बीते बरस के आखिर में मोदी ने अपने रूस दौरे
से लौटते समय पाक की यात्रा कर पूरी दुनिया में भारत पाक के करीब आने
को लेकर जहाँ सुर्खियाँ बटोरी वहीँ किसे पता था कि इस 16 वे बरस की
शुरुवात में ही भारत पाक का करीब आना वहां के आतंकियों को रास नहीं आएगा ?
पठानकोट स्थित एयरफोर्स बेस पर हुए आतंकी हमले में शामिल सभी छह
आतंकवादियों को भले ही मार गिराया जा चुका हो लेकिन इसके बावजूद सात
जवानों को शहीद होने से नहीं बचाया जा सका । पठानकोट के बाद अब भारत पाक
दोस्ती में आतंक की ऐसी दीवार खड़ी हो गयी है जिसके बाद 15 जनवरी से होने
वाली विदेश सचिवों की बातचीत पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं ।
पठानकोट
की इस घटना के तार भी हमेशा की तरह पाक से जुड़ रहे हैं । यह लगभग साफ़ हो
चुका है कि गुरदासपुर की तरह पठानकोट में भी सुरक्षा और ख़ुफ़िया एजेंसियों
में तालमेल की भारी कमी दिखाई दी जिसके चलते इतनी बड़ी साजिश को जैश ए
मोहम्मद के आतंकियों ने अंजाम दिया । आतंकियों ने पाक के एयरबेस कैम्पों
में ना केवल ट्रेनिंग ली बल्कि पठानकोट के हर इलाके के बारे में जानकारी ली
। आतंकी हमला होने के कुछ घंटे पहले तक पाक से निर्देश भी लेते रहे जो पाक
के चेहरे को बेनकाब करने के लिए काफी है । लेकिन हमारी सरकार के लिए यह
हैरानी की बात है कि कुछ महीने पहले गुरदासपुर के पुलिस स्टेशन पर हमला
करने वाले आतंकी पंजाब और जम्मू-कश्मीर से सटी सीमा के जिस क्षेत्र से आए
थे पठानकोट हमले को अंजाम देने वाले आतंकियों ने भी उसी रास्ते को अगर
चुना है तो यह हमारी सुरक्षा व्यवस्था में बड़ी चूक की तरफ इशारा करता है।
रक्षा मंत्री मनोहर परिक्कर ने भी माना है कि पठानकोट एयरबेस में हुआ
हमला चिंता का विषय है । उन्होंने कहा कि कुछ कमियां हमें इस पूरे मामले
में नज़र आईं जिन्हें हम भविष्य में उन्हें दुरुस्त करेंगे जो कहीं न
कहीं हमारी गंभीर लापरवाही की तरफ इशारा करता है और यह बताता है कि
गुरदासपुर के हमलों से हमने कोई सबक नहीं लिया ।
मोदी
और शरीफ ने इस घटना के तुरंत बाद टेलीफ़ोन में बात कर घटनाक्रम पर अपनी
प्रतिक्रिया जारी भी की । पाक के प्रधानमंत्री नवाज ने तो इसके दोषियों के
खिलाफ कठोर कार्यवाही का भरोसा इस बार भी मोदी को दे दिया लेकिन बड़ा सवाल
यह है क्या शरीफ सरकार इस बार हमारे सबूतों के आधार पर कोई ठोस कार्यवाही
करेगी या वह भी उसी तरह का रवैया अपनाने से परहेज नहीं करेगी जो उन्होंने
2008 में मुंबई और बीते बरस गुरदासपुर हमले के बाद अपनाया था । भारत ने
इस हमले से संबंधित सुबूत पाकिस्तान को इस बार भी सौंपे हैं, लेकिन ऐसा तो
26/11 हमले को लेकर भी किया गया था और उसके बाद पाकिस्तान को 5 डोजियर भी
सौंपे गए थे लेकिन इन सब पर पाक ने कोई कार्यवाही नहीं की । इस बार पठानकोट
होने के चंद घंटों बाद पाक के विदेश मंत्रालय की प्रतिक्रिया संतुलित थी ।
विदेश मंत्रालय ने कहा पाक दक्षिण एशिया में भारत को आतंकवाद के समूल नाश
के लिए भारत का सहयोगी बनना चाहता है लेकिन सहसा इस बात पर यकीन करना थोड़ा
मुश्किल है क्युकि वहां पर नवाज की सत्ता तो कहने भर को लोकतान्त्रिक है
असल नियंत्रण तो सेना और आई एस आई का है जिसके बिना पत्ता भी नहीं हिलता ।
भारत
की तरफ से सचिव स्तर की वार्ता रद्द किए जाने के बाद सुषमा स्वराज की
यात्रा के बाद जब दोनों देशों के रिश्तों में जमी बर्फ कुछ पिघलने लगी और
पी एम मोदी ने 12 बरस के बाद पाक से दोस्ती का हाथ बढ़ाने की कोशिश की तो
आतंकियों को शायद यह बात नागवार गुजरी है जिसकी परिणति पठानकोट के एयरबेस
कैम्प में हमले के रूप में सामने आई है । अपनी करतूतों से पाकिस्तान में
ट्रेनिंग लेकर आतंकियों ने एक बार फिर अपना घिनौना चेहरा पूरी दुनिया के
सामने उजागर कर दिया है । अपनी बर्बर कार्यवाही से आतंकी फिर से कश्मीर
को लेकर एक नई किस्सागोई करने में लगे हुए हैं क्युकि पाकिस्तान के अन्दर
नवाज शरीफ सरकार के सामने जैसा संकट अभी खड़ा है उससे उनका बाहर निकलना
मुश्किल दिख रहा है और कश्मीर को ढाल बनाकर पाकिस्तान एक बार फिर अपना बरसो
पुराना वही राग अलाप रहा है जिसमे कश्मीर को केंद्र में लाकर हमेशा से नई
परिस्थिति सामने लायी जाती रही है । सीमा पार पर अपनी बर्बर कार्यवाही
से जहाँ पाक में बैठे आतंकी कश्मीर को लेकर किसी तरह की सौदेबाजी करने के
मूड में नहीं दिखाई देते वहीँ कश्मीर को केंद्र में रखकर पाक सरकार भारत
से बातचीत का राग हर दफे दोहराती रही है लेकिन बीते दिनों मोदी ने जिस
तरीके से बरसों से विदेश सचिवो की बातचीत शुरू करने की दिशा में मजबूती से
कम्पोजिट डायलॉग प्रोसेस को आगे बढ़ाया उसने पहली बार इन सवालों को भी
खड़ा किया है क्या मोदी पहली बार नेहरु की नीतियों के आगे बेबस ना होते हुए
खुद अपनी बनाई नीतियों तले पूरी दुनिया के सामने पाकिस्तान को हुर्रियत की
छतरी से इतर आमने सामने लाने में सफल होते दिख रहे हैं ।
बातचीत
शुरू होने की प्रक्रिया के बीच पठानकोट हमला दोनों देशों के द्विपक्षीय
संबंधों के लिए बहुत अनुकूल नहीं हैं। सत्ता में आने से पहले प्रधानमंत्री
नरेन्द्र मोदी ने भावी वार्ता के लिए कहा था किसी भी सार्थक द्विपक्षीय
वार्ता के लिए आवश्यक रूप से एक ऐसा माहौल जरूरी है जो आतंकवाद एवं हिंसा
से मुक्त हो लेकिन पठानकोट के हालिया हमले से ऐसा माहौल पैदा हो रहा है जो
दोनो देशों के बीच संबंधों के लिए बहुत सहायक नहीं रहने वाला | मोदी सरकार
के दौर में पाकिस्तान द्वारा संघर्षविराम का कई बार उल्लंघन किया गया। इस
दौरान कई बेक़सूर लोग मारे गये और कई जवानों सहित लोग घायल हो गये
लेकिन इसके बाद भी सरकार इस उधेड़बुन में उलझी ही रही की पाक से क्या बातचीत
को आगे बढ़ाया जाए ?
पठानकोट
अब देश के सामने बड़ा सवाल है । अब पाक के साथ किस मुह से हम दोस्ती का
हाथ बढ़ाये ? पकिस्तान के साथ दोस्ती का आधार क्या हो वह भी तब जब वह लगातार
भारत की पीठ पर छुरा भौंकते हुए लगातार विश्वासघात ही करता जा रहा है ।
भारतीय नीति नियंताओ से अब हमारा सीधा सवाल है कि अब समय आ गया है जब
पाकिस्तान को कूटनीति के मोर्चे पर मौत दी जाए । मोदी सरकार पाकिस्तान की
लोकतांत्रिक सरकार और वहां के सैन्य तंत्र को दो अलग सत्ता केंद्र के रूप
में बेनकाब करने में सफल होती है तो यह इस जनतांत्रिक सरकार की बड़ी
कामयाबी होगी । पठानकोट का सबसे बड़ा सबक यह है कि सुरक्षा में लगी तमाम
एजेंसियों के बीच समन्वय को पुख्ता किया जाए और ऐसे मामलों में किसी तरह की
लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जानी चाहिए। इसमे पंजाब सरकार भी अपनी जवाबदेही
से नहीं बच सकती क्योंकि आतंकियों ने हमले के लिए जगह को चुना वह पंजाब
से सटा है और पाकिस्तान की सीमा से लगने के कारण यह मानना सही नहीं होगा
कि भविष्य में इस तरह के हमलों की पुनरावृत्ति नहीं होगी ।
असल में कारगिल के दौर में भी पाक ने भारत के साथ गलत सलूक किया था
। हमारे प्रधानमंत्री वाजपेयी रिश्तो में गर्मजोशी लाने लाहौर बस से गए
लेकिन नवाज शरीफ को अँधेरे में रखकर मिया मुशर्रफ कारगिल की पटकथा
तैयार करने में लगे रहे । इस काम में उनको पाक की सेना का पूरा सहयोग मिला
था । इस बार की कहानी भी पिछले बार से जुदा नहीं है । नवाज के दौर में भी
आई एस आई पाकिस्तान के आंतरिक और बाह्य मामलो में अपना सिक्का दिनों दिन
मजबूत कर रही है | पाकिस्तान में यह सच शायद ही छुपा है कि आई एस आई के
बिना पाकिस्तान में पत्ता भी नहीं खड़कता और सेना भारत के साथ रिश्तो को
सुधारने के बजाए बिगाड़ना ही चाहती है । अंतर्राष्ट्रीय जानकारों का मानना
है भारत विरोधी गतिविधियों में अक्सर आतंकियों को पाक के सैनिको को
पूरा समर्थन मिलता रहा है । पाक में सरकार तो नाम मात्र की है वहां पर
चलती सेना की ही है और बिना सेना के वहां पर पत्ता भी नहीं हिला हिलता ।
कट्टरपंथियों
की बड़ी जमात वहां ऐसी है जो भारत के साथ सम्बन्ध सुधरते नहीं देखना चाहती
है । ऐसी सूरत में अगर हम बार बार उससे दोस्ती का राग छेड़ते है तो यह
हजम नहीं होता क्युकि छलावे के सिवा यह कुछ भी नहीं है । ऐसे में मोदी
सरकार द्वारा पाक से बातचीत शुरू करने की पहेली काम से काम पठानकोट के बाद
तो किसी के गले नहीं उतर रही । आखिर कब तक हम पाक के साथ दोस्ती का हाथ
बढ़ाते रहेगे और बातचीत से मेल मिलाप बढ़ायेंगे जबकि हर मोर्चे पर वह हमको
धोखा ही धोखा देता आया है । इस घटना के बाद हमारे नीतिनियंताओ को यह सोचना
पड़ेगा अविश्वास की खाई में दोनों मुल्को की दोस्ती में दरार पडनी तय है ।
अतः अब समय आ गया है जब हम पाक के साथ इजराइल सरीखी आक्रामक रणनीति के साथ
काम करें ताकि पाक के चेहरे को पूरी दुनिया में बेनकाब किया जा सके ।
मुंबई में 26/11 के हमलो में भी पाक की संलिप्तता पूरी दुनिया के सामने
ना केवल उजागर हुई थी बल्कि पकडे गए आतंकी कसाब ने यह खुलासा भी किया
हमलो की साजिश पाकिस्तान में रची गई जिसका मास्टर माइंड हाफिज मोहम्मद सईद
था । हमने मुंबई हमलो के पर्याप्त सबूत पाक को ना केवल सौंपे बल्कि 5
डोजियर सौंपे लेकिन आज तक वह इनके दोषियों पर कोई कार्यवाही नहीं कर पाया है ।
आतंक का सबसे बड़ा मास्टर माईंड हाफिज पाकिस्तान में खुला घूम रहा है और
भारत के खिलाफ लोगो को जेहाद छेड़ने के लए उकसा भी रहा है लेकिन आज तक हम
पाक को हाफिज के मसले पर ढील ही देते रहे हैं यही कारण है वहां की सरकार
उसे पकड़ने में नाकामयाब रही है । 2001 में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर में हमले
के बाद उसके जमात उद दावा ने कश्मीर के ट्रेंनिग कैम्पों में घुसकर युवको
को जेहाद के लिए प्रेरित किया । अमेरिका द्वारा उसके संगठन को
प्रतिबंधित घोषित करने और उस पर करोडो डालर के इनाम रखे जाने के बाद भी
पाकिस्तान सरकार ने उसे कुछ दिन लाहौर की जेल में पकड़कर रखा और जमानत पर
रिहा कर दिया । आज पाकिस्तान उसके पाक में होने को सिरे से नकारता रहा
है जबकि असलियत यह है पुंछ में हाफिज की संलिप्तता कई बार उजागर भी हुई
है । पाकिस्तान के कब्जे वाले पी ओ के में हाफिज का जबरदस्त प्रभाव है जो
अभी पाकिस्तान के कट्टरपंथियों के साथ भारत में घुसपैठ बढाने की बड़ी
कार्ययोजना को तैयार भी कर रहा है ।
भारतीय
गृह मंत्रालय भी अब सीमा पार हो रही गोलाबारी को लेकर चिंतित ही नहीं
चौकन्ना हो गया है शायद यही वजह थी मोदी ने अपनी विदेश नीति को लेकर पहली
बार नई लकीर यह कहते हुए खींची कि घुसपैठ और गोलाबारी के बीच दोनों देशो के
बीच बातचीत नहीं हो सकती साथ ही उन्होंने किसी तीसरे पक्ष के साथ
मध्यस्थता से भी साफ़ इनकार कर दिया जिसको मोदी की बड़ी कूटनीति माना जा सकता
है लेकिन एक बार फिर पाकिस्तान के साथ दोस्ती बातचीत के अंदाज में शुरू
करने की प्रक्रिया जब परवान चढाने की कोशिशे की जा रही थी तब पठानकोट के
हमले ने साबित कर दिया है आतंकवाद से लड़ने के पाक के दावे महज खोखले ही
साबित हुए हैं । अब ऐसे हालातो में पाक हमसे बेहतर सम्बन्ध कैसे बना सकता
है ?
26
/ 11 के हमलो के बाद भारत ने जहाँ कहा था जब तक 26 /11 के दोषियों पर पाक
कार्यवाही नहीं करेगा तब तक हम उससे कोई बात नहीं करेंगे लेकिन आज तक
उसके द्वारा दोषियों पर कोई कार्यवाही ना किये जाने के बाद भी हम 200
बिलियन व्यापार , वीजा नियमो में ढील , क्रिकेट और विदेश सचिवो के आसरे
अगर इस दौर में निकटता बढाने कि सोच रहे हैं तो यह हमारी लुंज पुंज विदेश
नीति वाले रवैये को उजागर करता है । एक बार भारत दौरे पर आये रहमान मालिक
से जब 26 /11 के बारे में हमने पूछा तो उन्होंने कहा इवाइडेंस और आरोपों
में भेद होता है । अगर भारत सबूत पेश करता है तो पाक 26/11 के दोषियों को
सजा देगा । लेकिन यह कैसा सफ़ेद झूठ है । भारत तो पहले ही पाक को सभी सबूत
पेश कर चुका है लेकिन पाक उस पर कोई कार्यवाही क्यों नहीं करता ? अब
तो हर घटना में अपना हाथ होने से इनकार करना और दोषियों पर कार्यवाही का
झुनझुना थमाना पाक का शगल ही बन गया है । लाइन ऑफ़ कंट्रोल पर युद्ध विराम
तो नाम मात्र का है इसके बावजूद भी उस पूरे इलाके में सैनिको के बीच अकसर
तनाव देखा जा सकता है और फायरिंग की घटनाएं आये दिन होती रहती हैं ।
भारतीय सेना में घुसपैठ की कार्यवाहियां अब पाक की सेना ही कर रही है
क्युकि पाक का पूरा ध्यान अपने अंदरूनी झगडो और तालिबान में लगा रहा है
। उसे लगता है अगर ऐसा ही जारी रहा तो आने वाले दिनों में कश्मीर उसके हाथ
से निकल जायेगा । अतः ऐसे हालातो में वह अब जैश ऐ मोहम्मद, लश्कर और
हिजबुल मुजाहिदीन जैसे संगठनो को पी ओ के में भारत के खिलाफ एक बड़ी जंग
लड़ने के लिए उकसा रहा है जिसमे कई कट्टरपंथी संगठन उसे मदद कर रहे हैं ।
पाक की राजनीती का असल सच किसी से छुपा नहीं है । वहां पर सेना
कट्टरपंथियों का हाथ की कठपुतली ही रही है । नवाज सरकार तो नाम मात्र की
लोकत्रांत्रिक है असल नियंत्रण तो सेना का हर जगह है । पाक इस बार यह
महसूस कर रहा है अगर समय रहते उसने भारत के खिलाफ अपनी जंग शुरू नहीं की तो
कश्मीर का मुद्दा ठंडा पड जायेगा । अतः वह भारतीय सेना को अपने निशाने पर
लेकर कट्टरपंथियों की पुरानी लीक पर चल निकला है ।
कश्मीर
का राग पाक का पुराना राग है जो दोस्ती के रिश्तो में सबसे बड़ी दीवार है ।
ऐसे दौर में हमें पाक पर ज्यादा ध्यान देने की जरुरत है । हमारी सेना को
ज्यादा से ज्यादा अधिकार सीमा से सटे इलाको में मिलने चाहिए । सीमा पार
खराब हालातो के चलते अब भारत को पाक के साथ सख्ती से पेश आना चाहिए । उसे
किसी तरह की ढील नहीं मिलनी चाहिए । पाक हमारे धैर्य की परीक्षा ना ले अब
ऐसे बयान देकर काम नहीं चलने वाला क्युकि हाल के बरसों में सीमा पार की
गोलाबारी की घटनाओ ने हमारे सैनिकॊ के मनोबल को गिराने का काम किया है
। पाक के साथ भारत को अब किसी तरह की नरमी नहीं बरतनी चाहिए और कूटनीति के
जरिये अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उसके खिलाफ माहौल बनाना चाहिए साथ ही
अमेरिका सरीखे मुल्को से बात कर यह बताना चाहिए आतंक के असल सरगना
पकिस्तान में पल रहे हैं और आतंकवाद के नाम पर दी जाने वाली हर मदद का
इस्तेमाल पाक दहशतगर्दी फैलाने में कर रहा है । इस समय पाक को तकरीबन 3
अरब से ज्यादा की सालाना इमदाद अमेरिका के आसरे मिल रही है जिससे पाक की
माली हालत कुछ सुधरी है अन्यथा वहां की अर्थव्यवस्था तो पटरी से उतर चुकी
है । आर्थिक विकास दर जहाँ लगातार घट रही है वहीँ आतंक के माहौल के चलते
कोई नया निवेश नहीं हो पा रहा है । घरेलू गैस से लेकर तेल की बड़ी कीमतों ने
संकट बढाया है | अगर पाक को विदेशो से मिलने वाली मदद इस दौर में बंद
हो जाए तो उसका दीवाला निकल जायेगा । ऐसी सूरत में कट्टरपंथियों के हौंसले
भी पस्त हो जायेंगे । तब भारत पी ओ के में चल रहे आतंकी शिविरों को अपना
निशाना बना सकता है । माकूल कार्यवाही के लिए यही समय बेहतर होगा । अब
समय आ गया है जब पाक के खिलाफ भारत बातचीत के विकल्पों से इतर कोई बड़ी
कार्यवाही की रणनीति अख्तियार करे क्युकि एक के बाद एक झूठ बोलकर पाक
हमें धोखा दे रहा है और कश्मीर के मसले के अन्तरराष्ट्रीयकरण के पक्ष में
खड़ा है ।
आज
तक हमने पाक के हर हमले का जवाब बयानबाजी से ही दिया है । भारत सरकार
धैर्य , संयम की दुहाई देकर हर बार लोगो के सामने सम्बन्ध सुधारने की बात
दोहराती रहती है । इसी नरम रुख से पाक का दुस्साहस इस कदर बढ गया है कभी
वह हमारे जवानो के शव धड से अलग कर अंतरराष्ट्रीय नियमो का उल्लंघन करता
है तो कभी गुरदासपुर और पठानकोट के जरिये हमारे मनोबल को गिराने की कोशिश
करता है । यह साफ़ है कि गुरदासपुर और पठानकोट जैसे हमलों को बिना सघन
तैयारी के अंजाम नहीं दिया जा सकता । चूँकि इन दोनों हमलों पर भारतीय सेना
को सीधा निशाना बनाया गया जिससे यह बात तो साफ़ हो चुकी है इन हमलों का सीधा
मकसद भारतीय सैन्य ताकत को सीधी चुनौती देना था ।
यह
दौर नमो सरकार के लिए भी असली परीक्षा का है क्युकि उसी की नीतियां अब
पाक के साथ भारत के भविष्य को ने केवल तय कर सकती है बल्कि अंतरराष्ट्रीय
मोर्चे पर यह मामला उसकी कूटनीति के आसरे दुनिया तक पहुच सकती है । |
प्रचंड जनादेश हासिल कर मोदी गदगद हैं | वह पूरी दुनिया घूमकर भारत के
अनुकूल नीतियों को बनाने में लगे हैं | उनकी विदेश नीति पर इस बार पूरी
दुनिया की नजर है | ऐसे में पाकिस्तान को लेकर अब पठानकोट के बाद उनकी
नीतियों पर सबकी नजर है । अब देखना होगा भारत सरकार कश्मीर को लेकर
अपना क्या रुख आने वाले दिनों में अपनाएगी ताकि सांप भी मर जाए और लाठी भी
ना टूटे ?
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