Friday 11 February 2022

राष्ट्रीय ध्वज के जनक पिंगली वैंकैया


 

अंग्रेजों की गुलामी से आज़ाद होने के लिए असंख्य लोगों ने अपना बलिदान दिया । उनमें से अनेक लोगों को आज हम विस्मृत कर चुके हैं । देश की आन , बान और शान तिरंगा किस तरह वजूद में आया ये भी आज शायद गिने  चुने लोगों को याद होगा ।


 तिरंगे झंडे का जब भी जिक्र आएगा तो पिंगली वैंकैया के नाम का नाम स्मरण किए बिना शायद वो अधूरा रहे । भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की एक बैठक 1921 में विजयवाड़ा में हुई तो उसमें महात्मा गांधी जी ने पिंगली वैंकैया द्वारा तैयार किए गए राष्ट्रीय ध्वज के चित्रों की जानकारी दी । इसी बैठक में पिंगली द्वारा बनाए गए राष्ट्रीय ध्वज की डिजाइन को महात्मा गांधी ने मान्यता दी ।

 राष्ट्रीय ध्वज की डिजाइन तैयार करने वाले पिंगली का जन्म आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले की दीवी तहसील के भताला पेनमरु गाँव में 2 अगस्त 1878 को हुआ था । प्रारम्भिक शिक्षा भटाला पेनमरु एवं मछलीपट्टनम से प्राप्त करने के बाद 19 वर्ष की उम्र में वो मुंबई चले गए । वहाँ जाकर उन्होनें सेना में नौकरी कर ली जहां से उनको दक्षिण अफ्रीका भेज दिया गया । 1899 से 1902 के बीच उन्होनें अफ्रीका के बायर युद्ध में भाग दिया वहीं पर उनकी मुलाक़ात महात्मा गांधी जी से हुई और वे उनके विचारों से बहुत अधिक प्रभावित हुए । स्वदेश वापस लौटने पर मुंबई में गार्ड की नौकरी में लग गए । इसी बीच मद्रास में प्लेग के चलते कई लोगों की मौत हो गई इससे उनका मन बहुत अधिक व्यथित हुआ और उन्होनें वह नौकरी छोड़ दी । वहाँ से मद्रास में प्लेग रोग उन्मूलन में इंस्पेक्टर के पद पर तैनात हो गए । पिंगली की संस्कृत, उर्दू और हिन्दी भाषा में अच्छी पकड़ थी । इसके साथ ही वो भू विज्ञान और कृषि के भी अच्छे जानकार थे। बात 1904 की है जब जापान ने रूस को हरा दिया । इस समाकर को सुनकर वो इतना प्रभावित हो गए कि उन्होनें जापानी भाषा सीख ली ।

उधर महात्मा गांधी का खेड़ा सत्याग्रह चल रहा था । इस आंदोलन ने पिंगली का मन बदल दिया । उसी दौरान उन्होनें अमरीका से कंबोडिया नामक कपास के बीज का आयात किया और इस बीज को भारत के कपास के बीज के साथ अंकुरित कर भारतीय संकरित कपास का बीज तैयार किया जिसे (उनके इस शोध कार्य के लिए ) बाद में वैंकैया कपास के नाम से भी जाना जाने लगा । उधर ब्रिटिश सरकार ने पिंगली वैंकैया को रायल एग्रीकल्चर  सोसायटी आफ लंदन के सदस्य के रूप में मनोनीत कर उनका गौरव बढ़ाया ।

1906 में भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस का अधिवेशन कलकत्ता में हुआ जिसकी अध्यक्षता दादा भाई नौराजी ने की थी । इस सम्मेलन में दादाजी ने पिंगली के कार्यों की सराहना की । बाद में उन्हें राष्ट्रीय काँग्रेस का सदस्य मनोनीत कर दिया गया । काँग्रेस के इस अधिवेशन में यूनियन जैक फहराया गया जिसे देखकर पिंगली वैंकैया का मन द्रवित हो उठा । उसी दिन से वे भारतीय राष्ट्रीय ध्वज की संरचना में लग गए । 1916 में उन्होनें ए नेशनल फ्लैग आफ़ इंडिया नामक पुस्तक प्रकाशित की जिसमें उन्होनें राष्ट्रीय ध्वज के 30 नमूने प्रकाशित किए थे । पाँच साल बाद भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की बैठक 1921 में विजयवाड़ा में हुई तो उसमें गांधी जी ने सभी को पिंगली के द्वारा तैयार राष्ट्रीय ध्वज के चित्रों की जानकारी दी । इसी बैठक में गांधी जी ने पिंगली के द्वारा बनाए गए राष्ट्रीय ध्वज को मान्यता दी । इस संदर्भ में महात्मा गांधी के ‘यंग इंडिया ’ में अपने संपादकीय में ‘अवर नेशनल फ़्लैग ’ शीर्षक से लिखा राष्ट्रीय ध्वज के लिए हमें बलिदान देने को तैयार रहना चाहिए । मछलीपट्टनम के आंध्र कालेज के पिंगली ने देश के झंडे के संदर्भ में एक पुस्तक भी प्रकाशित की जिसमें उन्होनें राष्ट्रीय ध्वज से संबन्धित अनेक चित्र प्रकाशित किए ।

गांधी जी ने अपने संपादकीय में आगे लिखा ‘जब मैं विजयवाड़ा के दौरे में था उस दौरान पिंगली ने मुझे हरे और लाल रंगों से बने  बिना चरखे वाले कई चित्र बनाकर दिये थे । हर झंडे की रूप रेखा पर उन्हें कम से कम 3 घंटे तो लगे ही थे । मैंने उन्हें एक झंडे के बीच में सफ़ेद रंग कि पट्टी डालने कि सलाह दी जिसका उद्देश्य था कि सफ़ेद रंग सत्य व अहिंसा का होता है । उन्होनें इसे तुरंत मान लिया’ । इसी के बाद पिंगली द्वारा तैयार किए गए झंडे का नाम झण्डा वैंकैया लोगों के बीच  लोकप्रिय हो गया । 4 जुलाई 1963 को पिंगली का निधन हो गया । भारतीय डाक विभाग ने 12 अगस्त 2009 को पूरे 46 बरस बीतने के बाद पिंगली पर 5 रू का डाक टिकट जारी किया ।



                   नई उम्मीदों के शिखर पर  टी -लॉजी स्टार्ट-अप





 


देश में जब भी चाय की चर्चा होती है तो आमतौर पर सड़क के किनारे ढाबों में मिलने वाली चाय, होटल या फिर घर की बात होती है। कभी किसी कंपनी का जिक्र लोगों की जुबान पर नहीं आता  लेकिन अब चाय के स्टार्ट अप भी धूम मचा रहे हैं। एक अच्छा विचार और सही नीति किसी भी व्यवसाय को परवान चढ़ा सकती है। मध्य प्रदेश के शाजापुर जिले के  अभयपुर गाँव के रहने वाले अजय पाटीदार और धाराखेड़ी के शुभम पाटीदार के जेहन में भी ऐसा ही विचार आया  जिसे उन्होंने एक स्टार्टअप का रूप देकर नए मुकाम पर  पहुंचा दिया।

 चाय आज भी अधिकतर भारतीयों के जीवन का हिस्सा है। सुबह की शुरुवात अगर बेहतर चाय की चुस्कियों के साथ हो जाए तो  पूरा दिन अच्छा निकल जाता है। इसी चाय को एक स्टार्ट अप का रूप देकर मध्य प्रदेश के प्रतिभाशाली युवा अजय पाटीदार और शुभम पाटीदार ने देश भर में  अपनी एक नई पहचान बनाई है। उनकी सफलता आज देश के युवाओं के लिए प्रेरणा का काम कर रही है। 

गांव के कुल्हड़ में चाय का स्वाद 

अजय कहते हैं उनको घूमने फिरने का खूब शौक है। एक बार  प्रवास के दौरान  एक गांव में कुल्हड़  चाय का स्वाद  लिया  जो उनके मन को भा गया। फिर  इंदौर में ठेले पर लोगों को चाय पीते देखा तो चाय पर ही  कुछ नया करने का मन बनाया। कुम्हारों  के हाथ से बने कुल्हड़  में जब उन्होंने घर पर चाय पी तो उसके स्वाद का अंदाज निराला लगा।  इस छोटे से विचार ने उनकी  जिंदगी को सही मायनों में बदलकर रख दिया। इसे देखकर  चाय को कुल्हड़ में पेश करते हुए वे इसे  लोगों के बीच पहुंचे ।

कुल्हड़ कैफे से टी लॉजी की शुरुआत

अजय और शुभम बताते हैं वे दोनों पढ़ाई करने के लिए जब इंदौर गए तो उन्हें पढ़ाई रास नहीं आई और  कुल्हड़ कैफे  शुरू करने की ठान ली। महज 3 साल के भीतर देश के 100 शहरों में अपने  आउटलेट खोलकर 85 करोड़  का टर्न ओवर हासिल  कर उन्होनें अपने सपनों को नए पंख लगाए हैं । इस काम में उन्हें दोस्तों का  भरपूर सहयोग मिला। आज  इन दोनों युवाओं का नाम सबकी जुबान पर चढ़ने लगा है क्योंकि  देश भर  में इनकी चाय की खुशबू  अपना रंग बिखेर रही है।
 
एक अकेले से ये रस्म अदा नहीं होती
दोस्ती की शुरुआत ही “दो” से होती है

 
संघर्ष से पाया मुकाम

 अजय और शुभम दोनों युवाओं को शाजापुर से स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के  बाद  एमबीए  की पढ़ाई  के लिए इंदौर जाना पड़ा। तब उन्हें दोनों ने कुल्हड़ के विचार को नया आयाम देने की ठानी लेकिन इसमें पूंजी जुटाने की सबसे बड़ी बाधा थी। साथ में पठन पाठन का खर्च जुटाने की बड़ी चुनौती उनके सामने थी। तब दोनों के लिए कालेज के दोस्तों ने मदद जुटाई। शुभम ने अपनी एमबीए  की पढ़ाई का खर्चा इसमें लगाया  वहीँ तो अजय की मदद के लिए भी दोस्तों ने एक पल में ही  हामी  भर दी।

2018 के शुरुआती दिनों में दोनों की दिनचर्या  संघर्षपूर्ण रही।दोस्तों की मदद से 5 लाख रुपए जुटाकर किसी तरह से कैफे का आईडिया नए आकार  का रूप  लेना शुरू  हुआ।  इन सबके बीच  उनके पास अपने  मकान के किराये को चुकाने के लिए भी रुपये नहीं थे लेकिन दोस्ती की खुषबू की महक उनके चाय के स्टार्ट अप पर नया रंग घोल रही थी।   अजय और शुभम के साथ  भी ऐसा ही हुआ। दोनों के पास दोस्तों की ऐसी  पूंजी थी जिसके बूते उन्होनें कुछ वर्षों में ही अपने व्यवसाय को  बाजार में स्थापित करने में सफलता हासिल कर ली। अलग अलग फ्लेवरों में परोसी गई उनकी चाय की मिठास ने अपने  दोस्तों का भी  दिल जीत लिया। 

दोस्त हौंसलों के दर्जी  होते हैं
वो मुफ्त में रफू कर देते हैं

 
इस दौरान उन्हें मकान किराया चुकाने के लिए भी दोस्तों से ही मदद लेना पड़ी, लेकिन   कैफे का स्वाद लोगों की जुबान पर ऐसा चढ़ा कि उनसे अन्य लोग जुड़ते चले गए और देखते ही देखते  देश भर में टी-लॉजी कैफे के माध्यम से अजय व शुभम ने 100  आउटलेट खोल दिए। 2018 से अब तक  इंदौर के साथ ग्वालियर, बंगलूरू ,  अहमदाबाद, गांधीनगर, वडोदरा, भोपाल , देहरादून ,  मसूरी , ऋषिकेश , पंजाब , हैदराबाद , दिल्ली , फरीदाबाद  जैसे कई शहरों में   कंपनी के 100 आउटलेट  मुनाफा दिला रहे  हैं। कंपनी का व्यवसाय अब तेजी से अपने पैर पसार रहा है। 

वही काम वही करें जिससे मिले संतुष्टि

अजय पाटीदार कहते हैं पढ़ाई के बाद मैंने अपने कदम प्रॉपर्टी के व्यवसाय की दिशा में भी बढ़ाये लेकिन उसमें मुझे संतुष्टि नहीं मिल रही थी। इसके बाद मैंने स्टार्टअप की शुरुआत शुभम के साथ की। पहले तो हमने अपने घर वालों को इस बारे में कुछ  जानकारी नहीं दी लेकिन जब हमारा स्टार्ट -अप शुरू हो गया तो वे बहुत नाराज भी हुए। चाय के बिजनेस का नाम सुनकर उनको बुरा लगा लेकिन जब इसी चाय ने उनको शोहरत दिला दी तो वे सभी दिल से हमारे  आईडिया को पसंद करने लगे। 

अब विदेशी धरती में भी धूम मचाएगी चाय

 अजय और शुभम  कहते हैं अब उनका इरादा विदेशों में नए आउटलेट शुरू करने का है जिस पर फिलहाल काम चल रहा है।  कनाडा , अबूधाबी और दुबई में कुछ  दिनों में उनके आउटलेट्स  शुरू हो रहे हैं। साथ ही आस्ट्रेलिया , अमरीका और यूरोप के कई देशों में फ्रेंचाइजी के साथ उनकी बातचीत चल रही है। फ्रांस के प्रसिद्ध एफिल टावर के पास भी उनकी लोकेशन को लेकर बात चल रही है। बहुत जल्द  देश की  मिट्टी का स्वाद विदेशों में भी ले जाने के लिए दुबई और ऑस्ट्रेलिया में भी टी-लॉजी के आउटलेट शुरू करने की तैयारी हो गई है।

एक हजार  लोगों को दिया रोजगार

प्रत्येक आउटलेटस  के लिए औसतन 5  से 6 नए लोगों को काम का मौका मिलता है।  देश भर में स्थापित उनके 100 आउटलेटस से 600 से अधिक  युवाओं की आजीविका चल रही है । साथ ही 250 कुम्हार परिवारों को कुल्हड़ बनाने का  काम भी मिला है जिससे  पहले की तुलना उनकी आमदनी में कई गुना इजाफा हुआ है। हजारों लोगों की आजीविका उनके इस  आउटलेट्स  से आज चल रही है।  अजय कहते हैं किसी काम को शुरू करना तो आसान है लेकिन उसे अंजाम तक पहुँचाना मुश्किल।उन दोनों के साथ भी शुरुआत में यही हुआ लेकिन युवाओं के सहयोग से वह आज जिस  मुकाम पर पहुंचे हैं उसके लिए वो दोस्तों के आभारी हैं। 

सरकार युवाओं को सहयोग कर रही है

अजय और शुभम  कहते हैं शुरुआती वर्षों में लोग स्टार्ट अप को नहीं समझ पाते थे लेकिन अब धीरे -धीरे लोग इस व्यवसाय को समझ रहे हैं। देश भर में स्टार्ट अप में आज युवा रूचि ले रहे हैं। इनकी ग्रोथ को देखते हुए सरकार भी भरपूर सहयोग कर रही है। मध्य प्रदेश सरकार भी युवाओं के हितों के लिए लगातार  काम कर रही है। आज फ्रेंचाइजी पार्टनर्स भी हमसे सीधे जुड़ रहे हैं। सरकार का सहयोग सभी को मिल रहा है। 

सकारात्मक विचार के साथ युवा आगे आएं

अजय और शुभम  कहते हैं देश के युवाओं में कुछ अलग कर गुजरने की तमन्ना है।  इसके लिए सकारात्मक ऊर्जा के साथ आगे बढ़ने की जरूरत है। सरकार युवाओं को आगे बढ़ने और कुछ नया करने के लिए लगातार प्रेरित कर रही है। टी- लॉजी ऐसी ही नई  सोच के साथ आगे आया है और अपनी कामयाबी का शोर मचा रहा है। टी -लॉजी स्टार्ट-अप अगर आज विदेशों में भी अपने कदम बढ़ा रहा है तो इसका कारण सरकार का भरपूर सहयोग और प्रोत्साहन है। 

आज के दौर में धन कमाने के नए-नए तरीके खोज रहे लोगों के पास एक से बढ़कर एक स्टार्टअप के बहुत सारे  विचार हैं  लेकिन लीक से अलग हटकर चलते हुए  बहुत कम लोग ऐसे होते हैं जो अपनी नई सोच के दम पर देश के लिए बेहतर  करना चाहते हैं। इंदौर  से  शुरू हुआ टी -लॉजी स्टार्ट-अप आज मध्य प्रदेश के साथ ही देश के युवाओं को प्रेरणा देने का काम  बखूबी कर रहा है। मध्यप्रदेश में साल 2016 में सिर्फ 7 डीपीआईआईटी से मान्यता प्राप्त स्टार्ट-अप थे।  आज प्रदेश सरकार की स्टार्ट-अप नीति और सहयोग से  1900 से अधिक डीपीआईआईटी से मान्यता प्राप्त स्टार्टअप हो चुके हैं।
 

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