समंदर के आगोश में लाल रंग की शर्ट और नीले रंग के जूते पहने 3 बरस के मासूम एलेन कुर्दी के शव की तस्वीर ने दुनिया भर के लोगों को न केवल झकझोर कर रख दिया बल्कि असंवेदनशील समाज और भूख से संघर्ष करते मानव की तस्वीरों को पूरी दुनिया के सामने उजागर कर दिया | मासूम एलेन उन सीरियाई लोगों में से एक था जो ग्रीस जाने के लिए नाव पर सवार हुआ था । नाव के रास्ते में डूब जाने से उसकी मौत हो गई वो तो शुक्र रहा फोटोग्राफर निलुफेर देमीर का जिन्होंने अपने कैमरे से एलेन की फोटो खींची और देखते ही देखते यह फोटो सोशल मीडिया से लेकर ट्विटर पर ट्रेंड करने लगी और पूरी दुनिया में छा गई। औंधे मुह गिरे उस बेजान मासूम पड़े एलेन की लाश ने यूरोपीय देशों को न केवल शरणार्थियों के असल संकट पर नए सिरे से सोचने को विवश किया बल्कि आनन फानन में अपनी सीमाएं भी खोलने को मजबूर कर दिया | एलेन की तस्वीर अगर सही मायनों में मीडिया के सामने नहीं आई होती तो शायद सीरिया के संकट पर पूरी दुनिया इस तरह चिंतन मनन नहीं कर पाती जैसा वह अभी कर रही है | आये दिन हर देश द्वारा शरणार्थियों के मसले पर बयानबाजी का दौर बदस्तूर जारी है और शायद ही कोई दिन ऐसा गुजर रहा है जब दुनिया के विभिन्न राष्ट्राध्यक्षों की बहस के केंद्र में लाखों प्रवासी न रहें | द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पूरी दुनिया सबसे भीषण संकट का सामना इस समय कर रही है जहाँ लाखों शरणार्थी सर छिपाने के लिए 2 गज जमीन के लिए मोहताज दिखाई दे रहे हैं वहीँ यूरोपीय देशों की भी इन शरणार्थियों के मसले पर कोई कारगर नीति ना होने से यह समस्या दिन दिन गहराती ही जा रही है |
असल में अरब देशों में 2011 के बाद से हालात भयावह होते चले गए | सीरिया में हुआ गृह युद्ध इसकी बड़ी वजह रहा जिसकी अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने अनदेखी की और असद सरकार को हटाने के लिए अपना एड़ी चोटी का जोर उन ताकतों को समर्थन देने में लगाया जो असद के विरोधी रहे | अतीत में असद की निकटता ईरान से जगजाहिर रही है और सऊदी अरब और क़तर सरीखे देशों की प्रतिद्वंदिता ईरान के शिया गुट से रही | सीरिया में पिछले पांच साल से गृहयुद्ध चल रहा है | मार्च 2011 में सरकार के खिलाफ प्रदर्शन शुरू हुए | उस समय सीरिया की आबादी 2.3करोड़ थी | इस बीच करीब 40 लाख लोग देश छोड़ चुके हैं और तकरीबन 80 लाख देश में ही विस्थापित हुए हैं और दो लाख से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं | रही सही कसर अमरीका ने ईराक पर हमले ने पूरी कर दी | सद्दाम हुसैन के पास जैविक हथियारों का हवाला देकर अमरीका की मंशा ईराक के तेल साम्राज्य पर कब्ज़ा जमाना रही लेकिन उसके बाद से ईराक अमरीका के हाथ संभल नहीं पाया और आज हालत यह है अरब देशों में आई एस का आतंकी गढ़ मजबूत होता जा रहा है और अरब देशों से लोग खौफ के चलते हाल के कुछ बरस में पलायन करने को मजबूर हुए है | मौजूदा दौर में यूरोप का यह सबसे भयानक शरणार्थी संकट है जहाँ पश्चिम एशिया और उत्तरी अफ़्रीकी और अरब देशों के लोगो की मजबूरी किसी तरह यूरोप में प्रवेश पाना बन गई है क्युकि मौजूदा दौर में उनके सामने बुनियादी जरूरत से लेकर रोजगार का संकट तो है ही साथ में इस्लामिक स्टेट के बढ़ते प्रभाव के चलते उनके सामने जिन्दगी की जंग जीतना पहली न्यूनतम जरुरत बनता जा रहा है |
यूरोपीय देशो में शरणार्थियों को पनाह देने के लिए अलग अलग रुख अपनाए जाने को लेकर यूरोपीय संघ आयोग ने अब नई योजना का एलान किया है | आयोग के चेयरमेन ज्यां क्लाड जंकर ने शरणार्थियों के संकट से निजात पाने के लिए शरणार्थियों का कोटा बढाने की योजना बनाई है | जंकर ने आशंका जताई है कि शरणार्थियों के मसले पर यूरोपियन यूनियन में विभाजन बढ़ सकता है । इधर संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी आयोग के प्रमुख एंटोनियो ग्यूटेरेस ने यूरोपीय देशों से अपील की कि वह करीब दो लाख शरणार्थियों को तुरंत शरण दें वहीँ जर्मनी ने कहा कि यूरोप के सभी देश शरणार्थियों को जगह देने से इनकार करने लगेंगे तो इससे आइडिया ऑफ यूरोप ही खत्म हो जाएगा।
शरणार्थियों को शरण देने के मसले पर अब तक जर्मनी ने जैसी उदारता दिखाई है उसकी मिसाल बहुत कम देखने को मिलती है | अपनी नई पहल से मर्केल का कद दुनिया में ना केवल ऊँचा हुआ है बल्कि उनका मान भी बढ़ा है | शरणार्थियों के स्वागत के लिए दिल खोलकर जर्मनी न केवल पैसा लुटा रहा है बल्कि बच्चो का स्वागत उपहार से कर रहा है और जर्मनी की इस सदाशयता का अब तक स्वीडन , स्पेन और इटली सरीखे राष्ट्रों ने समर्थन किया है साथ ही वह जंकर की नई कार्ययोजना के सुर में सुर मिलाते देखे जा सकते हैं लेकिन हंगरी को इस पर आपत्ति है और उसने अपनी सीमा में बाढ़ लगाने का एलान कर शरणार्थी संकट को और अधिक गहरा दिया है | हंगरी ने तो सर्बिया की सीमा पर 175 किलोमीटर लंबी बाड़ लगाकर अपना रुख इस मसले पर अधिक साफ कर दिया है | हंगरी के पडोसी पोलैंड , चेक गणराज्य और स्लोवाकिया को शरणार्थियों के कोटे में इजाफा मौजूदा दौर में कतई मंजूर नहीं है | इधर संयुक्त राष्ट्र संघ की शरणार्थी समिति के सदस्य गुटरेस ने भी यूरोप में कानूनी तरीके से दाखिल होंने वाले शरणार्थियों की संख्या बढाये जाने का समर्थन किया है | ऐसे में सभी देशो की शरणार्थियों के मसले पर अलग अलग सुर होने से शरणार्थी संकट यूरोप के लिए सबसे बड़ी पहेली बन गया है जिसका सुलझना फिलहाल तो दूर की गोटी हो चला है |
ब्रिटेन ने बीते बरस की शुरुवात के बाद से 216 तो तुर्की ने 2 लाख सीरियाई शरणार्थियों को अपनाया है। आस्ट्रिया और जर्मनी ने भी लाखो शरणार्थियों को अपनाकर मानो इनके लिए दिल खोलकर अपने देश के दरवाजे खोल दिए हैं वहीँ जर्मनी की मर्केल सरकार ने तो शरणार्थियों के लिए 450 अरब से ज्यादा की धनराशि का बजट तक तय किया हुआ है | हालाँकि इस मसले पर अधिकाँश लोग मर्केल के इस कदम की आलोचना कर रहे हैं वहीँ कुछ मर्केल के इस कदम को कुछ लोग सीधे अर्थव्यवस्था से जोड़ रहे हैं क्युकि जर्मनी के पास इस दौर में युवा आबादी का संकट है और शरणार्थी उसकी अर्थव्यवस्था के लिए फायदे का सौदा बन सकते हैं लेकिन मर्केल की हालिया घोषणाओं ने वैश्विक राजनीती में उनके कद को बढाने का काम किया है क्युकि यह जर्मनी की उदारता ही है जो ईयू के अन्य देशो को भी शरणार्थी मसले पर सोचने के लिए मजबूर न केवल कर रही है बल्कि यूरोप को सीधे इस संकट से जोड़ने का काम कर रही है | जर्मनी ने सबसे अधिक शरणार्थी अपनाए हैं और वहां के लोग उनका स्वागत भी कर रहे हैं। जर्मनी के उप चांसलर जिगमार गाब्रियल ने कहा है कि जर्मनी कई साल तक हर वर्ष कम से कम पांच लाख शरणार्थियों को संभाल सकता है वहीँ जर्मन चांसलर मर्केल ने कहा है कि ^जर्मनी में बड़ी संख्या में आ रहे शरणार्थियों से आने वाले बरसों में उनका देश बदल जाएगा। जर्मनी शरण देने की प्रक्रिया को और तेज करने की घोषणा करते हुए उन्होंने कहा है उनका देश छह अरब यूरो की लागत से अतिरिक्त मकान बनाएगा। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कैमरन पहले तो अपने घरेलू हालातों की वजह से कुछ कह पाने कि स्थिति में नहीं थे लेकिन मूड भांपकर उन्होंने भी कहा है कि अगले पांच साल में 20 हजार शरणार्थियों को ब्रिटेन में शरण दी जाएगी इसके तहत असुरक्षित बच्चों और अनाथ बच्चों को पहली प्राथमिकता दी जाएगी। वक्त की नजाकत देखते हुए फ्रांस के राष्ट्रपति ओलां ने भी कहा कि फ्रांस की सरकार 24 हजार शरणार्थियों को शरण देने के लिए तैयार है।^ तुर्की के राष्ट्रपति रीसेप अर्डान ने एलेन की मौत को असंवेदनशीलता की पराकाष्ठा बतलाकर नई बहस को जन्म दे दिया है | हालांकि अमेरिका ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन ने भी सीरियाई लोगों को शरण देने की पेशकश की है लेकिन इन सभी ने अपने देश के कानून की समीक्षा के तहत कम करने के आदेश जारी किये हैं |
शरणार्थियों के मसले पर यूरोपीय देशों के आतंरिक मतभेद खत्म नहीं हो रहे हैं। पहले कोटा प्रणाली का सुझाव आया जो अस्वीकृत हो गया है। इसका एक कारण यह है कि कुछ देशों में ज्यादा शरणार्थी आ चुके हैं और वह भारी दबाव के साये में जी रहे हैं। पूर्वी यूरोप के अधिकांश देश कोटा प्रणाली के साथ खड़े नहीं हैं क्युकि उनका मानना है बड़ी संख्या में मुस्लिमो के आने से यूरोपीय संघ का इसाई स्वरुप तहस नहस हो जाएगा |
हंगरी सहित यूरोपीय संघ के कई देशों ने बाध्यकारी कोटा परमिट का विरोध किया है | हंगरी के प्रधानमन्त्री ओरबान ने बुडापेस्ट में हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टोर ओरबान ने शरणार्थियों के मसले पर कहा कि यह सभी लोग यूरोप के अन्य देशों में सुरक्षित जीवन की तलाश कर रहे शरणार्थी नहीं हैं बल्कि जर्मनी में रहने की मंशा से आ रहे अप्रवासी हैं। वहीं डेनमार्क ने सैकड़ों शरणार्थियों को सीमा पर रोकने के बाद जर्मनी के साथ सभी रेल संपर्क बंद कर दिए हैं। डेनमार्क ने दोनों देशों को जोड़ने वाले हाईवे को भी बंद कर दिया है। स्पेन के गृह मंत्री ने चेतावनी जारी करते हुए कहा है सीरिया से आ रहे इन प्रवासियों की कड़ी निगरानी जरूरी हैं क्युकि यह सभी उन शहरों से आ रहे हैं जहाँ पर आई एस आई एस का प्रभाव अधिक है ऐसे में इनके शरण लेने से आई एस आई एस के नुमाइंदे शरणार्थी बनकर यूरोप में इंट्री पा सकते हैं वहीँ न्यूजीलैंड ने तो महिलाओं और बच्चो को शरण देने और पुरुष शरणार्थियो को आई एस के आतंकियों से लड़ने की सलाह देकर एक अनूठी नई बहस को जन्म देने का काम किया है | वैसे आने वाले दिनों में अगर जंकर प्लान की कोशिशें रंग लायी तो यूरोपियन यूनियन में अनिवार्य कोटा परमिट परवान चढ़ सकता है और बहुत हद तक शरणार्थियों का संकट सुलझ सकता है |
अब तक साढ़े 4 लाख लोग जहाँ यूरोपीय देशों में शरण मांग चुके हैं वहीं बीते बरस सीरिया, इराक और अफ्रीकी देशों से पांच लाख से भी ज्यादा लोग भाग कर यूरोप को गले लगा चुके हैं। यूरोप में शरण लेने वाले लोगों में अधिकतर तादात सीरिया और लीबिया और अफ़्रीकी देशों की है जहां आइएसआइएस ने आतंक का कहर बरपाया हुआ है | इराक और नाइजीरिया सरीखे शहरों से भी लोग यूरोप की तरफ या तो पलायन कर चुके हैं या वह पलायन की तैयारी में हैं | शरणार्थी संकट पर अरब जगत की चुप्पी समझ से परे दिख रही है और इन सभी अरब देशो में शरणार्थी असुरक्षित भी है शायद यह भी एक मजबूरी है जो रोजगार के अभाव में इन्हें अरब देशों से लगातार पलायन करने को मजबूर कर रही है |
यूरोपियन देशो की सबसे बड़ी बात यह है यहाँ के सदस्य नागरिको को किसी भी देश में जाकर रोजी रोटी कमाने और फिर बसने की आजादी लेकिन शरणार्थियों के बढ़ते सैलाब ने ई यू के देशों के होश उड़ाकर रख दिए हैं शायद यही वजह है शरणार्थियों की बढ़ती संख्या से यूरोप इस समय परेशान हो चला हैं लेकिन असल संकट मौजूदा दौर में आई एस आई एस के उभार का है जो दुनिया भर के नौजवानो को इस्लामिक साम्राज्य खड़ा करने के लिए एकजुट कर रहा है बल्कि ऑनलाइन भर्ती का अभियान भी पूरी दुनिया में चलाये हुए है और तो और आई एस ने पाक और अफगानिस्तान में सक्रिय तालिबान के सहयोग से सीरिया , ईराक, टर्की, लीबिया , यमन , कैमरून में अपनी मौजूदगी का अहसास करवा दिया है शायद यही वजह है यहाँ रहने वाले नागरिक अपने को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं और गेटवे आफ यूरोप को अपना नया आशियाना बनाने को मजबूर हो रहे हैं | आज जरुरत इस बात की है पूरी दुनिया को शरणार्थियों के संकट के मजमून को समझते हुए आई एस आई एस के खिलाफ बड़ी जंग मिलकर लड़ने का ऐलान करना चाहिए क्युकि यह इस्लामिक स्टेट अपनी ताकत में दिनों दिन इजाफा करते जा रहा है और नौ दशक पुरानी खलीफा व्यवस्था को फिर से कायम कर अपना दबदबा पूरी दुनिया में कायम करना चाहता है लेकिन इस लड़ाई में मासूम लोग पिस रहे हैं जो खौफ के चलते अपने देशों से या तो भागने को मजबूर हो रहे हैं या भागने की तैयारी में हैं लेकिन त्रासदी देखिये मौजूदा दौर में यूरोपियन यूनियन इन शरणार्थियों को जगह देने से इनकार कर रही है या अपने देशो के दबावों के चलते किसी ठोस निर्णय को लेने में हिचक रही है लेकिन यकीन जानिए यह दुनिया का ऐसा गंभीर संकट है अगर दुनिया ने इस प्रकरण से नजरें फेर ली तो आने वाले दिनों में यह संकट भयावह रूप धारण कर सकता है इससे इनकार नहीं किया जा सकता | देखना होगा आने वाले दिनों में यूरोपीय देश इस संकट से कैसे पार पाते हैं ? उम्मीद पर दुनिया कायम है और शायद आने वाले दिनों में शरणार्थियों के संकट पर कोई ठोस हल निकालने की पहल ई यू के 28 देशों से ही होगी और शरणार्थी संकट की नई लकीर इन्ही देशो के आसरे खींची जाएगी इसकी उम्मीद तो हमें करनी ही चाहिए |
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