रेल में प्रमोशन के नाम पर बीते दिनों चले इस
खेल में जिस तरह सी बी आई ने दर्जन भर
लोगो को हिरासत में लिया है उससे रेलगेट विवाद से सरकार बचना मुश्किल दिख रहा है | पूरे विवाद में सी
बी आई ने माना है रेल मंत्री के भांजे विजय सिंगला ने रेलवे बोर्ड के सदस्य महेश कुमार को रेलवे का महाप्रबंधक का चार्ज देने के लिए
90 लाख रुपये शुरुवाती घूस ली | यही नहीं रिश्वत की इस खेफ के साथ उन्होंने भांजे
को रंगे हाथो गिरफ्तार किया | साथ ही सी बी आई जांच में बंसल के निजी सचिव और
भांजे की दो हजार फोन काल्स की जो डिटेल हाथ लगी है उससे रेल मंत्री की मुश्किलें
बढ़ रही हैं लेकिन कांग्रेस जिस तरह
आक्रामक होकर पवन बंसल के बचाव में उतरी है उसने कई सवालों को खड़ा किया है
| मसलन क्या इस देश में लोकलाज और नैतिकता नाम की कोई चीज नहीं बची है ? क्या पांच
साल का जनादेश का मतलब बेख़ौफ़ राज करना है ? क्या लोकसेवको के लिए जन नाम की कोई
चीज इस दौर में नहीं बची है ? बीते चार
साल में एक ईमानदार प्रधानमन्त्री भी कठघरे में है क्युकि चिदंबरम से लेकर थरूर ,जायसवाल से लेकर खुर्शीद
और अश्विनी कुमार से लेकर पवन बंसल हर किसी को बचाने की कोशिश खुद प्रधानमंत्री के
द्वारा इस दौर में हुई है और मजेदार बात यह है कि यह सभी चेहरे
खुद मनमोहन की पहली पसंद रहे हैं |
जनता के बीच मनमोहन की साख को लेकर जैसे
सवाल उनके दूसरे
कार्यकाल में उठ रहे हैं वैसे पहले
कार्यकाल में नहीं उठे | संभवतया इसके पीछे वाम दलों का दबाव रहा जिसके न्यूनतम
साझा कार्यक्रम के चलते कोई अपनी मनमानी नहीं कर पाता था लेकिन आज स्थिति पूरी तरह बदल चुकी है | मनमोहन
अपनी आर्थिक सुधारों वाली लीक पर चल निकले
हैं जहाँ विदेश नीति से लेकर हर माडल कमोवेश पश्चिमी देशो के करीब हो चला है
और यही
उदारीकरण का माडल बड़े पैमाने में लूट खसोट पैदा कर रहा है |
अब पांच
साल के जनादेश का मतलब जन को ठेंगा दिखाते हुए लूट करना और अपने मन माकिफ राज करना हो गया
है जहाँ कारपोरेट के लिए फलक फावड़े बिछाये बिना काम नहीं बनता |
जैसे आरोपों के घेरे में मनमोहन हैं वैसे
आरोप आजाद भारत में किसी सरकार पर नहीं लगे | हालाँकि जीप घोटाला तो नेहरु के काल
में ही हो गया था जिसके बाद तत्कालीन
रक्षा मंत्री मेनन की कुर्सी चली गयी
लेकिन जनता की अदालत में जाने के बाद वह नेहरु के कहने पर मंत्रिमंडल में शामिल कर
लिए गए | शास्त्री वाले दौर में भी नैतिकता थी जब रेल दुर्घटना के बाद वह खुद से
इस्तीफा दे दिया करते थे लेकिन आज जनता से नेताओ का कोई सरोकार नहीं रह गया है |शायद
तभी मनमोहन कई कैबिनेट मंत्रियो का बचाव करते हैं तो उनका इकबाल कमजोर होना लाजमी
ही है |
रेलवे
के हालिया घूसकाण्ड ने यह साबित किया है इस देश में किस तरह नौकरी पाने से
लेकर प्रमोशन तक में लाखो का खुला खेल
होता है |
आरोपी विजय सिंगला पवन बंसल का भांजा है और रेलवे में मामा की रसूख और मंत्री पद की ठसक का इस्तेमाल कर उसने करोडो का
साम्राज्य खड़ा कर लिया | ईट भट्टी से किराये के मकान में अस्सी के दशक में
अपना सफ़र शुरू करने वाला सिंगला आज जेडीएल
इन्फ्रा , एक्रोपोलिस , रेडेंट सीमेंट सरीखी दर्जनों कंपनियों को चला रहा है और मजेदार बात
यह है कि इन सभी का पता 64 सेक्टर 28 A है
जो खुद पवन बंसल का निवास है | मदनमोहन ,विक्रम,विजय के अलावा कंपनियों में पवन
की पत्नी की भी संलिप्तता उजागर हो रही है
| सिंगला की कंपनी जिसका २००७ में टर्न
ओवर शून्य रहा वह साल दर साल बंसल के
केंद्र में मंत्री बनने के बाद मुनाफा कमाती
गई | मामा के आज रेल मंत्री तक पहुँचने के
बाद यह मुनाफा 152 करोड़ पार कर चुका है | पवन बंसल भले ही पूरे मामले में कारोबारी रिश्ते से इनकार कर रहे हैं लेकिन बताया जा रहा है भांजा सिंगला अपने मामा से मिलने
बेरोकटोक रेल भवन जाता था जहाँ उसे किसी तरह के पास की भी जरूरत नहीं होती थी
|
नैतिकता का तकाजा तो यह है भांजे का
नाम आने के बाद पवन बंसल खुद इस्तीफा दे देते लेकिन दस जनपथ की
कांग्रेस वाली चौकड़ी आगामी राज्यों के
चुनावो और लोक सभा चुनावो को देखते हुए कोई
खतरा मोल नहीं लेना चाहती क्युकि अगर बंसल जाते हैं तो इसके बाद अश्विनी
कुमार से लेकर खुर्शीद , जायसवाल से लेकर प्रधानमंत्री सभी के विकेट गिरने का खतरा
बन रहा है | ऐसे में चुनावी में साल में
प्रधान मंत्री के इस्तीफे से कांग्रेस की खासी किरकिरी होगी ऐसे में वह आक्रामक
होकर विपक्ष के सवालों का जवाब जांच में खोजती दिख रही है | इस दौर में मनमोहन की
चुप्पी भी सवालों के घेरे में है | आखिर कामनवेल्थ घोटालो के बाद क्यों नहीं
उन्होंने इस लूट खसोट पर लगाम लगाने की दिशा में अपने कदम आगे बढाये ? यू पी ए पर
लगे भ्रष्टाचार के आरोप बहुत संगीन हैं अगर जांच बारीकी से निष्पक्ष रूप में हो तो
इसके फेरे मे कई मंत्री और इनके
नाते रिश्तेदार आ सकते हैं | लेकिन क्या कीजियेगा लोक तंत्र में आज शालीनता और नैतिकता नाम की कोई चीज
बची नहीं है और ना ही लाल बहादुर शास्त्री
,माधव राव सिंधिया , आडवानी – अटल वाली बिसात
जिसकी लीक पर चलने का भरोसा कोई
दिखा सके | इस दौर में लोकतंत्र का मतलब
एक बार जनादेश पाकर आखें मूदकर बैठना
और कुर्सी बचाने के लिए तरह तरह के जतन
करना बन गया है शायद तभी कांग्रेस भी अपने मंत्रियो का दामन पाक साफ़ बताने पर तुली है और कारोबारी रिश्तो के ना होने की बात दोहराकर
अपना रास्ता आगामी चुनावो के लिए किसी तरह साफ़ करना चाह रही है जबकि असल में इस सरकार का कोई इकबाल अब बचा नहीं है और
दिनों दिन इसकी विश्वसनीयता गिर रही है | आजादी के बाद जहाँ पहली बार किसी सरकार
के कई कैबिनेट मंत्रियो पर भ्रष्टाचार के
संगीन आरोप लगे वहीँ सी वी सी से लेकर सी
बी आई की निष्पक्षता को लेकर पहली बार सवाल उठे और सुप्रीम कोर्ट तक ने सरकार की
हीलाहवाली को लेकर तल्ख़ टिप्पणिया की जिसके बाद यह सरकार नींद से जागी | यही नहीं
कैग सरीखी संवैधानिक संस्थाओ की रिपोर्ट सरकार समय समय पर ख़ारिज करती रही | और तो और जे पी सी की रिपोर्ट पर भी पहली बार उसके सदस्य ही सवाल उठाने लगे |
इतना सब होने के बाद भी यह सरकार जनता
द्वारा उसे पांच साल के लिए दिए गए जनादेश का राग अलापती रही | जब तक सुप्रीम
कोर्ट ने तल्ख़ तेवर नहीं दिखाए तब
तक वह नहीं जागी |
मनमोहन की तर्ज पर सफेद कुर्ते में
रहने वाले पवन बंसल की गिनती आम तौर पर शालीन और सुलझे हुए नेता के तौर पर अब तक होती रही है लेकिन भांजे की करतूतों ने उनके
कुर्ते पर रेलवे घूसकाण्ड की ऐसी कालिख पोत दी है जिससे आने वाले दिनों में उनके
राजनीतिक करियर पर ग्रहण लग सकता है |
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