Tuesday 31 January 2012

"जिन लाहौर नही देख्या " पर जल्द आ रही है राजकुमार संतोषी की फिल्म --- असगर वजाहत









असगर वजाहत हिन्दी के प्रतिष्ठित लेखक और प्रोफेसर रहे है.....वह ऐ जे किदवई जनसंचार केन्द्र जामिया मिल्लिया इस्लामिया नई दिल्ली के कार्यकारी निदेशक के तौर पर कार्य कर चुके है ..... उन्होंने यूरोप के कई विश्व विद्यालयो में विस्तार से जनसंचार सम्बन्धी व्याख्यान भी दिए है .........साथ ही वह लम्बे समय से लेखन , शिक्षण कार्य से भी जुड़े हुए है ....उनके ६ उपन्यास, ७ कहानी , ५ पूर्णकालिक नाटक, एक नुक्कड़ नाटक , एक यात्रा वृतान्त प्रकाशित हो चुका है....

आउटलुक नाम की चर्चित पत्रिका ने २००७ में उन्हें हिन्दी के दस सर्वश्रेष्ठ लेखको की सूची में शुमार किया..... उनकी रचनाओ के अनुवाद अनेक यूरोपीय और एशियाई भाषा में हो चुके है.... साथ ही उन्हें कई प्रतिष्ठित सम्मानों से भी नवाजा जा चुका है.....

७० के दशक से वह हिन्दी फिल्मो की पटकथा भी लिख रहे है..... उन्होंने सुभाष घई ,विनय शुक्ला , मुजफ्फर अली सरीखी नामचीन हस्तियों के लिए भी अपना लेखन किया है......१९७९ में उन्होंने गजल की कहानी वृत्त चित्र बनाया था और उसके बाद १९८२ -८३ में "बूँद बूँद " धारावाहिक के लिए कहानी, पटकथा और संवाद लिखे ..... वर्तमान में वह उनके नाटक " जिन लाहौर नही देख्या "के कारण चर्चा में है ..... विभाजन की त्रासदी बयाँ करने और दिल को झकझोर देने वाले इस नाटक पर राजकुमार संतोषी फिल्म बनाने जा रहे है जो इस साल के अंत तक आने की सम्भावना है ......

३० सालो से भी अधिक समय से वह देश भर में होने वाले सेमिनारो में पटकथा लेखन के गुर सिखाते आ रहे है........ बीते दिनों वजाहत से मेरी एक मुलाकात हुई...... इस बातचीत के मुख्य अंश ----


"जिन लाहौर नही देख्या " की हर जगह चर्चा होती रहती है....... जब मै भोपाल में था तब भारत भवन में आपके इस नाटक का जादू लोगो पर सर चढ़कर बोलता था.... आज भी लोग इसे बहुत पसंद करते है..... इसको बनाने की प्रेरणा कहाँ से मिली आपको यह जानना चाहता हूँ .....?

मैंने लाहौर के ऊपर एक संस्मरण पढ़ा था ... उसमे यह प्रसंग था .... वहीँ से इसे बनाने की प्रेरणा मिली.... सामाजिक और सांस्कृतिक परिवेश के साथ विभाजन की पृष्ठभूमि को ध्यान में रखते हुए यह नाटक बना ......

इस नाटक को देखने के लिए आज भी लोगो का भारी हुजूम उमड़ आता है ..... मैं तो खुद इसका गवाह भोपाल में रहा हूँ जिसे सांस्कृतिक गतिविधियों का केन्द्र कहा जाता है... क्या आपको इस बात की उम्मीद थी यह नाटक सफलता की ऊँची बुलंदियों को छूएगा ?

यह नाटक विभाजन की सच्ची घटना पर आधारित है.... जब भारत और पाकिस्तान के बीच विभाजन हुआ था तो एक उम्रदराज महिला को पाकिस्तान में काफी संघर्ष करना पड़ा ॥ वही महिला मेरे इस नाटक की प्रेरणा बनी...... इस नाटक से इतनी ज्यादा उम्मीद तो नही थी लेकीन लोगो ने इसको खूब पसंद किया ..... मैंने शुरुवात में इतना जरुर सोचा था यह नाटक अच्छा है लेकिन इतनी बड़ी सफलता की उम्मीद नही थी मुझको ........

वर्तमान में आपका नया ताजा क्या चल रहा है ? कौन कौन से प्रोजेक्ट पर फिलहाल आप काम कर रहे है ?
नया नाटक "गाँधी और गोडसे" पूरा कर चुका हूँ..... इसके बारे में ज्ञानोदय में भी पढने को मिला होगा आपको.... दूसरा नाटक" तुलसी दास और मुगल शासक अकबर" के संबंधो पर आधारित है....

लेखन के अलावा आपके कौन कौन से शौक हैं ?
चित्रकारी के साथ साथ मुझे घूमना फिरना बहुत अच्छा लगता है .....साथ ही पेंटिंग मेरे मन को खूब भाती है.......

देखा जा रहा है आज के दौर में अच्छे पटकथा लेखक नही मिले पा रहे है ? इसके पीछे क्या कारण मानते है आप ?
आज की नई पीड़ी का पढने से कोई सरोकार नही है.......अगर आप अच्छा पढेंगे नही तो लिखेंगे कैसे ? इसलिए ज्यादा से ज्यादा पढने की आदत हमें डालनी चाहिए तभी अच्छी पटकथा हमारे सामने आएँगी.......

अच्छी पटकथा लेखन की बुनियादी शर्त क्या मानते है आप ? साथ ही जो नए लोग इस फील्ड में आना चाहते है उनके लिए किन चीजो का होना जरूरी है ?
तकनीकी लेखन में सृजनात्मकता बहुत जरुरी है .... लेकिन गौर करने लायक बात यह है कि पटकथा लेखक बनने के लिए कवि, उपन्यासकार होना जरुरी नही है....यह माना जाता है रचनात्मक प्रतिभा से सम्पन्न व्यक्ति पटकथा के फील्ड में अधिक सफल होता है.... दरअसल सच्चाई यह है कि रचनात्मक और सृजनात्मक प्रतिभा किसी भी व्यक्ति के अन्दर किसी भी रूप में हो सकती है.....हिन्दी सिनेमा में बड़ी तेजी के साथ परिवर्तन आ रहे है....यह बदलावों का नई तकनीको का दौर है..... इसका प्रभाव पटकथा लेखन पर साफ़ तौर पर पड़ता दिख रहा है.... भारतीय सिनेमा के साथ विश्व सिनेमा की जानकारी होना भी पटकथा लेखक के लिए आज के दौर में जरुरी बनती जा रही है......

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