नया अध्यक्ष उनकी नापसंद का बने ....कोई माने या न माने भाजपा को खड़ा करने में आडवाणी का बड़ा योगदान है .....महज २ लोक सभा सीटो से १०० पार ले जाने में उनके योगदान की उपेक्षा नही की जा सकती...इस बात को मोहना भागवत भी भली प्रकार जानते है ....वह नया अध्यक्ष चुनने से पहले आडवानी की रजामंदी करवाना पसंद करेंगे..अगर आडवानी की चली तो पारिकर का " बासी आचार " का बयान ख़ुद उनकी राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने की राह में बड़ा रोड़ा बन सकता है ॥

बहरहाल जो भी हो नया अध्यक्ष संघ द्बारा तय किया जा चुका है .... गडकरी ,शिवराज , मोदी , परिकर इन चार नामो पर ही विचार किया जा रहा है ...अगर संघ की चली तो वह मोदी, शिवराज को अपने राज्यों के मुख्यमंत्री के रूप में चलने दे .... ऐसी सूरत में गडकरी , परिकर के बीच ज़ंग होगी....वैसे अगर भागवत की चली और भाजपा ने उनकी पसंद पर मुहर लगा दी तो गडकरी राजनाथ के वारिश साबित हो सकते है ... नागपुर संघ मुख्यालय से होना उनके लिए फायदे का सौदा बन सकता है ...अब देखते है राजनाथ का भावी उत्तराधिकारी कौन होता है ?