मराठी
मानुस ' और ' आमची मुंबई ' सरीखे नारों के साथ पिछले कई वर्षो से
महाराष्ट्र में एकछत्र राज करने वाली शिवसेना की ताकत का सही अंदाजा अगर
आपको लगाना है तो मुंबई नगर निगम में १७ वर्षो से उसकी ठसक देखकर लगा सकते
हैं..... इसी मुंबई नगर निगम के महापौर सुनील प्रभु ने इस साल क्रिकेट के
शहंशाह मास्टर ब्लास्टर सचिन को शतको के महाशतक लगाने पर उनका नागरिक
सम्मान करने की योजना बनाई तो क्रिकेट के महानायक ने इसे ठुकरा दिया.....
सचिन के महाशतक बनने पर पूरे देश को नाज हुआ....उस दिन यू पी ए सरकार के
बजट के बजाए गली मोहल्ले में सचिन के शतक की चर्चा सभी की जुबान पर थी...
यह अलग बात रही उस दिन का मैच भारत बंगलादेश सरीखी लचर टीम से हार गया....
सचिन के शतक पर सबसे ज्यादा ख़ुशी अगर किसी को हुई तो बेशक वह मुंबई के लोग
थे जिन्हें सचिन ने अपने शतक के माध्यम से झूमने को मजबूर कर दिया था.....
लेकिन सचिन ने शिवसेना के नागरिक सम्मान के फैसले पर कुछ नही कहा और ना ही
महापौर को कोई जवाब भेजा.... उससे पहले वहां की महापौर रह चुकी श्रद्धा
जाधव की भी ख़ुशी का कोई ठिकाना नही रहा जब पिछले साल धोनी की अगुवाई वाली
टीम इंडिया ने वर्ल्ड कप जीतकर पूरे देश को झूमने को मजबूर कर दिया था ...
तब भी श्रद्धा ने सचिन का सम्मान करने का फैसला अपने कार्यकाल में किया
लेकिन सचिन इस सम्मान के नाम से कन्नी काटते रहे ....महापौरो के साथ सचिन
की इस बेरुखी के कई कारण हो सकते हैं .... संभवतया सचिन अपने को शिवसेना
सरीखी पार्टी की नीतियों से दूर पाते होंगे लेकिन २००८ में कांग्रेस एनसीपी
की सरकार आने के बाद जब राज्य के पर्यटन मंत्री छगन भुजबल ने सचिन को
महाराष्ट्र का ' ब्रांड एम्बेसडर ' बनाने की ठानी और उन्हें पत्र लिखा तो
सचिन ने इस पर आज तक सरकार को कोई जवाब नही दिया .... यह वही सचिन हैं जो
मुंबई में आई पी एल खेलते हैं , विज्ञापन करने के एवज में करोडो रुपये लेते
हैं और तो और क्रिकेट के नाम पर फरारी कार में सवारी भरने का माद्दा रखते
हैं ....
लेकिन
संयोग देखिये जब सोनिया गाँधी के आवास १० जनपथ में बीते २६ अप्रैल को सचिन
ने अपनी पत्नी अंजलि के साथ आधे घंटे मुलाक़ात की तो सचिन ने राज्यसभा में
भेजे जाने के सोनिया के फैसले पर खुद की हामी भरने में देर नही लगाई.....
हालाँकि इस मुलाकात से पहले संसदीय कार्य मंत्री और बीसीसीआई उपाध्यक्ष
राजीव शुक्ला से जब पत्रकारों ने १० जनपथ के बाहर यह पूछा कि सचिन के साथ
सोनिया की इस मुलाक़ात के मायने क्या हैं तो उन्होंने इसे केवल सामान्य
मुलाकात के रूप में प्रचारित करते हुए इतना कहा कि सोनिया सचिन को महाशतक
लगने पर बधाई देना चाहती थी लिहाजा दोनों की मुलाक़ात करवाई गई.... लेकिन
बड़ा सवाल यहीं से खड़ा हुआ कि दोनों ने मुलाकात के लिए २६ अप्रैल का दिन
ही क्यों चुना ?
दरअसल २४ अप्रैल को सचिन का बर्थडे था और कांग्रेस के नीति नियंता उन्हें राज्य सभा में भेजने का नायब तोहफा ठीक २ दिन बाद देना चाहते थे... सचिन के राज्य सभा में मनोनयन को लेकर बवाल मच गया ... कई लोगो ने सोशल नेटवर्किंग साइटों के माध्यम से सचिन के इस फैसले पर जहाँ कड़ा एतराज जताया तो वहीँ शिवसेना सुप्रीमो बाला साहेब ठाकरे ने सचिन के मनोनयन को कांग्रेस की डर्टी पिक्चर तक करार दे दिया ... वैसे कई लोगो ने इसे कांग्रेस की लगातार ख़राब होती साख से उबरने के अच्छे अवसर के तौर पर देखने में अपनी हिचक नही दिखाई.....आज के दौर में ग्लैमर में बड़ी ताकत होती है.... यही दम किसी भी पार्टी की साख चुनाव मैदान में बढाने में अहम भूमिका निभाता है .... क्युकि हमारे देश की जनता उस प्रत्याशी के ग्लैमर के आगे नतमस्तक हो जाती है और चुनावो में उसे जिताने में कोई कसर नही छोडती .... यक़ीनन आज के दौर में टी वी में दिखने वाली हर चीज बिकाऊ हो चली है .....चाहे वह फ़िल्मी सितारे हो या खिलाडी.. हर कोई उनके ग्लैमर के आगे नतमस्तक हो जाता है......
भारत
में राजनीती की पिच की बात करें तो फ़िल्मी सितारों के साथ क्रिकेटरों ने
यहाँ कई नई पारी खेली है.... कीर्ति आजाद, नवजोत सिद्धू , अजहरुद्दीन यह
चंद नाम है जिनका कैरियर क्रिकेट से सन्यास के बाद राजनीती के मैदान में
ज्यादा रम गया.... आज के दौर में घर घर क्रिकेट की पहुँच ने इसको रातो रात
बड़ा स्टार बना दिया और राजनीती की नई पारी इनको खूब रास आने लगी....इसी
तरह अगर हम फ़िल्मी सितारों की बात करें तो राजनीती की नई पिच पर उत्तर के
बजाए दक्षिण के सितारे ज्यादा भारी पड़े हैं ... चाहे वो एमजीआर ,
रामचंद्रन , करूणानिधि का दौर रहा हो या जयललिता का .... ८० के दशक की
यादें भी जेहन में हैं जब इलाहबाद से हेमवंती नंदन बहुगुणा सरीखे राजनीती
के दिग्गज को अमिताभ बच्चन ने धूल चटा दी..... इसके बाद २००० आते आते
महाराष्ट्र में जब राम नाईक के खिलाफ गोविंदा को पहली बार उतारा गया तो
चुनाव परिणाम अप्रत्याशित आये और गोविंदा ने पहली बार संसद के दरवाजे पर
अपनी दस्तक दी.... हीरो नम्बर १, कुली नम्बर १, बीवी नम्बर १, जैसी हिट
फिल्मे देने वाले इस छोरे के लोग उस समय दीवाने थे और प्रशंसको ने भी उनको
नाराज नही किया और उन्हें सांसद बना डाला ..उस दौर में कांग्रेस ने भी
गोविंदा को भुनाकर उनकी सांसद की दावेदारी तो पुख्ता कर दी लेकिन पूरे समय
गोविंदा संसद से नदारद दिखे और आम वोटरों से उनका कोई सरोकार भी नही रहा
....इसी के चलते पूरे ५ साल गोविंदा के संसदीय इलाके का सारा वोटर उनसे
परेशान दिखा.... राजनीती की यह सवारी २००३ में गोविंदा को इतनी भारी पड़ी
कि २००८ के लोक सभा चुनावो में उन्होंने राजनीती से तौबा कर ली और फिर कभी
चुनाव ना लड़ने का ऐलान कर डाला....ऐसा ही कुछ भाजपा की स्टार प्रचारक रही
हेमामालिनी के पति धर्मेन्द्र के साथ भी हुआ....२००३ में भाजपा के टिकट पर
वह बीकानेर से सांसद तो बन गए लेकिन संसद में महत्वपूर्ण विषयो पर बहस के
दौरान वह नदारद दिखे जिसके चलते उपस्थिति नगण्य रही.... आम वोटरों के साथ
दूरियां बढ़ी जिसके चलते अगले लोक सभा चुनाव में उन्होंने भी चुनाव ना
लड़ने का फैसला लेने को मजबूर होना पड़ा.....
आज
इन प्रसंगों का जिक्र इसलिए करना पड़ रहा है क्युकि बीते दिनों देश की
सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस ने अपनी खराब होती साख के मद्देन जर सचिन
तेंदुलकर को राज्य सभा में भेजने का नया दाव खेला और उन्हें मनोनीत भी कर
डाला.... तो क्या अब यह मान लिया जाए सचिन कांग्रेस की गोद में जाकर बैठ
जाएँगे और वह ' बल्ला' थामने के बजाए ' कुर्ता पायजामा ' पहनकर राजनीती की
पिच पर कांग्रेस के लिए २०१४ के चुनावो में बिसात बिछाते दिखेंगे जहाँ
स्टार प्रचारक की भूमिका में वह कांग्रेस के लिए केनवासिंग करेंगे.... यह
सब अभी भविष्य के गर्भ में है ....लेकिन सचिन ने राज्यसभा में नामित होने
के चंद घंटो बाद जो प्रतिक्रिया दी वह सबके सामने आई....पुणे में सचिन ने
कहा उनके राज्य सभा में जाने को ऐसे नही देखना चाहिए वह अब क्रिकेट से तौबा
कर रहे है और राजनीती की राह पकड़ रहे है....
ठीक
इसी तरह कांग्रेस ने राज्यसभा के लिए ५८ साल की मशहूर अदाकारा रेखा को
नामित किया.... गुमनामी के घने अंधेरो में कही खो चुकी रेखा के मनोनयन पर
खासी गहमागहमी देखने को मिली.... कई लोगो ने सवाल उठाकर पूछ डाला आखिर क्या
सोचकर रेखा को कांग्रेस राज्य सभा में ला रही है जबकि समाज सेवा , साहित्य
से उनका दूर दूर तक नाता नही रहा है.... रेखा के मनोनयन को कई लोग बिग बी
के कांग्रेस के साथ खटास संबंधो के रूप में देख रहे हैं....साथ ही रेखा को
कांग्रेस अपने फायदे के लिए सपा के खिलाफ इस्तेमाल कर सकती है क्युकि
अमिताभ की पत्नी जया इस समय सपा के कोटे से राज्यसभा में गई है.... जया और
रेखा के बीच छ्त्तीश का आंकड़ा जगजाहिर रहा है ... रेखा और अमिताभ की प्रेम
कहानी भी सभी के जेहन में है जो ७० के दशक में खूब परवान चढ़ी थी....
लिहाजा रेखा को आगे कर कांग्रेस एक तीर से कई निशाने साधने की तैयारी में
दिख रही है.....
वैसे
रेखा का बैक ग्राउंड भी किसी से नही छिपा है.... जहाँ एक दौर में अमिताभ
के साथ उनकी प्रेम कहानी सभी के जुबान पर थी वही एक दौर में राजबब्बर के
साथ भी उनका नाम जोड़ा गया.... ये अलग बात थी रेखा ने अपने को मुकेश
अग्रवाल नाम के व्यवसायी के ज्यादा करीब पाया लेकिन यह जोड़ी भी चल नही
पायी....बाद में विनोद मेहरा के साथ उन्होंने सात फेरे लिए लेकिन यह जोड़ी
भी ज्यादा नही चल पायी....रूपहले परदे की तरह रेखा की कहानी भी उतार चदाव
भरी रही है..... वर्तमान में वह तमाम झंझावात झेलकर टूट चुकी हैं अब उन्हें
एकांतवास ज्यादा प्रिय नजर आने लगा है....ऐसे में उनके राज्यसभा में जाने
का क्या फायदा कांग्रेस को होगा यह तो वह ही जाने लेकिन इससे उन लोगो को
जरुर निराशा हुई होगी जो साहित्य, कला,समाजसेवा में बरसो से पारंगत थे और
राज्य सभा में जाने के सपने देखा करते थे.....लेकिन इसे क्या कहेंगे जब
संसदीय राजनीती फायदे के सौदे का रूप ले ले और सारी बिसात फायदे और जोड़
तोड़ की राजनीती पर जा निकले तो समझा जा सकता है इस दौर में किसी भी पार्टी
का राज्य सभा में भेजने का पैमाना क्या होगा ?
दोनों
के मनोनयन पर कांग्रेस यह तर्क देना नही भूलती कि राज्य सभा में १२
सांसदों के नामांकन की चाबी रायसीना हिल्स के पास रहती है .. संविधान के
अनुच्छेद ८० में इस तरह का प्रावधान किया गया है कि साहित्य, कला, विज्ञान,
समाज सेवा से जुड़े लोगो को संसद भेजने की अनुशंसा राष्ट्रपति कर सकता
है.... वर्तमान में पांच पद खाली रहे थे जिसमे ३ पद कांग्रेस ने भरे
हैं....दरअसल यह भी नही भूलना चाहिए कि इन पदों के नामांकन की अनुशंसा
केंद्र सरकार ही राष्ट्रपति को करती है..... यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह
है कि इस बारे में गृह मंत्रालय और प्रधानमंत्री में पत्राचार २४ अप्रैल को
ही हो गया था जिसमे मनमोहन ने कांग्रेस की पसंद पर हामी भरी जिस पर
प्रतिभा ताई ने अपनी मुहर लगा दी .....
सचिन
के मामले पर सबसे ज्यादा कोई पार्टी मुखर हुई है तो वह शिवसेना है ...
शिवसेना को तो इस बात का भय अभी से सता रहा है कि कांग्रेस सचिन को आगे कर
उसे " ट्रंप कार्ड " के तौर पर आगामी चुनावो में इस्तेमाल कर सकती है जिसका
सबसे ज्यादा नुकसान किसी को अगर हो सकता है तो वह शिव सेना है....शिव सेना
के साथ सचिन के संबंधो में कड़वाहट किसी से छिपी नही है.....शिवसेना
प्रमुख बाला साहेब ठाकरे द्वारा एक बार उन्हें मराठी मानुस के रूप में
प्रचारित करने पर सचिन खासे नाराज हो गए थे ... तब जवाब में सचिन ने ठाकरे
को ललकारते हुए कहा था वह पूरे देश के मानुस हैं.... तब ठाकरे ने उन्हें
राजनीती के बजाय खेल पर ध्यान केन्द्रित करने की नसीहत दे डाली
थी...वर्तमान में वही बाला साहेब जहाँ सचिन को कांग्रेस की डर्टी पिक्चर
करार दे रहे हैं तो सचिन भी शिव सेना की मांद में घुसकर उसी राजनीती में
अपनी सम्भावना तलाश रहे है जिसको कुछ समय पहले बाला साहेब ख़ारिज कर चुके
है.... ऐसे माहौल में संकेत समझे जा सकते है.... असली जंग तो अब शुरू होगी
जब सचिन राज्य सभा का दीदार करते नजर आएँगे और शिवसेना की साख कमजोर
होगी.....
वैसे
इस देश में अब यह सवाल भी गूंज रहा है क्या सचिन के आगे गावस्कर का जलवा
पस्त है जिन्होंने टेस्ट क्रिकेट में ३४ शतक बनाकर भारत की साख को विदेशो
में बुलंदियों पर पहुचाया.....वह भी उस दौर में जब देश में टी वी नाम की
कोई क्रांति नही आई थी और क्रिकेट ज्यादा लोकप्रिय भी नही हुआ था.. क्या
सचिन के आगे कपिल सरीखे उस महान शख्सियत की १९८३ के वर्ल्ड कप जीतने की
यादें भी फीकी पड़ जाती हैं जिसने पहली बार देश को अपने दम पर विश्व कप
जिताया और कोर्टनी वाल्श के ४३४ विकेटों के कीर्तिमान को ध्वस्त कर दिखाया
.... क्या सचिन के आगे वह दीवार भी इस दौर में ढह जाती है जिसने विदेशो में
बरसों से डटकर भारत को विदेशी धरती पर जिताया और भारत तो टेस्ट में नम्बर
वन बनाया.... क्या सचिन की प्रतिभा के आगे कुंबले की गुगली भी इस दौर में
नही टिक पाती और क्या सचिन के आगे बंगाल का वह टाईगर भी पस्त हो जाता है
जिसने पहली बार अपनी अगुवाई में भारतीय टीम को विदेशी धरती पर जीतने का
ककहरा सिखाया.... इस देश में हाकी में धनराज पिल्लै जैसे खिलाडी भी हैं
जिन्होंने अपनी छाँव तले उसे अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलाई....इसी देश में
बाइचुंग भूटिया जैसे फुटबाल के खिलाडी भी हैं जिन्होंने मैनचेस्टर सरीखे
विदेशी क्लबो में खेलकर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया....क्या वह भी इसी दौर
में सचिन के आगे पानी पीते नजर आते हैं....
क्रिकेट
ही क्यों हाकी , फ़ुटबाल जैसे न जाने कई खेल इस देश में हैं जहाँ
खिलाडियों की कमी नही है जिन्होंने अपने हुनर से उस खेल में भारत का नाम
शान से ऊँचा किया है.... क्या यह सब कांग्रेस को नजर नही आया.... अगर बाबा
रामदेव , संजय राउत, गुरुदास गुप्ता जैसे लोग आज कांग्रेस से सचिन के
मनोनयन पर इस तरह के सवाल पूछते हैं तो वह चुप्पी साध लेती है ... यहाँ
कांग्रेस की राजनीती में एतराज जैसे शब्द दूर दूर तक नजर नही आते क्युकि १०
जनपथ का कांग्रेसीकरण हो चुका है और सोनिया के फैसले पर कोई सवाल इस दौर
में उठाने की कुव्वत नही रखता..... कांग्रेस की इस बिसात में ऊपर के कोई
नाम फिट नही बैठते हैं क्युकि हैवीवेट सचिन इस दौर में कांग्रेस के लिए
फायदे का सौदा बनकर उभरते हैं जिन पर राजीव शुक्ला सरीखे लोग डोरे डालकर
अपने हित साधते नजर आते हैं.... इसी के जरिये इस दौर में कांग्रेस अपनी
राजनीती साध रही है जब चारो ओर उसकी साख पर लगातार सवाल उठते हैं.... ऐसे
में वह उसी तेंदुलकर को ताकती नजर आती है..तारणहार के रूप में देखती है
जिसके नाम क्रिकेट के अनगिनत रिकार्ड हैं.... कांग्रेस भी उससे राजनीती की
पिच पर वैसी ही बैटिंग करने की उम्मीदे पाल बैठती है जैसी वह क्रिकेट के
मैदान में करते है ..... वैसे राजनीती की पिच और क्रिकेट की पिच में जमीन
आसमान का फर्क है लेकिन सचिन इसके मर्म को अभी छू भी नही पाये है लेकिन
संयोग देखिये कांग्रेस ने उनकी इसी रग पर हाथ रखकर अपने लिए २०१४ की बिसात
बिछानी शुरू कर दी है....
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