Tuesday 17 May 2016

अमर सिंह की घर वापसी के मायने


 उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी  ने राज्यसभा और प्रदेश विधान परिषद के आगामी चुनाव के लिए अपने उम्मीदवार  मंगलवार को सर्वसम्मति से तय कर घोषित कर दिए। इनमें हाल में सपा में वापस आये पूर्व केंद्रीय मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा के अलावा अमर सिंह तथा बिल्डर संजय सेठ भी शामिल हैं।गौरतलब है कि बोर्ड के सदस्य सपा के राष्ट्रीय महासचिव रामगोपाल यादव और प्रदेश के वरिष्ठ काबीना मंत्री आजम खां अमर सिंह के मुखर विरोधी रहे हैं। राज्यसभा भेजे जाने के मद्देनजर अमर सिंह की सपा में वापसी के सवाल पर यादव ने कहा कि इस बारे में सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव कोई निर्णय लेंगे। बहरहाल, राज्यसभा का अधिकृत प्रत्याशी बनाने के बाद अमर सिंह की सपा में वापसी मात्र औपचारिकता भर  रह गई है।

बीते मंगलवार  को सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव के आवास का नजारा देखने लायक था | नेता जी के प्रति अमर सिंह का प्रेम एक बार फिर जागने के कयास लगने शुरू हो गए हैं और पहली बार इन मुलाकातों के बाद एक नई तरह की किस्सागोई समाजवादी राजनीति को लेकर शुरू हो गयी है | यह सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण  है क्युकि सूबे के युवा सी एम अखिलेश भी इस दौरान  नेताजी से मिले और अमर सिंह के मसले पर  साथ बैठकर उन्होंने  अपनी  भावी राजनीति को लेकर कई चर्चाएँ भी की  | सभी ने अपने रणनीतिकारों को साधकर  कई घंटे बैठकर  यू पी की सियासत को साधने और मिशन 2017 को लेकर भी  मैराथन मंथन किया  | राज्य सभा की सीटों पर अपने प्रत्याशियों के नाम के एलान के साथ ही उत्तर प्रदेश की  राजनीतिक  बिसात के केंद्र  में अमर सिंह एक बार फिर आ गये हैं ।  दरअसल सपा ने अपने सभी  राज्यसभा उम्मीदवारों के नाम की घोषणा कर दी जिसमें अमर सिंह का नाम भी शामिल  है ।  इसके बाद से ही अमर सिंह का सेंसेक्स  एक बार फिर सातवें  आसमान पर चढ़ गया है ।  ऐसे में संभावना है कि उन्हें  राज्य सभा का टिकट मिलने के बाद देर सबेर उनकी सपा में घर वापसी तय  है ।

यह तीसरा ऐसा  मौका है  जब अमर सिंह नेता जी के साथ मिलकर हाल के दिनों में गलबहियां  सक्रियता बढाकर उत्तर प्रदेश के हालात को लेकर  चर्चा की है   |  इससे पहले छोटे लोहिया के रूप में पहचान रखने वाले खांटी समाजवादी जनेश्वर मिश्र के नाम पर बने पार्क के उद्घाटन के मौके पर दोनों ने साथ मिलकर सार्वजनिक मंच पहली बार साझा किया था हालांकि इस  समारोह में  भी सपा से निकाले गए अमर सिंह के आने की खबरें हवा में तैरने लगी थी लेकिन समाजवादी पार्टी से जुडे़ कार्यकर्ताओं से लेकर विधायकों तक को उम्मीद नहीं थी कि अमर सिंह सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के साथ मंच साझा कर सकते हैं  लेकिन राजनीती में कुछ भी संभव है लिहाजा इस बार भी नेताजी के  साथ बैठने से कई कयासों को न केवल हवा मिलनी शुरू हुई  बल्कि अमर सिंह के सपा प्रेम के जागने के प्रमाण मिलने शुरू हो गए लेकिन विरोधियों के चलते नेताजी उन्हें वापस लाने के सहस नहीं जुटा पाए । 

लोकसभा चुनाव में भाजपा के सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के ब्रह्मास्त्र को छोड़ने के बाद अब सपा को समाजवादी राजनीति साधने के लिए एक ऐसे कुशल प्रबंधक की आवश्यकता है जो नमो के शाह की बराबरी कर सके लिहाजा नेता जी भी अमर सिंह के साथ अब गलबहियां करने में लगे हुए हैं | वह एक दौर में नेता जी के हनुमान रह चुके हैं |  नेता जी भी इस बात को बखूबी समझ रहे हैं अगर यू पी में उन्हें मोदी के अश्वमेघ घोड़े की लगाम रोकनी है तो अमर सिंह सरीखे लोगो को पार्टी में वापस लाकर ही 2017  में होने वाले विधान सभा चुनाव तक  अपना जनाधार ना केवल मजबूत किया जा सकता है बल्कि कॉरपरेट की छाँव तले समाजवादी कुनबे में विस्तार किया जा सकता है | अमर की पार्टी में दोबारा  वापसी की अटकलें अब राज्य सभा का टिकट मिलने के साथ ही  फिलहाल तेज हो चली हैं। 

हालाँकि सब कुछ तय करने की चाबी खुद नेता जी के हाथो में है लेकिन  अब उनकी पार्टी में वापसी को लेकरबड़ी भूमिका देखने को मिल सकती है |  नेता जी के साथ हाल के दिनों में  अमर सिंह की मुलाकातों ने एक बार फिर उनके सपा में शामिल होने के कयासों को बल तो दे ही  दिया है |  हालाँकि एक दौर में  अमर सिंह  ने खुद कहा था कि वह किसी राजनीतिक दल में शामिल होने नहीं जा रहे हैं ।  सक्रिय राजनीति में उनकी जिंदगी के 19  साल खर्च हुए हैं और अब वह भविष्य  में राज्यसभा का अपना कार्यकाल पूरा करने के बाद दोबारा प्रयास नहीं करेंगे लेकिन राजनीती तो संभावनाओं का खेल है । यहाँ कुछ भी संभव है लिहाजा अमर सिंह भी  बीती बातें भुलाकर राज्य सभा में जाने को बेताब हैं ।

अमर सिंह की सपा में एक दौर में ठसक का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 1995 में पार्टी ज्वॉइन करने के बाद नेताजी और सपा दोनों  को दिल्ली में स्थापित करने में उनका बहुत बड़ा योगदान रहा है।  तीसरे मोर्चे की सरकार बनाने और उसमें नेताजी  की भूमिका बढ़ाने में भी अमर सिंह ही बड़े  सूत्रधार थे वहीँ इंडो यू एस न्यूक्लियर डील में भी कड़ी का काम अमर सिंह ने ही किया जब उनके सांसदों ने मनमोहन सरकार की लाज यू पीए सरकार को  बाहर से समर्थन देकर बचायी |  यू पी की जमीन से इतर पहली बार विभिन्न राज्यों में पंख पसारने में अमर सिंह के मैनेजमेंट के किस्से आज भी समाजवादी कार्यकर्ता नहीं भूले हैं | सपा में शामिल होने के बाद किसी एक नेता का इतना औरा सपा में इतना नहीं होगा जितना उनका था। उन्होंने पार्टी को फिल्मी सितारों के आसरे एक पंचसितारा रंग देने की  भरपूर कोशिश की थी। एक वक्त था जब अमर सिंह फैसले लेते थे और मुलायम उन फैसलों को स्वीकार कर लेते थे।दोनों एक जिस्म दो जान थे । उनके लिए गए फैसलो पर रजामंदी हुआ करतीं थी ।  बाद में एक वक्त ऐसा भी आया जब वह मुलायम के बेहद करीबी आजम खान के लिए गले की हड्डी बन गए | सपा में अमर सिंह की गिनती एक दौर में नौकरशाहों  से लेकर  बालीवुड उद्योगपतियों के बीच खूब जोर शोर से होती थी लेकिन पंद्रहवी लोक सभा चुनाव में मिली पराजय और आतंरिक गुटबाजी ने अमर सिंह की राजनीती का बंटाधार कर दिया | 2010  में उन्हें पार्टी से  बाहर निकाल दिया गया  जिसके बाद 2012  में विधान सभा चुनाव और 201 4 के लोक सभा चुनाव में सपा के विरोध में उन्होने अपने उम्मीदवार खड़े किये लेकिन करारी हार का सामना करने को मजबूर उन्हें होना पड़ा |  आजम खान को जहाँ उनके दौर में पार्टी से निकाल  दिया गया वहीँ अमर सिंह  के रहते एक दौर में  आजम खान सपा में नहीं टिक  सके |  यह अलग बात है आजम खान अमर की विदाई और कुछ समय जुदाई के बाद वह खुद सपा में चले आये |

 अमर सिंह के पार्टी में बढ़ते प्रभाव का नतीजा यह हुआ कि पार्टी के संस्थापक रहे नेता धीरे-धीरे दूर होने लगे। उनका आरोप था कि अमर के चलते पार्टी अपना परंपरागत  वोट बैंक खोती जा रही है। आखिरकार वह वक्त भी आ गया जब उन्हें मुलायम सिंह नजर अंदाज करने लगे। देखते ही देखते हालात बिगड़ते चले गए। उन्होंने बयान दे दिया कि मुलायम सिंह और उनके परिवार ने उनकी गंभीर बीमारी के दौरान कोई सहानुभूति नहीं रखी। इसके बाद  पार्टी ने अमर सिंह, जया प्रदा और 4 अन्य विधायकों को निष्कासित कर दिया। अमर सिंह की अगर सपा में दुबारा इंट्री होती  है तो  नगर विकास मंत्री आजम खां पार्टी से बाहर जाने का रास्ता तैयार कर सकते हैं | कल सपा  संसदीय  बोर्ड की मीटिंग को भी वह बीच में छोड़ कर चले गए ऐसी खबरें मीडिया में हैं  ।  बीते कुछ महीनो पहले आजम खां ने इस संभावना से इनकार नहीं किया था कि यदि अमर सिंह सपा में वापस आए तो उन्हें बाहर जाना पड़ सकता है | उन्होने तो खुले मंच से यहां तक कह दिया था अमर सिंह के आने के बाद खुद उनका अस्तित्व खतरे में पड  सकता है | नेताजी के बर्थडे के मौके पर भी अमर सिंह और आजम खान को लेकर खूब तलवारें भी बीते बरस  सैफई में खिंची | जहाँ  मुलायम सिंह के जन्मदिन के कार्यक्रम में  बीते बरस अमर सिंह के आने पर आजम ने करारा हमला किया वहीँ यह कहा  कि जब तूफान आता है तो कूड़ा करकट भी घर में आ जाता है। आजम खान और अमर सिंह के बीच संबंध काफी समय से तल्ख़ रहे हैं । अमर सिंह ने कहा था कि उन्होंने मुलायम के साथ 14 साल काम किया है । वह मुलायम की पार्टी में हों या ना हों लेकिन उनके दिल में जरूर हैं । अमर सिंह की इसी बात पर निशाना साधते हुए आजम ने उन्हें इशारों ही इशारों में 'कूड़ा-करकट' कहा था जिसके बाद से शीत युद्ध का दौर आज तक  थमा नहीं है ।

  वैसे अमर सिंह को सपा में वापस लाए जाने की तैयारी  2014 के लोकसभा चुनाव से पहले ही एक बार शुरू हो गई थी लेकिन आजम खां के वीटो के बाद सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने अपना इरादा बदल दिया था। अब इस बार क्या होगा यह देखना बाकी है क्युकि आजम के अलावे सपा में अमर विरोधियो की लम्बी चौड़ी फेहिरस्त मौजूद है ।    इतिहास समय समय पर खुद को दोहराता है और संयोग देखिये सपा के पूर्व महासचिव बेनी प्रसाद वर्मा ने भी अमर सिंह के कारण ही समाजवादी पार्टी को एक समय अलविदा कहा था। अब लगभग 6 साल बाद न सिर्फ अमर सिंह का  नेता जी के साथ मिलन होना तय है बल्कि वही बेनी प्रसाद न केवल सपा को दुबारा ज्वाइन कर चुके हैं बल्कि अमर सिंह के साथ फिर राज्यसभा में इंट्री करने को बेताब हैं । 

 अमर सिंह की  मैनेजरी  के किस्से  यू पी की सियासत में कोई नए नहीं हैं । नेताजी आज भी उन्हें पसंद करते हैं  और राज्य सभा में भेजे जाने के बाद अब  आने वाले दिनों में समाजवादी सियासत का एक नया मिजाज हमें देखने को मिल सकता है |  अमर सिंह  और आजम खां का छत्तीस का आंकड़ा  भले ही जगजाहिर है लेकिन नेता जी और अमर सिंह का दोस्ताना  आज भी सलामत है शायद यही वजह है  अमर सिंह ने हर उस मौके को भुनाने का  प्रयास किया है जहाँ उन्हें फायदा  नजर आता है |  जनेश्वर पार्क के उद्घाटन के मौके पर भी कई बरस पहले  वह  नेता जी की तारीफों के पुल बांधकर साफ संकेत दे चुके थे  साईकिल  की सवारी करने में उन्हें कोई ऐतराज नहीं है | राजनीती में  किसी के दरवाजे कभी बंद नहीं किये जा सकते  और संयोग देखिये अमर सिंह के कारण ही  कभी एक समय आजम खां ने सपा को टाटा  कहा था |  जिस दौर में  आजम खां ने सपा का साथ छोड़ा था उस वक्त भी समाजवादी खेमे में अमर सिंह को निकाले जाने के समय जश्न का माहौल देखा गया ।  जिस तरह से अमर सिंह को सपा के कुछ बडे़ नेता पसन्द नहीं करते थे ठीक वही स्थिति सपा में आजम खां की भी  हो चली है| 

लोकसभा चुनाव के दौरान आजम खां ने  मुस्लिम वोट बैंक पूरा सपा के साथ लाने के बड़े दावे किये थे लेकिन नमो की लोकसभा चुनावो में चली सुनामी और राज्यों में मोदी के हुदहुद ने सपा के जनाधार का ऐसा बंटाधार कर दिया कि लोक सभा चुनावो में सपा की खासी दुर्गति हो गयी |  नेता जी को  आजम खां  पर पूरा भरोसा था  लेकिन नेताजी परिवार के अलावा सपा का पूरा कुनबा लोकसभा चुनाव में साफ हो गया  |  अब  नए  सिरे से वोटरों को साधने के लिए नेता जी यू पी की राजनीति  को  अपने अंदाज में साध रहे हैं  ।  इन्हीं परिस्थितियों से निपटने के लिए नेता जी  ने अमर सिंह की वापसी  का एक नया चैनल इस समय खोल दिया है | । हालांकि पार्टी में उनकी वापसी को लेकर ज्यादातर नेताओं ने हामी नहीं भरी है लेकिन आजम खान और शिव पाल यादव उनकी वापसी पर सबसे बड़ी रेड कार्पेट बिछा  रहे हैं | यही अमर सिंह की सबसे बड़ी मुश्किल इस दौर में बन चुकी   है |

 अमर सिंह अखिलेश और नेता जी की खिचड़ी साथ पकने के बाद से ही दिल्ली में  1 6 अशोका रोड से लेकर 5  कालिदास मार्ग  लखनऊ तक हलचल मची हुई है | अमर सिंह नेता जी  से अपने घनिष्ठ सम्बन्धो का फायदा उठाने  का कोई मौका  कम से कम  अभी तो नहीं छोड़ना चाहते हैं |  शायद ही आगे चलकर उन्हें  इससे  बेहतर मौका कभी मिले | वैसे भी इस समय सपा अपने दम पर पूर्ण बहुमत की सरकार  उत्तर प्रदेश में चला रही है |  नेता जी भी बड़े दूरदर्शी हैं | वक्त के मिजाज को वह बेहतर ढंग से पढना जानते हैं | 1996 में अपने पैंतरे से उन्होंने केंद्र में कांग्रेस को आने से जहाँ रोका वहीँ बाद में वह खुद रक्षा मंत्री बन गए |  2004 आते ही  वह कांग्रेस को परमाणु करार पर बाहर  से समर्थन का एलान करते हैं  तो यह उनकी समझ बूझ को सभी के सामने लाने का काम करता है | फिर राजनीती का यह चतुरसुजान इस बात को बखूबी समझ रहा है अगर कांग्रेस और भाजपा के खिलाफ एकजुट नहीं हुए तो आने वाले दौर में उनके जैसे छत्रपों की राजनीति पर सबसे बड़ा ग्रहण लग सकता है शायद इसीलिए वह इस सियासत का तोड़ खोजने निकले हैं जहाँ उनकी बिसात में अमर सिंह  ही अब सबसे फिट बैठते हैं | नेता जी  इस राजनीती के डी एन ए को भी बखूबी समझ रहे हैं | ऐसे में अमर सिंह की घर वापसी अब राज्य सभा में इंट्री के बाद तय मानी जा रही है ।

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