Monday, 11 May 2009

उत्तर पर भारी पड़े है दक्षिण के सितारे ...........(लोक सभा का महासमर )









































...रामपुर की सीमा में अपना घुसना होता रहता है..... आप अगर मुरादाबाद के रास्ते उत्तराखंड जाना चाहे ,तो रामपुर आपके रास्ते में पड़ेगा.... आजकल रामपुर खासा सुर्खियों में है... क्युकि यहाँ से समाजवादी पार्टी की प्रत्याशी "जया प्रदा" मैदान में है ...मुलायम के लंगोटिया यार आजम खान यहाँ जयाके खिलाफ मोर्चा खोले हुए है....अमर सिंह भी उनके निशाने पर इस बार बने है...



खैर ,आप भी कह रहे होंगे रामपुर पर अपनी बात करते करते में कहाँ आजम खान ,मुलायम तक चले गया .....रामपुर का जिक्र आते ही" जया प्रदा " का नाम याद आ गया ॥ जया का नाम इस बार के फिल्मी जगत के प्रत्याशियों के साथ है जो चुनाव मैदान में राष्ट्रीय पार्टियों के टिकेट पर चुनाव लड़ रही है ...उनकी बात करने पर हमारे देश के उन फिल्मी हस्तियों के बारे में उमड़ घुमड़ कर तस्वीर बन जाती है जो फिल्मो से राजनीती की रपटीली राहो में चले आए .....


जया से फिल्मी सितारों के राजनीती में आने को लेकर अभी कुछ दिनों पहले कुछ सवाल मीडिया वाले पूछ रहे थे....जया का कहना था जब सभी लोग राजनीति में आ रहे है तो फिल्मी कलाकारों के उसमे आने में क्या बुरा है?वह करूणानिधि ,जयललिता,चिरंजीवी जैसे कई नामो को गिना देती है जिन्होंने फिल्मी राजनीती में ऊँचा मुकाम हासिल किया ॥ कभी यह सभी फिल्मी परदे पर अपने लटके झटको से सभी को कायल कर देते थे....यहीं नही जया प्रदा तो "रोनाल्ड रीगन " जैसे नाम को भी गिना देती है ... उनकी माने तो रीगन जैसे कई लोगो ने हॉलीवुड से राजनीती के अखाडे में कदम रखकर राष्ट्रपति की कुर्सी हासिल करने में सफलता पायी थी...


जया का कहना अलग है... उनके इस बयान से मेरा दिमाग ठनक गया ... बड़ा सवाल यह उठता है ...राजनीती में हमारे उत्तर के कलाकार क्यों दक्षिण के कलाकारों के सामने फिसड्डी साबित हो जाते है? दक्षिण की बात करे तो यहाँ करूणानिधि, अन टी रामाराव ,जयललिता, सी अन अनादुरै , ऍम जी रामचंद्रन जैसे कई नाम गिनाये जा सकते है जिन्होंने दक्षिण की राजनीती को अपने प्रभाव से प्रभावित किया है ..लेकिन इस प्रसंग में अगर हम बात उत्तर के सितारों की करे तो यहाँ कुछ ख़ास प्रभाव नही देखा गया है... आज भी आलम यह है हमारे उत्तर के कई सितारे गुमनामी के अंधेरो में खोकर रह गए है ...'


आईये बात उत्तर से करे.... यहाँ पर पहले के ज़माने से फिल्मी कलाकारों का राजनीती से जुडाव रहा है..इस प्रसंग में पृथ्वी राज कपूर,सुनील दत्त, नर्गिस जैसे कई नाम गिनाये जा सकते है जिन्होंने फिल्मी पर्दे से सीधे राजनीती के मैदान में एंट्री मारकर सभी का ध्यान खीचा था ॥इसके बाद से तो सभी दल में फिल्मी कलाकारों को टिकेट देने की होड़ लग गई.....कांग्रेस से यह सिलसिला राजीव गाँधी के समय से शुरू हुआ जब इलाहाबाद से अभिताभ बच्चन को हेम्वंती नंदन बहुगुणा के खिलाफ लड़ने केलिए टिकेट दिया गया ॥ तब अमिताभ ने बहुगुणा जैसे दिग्गज नेता को धूल चटाई .. यही नही उस दौर में वैजंतीमाला को भी राजीव ने टिकेट दिया परन्तु उस के बाद वह कहाँ गुम हो गए इसका पता नही?

टीवी पर लटके झटके लगाकर नाचना गाना एक अलग बात है .... यह सब राजनीती में नही चलता पर हमारे उत्तर के सितारे इस बात को नही समझ पाते है ...वह अपने फ़िल्म से जुड़े होने के चक्कर में वोटर को लुभाने की कोशिश करने में जुटे रहते है....परन्तु उनको राजनीती की ए बी सी ही पता नही होती...दरअसल हमारे दक्षिण के सितारे शायद इस कारन आगे रहते है क्युकि वह जब अपनी पार्टी बनाते है तो वह अपने बूते संगठन खड़ा करते है ...जिसके पीछे एक लम्बी टीम होती है॥


यही नही फिल्मो से जुड़े होने के चलते उनके सपोर्टर की तादात भी ज्यादा होती है जो उनसे बदलाव की उम्मीद करते है..दक्षिण में अभी इस कारनामे को करूणानिधि ,जयललिता , अन टी रामाराव ,ऍम जी रामचंद्रन ने साकार किया है॥ अपने चिरंजीवी भी अब इसी रास्ते को पकड़ चुके है ....आने वाले समय में कई कलाकार और राजनीती का रुख कर सकते है..इस बार चीरू पूरे रंग में नजर आरहे है..प्रजा राज्यम ने चंद्रबाबू से मुकाबले की ठान ली है...तेलगु गौरव के नाम पर इस पार्टी को अन टी रामाराव ने ८० के दशक में पैदा किया ...


तब से बड़े पैमाने पर इससे अभिनेता अभिनेत्रिया जुड़ती रही है ॥ यही नही इस चुनाव में चीरू के मुकाबले के लिए चंद्रबाबू ने बड़े पैमाने पर वहां के सितारों को प्रचारमें उतारा है॥ चीरू की माने तो दक्षिण के कलाकारों ने एक आन्दोलन पैदा करने में सफलता पायी है ॥ गरीब कमजोर तबके तक विकास कार्य पहुचाना उनका मुख्य उद्देस्य है जिसको वह अंजाम दे रहे है...


इस कड़ी में आंध्र की" लेडी अमिताभ " विजय शान्ति का नाम भी शामिल है जो अपनी पार्टी के तेलंगाना रास्ट्रीय समिति में विलय के बाद चुनाव लड़ रही है ताकि लोगो की समस्या का समाधान आसानी से हो सके ....


तमिलनाडु की कहानी भी आंध्र प्रदेश जैसी ही है ॥ यहाँ से ३९ सांसद आते है ..तमिल सिनेमा से निकले ऍम जी राम चंद्रन का प्रभाव कों कोई भूल सकता है क्या? जयललिता आज उन्ही के नाम पर तमिलनाडु के बड़े तबके के वोट अपने पाले में लाती है ...राम चंद्रन जैसे शिवाजी गणेशन , करूणानिधि ,सी अन अन्ना दुराई जैसे कई और नाम शामिल है जिन्होंने तमिल सिनेमा से निकलकर अपने को तमिलनाडु की राजनीती में चमकाकर रख दिया॥


अब बात उत्तर भारत की करते है ...उत्तर भारत में पृथ्वी राज कपूर, नर्गिस जैसे कई नाम गिनाये जा सकते है ...आपातकाल के समय देवानंद ने भी एक अलग पार्टी बना ली थी परन्तु बाद में वह कहाँ गुम्म हो गई इसका पता नही ? एक दो को छोड़ दे तो हमारे उत्तर के कलाकार राजनीती के मोर्चे पर ज्यादा सफल नही हो पाए..अभिताभ ने बहुगुणा जैसे दिग्गी नेता को हरा दिया था..८४ के चुनाव में जीत के बाद बहुगुणा की खासी किरकिरी हुई थी ....


इसके बाद ऐसा लगता था की अमिताभ राजनीती से जुड़े रहेंगे परन्तु क्या हुआ वह राजनीती से दूर हो गए॥ यही हाल गोविंदा का भी हुआ है ॥ २००४ में राम नाईक को हराया था..आज कांग्रेस पार्टी ही उनको चुनाव में टिकेट देने से डर रही है..गोविंदा के समझ में शायद अब आया है राजनीती और फिल्मी रंगमंच में अभिनय करना कितना मुश्किल होता है॥ गोविंदा संसद में कभी कभार उपस्थित होते थे ....यही नही अपने संसदीय इलाके में उन्होंने बहुत कम रुख किया और सांसद निधि का बहुत पैसा बचाए रखा....खर्च करने से पीछे हट्टे रहे....
यही बात बीजेपी के टिकेट पर बीकानेर से लड़ने वाले धर्मेन्द्र पर भी लागू होती है..चुनाव जीतने के बाद वह संसद से तो नदारद ही रहे उनके संसदीय इलाके में उनके दर्शन दुर्लभ हो गए थे जिस कारन वह इस बार फिर से लड़ने का साहस नही जुटा पाये....पार्टी को पहले ही उन्होंने टिकेट के लिए मना कर दिया॥


मसलन मेरा यह कहना है हमारे उत्तर के कलाकारों को यह समझना चाहिए की राजनीती एक अलग फील्ड है यहाँ लटके झटके मारने रटाये डायलोग बोलने से काम नही चलता॥ जनता से सीधे संवाद कायम करना पड़ता है॥ फिल्मी दुनिया की हकीकत और राजनीती के मैदान में जमी आसमा का अन्तर है....


फ़िल्म में हीरो नम्बर १, कुली नम्बर १ बनना आसान होता है परन्तु राजनीती में नम्बर १ बन्ने के लिए करिश्माई होना चाहिए॥ यहाँ लटके झटको से काम नही चलता है.....नेताओ के द्वारा इन फिल्मी कलाकारों को लाने के पीछे बड़ी मंशा यह होती है इलाके में एक प्रचार के द्वारा फिजा बदल जायेगी...साथ में यह सितारे पार्टी के स्टार प्रचारक भी साबित हो जायेंगे .....


लगभग सभी पार्टिया आज उत्तर भारत के इन स्टारों पर निर्भर हो गई है.... भाजपा क्या कांग्रेस भी आज इन पर निर्भर है? सपा तो पूरी तरह से इनपर निर्भर है... अमर सिंह के फिल्मी घरानों से सम्बन्ध बड़े मधुर है ..... यह नजदीकिया होना कोई नई बात भी नही है....
आज भी पार्टिया इन सितारों को टिकेट देने में पीछे नही है ..अभी रामपुर से सपा के टिकेट पर जाया प्रदा लड़ रही है...


पुराने सितारों में भाजपा से गुरदासपुर सीट से विनोद खन्ना फिर मैदान में है तो वहीशत्रुघ्न सिन्हा पटना साहिब से लड़ रहे है॥ उनके विरोधी के रूप में शेखर सुमन है जो कांग्रेस से लड़ रहे है..लखनऊ से सपा के टिकेट पर नफीसा अली मैदान में है ...


प्रकाश झा बिहार में लड़ रहे है लोकजन शक्ति पार्टी के टिकेट पर ...बंगाल फिल्मी इंडस्ट्री से ताल्लुक रखने वाले कबीर सुमन भी इस बार मैदान में है... रिजल्ट बताते है की पिछली बार सात लोगो ने फिल्मी रंगमंच से संसद का सफर तय किया था..देखते है इस बार लोग फिल्मो से संसद का सफर तय करते है...?

बहरहाल जो भी हो, यह तो तय है फिल्मी सितारों का उपयोग भीड़ खीचने को किया जाता रहा है और आगे भी रहेगा.... अब तक की कहानी यह है दक्षिण के सितारे उत्तर के सितारों पर भारी पड़े है...इसका कारन यह भी हो सकता है की जहाँ दक्षिण के सितारों के पास चुनाव में बड़ा नेटवर्क होता है वहीँ काम करने का एक एजेंडा भी जिसके अनुसार वह चलते है और जनता भी उनके और खिची चली आती है ....


अन टी रामाराव ,जयललिता, करूणानिधि, शिवाजी गणेशन हो सभी राजनीती में आगे इसलिए रहे क्युकी केवल फिल्मी हस्ती होने के कारन इनको वोट नही मिले ॥ सभी के पास एक विजन था ....और बिना इस के कुछ भी सम्भव नही हो सकता ....कम से कम हमारे उत्तर के सितारों पर यह बात लागू नही होती ॥ वह भाजपा या कांग्रेस सरीखी बड़ी पार्टियों में जाते है जिनके पास अपना कोई कार्यक्रम नही होता॥ वह फिल्मोके चमत्कार को यहाँ दिखाना चाहते है जिसमे वह सफल साबित नही हो पाते ....


अगर एक बार गलती से गाजे बाजे के साथ संसद पहुच भी गए तो दुबारा चुनाव लड़ने का साहस नही जुटा पाते...खुदा ना खास्ता , राजनीती की राह सबसे अलग है ......बसंती से शादी ना करने को लेकर शराब की बोतल पकड़कर मीनार से कूद जाना तो फिल्मो में आसान काम है लेकिन राजनीती की पिच पर देर तक बैटिंग कर पाने के लिए खूब पसीना बहाना पड़ता है देर तक फिल्ड में टिके रहने की कला तो होनी ही चाहिए साथ ही विपक्षी की काट का कारगर ब्रहमास्त्र अपने कवच में होना चाहिए.....


फिर जनता जनार्दन के द्वारे भी जाना पड़ता है ॥ पूरे ५ साल अगर उनके पास नही गए कुछ काम नही कराये तो अगले चुनाव में जनता के जूते खाने को भी तैयार रहना चाहिए ........

लोक सभा का महासमर आपको कैसा लग रहा है इस पर अपनी राय देना
मत भूलियेगा... मुझे आपकी राय की प्रतीक्षा रहेगी........ महासमर की हर पोस्ट पड़कर अपने कमेन्ट दीजिये










8 comments:

Unknown said...

yah post achchi lagi... kamaal hai apne dakshin ke sitare bahut aage hai .... uttar bhariy sitare achanak intry rajneeti ke maidaan me maarte hai aur phir farsh par aa jaate hai....
political pakad majboot lagti hai.... lok sabha mahasamar padvane ke liye aapka shukria..

kumar Dheeraj said...

लगता है कि पोस्ट करने के समय काफी साजिश रचा था आपने तभी तो उत्तर को पीछे कर दिए और दछिण को आगे कर दिए । लेकिन एक बात तो आपको सोचना पड़ेगा आजकल फिल्मी दुनिया में उत्तर के कलाकारो का कम प्रभाव है इसीलिए यह हाल राजनीति में भी है

Mumukshh Ki Rachanain said...

सार गर्भित लेख पर आभार.
टिप्पणी के रूप में विशेष ..............

राजनीति में आपने आपने जो नाम गिनाये उत्तरभारतीयों के वे सब किराये के टट्टूओं की तरह लाये गए थे.
कोई भी मन से नहीं आया, सबके अपने स्वार्थ थे.

जबकि दक्षिण में जो भी राजनीति में आये सब अपने मन से आये और जम कर राजनीति भी की सत्ता भी हासिल की.

दक्षिण से प्रथम बार जयप्रदा किराय के टट्टू की तरह ही लाई गयी हैं, जरा वो सफल होकर तो दिखाएं.

चन्द्र मोहन गुप्त

jamos jhalla said...

prabhu jo chamaktaa hai woh sonaa nahi hotaa.sitaaraa uttar kaa ho yaa dakhin kaa sirf chamakne ke liye hi hai.isiliye uttar kaa sitaaraa aage ho ya dakhin kaa ki farak pendaa hai.
jhallevichar.blogspot.com

Unknown said...

harsh,mahasamar achcha lag raha hai .. aaj aankhari charan bhee poora ho gaya hai 62% matdaan hua hai .16 may to phesla ho jayega.........
uttar ke sitaro ke ranng dakshin ke aage feeke padte rahe hai..aapne sahi likha hai..

aapki political har khabar ko me padna pasand karti hoo.. aapke lekhan ne mujhko bhee political field ka deevana bana diya hai.. thanks for this post.....
god bless u

Urmi said...

आपकी टिपण्णी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद!
बहुत बढ़िया लिखा है आपने ! अब तो आपका पोस्ट पड़कर राजनीती के बारे में काफी ज्ञान प्राप्त हो रहा है और काफी दिलचस्पी भी लेने लगी हूँ! शुक्रिया हर्ष जी!

Unknown said...

bahut achacha likha hai harsh aapne...kal sahi tasveer saaf ho jayegi....bas dekhiye kaun banta hai pm?

गजेन्द्र सिंह भाटी said...

HI hARSH.

HOW IS IT GOING.
I am happy for you. You are making it to good.

Try n be regular.
When r u coming to delhi.

Now the results have come so write on some beautiful articles.

God bless...
Gajendra singh Bhati