पांच
राज्यो के विधान सभा चुनावों के साथ ही लोकसभा चुनाव का काउन डाउन भी
शुरू हो चुका है जिसके चलते चुनावी माहौल अभी से गरमाने लगा है। 8 दिसंबर
को सभी पांच राज्यो के नतीजे आने के बाद राजनीतिक दल 2 0 14 की बिसात
बिछाने में लग जायेंगे । उत्तराखण्ड में भी पांच लोकसभा सीटों के लिए अभी
से संभावित उम्मीदवारों को लेकर भाजपा और कांग्रेस के भीतर नूराकुश्ती और
शह-- मात का खेल शुरू हो चुका है। राज्य में सत्तारूढ़ विजय बहुगुणा
सरकार के लचर प्रदर्शन, मंत्रियो की आपसी खींचतान और देश भर में "नमो "
इफेक्ट के चलते राजनीतिक पण्डित कांग्रेस के पिछले लोकसभा चुनाव प्रदर्शन
को असंभव मान रहे हैं।बीते लोक सभा चुनाव में सभी पांच सीटों पर विजय का
परचम लहराने वाली कांग्रेस के लिए इस बार एक भी सीट सुरक्षित नहीं बताई जा
रही है। रही सही कसर विजय बहुगुणा की कार्यशैली ने पूरी कर दी है । दस
जनपथ की कृपा से वह प्रदेश के मुख्यमंत्री तो बन गए लेकिन अभी तक प्रदेश का
आम कांग्रेसी कार्यकर्ता उनकी अगुवाई में कदमताल करने में अपने को असहज
ही पा रहा है ।
नया साल शुरू होने से पहले और राज्य में पंचायत चुनावो की पूर्व
संध्या पर टिहरी से लेकर अल्मोडा पिथौरागढ़ और पौड़ी से लेकर हरिद्वार तक
कमोवेश कांग्रेस की मुश्किल लगातार बढ़ती ही जा रही है और इन सबके बीच
नैनीताल में लम्बे समय तक अपने मजबूत जनाधार की दुहाई देने वाली कांग्रेस
की मुश्किल इस चुनाव में मेनका गांधी बढ़ा सकती हैं क्युकि जिस तरीके से
चुनाव की डुगडुगी बजने से पहले उनके नाम की हवा इलाके में चल रही है उससे
यही लग रहा है कहीं इस बार भी नैनीताल में कांग्रेस के सितारे गर्दिश में
ना चले जाएँ ।
बताया जाता है कि भाजपा के पी एम पद के उम्मीदवार नरेंद्र
मोदी इस बार संभल संभल कर खेल रहे हैं और वह किसी भी सूरत पर जिताऊ
उम्मीदवारो पर दाँव लगाना चाह रहे हैं । ऐसे में वह उन सीटो पर खास फोकस
कर रहे हैं जहां भाजपा के प्रत्याशी उसकी मुख्य विरोधी कांग्रेस पर
भारी पड़े । ऐसे में नैनीताल में भाजपा मेनका को आगे कर कांग्रेस की
मुश्किल बढ़ा सकती है । मेनका गांधी को मैदान में उतारकर भाजपा उन
कांग्रेसी दिग्गजों के अरमानो पर पानी फेरने का मन बना रही है जो यहां से
इस बार अपना भाग्य इस बार आजमाना चाहते हैं। इतना ही नहीं भाजपा के भीतर
भी इसको लेकर सस्पेंस कायम है। मेनका के नाम ने पूर्व सांसद बलराज
पासी, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष मंत्री बची सिंह रावत , पूर्व मुख्य मंत्री
भगत सिंह कोश्यारी , भाजपा के प्रदेश महामंत्री प्रकाश पंत, नरेश बंसल आदि
वरिष्ठ भाजपा नेताओं की रातों नींद उड़ाई हुई है। दूसरी तरफ कांग्रेस के
दिग्गज नेता और केंद्रीय मंत्री हरीश रावत के खेमे में भी इसको लेकर 9 ,
तीन मूर्ति तक हलचल मची हुई है। बताया जा रहा है कि हरीश इस बार
हरिद्वार से अपनी जीत को लेकर बहुत आश्वस्त न होने के चलते नैनीताल से
लड़ने की सम्भावनाये तलाश रहे हैं । दस जनपथ से जुड़े सूत्रो की मानें तो
पार्टी का एक तबका इस बार उन्हें गाजियाबाद से भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष
राजनाथ सिंह के खिलाफ उतारना चाहता है लेकिन यू पी में मुज़फ्फरनगर में
सांप्रदायिक दंगो के बाद बन रहे समीकरणों और "नमो " इफेक्ट के चलते वह यहाँ
से लड़ने का खतरा मोल नहीं लेना चाहते । हालाँकि खांटी कांग्रेसी नेता रहे
हरीश रावत अपने को कांग्रेस का सच्चा सिपाही बताते रहे हैं । वह भी तब जब
उनके मजबूत जनाधार के बावजूद बीते बरस उत्तराखंड में मुख्यमंत्री का कांटो
भरा ताज विजय बहुगुणा को पहनाया गया था ।
भाजपा सूत्रों के अनुसार मेनका गांधी आगामी लोकसभा चुनाव नैनीताल लोकसभा सीट से लड़ने की संभावनाओ पर अपने सहयोगियो के साथ मंथन कर रही हैं । बीते बरस उनकी पुत्रवधु यामिनी रॉय को सितारगंज उपचुनाव में विजय बहुगुणा के खिलाफ प्रत्याशी बनाने की योजना इसी रणनीति का एक हिस्सा थी लेकिन किन्ही कारणो के चलते यह योजना परवान नहीं चढ़ पायी थी । यामिनी बंगाली समुदाय से जुडी थी इसलिए सितारगंज के करीब पचास प्रतिशत बंगाली मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए यामिनी को चुनाव में उतारने की तैयारी थी। सितारगंज सीट पर बंगाली मतदाताओं की स्थिति के साथ पूरे नैनीताल और उधम सिंह नगर संसदीय सीट पर अब पंजाबी वोट भी महत्वपूर्ण है। इस बार भाजपा बंगाली और पंजाबी मतदाताओं के बलबूते मेनका गांधी के जरिये वोट भाजपा के पक्ष में लाने के सपने भी पाले है। मेनका का नाम अगर भाजपा चुनावो से पहले घोषित कर देती है तो आगामी लोकसभा चुनावों में मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा को अपने विधानसभा क्षेत्र सितारगंज में मुश्किलो का सामना करना पड़ सकता है साथ ही नैनीताल संसदीय इलाके में कांग्रेस के समीकरण भी गड़बड़ा सकते हैं ।
बताते चलें उत्तराखण्ड की नैनीताल और उत्तर प्रदेश की पीलीभीत सीट पास ही है। मेनका गांधी पहले पीलीभीत का 6 बार प्रतिनिधित्व कर चुकी है और वर्तमान में उनके बेटे वरुण गांधी यहां से सांसद हैं। उत्तराखंड के गठन से पहले नैनीताल सीट को नैनीताल-बहेड़ी सीट कहा जाता था और राज्य बनने के बाद बहेड़ी का कुछ हिस्सा पीलीभीत में शामिल हो गया। भाजपा से जुड़े सूत्रों का कहना है क़ि गांधी परिवार का औरा ही किसी चुनाव में उसके नाम पर भारी पड़ सकता है और शायद इसी के चलते इस साल नैनीताल सीट मेनका गांधी के लिए सबसे मुफीद भी मानी जा रही है । अगर भाजपा नैनीताल सीट मेनका की अगुवाई में फतह कर लेती है तो मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा का सिंहासन सीधे डोलने लगेगा और खुद उनकी भद्द अपने विधान सभा इलाके में पिटेगी ।
मेनका के नैनीताल से चुनाव लड़ने की तैयारी कि खबरो ने राज्य भाजपा के कुछ बड़े नेताओं की नींद उड़ा दी है । यह वही नेता है जो २०१४ का चुनाव नैनीताल से लड़ने की जुगत में थे । इनमें सबसे पहला नाम बलराज पासी का चल रहा है। पासी पूर्व में इस लोकसभा सीट का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। उनकी दावेदारी इसलिए भी मजबूत मानी जा रही है क्योंकि उन्होंने पूर्व में यहां से कांग्रेस के वरिष्ठ नेता नारायण दत्त तिवारी को लोकसभा चुनाव हराया था। इसी के साथ भाजपा के पूर्व भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बची सिंह रावत 'बचदा' की भी यहां से चुनाव लड़ने की चर्चा थी। यही नहीं पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी भी अपने राज्य सभा कार्यकाल की विदाई बेला में नैनीताल से लोक सभा चुनाव लड़ने का सपना पाल रहे थे । साथ ही भाजपा के प्रदेश महामंत्री रहे प्रकाश पंत भी बीते बरस विधान सभा चुनाव और सितारगंज में विजय बहुगुणा के खिलाफ उपचुनाव हारने के बाद से नैनीताल में टकटकी लगाये बैठे थे । संगठन मंत्री नरेश बंसल भी दिल्ली में संघ और मुरली मनोहर जोशी के आसरे नैनीताल से अपनी दावेदारी पेश करने में लगे हुए थे लेकिन सभी अटकलों को विराम लगाते हुए फिलहाल मेनका गांधी का नाम नैनीताल से पार्टी की लिस्ट में एक झटके में आगे आने से सारे भाजपाई दिग्गज बैक फुट पर आ गए हैं । अब ऐसे में देखना दिलचस्प होगा पांच राज्यो के विधान सभा चुनाव निपटने के बाद क्या भाजपा मेनका गांधी के नाम का बड़ा दाव नैनीताल में खेलेगी ?
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