Friday 15 November 2013

एक भरोसो- एक आस-एक विश्वास अरविन्द केजरीवाल

जब सारी व्यवस्था ही लूट खसोट की पोषक बन जाए | शासक वर्ग सत्ता की ठसक दिखाते हुए सत्ता के मद में चूर हो जाए और आम आदमी के सरोकार हाशिये पर चले जाए तो ऐसे में रास्ता किस ओर जाए और किया भी क्या जाए "" ?
          
दिल्ली  के नांगलोई  इलाके से ताल्लुक रखने वाले मंजीत कुमार जब मौजूदा व्यवस्था से थक हार कर आक्रोश में यह जवाब देते हैं तो भारतीय राजनीती के असल स्तर का पता चलता है | कांग्रेस के युवराज के बजाए अब वह राजनीती के नए युवराज अरविन्द  केजरीवाल के झाड़ू को साथ लेकर दिल्ली की सडको पर इन दिनों निकले  हैं | देश के हर राजनीतिक दल से उनका मोहभंग हो गया है । उनकी माने तो सत्ता में आने से पहले हर राजनीतिक दल तरह तरह के जतन  करते हैं लेकिन  सत्ता की मलाई चाटते चाटते सभी आम आदमी को हाशिये पर रख देते हैं । इस  चुनावी बेला में  आम आदमी  पार्टी में उन्हें कुछ खास नजर आ रहा है । वह सिस्टम में घुसकर राजनीतिक दलो की  सियासी जमीन को दरकाने चाहते हैं ।   

दिल्ली में बिजली की बड़ी हुई कीमतें शीला दीक्षित के लिए आगामी चुनावो के मद्देनजर मुश्किलें जहाँ मुश्किलें खड़ी कर रही हैं वहीँ पहली बार भाजपा सरीखे बड़े दलों की बोलती अरविन्द केजरीवाल की राजनीती ने  इस दौर में बंद कर डाली है जिसके चलते भाजपा के दिल्ली में  प्रदेश अध्यक्ष विजय गोयल भी भाजपा की दिल्ली में बिसात बिछाने में असहज महसूस कर रहे हैं । यही नहीं भाजपा के सी एम पद के चेहरे डॉ हर्षवर्धन के साथ उनका छत्तीस का आंकड़ा भी भाजपा की मुश्किलो को इस चुनाव में बढ़ाने का काम कर रहा है साथ में संगठन के बड़े पदो पर जिस तरह विजय गोयल की वैश्य बिरादरी का सीधा कब्ज़ा है उससे पार्टी में अन्य जातियो का प्रतिनिधित्व कम हो चला है जिसके चलते उनकी नाराजगी अभी भी कम नहीं हुई है ।   

  जिस तरीके  से केजरीवाल के समर्थन में दिल्ली में बिजली और पानी की  बड़ी हुई कीमतों के विरोध  में बड़ी जनता सामने आयी है उसने पहली बार राजनीती को एक सौ अस्सी से ज्यादा के कोण पर झुकने को मजबूर कर दिया है ।    सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों को अपने निशाने पर लेने वाले अरविन्द केजरीवाल की इंट्री भारतीय राजनीती में उस “एंग्री यंगमैन “ के तौर पर हो रही है जिसके केंद्र में पहली बार आम आदमी है जो इस दौर में हाशिये पर चला गया है वहीँ अरविन्द आम आदमी के आसरे भारत की भ्रष्ट राजनीतिक व्यवस्था की जड़ो को खदबदाने की कोशिशे कर रहे हैं जिसमे उनको सफलताए भी मिल ही है शायद यही कारण है आम आदमी केजरीवाल में उस करिश्माई युवा तुर्क का अक्स देख रहा है जिसके मन में सिस्टम से लड़ने की चाहत है और वह सिस्टम में घुसकर नेताओ को आइना दिखा रहा है |

दरअसल भारतीय राजनीती इस दौर में सबसे नाजुक दौर से गुजर रही है | यह पहला मौका है जब सत्ता पक्ष से लेकर विपक्ष की साख मिटटी में मिल गई है | एक के बाद एक घोटाले भारतीय लोकतंत्र के लिए कलंक बनते जा रहे हैं लेकिन सरकार को आम आदमी से कुछ लेना देना नहीं है क्युकि उसकी पूरी जोर आजमाईश विदेशी निवेश बढाने और कारपोरेट के आसरे मनमोहनी इकोनोमिक्स की लकीर खीचने में लगी हुई है | 

उदारीकरण के बाद इस देश में जिस तेजी से कारपोरेट  के लिए सरकारों ने फलक फावड़े बिछाए हैं उसने उसी तेजी के साथ भ्रष्टाचार की गंगोत्री बहाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है | इस लूट के खिलाफ समय समय देश में आवाजें उठती रही हैं लेकिन आज तक कोई सकारात्मक पहल इस दौर में नहीं हो पायी है | स्थितिया कितनी बेकाबू हैं इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अगर मौजूदा दौर में कोई केजरीवाल सरीखा व्यक्ति तत्कालीन कानून मंत्री और वर्तमान विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद को उनके संसदीय इलाके फर्रुखाबाद में चुनौती देता है तो माननीय मंत्री उसे खून से रंगने और निपटा देने की बात कहते हैं वहीँ दम्भी प्रवक्ता रहे और वर्तमान में सूचना प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी अन्ना को भगौड़ा एक दौर में घोषित कर देते हैं तो समझा जा सकता है मौजूदा दौर में किस तरह की अभद्र भाषा का इस्तेमाल राजनीती के भीतर हो रहा है । 

देश में यह पहला मौका रहा है  जब २०११ मे अन्ना की अगस्त क्रांति , रामदेव के जनान्दोलन ने लोगो को इस भ्रष्टाचार के दानव के खिलाफ लड़ने के लिए सड़क पर एकजुट किया और पहली बार राजनेताओ की साख पर सीधे सवाल इसी दौर में ही उठने लगे | दरअसल अपने देश में अब भ्रष्टाचार एक गंभीर समस्या बन चुका है | प्रायः लोग इसको लाइलाज समझने लगते हैं लेकिन अब समय आ गया है जब इससे निजात पाने का विकल्प  लोगो को देना होगा | देश के युवाओ में इसे लेकर गहरा आक्रोश है और वह पहली बार देश के नेताओ से लेकर नौकरशाहों को निशाने पर लेकर उनकी जमीन को निशाने पर ले रहा है और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ी जा रही हर लड़ाई में अपनी भागीदारी दर्ज कर रहा है | इस लड़ाई में पहली बार युवा  साथ दिख रहे है जो नए देश की पैसठ फीसदी युवा आबादी अब आगामी चुनाव में अपनी बिसात के जरिए सत्ता के हठी तंत्र को भोथरा करने में जुटी है जिसमे अरविन्द केजरीवाल और उनकी टीम के साथी टिमटिमाते दिए में  रोशनी दिखाते नजर आते हैं | अरब स्प्रिंग से प्रेरित होकर भारत में भी लोग तहरीर चौक की तर्ज पर नया भारत बसाने का सपना अब देखने लगे हैं और शायद उसी का परिणाम था पूरे देश में अन्ना आन्दोलन की परिणति ऐसी हुई जिसने पहली बार लोकतंत्र में लोक के हत्व को साबित कर दिखाया | २ जी , आदर्श सोसाईटी , कामनवेल्थ घोटाला ,कर्नाटक की खदान में हुआ घोटाला यह सब ऐसे मुद्दे थे जिसने अन्ना के आन्दोलन को प्लेटफोर्म देने का काम किया | लोगो ने इस जनांदोलन से सीधा जुड़ाव महसूस किया शायद इसी के चलते सभी नए इस पर बढ़ चढकर भागीदारी बीते बरस की | आज अन्ना और अरविन्द की राहें भले ही जुदा हो गई हैं लेकिन दोनों का मुद्दा एक है देश से भ्रष्टाचार का खात्मा और इसी के चलते अब केजरीवाल जहाँ अब सत्ता के मठाधीशो को उनकी माद में घुसकर चुनौती दे रहे हैं वहीँ राजनेताओ को आईना दिखाकर यह भी बतला रहे हैं २०१४ में खुद अकेले ही चलना है और अकेले ही रास्ता भी तैयार करना है मौजूदा माहौल को देखते हुए लगता है  भ्रष्टाचार देश में एक बड़ा मुद्दा आने वाले दिनों में  बन सकता है | 

 मौजूदा दौर में भारतीय राजनीती के सामने जैसा संकट खड़ा है वैसा पहले कभी खड़ा नहीं था | इस दौर में जहाँ कांग्रेस की  भ्रष्टाचार के मसले पर खासी किरकिरी हो रही है वहीँ कोयले की कालिक के दाग से लेकर पूर्ति के गडबडझाले पर पहली बार उस विपक्षी पार्टी के पूर्व  राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी पर सवाल उठे हैं जो पार्टी अपने को पार्टी विथ डिफरेंस कहती नहीं थकती है और संयोग देखिये यही पूर्वराष्ट्रीय अध्यक्ष दिल्ली में ही पिच पर उतरकर प्रभारी बन भाजपा की चुनावी संभावनाओ को टटोल रहे हैं ।  आम जनता में यह सन्देश जा रहा है दोनों राष्ट्रीय पार्टियों में भ्रष्टाचार के मसले पर भी मैच फिक्सिंग है | यह फिक्सिंग राष्ट्रीय स्तर  से लेकर एम सी डी तक में महसूस हो सकती है ।  ऐसे माहौल में केजरीवाल सरीखे लोग अब लोगो को यह विश्वास करा रहे हैं अब भ्रष्टाचारी नेताओ के दिन जल्द ही लदने वाले हैं तो समझा जा सकता है आने वाले दिनों में नई बिसात संसदीय राजनीती में बिछने जा रही है जिसमे जनता के हाथ सत्ता की चाबी सही मायनों में होगी | 


न केवल केजरीवाल के साथ बल्कि रामदेव और अन्ना के गैर राजनीतिक आन्दोलन के साथ भी अब जनता खड़ी होती इस दौर में अगर दिख रही है तो इसका बड़ा कारण यह है आम आदमी इस दौर में भ्रष्टाचार से परेशान है | मिसाल के तौर अरविन्द  केजरीवाल को ही लीजिए अन्ना के राजनीतिक विकल्प देने के सवाल पर जब दोनों ने अलग राहें चुनी तो कई लोगो ने सोचा बिना अन्ना के केजरीवाल की राह मुश्किल भरी रहेगी लेकिन जनलोकपाल पर मनमोहन , सोनिया और गडकरी के घेराव , बिजली की बड़ी कीमतों के खिलाफ दिल्ली में विशाल प्रदर्शन द्वारा उन्होंने अपनी असली ताकत का एहसास करा दिया | युवाओ की एक बड़ी टीम उनके साथ हर मसले पर खड़ी रही चाहे वाड्रा का मामला लें या गडकरी का ,हर जगह उनको युवा साथियो का सहयोग इस दौर में मिला है | यही नहीं जब से केजरीवाल ने अम्बानी के साम्राज्य की लूट के खिलाफ मोर्चा खोला  तो मीडिया भी उनको ज्यादा  सुर्खिया देना बंद कर दिया । आप की  लोकप्रियता से आशंकित  पार्टियां उसे घेरने की जुगत में हैं, । पहले कांग्रेस ने उसकी विदेशी फंडिंग का मसला उठाया अब भाजपा भी चुनावो को पास आते  देख आप को बदनाम करने की साजिश रच रही है। आप की विदेशी फंडिंग का मुद्दा उठाकर कांग्रेस और भाजपा दिल्ली चुनावो में केजरीवाल की पार्टी को सीधेनिशाने पर लेने से नहीं चूक रही । 

जबकि असल सच यह है भाजपा और कांग्रेस को बीते दस बरस में साढे चार हजार करोड़ और भाजपा को दो हजार करोड़ से ज्यादे का पैसा मिला है जो अवैध है लेकिन इसके बाद भी यह दल  अपनी राजनीतिक मजबूरियों के चलते यह बताने को  तैयार नहीं हैं कि इस अवैध कमाई और चंदे का हिसाब किताब कहाँ है ? आप को बदनाम करने के लिए यह दोनों राजनीतिक दल अन्ना  हजारे के द्वारा उठाये गए सवालो का जवाब अरविन्द की आप से मांग रहे हैं ।  

। अरविंद केजरीवाल ने अपनी पार्टी को मिलने वाले चंदों को सार्वजनिक कर पारदर्शिता  बीते एक बरस से  दिखाई है। अरविंद केजरीवाल की राजनीतिक महत्वाकांक्षा से अन्ना हजारे रजामंद न हों  पर वह इस बात को तो मानते ही हैं अरविन्द की ईमानदारी में किसी तरह का खोट नहीं है और भ्रष्टाचार के मुकाबले के लिए उनके और अरविन्द के तरीके अलग हो सकते  है । 

आज आलम यह है केजरीवाल के पास भ्रष्टाचार की आये दिन सैकड़ो शिकायते देश भर से आ रही हैं जिन पर वह अपने साथियो के साथ प्रतिदिन बहस करते हैं और युवा साथियो से लैस केजरीवाल ब्रिगेड उस पर गंभीरता के साथ अध्ययन करती है और अब इस बार के दिल्ली चुनावो में यही यंग ब्रिगेड केजरीवाल के आसरे संसदीय राजनीति को न केवल लोकतंत्र का ककहरा चुनाव जीत जाने और पांच साल शासन कर लेने भर से नहीं पढ़ा  रही बल्कि यह भी बता रही है राजनीति विरासत का खेल नहीं  है । इसमें आम आदमी से जुड़े सरोकार भी मायने रखते हैं तो इसे  हम एक अच्छी शुरुवात तो मान ही सकते हैं ।

 दिल्ली में  दिसंबर  में होने जा रहे चुनाव केजरीवाल की पार्टी के लिये अहम हो चले हैं । अगर दिल्ली में पार्टी अच्छा  करती है तो आगामी लोक सभा चुनाव में भारतीय राजनीती एक नयी करवट लेती दिखाई देगी जिसके केंद्र में आम आदमी होगा  और शायद इसके बाद २०१४ की बिसात नए ढंग से बिछेगी । 

अभी लोगो को उम्मीद है कि केजरीवाल की नई पार्टी अन्य पार्टियों से इतर अलग राह पर चलेगी | शीला के गढ़ में अरविन्द अब बचे दिनों में दिल्ली  के घर घर तक अपनी पकड़ बना रहे हैं । पिछले  दिनों में उनके साथ रेहड़ी मजदूर और कामगारों के साथ ऑटो चलाने वाले लोगो का एक बड़ा तबका साथ  आया है  जो आम आदमी पार्टी के लिए महत्वपूर्ण  होने वाला है  क्युकि  इसी वोट बैंक के आसरे केजरीवाल दिल्ली में अपनी बिसात बिछा रहे हैं | हाल के वर्षो में  शीला दीक्षित की मुश्किलें बिजली , पानी की बड़ी कीमतों ने बढ़ाई हुई हैं | ऊपर से सरकार के खिलाफ आम जनमानस में रोष है |   केजरीवाल ने वहां पर आम सभाए कर जनता से  जुड़े मुद्दे उठाये हैं | जनता बिजली, पानी , महंगाई से कराह रही है ऊपर से भ्रष्टाचार से देश का आम आदमी परेशान  इस दौर में हो चुका है | केजरीवाल इन्ही मुद्दो के आसरे जनता में घर घर पैठ बनाने और  शीला को बैकफुट पर लाने की पूरी कोशिश कर  रहे हैं ।


कुछ लोग केजरीवाल की राजनीती को ख़ारिज करने में लगे हुए हैं और उनको आये दिन निशाने पर ले रहे हैं | कांग्रेसी जहाँ सत्ता के मद में चूर होकर केजरीवाल को लोकतंत्र के लिए खतरा बता रहे हैं वहीँ भाजपा भी उसी के सुर में सुर मिला रही है जबकि हमारे देश के राजनीतिक दल शायद इस बात को भूल रहे हैं कि मौजूदा दौर में हमारे राजनीतिक सिस्टम में गन्दगी भर गई है | अपराधियों और माफिया प्रवृति के लोग राजनीती की बहती गंगा में डुबकी लगा रहे है | हत्या, चोरी, बलात्कार जैसे संगीन अपराधो में लिप्त लोग लोकतंत्र की शोभा बड़ा रहे है | राजनीती में भाई भतीजावाद, परिवारवाद, जातिवाद, साम्प्रदायिकता भरी हुई है और इन सबके बीच अगर केजरीवाल राजनीति का शुद्धिकरण करने अगर आम आदमी पार्टी बनाकर  निकल रहे हैं तो वह कौन सा संगीन अपराध कर रहे हैं जो हमारे देश की बड़ी राजनीतिक जमात उनको ख़ारिज करने पर तुली हुई है | यही नहीं पत्रकारों की एक बड़ी जमात भी अब उनके पार्टी बनाने के फैसले पर साथ नहीं है | हमारे पत्रकारिता जगत के लिए यह शर्म की बात है जो खुलासे केजरीवाल  ने अभी तक किये हैं उन पर किसी भी मीडिया घराने ने कई बरस से ना तो कलम ही चलाई और ना ही अपने चैनल में उन पर खबरें दिखाई  | केजरीवाल के यही खुलासे शायद अब इसी जमात को हजम नहीं हो रहे हैं | वैसे भी केजरीवाल जिस बेबाकी से मीडिया को उत्तर देते हैं उससे पत्रकारों के पसीने प्रेस कांफ्रेंस में छूट जाते हैं |। सभी राजनीतिक दलों के नारों में आम आदमी जरुर है लेकिन नीतियां बनाने से लेकर नियोजन में सब जगह कॉरपरेट हावी है । दिल्ली के चुनावो में कूदकर अब केजरीवाल नए सिरे से राजनीती को परिभाषित करने जा रहे हैं जिसके केंद्र में पहली बार आम आदमी रहेगा | अब तक देश की सभी पार्टियों द्वारा वह आम आदमी छला जाता रहा है | वह इसे बखूबी जानते हैं और इसकी खुशबू उन्होंने अपने सरकारी सेवाकाल के दौरान भी महसूस की  है |   दिसंबर  में दिल्ली का मिजाज राजनीती के बैरोमीटर में केजरीवाल की असल ताकत को बतलायेगा लेकिन फिलहाल  तो  आप की असल ताकत का एहसास हमें  ८ दिसंबर को ही हो पायेगा । तो इन्तजार कीजिये  दिल्ली के विधान सभा  चुनावो के परिणामो का  ...

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