बीते बरस 16 मई के दिन को याद करें । इस दिन पूरे देश नजरें लोक सभा चुनावो पर केन्द्रित थी । जैसे ही भाजपा ने प्रचंड जीत हासिल की वैसे हीं पूरा मीडिया मोदीमय हो गया था । तीसरी बार गुजरात को हैट्रिक लगाकर फतह करने के बाद नरेन्द्र दामोदरदास मोदी ने जैसे ही भाजपा को प्रचंड बहुमत दिलाया वैसे ही पूरा मीडिया मोदीमय हो गया । उनकी जीत ने कार्यकर्ताओ के जोश को भी दुगना कर दिया । इसके बाद महाराष्ट्र , हरियाणा , झारखंड और जम्मू में कमल खिलाने से भाजपा गदगद थी । अमित शाह के कसीदे हर कार्यकर्ता पढ़ रहा था । भाजपा के हर दफ्तर में उस समय दिवाली मनाई जा रही थी । लेकिन परिणाम आने के बाद नजारा बदला सा नजर आ रहा था । दिल्ली चुनावो के परिणाम आने के बाद 11 अशोका रोड से लेकर गोविन्द बल्लभ पंत मार्ग का नजारा झटके में बदल गया । भाजपा के राष्ट्रीय दफ्तर पर सन्नाटा पसरा था । पार्टी का कोई आला नेता और प्रवक्ता न्यूज़ चैनल्स को बाईट देने के लिए उपलब्ध नहीं था । शायद इसकी सबसे वजह दो बरस पहले दिल्ली सरजमीं में खड़ी ऐसी पार्टी थी जिसने केजरीवाल के नेतृत्व में दिल्ली में वह सब करके दिखाया जिसकी कल्पना किसी ने भी नहीं की थी । कहाँ तो भाजपा और आप लड़ाई दिल्ली में कांटे की बताई जा रही थी और जब चुनाव परिणाम आये तो भाजपा के चुनावी प्रबंधको को सांप सूंघ गया ।
किसी ने ठीक ही कहा है आप पर जितने व्यक्तिगत हमले होते हैं आप उतनी मजबूती के साथ उभरकर सामने आते हैं । दिल्ली के चुनावो के हालिया संकेतों को डिकोड करें तो जेहन में यही तस्वीर उभरकर सामने आती है । 2007 के गुजरात विधान सभा के चुनावो के दौर को याद करें । तब गुजरात में चुनावों के दौरान कांग्रेस मोदी को गोधरा पर घेरा करती थी और उन्हें मौत का सौदागर बताने मात्र से ही भाजपा की जीत आसान हो गयी थी । इन व्यक्तिगत हमलों से मोदी ना केवल भाजपा शासित राज्यों के कद्दावर सी एम के रूप में उभरे बल्कि इसी ऐतिहासिक जीत ने उनके कदम देश के सरदार बनने की दिशा में मजबूती के साथ बढ़ाये । इन बातों का जिक्र आज इसलिए करना पड़ रहा है क्युकि दिल्ली में आप की ऐतिहासिक और प्रचंड बहुमत से जीत ने राष्ट्रीय राजनीती में उस शख्स का कद बड़ा दिया है जिसे अब तक भगोड़ा अराजकवादी और नक्सली करार दिया जा रहा था ।
दिल्ली चुनाव जीतकर केजरीवाल ने सही मायनों में अपनी अखिल भारतीय छवि हासिल करने के साथ ही खुद को राष्ट्रीय राजनीती में भावी फ्रंट रनर के तौर पर पेश किया है । लोक सभा चुनावो में जिस तरह आप के प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गयी थी उससे यह भ्रम बन गया था कि आप आंतरिक लोकतंत्र नहीं है और यह पार्टी जल्द हुई बिखर जाएगी । लेकिन केजरीवाल ने हाल के दिनों में जिस तरीके से दिल्ली की सडकों पर कार्यकर्ताओ को साधकर अपनी बिसात बिछाई उसने इस भ्रम को तोड़ दिया । आप पार्टी के बारे में उनके विरोधी का एक बड़ा तबका जीत को लेकर आशंकित था । इस बार जिस तरीके से मोदी की टीम हर राज्य में लगी हुई थी उससे दिल्ली की लड़ाई में मोदी के मैजिक चलने के आसार बताये जा रहे थे । शायद तभी कहा जाने लगा था दिल्ली का यह चुनाव मोदी सरकार के 8 माह का कार्यकाल एसिड टेस्ट से कम नहीं है । लेकिन केजरीवाल ने अपने बूते दिल्ली फतह कर यह बता दिया पार्टी में उनको चुनौती देने की कुव्वत किसी में नहीं है ।
दिल्ली चुनाव में एक छोर पर केजरीवाल थे तो दूसरे छोर पर 120 सांसदों से लेकर 24 केंद्रीय मंत्रियो और दूसरे राज्य से लाये गए भाजपा नेताओ की टोली जो दिल्ली में भाजपा के कार्यकर्ताओ के साथ भाजपा करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रही थी । इन सभी ने केजरीवाल पर इतने ज्यादा व्यक्तिगत हमले किये जिसके बाद केजरीवाल दिल्ली की मजबूत दीवार बनकर उभरे । भाजपा का यही नकारात्मक चुनाव प्रचार दिल्ली में पार्टी की लुटिया को डुबो गया । कल तक जो भाजपा प्रवक्ता चुनाव परिणाम आने से पहले मिठाई बंटवाने की बात कह थे परिणाम आने चेहरे पर हताशा साफ़ झलक रही थी । कम से कम ऐसी करारी हार की कल्पना तो भाजपा के किसी नेता ने नहीं की होगी । दिल्ली में झाड़ू ने भाजपा का सूपड़ा ही साफ़ कर डाला । कांग्रेस तो ढल ही रही थी भाजपा में मोदी के अश्वमेध घोड़े की लगाम अब शायद दिल्ली थाम दे । इसका असर आने वाले समय में बिहार , उत्तर प्रदेश और बंगाल जैसे राज्यों पर भी पड़ सकता है ।
इस चुनाव में भाजपा ने केजरीवाल पर जितने व्यक्तिगत हमले किये शायद ही किसी राज्य के चुनावो में इस तरह के हमले किये गए । प्रधानमंत्री मोदी ने जहाँ लोक सभा चुनावो में केजरीवाल पर व्यक्तिगत हमले करने से बचे वहीँ इस बार रामलीला मैदान की पहली रैली से ही उन्होंने केजरीवाल को अपने निशाने पर ले लिया । भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की पूरी टीम ने केजरीवाल को विकास के आईने के बजाए अराजक नेता के तौर पर अपनी सभाओ में पेश किया लेकिन जनता की अदालत में केजरीवाल बरी हो गए । जनता ने दिल खोलकर जिस तरह झाड़ू को वोट दिए हैं उसने पहली बार साबित किया है अब जनता बेहतर विकल्प की तलाश में है । दिल्ली में लोगों ने आप को भाजपा और कांग्रेस के मुकाबले बेहतर विकल्प के रूप में देखा । ईमानदार चेहरों की लड़ाई में इस बार दिल्ली का महासमर घिर गया था | भाजपा के लिए तो दिल्ली में सरकार बनाना नाको चने चबाने जैसा बन गया था क्युकि प्रधान मंत्री मोदी की प्रतिष्ठा अब सीधे दिल्ली से जुड़ गयी | 49 दिन की सरकार गिरने और लोक सभा चुनाव के बाद भले ही केजरीवाल की रफ़्तार थम गयी हो लेकिन दिल्ली में उनका बड़ा जनाधार आज भी है इस बात से अब इनकार नहीं किया जा सकता | झुग्गी झोपड़ी से लेकर ऑटो चालक और रेहड़ी लगाने वालो से लेकर महिलाओ के एक बड़े तबके को केजरीवाल करिश्माई तुर्क नजर आता है जिससे उन्हें आज भी बड़ी उम्मीद हैं । भाजपा के आतंरिक सर्वे में भी पार्टी की हालत केजरीवाल नाम के भूत ने खराब की हुई थी शायद इसका बड़ा कारण अरविन्द केजरीवाल के कद का कोई नेता दिल्ली में ना होना था | वहीँ भाजपा भी चुनाव को लेकर अपने पत्ते फेंटने की स्थिति में नहीं थी | उसके तुरूप के इक्के हर्षवर्धन केंद्र की नमो सरकार में मंत्री रहे और जगदीश मुखी से लेकर आरती शर्मा और विजय गोयल से लेकर विजेंदर गुप्ता आउटडेटेड हो चुके थे और इनको आगे कर भाजपा दिल्ली में कमल खिलाने में नाकाम रह सकती थी क्योंकि उसे मालूम था कि दिल्ली की जनता को उसने जो भरोसा दिलाया था वह उसे पूरा नहीं कर पाई ह। किरण बेदी को भी आखरी समय में पार्टी ने आगे किया । बाहरी नेताओ पर ज्यादा भरोसा और अपने नेताओं की अंदरूनी लड़ाई ने पार्टी में गुटबाजी बढ़ाने का काम किया । भाजपा ने जिस महंगाई को मुद्दा बनाकर चुनाव लडा उसे वह दूर नहीं कर पाई साथ ही सबसे बड़ा दल होने के बाद भी वह सरकार बनाने से पीछे हट गयी और आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के साथ मिलकर 49 दिनों की सरकार चलायी जिसके चलते भाजपा की दिल्ली में कई सर्वे में लोकप्रियता में भारी गिरावट हाल के दिनों में देखने को मिली |वहीँ समाज के मजदूर और पिछड़े तबके के साथ ही मध्यम वर्ग और युवाओ का एक बड़ा वोट बैंक आप के साथ आज भी जुड़ा रहा | दिल्ली के परिणाम इस बात की तस्दीक करते हैं ।
वहीँ अब अपने को चाय बेचने वाले का बेटा कह लोगों को कॉर्पोरेट के आसरे चमचमाते कायकल्प होने के सपने दिखाने वाले नरेंद्र मोदी से लोक सभा चुनाव निपटने के बाद जनता की अपेक्षाएं इस कदर बड़ी हुई है आने वाले पांच बरस में उनके पूरे होने पर अब सभी की नजरें लगी रहेंगी | वैसे उनके अब तक के कार्यकाल में आम आदमी ही सबसे ज्यादा निराश हुआ ह और महंगाई की सबसे अधिक मार इसी तबके ने झेली | जिस नरेंद्र मोदी सरकार ने कांग्रेस मुक्त भारत का सपना लोक सभा चुनावो के चुनाव प्रचार के दौरान दिखाया था वह सरकार भी अब कांग्रेस के पग चिन्हों पर चलती दिखाई दे रही है | बीमा और ऍफ़ डी आई सरीखे मसलो पर कभी कांग्रेस को घेरने वाली भाजपा आज सत्ता में आने के बाद अब इन सबको लागू करने का मन बना चुकी है तो स्थितियों को बखूबी समझा जा सकता है | महंगाई लगातार बढ़ रही हैं लेकिन सरकार इस पर चुप्पी नहीं तोड़ रही | उसका ध्यान स्वच्छ भारत से लेकर गंगा की साफ़ सफाई और अंतर्राष्ट्रीय साख बनाने में लगा रहा | लव जेहाद , हिन्दू राष्ट्रवाद, घर वापसी जैसे मसले उछालकर उसके नेता खुद मोदी की छवि पर बट्टा लगाने पर तुले रहे । कभी विपक्ष में रहने पर भाजपा ने सत्ता में आने पर 30 फीसदी की सब्सिडी और बिजली पर 700 करोड़ की सब्सिडी देने का वादा किया था जिससे उन्होंने आज दिल्ली में उन्होेने दिल्ली में ही पल्ला झाड लिया | यही नहीं दिल्ली चुनावों से ठीक पहले अमित शाह काले धन के मसले को चुनावी जुमला बताने से भाजपा को बड़ा नुकसान हुआ । बेशक अब मोदी को भी इस बात को समझना जरुरी होगा कि लोक सभा चुनाव और राज्यों के विधान सभा चुनावों में जनता का मूड अलग अलग होता है जिसके ट्रेंड को हम हाल के कुछ वर्षो से देश में बखूबी देख भी रहे हैं | देश में केजरीवाल का जादू भले ही ना चला हो लेकिन दिल्ली में आज भी केजरीवाल सब पर भारी पड रहे हैं और शायद इसकी सबसे बड़ी वजह दिल्ली में उनके साथ जुडा मजबूत जमीनी संगठन है | दिल्ली की गद्दी छोड़कर लोक सभा चुनावो में जल्द कूदने को अपनी भारी भूल बता चुके केजरीवाल शुरुवात से ही इस चुनाव में बहुत संयम के साथ काम कर रहे थे । आम आदमी के वोटर के साथ वह अपनी इस भावनात्मक अपील के साथ जुड़े । वहीँ जनता भी केजरीवाल के मुख्यमंत्री पद छोड़ने को अभी भूली नहीं थी । महंगाई पर भाजपा की विफलता , बिजली पानी की बड़ी कीमतों से दिल्ली में अगर कोई सबसे ज्यादा लाभ लेने की स्थिति में था वह आम आदमी पार्टी ही थी |
अब दिल्ली फतह के बाद केजरीवाल इस चुनावो में सही मायनो में जीत के नायक बनकर उभरे हैं । कार्यकर्ताओ में उनकी दीवानगी है । तो क्या माना जाए केजरीवाल 2015 की कई राज्यों की विधान सभा की बिसात में सबसे बड़ा चेहरा होंगे ? क्या कुछ समय बाद वह अपने कार्यकर्ताओ वाली लीक पर चलने का साहस दिखायेंगे और सीधे राष्ट्रीय राजनीती के केंद्र में होंगे ? ये ऐसे सवाल हैं जो इस समय भाजपा के आम कार्यकर्ता से लेकर पार्टी के सहयोगियों और यू पी ए के सहयोगियों से लेकर कांग्रेस को परेशान कर रहे हैं । अस्सी के दशक को याद करें तो उस दौर में एक बार इंदिरा गांधी ने तमाम सर्वेक्षणों की हवा निकालकर दो तिहाई प्रचंड बहुमत पाकर संसदीय राजनीती को आईना दिखा दिया था । इस बार केजरीवाल ने दिल्ली के दिल को जीत लिया । भाजपा के पास अब विपक्ष के तौर पर दिल्ली विधान सभा में नामलेवा सीटें ही बची हैं । सबका साथ सबका विकास के भाजपा के नारे फ़ेल हो गए । मोदीनोमिक्स मॉडल की हवा मायनो में निकल गयी कि जगदीश मुखी और किरण बेदी सरीखे प्रत्याशी हार गए । जनता ने केजरीवाल के 49 दिनों के माडल पर न केवल अपनी मुहर लगाई बल्कि मुस्लिम बाहुल्य और झुग्गी झोपड़ी वाले इलाको में आप का प्रदर्शन काबिले तारीफ रहा । यही नहीं दिल्ली फतह करने के बाद अब अब केजरीवाल रुपी राजनीति के नए नायक का परचम एक नई बुलंदियों में पहुच गया है । आम आदमी का जादू लोगो पर सर चदकर बोल रहा है । उनका जादू किस कदर चला इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि हर इलाके में झाड़ू ने भाजपा की सफाई कर दी । कम से कम यह केजरीवाल की लोकप्रियता को असल रूप में बयाँ करवाने के लिए काफी है । हर जगह झाड़ू की तूती ही इस चुनाव में बोली है । पूरा दिल्ली इस कदर केजरीवाल के साथ था कई समाज के हर तबको का समर्थन जुटाने वह सफल रहे ।
दिल्ली का युवा वोटर अब मोदी के अलावे पर केजरीवाल पर अपनी नजरें गढाये बैठा है । उसकी मानें तो वैकल्पिक नई राजनीती का बेडा केजरीवाल ही पार लगा सकते हैं । दिल्ली के प्रचंड बहुमत के बाद केजरीवाल अब बड़े नेता के तौर पर उभर कर सामने आ गए हैं । दिल्ली जीत के बाद केजरीवाल निश्चित ही अब सबसे मजबूत हो गए हैं। अब केजरीवाल के सामने जनता से किये गए वायदों को पूरा करने की कठिन चुनौती है । इस बार उनके साथ प्रचंड बहुमत है इसलिए वह जिम्मेदारी से पल्ला नहीं झाड़ सकते । उम्मीद है वह दिल्ली को मॉडल राज्य बनाने के लिए एक नई लकीर अपने इस नए कार्यकाल कार्यकाल में खींचने की कोशिश करेंगे ।
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