श्री लंका में एक बार फिर राजपक्षे की जीत का डंका बज गया है..... दूसरी बार उन्होंने लंका की कमान संभाल ली है ..... लेकिन विपक्षी पार्टी के प्रत्याशी फोंसेका उनकी जीत को नही पचा पा रहे है... जीत के बाद भी वह इस बात को उठा रहे है यह जीत नही, धांधली हुई है... श्री लंका के इस आम चुनाव में बड़े पैमाने पर धांधलियो के चलते राजपक्षे की जीत की राह आसान हुई है.....ऐसा कहना है फोंसेका का॥
मतों के लिहाज से बात करे तो यह राजपक्षे ५८ और फोंसेका को ४० परसेंट मत है ..... जो यह बता रहे है , आज भी राजपक्षे की लोकप्रियता का ग्राफ कम नही हुआ है.... राजपक्षे २००५ में लंका के रास्ट्रपति निर्वाचित हुए थे....राष्ट्रपति के रूप में उनका कार्यकाल अभी २ साल से ज्यादा का बचा हुआ था.....पर उन्होंने समय से पहले चुनाव करवा लिए....... संभवतया इसका एक कारन अभी वहां पर लिट्टे के पतन की पट कथा रही ..... इसके नायक बन्ने की होड़ राजपक्षे और फोंसेका में लगी रही.....
दरअसल वहां पर राजपक्षे और फोंसेका के बीच सम्बन्ध पिछले कुछ समय से अच्छे नही चल रहे थे ..... प्रभाकरन की मौत के बाद से संबंधो में तल्खी कुछ ज्यादा ही हो गयी... सेना ने जैसे ही लिट्टे के छापामार अभियान में सफलता प्राप्त कर ली वैसे ही राष्ट्रपति राजपक्षे ने फोंसेका की सेना अध्यक्ष पद से विदाई कर दी ....... उनके लिए चीफ ऑफ़ डिफेन्स स्टाफ नामक नया पद सृजित कर दिया गया...
यह मसला फोंसेका के लिए प्रतिष्टा का मसला बन गया... क्युकि उन्ही के सेनापति रहते सेना ने तमिल चीतों के विरुद्ध संघर्ष तेज किया जिसके चलते श्री लंका से तमिल चीतों को मुह की खानी पड़ी ...पर वहां के रास्ट्रपति राजपक्षे इस जीत के बाद खुद को नायक मानने पर तुले थे ....शायद इसी कारन उन्होंने अपने कार्यकाल के पूरा होने से पहले ही चुनाव मैदान में आने का मन बना लिया.............
अपने को वाजिब सम्मान न मिले पाने के चलते फोंसेका ने भी रास्ट्रपति पद के प्रत्याशी के रूप में अपने को उतार लिया...... राज्य की तमिल नेशनल अलायिंस समेत कई पार्टियों ने भी फोंसेका को चुनावो के दौरान अपना समर्थन दे दिया......परन्तु फोंसेका जीत का स्वाद नही चख पाए......अब अपनी हार के बाद धांधली पर जोर दे रहे है.....
श्री लंका लम्बे समय से गृह युद्ध की आग में जल रहा था..... १९४८ में श्री लंका की आज़ादी के बाद से ही वहां पर सिहली और तमिलो के बीच रिश्तो में तनातनी रही है.... वहां की २ करोड़ की आबादी में १२ प्रतिशत से अधिक तमिल है ... तमिलो को उतने अधिकार नही दिए गए जिसके चलते उनमे मायूसी साफ़ देखी जा सकती है ..... इसको महसूस करने की कोशिश फोंसेका के साथ राजपक्षे ने भी इस चुनाव बखूबी की ..... सिहली के साथ दोनों के द्वारा तमिलो का ट्रम्प कार्ड भी फैका गया.....परन्तु सफलता राजपक्षे के हाथ लगी.......
इस जीत के बाद सभी को इस बात की आशा है श्री लंका में सब कुछ ठीक हो जायेगा.....लेकिन कई लोगो का मानना है राजपक्षे की असली परीक्षा अब शुरू होगी ... देखना होगा ऐसे हालातो में वह लंका के विकास के लिए किस ढंग से अपना खाका बुनते है?
वर्तमान में श्री लंका की अर्थव्यवस्था उतर चुकी है... रोजगार के नए अवसर नही मिले पा रहे है.... महंगाई सातवे आसमान पर है.....आम आदमी का कोई पुरसा हाल नही है....मानवाधिकारों का हनन होता रहा है... इन सबके चलते वहां पर रास्ट्रपति के सामने चुनोतियो का बड़ा पहाड़ खड़ा है.....
सबसे मुख्य बात तमिलो को लेकर है... उनको देश की मुख्य धारा में लाने के लिए उनको काफी मशक्कत करनी होगी..... २६ साल के इस संघर्ष में सबसे ज्यादा उनके अधिकारों का हनन हुआ.... अब कोशिश होनी चाहिए सभी समुदायों के बीच कोई बैर नही रहे..... वैसे भारत की बात करे तो तमिलो का मुद्दा सीधे हमें भी प्रभावित करता है..........
श्री लंका में होने वाली कोई भी घटना से तमिलनाडू की राजनीती प्रभावित होती है...... इन सबको ध्यान रखते हुए कोशिश होनी चाहिए की तमिलो के अधिकारों की रक्षा की जानी चाहिए..... सिहली बिरादरी से आने वाले राजपक्षे भी अब शायद इस बात को बखूबी महसूस करेंगे की अब समय आ गया है जब तमिल हितों को वह प्राथमिकता के साथ मिल बैठकर सुलझाएंगे.......
राजपक्षे विश्थापित तमिलो के पुनर्वास की बात तो अंतराष्ट्रीय मंचो पर दोहराते रहे है लेकिन यह इस बात को भी भूल जाते है कि आज भी तमिल श्री लंका की सेना और सिहली बिरादरी के निशाने पर है ...यह घटना भारत के लिए भी चिंताजनक है ... अगर तमिलो का मुद्दा अभी भी नही सुलझता है तो इससे भारत की परेशानिया तेज हो सकती है....
भारत की जहाँ तक बात है तो श्री लंका में चीन की बदती उपस्थिति निश्चित ही चिंताजनक है... ड्रेगन ने लंका को लिट्टे के विरुद्ध संघर्ष में हथियार और सहायता प्रदान की .... यही नही भारत के धुर विरोधी पाकिस्तान ने भी वहां कि सेना को सटीक बमबारी के प्रशिक्षण के लिए साजो सामान मुहैया करवाया....
यह सब देखते हुए भारत की मजबूरी भी लंका को मदद करने की बन गयी.... लेकिन अब राजपक्षे के आने से भारत को इस बात का ध्यान रखना होगा कैसे पाकिस्तान और चीन का दखल लंका में कम किया जाए॥? वैसे भारत और श्री लंका के बीच शुरू से मधुर सम्बन्ध रहे है ... ड्रेगन और पाकिस्तान के बड़ते दखल को हमारे नीति नियंता नही पचा पा रहे है ....पड़ोस में इनकी उपस्थिति से भारत की चिंताए कम होने का नाम नही ले रही है......शायद तभी राजपक्षे को हमारी प्रतिभा ताई के द्वारा सबसे पहले बधाई भिजवाई गयी ....
राजपक्षे के मुख्य विपक्षी उम्मीदवार फोंसेका हार के बाद विचलित है .... हार के बाद इस बात की सम्भावना बन गयी है नयी सरकार फोंसेका की देश से विदाई करने के मूड में है...उनके समर्थको ने इस बात के आरोप लगाने चुनाव परिणामो के बाद ही लगाने शुरू कर दिए थे कि फोंसेका की जान को आने वाले दिनों में बड़ा खतरा है...
एक होटल के बाहर उनको कुछ सेनिको के द्वारा चुनाव परिणामो के बाद घेरा जा चूका है जो इस सम्भावना को पुख्ता साबित कर देती है....खुद सेना के प्रवक्ता नानायक्करा ने इस बात को स्वीकार किया है.. ऐसे में देखने वाली बात होगी अब फोंसेका का क्या होता है ?
खैर जो भी हो , इन परिणामो ने एक बार फिर राजपक्षे की लोकप्रयता का ग्राफ ऊँचा किया है॥ १८ लाख से अधिक वोटो के साथ वह जीत की लहर में सवार हुए है ...
श्री लंका की गाडी को वह वापस ट्रेक पर लायेंगे ऐसे उम्मीद की जा सकती है ..... लंका में सुख शांति लाने की दिशा में भी वह मजबूती से आगे बढेंगे ऐसी उम्मीद लोग कर रहे है॥ अधिकाधिक रोजगार के अवसरों को बडाने की भी बड़ी चुनोती उनके सामने इस समय है... लम्बे समय से लंका में चली अशांति के चलते वहां पर निवेशको ने भी कोई रूचि नही दिखायी है ॥
इसको ध्यान में रखते हुए राजपक्षे को यह बात भी महसूस करने की जरूरत है कैसे निवेशको को लंका में आकर्षित किया जा सके..... यह सब श्री लंका की ख़राब अर्थव्यवस्था की सेहत के लिए टोनिक का काम कर सकता है..... अब देखना होगा राजपक्षे अपने इस दुसरे कार्यकाल में अपने कदम कैसे बदाते है?
3 comments:
sambhal kar kadam rakhne hone rajpakshe ko.......
achcha likha hai..... aapke vicharo se sahmat hoo.........
aage aage dekhiye hota hai kya?
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