Tuesday 24 March 2009

...मसक कली. मसक कली .... उड़ मटक कली... उड़ मटक कली

मसक कली मसक कली ..... जगह जगह आजकल सुना जा रहा है.... पर एक गाना और बहुत पसंद किया जा रहा है.... "सास गली देवे ननद चुटकी लेवे..... ससुराल गेंदा फूल....." सही फरमाया आपने ..... बात दिल्ली ६ की कर रहा हूँ..... आजकल इसका म्यूजिक सभी पर सर चदकर बोल रहा है.....

""सनी " मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले का रहने वाला है.... शाम को काम खत्म होने के बाद रोज उसकी मेरी बात होती है... किसी भी विषय पर .... सभी विषय ..... बात चीत में आते है.... अपने छोटे भाई "अनुभव श्रीवास्तव " (सनी) के साथ "जब पहली बार यह मूवी देखी तो वह भी "गेंदा फूल " के बिना नही रह सके .... उस दिन पूरी रात वह सही से सो भी नही पाये और इसको बार बार बजाते दिखाई दिए......यह फ़िल्म "राकेश ओमप्रकाश महरा ने बनाई है.....वही राकेश जिन्होंने "अक्स ", रंग दे बसंती " जैसे फिल्म बनवाकर सभी का दिल जीत लिया था ..... मेहरा इस फ़िल्म से भी वही उम्मीद लगाये बैठे थे लेकिन बॉक्स ऑफिस पर यह फ़िल्म धूम मचाने में पूरी तरह से असफल साबित हुई.....आज अपनी बात इस फ़िल्म पर इसलिए कर रहा हूँ क्युकी अभी कुछ समय पहले दिल्ली से ही लौटा हूँ ... दिल्ली से अपनी यादो का बहुत पुराना नाता रहा है ..... अपने दोस्त के साथ भोजन के दौरान इस फ़िल्म पर अचानक बात हो गई ..... तभी आज इस पर बात कर रहा हूँ..... हालाँकि मैंने यह फ़िल्म पहले डीवीडी में देख ली थी,लेकिन उस समय फ़िल्म का प्रिंट सही नही हो पाने के चलते फ़िल्म में मजा नही आ पाया .... इसी के चलते अबकी होली में अपने घर से वापसी के दौरान मैंने यह मूवी थिएटर में देखी .....दिल्ली में इसका संगीत सभी को खासा भा रहा है.... मैंने अपने मोबाइल पर ब्लूटूथ की मदद से अपने कई रिश्तेदारों और दोस्तों के मोबाइल पर इसके ३ गाने जबरदस्त ढंग से लोड किए.... इसके गानों के प्रति उनकी दीवानगी का आलम देखकर मुझे इस पर लिखने को विवश होना पड़ा .......वैसे भी इस फ़िल्म के गाने लिखने वाले अपने "प्रसून जोशी " उत्तराँचल की बेल्ट से आते है ... जिससे मेरा भी गहरा नाता रहा है.... पहाड़ की वादियों में मेरा पालन हुआ है... यहाँ की वादियों में लिखने का मजा अलग है जो आप वहां जाए बिना महसूस नही कर सकते है..... प्रसून को पहाड़ बहुत प्रेरणा देते रहे है जिसका आभास उनकी लेखनी में भी मिलता है ...... "तारे जमीन पर, रंग दे बसंती, गजनी जैसी फिल्मो ने प्रसून को बहुत ऊँचे गीतकारों की सूची में ला खड़ा कर दिया है....... ब्लॉग पर फ़िल्म के बारे में अपनी राय देने की कोशिश कर रहा हूँफ़िल्म की कहानी दिल्ली से मिलती जुलती है.... राकेश ने फ़िल्म अच्छी बनने की पूरी कोशिश की थी लेकिन इसको अपेक्षित सफलता नही मिल पाने के चलते वह अब मायूस नजर आते है... फ़िल्म की कहानी के अनुसार अमेरिका में जन्मा"राकेश " अपनी बीमार दादी को देखने दिल्ली लौटता है ... उसकी यह यात्रा लाइफ का एक बड़ा अनुभव बन जाती है... कहानी का पूरा प्लाट दिल्ली के इर्द गिर्द बुना गया है ....जिसमे दिल्ली को कैनवास में सही ढंग से उकेरने की पूरी कोशिश की गई है..... महिला को लेकर हमारे समाज में आज भी यथा स्थिति बनी हुई है .... आज भले ही वह सभी जगह अपनी सफलता के झंडे बुलंद कर रही है पर हमारा समाज लड़की को उसकी चोइस के अनुसार काम चुनने की इजाजत नही देता .....भले ही उसका आगे बदने का इरादा हो और वह अपने पैरो में खड़ी होकर कंधे से कन्धा मिलाने की इच्छा रखती है... यही कहानी दिल्ली ६ में भी है ... फ़िल्म की नायिका"(सोनम) जिसका नाम "बिट्टू" है वह संगीत में रूचि रखती है पर उसके पिता उसकी राय की अनसुनी करते रहते है और वह किसी तरह उसके हाथ पीले करना चाहते है ताकि उनका बोझ कम हो जाए... साथ में इस फ़िल्म में एक किरदार मुझको खास पसंद आया वह "जलेबी" का किरदार .... दिव्या ने इसको बखूबी निभाया है... इस किरदार पर फ़िल्म के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध भी हुआ है.... जिस अंदाज में इसको दिखाया गया है वह दलितों के साथ सही नही हुआ है.... गाहे बगाहे बात वहीँ आकर टिकती है .... जात पर.... जाती सूचक.... इस फ़िल्म के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ .... है... अन्तर सिर्फ़ इतना है की यहाँ पर "आजा नाच ले " वाली नौबत नही आई है.... उसमे तो यह हुआ था "मोची " जात सूचक शब्द था जिसका पूरे भारत में व्यापक विरोध हुआ था .... आलम तब यह था की इस फ़िल्म को कई सिनेमा घरो में बैन करवा दिया गया था.... दिल्ली ६ के साथ इस प्रकार की नौबत नही आई .....यहाँ पर जेलेबी को अछूत दिखाया गया है.... एक सीन में पुलिस अफसर विजय को उसके मन्दिर में जाने में दिक्कत है लेकिन वही पुलिस अफसर उसके साथ रात बिताने को तैयार दिखाई देता है.... जलेबी के नसीब में रामलीला को सबके साथ देखना नही होता है तभी वह पंडाल के बाहर से रामलीला देखने को विवश होती है ...... यह दिखा ता है आज भी हमारे समाज में जलेबी सरीखी महिलाओं को अछूत माना जाता है ..... समाज की मुख्य धारा से कटा कटा रहना पड़ता है .... यह बात मैं बड़ी साफ़ गोई से कह रहा हूँ ... यह हमारे समाज में आप भी अच्छी तरह से देख सकते है ..... इसका ताना बाना राकेश ने सही से बुना है... अपने पहाड़ में एक किस्सा बहुत लोकप्रिय है....."घर घर जले मिटटी के चूल्हे "..... दिल्ली ६ इसका भी आभास हमको कराती है.... राकेश ने २ भाईयो के बीच के तल्ख़ होते रिश्तो को भी फ़िल्म में दिखाने की कोशिस की है... २ भाईयो ओम् पुरी और पवन के बीच की केमिस्ट्री कम मिलती है.... इस के चलते वह अपने घर के बीच दीवार खड़ी कर देते है .... लेकिन यह दीवार उनकी पत्नियों को रास नही आती है लिहाजा वह ईटो को निकालकर आपस में बातें करते है.... फ़िल्म में हिंदू मुस्लिम के बीच की खाई को भी दिखाया है.....समाज के कुछ अराजक तत्व मन्दिर और मस्जिद के नाम पर भड़काते रहते है जिसके चलते दंगो तक की नौबत आ जाती है.... गलियों में झगडा फसाद होना आम बात बन जाती है.....हिंदू मुस्लिम अलग अलग हो जाते है .....मेल जोल नही दिखाई देता.....इंटरवल तक का मामला सही रहता है..... "मसकली ..... मसकली"..... "सास गेंदा फूल " सही से बजता है...... दर्शको का मनोरंजन सही से होता है ... यही गाने आज कल सभी की जुबान पर चल रहे है..... इसके पीछे अपने प्रसून और रहमान का बड़ा योगदान है.... रहमान का तो क्या कहना ? उनकी अंगुलिया जब "सिंथे साय्जर " पर दौड़ती है तो मन संगीत की फुहारों में डूब जाता है यही दिल्ली ६ में भी हुआ है..... संगीत का कोई सानी नही है भले ही इंटरवल के बाद " काला बन्दर " पूरी फ़िल्म का खेल ख़राब कर देता है ..... सत्यानाश यही पर हो गया है..... इंटरवल से पहले तक की फ़िल्म दिल्ली ६ जैसी दिखाई देती है लेकिन उसकी बाद काले बन्दर के आते ही दिल्ली छि हो जाती है..... काले बन्दर के खौफ ने फ़िल्म की लुटिया डुबो दी है.... दरअसल , कला बन्दर एक बन्दर है जिसको लेकर लोगो में भारी खोफ है ... उसको किसी ने नही देखा है.....लेकिन उसकीअफवाह पूरे समाज में है ..... दिल्ली आना रोशन के लिए बिल्कुल नया है ...... एक अलग तरह का अनुभव ..... इसी के चलते वह वह गुजरे हुए पल को मोबाइल में कैद करता है.....दादी की तमन्ना जहाँ पहले यह थी की वह किसी भी तरह अमेरिका से लौटकर अपने जीवन के अन्तिम दिन अपने परिवार के साथ बिताना चाहती थी वही रोशन किसी तरह अपनी अमेरिका वापसी चाहता था ॥अब आलम यह है दादी का जाने का मन करता है वही रोशन दिल्ली में बसना चाहता है..... दादी की भूमिका में वहीदा रहमान है जिन्होंने अपना शानदार अभिनय किया है..... राकेश ने ऋषि कपूर को भी फ़िल्म में लिया है ताकि अच्छे कलाकारों के बूते यह फ़िल्म बॉक्स ऑफिस में धूम मचाये .... लेकिन बॉक्स ऑफिस पर यह औंधे मुह गिरी है... अभिषेक को भी फ़िल्म से काफ़ी उम्मीद थी लेकिन यह लोगो की आशा में खरी नही उतरी है... बन्दर के चलते सब गड़बड़ हो गई है ......बहरहाल , जो भी हो फ़िल्म का म्यूजिक बेमिसाल है ... आप को भी शायद यह भा रहा होगा.....वैसे भी सास गली देवे और "मसक कली " की इन दिनों धूम मची है....... लड़की क्या लड़के क्या सब इसके दीवाने बने हुए है ......
अब कल से हमारी चुनावी पड़ताल .... जिसका नाम....."लोक सभा का महासमर".......

सीधे जमीनी हकीकत से आपको रूबरू करवाएंगे....
कौन बनेगा पी ऍम .... किसको मिलेगा ताज... क्या माया का सपना साकार होगा इस बार...? क्या पवार का पी ऍम बन्ने का सपना पूरा होगा? बिहार में राजनीती किस दिशा में जा रही है? क्या तीसरा मोर्चा सरकार बनने में सफल हो पायेगा?
ऐसे तमाम सवालो को बताती हमारी खास प्रस्तुति.... " बोलती कलम डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम ..... सीधे चुनावो के मैदानों से ..... हमारी खास रिपोर्ट.... तो करिए कल का इंतजार ... और अपनी राय से मुझको अवगत करवाए....

चुनावो के मैदान से हमारे चुनावी सफर का आगाज आगामी "अप्रैल " सप्ताह से होने जा रहा है....इस सफर में आपके सहयोग की मुझको आशा है... रिपोर्टो पर अपनी बेबाक राय का मुझको सदा की तरह इस बार भी इंतजार रहेगा.....बस आप ब्लॉग पर नजर टिकाते रहिये...........................................

18 comments:

Alpana Verma said...

मसक कली मसक कली ..ससुराल गेंदा फूल...
hamen bhi pasand hain.
yah film dekhi nahin ab tak..ab aap ki sameeksha padh kar dekhne ka man bana rahi hun.
Theater par yahan ab nahin ayegi isliye CD se hi kaam chalaana padega.dhnywaad is sundar sameeksha hetu.

राजीव जैन said...

APAN NE TO FILM DEKHI HAI

AAPKI BAAT SE PURI TARAH SAHMAT

GANEE AISE HAIN KI SIR CHAD KAR BOLTE HAIN

ताऊ रामपुरिया said...

भाई ना तो फ़िल्म देखी है और ना ही देखने का कोई चांस है. बस आपकी समिक्षा पढ ली और आनन्दित हो लिये.

रामराम.

hem pandey said...

इस फिल्म की जो समीक्षाएं अब तक पढी थीं वे नकारात्मक मिलीं. आपकी समीक्षा के अनुसार इंटरवल तक तो अच्छी है. वैसे गीत-संगीत के मामले में तो तारीफ़ करनी ही पड़ेगी. गेंदा फूल गाना छत्तीसगढ़ का लोक गीत है.i.

Unknown said...

sir film to flop ho gayi hai lekin sangeet bemisaal hai mai aapse poori tarth se sahmat hoo

Mumukshh Ki Rachanain said...

भाई फ़िल्म की समिक्षा पढ ली और आनन्दित हो लिये.

Unknown said...

harsh, film ne boar kar diya hai par delhi 6 ka music bahut shandaar hai... aapse gujaris hai aab aap bhi iska anand lijiye... aapne shruvaat me bataya hai ki aapke padosi apne lap top me iska aanand le rahe hai..

chunavo par report ka intajaar rahega.....

Unknown said...

हर्ष भाई , फिल्म की समिक्षा मैंने भी की थी देखने के बाद । मेरा विचार रहा कि एक बार देखी जा सकती है । फिल्म में सोनम का अभिनय शानदार रहा । गाने तो सुपरहिट रहे ही हैं ।

Unknown said...

dear sir, film to teek thak hai lekin box office par yah hit nahi ho paayi.... gaane bahut achche mujhko bhi lage... sir me khud "saruraal gende " ur masakkali ka deevana hoo...

aapki agli chunavi posto ka intajaar rahega....

kumar Dheeraj said...

भाई आपके बात से मै सहमत हूं । आजकल हर जगह हर गली में यह गीत गुनगुनाया जा रहा है । खासकर कबूतरी के दिलकश अदा की गूंज भी हर और है । अच्छा लिखा है आपने शुक्रिया

नीरज गोस्वामी said...

Film tukdon men lajawab hai...Kala bandar haan kuchh uljhan paida karta hai, lekin film ke chhote chhote kalakaron ne kamaal ka abhinay kiya hai...photography aur music to poora paisa vasool hain...film achchhi hai lekin ye class bhi ban sakti thi...

neeraj

अभिषेक मिश्र said...

Ek saath kai vishayon ko sametne ke pryas mein thodi bikha gai film. Acchi samiksha ki hai aapne.

योगेन्द्र मौदगिल said...

बढ़िया प्रस्तुति के लिये साधुवाद

डॉ. मनोज मिश्र said...

अच्छा लिखा है , और सही भी .

हरकीरत ' हीर' said...

आपकी समिक्षा और टिप्पणियों से फिल्म की काफी जानकारी मिली ...शुक्रिया .....!!

दर्पण साह said...

Sir ji Prasoon joshi ji mere ghrah nagar (almora) ke hain ath. unke baare main padhna hamesha accha lagta hai...

Science Bloggers Association said...

रोचक एवं जीवंत समीक्षा की है आपने।

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तस्‍लीम
साइंस ब्‍लॉगर्स असोसिएशन

कडुवासच said...

मसक कली मसक कली ..ससुराल गेंदा फूल...
... समीक्षा प्रभावशाली है पढकर फिल्म देखने की इच्छा हो रही है।