Saturday, 7 February 2009

ऑस्कर की ओर बदते "स्लम डॉग" के कदम...........





















रहमान के "गोल्डन ग्लोब" जीतने के बाद विश्व भर में "स्लमडॉग मिलेनियर" खासी सुर्खियों में आ गई है..... एक साथ ४ गोल्डन ग्लोब जीतना किसी भी फ़िल्म निर्माता के लिए एक बड़ी उपलब्धि है...इसको सही से साकार किया है " डैनी बोयल " ने... डैनी एक विदेशी फ़िल्म निर्देशक है .... उनकी स्लम डॉग अब भारत में भी रिलीज़ हो गई है... विदेशों में धूम मचाने के बाद डैनी को उम्मीद है वह यहं भी विदेशों की तरह यहाँ भी लोकप्रियता पायेगी.... रहमान के गोल्डन ग्लोब जीतने के बाद से ही हमारे देश में जश्न का माहौल बन गया था ...यही कारण था वह भारत में फ़िल्म के रिलीज़ होने की प्रतीक्षा करते रहे... यह उत्साह उस समय दुगना हो गया जब स्लम डॉग को ऑस्कर के लिए १० नामांकन मिल गए...मीडिया रहमान का गुणगान करने में लग गया .... डैनी का भी देश विदेशों में जोर शोर से नाम गूजा.... अभी डैनी की सफलता में एक अध्याय उस समय जुड़ गया जब अमेरिका में एक और अवार्ड बीते दिनों उनकी झोली में चले गया... स्लम डॉग लागत से कई गुना जयादा मुनाफा इंटरनेशनल मार्केट में कमा चुकी है.... उसका कारवा दिनों दिन रफतार के साथ बढता जा रहा है ......










जहाँ तक फ़िल्म की कहानी की बात है तो इस फ़िल्म का कथानक "विकास स्वरूप " के भारतीय उपन्यास "क्यू एंड ए" पर आधारित है......... विकास ने २००३ में यह उपन्यास लिखा था जिसका ३५ भाषाओ में अनुवाद हो चुका है ......इस उपन्यास ने विकास को बहुत चर्चित बना दिया है........ विकास भारतीय विदेश सेवा के अधिकारी है जिनकी इस कृति को अफ्रीका में " बोआयाकी " सम्मान से भी नवाजा जा चुका है... अब स्लम डॉग की धूम के बाद उनके इस उपन्यास की बिक्री मार्केट में तेजी से बढ गई है...... स्लम डॉग सच्चे भारत की तस्वीर को बयां करती है ...... हम बड़े जोर शोर से हाई टेक युग में विकास कार्यो के जोर शोर से नारे लगाते है लेकिन सच्चाई इससे कोसो दूर है .... आज भी हमारे देश की एक बड़ी आबादी गरीबी की रेखा से नीचे जीवन यापन कर रही है.... उसको दो जून की रोटी जुटाने के लिए हाड मांस एक करना पड़ता है .... लेकिन भारत के एक बड़े वर्ग को चमचमाते भारत की यह बुलंद तस्वीर रास नही आ रही है...... इस कारण से यह फ़िल्म विवादों में घिरती जा रही ... लोगो का मानना है की इस फ़िल्म में भारत की गरीबी ओर झोपडियो का जीवन मसालेदार अंदाज में फिल्माया है ....जिस कारण पश्चिम में इसके चाहने वालो की संख्या बढ रही है.... कुछ लोगो आपत्ति फ़िल्म के"डॉग" शब्द को लेकर है... उनकी माने तो डैनी ने भारतीय स्लम के लिए यह शब्द का प्रयोग कर करोडो देश वासियों की भावनाओ को आहत करने का काम किया है ....

वैसे तो यह फ़िल्म विकास के उपन्यास पर आधारित है लेकिन इसकी कहानी उससे हूबहू मेल नही खाती .....विकास के उपन्यास का नायक जहाँ " राम थॉमस है..... वही डैनी का नायक "जमाल" है...... इसी तरह से राम की प्रेमिका उपन्यास में जहाँ नीता है , फ़िल्म में यह "लतिका " है .....उपन्यास की कहानी कुछ और ही बयां करती है.... उसमे दिखाया गया है किस प्रकार से धारावी में पला राम नाम का युवक शो शुरू होने के कुछ हफ्ते पहले ही एक अरब की मोटी रकम जीत जाता है लेकिन यहाँ पर एक नई समस्या शो के आयोजकों के सामने आजाती है ....जब उनके पास राम को देने के लिए रकम नही होती ...... वह राम को जालसाज साबित करने में लग जाते है .......इस दरमियान एक महिला वकील उसकी मदद करने को आगे आती है .....यह सब फ़िल्म में नही है .....जो भी हो इस फ़िल्म को देखने के बाद बुलंद भारत की असली तस्वीर देखीजा सकती है .....आज भी भारत की एक बड़ी आबादी स्लम में रहती है उनका गुजर बसर किस तरह से होता है यह सब हम इस फ़िल्म में देख सकते है..... गरीबी को लेकर चाहे कुछ भी कहा जा रहा हो लेकिन यह भारत की एक सच्चाई है हम इसको नकार नही सकते..... आज भी देश की बड़ी आबादी भूख और बेगारी से जूझ रही है.... उसे दो जून की रोटी भी सही से नसीब नही होती....

फ़िल्म की कहानी "जमाल " और " सलीम" नमक दो युवको के इर्द गिर्द घूमती है..... स्लम डॉग दोनों की बचपन से जवानी तक के सफर की असली हकीकत को बयां करती है... यह फ़िल्म "भारत उदय" के फब्बारो की हवा निकाल देती है... फ़िल्म में दिखाया गया है एक अदना सा दिखने वाला युवक "जमाल" किस तरह से करोड़ जीत जाता है वह अपने निजी जीवन के अनुभवों के आधार पर प्रश्नों के जवाब दे देता है ......

स्लम डॉग दोनों भाईयो के बचपन की दास्ताँ दर्द भरी है .....बचपन में दंगो की आग में इनकी माँ का कत्ल हो गया जिसके चलते अलग राह पकड़ने को मजबूर होना पड़ा..... दंगो के बाद दोनों युवक अंडरवर्ल्ड के शिकंजे में फस जाते है जिसमे उनकी सखी लतिका भी शामिलहो जाती है..... दोनों इसके चंगुल से छूट जाते है लेकिन लतिका वही की वही फस जाती है.... देश में बच्चो के अपहरण करने वालो का गिरोह किस कदर सक्रिय है यह फ़िल्म में दिखाया गया है ....वह बच्चो से अपने मुताबिक काम कराने से कोई गुरेज नही करता ......वहां से भागने के बाद जमाल की राह तो अलग हो जाती है लेकिन सलीम फिर से गिरोह वालो के चंगुल में फस जाता है ....जहाँ पर लतिका भी उसके साथ है..... बाद में जमाल केबीसी के शो में भाग लेता है जहाँ पर सभी सवालों के जवाब देकर वह "मिलेनियर " बन जाता है लेकिन लोग इस बात को नही पचा पाते की कैसे स्लम से आने वाला एक युवक सही जवाब दे देता है ? लेकिन "जमाल" अपने जीवन के अनुभवों के आधार पर सवालो के जवाब दे देता है ....अन्तिम सवाल पूछने से पहले पुलिस उसको प्रताडित करने से बाज नही आती लेकिन जमाल का आत्मविश्वास देखते ही बनता है उसकी माने तो "मुझे जवाब आता है"..... पुलिस उसको पकड़कर इस पहेली का हल खोजने की कोशिस करती है लेकिन उसको सफलता नही मिल पाती ...."जमाल" के भाग्य में करोड़पति बनना लिखा होता है वह बनकर रहता है.....


स्लम डॉग की कहानी हमारे देश की स्लम की सच्चाई है ... आज भी वहां की स्थितिया बदतर बनी है ... स्लम का आदमी किस तरह की परिस्थितियों में रहकर जीवन यापन करता है ॥ क्या खाता है? क्या पीता है? कैसे गुजर बसर करता है ? यह सवाल हमारे लिए एक पहेली है ... जिस पर चिंतन करने का समय हमारे पास नही है ... पिज्जा, बर्गर , मैक डोनाल्ड वाली संस्कृति आज हमारी पहचान बन गई है ... हम बड़े जोर शोर से मॉल, मल्टी प्लेक्स में घूमने के आदी हो गए है लिहाजा हमको भूख , बेगारी से जूह रहे हमारे देश के फ़ुट पाथो की सच्चाई नजर नही आती... स्लम डॉग इसी सच्चाई को बखूबी बता रही है .....


जहाँ फ़िल्म में छोटे जमाल की भूमिका में आयुस उतरे है..... वही देव पटेल ने बड़े जमाल की भूमिका निभाई है ....छोटे जमाल के द्वारा किया गया एक शोट ध्यान खीचता है जिसमे जमाल अपने प्रिय अभिनेता " बिग बी " के दर्शनों को पाने के लिए इस कदर बेताब रहता है की वह "गटर" में छलांग लगाकर भीड़ में अपने अभिनेता के ऑटो ग्राप के लिए हेलीकाप्टर के पास दोड़ता है..... इरफान खान, अनिल कपूर, फ्रीडापिंटो , महेश मांजरेकर का अभिनय भी फ़िल्म में लाजावाब है... सभी ने अपने परफॉर्मेंस से सभी की कायल कर दिया है .... गुलजार के गाने झूमने को मजबूर कर देते है.... साथ ही अपने "रहमान " का तो क्या कहना .... जय हो जय हो .... हाथी घोड़ा पालकी जय बोलो "रहमान " की .....रहमान के संगीत की प्रशंसा में शब्द नही है ....

एक सवाल जो हमको बार बार कचोटता है वह यह की हमारे बॉलीवुड के निर्माता कब तक प्यार के फंडो पर बनने वाली फिल्मो से इतर सोचना शुरू करेंगे...? स्लम डॉग जैसी फिल्म उनके लिए एक सीख है ... वैसे लीक से हटकर सोचने का माद्दा हमारे यहं किसी को नही.... थोड़ा सहस अगर किसी ने पहले दिखाया तो वह नाम... "सत्यजीत राय" ... लेकिन नरगिस" ने उनको भी नही छोड़ा... उन्होंने उनकी फिल्मो पर सवाल उठाते हुए कहा सत्यजीत अपनी फिल्मो में भारत की गरीबी को दिखाते थे और फिर उस गरीबी को विदेशो में बेचकर अंकल जाते थे...



जो भी हो इस बार स्लम डॉग को लेकर फिर से नाहक सवाल उठ रहे है .. परन्तु स्लम की सच्चाई से सभी वाकिफ है.... खैर इस बार स्लम डॉग ऑस्कर के दरवाजे पर खड़ी है... उससे ऑस्कर पाने की आशाए है सभी को ... अब २२ फरवरी का इंतजार है .... अपने रहमान से भी पूरे देश को खासी उम्मीद है... दिल थामकर बैठिये... सब्र का फल मीठा होता है .....अगर रहमान को यह मिल जाता है तो वह पहले भारतीय होंगे जिसने किसी विदेशी की फ़िल्म में काम कर इसको पाया..... १० नामांकनों पर सबकी नजरें लगी है.... भारत में जो लोग स्लम डॉग की आलोचना कर रहे है उनको यह सोचना चाहिए स्लम की सच्चाई से आप अपने को अलग नही कर सकते ... ।

खैर जो भी हो हाल के कुछ वर्षो में भारत का नाम ऊँचा हुआ है॥ अपने "अरविन्द ओडीगा " व्हाइट टायगर " पर पुरस्कार जीतकर भारत का झंडा बुलंद कर चुके ... अब बारी विकास के उपन्यास की है .... क्या हुआ ऑस्कर अगर स्लम डॉग को ही मिले उसकी कहानी तो स्वरूप की ही ... स्लम डॉग के कलाकार भी भारत के ... गुलजार भी ... इरफान भी... रहमान भी... अनिल भी.... सभी यार हमारे ...| अपने रहमान भी | विदेशी निर्देशक की फ़िल्म में भारतीयों की दस्तक.... तो अब सब्र कीजिये ....| इंतजार की घडिया अब जल्द ही समाप्त होने जा रही है ... आप दिल थामकर तो बैठिये...

बहरहाल , स्लम डॉग पर चाहे कुछ क्यों न कहा जा रहा हो परन्तु हमारा मानना है इसमे दिखाया गया स्लम का जीवन एक सच्चाई है ... आप और हम इससे आँख मूदकर नही रह सकते ....| असली हिन्दुस्तान तो आज
भी फ़ुट पाथ पर आबाद है ॥ पंक्तिया सटीक व प्रासंगिक है ------
" १०० में ७० आदमी फिलहाल नासाज है
दिल पर हाथ रखकर कहो क्या यह देश आबाद है
कोठियों से मुल्क की मयार को मत आंकिये
असली हिन्दुस्तान तो फ़ुट पाथ पर आबाद है "

4 comments:

sushant jha said...

कुछ लोग कहते हैं कि स्लम डॉग को ऑस्कर मिलना पॉलिटकली भी करेक्ट है। आखिर अमेरिका ने अगर एक अश्वेत को राष्ट्रपति चुन लिया है तो स्लमडॉग को उसी फॉर्मूले के आधार पर ऑस्कर तो मिलना ही चाहिए!!

hem pandey said...

स्लम डॉग वास्तविकता दर्शाने वाली एक अच्छी फ़िल्म हो सकती है. लेकिन विदेशों में भारत की गन्दी तस्वीर शायद ज्यादा पसंद की जाती है. गांधी जी (जो नोबल पुरूस्कार से कई गुना ऊंचे थे) पुरुस्कारित नहीं हुए. हॉकी में कैरी करने में माहिर भारत को बदले नियमों के अंतर्गत अपनी महारत भूलनी पडी. अमेरिका सहित पश्चिमी देश भारत की उजली छवि देखने के आदी नहीं हैं. हालांकि भारत के आई टी प्रोफेशनलों के आगे वे लाचार हैं.

दर्पण साह said...

paNDEY JYU mein blog pdhul to pur padhul ...
aie situnak taym hei go!! ya aie to pat lago ki tum uttrakhandke cha...
mil tumar blog ki bookmark kar halo.

No comment on post since i've not gone through yet....

will do it coming sunday. Thanks for the comment, however.

pelag.

राजीव करूणानिधि said...

बहुत बढ़िया. आभार.