फायर ब्रांड नेता और साध्वी उमा भारती के भाजपा से निष्कासन और बाबूलाल
गौर के मुख्यमंत्री वाले दौर के बाद भाजपा की डगमगाती नैय्या को सही मायनों
में अगर किसी ने मध्य प्रदेश में पार लगाया है तो बेशक वह शख्स शिवराज सिंह
चौहान ही हैं । सूबे में सबसे ज्यादा समय तक गैरकांग्रेसी मुख्यमंत्री बनने
का तो कीर्तिमान उन्होंने बना ही लिया है और अब तीसरी बार शिवराज हैट्रिक
बनाने की दिशा में एड़ी चोटी का जोर इन दिनों प्रदेश में लगाये हुए हैं ।
विषम परिस्थितियों में मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने वाले शिवराज सिंह चौहान
के लिए इस बार का चुनाव किसी एसिड टेस्ट से कम नहीं है क्युकि विपक्षी खेमे
की तरफ से ज्योतिरादित्य सिंधिया इस समय कांग्रेस के चुनावी अभियान की
कमान न केवल संभाले हुए हैं बल्कि कांग्रेस की तरफ से मुख्यमंत्री पद का उनका
दावा भी इस बार मजबूत है । बीते कुछ बरस में शिवराज ने भाजपा के
अंदरुनी उठापटक को शांत करने के साथ-साथ विकास की नई लकीर भी खिंची जिसकी
परिणति जोरदार बहुमत के साथ भाजपा की सत्ता वापसी के रूप में हुई लेकिन
मुख्यमंत्री चौहान के चमकते छवि के कई दूसरे पहलू भी है जिन पर लोगों की
निगाहें कम जाती हैं। मसलन प्रदेश में गरीबी का बढ़ना, पत्नी साधना सिंह पर
डंपर घोटाले का आरोप और विकास के नाम पर स्थानीय लोगों के हकूकों को दरकिनार
कर बेतरतीब परियोजनाओं को मंजूरी जिसमे तमाम मानको को ताक पर रखा गया । यह
सब ऐसी चीजें हैं जो आने वाले दिनों में उनके लिए परेशानी का सबब बन सकती हैं
और दिग्विजय सिंह की तरह दस सालों तक मुख्यमंत्री बने रहने के उनके सपने को भी
चकनाचूर कर सकती हैं । वैसे भी कांग्रेस इस चुनाव में राहुल गाँधी वाली लीक पर
चल रही है जहाँ वही नेता चुनावी टिकट पाने में कामयाब होगा जो राहुल की बिसात
में फिट बैठेगा और पहली बार मध्य प्रदेश में करीबी नेताओ के परिजनों को टिकट
देने के लिए जूतम पैजार मची हुई है लिहाजा इस बार भाजपा और कांग्रेस दोनों
दलों में टिकटों को लेकर भारी घमासान मचना तय है ।
मध्य प्रदेश का राजनीतिक मिजाज और परिदृश्य अन्य जगहों से थोड़ा अलग सा है।
यहां की सरकारें विपक्ष से कम और अपनी पार्टियों के नेताओं से ज्यादा परेशान
रही हैं।राजशाही की कोई ख़ास परंपरा यहाँ की राजनीती में नहीं देखी गयी है ।
थोडा बहुत प्रभाव अगर कहीं दिखता है तो वह सिंधिया के प्रभाव वाली सीटों पर
नजर आता है । इस प्रदेश का दुर्भाग्य रहा कि यहाँ पर विपक्ष में जो बैठता
है वह सरकार की नीतियों के खिलाफ अटूट चुप्पी साधे रहता है। इस बार भी ऐसा ही
कुछ हुआ है । कांग्रेस के पास कमलनाथ , ज्योतिरादित्य , दिग्गी राजा , अजय
सिंह, अरुण यादव , सज्जन सिंह वर्मा सरीखे हैवीवेट नेता होने के बाद भी मध्य
प्रदेश में कांग्रेस का बुरा हाल है । टिकटों के बटवारे में जहाँ गणेश
परिक्रमा किये बिना काम नहीं चलता, वहीं हर चुनाव में भारी गुटबाजी उसका खेल
ख़राब कर देती है । यही कारण है उमा भारती द्वारा मध्य प्रदेश में भाजपा की
वापसी के बाद से कांग्रेस सत्ता सुख मिलने से अब तक वंचित ही रही है ।
एमपी अजब है , सबसे गजब है सरीखे नारों और जन आशीर्वाद सरीखी जिस यात्रा
से शिवराज सरकार विकास के चमचमाते सपने लोगो को इस चुनावी बेला में दिखा
रही है उस एम पी का असल सच भले ही कागज पर दिखता रहा हो लेकिन जमीनी
हकीकत कुछ और ही रही है । विकास के चमचमाते सपने के बरक्स यहाँ पर भू
माफियाओं, खनन माफियाओं आदि को लाभ पहुंचाने का खुला खेल नेताओ और प्रशासन के
कोकटेल के आसरे जहाँ कई बरस से चलता रहा वहीँ अधिकारियों ने भी इस दौर में
भ्रष्टाचार की गंगा में भी ऐसी डुबकी लगाई कि एमपी में यह जुमला प्रचलित
होने लगा यहाँ चपरासी भी करोडो में खेलता है और शायद यही वजह रही इस
भ्रष्टाचार में हर किसी ने गोते लगाकर अपनी जेब ही गर्म की । इसकी तस्दीक कैग
की मध्य प्रदेश को लेकर आई रिपोर्ट है जिसमे 1 4 9 6 करोड़ रुपये से
ज्यादे के राजस्व के नुकसान का अनुमान लगाया गया है । यही नहीं शिवराज पर कॉरपोरेट
घरानों के साथ गलबहियां करने के आरोप भी बीते कई बरस से लगते आये हैं ।
1 8 प्रतिशत कृषि विकास दर का झुनझुना थमाकर शिवराज भले ही लोगो के
बीच अपने उपलब्धियों का बखान करने से नहीं अघाए हों लेकिन मध्य प्रदेश में असमान विकास दर कई
जिलो में साफ़ तौर पर दिखाई देती है । अभी अतिवृष्टि से पूरे प्रदेश की फसल
बर्बाद हो गयी है लेकिन चुनावी साल में सरकार किसानो को मुआवजा भी नहीं दे
पायी है जिससे लोगो में शिवराज के प्रति नाराजगी साफ़ देखी जा सकती है । आज
भी आदिवासी इलाको में जहाँ बुनियादी सुविधाएं मयस्सर नहीं सकी हैं वहीँ
कुपोषण का कलंक मध्य प्रदेश के माथे पर ऐसा चस्पा है कि राहुल गाँधी
शहडोल सरीखीहर चुनावी सभा में शिवराज को कठघरे में खड़ा कर जहाँ
उनकी नीतियों पर सवालउठाने से गुरेज नहीं करते वहीँ वह प्रदेश के भाजपा नेताओ के भ्रष्टाचार पर
हमला करने से बाज नहीं आ रहे तो यह शिवराज के सामने खतरे की घंटी ही है ।
चुनावी साल में शिवराज की मुश्किल उनके दाए हाथ माने जाने वाले बिल्डर दिलीप
सूर्यवंशी ने भी बढाई है । शिवराज से उनकी निकटता किसी से छुपी नहीं है और विपक्षी भी इस मसले पर भाजपा को
सीधे निशाने पर लेने से नहीं चूके हैं । ऐसे में चुनावी महीना शिवराज के
आसन के लिए मुश्किल भरा दिखाई दे रहा है जहाँ उन्हें अन्दर और बाहर अपने बूते
ही विपक्ष और अपनी पार्टी के नेताओ से जूझना है ।
मध्य प्रदेश में विकास को मॉडल बना कर दिग्गी राजा ने १० वर्षों तक राज
किया। विकास को जनता तक पहुंचाने में वह भी विफल ही रहे जिसके चलते
उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी गंवानी पड़ी जिसके बाद प्रदेश में भाजपा की
सरकार बनी। सरकार बनने के बाद भाजपा अंदरुनी विवादों में उलझ गई। प्रदेश भाजपा
में मची इस भारी उथल-पुथल को शांत करने के लिए शिवराज चौहान को तुरूप के
इक्के के रूप में आगे कर सीएम बनाया गया। वे बेहतर संगठनकर्ता के रूप जाने
थे भाजपा को उन्होंने सफलता भी दिलाई । वही लाडली लक्ष्मी योजना ,
चमचमाती बसे , चमचमाते हाई वे से उन्होने "मामा " के रूप में महिलाओ के दिलो
में राज करने लगे तो भोपाल गैस कांड मामले में भी शिवराज के कड़े रुख, अपना
मध्य प्रदेश अभियान और चौबीस घंटे प्रदेश में बिजली देने के "अटल ज्योति "
अभियान ने लोगों के बीच उनकी लोकप्रियता में खूब इजाफा ही किया है ।
हालांकि शिवराज पर भ्रष्टाचार के भी आरोप लग चुके हैं। इतना ही नहीं
मुख्यमंत्री ने बीते चुनावो में जो अपनी संपत्ति का ब्यौरा दिया वह भी
संदिग्ध रहा । उनकी पत्नी साधना सिंह द्वारा डंपर की खरीद में गड़बड़ी करने का
मामला सामने आया । उस दौर को याद करें तो भोपाल के न्यायाधीश ने भ्रष्टाचार
निरोधक कानून के तहत जांच करने का आदेश दिया । इसका खुलासा बीते दौर में
विपक्ष की नेता स्व जमुना देवी ने भी किया था जिसके चलते लोकायुक्त से जांच
की मांग ने शिवराज चौहान की मुश्किलें बढ़ा दी जिससे उनकी विश्वसनीयता पर सवाल
पहली बार उठे , लेकिन एक संगठनकर्ता की मीडिया मैनेजरी भी कमाल की रही ।
अपने बोल बचन के आसरे शिवराज मीडिया को खुश कर अपना गुणगान कराने में ही
मशगूल रहे ।
चौहान लाडली लक्ष्मी योजना, मध्यप्रदेश पुलिस में दुर्गावती के नाम पर नई
बटालियन बनाने जैसी योजना को लागू करने की बात करते हैं। मध्य प्रदेश में
गरीबी मिटाने की सरकार चाहे जितने दावे करे, लेकिन हकीकत कुछ और है। गरीबी
यहां तेजी से पैर पसार रही है। इसके गवाह नौ जिलों भिंड, मुरैना ,श्योपुर कलां, शिवपुरी,
टीकमगढ़, रीवा, पन्ना, बड़वानी और मंडलाके लोग हैं जिनकी प्रतिदिन
आय मात्र 2 7 रुपये है। । इतना ही नहीं हाल में बच्चों को स्कूल में गीता पढ़ने को
जरूरी करने के फैसलेपर मुख्यमंत्रीचौहान भी कठघरे में दिखे। इनका काफी विरोध हुआ लेकिन उसका
असर उन पर नहीं पड़ाऔर मजबूर होकर देरी में उन्होंने यह फरमान जारी किया की गीता
ऐच्छिक विषय केरूप में पढ़ाई जाएगी । यह अलग बात है बाद में भोपाल
के इकबाल मैदान में मुसलमानों के बीच ईद के हर मौके पर टोपी पहन शिवराज ने
अपने को प्रधानमंत्री की रेस में नमो से न केवल आगे फर्राटा भर के आगे किया बल्कि
इसके आसरेअल्पसंख्यको का दिल भी लिया । लेकिन अब नमो के प्रधान मंत्री पद का
उम्मीदवार बनाये जाने के बाद भाजपा के खेमे में मुश्किले बढ़ गई हैं क्युकि
ग्वालियर से लेकर चम्बल और झाबुआ से लेकर सिवनी अंचल में जहाँ ज्योतिरादित्य
कांग्रेस को बढ़त दिलाने में लगे हुए हैं वहीँ मुसलमान मतदाता शिवराज के नाम
पर नाक भौहें सिकोड़ रहा है । रही सही कसर नमो ने बीते दिनों यह
कहकर पूरी कर दी आने दिनों में प्रदेश में शिवराज के साथ मिलकर
सर्वाधिक चुनावी सभा करेंगे ।
वहीं दूसरी तरफ शिवराज इन्वेस्टर मीट के
सपने दिखाकर लोगो को सब्जबाग ही दिखाते रहे हैं । कई उद्योग की प्रक्रिया
अभी प्रारंभिक दौर में है, उनमें से ज्यादातर वही हैं जिनके एमओयू मध्य प्रदेश
को स्वर्णिम बनाने का दम भर रही शिवराज सिंह चौहान की सरकार द्वारा पिछले
इन्वेस्टर्स मीट के दौरान हस्ताक्षरित किए गए थे। इन्हें बड़ी मात्रा में जमीन
उपलब्ध कराने के लिए स्थानीय लोगों के अधिकारों की अनदेखी की गई। यही नहीं मध्य प्रदेश के
आदिवासी इलाके मंडला में चुटका परमाणु संयंत्र स्थापित होने के बाद यह सवाल
गहरा गया है क्या विकास के नाम आदिवासियों की मांगो को सुनने की फिक्र शिवराज
सरकार में नहीं है ?
विरोधियों को चुप्पी के साथ दरकिनार करने और अनर्गल बयानबाजी से बचनेवाले शिवराज
सिंह चौहान को २००५ में मध्यप्रदेश भाजपा का अध्यक्ष बनाया गया था। उस समय संगठन
में भारी उथल-पुथल के साथ गुटबाजी चल रही थी। उमा भारती के जाने के बाद प्रदेश
भाजपा काफी कमजोर हो गई थी। ऐसे समय में इन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया। इनके
सामने १३वीं विधानसभा चुनाव में अच्छे परिणाम हासिल करने की चुनौती थी। इस पर
चौहान खरे उतरे और भाजपा को जीत दिलाई। फिर से सीएम भी बने। १९६२ से लेकर अब
तक सिर्फ कांग्रेस के दिग्विजय सिंह और भाजपा नेता शिवराज राज चौहान ही ऐसे
मुख्यमंत्री रहे जिन्होंने पांच वर्षों से अधिक समय तक शासन किया। मध्यप्रदेश
की जनता के लिए अभिशाप ही रहा कि जो भी शासन में रहा मूल समस्याओं पर किसी ने
ध्यान नहीं दिया और वे आपसी खींचतान में लगे रहे। भाजपा की जीत ने दिग्गी राजा
के कद को एकदम से कम कर दिया। कभी दिग्गी राजा के नाम से लोगों के बीच पहचाने
जानेवाले कांग्रेसी नेता को लगा ही नहीं था कि वे सत्ता से बेदखल हो जायेंगे।
भाजपा ने २००३ में ऐतिहासिक जीत दर्ज की। उमा भारती के नेतृत्व में चुनाव
लड़ा गया और भाजपा सत्ता में आयी। लोध समुदाय की एक क्षत्रप नेता और संघ
परिवार से ताल्लुक रखनेवाली उमा भारती मुख्यमंत्री बनीं। लेकिन बगावती तेवर और
भाजपा आलाकमान से दो-दो हाथ करने के कारण उन्हें पद से हटना पड़ा। इसके बाद
शिवराज सिंह चौहान ने सत्ता संभाली। वैसे तो इनके सामने कई अड़चने थी, जिसे दूर
करते हुए पांच साल पूरे किये।
अब तीसरी बार सत्ता में लाना शिवराज सिंह चौहान के लिए आसान नहीं है। इनके
सामने कई चुनौतियां हैं। सबसे बड़ी बात यह है सत्ता के मिजाज को परखते हुए
शिवराज सत्ता के नशे में चूर हो गए हैं । शायद यही वजह है प्रदेश में अब किसी
नेता की उनके सामने नहीं चलती । शिवराज ने बीते कई बरस से अपने विरोधियो को एक
एक करके पार लगाया । उमा भारती से जहाँ उन्होंने अभी तक दूरी बनाई हुई है
वहीँ उनके करीबियों को धीरे धीरे अपने सत्ता के आगोश में समेटा । संघ के
आशीर्वाद से प्रदेश अध्यक्ष बनाए गए प्रभात झा इसका जीता जागता नमूना हैं जब
दूसरी बार उनको प्रदेश अध्यक्ष बनाने की बारी आई तो शिवराज ने केन्द्रीय नेताओ
और आलाकमान से मिलकर नरेन्द्र सिंह तोमर के नाम के लिए लाबिंग शुरू कर दी ।
यही नहीं कैलाश विजयवर्गीय की एक जमाने में प्रदेश भर के संगठन में तूती
बोला करती थी लेकिन आज आलम यह है कैलाश आगामी चुनावो में खुद से ज्यादा अपने
बेटे के लिए चुनावी बिसात बिछाने में लगे हुए हैं । कही ना कही आज प्रदेश का
हर कार्यकर्ता इस बात को मान रहा है शिवराज ने अपनी लोकप्रियता तो प्रदेश में
खूब बनाई हुई है लेकिन उनके हक़ की लड़ाई लड़ने वाले मंत्री और विधायक इस दौर में
या तो छले गए हैं या उनके पर किसी तरह से काटे गए हैं ।
शिवराज ने अपनी फिलासोफी में विकास को मॉडल बनाया है लेकिन उनकी सरकार के
मंत्रियो ने बीते कई बरस से खुद उनकी मुश्किलों को ही बढाया है । कैबिनेट
मंत्री कैलाश विजय वर्गीय पर जहाँ सुगनी देवी मामले पर अभी भी लोकायुक्त
जांच चल रही है वहीँ तकरीबन सोलह मंत्रियो पर भ्रष्टाचार के मामले
लोकायुक्त के पास लंबित पड़े हैं , जिससे आगामी चुनावो में शिवराज की डगर
मुश्किल दिख रही है । रही सही कसर पूर्व आदिम जाति कल्याण मंत्री विजय शाह सरीखे मंत्री
पूरी कर दिए हैं जिन पर रूसी बालाओं को नचाने से लेकर जाम छलकाने के कई आरोप
लग चुके हैं और जिसके चलते उनकी कुर्सी भी जा चुकी है । चुनावी बेला में
शिवराज के सामने सिटिंग विधायको का टिकट काटने की एक बड़ी चुनौती भी दिख रही
है क्युकि अगर भाजपा में सिटिंग गेटिंग का फार्मूला टिकट आवंटन में लगता है तो
कई मौजूदा विधायको का पत्ता साफ़ लग रहा है । रही सही कसर भाजपा के अंदरूनी
सर्वे ने बढाई हुई है। अगर इस पर यकीन करें तोमौजूदा समय में सौ से ज्यादा विधायको का
टिकट नहीं काटा गया तो प्रदेश में भाजपा का तीसरी बार सत्ता में आना मुश्किल दिखाई दे रहा है ।
ऐसे में लग तो ऐसा भी रहा है कहीं इंडिया शाईनिंग की तर्ज पर मध्य प्रदेश में
भाजपा के विकास की हवा फील बैड की तर्ज पर नहीं निकल जाए ।
फिलहाल तो जनता की निगाहें मध्य प्रदेश के सिंहासन की तरफ लगी हैं
जहाँ आगामी 2 5 नवम्बर को मतदान होना है। अब आनेवाला 8 दिसम्बर ही
बतायेगा कि तीसरी बार अजब एम पी में एंटी इनकम्बेंसी के बीच शिव कितना
सफल होंगे ?
No comments:
Post a Comment