Tuesday 8 July 2014

इराक में नए संकट की आहट




इराक वर्तमान में जिस प्रचंड संकट के दौर से गुजर रहा है उसने पहली बार पूरी दुनिया के माथे पर चिंता की लकीरें खींच दी हैं | मौजूदा दौर में एक सवाल जो सभी के जेहन में है , वह यह है क्या सद्दाम हुसैन के जाने के बाद  इराक  एक नई करवट लेने की दिशा में बढ़ रहा है जहाँ पहली बार शिया , सुन्नी और कुर्दों का टकराव विभाजन की उस लकीर को खींच रहा है जहाँ के आवाम के बीच बढ़ती दूरियां दुनिया के सामने भीषण संकट की तरफ इशारा कर रही हैं तो इसमें किसी तरह का कोई आश्चर्य नहीं | पिछले कुछ समय से अरब देशो और पूरे मध्य एशिया में जिस तरह बदलाव की नई बयार चली उसने कई सवालों को पहली बार  जन्म दिया है | 2010 में अफ्रीका  के छोटे से देश  ट्यूनीशिया से उठी चिंगारी ने  पूरे अरब जगत मे  जहाँ सुनामी ला  दी  वहीँ  मध्य पूर्व के जिन देशों  मे  लोकतंत्र की बयार बही वहां क्रान्ति का सीधा मतलब सैनिक तख्तापलट रहा । 2010 - 11 के साल को उथल पुथल के साल के रूप में हम  देख सकते है । इसी दौर में ट्यूनीशिया के शासक  को जहां देश  छोडना पडा वहीं  मिस्र  में एकछत्र राज कर रहे मुबारक की सत्ता का अंत भी इसी दौर मे  हुआ । वहीं यमन, जॉर्डन , अल्जीरिया , सीरिया  , लीबिया भी इसकी  लपटों में आ गये । अरब देशों  के इन जनान्दोलनों में युवाओं ने संगठित होकर भागीदारी की और संचार माध्यमों से अपनी सरकारों की मुश्किलों को बढाने का काम किया । लेकिन इस बार इराक की बयार शिया और सुन्नियो के बीच  भयानक टकराव का इशारा कर रही है जो पूरी दुनिया के लिए खतरनाक स्थिति  है | वहीँ इस पूरे मामले में अमेरिकी नीति नियंताओ की बेरूखी भी यह बता रही है अमेरिका अब इराक को उसके मौजूदा संकट से निकालने में वह दिलचस्पी दिखाने से दूर दिख रहा है जैसी वह सद्दाम सरकार को सबक सिखाने वाले दौर में दिखाता था तो यह कई सवालों को तो खड़ा ही करता है |

    इराक की मौजूदा आबादी में तकरीबन 65  फीसदी शिया और 32 फीसदी सुन्नी हैं लेकिन इराक के आवाम का संकट यह है इराक में लम्बे समय से सुन्नियो का शासन रहा है लेकिन वर्तमान समय में सुन्नी लड़ाके खाड़ी देशो के सहयोग से शियाओ को किनारे करने का खेल खेल रहे हैं जिसमे उन्हें इस्लामिक स्टेट ऑफ़ इराक एंड सीरिया सरीखे संगठनो का पुरजोर समर्थन मिल रहा है जिसमे जमात अंसार अल इस्लाम , जैश रिजाल अल तरीका अल नक्शबंदिया, इस्लामिक आर्मी ऑफ़ इरान , जैश अल मुजाहिद्दीन सरीखे संगठन  भी अब विद्रोही भूमिका में हो चले हैं जिससे जूझ पाने में अमरीका सरीखा राष्ट्र भी पहली बार हांफता दिख रहा है | इस संकट की असल शुरुवात बीते माह उस समय हुई जब सुन्नी समुदाय के निशाने पर इराक की शिया बाहुल्य सरकार आ गयी जिसके बाद आई एस आई एस ने उत्तरी इराक में अपना तहस नहस अभियान चला दिया जहाँ हिंसा और आतंक का ऐसा खुला खेल चला जिसमे कई मासूम इराकी नागरिक और विदेशी कामगार मारे गए | कई इलाको में इनकी समानांतर सरकार ने इराकी सरकार की मुश्किलें बढाने का काम किया जिससे जूझ पाने में वह पूरी तरह विफल नजर आई | आज अगर इराक में संकट बढा है तो इसमें अमेरिका को भी कम  जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता क्युकि जैविक हथियारों का हवाला देकर उसने सद्दाम की बादशाहत को न केवल चुनौती दी बल्कि सद्दाम को फांसी पर लटका दिया | उसकी मंशा इराक के तेल भण्डार पर कब्ज़ा जमाने की  थी जिसके जरिये वह पूरी दुनिया में अरबो डालरों के मुनाफे को बनाने के हसीन  सपने पालने लगा | अमेरिका के इरान के साथ सम्बन्ध छत्तीस के आंकड़े पर बसे हुए हैं और इस समय जिस तरह का त्रिकोण अरब की राजनीती में बन रहा है उसमे अमरीका खुद अपने बनाये जाल में फंसता  नजर आ रहा है | 

मौजूदा दौर में  अब नजरें इरान की तरफ लगी हुई हैं क्युकि अमेरिका को आईना दिखाने के लिए शायद ही इससे बेहतर अवसर उसे  कभी भविष्य में मिले | वैसे भी अमेरिका समय समय पर इरान को लेकर अपने तल्ख़ तेवर दिखाता रहा है और अभी जिस तरह के गंभीर हालात इराक में बन रहे हैं उसने ओबामा प्रशासन के साथ व्हाइट हाउस तक को बैक फुट पर ला दिया है क्युकि पहली बार ईरान अपने अंदाज में इराक को बचाने की जद्दोजेहद में इस कदर लगा है वह अपने धार्मिक स्थलों का हवाला देकर इराक के विरोधियो को निशाने पर ले रहा है   | इधर सीरिया में भी दिनों दिन खराब होते हालत इराक की मुश्किलों को बढाने का काम कर रहे हैं | आई एस आई एस ने सीरिया के पूर्वी हिस्से में स्थित सबसे बड़े तेल के इलाके पर अपना कब्ज़ा कर लिया है जो इराक के लिए भी अब खतरा बनता जा रहा है | खतरे की आहत अमरीका  ने महसूस की है शायद यही वजह है अब ओबामा दुनिया के नेताओ को साथ लेकर इराक में सक्रियता बढाने के संकेत इशारो इशारों में दे  रहे हैं |   वैसे भी अफगानिस्तान से लेकर इराक तक अमरीका के सामने मुश्किलात पेश आ रहे हैं क्युकि इन जगहों में अमरीकी कार्यवाहियों की पूरी दुनिया में भर्त्सना हो रही है | आने वाले दिनों में अफगानिस्तान से अमरीकी फौजियों की वापसी के बाद नए हालात  भारत अफगानिस्तान सीमा में बन सकते हैं इससे इनकार नहीं किया जा सकता  | ऐसी सूरत में अफगानिस्तान सेना के तालिबानी लड़ाको  से लड़ने में पसीने छूट  सकते हैं  इसलिए स्थिति भयावह नजर आ रही है |  आज इराक जिस भीषण मुहाने पर खड़ा नजर आता है ऐसा रूप सद्दाम के दौर में भी देखने को नहीं मिलता था | 


द्दाम के दौर में शिया और कुर्दों की भारी उपेक्षा हुई जिसके बाद सद्दाम को इन जातियों के विरोधी नेता के तौर पर पूरी दुनिया में प्रचारित किया गया लेकिन सद्दाम ने अपनी नीतियों तले पूरी अरब दुनिया में जैसी जगह बनाई उसकी मिसाल अब तक देखने को नहीं मिलती | पूरी अरब दुनिया उनके नाम से खौफ खाती थी और पश्चिम के देशो के सहयोग ने उनके पाँव इराक में जमाने में बड़ी मदद की थी लेकिन 2003  में अमरीका और ब्रिटेन की बिछाई बिसात में किस तरह सद्दाम फंसे इसे इस बात से ही महसूस किया जा सकता है उनकी बाथ पार्टी का अंत करने में उनकी शासन करने की फौजी स्टाइल ही सबसे बड़ा बाधक बनी जिसका परिणाम यह हुआ उन पर जैविक हथियार रखने का आरोप लगाकर संयुक्त राष्ट्र संघ के फैसले से बेपरवाह होकर उनको कुर्सी से बेदखल कर दिया गया और उन पर मुक़दमा चलाकर उन्हें फांसी की सजा दे दी गयी | इसके बाद अमरीका ने वहां पर सरकार बनाने की कवायद शुरू की | वहीँ 2011  में उसने वहां से पल्ला झाड़ते हुए इराकी सैन्य बलों के हवाले कानून व्यवस्था छोड़ दी | मलिकी सरकार के आने के बाद इराक में जिस तरह शियाओ का वर्चस्व बढ़ा इससे सुन्नियो में भारी रोष बढ़ गया जिसका नतीजा हम सबके सामने दिख रहा है | 


राक सरकार के आज चरमपंथियों से लड़ने में पसीने छूट रहे हैं और वह अमरीकी प्रशासन की इमदाद के भरोसे संकट से निजात दिलाने की कागजी नीतियां बनाने में ही जुटा हुआ है | अंतर्राष्ट्रीय मामलों के जानकारों का कहना है पहले ऐसे आसार नजर आ रहे थे अमरीका इराक को बचाने की मुहिम में ड्रोन हमले कर सकता है लेकिन फिलहाल व्हाइट  हॉउस से छनकर आ रही खबरें कह रही हैं कि अमरीका इराक संकट को सलाहकारों , ड्रोन हमले से सुलझाना चाहता है | आज मध्य पूर्व एशिया  इस्लामी चरमपंथियों के नियंत्रण से परेशान है | इनका सपना इस्लामी साम्राज्य को किसी तरह पंख लगाना है जिसमे अभी सीरिया , लीबिया और इराक फायदे का सौदा बन रहे हैं | आई एस आई एस का बढ़ता दखल निश्चित ही उसकी ताकत को बताने के लिए काफी है | 


पिछले कुछ समय से जिस तरह संगठित होकर इसने इस इलाके में अपनी पैठ को मजबूत किया है उससे नूरी एल मलिकी की सरकार के अस्तित्व पर भी संकट के बादल मडरा रहे हैं | खुद मलिकी मीडिया के सामने इस बात को दोहरा रहे हैं कोई भी आपात सरकार चरमपंथियों को रोकने में असहज ही रहेगी जब उसके पास संसाधनों की भारी कमी हो और अमरीका सरीखा  विकसित राष्ट्र इराक के मोर्चे पर अपने पत्ते किसी भी तरह खोलने की स्थिति में नहीं दिखाई दे रहा है  | अमरीका को अब इराक को बचाने के लिए किसी दूरगामी रणनीति पर काम करने की जरुरत है जिसमे वह तेहरान को साधकर कई अन्य मित्र राष्ट्रों को साथ लेकर किसी बड़ी कार्ययोजना से चरमपंथियों को करारा जवाब दे सकता है |

अगर इराक संकट इसी तरह बढ़ता गया और  मलिकी सरकार हाथ पर हाथ धरे  बैठी रही तो इसके पूरे दुनिया के सामने गहरे अंजाम होंगे | भारत के लिए भी यह स्थिति निश्चित तौर पर गंभीर है क्युकि कई हजार लोग इराक में अपनी रोजी रोटी के लिए वहां गए हुए हैं | मौसुल , नजफ़, कुर्दिस्तान सरीखे कई शहरों में भारतीय कामगारों की बड़ी  फ़ौज काम कर रही है और वह इन हिंसा ग्रस्त इलाको में अभी भी फँसी हुई है | हालाँकि भारत सरकार ने तिकरित में केरल की 46 नर्सो को सुरक्षित निकाल कर भारत पहुंचा दिया है लेकिन अभी भी इराक के कई  शहरों में भारतीय खतरे में हैं | यह सभी स्वदेश वापसी की आस लगाये बैठे हैं लेकिन जिन कंपनियों में ये काम करते हैं उन सभी कंपनियों में इनका वेतन फंसा हुआ है | अगर इराक संकट नहीं सुलझता तो  भारत के लिए असल संकट तेल को लेकर भी शुरू होने वाला है |भारत का अस्सी फीसदी तेल इराक से आयत होता है | अगर संकट बढ़ा तो तेल के दामो में प्रति बैरल  भारी इजाफा होगा जिसकी मार भारतीय अर्थ व्यवस्था  को झेलने को मजबूर होना पड सकता है | अच्छे दिन आने की उम्मीद लगाये बैठी देश की जनता पहले की रेल के बड़े किराए , महंगाई की करारी मार झेल रही है  | ऐसे में बड़े तेल के दाम आम आदमी को तो सीधा प्रभावित करेंगे | ऐसे में बजट के निपटने के बाद अब मोदी की सबसे बड़ी परीक्षा ईराक संकट को लेकर होगी |  अब इन सब बदली परिस्थितियों के बीच  विदेश नीति के मोर्चे पर नमो की कूटनीति का पूरे देश को इन्तजार है |

1 comment:

hem pandey(शकुनाखर) said...

इराक संकट पर अन्दर की जानकारी देने वाली एक अच्छी पोस्ट !