मुरैना, उज्जैन, हरदा, चक्रघाट ,भैंसदेही, कोटार, सुवासरा और विदिशा के नगरीय निकाय चुनावों में भारतीय जनता पार्टी की फतह के बाद मध्य प्रदेश के मुख्य मंत्री शिवराज सिंह चौहान का कद राष्ट्रीय राजनीती में एक बार फिर बढ़ गया है । व्यापम घोटाले पर तीखी आलोचना झेलने के बावजूद मध्यप्रदेश में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी ने प्रदेश के 10 में से 8 नगरीय निकाय के चुनावों में जीत हासिल की है। मध्यप्रदेश के हालिया निकाय चुनाव में भाजपा ने कांग्रेस से न केवल आठ सीटें छीन ली बल्कि कांग्रेस महज एक ही सीट बचा पाने में सफल हो पाई। अब राज्य के 16 नगर निगम पर भाजपा का कब्ज़ा हो चला है। व्यापम की आंच के बीच 49 मौतों के बाद यह जीत मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के लिए बड़ी राहत लेकर आई है | मध्य प्रदेश के इन नगरीय निगमों को जीतने के बाद शिवराज ने अपने को राजनीती के चाणक्य के रूप में स्थापित किया है बल्कि निगम दर निगम कांग्रेस का सफाया जिस तरीके से हुआ है उसने पहली बार इस बात को साबित किया है प्रदेश में कांग्रेस को सत्ता में वापसी के लिए लम्बा इन्तजार करना पड़ सकता है ।
विधानसभा और फिर लोकसभा चुनावों के बाद नगरीय निकाय चुनावों में मिली कांग्रेस की हार में बड़े सबक छिपे हुए हैं । इसने एक बात को साबित किया है अब अगर आपको चुनाव जीतना है तो खूब पसीना बहाना होगा और जनता की नब्ज को पकड़ना होगा जिसे शिवराज ने मध्य प्रदेश में बीते कई वर्षों से बखूबी पकड़ा है । वह इन चुनावो में ना केवल जीत के स्टारप्रचारक थे बल्कि भाजपा अध्यक्ष नंद कुमार चौहान ने जिस तरीके से शिवराज के साथ बिसात बिछाई वह न केवल उनके बेहतर तालमेल की मिसाल थी बल्कि सत्ता और संगठन का बेहतर तालमेल भी नजर आया । इन निकाय चुनावों के परिणामों ने शिवराज को संजीवनी देने का काम किया है | कहने को यह नगरीय निकाय चुनाव था लेकिन भाजपा शुरू से इन चुनावों को लेकर संजीदा थी शायद यही वजह रही चुनाव की तारीखें घोषित होते ही उसने अपना होम वर्क शुरू कर दिया | भाजपा के नेताओं ने इन चुनावों में नगरीय निकायों में घूमघूम कर न केवल प्रचार किया बल्कि शिव के मंत्रियों ने भी दिन रात एक किया | इस जीत के बाद भाजपा गदगद है वहीँ व्यापम मसले पर शिवराज के इस्तीफे की मांग कर रही कांग्रेस को भी सांप सूंघ गया है |
कांग्रेस ने विधानसभा-लोकसभा चुनावों के बाद नगरीय निगम चुनावों में भी अपने लगातार कमजोर प्रदर्शन को दोहराया है। नगर निगम चुनाव नतीजों से साफ हो गया है कि कांग्रेस कार्यकर्ताओं का भरोसा डगमगा गया है। चुनाव में उनके शीर्ष नेताओं के बीच भारी गुटबाजी देखने को मिली । गुटबाजी की बीमारी सुरेश पचौरी के दौर से ही कांग्रेस का पीछा नहीं छोड़ रही है । अरुण यादव के दौर के आने के बाद भी परिस्थितियां कमोवेश वैसी ही हैं जैसी कमोवेश बीते दौर में हुआ करती थी ।
कांग्रेस के पास मध्य प्रदेश में दिग्गी राजा , ज्योतिरादित्य , अरुण यादव , अजय सिंह, कमलनाथ, सुरेश पचौरी, कांति लाल भूरिया के चेले चपौटों की अभी भी भारी फ़ौज ही कागजो में है | कई बरस बाद भी उसके इन दिग्गज नेताओ के इलाको में ही कांग्रेस की माली हालत सुधर नहीं सकी है । मिसाल के तौर पर कांग्रेस के कद्दावर नेता पूर्व केंद्रीय मंत्री कमलनाथ का अपने गृह क्षेत्र में बुरा हाल है | आज अगर वहां कोई चुनाव हो तो वह एक भी सीट अपने दम पर नहीं जिता सकते | छिंदवाड़ा में भाजपा का प्रभाव लगातार बढ़ रहा है जबकि छिंदवाड़ा ऐसी जगह है जहाँ कमलनाथ का जबरदस्त प्रभाव एक दौर में न केवल था बल्कि उनके अलावे वहां पर किसी का पत्ता तक नहीं खड़कता था | आज हालत यह है भाजपा कमलनाथ के इलाके में अपने पैर जमाने की कोशिशों में लगी है | आने वाले दिनों में कमलनाथ को अपना गढ अगर मजबूत रखना है तो अभी से उन्हें खासी मेहनत की जरुरत पड़ेगी नहीं तो शिवराज की आंधी में पूरी कांग्रेस ढह जायेगी । यही हाल राजगढ की सारंगपुर सीट का है जहाँ पर दिग्गी राजा का एकछत्र राज शुरू से कायम रहा है लेकिन अब यहाँ भी कांग्रेस ढलान पर है और दिग्गी राजा के लिए खतरे की घंटी बज रही है |
कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव के लिए भी नगरीय निकाय की हार निश्चित ही बड़े खतरे की घंटी है । इन चुनावो के बाद उनका सिंहासन भी खतरे में पड़ता नजर आ रहा है । कांग्रेस के साथ मध्य प्रदेश में एक बड़ी बीमारी गुटबाजी की लग गयी है जो हर चुनाव में उसका खेल ख़राब कर देती है । इस बार भी ऐसा ही हुआ है | कांग्रेस के हर बड़े नेता के इलाकों में भाजपा मजबूती के साथ आगे बढती जा रही है लेकिन कांग्रेस हर चुनाव से सबक सीखने को तैयार ही नहीं दिखती | वहीं भाजपा की जीत में बूथ मैनेजमेंट और कार्यकर्ताओ के समर्पण और शिवराज सिंह चौहान से लेकर संगठन की मजबूत बिसात को हर छोटे बड़े चुनाव में नजरअंदाज नहीं किया सकता । भाजपा की हर जीत में जीत के असल नायक शिवराज ही रहते हैं । मुख्यमंत्री ना केवल हर चुनाव में कई किलोमीटर के रोड शो न केवल अपने दम पर करते हैं बल्कि पूरे प्रदेश में घूम घूम कर अपने प्रत्याशी के लिए अपना तन मन समर्पित करने से कभी पीछे नहीं रहते वहीं कांग्रेस के पास शिवराज सरीखा कोई नेतृत्व नहीं बचा है जो उनको चुनौती देने की स्थिति में खड़ा है |
नमो के कांग्रेस मुक्त भारत की परिकल्पना अब मध्य प्रदेश में साकार होती दिख रही है । शिवराज ने मध्य प्रदेश में जिस तरीके से बीते कुछ बरस से सबको साथ लेकर अपना मध्य प्रदेश बनाने की ठानी है वह उनकी दूरगामी सोच का परिचायक है । मुख्यमंत्री के रूप में जिस तरीके से शिवराज ने मध्य प्रदेश में काम किया है और उसे बीमारू राज्य से बाहर निकाला है उससे अब भाजपा का शिवराज मॉडल आने वाले दिनों में भाजपा शासित राज्यों के लिए रोल मॉडल बन सकता है । नगरीय निकाय चुनाव के हालिया परिणाम भाजपा के पक्ष में आने से निश्चित ही शिवराज मजबूत होंगे । हाल के दिनों में कैलाश विजयवर्गीय के राष्ट्रीय राजनीती में चुनावी प्रबंधक के रूप में उभरने से कुछ लोग यह मान रहे थे हरियाणा में भाजपा की सरकार बनने के बाद अब राज्य में कैलाश विजयवर्गीय को शिवराज का उत्तराधिकारी माना जा रहा था लेकिन अब कैलाश के राष्ट्रीय महासचिव बनाये जाने के बाद से शिवराज के लिए मध्य प्रदेश की राह निष्कंटक है | मौत के व्यापम ने शिवराज सरकार का अमन चैन छीन लिया था लेकिन इस जीत के बाद शिवराज जिस तरीके से मजबूत हुए हैं उसने यह साबित किया है फिलहाल जिस अंदाज में वह मजबूती कदम बडा रहे हैं उससे लगता तो यही है उनके कद को चुनौती दे पाने की स्थिति में फिलहाल कोई नेता दूर दूर तक उनके आस पास भी नहीं फटकता ।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रदेश में हुए हर रोड शो में न केवल विकास का तड़का लगाया और अपनी उपलब्धियों के आसरे मतदाताओ का दिल जीतने में कोई कोर कसार नहीं छोडी है । संगठन और सरकार के जबरदस्त तालमेल से भाजपा का कांग्रेस मुक्त भारत का सपना साकार होता जा रहा है। आने वाले वर्षों में अब मध्य प्रदेश में कोई चुनाव नहीं है लेकिन हाल ही में हुए चुनावों से कांग्रेस को सबक लेने की आवश्यकता है ताकि वह अपनी खोई प्रतिष्ठा पुन: प्राप्त कर सकें।
नगरीय चुनावो में कमल के खिलाने के बाद शिवराज ने साबित कर दिया है मध्य प्रदेश में उनका राज किसलिए चलता है । इस जीत के बाद केन्द्रीय स्तर पर उनका कद एक बार फिर बढ़ गया है । संभवतया केन्द्रीय नेतृत्व अब मध्य प्रदेश को लेकर लिए जाने वाले हर निर्णय में उनको फ्री हैण्ड दे । वहीँ कांग्रेस को चाहिए वह बचे वर्षो में मजबूती से विपक्ष की भूमिका निभाए अन्यथा शिवराज अकेले ही सभी पर भारी पड़ जायेंगे ,इससे अब शायद ही कोई इंकार करे । कांग्रेस को चुनावो के बाद अब इन बातो की दिशा में गंभीरता से विचार करने की जरुरत है ।
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