बिहार में इस साल के अंत में विधान सभा चुनाव होने है ... लेकिन राजनीतिक बिसात बिछनी शुरू हो गयी है और चुनावी गहमागहमी का पारा भी चदाहुआ है॥ राजनीतिक पार्टिया वोट बैंक की रणनीति बनाने में जुट गयी है ... बिहार में वोट बैंक का एक बड़ा हिस्सा दलितों और मुसलमानों का है ... कांग्रेस और राजद सरीखी पार्टिया तो अपने को इनका मसीहा बताने से किसी तरह का गुरेज नही करती....और राजद तो सालो दर साल इन्ही के दम पर सत्ता का स्वाद चखते रही है..
भले ही उसके राज में दलितों की स्थिति में कोई सुधार नही हुआ हो...जदयू के नेता नीतीश कुमार की भी अपनी छवि दलित नेता के रूप में रही है..और मुस्लिम वोट बैंक पर इनकी भी नजर रही है...तभी तो नरेन्द्र मोदी के एक विज्ञापन में अपनी फोटो छपने से नीतीश कुमार इतने खफा हो गए कि आननफानन में गुजरात सरकार द्वारा कोसी पीडितो को दी गयी मदद को वापस कर दिया...
लेकिन सवाल इस बात का नही कि क्या गुजरात सरकार द्वारा दी गयी मदद कि राशी नरेन्द्र मोदी की व्यक्तिगत थी या गुजरात की जनता की ॥ यदि नीतीश कुमार ने इस बात का विचार किया होता तो कोई और तस्वीर होती... लेकिन मामला वोट का है...
अगर बात मोदी की की जाए तो वे कहते है उन्हें वोट की राजनीती में कोई रूचि नही है वे तो सिर्फ और सिर्फ विकास की राजनीती करना चाहते है... और पटना के अधिवेशन में उन्होंने नीतीश कुमार को भी विकास की राजनीती करने की समझाईश दी ... लेकिन मोदी के लिए रास्ता इतना आसान नही है ...
कांग्रेस और अन्य पार्टिया गोधरा कांड को भुनाने में कोई कसर नही छोड़ रही...भले ही कांग्रेस के खुद के दामन पर चौरासी के दंगे और भोपाल गैस त्रासदी का काला सच हो...
इन दिनों बिहार में चुनाव प्रचार को लेकर भी नरेन्द्र मोदी निशाने पर है... बीजेपी और जद यू में अभी उहा पोह की स्थिति बनी हुई है कि नरेन्द्र मोदी बिहार के आगामी चुनावो में प्रचार करेंगे या नही..राजनीती में इस तरह के सियासी दाव खूब चलते है... क्युकि हिन्दुस्तान में जातीय राजनीती का बोल बाला रहा है..तभी तो दलितों पर राजनीती कर कोई सत्ता हथियाना चाहता है तो कोई रीजनल आधार पर प्रदेश को बाटने की कोशिश कर "हीरो" बनता है... और जनता भी ऐसे लोगो को झांसे में आकर चुन लेती है॥
जनता भ्रम में जीती है .... उसे हकीकत से रूबरू होने नही दिया जाता ... हिंदी चीनी भाई भाई का नारा यहाँ बुलंद किया जाता है और वह चीन देश पर हमला कर देता है... एंडरसन को देश से बाहर इस तरह छोड़ा जाता है जैसे घर में आये अतिथि छोड़ने का दस्तूर हमारे देश में है ... जनता भ्रम में है ॥ अपने हित में देश बेचने का सौदा भी अगर हो जाए तो कोई परहेज नही...
आज देश में महंगाई ने आम आदमी की कमर तोड़ दी है....कृषि मंत्री शरद पवार कहते है मैं कोई ज्योतिषी नही हूँ... जय राम रमेश चीन में जाकर देश के खिलाफ बयान देकर चले आते है और प्रधान मंत्री इस पर अपनी जिम्मेदारी लेते है... लेकिन वे कैसी जिम्मेदारी का निर्वाह कर रहे है ॥
आम आदमी की जानकारी से ये भी दूर है... आये दिन महंगाई बद रही है.... और सरकार कहती है महंगाई को कम करने की कोशिश की जा रहीहै....मुह का निवाला क्या अब तो उजियारे में रहना भी दूभर हो जाएगा क्युकि केरोसिन के दामो में भी वृद्धि का मन सरकार ने बना लिया है...
शायद प्रधान मंत्री की यही जिम्मेदारी है और राहुल गाँधी दलित हितों की बातें करते नही थकते ..जिस देश में प्रति व्यक्ति आय २० रुपये हो उसका क्या होगा सोचा जा सकता है..राजनीती का ऊट किस करवट बैठेगा ये कह पाना मुश्किल है..राजनीती का खेल केवल मोहरों से नही मुद्दों से भी खेला जाता है और इसमें कितने मोहरे इस्तेमाल में आयेंगे यह भी कह पाना मुश्किल है...
राजनीती के इस खेल में सरकार माहिर है... वोट और विकास का एक चेहरा नरेन्द्र मोदी का है...जहां महाराष्ट्र में विदर्भ और बुंदेलखंड के किसान भू जल के खाली होते भंडार के कारन खेती में हो रहे घाटे से ना उबर पाने की स्थिति में है और आत्महत्या कर रहे है ...
वही देश के कई इलाको में पानी की बड़ी समस्या बनी हुई है..... इन सारी गंभीर चुनौतियों का सामना गुजरात कर रहा है इस मोर्चे पर अन्य राज्यों को उसने करार जवाब दिया है ॥
वहां मोदी की सरकार ने जल संकट से निपटने के लिए सरकार और जन भागीदारी का अनूठा मॉडल पेश किया है...२००४ में गुजरात में २२५ तहसीलों में से ११२ में भू जल स्तर गंभीर स्थिति में था लेकिन आज की स्थिति में ११२ में से ६० तहसीलों में जल स्तर सामान्य स्थिति में पहुच गया है ... ये नरेन्द्र मोदी की राजनीती का एक मॉडल है जिसका जवाब "विकास " है...
जहाँ २००९ में देश की कृषि विकास दर ३ फीसदी थी वही गुजरात में ये ९.०६ प्रतिशत रही ....गुजरात में पिछले दस सालो में १५ फीसदी कृषि भूमि का इजाफा हुआ है॥ गुजरात में कृषि उत्पादन १८००० करोड़ रुपये से बढ़कर ४९००० करोड़ रुपये हो चूका है...
वही देश के अन्य राज्यों में किसानो की स्थिति दयनीय बनी हुई है...जहाँ कपास का दुनिया भर में उत्पादन ७८७ किलो प्रति हेक्टेयर है वही गुजरात में ७९८ किलो प्रति हेक्टेयर है... नरेन्द्र मोदी ने गुजरात को विकास की एक नयी दिशा दी है यह कहने में किसी तरह का कोई परहेज नही होना चाहिए... तभी तो आज की तिथि में गुजरात के किसान मालामाल है ...
उनके कपास की धूम चीन तक मची हुई है वही अन्य राज्यों में सरकारे कहती है कपास की खेती घाटे का सौदा बन चुकी है....
बात विकास और राजनीती की चली है तो मुलायम सिंह यादव का जिक्र करना जरूरी हो जाता है....मुलायम समाजवाद को तरजीह देते है और बातें करते है फ़िल्मी कलाकारों और अपने परिवार वालो की... महिला आरक्षण विधेयक की बात उठी तो मुलायम ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया...
लेकिन फ़ैजाबाद में चुनाव लड़वाने के लिए अपनी डिम्पल यादव का बखूबी इस्तेमाल किया... इस मौके की राजनीती में उन्हें उस किसी चीज से गुरेज नही जो चुनाव जीतू हो... दरअसल तस्वीर पूरे देश की यही है... राजनेता केवल वोटरों को देखते है... आम आदमी से उनका कोई सरोकार नही है...
जीतने के बाद उनका न तो विकास से नाता है और ना ही जनता से.... लेकिन अब बिहार में ये देखने की बात होगी जनता विकास चाहती है या वोट खरीदने वालो की फरोख्त में शामिल होती है... यह तो तय है विकास देश की तस्वीर बदलेगा और वोटो की राजनीती देश को गर्त में धकेलेगी...
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भले ही उसके राज में दलितों की स्थिति में कोई सुधार नही हुआ हो...जदयू के नेता नीतीश कुमार की भी अपनी छवि दलित नेता के रूप में रही है..और मुस्लिम वोट बैंक पर इनकी भी नजर रही है...तभी तो नरेन्द्र मोदी के एक विज्ञापन में अपनी फोटो छपने से नीतीश कुमार इतने खफा हो गए कि आननफानन में गुजरात सरकार द्वारा कोसी पीडितो को दी गयी मदद को वापस कर दिया...
लेकिन सवाल इस बात का नही कि क्या गुजरात सरकार द्वारा दी गयी मदद कि राशी नरेन्द्र मोदी की व्यक्तिगत थी या गुजरात की जनता की ॥ यदि नीतीश कुमार ने इस बात का विचार किया होता तो कोई और तस्वीर होती... लेकिन मामला वोट का है...
अगर बात मोदी की की जाए तो वे कहते है उन्हें वोट की राजनीती में कोई रूचि नही है वे तो सिर्फ और सिर्फ विकास की राजनीती करना चाहते है... और पटना के अधिवेशन में उन्होंने नीतीश कुमार को भी विकास की राजनीती करने की समझाईश दी ... लेकिन मोदी के लिए रास्ता इतना आसान नही है ...
कांग्रेस और अन्य पार्टिया गोधरा कांड को भुनाने में कोई कसर नही छोड़ रही...भले ही कांग्रेस के खुद के दामन पर चौरासी के दंगे और भोपाल गैस त्रासदी का काला सच हो...
इन दिनों बिहार में चुनाव प्रचार को लेकर भी नरेन्द्र मोदी निशाने पर है... बीजेपी और जद यू में अभी उहा पोह की स्थिति बनी हुई है कि नरेन्द्र मोदी बिहार के आगामी चुनावो में प्रचार करेंगे या नही..राजनीती में इस तरह के सियासी दाव खूब चलते है... क्युकि हिन्दुस्तान में जातीय राजनीती का बोल बाला रहा है..तभी तो दलितों पर राजनीती कर कोई सत्ता हथियाना चाहता है तो कोई रीजनल आधार पर प्रदेश को बाटने की कोशिश कर "हीरो" बनता है... और जनता भी ऐसे लोगो को झांसे में आकर चुन लेती है॥
जनता भ्रम में जीती है .... उसे हकीकत से रूबरू होने नही दिया जाता ... हिंदी चीनी भाई भाई का नारा यहाँ बुलंद किया जाता है और वह चीन देश पर हमला कर देता है... एंडरसन को देश से बाहर इस तरह छोड़ा जाता है जैसे घर में आये अतिथि छोड़ने का दस्तूर हमारे देश में है ... जनता भ्रम में है ॥ अपने हित में देश बेचने का सौदा भी अगर हो जाए तो कोई परहेज नही...
आज देश में महंगाई ने आम आदमी की कमर तोड़ दी है....कृषि मंत्री शरद पवार कहते है मैं कोई ज्योतिषी नही हूँ... जय राम रमेश चीन में जाकर देश के खिलाफ बयान देकर चले आते है और प्रधान मंत्री इस पर अपनी जिम्मेदारी लेते है... लेकिन वे कैसी जिम्मेदारी का निर्वाह कर रहे है ॥
आम आदमी की जानकारी से ये भी दूर है... आये दिन महंगाई बद रही है.... और सरकार कहती है महंगाई को कम करने की कोशिश की जा रहीहै....मुह का निवाला क्या अब तो उजियारे में रहना भी दूभर हो जाएगा क्युकि केरोसिन के दामो में भी वृद्धि का मन सरकार ने बना लिया है...
शायद प्रधान मंत्री की यही जिम्मेदारी है और राहुल गाँधी दलित हितों की बातें करते नही थकते ..जिस देश में प्रति व्यक्ति आय २० रुपये हो उसका क्या होगा सोचा जा सकता है..राजनीती का ऊट किस करवट बैठेगा ये कह पाना मुश्किल है..राजनीती का खेल केवल मोहरों से नही मुद्दों से भी खेला जाता है और इसमें कितने मोहरे इस्तेमाल में आयेंगे यह भी कह पाना मुश्किल है...
राजनीती के इस खेल में सरकार माहिर है... वोट और विकास का एक चेहरा नरेन्द्र मोदी का है...जहां महाराष्ट्र में विदर्भ और बुंदेलखंड के किसान भू जल के खाली होते भंडार के कारन खेती में हो रहे घाटे से ना उबर पाने की स्थिति में है और आत्महत्या कर रहे है ...
वही देश के कई इलाको में पानी की बड़ी समस्या बनी हुई है..... इन सारी गंभीर चुनौतियों का सामना गुजरात कर रहा है इस मोर्चे पर अन्य राज्यों को उसने करार जवाब दिया है ॥
वहां मोदी की सरकार ने जल संकट से निपटने के लिए सरकार और जन भागीदारी का अनूठा मॉडल पेश किया है...२००४ में गुजरात में २२५ तहसीलों में से ११२ में भू जल स्तर गंभीर स्थिति में था लेकिन आज की स्थिति में ११२ में से ६० तहसीलों में जल स्तर सामान्य स्थिति में पहुच गया है ... ये नरेन्द्र मोदी की राजनीती का एक मॉडल है जिसका जवाब "विकास " है...
जहाँ २००९ में देश की कृषि विकास दर ३ फीसदी थी वही गुजरात में ये ९.०६ प्रतिशत रही ....गुजरात में पिछले दस सालो में १५ फीसदी कृषि भूमि का इजाफा हुआ है॥ गुजरात में कृषि उत्पादन १८००० करोड़ रुपये से बढ़कर ४९००० करोड़ रुपये हो चूका है...
वही देश के अन्य राज्यों में किसानो की स्थिति दयनीय बनी हुई है...जहाँ कपास का दुनिया भर में उत्पादन ७८७ किलो प्रति हेक्टेयर है वही गुजरात में ७९८ किलो प्रति हेक्टेयर है... नरेन्द्र मोदी ने गुजरात को विकास की एक नयी दिशा दी है यह कहने में किसी तरह का कोई परहेज नही होना चाहिए... तभी तो आज की तिथि में गुजरात के किसान मालामाल है ...
उनके कपास की धूम चीन तक मची हुई है वही अन्य राज्यों में सरकारे कहती है कपास की खेती घाटे का सौदा बन चुकी है....
बात विकास और राजनीती की चली है तो मुलायम सिंह यादव का जिक्र करना जरूरी हो जाता है....मुलायम समाजवाद को तरजीह देते है और बातें करते है फ़िल्मी कलाकारों और अपने परिवार वालो की... महिला आरक्षण विधेयक की बात उठी तो मुलायम ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया...
लेकिन फ़ैजाबाद में चुनाव लड़वाने के लिए अपनी डिम्पल यादव का बखूबी इस्तेमाल किया... इस मौके की राजनीती में उन्हें उस किसी चीज से गुरेज नही जो चुनाव जीतू हो... दरअसल तस्वीर पूरे देश की यही है... राजनेता केवल वोटरों को देखते है... आम आदमी से उनका कोई सरोकार नही है...
जीतने के बाद उनका न तो विकास से नाता है और ना ही जनता से.... लेकिन अब बिहार में ये देखने की बात होगी जनता विकास चाहती है या वोट खरीदने वालो की फरोख्त में शामिल होती है... यह तो तय है विकास देश की तस्वीर बदलेगा और वोटो की राजनीती देश को गर्त में धकेलेगी...
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