Friday, 13 November 2009

क्या संघ करेगा गडकरी पर उपकार ?



भाजपा में नए अध्यक्ष को लेकर माथापच्चीसी शुरू हो गई है..... तीन राज्यों में पार्टी की करारी पराजय से जहाँ कार्यकर्ताओं का मनोबल टूटा है ,वही राष्ट्रीयस्वयं सेवक संघ भी अब भाजपा को नए ढंग से पुनर्गठित करना चाहता है..संघ प्रमुख मोहन भागवत के हलिया प्रकशित एक इंटरव्यू का हवाला ले तो इस बार वह संगठन में किसी भी प्रकार की ढील देने के मूड में नही दिखायी देते ....


भागवत ने दिल्ली की एक पत्रिका को दिए इंटरव्यू में साफ़ कह दिया है नया अध्यक्ष नायडू, अनंत, सुषमा , जेटली में से कोई नही होगा.... इस बयान को अगर आधार बनाया जाए तो मतलब साफ़ है भागवत नही चाहते कोई इन चार में से नया अध्यक्ष बने...शायद उनको भी पता है अगर इनमे से कोई नया अध्यक्ष बन गया तो पार्टी की गुटबाजी तेज हो जायेगी... वैसे भी पार्टी की दूसरी पंक्ति ने नेताओ में आगे जाने की लगातार होड़ किसी से छिपी नही है ... सभी राजनाथ के भावी उत्तराधिकारी होना चाहते है पर मीडिया के सामने अपना मुह खोलने से परहेज कर रहे है ...



अभी एक दो दिन पहले भाजपा के दिल्ली स्थित ऑफिस पर नए अध्यक्ष को लेकर तेज सुगबुगाहट होती दिखायी दी॥ कुछ सूत्रों की अगर माने तो ऑफिस खुलने के पीछे एक बहुत बड़ा संदेश छिपा हुआ है....अभी ३ राज्यों में करारी हार के बाद जहाँ भाजपा के ऑफिस में मायूसी देखीगई वही अब ऑफिस में कार्यकर्ताओं के लगते जमघट को नए अध्यक्ष की ताजपोशी के रूप में देखा जा रहा है...


बताया जाता है संघ ने नए अध्यक्ष पद के नाम का चयन कर लिया है अब बस बैठक द्बारा राजनाथ के भावी उत्तराधिकारी के नाम पर मुहर लगनी बाकी है... इसी कारण इन दिनों भाजपा अपने ऑफिस में नए अध्यक्ष के लिए जोर आजमाईश कर रही है ...



भाजपा भले ही कहे उसमे संघ का दखल नही है पर असलियत यह है वह कभी भी अपने को संघ की काली छाया से मुक्त नही कर पाएगी... बताया जाता है भाजपा में इस बार २ लोक सभा चुनाव हारने के बाद से गहरा मंथन चल रहा है ...


हार के कारणों की समीक्षा की जा रही है.... मोहन भागवत का कहना है अब तो हद हो गई है... समय से पार्टी के सभी नेता एकजुट हो जाए .... इस कलह का नुक्सान भाजपा को उठाना पड़ रहा है.... ऐसा नही है देश में भाजपा के विरोध में कोई लहर है... मुद्दों की कमी भी नही है पर विपक्ष के कमजोर होने का सीधा लाभ कांग्रेस को मिल रहा है ....



कल मोहन भागवत की राजनाथ के साथ मुलाकात के बाद कयासों का बाजार फिर से गर्म हो गया है ... बताया जाता है राजनाथ ने भागवत से मिलकर अपना दुखडा रोया है .... उन्होंने" संघम शरणम गच्छामी " का नारा बुलंद करते हुए साफ़ कहा है संघ भाजपा का शुरू से मार्गदर्शन करता रहा है....अब इस समय भाजपा बुरे दौर से गुजर रही है तो संघ का पार्टी में दखल होना जरूरी है ... संघ अपने विचारो से पार्टी को नई दिशा दे सकता है.....


गौरतलब है अभी कुछ समय पूर्व राजनाथ ने मीडिया से कहा था भाजपा को किसी भी प्रकार की सर्जरी की जरुरत नही है किसका दिमाग ख़राब हो गया है? राजनाथ भागवत के कामोपेरेथी वाले बयान पर अपनी प्रतिक्रिया दे रहे थे... आपको याद होगा राजनाथ ने प्रतिक्रिया में क्या कहा था... बाद में दोनों ने अपने बयानों से कन्नी काट ली थी....


खैर , अब राजनाथ सही ट्रैक पर लौटते दिखाई दे रहे है ... उनकी समझ में आ गया है भाजपा को सही दिशा देने का काम संघ के सिवाय कोई नही कर सकता है ...
प्रेक्षक कल संघ प्रमुख भागवत और राजनाथ की मुलाकात के कई अर्थ निकाल रहे है ...


महाराष्ट्र के भाजपा प्रदेश अध्यक्ष नितिन गडकरी के दिल्ली में होने के भी कई निहितार्थ निकाले जा रहे है ... कुछ लोगो का कहना है संघ प्रमुख भागवत ने गडकरी को झंडेवालान स्थित संघ मुख्यालय में आमंत्रित किया था....उनको पार्टी के संभावित राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में भी देखा जा रहा है ... गडकरी नागपुर की उसी धरती से आते है जहाँ संघ का मुख्यालय है ... इस समय संघ में मराठा लोबी पूरी तरह से हावी है॥


पार्टी के बड़े बड़े पदों पर मराठियों का कब्जा है॥ अब गडकरी को प्रदेश अध्यक्ष अगर बनाया जाता है तो संगठन में मराठी मानुष का मुद्दा जोर पकड़ सकता है... यह बताते चले संघ प्रमुख भागवत ने गडकरी का नाम संभावितों में सबसे ऊपर रखा है ... वह युवा भी है साथ में उनके नाम पर सहमती भी आसानी से हो जायेगी॥ हाँ यह अलग बात है पार्टी की डी ४ कम्पनी (सुषमा, जेटली, अनंत, नायडू) को यह बात नागवार गुजरेगी अगर उनकी ताजपोशी राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए हो जाती है....


गडकरी को केन्द्र की राजनीति का कोई अनुभव नही है... उनका महाराष्ट्र का लेखा जोखा भी कुछ ख़ास नही रहा है... इस बार पार्टी महाराष्ट्र में जीत हासिल करने के बहुत सारे दावे कर रही थी पर आखिरकार उसकी हालत पतली रह गई ...अतः गडकरी का राज्य की राजनीती से सीधे केन्द्र में दखल किसी को रास नही आएगा....


राजनाथ भी अपने कार्यकाल में कुछ ख़ास नही कर पाये....उनके गृह राज्य उत्तर प्रदेश में भाजपा की हालत बहुत पतली हो गई ....साथ ही उनके कार्यकाल में पार्टी की राज्य इकाईयों में संकट लगातार बना रहा ॥ चाहे वह उत्तराखंड का मामला रहा हो या राजस्थान में महारानी का हर जगह पार्टी की खासी फजीहत हुई है..अब ऐसे बुरे दौर में गडकरी को कमान संभालने को मिल गई तो उनको सभी को साथ लेकर चलना पड़ सकता है ...भागवत ने तो गडकरी का नाम अपनी लिस्ट में सबसे पहले रख दिया है ...


बस अब भाजपा के बड़े नेताओं से हरी झंडी मिलने का इन्तजार है॥ संभवतया इस मसले पर वह कुछ दिनों बाद आडवानी से भी चर्चा कर सकते है.. बताया जाता है इस मसले पर सुरेश सोनी भी आडवानी से गुप्तगू कर चुके है ॥ कोई कुछ क्यों नही कहे आडवानी अब पार्टी का रिमोट कंट्रोल अपने हाथ में रखना चाहते है.... उनकी मंशा तभी पूरी हो सकती है जब संघ उनकी सहमती से नए नाम का चयन करे...



नए राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के नाम की भी चर्चा है .... मोदी को आगे कर भाजपा अपनी मूल विचारधारा पर वापस लौट सकती है ... वैसे भी गुजरात में आज "मोदी" एक बहुत बड़ा ब्रांड बने हुए है... कई राज्यों के मुख्यमत्री अब अपने राज्यों में इस ब्रांड को अपना रहे है.... इसलिए बेहतर यह होगा मोदी अब केन्द्र की राजनीती करे.... पर मोदी के नाम पर आसानी से मुहर नही लग सकती..... क्युकि उनको आगे करने से भाजपा के सहयोगी दल अलग हो जायेंगे.. अब यह भाजपा को तय करना है उसको सबको साथ लेकर चलना है या कांग्रेस की तरह"चल अकेला " वाली नीति अपनानी है ....


वैसे आपको बता दूँ मोदी के नाम पर सहमती नही बन पाएगी ... "गोधरा " का जिन्न अभी भी उनके साथ लगा है.... साथ ही कट्टर उग्र हिंदुत्व की उनकी छवी उनका माईनस पॉइंट है ... विपक्षी उनको पसंद नही करते .... बिहार में लोक सभा चुनावो के दरमियान नीतीश ने सापफ तौर पर कह दिया था बिहार में उनके प्रचार की कोई आवश्यकता नही है ...


साथ ही लोक सभा के चुनाव परिणामो में भाजपा की करारी हार के लिए कुछ लोग मोदी को जिम्मेदार मान रहे है... जिन मुस्लिम बाहुल्य संसदीय इलाकों में मोदी गए भाजपा की वहां करारी हार हुई.... इसके अलावा मोदी अक्खड़ किस्म के है...एक वाक़या हमें याद है॥ गुजरात चुनावो के दौरान जब सभी लोग बैठक में टिकेट माग रहे थे......और मोदी से कह रहे थे "नरेन्द्र भाई " टिकेट दे दो तो मोदी ने संघ की पसंद को राजनाथ और आडवानी , रामलाल के सामने दरकिनार कर दिया.....अब अगर मोदी आगे हो गए तो या तो भाजपा में "मोदीत्व " आगे रहेगा या "उग्र हिंदुत्व ".... संघ को घास देना मोदी की फितरत नही है .... इसलिए मोदी की कम सम्भावना बन रही है ....


राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का दावा भी सबसे मजबूत नजर आता है ....चौहान को लेकर भाजपा पशोपेश में फसी हुई है ... शिवराज की मध्य प्रदेश सरकार के काम करने के ढंग की भाजपा के सभी बड़े दिग्गज प्रशंसा करते नही थकते.... अपने दम पर मध्य प्रदेश की सत्ता में वापसी कर उन्होंने दिखा दिया है सबको साथ लेकर कैसे चला जाता है और विकास क्या चीज है ?


बताया जाता है शिवराज की दिलचस्पी केन्द्र से ज्यादा अभी प्रदेश में है.... आडवानी के बर्थडे समारोह में शिवराज ने अपनी इस इच्छा से संघ और पार्टी के बड़े नेताओं को अवगत करवा दिया है ...बताया जाता है पार्टी में एक बड़ा तबका यह मानकर चल रहा था की शिव के आने से भाजपा मजबूत होगी॥ उनमे अटल बिहारी वाजपेयी जैसी समझ है॥ छवी भी पाक साफ है....साथ में उनको केन्द्र की राजनीती का अच्छा अनुभव भी रहा है ... इस लिहाज से वह सब पर भारी पड़ते दिखाई दे रहे है ...


पर शिवराज की मध्य प्रदेश में बदती दिलचस्पी को देखते हुए पार्टी का आलाकमान कोई रिस्क नही लेना चाहता ॥ इसके अलावा अभी प्रदेश में उनका कोई विकल्प भी नही है ..इस लिहाज से कोई उनको केन्द्र में नही लाना चाहेगा....


एक सम्भावना यह भी है अगर शिव भाजपा के तारणहार बनकर केन्द्र में भेज दिए जाते है तो मध्य प्रदेश में उनके स्थान पर नरेंद्र सिंह तोमर को लाया जा सकता है... राज्य में भाजपा को लाने में दोनों ने भरपूर योगदान दिया है ... वैसे भी इस बार तोमर का कार्य्क्काल पूरा हो रहा है ... उनके सीं ऍम बन जाने की स्थिति में प्रभात झा की प्रदेश अध्यक्ष के रूप में ताजपोशी हो सकती है ....


अभी शिव की मध्य प्रदेश में रमने की इच्छाओं को देखते हुए कहा जा सकता है संघ उनको मुख्यमंत्री के तौर पर प्रदेश की राजनीती में ही चलने दे और बाद में समय आने पर उनको आगे करे.... आने वाले लोक सभा चुनाव अभी बहुत दूर है...


गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर पारिकर का नाम भी अध्यक्षों की जमात में शामिल है... आडवानी को बासी आचार कहने के बाद से उनको भावी अध्यक्ष के तौर पर देखा जा रहा है ... कहा जा रहा है संघ ने उनसे यह बयान जबरन दिलवाया हो...इसके बाद भाजपा से इस बयान पर कोई प्रतिक्रिया नही आई ॥ जिससे अनुमान यह लगाया जा रहा है उनका नाम भी तगडे दावेदार के तौर पर संघ की सूची में बना हुआ है....


उनका प्लस पॉइंट यह है वह ईसाई है॥ उनको आगे कर भाजपा यह संदेश देने में कामयाब रह जायेगी हमारे यहाँ हिंदू ही महत्वपूर्ण कुर्सियों में आसीन नही है... साथ ही हिंदू से इतर अन्य जातिया भी भाजपा की तरफ़ झुक जायेंगी ......


पर परिकर की एक समस्या आडवानी है .... आडवानी कभी नही चाहेंगे नया अध्यक्ष उनकी नापसंद का बने ....कोई माने या न माने भाजपा को खड़ा करने में आडवाणी का बड़ा योगदान है .....महज २ लोक सभा सीटो से १०० पार ले जाने में उनके योगदान की उपेक्षा नही की जा सकती...इस बात को मोहना भागवत भी भली प्रकार जानते है ....वह नया अध्यक्ष चुनने से पहले आडवानी की रजामंदी करवाना पसंद करेंगे..अगर आडवानी की चली तो पारिकर का " बासी आचार " का बयान ख़ुद उनकी राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने की राह में बड़ा रोड़ा बन सकता है ॥

बहरहाल जो भी हो नया अध्यक्ष संघ द्बारा तय किया जा चुका है .... गडकरी ,शिवराज , मोदी , परिकर इन चार नामो पर ही विचार किया जा रहा है ...अगर संघ की चली तो वह मोदी, शिवराज को अपने राज्यों के मुख्यमंत्री के रूप में चलने दे .... ऐसी सूरत में गडकरी , परिकर के बीच ज़ंग होगी....वैसे अगर भागवत की चली और भाजपा ने उनकी पसंद पर मुहर लगा दी तो गडकरी राजनाथ के वारिश साबित हो सकते है ... नागपुर संघ मुख्यालय से होना उनके लिए फायदे का सौदा बन सकता है ...अब देखते है राजनाथ का भावी उत्तराधिकारी कौन होता है ?




4 comments:

Urmi said...

वाह बहुत बढ़िया लिखा है आपने! राजनीती के बारे में मुझे बहुत ही कम ज्ञान है पर आपके पोस्ट के दौरान काफी चीज़ें जानने को मिल रहा है!

Unknown said...

harsh sir bahut achcha likhte hai aap likhte rahiye.. hum aapke blog ko padkar laabhanvit hote rahenge.........

रचना दीक्षित said...

MERE blog pr ane ke liye dhanyvad
mera to ye manana hai ki ab kaman nayi piidhi ke haath me hi honi chahiye

Unknown said...

aapka lekhan bahut achcha hai .. likhte rahiye.... rajneetik samajh bahut achchi hai humko bhi achchi jaankaari mil jaati hai