उत्तराखंड अपने में कई ऐतिहासिक धरोहरों , मंदिरों को अपने में समेटे है.... यहाँ की धरा का स्पर्श पाकर कई महात्माओं ने अपने को धन्य किया ... यही वह धरा है जहाँ पर कई ऋषि मुनियों ने जप तप के द्वारा अलौकिक सिद्धियाँ प्राप्त की थी... इसकी प्राचीनता और ऐतिहासिकता के चलते इसे "देवभूमि" की संज्ञा से भी नवाजा जाता है... उत्तराखंड की शांत वादियों में पहुचकर तीर्थ यात्रियों को एक सुकून सा प्राप्त होता है ... यहाँ आने वाला हर पर्यटक मन में एक छाप लेकर लौटता है और बार बार यहाँ अपने कदम रखने की आकांशा लिए अपने घर लौटता है ....
उत्तराखंड की शांत वादियों में कई पौराणिक स्थलों की खेप मौजूद है ....राज्य का अल्मोड़ा जनपद पर्यटकों की आवाजाही का मुख्य केंद्र रहा है....दारुका वन जागेश्वर धाम भी यहाँ का मुख्य तीर्थ है जो रमणीयता और शांति की अनूठी मिसाल पेश करता है ...
जनपद अल्मोड़ा से तकरीबन ३५ किलो मीटर की दूरी पर मौजूद यह स्थल तीर्थस्थल का रूप लेता जा रहा है ...प्रतिवर्ष यहाँ पर पहुचने वाले दर्शनार्थियों की संख्या में इजाफा होता जा रहा है ...कहा जाता है वनों की आभा के मध्य में इस स्थल के दर्शन मात्र से मन में ज्ञान की अलौकिक ज्योति जल जाती है ॥ यहाँ की गई स्तुति से भोलेशंकर प्रसन्न होते है और याचक की सारी मनोकामनाए पूरी कर देते है ॥
जगत के ईश जागेश्वर जता गंगा और कदर्पी नदी के किनारे बसे है... कई गाथाये भी इस स्थल से जुडी हुई है ...स्थानीय पुजारी बताते है प्राचीन काल में यह स्थल कैलाश मानसरोवर यात्रा का मुख्य पड़ाव था .....मान्यता यह भी है जागेश्वर में ज्योत्रिलिंग की स्थापना नागवंशी नरेशो के द्वारा की गई ॥ इस स्थल से कई चमत्कारिक गाथाये भी जुडी हुई है... कहा जाता है कालो के भी काल "महाकाल" भगवान् शंकर मृत्युंजय महादेव साक्षात् रूप में यहाँ पर विराजमान है ...
जागेश्वर मंदिर समूह के बारे में ऐसी मान्यताये भी मिलती है जागनाथ मंदिर का निर्माण स्वयं देवो के शिल्पी "विश्वकर्मा" ने किया ... आदि गुरु शंकराचार्य के बारे में भी यहाँ कई कथाये प्रचलित है ...कहा जाता है कि उनके द्वारा यहाँ पर कई मंदिरों की पुनर्स्थापना की गई... प्रथम शिव लिंग यहाँ पड़ने के कारन "यागिश्वर" का नाम "जागेश्वर" पड़ा ....यहाँ पर शंकर भगवान् के कई रूपों में दर्शन होते है .....
दंत कथाओ के अनुसार वशिष्ट मुनि ने राम के पुत्र कुश को इस स्थान के विषय में बताया था... उन्होंने प्राचीन समय में इसे मुक्ति प्रदान करने वाले इलाके के रूप में परिभाषित किया था... मुक्ति धाम के अलावा यह इलाका सुख ,शांति प्राप्ति के प्रतीक के रूप में भी जाना जाता है...प्राचीन काल में इसे लिंगो की उत्पत्ति का मुख्य केंद्र भी बताया गया है ...
घनी वादियों में "चक्रेश्वर नाथ "की पूजा विशेष महत्वपूर्ण बताई गई है ...इसके पूजन मात्र से मनुष्य के जन्म जन्मान्तर के पाप धुल जाते है .... १२४ मंदिरों वाला यह समूह कत्यूर कला और स्थापत्य कला कि दृष्टी से खासा अहम् है ...दीवारों पर आठवी सदी से नौवी सदी के लेख उत्कीर्ण है ...
सावन माह में यहाँ पर विशाल मेले का आयोजन होता है ॥ लोग सपरिवार यहाँ आकर पार्थिव पूजा किया करते है....हर भक्त अपनी मनोकामना जल्द पूरी होने की कामना करता है.... निराश और हताश प्राणी के अलावा नि :संतान दम्पति को भी यहाँ संतान प्राप्ति हो जाती है ....
जागेश्वर में संत क्रुद्ध्पुरी की समाधि भी है...वर्तमान में यहाँ कई सुविधाओ का अभाव है ...उत्तराखंड में पर्यटन को लेकर जोर शोर से दावे तो खूब किये जा रहे है लेकिन मौलिक सोच के अभाव में जागेश्वर जैसे स्थल की उपेक्षा हो रही है ...
8 comments:
MAuka mila to jarur jayenge
घूमने योग्य स्थान है।
जागेश्वर की जानकारी से हम लाभान्वित हुए.आभार.
jankaari se bharpur post,mara manna hai ki uttrakhand ko or adhik explor krney ki jarurat hai ,taaki partyan ko badhawa mileyn or adhik se adhik sailani kareeb se uttrakhand ki naisargik soundry ko mahshus kr sakey,
sarahniy pryash hetu abhaar.
मेरे ख्याल से यहां बरफ तो नहीं पडती होगी। चला जाऊं जनवरी में?
sach kaha pande ji...hamari bhi uttarakhand ghumne ki bahut tamanna hai...kab ghuma rahe hain????
mere blog par nayi post ka aaswadan karen...
एक मौके की तलाश है ..जरुर कार्य क्रम बनायेंगे .....आभार जानकारी के लिए
चलते -चलते पर आपका स्वागत है
mitr bahut tamnaa hai esi jangha par ghumne ki
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