Monday 12 August 2013

छवि बदलने की छटपटाहट में " नमो "



पिछले बरस  20 दिसम्बर के दिन को याद करें इस दिन पूरे देश की नजरें गुजरात विधान सभा चुनावो पर केन्द्रित थी   गुजरात के साथ ही इस दिन हिमाचल के विधान सभा चुनावो के परिणाम भी सामने आये लेकिन पूरा मीडिया मोदीमय था तीसरी बार गुजरात को हैट्रिक लगाकर फतह करने के बाद नरेन्द्र दामोदरदास मोदी का जोश देखते ही बन रहा था उनकी जीत ने कार्यकर्ताओ के जोश को भी दुगना कर दिया भाजपा के अहमदाबाद  दफ्तर में उस समय  जहाँ दिवाली मनाई जा रही थी वहीँ 11 अशोका रोड स्थित भाजपा के राष्ट्रीय दफ्तर पर सन्नाटा  पसरा था पार्टी का कोई आला नेता और प्रवक्ता न्यूज़ चैनल्स को बाईट देने के लिए उपलब्ध नहीं था लेकिन संयोग देखिये 27 दिसंबर को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद जैसे ही मोदी के कदम दिल्ली स्थित भाजपा के दफ्तर अशोका  रोड की तरफ बढे तो पूरा माहौल मोदीमय हो गया हर कोई उनकी तारीफों में कसीदे पढता ही  जा रहा था यह भाजपा में मोदी के असल कद का अहसास करा रहा था जब गुजरात जीतने के बाद दिल्ली के दफ्तर और तोरण दुर्गो में लगे बड़े बड़े कद के "ब्रांड मोदी " वाले पोस्टर मोदी की भारी  जीत की गवाही दे रहे थे पोस्टरों में  मोदी के बाँए जहाँ पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की तस्वीर लगी थी वहीँ  उनके दाएँ आडवानी और गडकरी की लगी तस्वीर और इन सबके बीच मोदी की लगी बड़ी तस्वीर भाजपा की दिल्ली वाली ड़ी कंपनी को सही रूप में आईना दिखा रही थी   बीते दिनों दक्षिण के राजपथ पर चुनाव समिति के अध्यक्ष बनने  के  बाद  अपनी पहली बड़ी रैली में भारी भीड़ जुटाकर मोदी ने  अपने विरोधियो को कई संकेत दे डाले हैं    लाल बहादुर  शास्त्री स्टेडियम के भीतर बड़ी रैली कर मोदी ने कांग्रेस से कई मील आगे निकलकर अपनी चुनावी बिसात बिछाकर यह तो साबित कर दिया है भाजपा के लिए २०१४ मे करो या मरो वाली स्थिति हो चली है जहाँ इस बार भाजपा को लोक सभा चुनाव में अपना वोट का प्रतिशत हर हाल में बढ़ाना है नहीं   केंद्र की सत्ता से उसका सूपड़ा साफ़ होना लगभग तय है शायद यही वजह है पहली बार मोदी ओबामा की तर्ज पर  " यस वी  कैन" और "यस वी  विल  डू  " का नारा देने पड़  रहा है क्यूकि  इस दौर में भाजपा के पास कोई ऐसा चेहरा बचा नहीं है जो पार्टी कैडर  में नए जोश का संचार कर सके और अपना ग्राफ  जनता के बीच बड़ा सके     हैदराबाद  में सुबह से मोदी को सुनने के लिए उमड़ी  भीड़  और बीच बीच में पीएम - पी एम के नारों ने भी यह तो बतला ही दिया कार्यकर्ताओ के बीच  मोदी आज  कितना लोकप्रिय चेहरा बन चुके हैं इस दौरान कई युवा कार्यकर्ता अपने बड़े कद के इस नेता की तस्वीर  कैमरों से उतार रहे थे हर कोई मोदी की झलक पाने को बेताब था कोई उनके भाषण  को रिकॉर्ड कर अपने साथ  रखना चाहता था तो कोई मंच पर  भाषण  देते मोदी  की  फोटो खिंचवाने का सुनहरा  मौका हाथ से जाने नहीं देना चाहता था   बीते दिनों गोवा में सम्पन्न  हुई भाजपा की राष्ट्रीय  कार्यकारणी की बैठक  का पूरा एजेंडा "नमो  " ने हाई जैक कर लिया था    आडवानी कैम्प के नेताओ की तबियत नासाज हो गई थी  नमोनिया  संक्रामक रोग की तरह पूरी पार्टी में फैल गया  था इस बैठक के पहले दिन से आखरी  दिन तक नरेन्द्र मोदी ही छाये  रहे कार्यकर्ता सम्मलेन के दौरान गोवा में अब अटल - आडवानी की  तस्वीर मंच से गायब थी जो बता रहा था भाजपा में अब अटल और आडवानी युग समाप्त हो गया है यह नए मोदी युग का ट्रेलर है वही  हैदराबाद  में भी आडवानी की तस्वीरें  पोस्टरों से गायब थी जो बतला रहा था अब भाजपा में आडवानी युग ढलान पर है     कार्यकर्ताओ में मोदी ब्रांड की यह दीवानगी  बता रही थी , अब हर कोई मोदी को दिल्ली के तख़्त पर देखना चाहता  है शायद कार्यकर्ताओ की इसी नब्ज और संघ की सहमती के आधार पर राजनाथ ने मोदी को चुनाव प्रचार समिति की कमान सौंपकर उनको अगले लोक सभा चुनाव का अघोषित प्रधान मंत्री पद का  उम्मीद वार  घोषित कर दिया   तो क्या माना जाए मोदी 2014 की लोक सभा की बिसात में भाजपा का सबसे बड़ा चेहरा होंगे ? क्या मोदी के कदम अब सीधे अहमदाबाद से निकलकर दिल्ली  के तख़्त की तरफ तेजी के साथ बढ़ रहे हैं ? क्या मोदी भी कुछ समय बाद अपने कार्यकर्ताओ वाली लीक पर चलने का साहस दिखायेंगे और गुजरात से निकल कर सीधे राष्ट्रीय राजनीती के केंद्र में होंगे ? क्या अटल की संसदीय परंपरा का निर्वहन करते हुए वह उनकी खडाऊ  पहनकर नवाबो की नगरी लखनऊ  से लोक सभा का चुनाव लड़ने का साहस दिखायेंगे ?
 
                 ये ऐसे सवाल हैं  जो इस समय भाजपा के आम कार्यकर्ता से लेकर पार्टी के सहयोगियों और यू पी के सहयोगियों से लेकर कांग्रेस को परेशान कर रहे हैं गुजरात चुनाव जीतकर मोदी ने सही मायनों में अपनी अखिल भारतीय छवि हासिल करने के साथ ही खुद को राष्ट्रीय राजनीती में फ्रंट रनर के तौर पर पेश किया है गुजरात चुनावो से पहले यह भ्रम बन गया था कि मोदी पार्टी से बड़े हो गए हैं लेकिन हलिया  चुनाव परिणामो ने इस भ्रम को हकीकत में बदल दिया है मोदी के बारे में उनके विरोधी ही नहीं भाजपा में उनको नापसंद करने वाली  जमात का एक बड़ा तबका इस बार मोदी की जीत  को लेकर आशंकित था    गुजरात  में इस बार के चुनावो से पहले उन्होंने  मोदी का किला दरकने के प्रबल आसार  बताये थे  साथ ही 2002 , 2007 की तरह   मोदी का जादू फीका होने की बात मीडिया के सामने रखी थी लेकिन मोदी ने अपने बूते गुजरात फतह  कर यह बता दिया पार्टी में उनको चुनौती देने की कुव्वत किसी में नहीं है और शायद यही वजह है इस दौर में मोदी की ठसक को चुनौती देने की कुव्वत भाजपा के किसी नेता में नहीं बची है वैसे भी केशव कुञ्ज उनके नाम का डमरू बजाकर इस दौर में भाजपा के हर छोटे बड़े नेता को ना केवल अपने अंदाज में साध रहा है बल्कि पार्टी कैडर  में नमो नमो का जोश भर रहा है

                            अस्सी के दशक को याद करें तो उस दौर में एक बार इंदिरा गांधी ने तमाम सर्वेक्षणों की हवा  निकालकर दो तिहाई प्रचंड बहुमत पाकर संसदीय राजनीती को  आईना दिखा दिया था इस बार मोदी ने दो सीटो के   नुकसान के बावजूद विकास के माडल को अपनी छवि के आसरे जीत में तब्दील कर दिया जहाँ 2002 में उनकी जीत के पीछे सांप्रदायिक कारण जिम्मेदार थे वहीँ 2007 में कांग्रेस द्वारा उन्हें मौत का सौदागर बताने भर से उनकी जीत की राह आसान हो गई थी लेकिन इस बार की मोदी की जीत अहम रही विकास के नारे के आगे सारे नारे फ़ेल  हो गए यह इस मायनों में कि जनता ने मोदी  के विकास माडल पर केवल अपनी मुहर लगाई बल्कि मुस्लिम बाहुल्य इलाको में मुस्लिम प्रत्याशी ना उतारे जाने के बावजूद भाजपा का प्रदर्शन काबिले तारीफ रहा यही नहीं गुजरात फतह करने के बाद अब अब मोदित्व का परचम एक नई  बुलंदियों में पहुच गया है   विकास और वायब्रेन्ट गुजरात का जादू लोगो पर सर चदकर बोल रहा है   वह अब अपने को  मोदी के गुजरात में सुरक्षित मान कर चल रहा है लेकिन अभी भी गोधरा का कलंक उनका पीछा नहीं छोड़ेगा
   
                गुजरात के हाल के चुनावो में  सौराष्ट्र से लेकर मध्य गुजरात और दक्षिण गुजरात से लेकर उत्तर गुजरात हर जगह मोदी की तूती  ही इस चुनाव में बोली  पूरा गुजरात इस कदर मोदीमय था कई  समाज के नाराज तबको का समर्थन जुटाने की कांग्रेस की गोलबंदी इस चुनाव में काम नहीं सकी शहरी , ग्रामीण , गैर आदिवासी ,छत्रिय समाज इस चुनाव में मोदी के साथ ही खड़ा दिखा   पूरे देश का युवा वोटर अब मोदी पर गुजरात की तरह उन पर अपनी नजरें गढाये बैठा है क्युकी पहली बार अब मोदी को गुजरात से निकलकर आने कदम पूरे देश की तरह  बढ़ाने  हैं  देश के युवा वोटरों की   मानें तो  कलह से जूझती भाजपा  का बेडा वर्तामान  में  मोदी ही पार लगा सकते हैं गुजरात में हैट्रिक लगाकर मोदी अब बड़े नेता के तौर पर उभर कर सामने गए हैं जहाँ मीडिया उन्हें भावी पी एम के रूप में देख रहा है वहीँ कॉरपोरेट तो पहले ही उनको प्रधानमंत्री के रूप में पेश कर चुका  है गुजरात जीत के बाद मोदी निश्चित ही भाजपा में अब सबसे मजबूत हो गए हैं और संघ भी अब भाजपा की भावी रणनीतियो का खाका मोदी के आसरे ही खींचेगा क्युकि  स्वयंसेवको की बड़ी कतार चाहती है 2014 में भाजपा किसी युवा चेहरे पर अपना दाव  लगाये और यह चेहरा उनको मोदी के रूप में सामने दिखाई दे रहा है गुजरात  के  उप चुनावो  में भाजपा की जीत के  बाद संघ  का जोश भी  बढ़  गया है मोदी देश के वोटर को प्रभावित कर सकते हैं अब खुद संघ भी लोक सभा चुनाव से ठीक पहले मोदी के बारे में अपने पत्ते खोल सकता है हिंदुत्व और विकास के आसरे मोदी ने गुजरात में जो लकीर खींची  है वह अब गुजरात में इतिहास बन चुकी है और अब इसे मोदी के सामने इसे पूरे देश में दोहराने की बड़ी चुनौती खड़ी  है

             गुजरात की जंग जीतने के बाद अब मोदी के कदम दिल्ली के सिंहासन की तरफ बढ़ रहे हैं  राजनाथ द्वारा उन्हें संसदीय बोर्ड में लिए जाने के बाद से ही इस बात की सुगबुगाहट थी कि  अगले चुनाव में मोदी के हाथ ही कमान होगी लेकिन इस घोषणा को बार बार  टाला जा रहा था   गोवा में भीष्म पितामह आडवानी की अनुपस्थिति में मोदी को कमान देकर राजनाथ ने जहा संघ की बिसात बिछाने का काम किया है वहीँ आडवानी के लिए भी इशारा साफ़ है अब आपकी राजनीती के दिन लद  गए हैं भाजपा में जेनरेशन गैप गया है वही नेता होगा जिसकी डिमांड कार्यकर्ताओ में ज्यादा होगी भाजपा के कई  वरिष्ठ  नेता जहाँ मोदी की दावेदारी से से अभी भी  सहमे हुए हैं ऐसे में मोदी के लिए दिल्ली की डगर आसान  नहीं है    

 वैसे भी वर्तमान युग गठबंधन राजनीती का है जहाँ  अपने बूते 272 के आंकड़े को छूना भाजपा के लिए मुश्किल है वहीँ मोदी को अपने समर्थन में उन दलों को लामबंद करना होगा जो किसी समय अटल बिहारी की सरकार  के साथ  खड़े  थे और ये सब घटक आज एन डी का साथ छोड़ चुके हैं  ऐसे हालातो में ममता, नीतीश ,चंद्रबाबू को मोदी के साथ आने में कठिनाईयां पेश सकती हैं 2013 के अंत में मध्य प्रदेश , छत्तीसगढ़ ,दिल्ली ,,राजस्थान, मिजोरम, झारखण्ड , महाराष्ट्र सरीखे   राज्यों के चुनाव होने हैं जो मोदी के लिए किसी एसिड टेस्ट से कम नहीं होंगे   यहाँ  पर  ब्रांड मोदी की भूमिका देखने लायक रहेगी अगर अपने बूते ही वह पार्टी के ठन्डे पड़े कैडर में जोश फूंक पाए तो पार्टी में नम्बर वन बनने से मोदी को कोई नहीं रोक पायेगा। आने वाले दिनों में संघ उन्हें साथ लेकर पूरे भारत में विवेकानंद विकास यात्रा  का खाका तैयार कर सकता है जहाँ भारत भ्रमण पर निकल कर वह देश में विकास का कार्ड फेंककर बड़े वोट बेंक को भाजपा के साथ गोलबंद कर सकते हैं यह ध्रुवीकरण निश्चित ही अन्य  राजनीतिक दलों के लिए परेशानी पैदा कर सकता है अब कांग्रेस को भी मोदी के आने पर अपनी रणनीति को बदलना पड़  सकता है कांग्रेस भी इस दौर में नमो नमो बीमारी का कोई तोड़  नहीं निकाल पा रही है यु पी   की सेहत लगातार घोटालो ने जहाँ ख़राब कर रखी है वहीँ रुपये की लगातार गिरती कीमत से अर्थ व्यवस्था  वेंटिलेटर पर जाती दिख रहिया है तो   बढ़ती  महंगाई से लेकर आतंरिक  सुरक्षा के मसलो पर कांग्रेस की खूब भद पिट रही है

       वैसे राजनीति के मर्म को पकड़ना मोदी भी बखूबी जानते हैं  शायद  तभी दक्षिण के दुर्ग पर भाजपा का ग्राफ बदाने  मोदी निकले हैं हैदराबाद  में अपनी पहली चुनावी रैली के  मेगा शो के ट्रेलर के  बहाने मोदी ने  एन डी  को  जोड़ने का  पासा  एन टी रामाराव वाली लीक पर फैंका जहाँ आन्ध्र में गैर कांग्रेस को लामबंद करने में उनकी सबसे बड़ी भूमिका रही थी मोदी ने अपने भाषण  की शुरुवात तेलगु में भाषण  से की और कहा जब आप अपने राज्य के गठन का उत्सव मनाते हैं तब उनका जन्म दिवस पड़ता है   अपनी  इस रैली में मोदी ने इशारो इशारो में चंदबाबू नायडू पर डोरे डाले साथ ही जगन मोहन रेड्डी को गैर कांग्रेस वाद का युग शुरू करने का आह्वान करते हुए साफ़ कहा कि दिल्ली ही नहीं राज्य से भी कांग्रेस की विदाई जरुरी है जिसमे रीजनल पार्टियाँ बड़ा रोल निभा सकती हैं     जयललिता  का  भाषण में जिक्र कर यह भी बता दिया आने वाले दिनों में वह भाजपा के साथ अपनी पींगें बड़ा  सकती हैं   बीते  दिनों मिशन दिल्ली  के  लिए  हुए इस मेगा शो के बहाने मोदी ने कम से कम यह तो दिखा ही दिया वह सियासत की हर बिसात को अपनी ढाई चाल से मौत देने की छमता तो  रखते  ही  हैं शायद तभी उनके विरोधी  भी  उन्हें सत्ता से बाहर खदेड़ने के मंसूबो पर कामयाब नहीं हो पाते हैं दिल्ली की पिच पर उतरने से पहले उन्होंने   हर मौके पर  मनमोहन को  ही क्लीन बोल्ड  किया है बल्कि  मनमोहनी इकोनोमिक्स को अपने मोदिनोमिक्स के आसरे  चुनौती  दे डाली  है   यही नहीं नेहरु गाँधी परिवार से लेकर कांग्रेस के  भ्रष्टाचार  और विदेश नीति को  कठघरे  में खड़ा करने से परहेज नहीं किया है   हैदराबाद  आये मोदी ने खुले मच से यू पी  की ख़राब नीतियों का मर्सिया पढ़ने में कोई संकोच  नहीं किया  और धीमी विकास दर के लिए सीधे मनमोहन को निशाने पर लिया   यही नहीं लुंज पुंज विदेश नीति  के लिए और  पाक को हर बार  ढील देने के लिए सीधे  कांग्रेस और उसकी वोट बैंक पोलिटिक्स को जिम्मेदार बताया विकास के मोदिनोमिक्स ब्रह्मास्त्र के आसरे अब मोदी देश के करिश्माई नेता के तौर पर अपने को स्थापित करना चाहते हैं और शायद यही वजह रही यूथ कार्ड फैंककर उन्होंने  अपनी  देश की हर सभा में यह कहा पहले गुजरात सोचता है फिर हिन्दुस्तान एक तरह से वह अपने विकास के माडल को राष्ट्रवाद से जोड़ना चाहते हैं जिससे आने वाले चुनावो में भाजपा की बिसात मजबूत हो सके साथ ही उनकी नजरें युवाओ पर हैं जो आने वाले लोक सभा चुनावो में  एक बड़ा रोल निभाएंगे मोदी की  दक्षिण एक्सप्रेस अब इसी रास्ते पर आने वाले दिनों में चलने की उम्मीद  नजर रही है क्युकि  मोदी जान रहे हैं उत्तर भारत के साथ दक्षिण में भी पार्टी को अपना ग्राफ बढ़ाना पड़ेगा तभी वह दो सौ के आंकड़े को छू सकती है  और मोदी के पी एम बनने का भविष्य भी भाजपा का वोट प्रतिशत ही तय  करेगा पिछले चुनाव में भाजपा लगातार नीचे जाती जा रही है कांग्रेस और उसके वोट प्रतिशत में तकरीबन दस फीसदी का फासला है अगर इसे पाटना है तो भाजपा को अपने को हर राज्य में मजबूत करना  होगा    यही वजह है मोदी  हर जगह अपने अनुरूप रणनीति केवल बना रहे है बल्कि यु पी की तर्ज पर हर राज्य में अमित शाह की तर्ज पर अपना हनुमान खोजने निकल पड़े हैं हैदराबाद की इस रैली में मोदी ने आडवानी को बड़ा नेता बताया साथ ही काले धन पर उनके अभियान की तारीफों के पुल बांधकर यह संकेत भी दे दिए भाजपा में अब सब कुछ समय है और आडवानी और उनके व्यक्तिगत सम्बन्ध मधुर हैं पिछले कुछ  समय से मीडिया में यह खबरें थी कि भाजपा में आडवानी साइड  लाइन हो गए हैं और हर जगह चुनाव प्रचार से लेकर टिकट  चयन में मोदी अपने अनुकूल बिसात बिछा रहे हैं   कम से कम आडवानी का जिक्र अपनी सभा में कर मोदी ने भाजपा में आसाब कुछ आल इज वेल होने के संकेत तो दे ही दिए लेकिन अपनी पार्टी में मोदी को लोग कितना पचा पायेगे यह दूर की गोटी है  


                             गुजरात में अपना झंडा गाड़ने के बाद मोदी गदगद हैं और दिल्ली के तख़्त पर काबिज होने से पहले   उनके हौसले बुलंद भी हैं  तभी  अपनी हर जनसभा में  वह बता रहे हैं  आने वाले दिनों में वही भाजपा की नैया पार लगायेंगे आज नहीं तो कल संघ पी एम्  के लिए उनके नाम पर अपनी सहमति  जताएगा ही सम्भावनाये तो यहाँ तक हैं कि  इस साल के अंत में कई राज्यों के विधान सभा  चुनावो के परिणाम आने के बाद  संघ मोदी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए पूरा जोर लगाएगा   चुनाव समिति की कमान दिए जाने से वह  भाजपा के अघोषित प्रधान मंत्री  तो हो ही गए हैं समय आने पर लोक सभा चुनावो से पहले भाजपा उनके नाम का शायद एलान भी कर दे   इसके संकेत  केशव कुञ्ज में सुरेश सोनी और मोहन  भागवत की गुप्त बैठकों में भी देखने को मिले हैं यह बैठक नागपुर में पिछले साल  4 से 5 दिसंबर के बीच हुई थी उससे पहले खुद मोदी झंडेवालान स्थित संघ  के कार्यालय में भागवत से मिलने गए थे जहाँ मोहन भागवत ने उनको गुजरात चुनाव के बाद देश का सरदार बनाने के लिए राजी कर लिया था  वैसे भी संघ से लेकर भाजपा के कैडर में मोदी को लेकर पहली बार एक ख़ास हलचल है क्युकि पीएम पद के लिए मोदी ही एक ऐसा चेहरा भाजपा में वर्तमान  में हैं जो भारतीय मध्यम वर्ग, युवा वोटर के साथ कारपोरेट को लुभाने की छमता इस दौर में रखते हैं संघ भी अब उनमे हिन्दू ह्रदय सम्राट से इतर भाजपा के बड़े सम्राट बनने का अक्स देख रहा है क्युकि संघ के एजेंडे को आगे बढाने के साथ ही वह गुजरात की तर्ज पर देश  को आगे ले जा सकते है कार्यकर्ता जहाँ मोदी में अपना भविष्य देख रहे हैं वहीँ संघ भी उनके  नाम को भुनायेगा ही  लेकिन लाख टके का  सवाल यह  है क्या मोदिनोमिक्स ब्रह्मास्त्र के आसरे भाजपा अपनी खोयी जमीन और केंद्र की सत्ता दुबारा पा पाएगी ? इसके लिए फिलहाल इस साल के अंत में  होने जा रहे विधान सभा चुनावो के परिणामो का हमें इन्तजार करना होगा क्युकि इसके बाद ही देश चुनावी रंग में केवल ढलेगा बल्कि बहती हवा के रुख का भी सही पता हमें चल पायेगा

1 comment:

आकाश कुमार said...

निश्चित तौर से मोदी के कदम दिल्ली की तरफ तेजी से बढ़ रहे हैं...लेकिन दिल्ली पर फतह करने के लिए एनडीए को मजबूत करना मोदी के लिए सबसे बड़ी चुनौति होगी...जिसे मोदी भी यकीनन जानते हैं...और जहां तक वोट प्रतिशत बढ़ाने की बात है...उसके लिए मोदी ने पसमांदा मुलसमानों की बात कर एक तरह से पहल कर दी है....लेकिन आगे इस वोट बैंक को कैसे बीजेपी में लाना है ये मोदी भी मोदी के लिए किसी चुनौति से कम नहीं है...