लालू प्रसाद यादव का नाम जेहन में आते ही बिहार को लेकर एक अलग तरह की छवि बनती है | सामाजिक न्याय और पिछड़ों के मसीहा कहलाने वाले लालू प्रसाद को अलहदा पहचान जे पी छाँव तले मिली जब नीतीश , जॉर्ज , सुशील मोदी , शरद यादव , रविशंकर प्रसाद सरीखे नेताओं के साथ आपातकाल में उन्होंने बड़ी भूमिका निभाई | जेपी आंदोलन के बाद लालू की राजनीति ऐसे उफान पर रही जिसने मंडल कमंडल दौर में उनको बिहार का सरताज बना डाला | यह सच भी शायद किसी से छिपा हो उनके और राबड़ी देवी के कार्यकाल में बिहार सबसे बुरे दौर में कई बरस पीछे चला गया | माफिया गुंडों की लालू प्रसाद के दौर में जहाँ तूती बोलती थी वही अपहरण , रंगदारी , लूटपाट , गुंडागर्दी , रेप की घटनाएं उस समय आम बात थी | कानून व्यवस्था लुंज पुंज थी | पुलिस के पास आप अगर प्राथमिक रिपोर्ट दर्ज करवाने जाते थे तो रजिस्टर में वह दर्ज भी नहीं हो पाती थी | अपने कार्यकाल में उन्होंने जहाँ करोड़ों के वारे न्यारे किये वहीँ उन्होंने कानून व्यवस्था को तार तार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी | बिहार उनके समय से ही पलायन का दंश झेल रहा है | उस दौर में लालू के खिलाफ जब घोटालों का जिन्न आता है तो जेहन में सबसे पहले चारा घोटाले का जिक्र होता है जिसने 90 के दशक में लालू को चर्चित कर दिया | लालू प्रसाद की राजनीती उस राजनीति की देन है जिसे बतौर प्रधानमंत्री वी पी ने हवा दी और मंडल कमीशन को देश भर में लागू कर दिया गया। पिछड़ी राजनीति का यह तोहफा लालू प्रसाद को बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में मिला। यही नहीं आडवाणी के रथ को रोक और उन्हें गिरफ्तार कर लालू प्रसाद ने अपनी सांप्रदायिकता विरोधी छवि को देश में जरूर मजबूत किया। उस दौर की शासन व्यवस्था का जिक्र करें तो उनका कार्यकाल बिहार के लिए सबसे बुरे दौर के रूप में जाना जाता है जिसने लालूराज को जंगलराज से जोड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी |
गोपालगंज में एक यादव परिवार में जन्मे लालू यादव ने राजनीती का ककहरा जेपी आंदोलन से सीखा । उस दौर को याद करें तो रैली के दौरान ही जब जेपी पर लाठियां बरसाई जाने लगीं तो लालू उन्हें बचाने के लिए उनकी पीठ पर लेट गए। कहा जाता है कि उनकी इस सूझ बूझ को देखते हुए उन्हें पहली बार लोकसभा का टिकट थमा दिया गया लेकिन लालू यादव का असल राजनीतिक सफर आपातकाल के बाद से शुरू हुआ जब वह पहली बार बिहार के छपरा से सांसद बने।बिहार के मुख्यमंत्री रहने के बाद वह केंद्र सरकार में रेल मंत्री भी बनें। बिहार में लालू जब सत्ता में थे तब साधु, सुभाष, राबड़ी और लालू (ससुराल) के इर्द-गिर्द ही सत्ता घूमती थी। ठेठ गवई, चुटीली राजनीति करने वाले लालू प्रसाद ने उस दौर में एक नई परंपरा गढ़ी जब बिहार का नाम देश दुनिया में घोटालों ने ख़राब कर दिया | 1996 में जब चारा घोटाला सामने आया था तो मीडिया ने इसे खूब लपका | देश के किसे कोने में ऐसा पहली बार हुआ जब जानवरों के चारे तक में घोटाले की बात सामने आई | तब इसे लेकर लालू पर खूब चुटकुले भी बने | लालू पर 90 के दशक में मौजूदा झारखंड की चाईबासा ट्रेजरी से लाखों रुपए निकालने का केस चल रहा था। तब चाईबासा बिहार में ही हुआ करता था। लालू यादव पर चाईबासा ट्रेजरी से पैसा निकालकर पशुपालन विभाग में ट्रांसफर कराने का केस था। पूरा चारा घोटाला करीब 950 करोड़ रुपए का था जिसमें ये केस तकरीबन 38 करोड़ रुपए की अवैध निकासी का था। अविभाजित बिहार में जगन्नाथ मिश्र से लेकर लालू यादव के सीएम रहने के दौरान फर्जी बिल के जरिए पशुओं को चारा खिलाने के नाम पर निकाला गया था। चारा घोटाले के चाईबासा ट्रेजरी केस में लालू यादव के साथ जगन्नाथ मिश्र को भी दोषी पाया गया।
1997 में लालू के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल होने के बाद जब उन्हें सी एम पद छोड़ना पड़ा तो वह अपनी पत्नी राबड़ी को सिंहासन सौंप जेल चले गए और इसी दौर में आय से अधिक संपत्ति का भी मामला उनके खिलाफ दर्ज हो चुका था | लालू को कुछ दिनों बाद बेल मिली | लेकिन 2000 में आय से अधिक संपत्ति के मामले में लालू और राबड़ी को कोर्ट में सरेंडर करना पड़ा जहाँ राबड़ी को तो बेल मिल गई लेकिन लालू फिर जेल गए | 2006 में आय से अधिक संपत्ति के मामले में वह और राबड़ी बरी हो गए | 2013 में लालू में रांची की सीबीआई कोर्ट ने लालू सहित 44 लोगों को सजा सुनाई | इसके साथ ही लालू को लोकसभा की सदस्यता छोड़नी पड़ी थी | वह जेल भी गए और सशर्त जमानत पर बाहर भी आ गए | | 2 बरस पूर्व बिहार चुनावों के समय यह कहा गया लालू यादव की भावी राजनीति की मियाद पूरी हो गई , लेकिन सत्ता और चुनाव लड़ने से उनके दूर होने के बाद भी वह बिहार में सबसे अधिक सीट लेकर आये और नीतीश का राजतिलक करवाया लेकिन कल सुप्रीम कोर्ट ने ने 21 बरस पुराने 950 करोड़ के चारा घोटाले के सभी चार मामलों में लालू प्रसाद यादव पर अलग-अलग मुकदमे चलाने के निर्देश दिए साथ ही जगन्नाथ मिश्र और तत्कालीन ब्यूरोक्रेट सजल चक्रवर्ती पर भी साथ-साथ केस चलाने का ऐलान करके मुश्किलों को बढ़ा दिया | यह वही मामला है, जिसमें 2014 में झारखंड उच्च न्यायालय ने यह कहकर रोक लगा दी थी कि एक ही मामले में एक ही व्यक्ति पर समान गवाहों के साथ अलग-अलग केस नहीं चल सकता। अदालत ने इस मामले में सारी कार्रवाई तय समय-सीमा में पूरी करने की शर्त भी रखी है। वैसे अगर देखें तो लालू प्रसाद की राजनीति पर तब तक कोई खास असर पड़ता नहीं दिखाई देता, जब तक कि वह इन या ऐसे मामलों में सजा पाकर पूरी तरह जेल न चले जाएं। लेकिन फिलहाल सच यही है कि उनकी पार्टी की कई मुश्किलों में इस फैसले ने इजाफा कर दिया है। पिछले कुछ दिनों से दोनों मंत्री पुत्रों सहित लालू यादव खुद भी मिट्टी घोटाले के ताजा जिन्न और अभी-अभी आए कथित लालू-शहाबुद्दीन टेलीफोन वार्ता से विपक्ष के निशाने पर हैं। ताजा फैसला इन हमलों को और धार देगा। राजनीतिक उठापटक बढ़ेगी । यह भी तय है कि फैसला लालू प्रसाद की राजनीति से ज्यादा बिहार के महागठबंधन की राजनीति पर असर डालेगा और यही असल में देखने की बात होगी। कहना न होगा कि हाल में लगे आरोपों के बाद जिस तरह की बातें सामने आईं, जिस तरह महागठबंधन के बड़े साथी लालू प्रसाद के बचाव की बजाय जद-यू अपनी छवि को लेकर सतर्क दिखा है उसने भी भविष्य के संकेत दिए हैं। यह फैसला खुलासे के 21 साल बाद आया है और सुप्रीम कोर्ट का साफ कहना है चार अलग-अलग मामलों में मुकदमा चलेगा, फिर सजा का एलान होगा। अदालत ने सुनवाई की समय-सीमा भी तय कर दी है। आने वाले दिनों में अब लालू के सामने भारी संकट खड़ा हो गया है | इस फैसले से 48 घंटे पहले अर्णव गोस्वामी के रिपब्लिक चैनल पर आये आडियो टेप ने तहलका मचा दिया जहाँ लालू जेल में शाहबुद्दीन से बात करते नजर आ रहे थे | इस टेप ने बिहार के सत्ता गलियारों में लालू की हनक और नीतीश के लाचार सी एम के सच को दिखाने का काम किया है जिसके बाद जे डी यू और राजद को ना उगलते बन रहा है ना निगलते | रही सही कसर अब सुप्रीम कोर्ट के निर्णय ने बढ़ा दी है |
बिहार में सत्ताधारी जदयू को डर है कि लालू प्रसाद का करियर अगर समाप्त हुआ तो नीतीश की साफ़ सुथरी छवि पर भी ग्रहण लगना तय है | वहीँ लालू प्रसाद जानते हैं कि दोनों बेटों को वारिस बनाकर उनकी पार्टी एक नई शुरुवात की तरह बढ़ रही थी लेकिन उनके खिलाफ चार केसों पर अगर बड़ा फैसला आ जाता है और अलग अलग सजा हुई तो उनको अपने वोट बैंक से हाथ गंवाना पड़ सकता है | साथ ही नीतीश कुमार भी उनसे दूरी बना सकते हैं | लालू के बिना राजद में सब सून सून होने का अंदेशा भी बन रहा है | अब इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के ताजा रुख को देखते हुए लालू यादव और अन्य अभियुक्तों को निर्दोष करार दिए जाने की संभावना नहीं के बराबर बन रही है | देखना होगा लालू प्रसाद इस मुश्किल से कैसे बाहर आते हैं जहाँ उनकी साख एक बार फिर सवालों के घेरे में है तो दूसरी तरफ राज़द के बिखरने का अंदेशा भी नजर आ रहा है | क्या राजनीती की बिसात पर अबकी बार हिटविकेट होंगे लालू प्रसाद ? फिलहाल इस सवाल के जवाब के लिए कुछ महीने और इन्तजार करना पड़ेगा |
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