विविधता में एकता भारतीय संस्कृति की विशेषता है.... उत्तराखंड अपने प्राकृतिक सौन्दर्य और नेसर्गिक सुषमा के कारण जाना जाता है ... परन्तु यहाँ के त्योहारो में भी बड़ी विविधता के दर्शन होते है ... आज भी यहाँ पर कई त्यौहार उल्लास के साथ मनाये जाते है.... इन्ही में से एक त्यौहार "घुघुतिया का है.... इसे उत्तरायणी पर्व के नाम से भी जाना जाता है...
घुघुतिया पर्व उत्तराखंड के कुमाऊ अंचल में धूम धाम के साथ मनाया जाता है.... यह पर्व "मकर संक्रांत " का ही एक रूप है... वैसे यह पर्व पूरे देश में अलग अलग नामो से मनाया जाता है परन्तु उत्तराखंड के कुमाऊ अंचल में यह घुघुतिया नाम से जाना जाता है... मकर संक्रांति मुख्य रूप से सूर्य की उपासना का पर्व है परन्तु कुमाओं अंचल में मनाये जाने वाले घुघुतिया पर्व का अपना विशेष महत्त्व है....
इस दिन सूर्य देव मकर राशि में प्रवेश करते है ... वह दक्षिणायन से उत्तरायण में प्रवेश करते है ....यह दिखाता है कि अब ठण्ड का प्रभाव कम हो रहा है ... कुमाऊ में मनाये जाने वाला घुघुतिया त्यौहार भी इसी ऋतु परिवर्तन का एहसास कराता है....कुमाऊ में इस पर्व के अवसर पर कौवो को विशेष भोग लगाया जाता है.... बच्चो में यह त्यौहार खासा लोकप्रिय है..... शहर से लेकर गावो में आज भी इसको बड़े हर्ष के साथ मनाया जाता है....
जिस दिन पंजाबी लोहड़ी मनाते है.... उस दिन कुमाऊ निवासी तत्वानी मनाते है... यह पूस माह का आखरी दिन होता है....फिर अगला दिन "माघ " माह का पहला कार्य दिवस होता है... इस दिन सुबह उठकर नहा धोकर तिलक लगाते है और छोटे बच्चे कौवो को भोग लगाते है.... इस अवसर पर वह पकवानों की माला भी पहनते है .... यह माला संक्रांति के एक दिन पहले से तैयार की जाती है , जो अनाज और गुड से तैयार की जाती है...इसमें पूड़ी , दाड़िम फल , खजूर , डमरू ,बड़ो को गूथा जाता है.... साथ में संतरों को भी गूथा जाता है ...
बच्चे सुबह सुबह सूरज निकलने से पहले कौवो को जोर जोर से आवाज निकालकर पुकारते है... वह कहते है "काले कौवा काले बड़े पूए खाले"...पिछले कुछ सालो से अपने घर से मैं दूर हूँ ... घुघुतिया त्यौहार को बहुत मिस कर रहा हूँ.... आज जब मकर संक्रांति की खबर देख रहा था तो अनायास ही अपने उत्तराखंड की याद सता गयी.... मन नही लग रहा था तो सुबह अपने घर संपर्क कर माता जी को फ़ोन कर डाला...उनसे विस्तार से इस पर्व के बारे मैं अपन की बात हुई...
बात करते करते मैं अपने बचपन में चले गया तब मैं भी सुबह जल्दी से नहा धोकर कौवो को बुलाया करता था...दरअसल कौवो को भी भोग लगाने के पीछे कुमाऊ अंचल में कुछ खास वजह है ... इसको घुघुतिया नाम से भी विशेष कारणों से जाना जाता है... इसके तार कुमाऊ के चंद राजाओ से जुड़े बताये जाते है....
प्राचीन समय की किंदवंती के अनुसार एक बार कुमाऊ के किसी चंद राजा की कोई संतान नही हुई....वह राजा बहुत दुखी रहता था॥ पर राजा के मंत्री इस बात से बहुत खुश थे क्युकि राजा के बाद कोई उत्तराधिकारी ना होने से उनका रास्ता साफ़ था॥मंदिर में मनोती के बाद उस राजा को अचानक एक संतान प्राप्त हो गयी जिसका नाम उसने "घूघुत " रखा ... यह सब देखकर मंत्रियो की नाराजगी बद गयी क्युकि अब उनकी राह में वह काँटा बन गया...पुत्र होने के कारन वह अब राजा का भविष्य का उत्तराधिकारी हो गया॥ राजा की आँखों का वह तारा बन गया॥
घुघूत पर्वतीय इलाके के एक पक्षी को कहा जाता है... राजा का यह पुत्र भी एक पक्षी की तरह उसकी आँखों का तारा था जिसकी सेवा में सभी दिन रात लगा करते थे॥उस बच्चे के साथ कौवो का विशेष लगाव रहता था... बच्चे को जब खाना दिया जाता था तो वह कौवे उसके आस पास रहते थे और उसको दिए जाने वाले भोजन से अपनी प्यास बुझाया करते थे....
एक बार मंत्रियो ने राजा के बच्चे का अपहरण कर दिया॥वह उस मासूम बच्चे को जंगलो में फैक आये ... पर वह भी कौवे उस बच्चे की मदद करते रहे... राजा के मंत्री यह सोच रहे थे की जंगल में छोड़ आने के कारन अब उस बच्चे को कोई नही बचा पायेगा... पर वह शायद यह भूल गए कौवे हर समय बच्चे के साथ रहते थे....इधर राजमहल से बच्चे का अपहरण होने से राजा खासा परेशान हुआ ... कोई गुप्तचर यह पता नही लगा सका आखिर"घुघूत" कहाँ चला गया?
तभी राजा कि नौकरानी की निगाह एक कौवे पर पड़ी ॥ वह बार बार कही उड़ रहा था और वापस राजमहल में आकर बात रहा था... नौकरानी ने यह बात राजा को बताई वह उस कौवे का पीछा करने लगी....आखिर नौकरानी का कौवे का पीछा करना सही निकला ॥ राजा के पुत्र का पता चला गया॥वह जंगल में मिला जहाँ पर उसके चारो और कौवे बैठे थे...
राजा को जब यह बात पाताल चली कि कौवो ने उसके पुत्र की जान बचाई है तो उसने प्रति वर्ष एक उत्सव मनाने का फैसला किया जिसमे कौवो को विशेष भोग लगाने की व्यवस्था की गयी॥ इस अवसर पर विशेष पकवान बनाने कि परंपरा शुरू हुई.... साथ में गुड दिया जाने लगा.... गुड रिश्तो में मिठास घोलने का काम करता था.... तभी से यह त्यौहार कुमाऊ में घुघुतिया नाम से मनाया जाता है.... आज भी कुमाऊ अंचल में हमारी प्राचीन परम्पराए जीवित है इससे सुखद बात और क्या हो सकती है
14 comments:
sunder prastuti,ghugutiya ki hardik badhai....
रोचक जानकारी।
विविध संस्कृति लेकिन एक भाव को दर्शाते हमारे ये त्यौहार आज भी मन को उमंग तरंग से भर देते हैं ...
सुन्दर ढंग से आपने विस्तृत जानकारी प्रस्तुत की है, बहुत अच्छा लगा... मकर सक्रांति (घुघुतिया त्यौहार) की बहुत बहुत शुभकामना
nice post..
Please visit my blog.
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बहुत ही प्रभावशाली रचना
उत्कृष्ट लेखन का नमूना
लेखन के आकाश में आपकी एक अनोखी पहचान है ..
कूर्मांचल में मकर संक्रांति के पर्व पर कौवों को महत्त्व देने का यही कारण patali- the - Village जी ने भी मेरी पोस्ट की टीप में बताया है |
bahut badhiya harsh...vihan ke liye agli story likh di hai..blog se le lena:)
हर्ष , तुम्हारी लेखनी की जितनी प्रशंसा की जाये उतना कम है.....
प्रतिभा के धनी हो ... आमतौर पर शांत और सौम्य दिखने वाली तुम्हारी तस्वीर
में लेखनी की गहराइयाँ छुपी हुई है.....सागर की गहराई लिए ऐसे व्यक्तित्व को
कोटिश: नमन .... बोलती कलम ने तो दीवाना बना दिया है.......
गणतंत्र दिवस की आपको भी हार्दिक शुभकामनायें.c
बहुत ही प्रभावशाली रचना
नमस्कार........आपकी रचना वाकई तारीफ के काबिल है
मैं ब्लॉग जगत में नया हूँ, कृपया मेरा मार्गदर्शन करें......
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आभार.
बहुत अच्छी जानकारी !
सुंदर प्रस्तुति हेतु बधाई!
मंगल कामना के साथ.......साधुवाद!
सद्भावी - डॉ० डंडा लखनवी
ऋतु पर्व बसंत पंचमी की ढेरों शुभकामनाएं..
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