Sunday, 16 November 2025

मोहन यादव का बिहार विधानसभा चुनावों में चला जादू, एनडीए जबरदस्त बढ़त की ओर

एनडीए के लिए  'लकी चार्म'  साबित हुए डॉ. मोहन यादव


भारतीय राजनीति में कुछ चेहरे ऐसे उभरते हैं जो न केवल आम कार्यकर्ता की भांति जहाँ अपनी पार्टी की कमान संभालते हैं बल्कि  स्टार प्रचारक बनकर पूरी चुनावी बिसात को बदलकर रख देते हैं। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव एक ऐसा ही नाम हैं जिसने बिहार  विधानसभा चुनावों में खुद की उपयोगिता को  साबित कर दिखाया है।  बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के लिए डॉ. मोहन यादव ' लकी चार्म'  साबित हुए हैं। जहां जहां उनकी सभाएं हुई, वहां एनडीए के पक्ष में जबरदस्त  लहर दिखाई दे रही है। यह जादू केवल वोटों का नहीं, बल्कि बिहार की जनता के मन में एनडीए सरकार के प्रति  अटूट  विश्वास का प्रतीक है ।एमपी सीएम डॉ. मोहन यादव ने बिहार की  25 विधानसभा सीटों में प्रचार किया जिसमें से  21  पर एनडीए आगे दिख रहा है ।

 तूफानी प्रचार के साथ  सांस्कृतिक जुड़ाव बनी मोहन की बड़ी यूएसपी 

 मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने  अक्टूबर से नवंबर तक बिहार के कोने-कोने में धुंआधार प्रचार किया। पटना की कुम्हार ,बिक्रम , मनेर से लेकर मधेपुरा, गया, मधुबनी, बांका, सिकटा , बगहा , सहरसा , मनेर , बाकीपुर , पिपरा ,मोतिहारी, बोधगया  और मधेपुरा तक कुल 25  से अधिक सीटों पर उनकी रैलियां, जनसभाएं  और रोड शो किये।  उनकी सभाओं का आकर्षण उनकी सहजता और सांस्कृतिक जुड़ाव रहा । यादव समुदाय के वोट बैंक को लक्षित करते हुए उन्होंने बिहार की माताओं-बहनों को शराबबंदी और 10 हजार रुपये की सहायता योजना की उपलब्धियां गिनाई। मोहन ने  मोदी सरकार की उपलब्धियों को  जनता के बीच रखा और सबका साथ -सबका विश्वास उनका मूल  मंत्र था। 

पश्चिम चंपारण के बगहा, सहरसा और सिकटा में  मोहन ने  लालू प्रसाद यादव पर 'कंस' की उपमा देकर तीखा प्रहार किया। "बिहार को लूटने वालों को घर में घुसकर घोड़ा पछाड़ देंगे" उनकी यह ललकार सोशल मीडिया पर वायरल हो गई  साथ ही बिहार चुनाव परिवारवाद बनाम राष्ट्रवाद की जंग है," उनका ये  नारा भी खूब वायरल हुआ। छठ महापर्व को 'ड्रामा' बताने वालों पर  मोहन ने तीखा प्रहार किया वहीँ नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी पर सीधा निशाना साधने से मोहन नहीं चूके।  चुनाव बिहार में, लेकिन पप्पू पचमढ़ी में  कहकर उन्होंने नेता प्रतिपक्ष राहुल गाँधी की चुटकियां ली । कांग्रेस की हालत  उन्होंने बिन दूल्हे की बारात जैसी बताई।  यह प्रचार केवल भाषणों तक सीमित न रहा। मोहन यादव की सभाओं में जनसैलाब उमड़ा।  खासतौर पर यादव वोटरों का रुख बदलने में उनका  बड़ा योगदान रहा।  देश के एकमात्र यादव मुख्यमंत्री के रूप में उनकी एंट्री ने न सिर्फ एनडीए के प्रचार अभियान को नई गति दी  बल्कि विपक्ष के यादव वोटबैंक में सेंध लगाई। 

रुझानों  में दिखा 'मोहन फैक्टर'


बिहार विधानसभा चुनावों के परिणामों में एनडीए दो-तिहाई बहुमत की ओर अग्रसर है। भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बन चुकी है और जनता दल (यूनाइटेड) इसकी मजबूत साथी। मोहन यादव का 'जादू' आंकड़ों में झलक रहा है।  जहाँ - जहां उन्होंने प्रचार किया वहां एनडीए प्रत्याशी आगे चल रहे हैं। कटोरिया, नाथनगर, आलमनगर, पिपरा, बेलहर जैसी सीटें इसका प्रमाण हैं।  बिहार में यादव वोटों का दबदबा है और रुझान बता रहे हैं लालू-तेजस्वी की पार्टी पर सेंध लगाने के लिए यादव सीएम मोहन यादव  का चेहरा सबसे कारगर साबित हो रहा है। मिशन बिहार  के तहत डॉ. मोहन यादव, यादव और ओबीसी  बाहुल्य सीटों पर अपनी हुंकार भरी । स्टार प्रचारक के तौर पर वह दिल्ली,  उत्तर प्रदेश, हरियाणा, जम्मू और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में ओबीसी समुदाय को बड़ा संदेश देने में सफल रहे हैं और अब बिहार चुनावों में भी उन्होनें खुद को साबित कर दिखाया है।  

रुझानों  पर बोले  मोहन :  पीएम मोदी  के नेतृत्व में भाजपा और एनडीए की लहर चल रही है

एमपी सीएम  डॉ. मोहन यादव ने कहा है कि बिहार विधानसभा चुनाव परिणाम के रुझान वास्तव में उत्साहवर्धन करने वाले है। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में देश ने 2014 के बाद नए प्रकार की विकासपरक राजनीति का दौर देखा है। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में एक-एक करके तीनों लोकसभा चुनाव में एनडीए को प्रचंड बहुत मिला।भाजपा ने दिल्ली में भी अपनी सरकार बनाई है। उसी सिलसिले को जारी रखते हुए तीसरी बार बिहार में फिर एनडीए सरकार की वापसी हो रही है।पूर्ववर्ती समय में हरियाणा, महाराष्ट्र, दिल्ली और अब बिहार यह बता रहा है कि प्रधानमंत्री के नेतृत्व में भाजपा और एनडीए की लहर चल रही है।मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने न केवल देश के विकास बल्कि देश की सुरक्षा के लिए जो नीतियां लागू की है, वह वाकई हम सभी का मनोबल बढ़ाने वाली है। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि बिहार चुनाव में ऐतिहासिक जीत के साथ भाजपा ने अपनी अलग पहचान बनाई है। भाजपा सबसे ज्यादा सीटें जीतकर नंबर वन पार्टी बनी है। दूसरा हमारा सहयोगी दल जनता दल यूनाइटेड है।

बिहार की राजनीति हमेशा से ही जातिगत समीकरणों पर आधारित रही है। डॉ. मोहन यादव की स्टार प्रचारक भूमिका एनडीए के लिए  लाभ का सौदा  साबित हुई  है। मोहन यादव ने बिहार चुनावों में  न केवल यादव वोटों को एकजुट किया, बल्कि पूरे एनडीए को मजबूत बनाया। आज जब रुझान एनडीए की तीसरी लगातार जीत की  पटकथा  लिख रहे हैं, तो एमपी सीएम डॉ. मोहन यादव का  का कद राष्ट्रीय राजनीती में तेजी से बढ़ गया है। उनकी स्टार प्रचारक की  भूमिका न केवल भाजपा को मजबूती देगी, बल्कि राष्ट्रीय फलक पर  एक नया आयाम भी जोड़ेगी।

Monday, 3 November 2025

एनडीए का मिशन बिहार, एमपी सीएम मोहन करेंगे कामयाब

6 और 11 नवंबर को होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) अपनी रणनीति को मजबूत करने में जुटा है। एनडीए के इस मिशन बिहार के केंद्र में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव आ गए हैं।  डॉ. मोहन यादव इन दिनों बिहार की यादव बिरादरी को लुभाने के साथ-साथ पीएम मोदी के विकास कार्यों, एनडीए की विकास-केंद्रित छवि को मजबूत करने में लगे हैं। उनकी सभाओं में उमड़ती जनता की विशाल भीड़ और जोशीले भाषण बिहार में एनडीए की हैट्रिक लगाने का दावा मजबूती से कर रहे हैं।

स्टार प्रचारक मोहन के रंग में रंगा बिहार चुनाव

मध्यप्रदेश  के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव को भाजपा ने स्टार प्रचारकों की सूची में शामिल किया है। प्रदेश के सीएम डॉ.मोहन यादव  बिहार जाकर पहले चरण की तीन विधानसभा सीटों पर एनडीए के लिए वोट मांग चुके हैं  साथ ही तेजस्वी यादव और लालू प्रसाद पर सीधा हमला करने से नहीं चूके हैं। इस बार के बिहार चुनाव में  मध्यप्रदेश के मोहन एनडीए के 'ट्रंप कार्ड' साबित हो रहे हैं। यादव समुदाय के एक प्रमुख नेता के रूप में वे बिहार के यादव वोट बैंक के साथ ओबीसी के बड़े वोट बैंक को एनडीए की ओर मोड़ने का प्रयास कर रहे।  एक ऐसा वोट बैंक जो परंपरागत रूप से आरजेडी का दशकों तक गढ़ रहा है।

बिहार का दंगल ..एमपी सीएम 'मोहन' करेंगे 'मंगल'

डॉ.मोहन यादव का बिहार में प्रचार एनडीए की एक सोची समझी रणनीति का हिस्सा है। उत्तर प्रदेश, दिल्ली,  हरियाणा, जम्मू , झारखण्ड , महाराष्ट्र के चुनावों में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के बाद अब बिहार चुनाव में भी मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव को एक बड़ी जिम्मेदारी मिली है। मिशन बिहार  के तहत डॉ. मोहन यादव, यादव और ओबीसी  बाहुल्य सीटों पर  अपनी हुंकार भरते देखे जा सकते हैं। स्टार प्रचारक के तौर पर वह दिल्ली,  उत्तर प्रदेश, हरियाणा, जम्मू और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में ओबीसी समुदाय को बड़ा संदेश देने में सफल रहे हैं। बिहार विधानसभा चुनावों में डॉ. मोहन यादव की इंट्री से समीकरण बदलते नजर आ रहे हैं। एनडीए ने जीत के लिए विशेष रणनीति तैयार की है जिसमें मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का नाम भी स्टार प्रचारकों की सूची में शामिल है। अब बिहार की यादव बाहुल्य 50 से अधिक सीटों पर एनडीए को जीत दिलाने की जिम्मेदारी डॉ. मोहन यादव के कन्धों पर है।

यादव वोट बैंक में 'मोहन' की सेंधमारी

एनडीए की रणनीति यादव, राजपूत और अन्य पिछड़ा वर्ग के वोटों को एकजुट कर महागठबंधन को कमजोर करना है। बिहार के राजनीतिक अखाड़े में फिलहाल 'मोहन' अपना दम दिखाते नजर आ रहे हैं। डॉ. मोहन यादव की ललकार बिहार की राजनीति में एक टर्निंग पाइंट साबित हो रही है जो आने वाले दिनों में कहीं न कहीं राजद में  लालू यादव और तेजस्वी यादव के यादव वोट बैंक में मोहन सेंधमारी कर सकती है। डॉ.मोहन यादव उसी यादव बिरादरी से हैं जहाँ की राजनीति में मुस्लिम के साथ यादव फैक्टर सबसे असरदार है। बिहार की राजनीति 14 फीसदी यादवों का वोट है और ओबीसी का 64 फीसदी। मोहन यादव इस बड़े वोट बैंक पर अपना असर छोड़ सकते हैं। इसी रणनीति के तहत डॉ. मोहन यादव को उन सीटों पर प्रचार के लिए उतारा जा रहा है जहाँ यादवों तादात अधिक है जो आरजेडी का कोर वोट बैंक है।  

90 के दशक में लालू प्रसाद यादव ने मुस्लिम-यादव (एम-वाई) समीकरण के बल पर सत्ता का किला मजबूत किया। तीन दशक तक बिहार की राजनीती में आरजेडी अपने मुस्लिम और यादव यानी 'माई ' समीकरणों के जरिए राज करती रही। उस दौर में जंगलराज के लिए बिहार जाना जाता था। यह किला इतना अटूट लगता था कि विपक्षी दलों के लिए इसे भेदना असंभव-सा था लेकिन नीतीश कुमार ने 2005 में सत्ता हासिल करते हुए इस किले को ध्वस्त करने का ऐतिहासिक काम किया। उन्होंने लव-कुश समीकरण यानी कुर्मी (लव) और कोइरी-कुशवाहा (कुश) जातियों का गठबंधन के सहारे न केवल लालू की जातीय राजनीति को चुनौती दी बल्कि बिहार में 'सुशासन'  की लहर पर सवार होकर विकास की नई गौरवगाथा लिखने का काम किया। लव-कुश समीकरण के दम पर नीतीश ने लालू की जातिवादी राजनीति को नकारते हुए विकास का एजेंडा चलाया। एक तरफ साइकिल योजना, महिलाओं को 50% पंचायत आरक्षण, सड़क-बिजली-पानी जैसी बुनियादी योजनाओं ने पिछड़ी जातियों को नीतीश ने  लाभ पहुंचाया वहीँ दूसरी तरफ कुर्मी-कोइरी समुदायों को शिक्षा, कौशल विकास और छात्रवृत्ति योजनाओं से सशक्त किया।  परिणामस्वरूप  2005 से 2020 तक जेडीयू का वोट शेयर स्थिर रहा जबकि आरजेडी हाशिए पर चली गई। नीतीश ने लालू की जातीय राजनीती के  मिथक को बिहार में तोड़ा और बिहार को अपने विकास कार्यों से नई  दिशा दी। हालांकि 2015 में महागठबंधन ने जेडीयू के साथ अस्थायी रूप से गठबंधन कर लिया लेकिन 2017 में नीतीश ने फिर लव-कुश को मजबूत रखते हुए एनडीए का रुख किया। 

 'एमवाई फैक्टर' पर भारी 'वाई ' यानी मोहन फैक्टर

बिहार में 'वाई'  यादव समाज 14 फीसदी है। यह वोट बैंक हमेशा से चुनावी हार जीत के समीकरणों  का केंद्र रहा है। 2020 के चुनाव में आरजेडी ने यादव वोटों के दम पर 75 सीटें जीतीं  जबकि भाजपा को 74 मिली।  2024 के लोकसभा चुनाव में एनडीए ने हिंदुत्व, विकास और केंद्रीय योजनाओं के सहारे यादवों का एक हिस्सा खींच लिया। जन सुराज पार्टी भी इस बार यादव-मुस्लिम (एमवाई) समीकरण को चुनौती दे रही है लेकिन मुख्य लड़ाई एनडीए और महागठबंधन के बीच है। इस बार 'वाई फैक्टर' की सफलता एनडीए के लिए इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यादव समाज में सेंध लगाने से आरजेडी का कोर वोटबैंक कमजोर पड़ सकता है। एनडीए ने ‘वाई फैक्टर’ को कैश करने के लिए डॉ.मोहन यादव जैसे चेहरे को स्टार प्रचारक बनाकर एक बड़ा सन्देश पूरे बिहार में देने का काम किया है।

एनडीए का तुरूप का इक्का साबित होंगे 'मोहन'

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव इस बार के बिहार विधानसभा चुनावों में एनडीए  का 'ट्रंप कार्ड' बने हुए हैं। अभी तक डॉ. मोहन यादव बिहार की तीन विधान सभाओं का दौरा कर चुके हैं। सीएम मोहन 16 अक्टूबर को कुम्हार और विक्रम विधानसभा सीटों पर संजय गुप्ता और सिद्धार्थ सौरभ के पक्ष में विशाल जनसभा को सम्बोधित किया। 17 अक्टूबर को भी सीएम मोहन ने गया टाउन से डॉ. प्रेम कुमार  हिसुआ से अनिल सिंह के पक्ष में जनसभा किया। 24 अक्टूबर को बगहा, सिकरा  और सहरसा विधानसभा में भी अपनी हुंकार भरी। कुम्हरार और बिक्रम विधानसभा क्षेत्र की जनसभा में उन्होंने कहा, "बिहार अब नई सुबह की ओर अग्रसर है। एनडीए सरकार ही विकास का माध्यम है।" उन्होंने कहा हमारी पार्टी में चाय बेचने वाला भी प्रधानमंत्री बन सकता है, क्योंकि यहां लोकतंत्र है। डॉ.यादव ने महागठबंधन पर तीखा प्रहार करते हुए महागठबंधन को 'महाठगबंधन' कहकर निशाना साधा और महागठबंधन को लोकतंत्र के दुश्मन करार दिया और कहा एनडीए को वोट देकर बिहार को मजबूत बनाएं।" पश्चिम चंपारण के बगहा, सहरसा और सिकटा पहुंचे जिन्होनें एआरजेडी चीफ लालू प्रसाद यादव पर 'कंस' की उपमा देकर तीखा प्रहार किया। "बिहार को लूटने वालों को घर में घुसकर घोड़ा पछाड़ देंगे"।  उनकी यह ललकार सोशल मीडिया पर वायरल हो गई। 

29 अक्टूबर को बांका के कटोरिया, भागलपुर के नाथनगर और मधेपुरा के आलमनगर में उन्होंने तीन सभाएं कीं। यहां उन्होंने कांग्रेस पर 'हिंदू-मुस्लिम बंटवारे' का आरोप लगाते हुए कहा, "सालों तक अयोध्या पर सियासत की, लेकिन राम मंदिर बना तो एक चींटी भी नहीं मरी। मथुरा में भी यही होगा।" मध्य प्रदेश और बिहार के ऐतिहासिक रिश्ते का जिक्र करते हुए उन्होंने भगवान कृष्ण के उज्जैन से बिहार के सूर्य मंदिर तक के कनेक्शन को जोड़ा।31 अक्टूबर को पटना के मानेर और दीघा में सभाएं हुईं, जहां जनसैलाब उमड़ा। "बिहार चुनाव परिवारवाद बनाम  राष्ट्रवाद की जंग है उनका यह नारा  सबकी  जुबान पर चढ़ा । 

 2 नवंबर को मधुबनी के फुलपरास और पटना के फतुहा में रोड शो के साथ सभाएं कीं। फुलपरास में जेडीयू प्रत्याशी शीला मंडल के समर्थन में उन्होंने मधुबनी पेंटिंग की तारीफ की और कांग्रेस को ललकारा, "जब घर आएं तो पूछो, मथुरा में कृष्ण मंदिर का समर्थन क्यों नहीं?" 

बिहार में यादव वोटों का दबदबा है, और लालू-तेजस्वी की पार्टी पर सेंध लगाने के लिए मोहन यादव  का चेहरा सबसे कारगर साबित हो रहा है।'वाई फैक्टर' बिहार में कामयाब हो सकता है अगर डॉ. मोहन यादव यादव समाज के बड़े वोट खींच लें  जो एनडीए की जीत सुनिश्चित कर देगा। उनका जादू हिंदुत्व, विकास और जातिगत अपील का मिश्रण है जो बिहार के यादव बहुल इलाकों में असर दिखा रहा है।

विकास कार्यों को जीत की गारंटी बना रहे ‘मोहन’  

बिहार की जनसभाओं में डॉ. मोहन यादव के भाषणों का केंद्र बिंदु विपक्ष की कमियां रही हैं। वह यह कहने से नहीं चूक रहे महागठबंधन विकास नहीं, केवल जातिवाद और भ्रष्टाचार की राजनीति करता है। आरजेडी को 'जंगलराज' का प्रतीक बताते हुए वह कांग्रेस को 'परिवारवाद' का दोषी ठहराने से नहीं कतरा रहे। "एक परिवार से पीएम क्यों? हमारा लोकतंत्र सबका है जैसे उनके सधे हुए बयान बिहार में पहली बार वोट डालने जा रही नई युवा पीढ़ी को अपनी तरफ आकर्षित कर रहे हैं साथ ही वे बिहार की सांस्कृतिक विरासत को भगवान राम और कृष्ण से जोड़ते दिखाई देते हैं जो एनडीए की हिंदुत्व-केंद्रित अपील को मजबूत कर रहा है। मोहन यादव के दौरे जहां  एनडीए के पक्ष में जा रहा है वहीं विपक्ष में हड़कंप मचा है।

एनडीए की बिहार चुनावों की नई बिसात के केंद्र में डॉ. मोहन यादव है जो यादव समाज की जातीय गोलबंदी को तोड़कर महागठबंधन के मंसूबों पर पानी फेर सकते हैं। बेहद कम समय में अपने कामकाज के माडल से पूरे देश में डॉ. मोहन यादव ने एक नई पहचान बनाई है। समाज के ओबीसी तबके में उनकी सर्वस्वीकार्यता और लोकप्रियता हाल के दिनों में तेजी से बढ़ी है। एनडीए उनकी इस लोकप्रियता को उन राज्यों में भुनाने की तैयारी में है जहां यादव वोट निर्णायक है। इसके जरिए एनडीए महागठबंधन के जातीय राजनीती के दांव को चित करना चाहती है। डॉ. मोहन यादव की जनसभाओं में उमड़ने वाला सैलाब एनडीए की एकजुटता और बिहार को विकास की नई रफ़्तार पर ले जाने का संकल्प ले रहा है।