बिहार की सत्ता गंवाने के बाद भाजपा बैकफुट पर है | बिहार की हार का असर अब उन राज्यों में देखने
को मिल सकता है जहाँ आने वाले दिनों में चुनाव होने वाले हैं | बिहार चुनावों में शाह और मोदी की जोड़ी ने जिस
अंदाज में स्थानीय नेतृत्व को नजरअंदाज कर बाहरी लोगों पर अपना भरोसा जताया उसका
खामियाजा भाजपा को बिहार में उठाना पड़ा जिसकी टीस पार्टी को लम्बे समय तक सताती
रहेगी | खासतौर से पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष
अमित शाह को जिन्हें मीडिया के एक बड़े वर्ग ने आधुनिक राजनीति का चाणक्य करार दिया
था |
बिहार की करारी हार के बाद अमित शाह पर पार्टी के बुजुर्ग नेताओं ने
जिस अंदाज में हमले किये हैं उससे पहली बार संघ को मध्यस्थता के लिए सामने आना पड़ा
जिसका परिणाम यह हुआ कि भाजपा में बुजुर्ग नेताओं ने शाह से सुलह के बाद अपना मुह बंद रखने
में भलाई समझी है लेकिन बिहार की करारी हार ने भाजपा में अमित शाह सरीखे चुनावी
प्रबंधकों के चुनावी प्रबंधन पर पहली बार न केवल सवाल उठाये हैं बल्कि यह भी
बतलाया है आने वाले दिनों में राज्यों के विधान सभा चुनावों में अगर भाजपा ने
स्थानीय नेताओं के बजाए पी एम का मुखौटा ही आगे किया तो भाजपा की मुश्किलें बढ़नी
तय हैं | बिहार की करारी हार के संकेतों को
डिकोड करें तो अब भाजपा उन राज्यों में संभल कर चल रही है जहाँ पर चुनाव आने वाले
वर्षो में होने जा रहे हैं | यू
पी और उत्तराखंड सरीखे राज्यों में अब शायद भाजपा स्थानीय नेताओं को प्रोजेक्ट कर
चुनाव लड़ने की संभावनाओं पर मंथन करने में जुटी हुई है |
यू पी के साथ साथ उत्तराखंड
में विधानसभा चुनावों की उलटी गिनती शुरू होते ही भाजपा की मुश्किलें बढती ही जा
रही हैं | बात उत्तराखंड की करें तो 2017 के उत्तराखंड चुनावों की बिसात के केन्द्र में
जिस तरह हरीश रावत आ गए हैं तो उनके मुकाबले के लिए भाजपा में वर्चस्व की जंग चल
रही है | नेतृत्व के गंभीर संकट से जूझ रही
उत्तराखंड भाजपा में इस समय पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चन्द्र खण्डूड़ी को 2017 की
चुनाव समिति की कमान सौपकर भावी मुख्यमंत्री के तौर पर फिर से मैदान में उतार सकती
है | 2012 के चुनावों से ठीक पहले निशंक को हटाकर जिस
अंदाज में भाजपा आलाकमान ने विधान सभा चुनावों से ठीक पहले खण्डूड़ी को सी एम के
रूप में प्रोजेक्ट किया था उसका लाभ भाजपा को इस रूप में मिला कि उत्तराखंड में
खण्डूड़ी ने भाजपा के डूबते जहाज को तो बचा लिया लेकिन जहाज का कैप्टेन जनरल
कोटद्वार में पार्टी के भीतरघात के चलते खुद चुनाव हार गया और शायद यही वजह रही 2012 के चुनावों में भाजपा कांग्रेस से महज एक सीट
पीछे रही जिसके बाद खण्डूड़ी की हार ने निर्दलियों के साथ कांग्रेस के मुख्यमंत्री
के रूप में विजय बहुगुणा की ताजपोशी का रास्ता साफ़ किया था |
उत्तराखंड में खांटी कांग्रेसी हरीश रावत के कद के आगे सिवाए खण्डूड़ी के उत्तराखंड
भाजपा का कोई चेहरा सामने नहीं टिकता शायद यही वजह है वर्तमान भाजपा प्रदेश
अध्यक्ष तीरथ सिंह रावत के विकल्प पर भी इन दिनों भाजपा में भारी असमंजस मौजूद है
और अभी तक सस्पेंस कायम है | इन्द्रप्रस्थ और बिहार की जंग बुरी तरह हारने के बाद भाजपा
ऐसे कद्दावर नेता को उत्तराखंड का सेनापति बनाना चाहती है जो कांग्रेसी दिग्गज
नेता हरीश रावत को कड़ी टक्कर दे सके | स्थानीय
नेताओं की उपेक्षा और बुजुर्ग नेताओं को दरकिनार करने जैसे विवादों से जूझ रहा
पार्टी का केन्द्रीय नेतृत्व उत्तराखंड को लेकर मौजूदा अध्यक्ष तीरथ सिंह रावत के
विकल्प को लेकर असमंजस में है |
मुख्यमंत्री हरीश रावत ने फरवरी 2014
में अपनी ताजपोशी के बाद से जिस तरह टी ट्वेंटी अंदाज में पूरे उत्तराखंड में
बैटिंग की है उससे भाजपा की दिलों की धडकनें बढ़ी हुई हैं | चुनावी मॉड में होने के कारण उनके द्वारा
ताबड़तोड़ घोषणाएं की जा रही हैं | भले
ही यह सभी घोषणाएं पूरी ना हो पाएं लेकिन राज्य में हरीश रावत ने विजय बहुगुणा के सी
एम पद से हटने के बाद कांग्रेस को मजबूत स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया है | खण्डूड़ी , कोश्यारी और निशंक के केंद्र में जाने के बाद से राज्य
में दूसरी पंक्ति में भाजपा का बड़ा जनाधार
वाला कोई ऐसा नेता नहीं बचा है जिसके करिश्मे के बूते भाजपा की वैतरणी पार हो सके
लिहाजा भाजपा आलाकमान भी अब 11
अशोका रोड में इस बात को लेकर मंथन करने में जुटा है कि भाजपा की इस त्रिमूर्ति का
साथ लिए बिना 2017 में भाजपा का बेडा पार लगना नामुमकिन
है लिहाजा वह भी फूंक फूक कर कदम रख रही है |
पहाड़ों में अभी सर्द मौसम चल
रहा है और यहाँ के मिजाज को देखते हुए इस बात की संभावना प्रबल हैं कि अगले बरस
अक्तूबर नवम्बर में चुनावी डुगडुगी बज जाए | ऐसे
माहौल में बिहार गंवाने के बाद भाजपा उत्तराखंड में खण्डूड़ी के करिश्मे को मैजिक
बनाने की संभावनाओं पर मंथन करने में लगी हुई है | हरियाणा , महाराष्ट्र और झारखंड से इतर उत्तराखंड
में किसी चेहरे को प्रोजेक्ट न करने की अपनी रणनीति को उसे सिरे से बदलने को मजबूर होना पड़ सकता है |
जानकार भी मानते हैं कि उत्तराखंड की मुख्य लड़ाई हिमाचल सरीखी ही रही
है और यहाँ की राजनीती भी भाजपा और कांग्रेस के इर्द गिर्द ही घूमती रही है लिहाजा
किसी को प्रोजेक्ट करने से मुकाबला रोचक हो सकता है | उत्तराखंड में बारी बारी से हर 5 बरस में यह दोनों राष्ट्रीय दल अपनी सरकार
बनाने के लिए सामने आते रहे हैं | भाजपा
में खण्डूड़ी 75 पार कर चुके हैं लिहाजा वह मोदी की
टीम के खांचे में फिट नहीं बैठते | मोदी के मंत्रिमंडल में शामिल होने की
उनकी संभावनाएं उत्तराखंड से सबसे प्रबल थी लेकिन उनकी उम्र बड़ी बाधक बन गई थी
लेकिन भाजपा आलाकमान देर सबेर अब इस बात को समझ रहा है कि उत्तराखंड के चुनावी समर
में खण्डूड़ी उसका तुरूप का इक्का एक बार फिर से साबित हो सकते हैं लिहाजा कई
पार्टी के बड़े नेता उनके नेतृत्व में रावत सरकार के खिलाफ न केवल बड़ी जंग लड़ने का मन बना रहे हैं बल्कि चुनावी चेहरे
के रूप में एक्शन मोड में जनरल खण्डूड़ी को लाने का मन बना रहे हैं |
खण्डूड़ी के साथ सबसे बड़ी बात उनकी साफगोई है | उनकी पूरे राज्य में मजबूत पकड़ रही है | साथ ही संघ का आशीर्वाद अब भी उनके साथ है | भाजपा में अटल आडवाणी और डॉ जोशी युग भले ही
ढलान पर हो लेकिन मार्गदर्शक मंडल के आडवाणी और डॉ जोशी की गुड बुक में आज भी
खण्डूड़ी का नाम लिया जाता है जिसका कारण राजनीति में उनका समर्पण और ईमानदारी रही
है जिसके तहत अतीत में वाजपेयी सरकार में खण्डूड़ी स्वर्णिम चतुर्भुज योजना के आसरे
पूरे देश में नई लकीर खींच दी और यू पी ए सरकार ने भी इस बात को माना केंद्रीय
भूतल परिवहन मंत्री के तौर पर खण्डूड़ी के कार्यकाल में सडकों का बड़ा जाल न केवल
बिछा बल्कि प्रतिदिन कई किलोमीटर सड़क ने कुलांचे मारे जिसके आस पास वर्तमान मोदी
सरकार के कैबिनेट मंत्री तक भी नहीं फटक सकते |
उत्तराखंड के नैनीताल से भाजपा सांसद कोश्यारी की भी संघ पर मजबूत
पकड़ रही है लेकिन कम प्रशासनिक पकड़ के चलते भाजपा उन्हें आगामी चुनाव
में पूरी तरह आगे करने का रिस्क मोल नहीं लेना चाहती | वैसे पार्टी को इन दोनों नेताओं की कार्यशैली
पर किसी तरह का कोई संदेह भी नहीं है | ईमानदारी
के मामले में दोनों पाक साफ़ हैं | जहाँ
खंडूरी की गिनती वाजपेयी सरकार के सबसे ईमानदार मंत्रियों के रूप में न केवल होती
रही बल्कि उत्तराखंड में अपने दूसरे टर्म में खण्डूड़ी ने जिस अंदाज में सरकार चलाई
उसकी मिसाल आज तक देखने को नहीं मिलती | उस दौर को याद करें तो ना केवल
नौकरशाही उनसे खौफ खाती थी बल्कि माफियाओं और बिल्डरों के नेक्सस को तोड़ने में
उन्होंने पहली बार सफलता पाई | यह अलग बात थी भाजपा के कुछ नेताओं की जेबे उस दौर में गरम नहीं हो
सकी जिसके चलते खंडूरी ने बेदाग़ सरकार चलाने में सफलता पाई |
वहीँ भगत सिंह कोश्यारी की भी पूरे राज्य में
जबरदस्त पकड़ रही है और संघ के साथ ही राजनाथ सिंह का उन पर ख़ासा वरदहस्त रहा है जिसका इजहार खुद राजनाथ सिंह ने
उत्तराखंड की एक सभा में किया था जब
उन्होने बड़े मंच से खुद कहा था उत्तराखंड में उन्हें कोश्यारी के जैसी
कर्मठता और ईमानदारी की प्रतिमूर्ति देखने को नहीं मिलती क्युकि उन पर किसी तरह का
कोई दाग नहीं है | उनकी संगठानिक छमताओं पर हर किसी को
यकीन है जिसकी मिसाल 2007 के विधान सभा चुनावों में देखने को मिली जहाँ
उन्होंने कांग्रेस के नारायण दत्त तिवारी की सरकार से प्रदेश अध्यक्ष के तौर
पर लोहा लिया और अपनी सधी चाल से भाजपा की
सत्ता में वापसी का रास्ता तैयार किया था | यह
अलग बात है भाजपा में जब मुख्यमंत्री बनाने की बारी आई तो विधायकों का बड़ा समर्थन
कोश्यारी के साथ होने के बाद भी जनरल खण्डूड़ी
की ताजपोशी कर दी गई |
अब भाजपा में इस बात को लेकर
मंथन चल रहा है कि कोश्यारी और खंडूरी को साधकर उत्तराखंड में हरीश सरकार को
चुनौती दी जाए | उत्तराखंड में नए भाजपा प्रदेश अध्यक्ष
पद की बिसात जिस तरह उलझती ही जा रही है
और दावेदारों की भारी भरकम फ़ौज हर दिन दिल्ली दरबार में हाजरी लगा रही है उसके मद्देनजर शायद भाजपा आलाकमान अब
खुद अपना फैसला आने वाले दिनों में सुनाये जिसके तहत कोश्यारी को प्रदेश अध्यक्ष
और खण्डूड़ी को चुनाव समिति की कमान सौंप दी जाए और निशंक और सतपाल महाराज को मोदी
मंत्रिमंडल विस्तार में जगह मिल जाए | निशंक तो बाबा रामदेव के साथ गलबहियां कर मोदी
मंत्रिमंडल में मई 2014 से ही दावेदारी करने में लगे हुए हैं
लेकिन सतपाल महाराज के भाजपा में आने के बाद उन्हें भी भाजपा नजरअंदाज नहीं कर
सकती | मोदी निशंक को मंत्रिमंडल विस्तार में
जगह देने में कामयाब अगर नहीं हो पाते हैं तो फिर कोश्यारी को केंद्र में बड़ी
जिम्मेदारी दी जा सकती है |
ऐसे में बहुत संभव है निशंक को पार्टी
संगठन में राष्ट्रीय महासचिव का ओहदा दिया जा सकता है |
पिछले दिनों भाजपा के एक गुप्त सर्वे में भाजपा की चुनावी
संभावनाओं पर मंथन हुआ है जिसमे यह बात
खुलकर सामने आई है अगर मजबूत विकल्प पर भाजपा ने विचार नहीं किया तो हरीश
रावत 2017 में कांग्रेस की उत्तराखंड में दुबारा
वापसी करने में सक्षम हैं |
इस गोपनीय सर्वे और फीड ने संघ मुख्यालय नागपुर से लेकर 11 अशोका रोड तक हलचल मचाने का काम शुरू कर दिया
है | अब इसी को ध्यान में रखकर भाजपा में एक
बार फिर खण्डूड़ी जरूरी बन गए हैं | पार्टी
के अंदरूनी सर्वे में भी यह खुलासा हुआ है खण्डूड़ी को प्रोजेक्ट कर चुनाव लड़ने में
भाजपा हरीश के मुकाबले में सक्षम है | वैसे
जनता की नजर में खण्डूड़ी आज भी सबसे लोकप्रिय मुख्यमंत्री हैं और पिछले चुनाव में
कोटद्वार में हार के बाद से आम जनता के मन में उन्हें लेकर सहानुभूति की लहर अब भी
बरकरार है शायद यही वजह है भाजपा आलाकमान अब इसी सहानुभूति की लेकर को एक बार फिर
पार्टी के पक्ष में कैश करने की योजना बना रहा है | यही नहीं भाजपा संगठन प्रभारियों और केन्द्रीय कमेटी के फीड में भी
खण्डूड़ी का नाम ऐसे चेहरे के रूप में सामने आ रहा है जो चुनावी बरस में
अप्रत्याशित तौर पर भाजपा का बेडा पार कर सकते हैं और खुद पी एम मोदी खण्डूड़ी के
भरोसे समर में कूदने का मन बना रहे हैं |
उत्तराखंड की बात करें तो
यहाँ पर मोदी लहर फींकी पड़ चुकी है | अगर
लहर रहती तो भाजपा उत्तराखंड के डोईवाला ,धारचूला, सोमेश्वर
सरीखे उपचुनाव ना केवल जीतती बल्कि पंचायत चुनावों में भी बढ़त बनाने में
सक्षम रहती लेकिन उत्तराखंड में हरीश रावत ने अपनी संगठानिक छमताओं के आसरे कांग्रेस को हर चुनाव में भाजपा के मुकाबले ना
केवल आगे किया है बल्कि कांग्रेस में बगावाती सुरों को भी नरम किया है | वैसे विजय बहुगुणा के दौर में कांग्रेस में हर
दिन विधायक बगावती तेवर अपनाया करते थे जिससे सरकार और संगठन की कई मौकों पर
किरकिरी होती रहती थी लेकिन अपनी ताजपोशी के बाद हरदा का सिक्का ना केवल उत्तराखंड
में मजबूत हो रहा है बल्कि दस जनपथ में भी वह अपनी मजबूत पैठ बनाते जा रहे हैं | अम्बिका सोनी से लेकर अहमद पटेल और राहुल गाँधी
से लेकर सोनिया गांधी हर कोई इस दौर में हरीश सरकार के कामकाज से संतुष्ट बताये जा
रहे हैं | सोनिया गाँधी और राहुल गाँधी तो
उत्तराखंड में हरीश रावत के कामकाज की तारीफ़ करने का कोई मौका नहीं छोड़ते | लिहाजा कांग्रेस अगले चुनावों में हरीश रावत को
फ्रीहैंड देने के मूड में है यानी कांग्रेस में टिकटों के चयन से लेकर प्रचार प्रसार का पूरा जिम्मा हरीश
रावत के इर्द गिर्द ही सिमटेगा और वही नेता ज्यादा टिकट पाने में कामयाब रहेगा
जिसकी निकटता हरीश रावत के साथ होगी लिहाजा भाजपा में भी खंडूरी और कोश्यारी की
जोड़ी को आगे कर मिशन 2017 की बिसात बिछाई जा रही है जिसमे
कोश्यारी को संगठन की कमान देने के साथ ही परदे के पीछे से चुनाव समिति की कमान
खण्डूड़ी के जिम्मे देने के साथ ही चुनावी चौसर बिछाये जाने की संभावनाओं पर गहनता से मंथन चल रहा है | भाजपा के उत्तराखंड प्रभारी श्याम जाजू के
स्थान पर केंद्रीय मंत्री रवि शंकर प्रसाद को लाने की संभावनाओं से भी आने वाले
दिनों में इनकार नहीं किया जा सकता | रवि
शंकर प्रसाद 2007 के चुनावों में भी उत्तराखंड भाजपा के
प्रभारी रह चुके हैं लिहाजा पार्टी उनके अनुभव का लाभ भी लेना चाह रही है |
बिहार चुनावो के परिणाम
के बाद भाजपा प्रधानमन्त्री और बाहरी
नेताओ के भरोसे उत्तराखंड को नहीं छोड़ना चाहती | चुनावों में बहुत कम समय बचा है लिहाजा भाजपा किसी भी तरह टिकटों के
चयन और बिसात बिछाने में पीछे नहीं रहना चाहती | भाजपा में बड़ा खेमा ऐसा है जो हरीश रावत की सधी हुई चालों से इस समय
परेशान है | हरीश रावत जनता के बीच जाकर जिस तरह
पहाड़ों से लेकर मैदान तक में लोगों के बीच अपनी योजनाओं को लागू कर रहे हैं उसके
देर सबेर परिणाम कांग्रेस के हक़ में मिलने तय हैं | ऐसे में भाजपा किसी लो प्रोफाइल नेता तो अगर हरीश रावत के मुकाबिल
खड़ा करती है तो पार्टी बमुश्किल दहाई वाला आंकड़ा छू पाएगी |
ऐसे
में पार्टी अपने दो सर्वाधिक अनुभवी मुख्यमंत्री
खंडूरी और कोश्यारी को सामने रख हरीश सरकार के खिलाफ माइलेज लेना चाहती है |
चुनावी बरस होने के चलते हरीश रावत जहाँ राज्य में युवाओं के लिए आने
वाले दिनों में नौकरियों का बड़ा पिटारा खोलने जा रहे हैं वहीं उनके द्वारा
देहरादून में शुरू की गई इंदिरा अम्मा योजना अब पूरे प्रदेश में लागू कर दी गई है
जिसके शुरुवाती परिणाम कांग्रेस के हक़ में जाते दिख रहे है | यही नहीं पर्वतीय इलाकों में पलायन रोकने की
दिशा में स्थानीय उत्पाद को बढ़ावा देने के आलावे कई योजनाये अपने पिटारे में पेश की गई है जिससे
पहाड़ और मैदान में भेद समाप्त हो रहा है और पहली बार खांटी कांग्रेसी मुख्यमंत्री
हरीश रावत उत्तराखंड के जनसरोकारों से न केवल जुड़ने की कोशिश कर रहे हैं बल्कि
पलायन को लेकर चिंतित नजर आ रहे हैं | वह
पहाडी जनभावनाओं के अनुरूप आने वाले दिनों में गैरसैण को ग्रीष्मकालीन राजधानी
बनाने का बड़ा दाव चुनावों से ठीक पहले खेलने की कोशिशों में जुटे हैं ताकि 2017 में पहाड़ों में कांग्रेस मजबूत हो सके | यही नहीं
2013 की केदारनाथ आपदा के बाद जिस अंदाज
में दिन रात काम कर रावत ने केदारनाथ का पुनर्निर्माण किया है वह काबिलेतारीफ है
और पहली बार आपदा से केदारनाथ धाम उबरा है | यही वजह है इस बरस केदारनाथ की यात्रा
पर पिछले बरस के मुकाबले भक्तों की भीड़ बहुत अधिक रही | खुद केंद्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती रावत
सरकार के द्वारा केदारघाटी में किये गए पुनर्निर्माण कार्यों से संतुष्ट हैं |
भाजपा की असल परेशानी
उत्तराखंड में यहीं से शुरू होती है | राज्य
में कांग्रेस सरकार को घेरने के कई मौके आये लेकिन भाजपा हर बार चूक गई इसका बड़ा कारण खण्डूड़ी, कोश्यारी और निशंक का सांसद बन जाना रहा लिहाजा
कोई नेता हरीश सरकार के खिलाफ बयानबाजी के अलावे मोर्चा नहीं खोल सका | विजय बहुगुणा के सी एम रहते जहां भाजपा आगामी
चुनावों में अपनी जीत निश्चित मानकर चल रही थी वहीँ बदले हालातों में कमान हरीश
रावत के आने के बाद उसे अब अपनी रणनीति बदलने पर मजबूर होना पड़ रहा है | ऐसा नहीं है कि उत्तराखंड में हरीश रावत सरकार
को घेरने के कई मौके आये | आबकारी नीति से लेकर खनन, माफियाओं के बड़े नेटवर्क की सक्रियता से लेकर
जमीनों को खुर्द बुर्द करने का खुला खेल रावत सरकार के कार्यकाल में ना केवल चला
है बल्कि हर विभागों में अरबों के वारे न्यारे हुए हैं लेकिन भाजपा राज्य में
मित्र विपक्ष की छवि ही बना पाई है | हरीश
रावत को वह उनके सचिव शाहिद के स्टिंग के जरिये घेरने में भी पूरी तरह विफल जहाँ
रही वहीँ इस दौर में आपदा और खनन सरीखे बड़े मुद्दों में सिवाए बयानबाजी और प्रेस
कांफ्रेंस के भाजपा हरीश रावत सरकार के कोई आन्दोलन भी खड़ा नहीं कर सकी है | हरीश सरकार की ऍफ़ एल 2 नीति
भी विवादों से भरी रही है और बीते दिनों पूर्व गृह मंत्री चिदंबरम जिस अंदाज में सरकार
के खिलाफ पैरवी करने नैनीताल हाईकोर्ट चले आये उसने मुख्यमंत्री और कांग्रेस की घिग्घी बाधने का काम
किया है लेकिन भाजपा इस पर भी कांग्रेस को घेरने में पूरी तरह विफाल रही है | यही नहीं हाल ही में गैरसैण में
सम्पन्न विधानसभा सत्र में भी सत्र ना चलने देने के पीछे भाजपा ने हरीश रावत को
जिम्मेदार माना है | नेता प्रतिपक्ष अजय भट्ट ने हाल ही में
यह बयान भी दिया था कि मुख्यमंत्री रावत का व्यवहार सत्र के दौरान छात्र संघ
अध्यक्ष जैसा रहा |
गैरसैंण में विधानसभा के सत्र के दौरान भट्ट का यह बयान भी किसी के
गले नहीं उतर रहा कि कांग्रेस सरकार सदन में बाहरी व्यक्तियों के प्रवेश के बाद से
ही विपक्ष के सदस्यों के सब्र का बांध गैरसैंण विधानसभा में टूटा था । तीन नवंबर
को गैरसैंण में सदन में गैरसैंण को स्थायी राजधानी बनाने पर विपक्ष ने सरकार से
अपना रुख स्पष्ट करने की मांग की थी इसके
लिए विपक्ष बाकायदा काम रोको प्रस्ताव लेकर आया था। इस प्रस्ताव को विधानसभा
अध्यक्ष ने स्वीकार नहीं किया था। इससे गुस्साए विपक्ष ने सदन में जमकर हंगामा
किया था। विपक्ष बाकायदा काम रोको
प्रस्ताव लेकर आया था। इस प्रस्ताव को विधानसभा अध्यक्ष ने स्वीकार नहीं किया था।
इससे गुस्साए विपक्ष ने सदन में जमकर हंगामा किया था | नेता प्रतिपक्ष अजय भट्ट और
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष तीरथ सिंह रावत हाथ में माइक लेकर मेजों पर चढ़ गए थे।
विपक्ष का आरोप था कि सरकार के इशारे पर सदन में असामाजिक तत्त्व घुस गए जिसके
चलते सदन नहीं चल पाया | राजभवन ने खुद अब विधानसभा से गैरसैण सत्र की जो फुटेज मगाई है उसमे
यह साफ़ है कि गैरसैण सत्र मे कोई भी बाहरी व्यक्ति सदन के भीतर नहीं घुसा इससे
भाजपा में अजय भट्ट की लीडरशिप पर सवाल ही नहीं पूरी भाजपा कठघरे में खडी नजर आ रही है | प्रदेश अध्यक्ष तीरथ रावत का कार्यकाल भी
निराशाजनक रहा है | उनके नेतृत्व में प्रदेश में भाजपा की
धार कुंद हुई है | यही कारण है चुनावी बरस में आलकमान खण्डूड़ी और कोश्यारी को लेकर फिर से
अपने पत्ते फेंटने लगा है और भाजपा को भी लगता है अगर कोश्यारी और खंडूरी फिर से
साथ आते हैं तो राज्य में भाजपा की सरकार बन सकती है|
ऐसे
बदलते हालात में खण्डूड़ी ही एक मात्र ऐसा
चेहरा हैं जो पार्टी के नायक बनकर हरीश रावत सरकार को संकट में डाल सकते हैं |
संभवतया खण्डूड़ी के चेहरा बनाये जाने के बाद
कांग्रेस को भी अपनी रणनीति बदलने को मजबूर होना पड़ जाए क्युकि खण्डूड़ी सरकार की
पाक साफ़ छवि रही है और दूसरे टर्म में जनता से जुड़े कई बड़े निर्णय लिये गये थे। खण्डूड़ी की ईमानदार
छवि ने जहाँ मजबूत लोकायुक्त की सौगात
अन्ना की तर्ज पर पूरे राज्य को दी वहीँ
उनके शासन में लूट खसौट पर रोक लगी | माफियाओं और बिल्डरों
की लाबी उनसे जहाँ खौफ खाने लगी वहीँ राज्य की बेलगाम नौकरशाही पहली बार
पटरी पर भी आई | यही नहीं ट्रांसफर के जिस उद्योग ने पिछली सरकारों के सामने बड़े
कुलाचे मारे वह स्थानांतरण कानून की शक्ल ले
पाया जिससे नेताओं की लूट खसोट पर भी रोक लगी | सरकारी
नौकरियों में साक्षात्कार की व्यवस्था खत्म करने से लेकर भ्रष्टाचार उन्मूलन विभाग
की स्थापना और राज्य की बेशकीमती जमीनों को बाहरी व्यक्तियों को देने पर रोक से
लेकर गरीबों को सस्ता राशन देने की योजनाओं के आसरे उन्होंने उत्तराखंड में
नई लकीर खींचने का काम किया | उत्तराखण्ड में अन्ना टीम के मुताबिक लोकायुक्त
बिल को सदन में पारित करा मुख्यमंत्री बीसी खण्डूड़ी ने प्रदेश में लोगों के बीच
अलग छवि बनाने के साथ ही यह बताने में कोई कसर नहीं छोडी भ्रष्ट
सियासत में जनता के हितों को प्राथमिकता देना उनका पहला कर्तव्य है ।उत्तराखण्ड
में मुख्यमंत्री की दूसरी पारी भ्रष्टाचार के खिलाफ जिस अंदाज में उन्होंने खेली
इससे उनकी छवि भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने वाले एक योद्धा के रूप में आम जनता में
बनी | खण्डूड़ी ने अपने दूसरे टर्म में ताबड़तोड़
फैसले लिए। उन्होंने अन्ना टीम के साथ विचार- विमर्श कर एक सशक्त लोकपाल कानून बना
डाला। राज्य में 'ट्रांसफर उद्योग' पर रोक लगाने की नीयत से एक ऐसा
कानून तैयार किया जिससे सरकारी कर्मचारियों को भारी राहत मिली | लोकपाल कानून
बनाने से खण्डूड़ी की छवि में जबरदस्त सुधार हुआ। भाजपा ने 2012 में खण्डूड़ी पर
दांव लगाया लेकिन पार्टी के कुछ नेताओं के
भीतरघात ने उन्हें हरा दिया | भाजपा अगर 2017 में
सत्ता में वापसी चाहती है तो अब
खण्डूड़ी पर बड़ा जुआ उसे खेलना ही होगा |
शायद यही वजह है आज भी केंद्रीय नेतृत्व की
नजर में भाजपा के भीतर बीसी खण्डूड़ी 75
पार होने के बाद भी उत्तराखंड में मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार के रूप में उभर
रहे हैं और पार्टी के भीतर खण्डूड़ी के हाथ
चुनाव समिति की कमान देने को लेकर सियासी सरगोशियाँ तेज हैं | जो लकीर अपने राज्य में पाक साफ़ ईमानदार सरकार
के नाम पर खण्डूड़ी ने अपने कार्यकाल में खींची उससे उनकी सरकार ने जनता के दिलो में अलग छाप छोडी वह निश्चित ही आने वाले चुनावों में भाजपा को
संजीवनी देने का तो काम तो करेगी ही | यह
अलग बात है कांग्रेस ने खण्डूड़ी की खींची लकीर को मिटाने की कोशिश की है |
पहले दौर के पायलट सर्वे और फीड के बाद भाजपा बम बम है | भाजपा से जुड़े सूत्रों की मानें तो राज्य में
विधानसभावार उम्मीदवारों और सिटिंग एम एल ए को लेकर पार्टी अब एक फाइनल सर्वे करने
जा रही है जिसके सम्पन्न होने के बाद
टिकटों को लेकर रायशुमारी की जाएगी | इस
सर्वे में पार्टी किसी चेहरे पर दाव खेलने के बारे में जनता की सीढ़ी नब्ज टटोलने
की भी कोशिश करेगी | वैसे अब तक राज्य गठन के बाद हुए हर एजेंसी के
सर्वे में खण्डूड़ी ही भाजपा में सब पर भारी पड़े हैं और आज भी लोकप्रियता के मामले
में वह उत्तराखंड के सभी मुख्यमंत्रियों पर भारी पड़ते हैं |
खुद
सत्तारूढ़ कांग्रेस के नेता भी इस बात को मानते हैं हरीश रावत के मुकाबले के लिए
अगर भाजपा में खण्डूड़ी सामने लाये जाते हैं तो उत्तराखंड में मुकाबला कांटे का
रहेगा क्युकि उनकी लोकप्रियता हरीश रावत की तरह पूरे राज्य में है | ऐसे में देखना दिलचस्प होगा क्या आने वाले
दिनों में भाजपा उत्तराखंड में खण्डूड़ी को सीधे प्रोजेक्ट कर हरीश रावत सरकार के
खिलाफ अपना ब्रह्मास्त्र छोडती है या चुनाव समिति की कमान सौपकर उन्हें भावी
मुख्यमंत्री के तौर पर आगे रखती है ?
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