Wednesday 15 July 2015

आईपीएल के तमाशे की कलंक कथा



7 बरस पहले ट्वेन्टी ट्वेन्टी विश्व कप के फाईनल मैच में पाक खिलाडी मिसबाह- उल –हक के शॉट पर श्रीसंत ने कैच पकड़कर न केवल भारत को टी 20 का सरताज बनाया बल्कि 1983  की सुनहरी यादो को भी पीछे छोड़ दिया जब पहली बार कपिल देव की अगुवाई में भारतीय क्रिकेट टीम ने विश्व कप जीतने का ककहरा सीखा था |  टी ट्वेंटी  विश्व कप जीतकर पाकिस्तान सरीखे चिर प्रतिद्वंदी को हराने के बाद भारत ने टी ट्वेन्टी में  भी अपनी सफलता के नए झंडे गाड़ दिये जिसके बाद भारत में ट्वेन्टी ट्वेन्टी का बुखार  परवान चढ़ने लगा | कैरी पैकर की तर्ज पर जब सुभाष चंद्रा ने आई सी एल चलाई तो उसकी बादशाहत को चुनौती देने के लिए ललित मोदी ने आई पी एल का दाव खेला | कॉर्पोरेट , मनोरंजन के तडके ,बी सी सी आई ने जब उसे आई पी एल लीग में तब्दील कर दिया तो क्रिकेट की मंडी में खिलाडियों की बोलियां लगने लगी जिससे क्रिकेटरों की खूब कमाई हुई | क्रिकेटर बाजार में घोड़े की  तरह नीलम होने लगे |  साथ ही चीयर लीडरो के ग्लैमर और रेव पार्टियों ने पहली बार क्रिकेट को उस तमाशे में तब्दील कर मनोरंजन के तडके में परदे पर ऐसे पेश किया कि दर्शकों की भारी भीड़ अपने अपने सितारों को देखने उमड़ने लगी |  लेकिन किसे पता था पाक के साथ खेले गए टी ट्वेन्टी फाईनल मैच में जों श्रीसंत हीरो बन गया वही हीरो एक दिन स्पॉट फिक्सिंग की जद में आ जायेगा और इसके बाद तो अंकित च्वहाण, और  चंदीला को  फिक्सिंग में गिरफ्तार कर लिया गया और आई पी एल के तमाशे की परतें जिस  खुलती चली गई  उसने  मयप्पन से लेकर कुंद्रा पर धोखाधड़ी , जालसाजी के  आरोपों की बौछार  ही कर डाली जिसके बाद आई पी एल की संचालन परिषद ने  दोनों के खिलाफ  3 सदस्यीय कमेटी  गठित की जिसने दोनों को क्लीन चिट दे दी लेकिन दिल्ली पुलिस इस बात पर  अड़ी  रही कि दोनों इसमें शामिल रहे ।   इसके बाद बिहार क्रिकेट एसोसिएशन ने बम्बई उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर की जिसने बी  सी  सी आई की सल्तनत पर सवाल उठाये और जब बोर्ड ने बम्बई  उच्च न्यायालय के खिलाफ अपील की तो  न्यायालय ने श्रीनिवासन से लेकर   बी  सी  सी आई और इंडिया  सीमेंट से लेकर राजस्थान रॉयल्स को अपने रडार पर लेने में देर नहीं लगाई । 201 3  में  अंकित  और श्रीसंत  प्रतिबन्ध लगा दिया गया लेकिन चंदीला पर फैसला सुरक्षित रखा । फिर उच्चतम न्यायालय ने  3  सदस्यीय  कमेटी जस्टिस   मुद्गल के नेतृत्व में गठित की जिसने मयप्पन और कुंद्रा  गलत कामो का भंडाफोड़ कर दिया और संयोग देखिये  सितारों से भरी पड़ी चेन्नई सुपर किंग्स और राजस्थान रॉयल्स को दो साल के लिए  आई पी एल  रास्ता दिखा दिया गया । मयप्पन और  कुंद्रा  पर खेल को बदनाम करने के चलते आजीवन निलंबित कर दिया गया जिसने एक बार फिर मैच फिक्सिंग और सट्टेबाजी को फिर से हवा देने का काम किया है |        


 आई पी एल को लेकर आये हलिया फैसले ने मनोरंजन के नाम पर चल रहे खेल के गोरखधंधे को सबके सामने उजागर कर दिया है | दरअसल इस दौर में सट्टेबाजी कई खेलों में हावी रही है | जयादा समय नहीं बीता जब फीफा के दामन पर भी भ्रष्टाचार की ऐसी कालिख पुती कि विश्व के सबसे बड़े दर्शक वर्ग को खींचने वाले फ़ुटबाल के  खेल प्रेमी तक सन्न  रह गए | वहीँ 2000 के आसपास हेंसी क्रोनिये विवाद के साथ ही कई भारतीय खिलाडियों के नाम आने की खबरों ने इस खेल की साख को गर्त में ले जाने का काम किया | इसके बाद शारजाह तो सटोरियों की पनाहगाह बन गया  और जब से फटाफट क्रिकेट के नए संस्करण टी ट्वेंटी की शुरुवात हुई तब से यह लीग भ्रष्टाचार की गंगा बहा रही  है जहाँ फ्रेंचाईजी से लेकर बोर्ड के सदस्य करोडो के वारेन्यारे करने में लगे रहे जिसकी शुरुवात तो ललित मोदी के कार्यकाल से ही शुरू हो गई थी जब भ्रष्टाचार की कालिख पुतने के चलते उनको आई पी एल से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था  लेकिन  उनके जाने के बाद भी बोर्ड आँखों में पट्टी बांधे अपने खिलाडियों और मालिकों को बचाने में लगा रहा | अब श्रीनिवासन को ही देख लीजिये अपने दामाद मयप्पन को बचाने के लिए उन्होंने किस तरह कि तिकड़मो का सहारा नहीं लिया | अभी भी चेन्नई सुपर किंग्स और अपने दामाद को सजा सुनाये जाने के बाद वह ख़ामोशी की चादर ओढे बैठे हैं | ऐसे खेल के भी क्या मायने निकाले जाए जहाँ खिलाडियों की मंडी में बोलियाँ लगती हों और उनके खरीददार कारोबारियों से रिश्ते बनाकर सट्टेबाजी के आसरे इस खेल की साख को तार तार करने में लगे रहे | परत दर परत स्पॉट फिक्सिंग आई पी एल के मैचो में इस कदर हुई  कि सट्टेबाजी के तार अंडरवर्ल्ड  , बालीवुड और राजनेताओ के इर्द गिर्द तक जाते दिखाई दिए | मास्टर माईंड दाउद ने भी अपने भाई अनीश इब्राहीम की छत्रछाया में  कई गुर्गो के साथ मिलकर दुबई और कराची से सट्टेबाजो के जरिये खिलाडियों तक अपनी पहुँच बनाने में सफलता कायम की  |  आई पी एल कोई खेल नहीं रहा क्युकि विभिन्न जांचो में खिलाडियों के लैपटॉप में मिली कई लड़कियों की फोटो और मोबाइल नंबर इस बात की तस्दीक तो करते ही थे  कि किस तरह आई पी एल के नाम पर  स्पॉट फिक्सिंग के अलावा अय्याशी का खुला खेल खेला जा रहा था | स्पॉट फिक्सिंग का यह खुलासा क्रिकेट के नाम पर कलंक तो है ही साथ ही आई पी एल के आयोजन पर भी सवालिया निशान भी लगाता है क्युकि आई पी एल में काले धन का खुला खेल भी बड़े पैमाने पर हुआ  जिसमे खुले तौर पर करोडो के वारे न्यारे किये जा रहे थे |सवाल तो इस दौर में धोनी को लेकर भी है | बेशक वह भारत के सफलतम कप्तान जरुर रहे हैं लेकिन फिक्सिंग के मसले पर धोनी खुद और उनकी टीम को क्यों बचाने में लगे रहे ? वैसे क्रिकेट अनिश्चितताओं का खेल जरुर है लेकिन पिछले कुछ समय से सट्टेबाजी ने इस खेल की  महिमा तार तार कर दी है | आई पी एल मुनाफे के बड़े बाजार , मनोरंजन के अलावे सट्टा बाजार में गोते लगाकर फिक्सिंग के साये में भी घिरते जा रहा है | अगर ऐसी घटनाओ के बाद लोगो का क्रिकेट से भरोसा उठ रहा है तो यह लाजमी ही है क्युकि इस दौर में आई पी एल भारतीय फिक्सिंग लीग का बदनुमा दाग ढो रहा है जहाँ सब पहले से ही तय माना जा रहा था और शायद यही वजह है क्रिकेट खिलाडियों से भी लोगो का भरोसा उठता ही जा रहा था  और लोग यह मान रहे थे  हर बार का आई पी एल भी किन दो टीमों के बीच होगा यह सब फिक्स है |आई पी एल के हर  सीजन में सवा अरब की आबादी के मनोरंजन के नाम पर एक तरह से खिलवाड ही किया जा रहा था क्युकि स्पॉट फिक्सिंग की परतों के खुलने के बाद लोग अब यह सवाल पूछ रहे थे यह खेल नहीं तमाशा  है शायद तभी 2010 में संसद में 60 से ज्यादा सांसदों ने इस तमाशे को लेकर सवाल उठाये और इसे बंद करने की मांग कर डाली थी क्युकि खेल भावना को दरकिनार करते हुए इसमें थप्पड़ बाजी , हवाला , फ्रेंचायजी विवाद , रेव पार्टी और महिलाओ के साथ हो रही अश्लीलता आम बात बन गई थी लेकिन आज तक इस पर कोई कार्यवाही नहीं की गई क्युकि खेल के मैदान पर भी राजनेताओ की बिसात इस कदर बिछी है कि हर कोई एक दूसरे के लिए इसमें लंगडी मार  अपने अपने खेल संघों के आसरे खेल रहा है |

क्रिकेट में फिक्सिंग का यह पहला कोई मामला सामने नहीं आया है | 2000  में हेन्सी क्रोनिए और गिब्स  वाला दौर भी जेहन में बना है जब अजहर, प्रभाकर, जडेजा, मोगिया का नाम फिक्सिंग के दलदल में सीधे उछला था जिसके बाद इन सभी पर प्रतिबन्ध लगाए गए | शारजाह उस दौर में सटोरियों की शरणस्थली  बन गया था जिसके बाद वहाँ  पर मैच खेलने प्रतिबंधित कर दिये गए |  एक बार  लन्दन में पाक खिलाडियों का नाम भी फिक्सिंग के चलते बदनाम हुआ जिसके बाद उनकी टीम से छुट्टी कर दी गई लेकिन उसके बाद भी फिक्सिंग का दौर थमा नही | आई पी एल के एक  सीजन में तो  मोहनीश मिश्रा , टी पी ,अमित यादव , शलभ, अभिनव बाली को एक स्टिंग में पकड़ा गया जिसके बाद उन पर आई पीएल में एक साल का प्रतिबन्ध लगा दिया गया था | उसके बाद बी सी सी आई ने कहा भी था भविष्य में आई पी एल मैचो में अब फिक्सिंग नहीं हो पाएगी क्युकि अब बी सी सी आई ने एंटी करप्शन विंग बना दी है जो यह  सारे मामले पकड़ लेगी लेकिन हैरत की बात तो यह है हर बार होने वाले  आई पी एल  में क इस कमेटी को सांप सूंघ गया ?   खिलाडियों ने तो बकायदा नए नवेले तरीको से स्पॉट फिक्सिंग का ताना बाना बुना क्रिकेट में बुना  जिसमे तोलिये, लाकेट और कलाई की घडी से मुनाफे का भारी खेल चंद ओवेरो में खेला गया  |

दरअसल इस देश में क्रिकेट एक बड़े बजार का रूप ले चुका है | इसे बाजार का रूप देने में मीडिया की भी बड़ी भूमिका रही है | क्रिकेट खिलाडियों की छवि विज्ञापन जगत में ऐसे ब्रांड का रूप ले चुकी है जिसमे दिखने वाले ग्लैमर के बाद आम आदमी उस प्रोडक्ट की और खिंचा चला आता है | वहीँ इन क्रिकेट के खिलाडियों को क्रिकेट के अलावा विज्ञापनों से और आई पी एल से करोडो की कमाई साल दर साल हो रही है साथ ही अब तो बी सी सी आई ने खिलाडियों के कई ग्रेड भी निर्धारित किये हैं जिनके अनुरूप उनको रिटायरमेंट के बाद भी पैसो की बारिश हो रही है | शायद यही वजह है इस दौर में कॉर्परेट भी अब आई पी एल के तमाशे में अपना भविष्य सुनहरा देख रहा है जहाँ अम्बानी से लेकर नाईट राईडर्स शाहरुख , प्रीती जिंटा से लेकर विजय माल्या  सभी अपने अपने हित साधने में लगे हुए हैं | अकूत धन सम्पदा के चलते क्रिकेट अब सट्टेबाजी के लिए सबसे माकूल है |भारत में तो अब छोटे शहरों से लेकर बड़े शहरो तक क्रिकेट की आड में बड़े बड़े सट्टे नुक्कड़ चौराहों में खेले  जा रहे हैं लेकिन यह पहला मौका है जब आई  पी एल के उस आयोजन में जिसमे कारपोरेट ने अपना सब दाव पर लगाया है जहाँ  दाऊद   सीधे दुबई और कराची सरीखे शहरों में बैठकर अपना हित  सट्टेबाजो  के आसरे साध रहा है  वहीँ फटाफट क्रिकेट का यह आई पी एल संस्करण ज्यादा दर्शक वर्ग को जहां खीच रहा है वहीँ क्रिकेटर भी यह जान रहा है टीम इंडिया में जगह बनाना इस दौर में कितना मुश्किल है और सेलेक्टर किस तरह अपने अपने राज्यों के खिलाडियों को टीम में जगह देते हैं यह किसी से इस दौर में  छुपा नहीं है | ऐसे में खिलाडी कम समय में आई पी एल के जरिये पैसा कमाना चाहते हैं जहां वह दर्शकों से खिलवाड कर पैसे के तमाशे के नाम पर कुछ भी करने को तैयार खड़े दिखते हैं और आई पी एल की यह गाथा किसी कलंक कथा से कम तो इस समय नजर नहीं आती क्युकि कई सफेदपोश लोगो के नाम से पर्दा हटना अभी बाकी है जिसमे राजनेताओ के साथ कई क्रिकेटरों और हसीनाओ के चेहरे बेनकाब हो सकते हैं | अब समय आ गया है जब आई पी एल के साथ क्रिकेट की  सफाई के लिए ठोस  पहल शुरू हो |  

 जस्टिस मुद्गल कमिटी और लोढा कमेटी के फैसलों से यह आस तो बंधी ही है अब सट्टेबाजी में शामिल  बड़ी मछलियों के साथ छोटी मछलियाँ भी बाहर आएँगी जिससे निचले स्तर से क्रिकेट में भ्रष्टाचार की गंगा की सफाई की जा सकेगी | यदि सट्टेबाजी के धंधे को जल्द रोका नहीं गया तो आने वाले समय में यही फिक्सिंग क्रिकेट को निगल जाएगी और मयप्पन से लेकर राज कुंद्रा जैसे कई और व्यवसायी इसकी साख को गर्त में मिलाते जायेंगे |  वैसे क्रिकेट में सबसे जयादा पैसा भारतीय बोर्ड के पास है जो सबसे ज्यादा मैच साल भर में आयोजित करवाता है और इसके साथ सबसे अधिक दर्शकों का वर्ग जुडा हुआ है जिसमे बच्चो से लेकर बूढ़े लोग शामिल रहे हैं और स्टेडियम में हर मैच में टिकटों की भारी बिक्री भी इस बात की गवाही देने के लिए काफी है कि इस  खेल  ने समाज के हर वर्ग को ना केवल लुभाया  है बल्कि क्रिकेटरों को विज्ञापनों में करोड़ों के करार को भी दिलाया है जिसने लोगों के बीच उनकी पहचान किसी देवता से कम नहीं बनाई है शायद यही वजह है खेल प्रेमी खिलाडियों को भगवान से कम नहीं समझते हैं और हर मैच से पहले जीत के लिए अनुष्ठान तक हर शहर में आयोजित करते रहते हैं और अपने दैनिक क्रियाकलापों को छोड़कर मैच दर मैच टकटकी टेलीविजन स्क्रीन में लगाए रहते हैं | यह क्रिकेट की दीवानगी छोटे कस्बों से लेकर अब हर शहर में महसूस की जाने लगी है | क्रिकेट भले ही भारत के कई खेलों को निगल गया हो लेकिन खुद बी सी सी आई ने इसके नाम पर सबसे धनी महल खड़ा करने में देर नहीं लगाई है और तो और अब यही संस्था आर टी आई के दायरे में आने से ही अपने को इनकार कर दे तो मजबूरियों को समझा जा सकता है | सट्टेबाजी की दस्तक ने क्रिकेट का अंतर राष्ट्रीयकरण कर दिया है जहाँ हवाला के जरिये कई कारोबारी दुबई जैसे कई शहरों से पैसा लगाकर मुनाफा काने में लगे हुए हैं | क्रिकेट आज कई देशो को अपने साथ जोड़ चुका है लिहाजा सटोरियों की घुसपैठ को रोकना मुश्किल हो गया है | अब तो खिलाडियों को भी चाहिए कि वह खेल भावना से खेल खेलें और इस खेल की  पुरानी  गरिमा को वापस लाये |   

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