Monday 7 November 2022

‘ फिल्म इंडस्ट्री में नेपोटिज्म से ज्यादा फेवरेटिज्म है ’


 

 

मुंबई सपनों की नगरी है। इस मायानगरी में हर साल लाखों लोग एक्टर बनने का सपना लिए अपना घर छोड़ कर आते हैं लेकिन अभिनेता बनना इतना आसान नहीं होता है। इसके पीछे कई सालों का संघर्ष और खुद की मेहनत होती है। अमित सोनी   इंडियन डायमंड इंस्टीट्यूट सूरत (गुजरात) से ज्वैलरी डिजाइनिंग में गोल्ड मेडलिस्ट  रहे और बाद में  एमबीए  भी किया।  कुछ साल हांगकांग, चीन, ओमान  जैसी विदेशी सरजमीं  में  ज्वैलरी इंडस्ट्री में नाम रोशन किया ।  फिर भारत वापस आकर पीसी ज्वैलर्स में  मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़ के रीजनल हेड रहे ।  इसी दौरान उन्हें लगा अब तक दूसरों  के सपने के लिए इतनी मेहनत की अब खुद के सपने के लिए नई  उड़ान भरूंगा।  अपने सपनों को साकार करने के लिए वह अपनी ज्वैलरी की जॉब को छोड़कर  देश के हृदयस्थल मध्य प्रदेश को छोड़कर  सीधे मुम्बई चले गए। एक इंटरनेशल ज्वैलरी डिजायनर से लेकर एक अभिनेता बनने तक का उनका अब तक का सफर तमाम चुनौतियों और संघर्ष से भरा रहा है। 

अमित सोनी ने बचपन से ही अपनी रचनात्मक कहानी कहने की कला को प्रस्तुत करना शुरू कर दिया था। वह अपने कहानी कहने के कौशल से अपने परिवार, स्कूल और दोस्तों को हैरत में डाल देते थे। अमित सोनी ने अपने फिल्म कैरियर की शुरुआत सबसे बड़े टीवी शो ‘सावधान इंडिया ’ से की। उसके बाद उन्हें 'एनआरआई दुल्हा ' में भूमिका निभाई लेकिन किन्हीं कारणों के चलते वो रिलीज नहीं हो पाया। फिर डीडी नेशनल का ‘ना हारेंगे हौसला हम’, ‘बेटा भाग्य से बिटिया सौभाग्य से’ किया। इसके बाद स्टार प्लस के प्रसिद्ध सीरियल ‘ये है मोहब्बतें’ की सफलता से उन्हें सर्वश्रेष्ठ नकारात्मक भूमिका और सर्वश्रेष्ठ अभिनय के लिए एक प्रतिष्ठित छवि मिली जिसके बाद उनकी सफलता को मानो नए पंख ही लग गए। ‘फियर फाइल्स’, ‘ससुराल सिमर का’, ‘सलाम इंडिया ’, ‘ श्रीमद् भागवत  महापुराण ’, ‘परम अवतार श्रीकृष्ण ’ जैसे सीरियल में उनके  दमदार अभिनय को देश और दुनिया में सराहना मिल चुकी है। यही नहीं , उनकी 'शुद्धि ' फिल्म मैनचेस्टर लिफ्ट आफ फिल्म फेस्टिवल में  प्रतिष्ठित पाइनवुड अवार्ड के  लिए  चयनित हुई,  जिसे  राष्ट्रीय वा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर 13 अवार्ड मिले। उनकी पहली वेब सीरीज़ ‘जाह्नवी ’ (लीड) सोनी लिव जैसे प्रतिष्ठित चैनल से रिलीज हुई थी। कोरोना लाकडाउन के दौर में उन्होनें 22 सेलिब्रिटियों के साथ एक नया एल्बम गीत ‘सारा हिंदुस्तान’  में अभिनय किया और इसे प्रोड्यूस भी किया जिसमें जाकित हुसैन, सुरेश बेदी , रोहिताश गौड़, सुरेश बेदी,  सोनू सूद जैसे फिल्म जगत के दिग्गज सितारे शामिल थे।
 
आज अपने अभिनय के चलते अमित सोनी बॉलीवुड में किसी परिचय के मोहताज नही हैं। अमित  सोनी मूल रूप से द सिटी ऑफ़ लेक 'भोपाल' से ताल्लुक रखते हैं। अमित सोनी मानते हैं कि बहुत से लोग मुंबई आते हैं और अभिनेता बनने के लिए कोर्स करते हैं , लेकिन यह इतना आसान नहीं होता है। आपको रातों रात अभिनेता बनाने के लिए कोई कैप्सूल नहीं होता है और संघर्ष तो हर एक क्षेत्र में होता है। अमित के लिए अभिनय एक बड़ी सहज प्रक्रिया है। उनकी मानें तो दिल से किया गया अभिनय वो है जो दूसरों के दिलों को छू लेता है। 

 
अभिनेता अमित सोनी से उनके करियर और फिल्म इंडस्ट्री की यात्रा को लेकर विशेष बातचीत की। प्रस्तुत है उसके मुख्य अंश
 
 सागर के छोटे से कस्बे से लेकर मुंबई की मायानगरी की यात्रा ये जो सफर है आप इसे कैसे देखते हैं ?

 
 मेरी जिन्दगी में बहुत उतार और चढ़ाव रहा है। मेरी पैदाइश वैसे तो सागर की है लेकिन बैरासिया में मेरा बचपन गुजरा है। उसके बाद कुछ वक्त विदिशा, फिर सागर रहा। बुंदेलखंड से मेरा एक ख़ास लगाव रहा है। मुझे गर्व है कि मैं मध्यप्रदेश से हूँ। मैंने अपनी उच्च शिक्षा गुजरात से प्राप्त की। ज्वैलरी डिजाइनिंग का कोर्स भी किया। गोल्ड मेडलिस्ट रहा। देश – विदेश की कई बड़ी कंपनी में काम किया उसके बाद एक्टिंग के क्षेत्र में हाथ आजमाया। इसी दौरान सावधान इण्डिया का ऑडिशन भी चल रहा था।  उसमें मेरा चयन हुआ और उसमें काम किया। मेरे गुरु गोविन्द नाम देव जी हैं। उन्होंने मुझे सुझाव दिया भोपाल में वरिष्ठ रंगकर्मी आलोक चटर्जी से जाकर एक बार मिलें। उनके साथ काम करने का बेहतरीन अवसर मिला। बॉलीवुड अभिनेता इरफ़ान खान से मुलाकात भोपाल में हुई और उनसे प्रेरणा लेकर 'ये हैं मोहब्बतें 'सीरियल में काम किया।  मैंने अपनी एक कंपनी भी रजिस्टर्ड की और जब मैं मुंबई गया तो वहां पर मेरी मदद करने वाला कोई नहीं था इसलिए मेरी कोशिश रहती हैं कि मैं लोगों की दिल से मदद करूँ। 
 
सोनी लिव चैनल में 'जान्हवी' वेब सीरीज आई थी। इसके अलावा जी से मेरा सांग 'तू जो मिला खुदा मिला' भी लांच हुआ था। वो मैंने मलेशिया में शूट किया और इसका शेष बचा हुआ भाग मैंने भोपाल के पीपुल्स वर्ल्ड में शूट किया था। इसके अलावा टी सीरीज का 'खलिश' गाना था जो मैंने भोपाल और इंदौर शूट किया था। अभी जो मैंने ' स्क्र्यू यू'  करके अपने बैनर यानी 'अमित सोनी एंटरटेनमेंट' की शार्ट फिल्म बनाई है जो एक मैंने बड़े ओटीटी प्लेटफार्म पर पिच किया है। बहुत अच्छी टीम जुड़ गई है मेरी। मैंने साउथ  फिल्म के कुछ डायरेक्टर और प्रोड्यूसर को भी भोपाल घुमाया है। 2  फिल्म इंडस्ट्री के बड़े कलाकारों को भी जल्द में भोपाल ला रहा हूँ ताकि मध्य प्रदेश में फिल्म निर्माण की संभावनाओं को तराशा जा सके। मैं चाहता हूँ कि जब बॉलीवुड हो सकता है। टालीवुड हो सकता है तो फिर अपना भोपालीवुड क्यों नहीं हो सकता है?  हमारा भी एक हब बनना चाहिए। ऐसा नहीं हैं भोपाल में आजकल बहुत सारे शूट हो रहे हैं। कई बड़े बड़े एक्टर शूट कर रहे हैं। मैं चाहता हूँ कि जो कहानियां हैं जो आज तक हमारे सामने नहीं आई वो कहानियाँ भी उभर कर आये। जहाँ आपने जन्म लिया होता है वहां के कर्जदार आप ज्यादा होते हैं।
 
आप बहुत अच्छे इंटरनेशनल ज्वैलरी डिजाइनर रहे हैं और आज भी डिजाइन के प्रोफेशन को आपने छोड़ा नहीं है इसकी कोई ख़ास वजह ?
 
आपने कहावत सुनी होगी चूहे का बच्चा है तो बिल तो खोदेगा । अब मेरे नाम में ही 'सोनी'  है। ज्वैलरी मेरा बैकग्राउंड भी हैं। अभिनय से मुझे तसल्ली मिलती हैं और ज्वैलरी के बिजनेस से मुझे साइड बाई साइड आय होती है। एक अभिनेता की जो जिन्दगी होती है वो हमेशा अप नहीं होती और हमेशा डाउन नहीं होती। उतार और चढ़ाव जीवन के हिस्से रहते हैं। जो मेरे पुराने ग्राहक हैं वो आज भी मुझसे ही ज्वैलरी खरीदना चाहते हैं। 
 
हाल के वर्षों में देखें तो सिनेमा में बहुत से बदलाव आये हैं। आप देख रहे होंगे ओटीटी प्लेटफार्म पर काफी सारी बेव सीरीज आ गई है। बड़े -बड़े कलाकार भी आजकल ओटीटी प्लेटफार्म का रूख कर रहे हैं। तो आप इस बदलाव को एक कलाकार के नजरिये से कैसे देख रहे हैं ?
 
बदलाव तो हमेशा आता है लेकिन ब्लैक एन्ड व्हाइट टेलीविजन से हम कलर टीवी में आने में हमने कितने दशक देखे हैं। उसी तरह से हर दशक में सिनेमा में भी बदलाव आये हैं। होता ये है कि हम आज के बदलाव को देखकर पीछे के बदलाव को भूल जाते हैं। जैसे आप देखेंगे कि नब्बे के दशक के जो गाने थे वो अलग किस्म के थे। आप किशोर कुमार के  गाने सुनेंगें तो उसमें एक अलग कल्चर दिखेगा। मुकेश का आपको एक अलग कल्चर दिखेगा। गोविन्दा की फिल्में अलग तरह की।
 
 तो ये जो बदलाव है उन्हें मैं दो तरह से देखता हूँ। दरअसल कोविड के बाद आदमी के पास वक्त था उसने ओटीटी प्लेटफार्म को समझा ही नहीं था। अब उसके बाद वक्त मिला ओटीटी प्लेटफार्म में वेब सीरीज देखने को मिली। अब इंसान को वक़्त देखने को मिला है। यदि आपका कंटेंट अच्छा है, क्रिएटिव है तो जनता उसे पसन्द करेगी। जो कंटेंट है आज उसकी ही मांग है और यही बदलाव है। दूसरी ओर बहुत खास बात है अगर आप साउथ की फिल्मों को देखते हैं तो वो अपने कल्चर को नहीं  छोड़ते हैं। हम एकदम से एडवान्स हो जाते हैं। हम अपने कल्चर को छोड़ देते हैं और हम इतना हाई क्लास चले जाते हैं कि उससे हमारा व्यूअर कनेक्ट नहीं होता। हमें कल्चर को भी नहीं छोड़ना है और नया कंटेंट  भी चाहिए।
 
 आप गाने भी करते हैं, सीरियल भी करते हैं और फिल्में प्रोड्यूस भी करते हैं। एक अच्छे ज्वैलरी डिजाइनर भी हैं। आप किस भूमिका में अपने आपको सहज मानते हैं ?
 

एक्टर के तौर पर आपके लिए यही चुनौती है कि आप किसी भी करेक्टर को ना नहीं कहें। मैं ऐज आन ऐज एक्टर हर चीज को इंजाय करता हूँ। मुझे हर भूमिका जीने में मजा आता है। जैसे मैंने एक कपल पार्टी वेब सीरीज की है जो अमेजन प्राइम पर आने वाली है तो उस समय जो मेरे डायरेक्टर थे,  उन्होंने कहा कि अमित कुछ अलग चाहिए तो मैं अलग अलग किरदार में खुद को सहज समझता हूँ। जब आप कुछ नया करते हैं तो वो अलग होता है। किरदार के हिसाब से गेट अप बदलना, बॉडी ट्रांसफार्मेशन भी करता हूँ। मैंने जब "शुद्धि" फिल्म की थी तब मेरा वजन 92 किलो था, फिर मैंने 24 किलो वजन भी काफी मेहनत करके घटाया जो कि मेरे लिए किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं था।   
 
 
मुंबई का सफर बहुत चुनौतीपूर्ण रहता है। आपने खुद कोई प्रशिक्षण भी नहीं लिया। जो नये लोग आ रहे हैं इस फिल्म इंडस्ट्री में उनके लिए कितना चुनौतीपूर्ण टास्क है?  नये लोगों के लिए जगह बनाना और एक नया मुकाम हासिल करना ?
 

मैं बहुत स्टेट फारवर्ड बोलता हूँ। एक अच्छा कलाकार वह है जो थियेटर करता है। ये आपको आप को एक परफेक्ट पैकेज बनाता है। कई बार लोग नेपोटिज्म की बात करते हैं तो नेपोटिज्म आखिर है क्या?  आप अपना एक मुकाम हासिल करते हो। बीस पच्चीस साल बिजनैस करते हैं और जाहिर सी बात है कि आप आपने पड़ोसी के तो वारिस बनागे नहीं। वैसे ही दृष्टि में लोग नेपोटिज्म की जगह फेवरेटिज्म होता है आप किसी एक पर्टिकुलर ग्रुप का हिस्सा है तो आपको बढ़ावा दिया जाएगा। नेपोटिज्म इस इंडस्ट्री में है लेकिन इतना नहीं है जितना फेवरेटिज्म है। ऋतिक रोशन , वरुण धवन,  आलिया भट्ट, श्रद्धा कपूर है। इन्होनें  बकाया मेहनत भी की और एक्टिंग भी सीखी। डांस भी सीखा। फिजिक भी बनाई तभी एक पूर्ण पैकेज बनकर आए।
 
मेरा कहना है अगर आप मुंबई जा रहे तो आपका सबसे पहले एक बहुत अच्छा पैसों  का बैकअप भी होना चाहिए कि आप दो से पांच साल आप वहां सरवाईव कर सकें तो ही आप जाएं वर्ना मत जाइए क्योंकि एक फिल्म में चयन होने से लेकर रिलीज होने तक छह महीने तक या साल भर तक लग जाते हैं और ऐसा तो नहीं है कि आपको  जाने से काम मिल जाए। दूसरी बात आपको एक उचित ट्रेनिंग लेकर जाना चाहिए। एक फुल ऐसा पैकेज होना चाहिए कि आपको कोई रिजेक्ट ना कर सके। इसके अलावा अगर आप ये सोचते हैं कि फेसबुक या इन्ट्राग्राम पर हजार लाइक आ चुके हैं और आपको एक्टिंग  फिल्म में जाकर काम करना है तो मेरी सलाह रहेगी आप न जाएँ।
 
 
आज का जो युवा है वो थियेटर को छोड़कर सिनेमा की तरफ अपना रूख करना चाहता है तो इस बात से आप कहां तक इत्तेफाक करते हैं ?
 
मध्य प्रदेश में मध्य प्रदेश स्कूल ऑफ ड्रामा है दिल्ली में नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा भी है। और भोपाल में ही देखिए कितने अच्छे थिएटर है, आप देखिए कि एनएसडी से जितने भी पास आउट हैं। आप उनको देख लें, उनके भीतर स्टेबलेटी है। नसीरुद्दीन शाह, अनुपम खेर, मनोज वाजपेयी, ये सब क्या है ? एनएसडी से पासआउट है आज भी वो सरवाइव क्यों कर रहे हैं ? आपको एक्टिंग फिल्म में आने से पहले एक उचित ट्रेनिंग लेनी पड़ेगी। आप सिर्फ देखने में खूबसूरत हैं इसलिए बॉलीवुड में चले जाएंगे मुझे नहीं लगता कि ये बहुत किस्मत की बात है,  करोड़ों लोगों  में से कुछ लोगों  को मौके से ऐसा अवसर मिलता है। 
 
रंगमंच इस क्षेत्र में सफलता के लिए बेहद जरूरी है लेकिन आम आदमी इतना रूचि नहीं  लेता। अब भोपाल के भीतर ही देखें टिकट लेकर देखने की प्रथा बिल्कुल भी खत्म हो गई है। इससे आप कितना इत्तेफाक रखते हैं ?
 
मैं इस बात से सौ प्रतिशत इत्तेफाक़ रखता हूँ। बॉलीवुड में आज जो लोग हैं और मुंबई में लोग आज जितने भी बड़े - बड़े कलाकार हैं वो बीच- बीच में जाकर थियेटर करते हैं। वो समझते हैं कि थियेटर एक ऐसा समंदर है,  इसमें जितना तैरते हैं,  उतना सीखते हैं। लोग आज इतने प्रैक्टिकल हो गए हैं कि उन्हें आज रेडी टू ईट चाहिए वो उस चीज को देखना चाहते हैं कि उन्होंने कितने महीने तक तैयारी की । लोग आज मनी माइंडेड हो रहे हैं। 
 
रंगमंच को मेनस्ट्रीम में लाने के लिए सरकार की कोशिशों को किस तरह से आप देखते हैं? क्या करना चाहिए ?
 
थियेटर को घर- घर तक पहुँचाना चाहिए क्योंकि कई थियेटर कलाकारों को स्थिति बेहद दयनीय है। सरकार को थियेटर को दुनिया के नक़्शे पर पहुँचाने के लिए मीडिया के माध्यमों का उपयोग करना चाहिए।
 
 मध्य प्रदेश में फिल्म निर्माण  की संभावनाओं  को आप किस तरह से देखते हैं?
 
खूबसूरत लोकेशंस के अलावा सुविधाजनक स्थल होने की वजह से डायरेक्टर्स फिल्म की शूटिंग के लिए मध्य प्रदेश आ रहे हैं। फिल्म निर्माताओं को शूटिंग की अच्छी लोकेशन यहां आसानी से मिल जाती है, साथ ही मध्य प्रदेश सरकार फिल्म के अनुकुल बुनियादी ढांचा स्‍थापित करने के उसे प्रोत्‍साहन भी दे रही है। यहाँ पर शूटिंग के लिए परमिशन और एनओसी मिलना भी अन्य राज्यों की अपेक्षा आसान है। मध्य प्रदेश के विभिन्न जिलों में लगातार हो रही शूटिंग के चलते ही हाल ही में 68 वें  राष्ट्रीय फिल्म में  मध्य प्रदेश ने 13 राज्यों को पीछे छोड़ते हुए दूसरी बार मोस्ट फ्रेंडली स्टेट का दर्जा पाया है।
 
पूरे देश में फिल्मों के निर्माण के लिए मध्य प्रदेश सब्सिडी सबसे अच्छी दे रहा है। मध्य प्रदेश सरकार फिल्म निर्माण के क्षेत्र को बढ़ावा देना के लिए निरंतर प्रयास कर रही है। यही वजह है कि लोग लगातार यहाँ आकर शूट कर रहे हैं। सरकार को छोटे प्रोडूयूसर को भी सब्सिडी में सहायता देनी चाहिए।
 
कोरोना के बाद देखें तो ओटीटी प्लेटफॉर्म में कंटेंट की बाढ़ सी आ गई है। क्या आपको लगता है कि आने वाले समय में ओटीटी प्लेटफार्म एक चुनौती बन सकता है?
 
पहले स्टार बिकता था। आज कंटेंट बिकता है चाहे ओटीटी हो या फिल्म।
 
आने वाले समय में आपके क्या प्रोजेक्ट हैं?  किन पर आप अभी काम कर रहे हैं ?
 
मेरे दो प्रोजेक्ट हैं जिसमें दो मेरी वेब सीरीज और फिल्म पर काम चल रहा है और बहुत जल्द ही गाना भी आएगा। मैं फरवरी या मार्च 2023 तक किसी बड़े स्टार के साथ काम करते आपको दिख सकता हूँ। अमित सोनी  इंटरटेनमेंट पूरे देश में फिल्म प्रोडक्शन का कार्य कर रही है , साथ ही भारत से बाहर विदेशों में भी नए प्रोजेक्ट प्लान कर रहे हैं , इससे पहले हमने मलेशिया भी सॉन्ग शूट किया था " तू जो मिला खुदा मिला "जो गाना जी म्यूजिक से लॉन्च हुआ था ,
 
अभी तक आपने जो भी किरदार निभाए हैं उसे पूरी तरह से जीने की कोशिश की चाहे  आपने जो भी किया। ऐसा कोई किरदार जो आपको बहुत भाता हो ?
 

मिस्टर तनेजा का निभाया किरदार मुझे बहुत अच्छा लगता है। तनेजा के किरदार से मुझे पहचान मिली। मेरे पन्द्रह दिन के रोल को उन्होंने 11 महीने दिए।
 
एक कलाकार के जीवन में उतार और चढ़ाव तो आते रहते हैं। कभी ऐसा कोई लगा हो जिससे आपको नकारात्मक लगा हो?
 
जब आप किसी किरदार को निभाते हैं तो कमेंट तो पढ़ते हैं।
 
 अभी तक आपको जो सम्मान मिला है उसके बाद आपकी चुनौतियाँ और जिम्मेदारी बढ़ जाती है कुछ नया करने की?
 
अभी तक जो कुछ भी मिला है उसके लिए मैं भगवान का शुक्रगुजार करता हूँ। 'शुद्धि ' फिल्म को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर 13 अवार्ड मिले। राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नॉमिनेट होना गर्व की बात है। जो मिलना अभी बाकी है उस पर मेरा फोकस है। लाइफटाइम एचिवेमेंट अभी तक नहीं मिला है इसलिए अभी  मेरी दौड़ जारी है।
 
आज के युवा जो इस क्षेत्र में आना चाहते हैं उनके लिए क्या सन्देश देना चाहते हैं आप ?
 
फ्लाइट उड़ानी है तो आपको पायलट की ट्रेनिंग लेनी होगी। इसी तरह फिल्म में करियर बनाने के लिए फुल पैकेज बनना होगा।

Friday 4 November 2022

उत्तराखंड का लोक पर्व इगास ( बूढ़ी दिवाली)

    


    इगास का अर्थ है एकादशी। गढ़वाली में एकादशी को इगास कहा जाता है। दिवाली के 11 दिन बाद आने वाली शुक्ल एकादशी को गढ़वाल में इगास का उत्सव होता है।  कुमाऊं में देवोत्थान एकादशी को बलदी  एकादशी भी कहा जाता है। कार्तिक माह की एकादशी  का  बड़ा   महत्व  रहा है। 

 देवउठनी एकादशी के दिन से विष्णु भगवान  देवलोक की कमान सँभालते हैं और इसी दिन से सभी  शुभ मांगलिक कार्य भी आरंभ हो जाते हैं।  इस दिन का महत्व इसलिए भी अधिक है, क्योंकि भगवान विष्णु चार महीने की लंबी नींद से जागते हैं और फिर भक्तों की प्रार्थना सुनते हैं। इसी के साथ इस दिन से विवाह, गृह प्रवेश, उपनयन संस्कार के सभी मुहूर्त शुरू हो जाते हैं। इस खास मौके पर भगवान शालिग्राम का तुलसी माता से विवाह करने की परंपरा है। 

 पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि भगवान राम के 14 वर्ष के वनवास से अयोध्या लौटने की खबर गढ़वाल में 11 दिन बाद मिली इसी कारण से गढ़वाल में दिवाली 11 दिन बाद मनाई गई। वैसे कहा जाता है कि गढ़वाल में चार बग्वाल दिवाली होती है। पहली कार्तिक माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी फिर अमावस्या वाली बड़ी दिवाली जो पूरा देश मनाता है। इस दिवाली के 11 दिन बाद आती है इगास बग्वाल और चौथी बग्वाल बड़ी दिवाली के एक महीने बाद वाली अमावस्या को मनाते हैं। चौथी बग्वाल जौनपुर प्रतापनगर, रंवाई जैसे इलाकों में मनाई जाती है। कहा जाता है कि इस क्षेत्र में भगवान राम जी के अयोध्या पहुंचने की खबर एक महीने बाद पहुंची इसलिए  यहाँ पर भी दिवाली एक महीने बाद मनाई गई।

  

गढ़वाल एक वीर माधो सिंह भंडारी टिहरी के राजा महीपति शाह की सेना के सेनापति थे।  करीब 400  बरस पहले राजा ने माधो सिंह को सेना लेकर तिब्बत  की सेना से युद्ध  लड़ने के लिए भेजा।  इसी बीच  दिवाली का भी त्यौहार था लेकिन इस त्यौहार पर कोई भी सैनिक अपने घर नहीं लौट सका।  सबने सोचा माधो सिंह और उनकी सेना के सभी सिपाही युद्ध में शहीद हो गए लेकिन दिवाली  के ठीक  11  दिन बाद माधो सिंह अपने सैनिकों के साथ सकुशल तिब्बत से द्वायाघाट  युद्ध जीतकर वापस लौट आये  जिसकी जीत की ख़ुशी में लोगों ने अपने घरों में दिए जलाये और विशेष पकवान बनाये  और तभी से यह परंपरा चल पड़ी।  उस दिन एकादशी तिथि थी जिसे इगास नाम दिया गया और ख़ुशी में सभी थिरकने लगे।  

एक  अन्य  मान्यता  के अनुसार  जब पांडव  हिमालय में थे तो भीम का  असुर के साथ  युद्ध चल रहा था और जब भीम असुर का वध कर सकुशल लौटे तो गांव में इसी इगास  के दिन दिए  जलाकर लोग खुशियां मनाने लगे। इगास  बूढ़ी  दिवाली  में  कुछ विशिष्ट परंपराएं भी साथ साथ चलती हैं। इगास में घर आंगन की लिपाई और पुताई होती है। साथ ही घर के गौवंश की पूजा सेवा भी विशिष्ट रूप से होती है। इस दिन सुबह ही गाय बैलों के सींग पर तेल लगाया जाता है और तिलक लगाकर गले में माला डालकर पूजा जाता है। साथ ही पींडू (चावल, झंगोरे, मंडुआ से बना गौवंश का पौष्टिक आहार) दिया जाता है। गढ़वाल के पारंपरिक व्यंजन पूरी, भूड़े (उड़द दाल की पकौड़े), स्वाले(दाल से भरी कचौड़ी) तो बनते ही हैं साथ ही जो बच्चे इन गाय बैलों को चराकर या सेवा करके लाते हैं उन्हें भेंट स्वरूप मालू के पत्ते पर पूरी, पकौड़ी और हलवा दिया जाता है जिसे ग्वालढिंडी कहा जाता है।साथ ही मोटी रस्सी भी खींची जाती है। इस परंपरा में  रस्सी को समुद्र मंथन में वासुकी नाग की तरह समझा जाता है।

गढ़वाल  अंचल में लोग भैलो खेलकर अपना उत्साह दिखाते हैं। भैलो को अंध्या भी कहा जाता है जिसका अर्थ अंधेरे को दूर करने वाला होता है।  भैलो जंगली बेल की बनी रस्सी होती हैं जिसके एक छोर पर छोटी छोटी लकड़ियों का छोटा गट्ठर होता है यह लकड़ी चीड़ देवदार या भीमल के पेड़ की छाल होती हैं जो ज्वलनशील होती हैं। इसे दली या छिल्ला कहा जाता है। इगास के दिन लोग सामूहिक रूप से मिलकर भैलो जलाते हैं। लोग अपने को राम की सेना  मानते हैं और सामने पहाड़ी के लोग जो अपना भैलो जलाते हैं उन्हें रावण की सेना कहकर व्यंग्य करते हुए नृत्य गान भी करते हैं। 

उत्‍तराखंड के जौनसार में देश की दीपावली के एक माह बाद पांच दिवसीय बूढ़ी दीवाली मनाने का रिवाज है। हालांकि बावर व जौनसार की कुछ खतों में नई दीपावली मनाने का चलन शुरू हो गया है, लेकिन यहां पर भी  बूढ़ी दीवाली को मनाने का तरीका अनोखा था ।कुमाऊं में भी  बूढ़ी दिवाली अरसे  से मनाई  जाती है।  जनश्रुतियों के अनुसार हरिबोधिनी एकादशी के मौके पर तुलसी विवाह किया जाता है।  कूर्मांचल पंचांग के अनुसार प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को तुलसी विवाह का आयोजन किया जाता है। सनातन धर्म में तुलसी विवाह का विशेष महत्व माना गया है। तुलसी विवाह के दिन माता तुलसी और भगवान शालिग्राम की पूजा करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और उनके वैवाहिक जीवन में सुख-समृद्धि आती है। साथ ही पति-पत्नी के बीच उत्पन्न होने वाली समस्याएं भी दूर हो जाती हैं। इस मौके पर लोग अपने घरों में  रात में दिए जलाते हैं और पूजा पाठकर सुख और समृद्धि की कामना  करते हैं।  

 हरबोधनी एकादशी को कुमाऊँनी लोग बूढ़ी दीपावली के रूप में मनाते हैं। घर-घर में पुनः दीपावली मनाई जाती है।इस दिन कुमाऊँनी महिलाऐं गेरू मिट्टी से लीपे सूप में और घर के बाहर आंगन में गीले बिस्वार द्वारा लक्ष्मी नारायण एवं भुइयां (घुइयां) की आकृतियां चित्रित करती हैं। सूप के अंदर की ओर लक्ष्मी नारायण व तुलसी का पौधा तथा पीछे की ओर सूप में भुइयां ( यानि दुष्टता, इसकी आकृति वीभत्स रूप में होती है) को बनते हैं।


 गृहणियां दूसरे दिन ब्रह्म मुहूरत में इस सूप पर खील, बतासे, चुडे़ और अखरोट रखकर गन्ने से उसे पीटते हुए घर के कोने कोने से उसे इस प्रकार बाहर ले जाती हैं जैसे भुइयां को फटकारते हुए घर से निकाल रही हों।इस सब का तात्पर्य है कि लक्ष्मी नारायण का स्वागत करते हुए घर से दुष्टता, दरिद्रता तथा अमानवीयता आदि का अन्त हो और घर में सदैव सुख, शान्ति एवं सात्विकता का वास हो।"आ हो लक्ष्मी बैठ नरैणा,निकल भुईंया निकल भुईयां "उच्चारण करते हुए रात्रि के अन्तिम पहर में भुईंया महिलाओं द्वारा निकाला जाता है।  लोग अपने खेती से जुड़े  औजारों  को हल, सूप, मोसल को गेरुवा के उपर चावल के विस्वार से डिज़ाइन बना कर रखते  हैं और शाम को पूवे - पूरी व पांच पकवान बना कर खिल बतासे ले कर ओखल पर हल लगा कर पूजा की जाती है।

 कुमाऊं में बैलों के माथे पर फुन लगाने की परम्परा  भी लम्बे समय से चली आ रही है। पहाड़ के बुजुर्ग लोग बताते हैं पहले के दौर में लोग खेती के काम आने वाले अपने बैलों की इस ख़ास अवसर पर पूजा करते थे और उनको रोली, चन्दन और टीका लगाकार पूजते थे।  इसके  बाद  इनके सींगों पर  सरसों का तेल लगाकर रंग बिरंगी फुन  बांधते थे।  साथ ही प्रात में अपने अपने बैलों के लिए विशेष तरह के पकवान बनाकर खिलाया करते थे लेकिन आज के  स्मार्ट फ़ोन और व्हाट्सएप  विश्वविद्यालय के दौर में यह परंपरा सिर्फ रस्म  भर  रह गई  है।  पहाड़ों से लोगों का पलायन जहाँ हो रहा है वहीँ खेती जंगली जानवरों की भेंट चढ़ती जा रही  है।  गाँव के गाँव खाली होते जा रहे हैं और पहाड़ का पानी और पहाड़ की जवानी पहाड़ के काम नहीं आती। यहां की नई पीढ़ी अपने गावों से लगातार कटती जा रही है।  

आज पहाड़  में लोगों ने जहां खेती-बाड़ी छोड़ दी है, वहीं पशुपालन घाटे का सौदा बन गया है, क्योंकि वन संपदा लगातार सिकुड़ती जा रही है।  उत्तराखंड में रोजी रोटी की जटिलता, संघर्ष और रोजगार के समुचित अवसर न होने के चलते पलायन को बढ़ावा मिला है। राज्य के पर्वतीय  ग्रामीण क्षेत्रों में ढाई लाख से ज्यादा घरों पर ताले लटके हैं। खासकर पर्वतीय क्षेत्रों के गांवों में रहने वाली रौनक कहीं गुम हो चली है। गांव वीरान हो रहे हैं तो खेत-खलिहान बंजर में तब्दील हो गए हैं। बावजूद इसके गांव अब तक की सरकारों के एजेंडे का हिस्सा नहीं बन पाए हैं। यदि बनते तो शायद आज पलायन की भयावह  ऐसी तस्वीर नहीं होती।  पलायन और आधुनिकता की चकाचौंध  के चलते भले ही  पारंपरिक इगास दिखना थोड़ा कम हो गया है लेकिन आज बहुत सी संस्थाएं पहाड़ ही नहीं मैदानी क्षेत्रों में भी इगास का आयोजन करती  हैं जहां उत्तराखंडी व्यंजन के साथ भैलो खेल का भी आयोजन किया जाता है।

भाजपा के राज्य सभा सांसद अनिल बलूनी अपने नवाचारों के कारण जाने जाते रहे हैं।  वह पहाड़ की परम्पराओं को पुनर्जीवित करने की दिशा में  हर संभव कोशिशें करते रहे हैं।  पिछले कुछ बरस में अगर इगास ( बूढ़ी  दिवाली) के रूप में लोकप्रिय हुआ है तो इसमें उनकी बड़ी भूमिका को नहीं नकारा जा सकता।  उन्होनें मेरा वोट मेरे गाँव और  अपने गाँव मनाये इगास  कार्यक्रमों के माध्यम से प्रवासी उत्तराखंडियों को देश और दुनिया तक जोड़ने में सफलता पाई है।  आज उन्हीं के प्रयासों से पहाड़ में इस तरह की परम्परा जीवित है।  नई  पीढ़ी में उत्तराखंड  के  लोक पर्व  इगास ( बूढ़ी  दिवाली) को लेकर  अब उत्सुकता नजर आ रही  है। उत्तराखंड सरकार ने भी पिछले वर्ष से इस अवसर पर राजकीय अवकाश देना शुरू किया है जिसका स्वागत किया जाना चाहिए।  अभी तक दूसरे राज्यों के त्योहारों पर यहाँ अवकाश दिया जाता था  जिससे  अपने त्यौहार ग्लोबल स्वरुप ग्रहण नहीं कर पाते थे।  उम्मीद है इस साल से  पहाड़ी इगास  देश और दुनिया में अपनी चमक बिखेरेगी।