दिल्ली का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर गुजरताहै। " यह कथन भारतीय राजनीती के सम्बन्ध में परोक्ष रूप से सही मालूम पड़ता है ....एक दौर वह था जब आजाद भारत के लगभग सभी राज्यों में मुख्यमंत्रियों का ताज ब्राहमण जाति के उम्मीदवार को मिलता था । ब्राहमण जाति के सत्ता के सर्वोच्च उतुंग शिखर पर चढ़ने के कारण सचिवालय से लेकर मंत्रीमंडल तक में उस दौर में ब्राह्मण बिरादरी का सेंसेक्स अपने उच्तम स्तर तक बना रहता था लेकिन धीरे धीरे समय बदला और यह ब्राह्मण समाज सत्ता से दूर चला गया। आज बसपा सरीखी पार्टी की "सोशल इंजीनियरिंग " की बिसात पर यही ब्राह्मण समाज दलितों के साथ हाथ मिलाकर निचले स्तर पर बैठकर राजनीती की सवारी करता नजर आ रहा है.......ऊपर की जा रही ये बातें आपको थोडी अटपटी लग रहीं हो परन्तु हम इस फंडे को बेहतर ढंग से समझ सकते है ।
यदि हम बात भारत के 80 सांसदों वाले सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के सम्बन्ध में करे तो चीजे समझ में आ जाती है। आज उत्तर प्रदेश में यही हो रहा है। हालाँकि कुछ समय पहले तक बहुजन समाज के हितों की बात करने वाली बसपा ब्राह्मणों को "बेक फ़ुट" पर धकेल दिया करती थी उसके संस्थापक नेता कांशी राम कहा करते थे "तिलक तराजू और तलवार इनको मारो जूते चार".....
इन परिस्थितियों को समझने से पहले कांशी राम द्वारा उस समय कही गई बात को समझना पड़ेगा..... उस दौर में उन्होंने कहा था "मै ब्राह्मणों से कह रहा हूँ जात तोड़ो और समाज जोडो लेकिन यह तबका मेरी बात नही समझ पा रहा है एक समय आयेगा जब मै इन्ही के मुह से कहलाऊंगा जात और बंधन छोड़ो और समाज को जोड़ो ".......
आज उत्तर प्रदेश में यही हो रहा है .... किसी समय "चल गुंडन की छाती पर मुहर लगेगी हाथी पर" जैसे नारों को देने वाली बहिन जी ने बीते ५ सालो में नए नारे " हाथी नही गणेश है ब्रह्मा विष्णु महेश है" के आसरे अगर उत्तर प्रदेश में अपनी सियासी बिसात को बिछाने में सफलता पायी है तो इसका कारण देश के भीतर मौजूद विभिन्न समुदायों से जुड़े करोडो लोग है जिनके जरिये विभिन्न राजनीतिक दलों ने धर्म के नाम पर वोटरों को बांटकर अपनी सत्ता को मजबूत किया...... अब आज के विकास वाले दौर में विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच मजहब और जात की सियासत का ग्राफ नीचे चला गया जिसके मर्म को अच्छे से पकड़कर बसपा सरीखी पार्टियों ने सोशल इंजीनियरिंग के जरिये ध्वस्त कर डाला ......वह भी एक दौर था जब अपने को शिखर पर चढ़ा हुआ देखने पर ब्राह्मणों को यह नही सुहाता था कि कोई दलित उसके आस पास फटके ......आज हालत एकदम उलट हैं .....
उत्तर प्रदेश का ब्राहमण समाज उस नेत्री की छाया मे काम कर रहा है जिसने फ़ोर्ब्स पत्रिका की महिलाओ की सूची मे अपना स्थान हाल के वर्षो में ना केवल बनाया है बल्कि माया ने त्याग की मूरत कही जाने वाली कांग्रेस की "सोनिया " को भी पीछे छोड़ दिया....."एक समय आयेगा जब पत्थर भी गाना गायेगा मेरे बाग़ का मुरझाया फूल फिर से खिल खिला जाएगा" .....किसी कवि द्वारा कही गयी इस कविता मे गहरा भाव छिपा है समय बदलने के साथ सभी दल अपने को ढाल लेते है सो बसपा के साथ भी यही हुआ है उसमे नया सोशल बदलाव आ गया है.... हाल के समय में उसकी नीतिया बदल गयी है... सभी को साथ लेने का नया चलन शुरू हुआ हैजिसे सोशल इंजीनियरिंग नाम दिया गया है ....
इस फोर्मुले को लगाने मे सतीश चंद्र मिश्रा का बड़ा योगदान रहा जिनको यह अच्छी से पता था किस प्रकार "हाथी "सभी पार्टियों के लिए परेशानी का सबब बन सकता है ......आज यह हाथी सभी के लिए बड़ा सर दर्द बन गया है ...इससे भी बड़ा संकट यह है उत्तर प्रदेश का ब्राहमण समाज बहिन माया की कप्तानी मे "इंडियन पोल लीग" का हर गेम खेलने को तैयार दिखता है.....
यह सवाल सबसे अधिक जिसको कचोट रहा है वह है उत्तर प्रदेश की भाजपा..... प्रदेश मे पार्टी की सेहत सही नही चल रही है..... यू पी की इस बीमारी का तोड़ निकालने मे किसी डॉक्टर को सफलता नही मिल पा रही है..... डॉक्टर के कई दल सेहत को चेक करने वहां जा चुके है लेकिन फिर भी तबियत में अपेक्षित सुधार नही आ पा रहा है ....शायद इसी के चलते डॉक्टरो के दल को भी बेरंग वापस लौटना पड़ रहा है......
बीजेपी की उत्तर प्रदेश मे डगमग हालत के चलते उसका हाई कमान भी चिंतित है.... चिंता लाजमी भी है क्युकि ५ राज्यों के विधान सभा के चुनाव होने जा रहे है ....ऐसे में बीजेपी के अध्यक्ष नितिन गडकरी अभी से हाथ पैर मारने में लग गए है .....
बीते महीने प्रदेश में चुनाव प्रचार की कमान पूरी तरह नितिन गडकरी के हाथ सौपे जाने को विश्लेषक एक नई कड़ी का हिस्सा मान रहे है..... सूत्र बताते है कि संघ माया द्वारा जीते गए पिछले विधान सभा के चुनावो से कुछ सबक लेना चाह रहा है....लेकिन गडकरी की इस साल बिछाई गई बिसात में संघ की एक भी नहीं चल रही ... इसी के चलते इस बार के चुनाव में उत्तर प्रदेश में कद्दावर नेताओ की एक नहीं चल पा रही है .....
गडकरी की बिसात " जिताऊ " उम्मीदवारों के रास्ते जहाँ गुजरती है वही , संघ का रास्ता उसके स्वयंसेवको और पार्टी का झंडा लम्बे समय से उठाये नेताओ के आसरे गुजरता है .......
दिल्ली मे पार्टी के एक नेता की माने तो इस बार अपने हाई टेक फोर्मुले के सहारे गडकरी माया के साथ जा मिले ब्राहमण वोट बैंक को वापस अपनी तरफ लेने की कोशिशे तेज कर रहे हैं.... पार्टी के नेताओ का मानना है कि यह ब्राहमण वोट बैंक शुरू से उसके साथ रहा है लेकिन बीते कुछ चुनावो मे यह माया मैडम के साथ जा मिला इसको फिर से अपनी ओर लाकर उत्तर प्रदेश में पार्टी की ख़राब हालत सुधर सकती है......
शायद इसी के मद्देनजर गडकरी की बिसात में जहाँ पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के अध्यक्ष रहे राजनाथ एक तरफ है तो दूसरी तरफ कलराज मिश्र सरीखे "ब्राहमण " कार्ड को खेलकर उसने ब्राहमण और ठाकुर वोट को अपने पाले में लाने का नया फ़ॉर्मूला बिछाया है.....यह बताने की जरुरत किसी को नहीं कि राजनाथ और कलराज के समर्थक उत्तर प्रदेश में शुरू से एक दूसरे के आमने सामने खड़े रहते थे .......
पहली बार दोनों को साथ लेकर गडकरी ने नई व्यूह रचना इस प्रकार की है जिसके जरिये हिन्दू वोट बैंक को पार्टी अपने पाले में ला सकती है...... यही नहीं इस बार गडकरी ने जहाँ एक और प्रदेश अध्यक्ष सूर्य प्रताप शाही खेमे को भी चुनावी चौसर बिछाने में साथ लिया है तो वहीँ कल्याण सिंह की काट के तौर पर उमा भारती को "स्टार प्रचारक " बनाकर और महोबा के चरखारी से पार्टी का टिकट देकर पिछड़ी जातियों के एक बड़े वोट बैंक को अपने पाले में लाने की गोल बंदी कर डाली है.....
इतना जरुर है इन चारो कार्ड के जरिये पहली बार गडकरी ने संघ की हिंदुत्व प्रयोगशाला के सबसे बड़े झंडाबरदार योगी आदित्यनाथ और विनय कटियार सरीखे नेता को अगर टिकट चयन से दूर रखा है तो समझा जा सकता है कि उत्तर प्रदेश के चुनावो में किस तरह संघ ने अपने को भाजपा से दूर रखा है..... यही नहीं इस बार टिकट गडकरी ने जीतने वाले उम्मीदवारों को देकर अपने इरादे जता दिए है जिससे लम्बे समय से पार्टी का झंडा उठाये हुए नेताओ की दाल नहीं गल पा रही है........ ।
पार्टी की कार्यकारिणी की बैटक मे कुछ महीने पहले हिंदुत्व के मुद्दे पर चर्चा की गयी..... उत्तर प्रदेश भाजपा की हिंदुत्व प्रयोगशाला का पहला पड़ाव रहा है जहाँ राम लहर की धुन बजाकर भाजपा ने कभी राज्य में अपनी सरकार बनाई थी...... पार्टी के नेता मानते है हिंदुत्व की आधी मे वह केन्द्र मे सत्ता मे आयी लेकिन अपने कार्यकाल मे उसने कई मुद्दों को ठंडे बस्ते मे डाल दिया जिस कारण केन्द्र में यू पी ऐ की सरकार आ गयी और बीजेपी अवसान की ओर चली गयी ......इस बार पार्टी फिर हिन्दुत्व पर वापस लोटने का मन बना रही है हालाँकि गडकरी ने इस पर सीधे कुछ भी कहने से परहेज किया है लेकिन पार्टी की चाल देखकर ऐसा लगता है कि वह अपनी हिंदुत्व की आत्मा को अलग कर नही चल सकती.....
बड़ा सवाल यह है कि वह सबको साथ लेने के किस फोर्मुले पर चलेगी ? इतिहास गवाह है केंद्र में सत्ता हथियाने के बाद पार्टी मे पिछडे नेताओ को उपेक्षित बीते कुछ समय रख दिया जाता है....जब पार्टी मे यह तय हो चुका है वह आगामी चुनाव मे अपने ओल्ड एजेंडे पर चल रही है तो ऐसे मे पार्टी के लिए उत्तर प्रदेश सबसे बड़ी रन भूमि बन गया है....यही वह प्रदेश है जहाँ की सांसद संख्या दिल्ली का ताज तय करती है ......यहाँ पर पास या फेल होने पर मिलने वाले नम्बर बोर्ड एक्जाम की तरह से रिजल्ट को प्रभावित करने की कैपेसिटी रखते है तभी तो माया जी यहाँ से अपने सर्वाधिक सांसद जितवाकर दिल्ली मे प्रधानमंत्री बन्ने के सपने अभी से देख रही है जिसके बारे में उन्होंने अपनी किताब "बहनजी " मे भी बताया है.....
वैसे भी पूत के पाव पालने मे ही दिखाए देते है बीजेपी भी इसको अच्छी तरह से जानती है... तभी वह आजकल बसपा की सोशल इंजीनियरिंग का तोड़ निकालने मे जुटी है.......बीजेपी के अन्दर के सूत्र बताते है कि ब्राह्मणों को लुभाने की मंशा से पार्टी ने अपने चार ट्रंप कार्ड फैक दिए है जो पार्टी का जहाज उत्तर प्रदेश में बचाने की पूरी कोशिश करेंगे........
पहला कार्ड राजनाथ सिंह का है जो चुनाव प्रभारी है.... वह ख़ुद ठाकुर है ....दूसरा कार्ड राज्य मे मौजूद पार्टी प्रेजिडेंट सूर्य प्रताप शाही का है जो खुद भूमिहार जाति से है....... तीसरा कार्ड जो फेंका गया है वह है कलराज मिश्रा वह उत्तर प्रदेश में ब्राहमण बिरादरी का झंडा लम्बे उठाये है.....भाजपा का उत्तर प्रदेश में सबसे पुराना चेहरा ........ चौथा कार्ड हाल ही मे उमा भारती के रूप में फेंका गया है जिसके जरिये पार्टी पिछडो के एक बड़े वोट बैंक को अपने पाले में लाने की जुगत में है .......
अब चारो लोगो के एक साथ चुनाव प्रचार अभियान में आने से जिनके बसपा के सतीश चंद्र मिश्रा छोटे नजर आ रहे है.... पार्टी का मानना है राज्य मे ब्राहमणों की बड़ी संख्या १६ वी लोक सभा चुनाव मे उसका गणित सुधार सकती है साथ मे हिंदुत्व का मुखोटा फिर से पहनने से उसका खोया जनाधार वापस आ सकता है.......
वैसे भी ९० के दशक मे राम मन्दिर की लहर ने हिंदू वोट को उसकी ओर खीचा था जिसके बूते सेण्टर मे न केवल उसकी सीटें बढ़ी बल्कि केंद्र मे वाजपेयी की सरकार भी सही से चली थी ..............
गडकरी अपनी पार्टी की केंद्र में सत्ता में वापसी के लिए उत्तर प्रदेश पर टकटकी लगाये हुए है..... वह इस बात को जानते है पार्टी की उत्तर प्रदेश में इस बार पतली हालत होने पर उनका सपना पूरा नही हो पायेगा...... वैसे भी विन्ध्य मे भगवा लहराने से बात नही होगी...... उत्तर प्रदेश फतह के बिना दिल्ली मे सरकार की कल्पना करना मुंगेरी लाल के हसीन सपने देखने जैसा है.... अतः पार्टी पहले इस यू पी की चुनोती से पार पाना चाहती है.... सोलहवी लोक सभा के लिए बीजेपी अभी से कमर कस चुकी है ....
पार्टी द्वारा पिछले चुनाव मे अपने एजेंडे से भटकने के कारण संघ भी इस बार अपने को यू पी के चुनावो से दूर कर रहा है...... संघ मानता है बसपा के हाथी की बदती धमक कमल के लिए बड़ा खतरा बनती जा रही है.... दलित और मुस्लिम वोट शुरू से कांग्रेस के साथ रहा है लेकिन पिछले कुछ चुनाव मे यह बसपा के साथ जा मिला.....
प्रदेश के ब्राहमण मतदाताओ के माया के साथ जाने से पार्टी की हालत ख़राब हो गयी है.... अतः गडकरी का रास्ता ब्राहमणों के वोट बैंक को बीजेपी के साथ लेने की कोशिशो मे जुटा है....... बीजेपी बीते चुनावो से इस बार सबक ले रही है..... समय समय पर उत्तर प्रदेश को लेकर मीटिंग हो रही है..... उत्तराखंड और पंजाब के चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश को लेकर गंभीर मंथन हो रहा है .... यू पी की पीठ पर जमकर नेट अभ्यास किया जा रहा है.......
अब बात बीजेपी के राजनाथ सिंह की करते है....... उनके के पास विरोधियो को राजनीती की पिच पर मौत देने का तोड़ है....... चेस के मैच पर अगर गोटी हो तो राजनाथ विरोधियो की हर चाल को पहले ही जान जाते है .......अपनी छमताओ को वह बीते कुछ वर्षो मे कर्नाटक , बिहार, हिमांचल, उत्तराखंड , गुजरात मे साबित कर चुके है ...
अब बात बीजेपी के राजनाथ सिंह की करते है....... उनके के पास विरोधियो को राजनीती की पिच पर मौत देने का तोड़ है....... चेस के मैच पर अगर गोटी हो तो राजनाथ विरोधियो की हर चाल को पहले ही जान जाते है .......अपनी छमताओ को वह बीते कुछ वर्षो मे कर्नाटक , बिहार, हिमांचल, उत्तराखंड , गुजरात मे साबित कर चुके है ...
अब बारी उनके खुद के प्रदेश उत्तर प्रदेश की है जहाँ के वह मुख्य मंत्री भी रह चुके है ..... यह बड़ा प्रदेश है.... हालात अन्य प्रदेश से अलग है..... यहाँ पर खेलने के लिए बड़ा दिल रखना पड़ता है....... मैच टेस्ट क्रिकेट की तरह है जहाँ नेट पर जमकर पसीना बहाना पड़ता है साथ मे लंबे समय तक मैदान में टिकने की कला भी होनी चाहिए.... गेदबाज के एक्शन से पहले बोल परख ने की कला होनी चाहिए....
पार्टी की उप में हालत सही करने का जिम्मा अब राजनाथ और कलराज के कंधो मे है .....उनको अच्छा तभी कहा जा सकता है जब वह पार्टी को प्रदेश मे अच्छी सीट दिलाने में मदद करें..... २००२ के चुनाव में बीजेपी को विधान सभा मे ४०२ सीट् मे ५१ सीट ही मिल पाई..... १४६ मे उसके जमानत जब्त हो गयी इसके बाद वहां के चुनाव मे पार्टी ४ नम्बर पर आ गयी ...... उस चुनाव में बसपा को ३०.४३% वोट मिले..... समाजवादी पार्टी को ९७ सीट हासिल हुई ... वोट २५% रहा ....वही बीजेपी का १६% रहा ....इसके बाद तो पार्टी का २००७ मे ऐसा जनाजा निकला पार्टी की माली हालत खस्ता हो गयी...... ऐसे मे अपने राजनाथ , कलराज. शाही और उमा के सामने उत्तर प्रदेश की पुरानी खोयी हुई जमीन को बचाने की बड़ी चुनौती है.......
देखना होगा गडकरी की इस नयी बिसात में ये चारो कहा फिट बैठते है? वह भी ऐसे समय में जब राज्य में पार्टी के पुराने सिपहसालार संजय जोशी, विनय कटियार, योगी सरीखे चेहरे हाशिये पर है..........
अब बात उत्तर प्रदेश के बीजेपी अध्यक्ष सूर्य प्रताप शाही की करते है.......वह लोक सभा और विधान सभा के चुनाव मे पार्टी की नैया पार नही लगा सके..... उनको प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी इसलिए सौपी गई थी कि वह बसपा के महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा के सामने चुनोती पेश कर सकते है लेकिन अब तक वह यह सब कर पाने मे विफल साबित हुए है......
पार्टी में इस समय उनके खिलाफ विरोध के स्वर आज भी कायम होते रहते है...... बताया जाता है कि वह पार्टी में नया जोश नही भर पाए है जिस कारण से निचले स्तर पर कार्यकर्ता अपने को असहज महसूस करते है..... कम समय मे अपने साथ ब्राहमणों का बड़ा वोट जोड़कर माया ने शाही एंड कंपनी को दिखा दिया है " यू पी हुई हमारी है अब दिल्ली की बारी है............."
अब बात हाल मे चुनाव प्रचार अभियान की कमान सौपे जाने वाले नेता राजनाथ की करते है ... वह पार्टी का पुराना चेहरा है......... उनको कलराज की तरह यू पी की गहरी समझ है .... साथ में उमा और शाही की जोड़ी उत्तर प्रदेश में भाजपा की साख को बचाने का काम कर सकती है...........
इन चारो को आगे कर भाजपा उत्तर प्रदेश में समाज के हर वर्ग में अपनी उपस्थिति सामाजिक समीकरणों के जरिये बिछा रही है ........ ब्राहमण से लेकर ठाकुर , राजपूत से लेकर पिछड़ी जातियों पर डोरे डालकर माया के भावी सी ऍम बनने के सपने को धूल धूसरित करने की पूरी कोशिशो में लगी है......
गडकरी की इस बार की बिसात में अगर कलराज ,राजनाथ उमा ,शाही की चौसर बिछी है तो वही असंतुष्ट नेताओ से पार पाना भी भाजपा की बड़ी मुश्किल बनती जा रही है ....क्युकि इस चुनाव में योगी, कटियार , संजय जोशी सरीखे कई कद्दावर नेताओ की अगर एक भी नहीं चल रही है ओर उनके जैसे कई कार्यकर्ता जो पार्टी का झंडा वर्षो से उठाये है वह भी अगर इस दौर हाशिये में चले गए हो तो ऐसे में कीचड में कमल खिलने में परेशानी हो सकती है......
वैसे भी पिछले दिनों बाबू सिंह कुशवाहा के मुद्दे पर पार्टी की खासी किरकिरी हो चुकी है..... ऐसे में चुनावी डगर मुश्किल दिख रही है..... फिर भी संघ की गोद से निकले गडकरी अगर संघ से दूरी बनाकर कलराज, उमा, राजनाथ ओर शाही के जरिये पूरे उत्तर प्रदेश को साधने की कोशिश कर रहे है तो उसे उत्तर प्रदेश में भाजपा के डूबते जहाज को बचाने की अंतिम कोशिशो के तौर पर देखा जाना चाहिए..........
2 comments:
सटीक व सार्थक विश्लेषण किया है आपने.आपका आभार..
बढिया है .... राजनीती चीज ही ऐसी है
वक्त के हिसाब से चलना पड़ता है
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