Thursday, 11 August 2011

देवीधुरा का बग्वाल परमाणु युग में पाषाण युद्ध का चमत्कार ......




उत्तराखंड अपनी मनमोहक प्राकृतिक सुषमा और नैसर्गिक सौन्दर्य के लिए देश विदेश में खासा जाना जाता है साथ ही इस देवभूमि की अनेक परम्पराए यहाँ की धर्म ,संस्कृति से जुडी हुई है......ऐसी ही अनूठी परम्परा को अपने में संजोये देवीधुरा मेला है जिसे देश विदेश में पाषाण युद्ध "बग्वाल" के नाम से जाना जाता है....... प्रतिवर्ष रक्षाबंधन के पावन पर्व पर लगने वाले इस मेले में एक दूसरे को पत्थर मारने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है ....


कुमाऊ अंचल के जनपदों नैनीताल,अल्मोड़ा, उधम सिंह नगर को चम्पावत का देवीधुरा क़स्बा एक दूसरे से जोड़ता है.....कहा जाता है कि देवीधुरा पूर्णागिरी माता का एक पीठ है जहाँ पर चंपा और कालिका को प्राचीन काल में प्रतिष्टित किया गया था ...


यहाँ का सर्वाधिक महान आश्चर्य यह है कि देवीधुरा में माता बाराही का तेज इतना है कि आज तक कोई प्राणी इन्हें खुली आँखों से नही देख पाया.... जिसने भी ऐसा दुस्साहस किया वह अँधा हो गया....बग्वाल की पृष्ठभूमि चार राजपूती ख़ामो के पुश्तेनी खेल से जुडी हुई है जिसमे गहरवाल , वल्किया, लमगडिया , चम्याल मुख्य है.....श्रावण शुक्ल के दिन सभी गाववासी एकत्रित होते है और एक दूसरे को निमंत्रण भेजकर बग्वाल में भाग लेते है.....


रक्षाबंधन के समय सभी खामे एक दूसरे को निमंत्रण देती है और बग्वाल में भागीदार बनती जाती है ....बग्वाल के समय वल्किया और लमगडिया खाम एक छोर पश्चिम से प्रवेश करती है तो चम्याल और गहरवाल पूर्वी छोर से रणभूमि में आते है .....मंदिर के पुजारी द्वारा आशीर्वाद मिलने के बाद सभी एक स्थान पर इकट्टा होते है ...आम तौर पर गहरवाल खाम सबसे अंत में आती है जिस पर गहरवाल खाम का व्यक्ति पत्थर फैक कर प्रहार करता है..... गहरवाल के पत्थर फैकने के साथ ही "बग्वाली कौतिक" शुरू हो जाता है.....


इस पत्थरो के युद्ध में भाग लेने वाली चारो खामे वैसे तो आपस में मित्र होती है लेकिन पत्थरो के युद्ध के समय वह सारे रिश्ते नाते भूल कर एक दूजे पर पूरी ताकत के साथ वार करते है......चार दलों के द्वारा लाठियों और फर्रो को सटाकर एक सुरक्षा कवच बना लिया जाता है जो घायल की सुरक्षा करने का काम करता है......बग्वाल के दौरान पत्थरो की वर्षा द्वारा शरीर के विभिन्न अंग लहुलुहान हो जाते है लेकिन रक्त की बूंदे गिरने के बाद भी कोई चीत्कार नही सुनाई देती है.....

मुख्य पुजारी एक व्यक्ति के शरीर के बराबर रक्त गिरने के बाद बग्वाल को रोकने का आदेश दे देता है......तकरीबन बीस से पच्चीस मिनट तक चलने वाले इस पाषाण युद्ध की समाप्ति के बाद बग्वाल खेलने वाली खामे एक दूसरे के गले मिलती है... इस दौरान पत्थरो से घायल हुए लोगो को गंभीर चोट नही आती...ऐसा माना जाता है कुछ वर्ष पूर्व तक लोग बग्वाल खेले जाने वाले मैदान की बिच्छु घास अपने शरीर में लगा लिया करते थे जिससे वह कुछ समय बाद खुद ही ठीक हो जाया करते थे ....आज बिच्छु घास तो नही लगाई जाती है लेकिन पत्थरो के घाव अपने आप बाराही माता की कृपा से स्वतः ठीक हो जाते है.....


उत्तराखंड के देवीधुरा का" बग्वाल" मेला आधुनिक परमाणु युग में भी पाषाण युद्ध की परंपरा को संजोये हुए है.....यह मेला आपसी सदभाव की जीती जागती मिसाल है.....यहाँ खेले जाने वाले बग्वाल को देखने दूर दूर से लोग पहुचते है और एक अलग छाप लेकर जाते है.... तीर्थाटन के मद्देनजर ऐसे स्थान राज्य के आर्थिक विकास में खासे उपयोगी है ... यह अलग बात है सरकारी उपेक्षा के चलते देवीधुरा के विकास का कोई खाका अलग राज्य बनने के बाद भी नही बन सका है जिसके चलते उत्तराखंड में सांस्कृतिक परम्पराए दम तोड़ रही है ....वैश्वीकरण के इस दौर में यदि आज "बग्वाल" सरीखी हमारी सांस्कृतिक परम्पराए जीवित है तो इसका श्रेयः निसंदेह इन मान्यताओ का वैज्ञानिक स्वरूप है........

5 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

नयी जानकारी, परम्पराओं की।

Dinesh pareek said...

आप को बहुत बहुत धन्यवाद की आपने मेरे ब्लॉग पे आने के लिये अपना किमती समय निकला
और अपने विचारो से मुझे अवगत करवाया मैं आशा करता हु की आगे भी आपका योगदान मिलता रहेगा
बस आप से १ ही शिकायत है की मैं अपनी हर पोस्ट आप तक पहुचना चाहता हु पर अभी तक आप ने मेरे ब्लॉग का अनुसरण या मैं कहू की मेरे ब्लॉग के नियमित सदस्य नहीं है जो में आप से आशा करता हु की आप मेरी इस मन की समस्या का निवारण करेगे
आपका ब्लॉग साथी
दिनेश पारीक
http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/

पी.एस .भाकुनी said...

उत्तराखंड के देवीधुरा का" बग्वाल" मेला आधुनिक परमाणु युग में भी पाषाण युद्ध की परंपरा को संजोये हुए है.....
halanki thodi bahut jaankari thi kintu ji vistaar se aapne jaankari prastut ki hai nisandeh tarif-e-qabil hai,,,
aabhar.

Nalin nayan prakash said...

"बग्वाल" ki jankari thik usi tarah hai jis tarah mathura me lath mar holi hoti hai....aapk dwara di gai jankar behad rochak hai jo hamre bhartiy parampra ka ek naya roop pradan kari hai....mujhe khushi hui apk dwara prapt jankari se....ham ummeed karte hai aisi hi rochak jankari hame aap pradan karte rahe taki aapk madhyam se pure desh ko hamari paramparao k bare me malum chal sake......

Rubi singh said...

bhut aache harsh......