
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूरी को एक बार फिर से अभय दान मिल गया है ....मुख्यमंत्री के लिए पंद्रहवीलोक सभा के नतीजे निराश करने वाले रहे है ...इस बार उत्तराखंड से भाजपा का पूरी तरह से सूपड़ा साफ़ हो गयाजिस कारण खंडूरी की चिंता बदने लगी थी ....वैसे ५ सीटो में भाजपा की पराजय के बाद खंडूरी के फीके चेहरे कीचमक साफ़ कहानी को बया कर रही थी लेकिन मीडिया में छनकरआ रही खबरे भी खंडूरी की विदाई की कहानीगड़ने लग गई थी... परन्तु अब ऐसा नही होने जा रहा है ...खंडूरी को अभयदान मिल गया है ....
उत्तराखंड के मुख्य मंत्री खंडूरी के लिए हाई कमान की यह लास्ट वार्निंग है ...अगर इसके बाद भी उन्होंने अपनी काम करने की" फौजी स्टाइल" को नही बदला तो अगली बार उनकी कुर्सी चली जायेगी ....लेकिन अभी यह नही कहा जा सकता की खंडूरी की कुर्सी पूरी तरह से सलामत है ..पूर्व मुख्य मंत्री कोश्यारी के राज्य सभा में जाने से खाली हुई "कपकोट" विधान सभा " सीट पर मतदान होना अभी बाकी है ...
इसके चुनाव परिणाम के नतीजे खंडूरी का भविष्य तय करेंगे... गौरतलब है इस समय उत्तराखंड में भाजपा के विधायको की संख्या ७० सदस्यीय विधान सभा में ३४ रह गई है ... अगर कपकोट की सीट कांग्रेस की झोली में चली जाती है तो खंडूरी की सरकार अल्पमत में आ जायेगी... हालाँकि अभी उत्तराखंड क्रांति दल के ३ विधायको का समर्थन उसके पास है लेकिन अगर वह हलिया लोक सभा चुनावो के परिणामो और कपकोट के परिणामो के बाद खंडूरी सरकार से अपना समर्थन वापस ले लेती है तो ऐसे में खंडूरी की कुर्सी जा सकती है .... वैसे भी कांग्रेस राज्य में ५ सीट जीतने के बाद आत्मविश्वास से भरी पड़ी है ...
हरिद्वार से इस बार लोक सभा चुनाव जीते हरीश रावत एक बार फिर से सक्रीय हो गए है और वह खंडूरी सरकार को गिराने की कोशिसो में जुट गए है ... बताया जाता है कपकोट के परिणामो के बाद वह अपना असली खेल शुरू करेंगे ....
मैंने हरीश रावत की राजनीती को बेहद करीब से देखा है ...उनकी राजनीती का छोटा खिलाड़ी मानना एक बड़ी भूल होगी ... भले ही उनके विरोधी लगातार एक के बाद एक हार के बाद यह दुष्प्रचार करते रहे हो , उनकी राजनीतिक पारी अब समाप्ति के कगार पर है लेकिन इस बार हरिद्वार को फतह कर उन्होंने साबित कर दिया है कि वह राजनीती के मझे खिलाड़ी है ...गौरतलब है हरीश रावत अभी तक राज्य की राजनीती से हासिये पर थे...
वह वर्त्तमान में भाजपा के प्रदेश प्रेजिडेंट बची सिंह रावत से ४ बार लगातार लोक सभा चुनावो में हार चुके है ...इसको देखते हुए लोगो का मानना था की हरीश की राजनीतिक पारी अब समाप्त हो चुकी है ... लेकिन लोगो का आंकलन ग़लत साबित हुआ ...हरीश का वनवास इस बार पूरा हो गया॥ अभी तक वह लोक सभा का चुनाव अल्मोडा पिथोरागढ़ संसदीय सीट से लड़ते थे लेकिन इस बार यह सीट रिज़र्व हो जाने के बाद उनकी हरिद्वार जाना पड़ा और उनकी हराने वाले बची सिंह रावत को नैनीताल से चुनाव लड़ना पड़ा जहाँ पर उनकी करारी हार हुई है ॥
वैसे भी नैनीताल तिवारी के समय से कांग्रेस का पुराना गद रहा है .. हरीश हरिद्वार जीत के बाद निश्चित ही मजबूत होंगे... क्युकि लगातार हार और कांग्रेस प्रदेश प्रेजिडेंट का कार्यकाल पूरा करने के बाद से वह अपने को उपेक्षित महसूस कर रहे थे... अब इस जीत के बाद उनमे नया जोश आ गया है ॥ यह प्रदेश की जनता का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा बार बार उत्तराखंड की जनता ने हरीश रावत को नकार दिया॥
हरीश रावत से अपना मिलना जुलना लगा रहता है ॥ हालाँकि अभी कुछ वर्षो से उनकी मेरी कोई मुलाकात नही हुई है ...एक वाकया रावत जी से मेरी मुलाकात का रहा है जिसको आप सभी के साथ शेयर करना चाहता हूँ॥ एक बार मैंने उनसे इंटरव्यू में पुछा था रावत जी क्या आप मानते है की सत्ता राजयोग से मिलती है ? तो उनका सीधा सा जवाब था... हाँ ... पर क्या करे शायद हरीश की कुंडली में राजयोगतो है ही नही ...तभी वह उत्तराखंड के मुख्यमंत्री नही बन पाये... नारायण दत्त तिवारी के साथ उनके कटु संबंधो के चलते उनकी राजनीती को नुक्सान उठाना पड़ा ....
खैर में भी कहाँ से कहाँ पहुच जाता हूँ बात खंडूरी पर चल रही थी और बीच में हरीश रावत आ गए... हरीश पर फिर कभी बात विस्तार में की जायेगी ... लेकिन इतना तो तय है कांग्रेस की इस जीत के बाद हरीश रावत की दस जनपद में पकड़ मजबूत हो गई है...
वैसे भी हरीश रावत की अहमद पटेल के दरबार में मजबूत पकड़ पहले से ही रही है लेकिन उनकी राह में सबसे बड़ा रोड़ा बार बार नारायण दत्त तिवारी बनते थे जो अभी आंध्र के राज्यपाल है ..तिवारी की राय का सोनिया हमेशा से पालन करती रहती थी ॥ अब इस बार हरीश का कद राज्य के साथ केन्द्र में भी बड़ा है कांग्रेस के समय जनता की उम्मीद पर खरा उतरने की एक बड़ी चुनोती इस समय है....
सोनिया गाँधी को भी इस बारे में सोचना चाहिए ...राज्य की जनता ने मौजूदा जनादेश हाथ को दिया है लिहाजा उसकी भी यह नैतिक जिम्मेदारी बनती है की राज्य के विकास के लिए केन्द्र से भरपूर मदद दी जाए....कांग्रेस के पास लोगो का दिल जीतने की बड़ी चुनोती इस समय है ...अगर वह लोगो का दिल जीतने में कामयाब हो जाती है तो अगले चुनाव में उसको फायदा हो सकता है....
अब देखने वाली बात यह होगी अभी ५ सीट जीतने वाली कांग्रेस में उत्तराखंड से कोई नेता मनमोहन सिंह के मंत्री मंडल में शामिल होता है या नही ? वैसे पड़ोसी छोटे राज्य हिमांचल की बात करे तो यहाँ से वीरभद्र सिंह के मंत्रिमंडल में शामिल होने की सम्भावना है ...अगर जनता के फेसले का सम्मान कांग्रेस करती है तो निश्चित ही इस बार उत्तराखंड से किसी नेता को मंत्रिमंडल प्रतिनिधित्व का अवसर मिलना चाहिए ...
वैसे इस लिस्ट में उत्तराखंड से हरीश रावत आगे चल रहे है ... आप माने या नही माने रावत की पकड़ अहमद पटेल के दरबार में मजबूत है ...अब देखना है इस जीत के बाद हरीश का सिक्का सोनिया के दरबार में चलता है या नही ?अगर यह चल गया तो हरीश आने वाले समय में कांग्रेस के बड़े खेवनहार उत्तराखंड में होंगे ... सोनिया ,राहुल के आसरे अगर हरीश रावत की राजनीती अगर आगे बदती है तो यह उनके धुर विरोधियो के लिए खतरे की घंटी है ..संभवतया ऐसी सूरत में उत्तराखंड कांग्रेस के प्रेजिडेंट यशपाल आर्य के समर्थक हताश हो सकते है ॥
हरीश रावत के तिवारी जी के साथ सम्बन्ध कभी मधुर नही रहे.... यहाँ तक की राज्य के पहले चुनाव में कांग्रेस को भारी बहुमत से जीत दिलाने में हरीश रावत का बड़ा अहम योगदान रहा लेकिन सोनिया ने तिवारी को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठा दिया तब से दोनों के बीच दूरिया जयादा हो गई .... हरीश रावत मुख्य मंत्री की लड़ाई में पंडित नारायण दत्त तिवारी से काफ़ी पीछे चले गए । ...
राज्य के दूसरे चुनाव में दोनों के बीच कटु संबंधो की बानगी देखिये २००७ में करारी हार के विषय में हरीश से पुछा तो उन्होंने कहा "जब सेनापति ही युद्घ से भाग गए तो बाकी सेना क्या करती ?" सेनापति से आशय तिवारी से था जो कांग्रेस का जहाज बीच में छोड़कर चले गए .... इस बार तिवारी सक्रीय राजनीती से दूर हो गए है वह आन्ध्र के राजभवन में आराम फरमा रहे है...लेकिन अभी भी वह अपने चेलो के साथ हरीश रावत की राजनीती पर संकट बनते रहे है ....
लेकिन इस बार हरीश ने हरिद्वार पर फतह करके यह साबित कर दिया है हरीश रावत के अन्दर अभी भी उत्तराखंड का गाँधी बन्ने का जोश बरकरार है...अब तिवारी की उत्तराखंड से विदाई के बाद हरीश की कुंडली में राजयोग बनता दिख रहा है ..तिवारी की खासमखास इंदिरा अब हरीश के गुट में आ गई है ..इस चुनाव में दोनों के बीच आपस में गहरा सनेह देखा गया .. अगर यह दिखावा नही है तो यह कांग्रेस के लिए आने वाले समय के हिसाब से अच्छी ख़बर है ॥ यहाँ पर बताते चले उत्तराखंड में तिवारी के मुख्य मंत्री बनने के दौर से ही कांग्रेस गुटबाजी से त्रस्त है जिसका खामियाजा कांग्रेस को अपोजिसन में बैठकर भुगतना पड़ रहा है ...
अब कांग्रेस की यह बीमारी भाजपा में आ गई है ... इस चुनाव में भाजपा को गुटबाजी ले डूबी.. पार्टी की एकजुटतामें कमी देखने को मिली कांग्रेस गुटबाजी से शरू से त्रस्त्र रही है पर इस बार बीजेपी उसका लाभ ले पाने में कामयाबनही हो सकी... खंडूरी अकेले दम पर चुनाव प्रचार करते रहे॥ उनके मंत्रियो ने उनको धोखे में रखा ..बताया जाताहै इस बार खंडूरी को सबक सिखाने की पूरी तैयारी बीजेपी के विधायको ने कर रखी थी॥
खंडूरी उनकी नजरो मेंशुरू से खटकते रहे है॥ इसका कारण जनरल की साफगोई है॥ वह विकास में पारदर्शिता के सपोटर शुरू से रहेहै... तभी अटल जी की सरकार में उनको केन्द्रीय भूतल परिवहन जैसा भारी भरकम मंत्रालय दिया गया जहाँखंडूरी ने खासी वाह वाही बटोरी... इसकी के चलते अटल के आर्शीवाद के चलते उनको उत्तराखंडलाया गया॥ परन्तु यहाँ पर नेताओं के निजी हित इतने ज्यादे हो गए वह इन सब को पूरा नही कर पायेजिसके चलते नेता उनसे असंतुस्ट हो गए॥
खंडूरी राज्य के विकास में कोई कोताही नही बरतना चाहते है... वहसभी काम अपने अनुसार करने के आदी रहे है॥ तभी भाजपा के विधायको को उनकी यह स्टाइल नही भाती है ॥ जिस कारण वह बार बार खंडूरी के ख़िलाफ़ मोर्चा खोले रहते है ... अभी लोक सभा चुनावो से पहले राज्य में बीजेपी ने खंडूरी के नेतृत्व में लगातार ९ चुनाव जीते है... लेकिन इस बार भाजपा की चुनावो में करारी हार हो गयी है॥
ख़ुद खंडूरी को इस बात की आशा नही थी की जनता उनको नकार देगी॥ दरअसल यह हार पार्टी की सामूहिक हार है॥ भाजपा में अभी तक खंडूरी के विरोध का सिलसिला नही थमा है ... हालाँकि खंडूरी को हटाने की मुहीम वालेअभी तक चारो खाने चित नजर आए है ... लेकिन खंडूरी को हटाने वाले की चाल बार बार चलने वाले भगत सिंहकोशियारी एक बार फिर सक्रीय हो गए है ...
भगत सिंह कोशियारी को खंडूरी अपनी राजनीतिक चालो द्वारापरेशान कर चुके है लेकिन भगत फिर सक्रीय हो गए है ॥ कोशियारी की मुख्यमंत्री पद को पाने की लालसा अभीकम नही हुई है ॥ वह बार बार अपने पाले में कई विधायको को लेते रहे है ....पिछली बार तो स्थिति यहाँ तक आ गई थी भाजपा के कई विधायको के इस्तीफे की ख़बर दिल्ली में उड़ने लगी थी लेकिन बाद में राजनाथ के बयान केबाद मामला शांत हुआ ॥ उन्होंने साफ़ तौर पर कहा खंडूरी को हटाने का कोई सवाल नही है॥
तभी से कोश्यारी इस कदर बैचैन थे , वह खंडूरी की कही न कही कमी को पार्टी के केन्द्रीय नेतृत्व को दिखाना चाहते थे .. परन्तु केन्द्रीयनेतृत्व हमेसा खंडूरी का साथ देता रहा ... उल्टा खंडूरी के इशारो पर कोश्यारी को राज्य की विधायकी से इस्तीफादेकर हरीश रावत के राज्य सभा कोटे से खाली हुई सीट से राज्य सभा भेज दिया गया॥ अभी तक ग्रह भी खंडूरीका साथ दे रहे थे परन्तु इस बार पाँच सीट हारने के बाद से खंडूरी को हटाने की उनकी मुहीम को फिर बल मिलनाशुरू हो गया है.....
वैसे बताया जाता है कोश्यारी ने अपनी इच्छा से आलाकमान को अवगत करवा दिया है॥ सूत्रोकी माने तो कोश्यारी का कहना है की अगर खंडूरी को पहले ही हटा दिया जाता तो आज उत्तराखंड में पार्टी का इसकदर सूपड़ा साफ़ नही होता.. लेकिन यहाँ बताते चले हाई कमान खंडूरी को हटाने के मूड में नही दिखाईदेता॥ भले ही खंडूरी ने इस चुनाव में हार की जिम्मेदारी अपने सर ले ली है परन्तु सच्चाई यह है खंडूरी के मंत्रियोने इस चुनाव में खंडूरी को धोखे में रखा....जिसके चलते बड़े पैमाने पर खंडूरी के हेवीवैट मंत्रियो के चुनाव विधानसभाओ में पार्टी बुरी तरह से हार गई॥
अब खंडूरी की रिपोर्ट लेने कुछ समय पहले मुख्तार अब्बास नकवी और थावर गहलोत को देहरादून भेजा गयाथा॥ उन्होंने अपनी रिपोर्ट राजनाथ को दे दी है॥ इसमे बताया जाता है की सभी को एकजुट होकर कपकोट चुनावजीतने के मंत्र दिए गए ॥ भाजपा अब जोखिम नही लेना चाहती है॥
अगर कपकोट उपचुनाव वह हार जाती है तोवह अल्प मत में आ जायेगी..इसके बाद विकास नगर में चुनाव होना है॥ यहाँ से मुन्ना चौहानविधायक थे जो लोक सभा चुनाव मेंपार्टी से नाराज हो गए और बसपा के हाथी पर टिहरी से लड़े थे॥ अगरकपकोट के बाद विकास नगर भी भाजपा नही जीत पाती है तो भाजपा से उत्तराखंड क्रांति दल अपना समर्थनवापस ले सकता है... ऐसे में खंडूरी की चिंता बढ जायेगी॥पार्टी का पूरा फोकस अब कपकोट में है॥ खंडूरी अब कपकोट में है॥ बची सिंह रावत और कोश्यारी एकजुट होकर भाजपा को जीताने की कोशिसो में जुटेहै.. अब देखते है आगे आगे होता है क्या ?