Sunday, 1 July 2012

अगाथ आस्था और विश्वास का केंद्र है पूर्णागिरी धाम ............


      

                     

उत्तराखंड वास्तव में दिव्य लोक की अनुभूति कराता है यहाँ की रमणीक वादियों में पहुचकर मन को मानसिक रूप से काफी सुकून मिलता है ..... यहाँ के पर्यटक स्थल , धार्मिक स्थल बरबस ही पर्यटकों का ध्यान अपनी ओर खीच लेते है .. यहाँ की सैर करने मात्र पर एक नए उत्साह का संचार होता है ....


हिमालय की गोद में बसे इस उत्तराखंड की सैर करने मात्र से ही सारी मनो कामनाओ की पूर्ति हो जाती  है .... देव भूमि के नाम से जानी जाने वाली यहाँ की भूमि पर कभी ऋषि मुनियों ने अपने तप से कई सिद्धिया पायी थी... मनमोहक प्राकृतिक सुषमा से अपना उत्तराखंड भरा पड़ा है ..... यहाँ एक बार आने वाला पर्यटक बार बार यहाँ आने की कामना करता है......

देवभूमि उत्तराखंड के सीमान्त जनपद चम्पावत में टनकपुर नाम का स्थान पड़ता है.... पूर्णागिरी मैया का यह धाम भी  टनकपुर में ही स्थित  है...  अगर आप यहाँ आना चाहते है तो टनकपुर नजदीक का रेलवे स्टेशन है ... यदि आपके यहाँ से टनकपुर के लिए ट्रेन की सुविधा नही है तो चिंता मत कीजिये....बरेली तक ट्रेन से आया जा सकता है .... बरेली से टनकपुर के लिए तमाम बसे उपलब्ध रहती है...|

समुद्र तल से ५००० फीट की ऊँचाई पर स्थित पूर्णागिरी मैया के इस धाम को समस्त दुखो को हरने वाली देवी के रूप में जाना जाता है... यू तो उत्तराखंड पर्यटन के लिहाज से काफी धनी है लेकिन पूर्णागिरी धाम की ख्याति पूरे देश में फैली है... "माँ वैष्णो देवी" जम्मू के दरबार की तरह पूर्णागिरी दरबार में लाखो की संख्या में लोग आते है ..... हर साल यहाँ आने वाले लोगो की तादात बदती ही जा रही है ... मार्च माह में होली खत्म होते ही टनकपुर स्थित पूर्णागिरी दरबार में लगने वाले मेले को लेकर चहल पहल शुरू हो जाती है... मेला अवधि में टनकपुर पूर्णागिरी को जोड़ने वाले संपर्क मार्ग में "प्रेम से बोलो जय माता दी सारे बोलो जय माता दी, सब मिलकर बोलो जय माता दी " के नारे गूंजते रहते है.....ऐसा करने से सभी को काफ़ी सुकून मिलता है .... दर्शनार्थी भक्तो को जहाँ एक ओर शारदा नदी का दृश्य आनंदित करता है वही दूसरी ओर सड़क मार्ग से चारो ओर दिखने वाली ऊँची ऊँची पर्वत मालाएं यात्रा में चार चाँद लगाती है ....| 

पूर्णागिरी माता का यह धाम सारे भारत में अब इतना प्रसिद्द  हो गया है कि यहाँ आकर शीश झुकाने मात्र से भक्तो के सारे बिगडे काम बन जाते है और मन में नई स्फूर्ति का संचार हो जाता है ...

कुमाऊ मंडल की हसीन वादियों में बसे पूर्णागिरी के इस धाम तक पहुचने में भक्तो को अब कुछ ख़ास दिक्कत नही उठानी पड़ती है... टनकपुर टेक्सी स्टैंड से पूर्णागिरी धाम के लिए दिन भर टैक्सी , बसों की सेवा उपलब्ध रहती है.... मार्च की समाप्ति में मेले के दौरान रात भर पूर्णागिरी वाले मार्ग में वाहनों की आवाजाही लगी रहती है... टनकपुर से पूर्णागिरी धाम की दूरी २२ किलोमीटर है .... कुछ वर्ष पहले तक वहां  वाहन ठूलीगाढ़ तक ही जाते थे परन्तु अब करीब भेरव मन्दिर तक सड़क की सुविधा हो जाने से पूर्णागिरी की दूरी बहुत कम हो गई है... फिर भी अभी मेले के समय भेरव मन्दिर से माता के दरबार तक की दूरी ३ किलोमीटर पैदल तय करनी पड़ती है लेकिन यदि आप सच्चे मन से माता के दर्शनों को जा रहे है तो माता के जयकारों के साथ कब यह दूरी आप तय कर लेते है यह पता नही चल पाता है...|

पूर्णागिरी जाने वाले कई भक्तो से जब मेरी बातचीत हुई तो उन्होंने यह कहा निराश और हताश प्राणी जब माता रानी की शरण में पहुचता है तो माता उस पर अपनी कृपा दृष्टि बनाये रखती है...  इस दौरान अगर आपने माता से कुछ मांग लिया तो माता रानी आपकी यह मुराद अवश्य ही पूरी करेगी... माता के बारे में कई गाथाये और किन्दवंतिया प्रचलित है ...

 कुछ लोगो की मान्यता है माता पूर्णागिरी का दरबार विश्व के ५१ शक्ति पीठो में एक है अतः इस दरबार का अपना अलग महत्त्व है तभी यहाँ की जाने वाली मनोती अधूरी नही जाती.... कुछ लोग बताते है पूर्णागिरी का इतिहास जानने से कई रहस्य मय तथ्यों की जानकारी मिलती है... उनकी राय है  प्राचीन काल में हरिद्वार में दक्ष प्रजापति ने अपने दरबार में एक धार्मिक अनुष्ठान का आयोजन किया जिसमे बड़ी धूम धाम से सभी तपस्वियों, मुनियों , ब्राहमणों , देवताओ, महात्माओ ने शिरकत की ....दक्ष प्रजापति पार्वती के पिता थे...

इस आयोजन में दक्ष ने अपनी बेटी पार्वती के पति शिव शंकर को आने का न्योता नही दिया जिससे पार्वती काफ़ी आहत हुई... माना जाता है तब क्रोध में डूबी पार्वती आयोजन के मध्य में पहुची और अपने पति के अपमान को नही सह सकी ... और अग्नि कुंड में आत्माहुति दे दी ... इसकी भनक जैसे ही शिवजी को लगी तो वह पार्वती के शव को लेकर आकाश में विचरण करने लगे .... शिव के इस विकराल रूप को भापकर आयोजन में आए सभी महानुभावो में गहरा आक्रोश छा गया... तभी भगवान विष्णु उस स्थान में प्रकट हुए जिन्होंने अपने सुदर्शन चक्र से पार्वती के शरीर के टुकडे टुकडे कर डाले ...यह टुकडे विश्व भर गिरे... जहाँ जहाँ यह गिरे वहां वहां शक्ति पीठो की स्थापना हो गई ... 

पूर्णागिरी के बारे में कहा जाता है जिस स्थान पर पार्वती की नाभि गिरी वह स्थान अन्नपूर्णा शिखर कहलाता है और यही पर पूर्णागिरी दरबार की स्थापना की गई ... भक्त माता के दरबार में वर्ष भर आते रहते है... होली का त्योहार समाप्त होते ही यहाँ लगने वाला मेला १ महीने से भी ज्यादा समय तक चलता रहता है... फागुन मास की समाप्ति के बाद लगने वाले इस मेले को कराने का जिम्मा जिला पंचायत चम्पावत के पास रहता है ...वह यात्रियों के रहने की व्यवस्था देखती है.... साथ ही यात्रियों की सभी जरूरत का ध्यान उनके द्वारा रखा जाता है...

पूर्णागिरी के मार्ग में बीच बीच में कई स्थल ऐसे है जो मन को काफ़ी सुकून देते है .... फिर चाहे वह झूठे का मन्दिर हो या महादेव का मन्दिर  या माता का शक्ति पीठ आश्रम यह स्थल ऐसे है जो शान्ति जैसा आभास करते है... मार्ग में पड़ने वाले झूठे के मन्दिर का बहुत महत्त्व है... मान्यता है एक बार किसी सज्जन ने पुत्र प्राप्त होने पर माता को सोने का चदावा देने का वायदा किया था परन्तु उसने लालच में सोने की जगह नकली सोने की पोलिश करवा दी और माता पर चदाने की तैयारी कर दी... कहा जाता है जैसे ही उसने ताबे में माता को चदाने के लिए बनाया मन्दिर उठाया तो वह इतना भारी हो गया कि उसको उठाना मुश्किल हो गया ...तभी से यह झूठे का मन्दिर नाम से फेमस हो गया... 

कई भक्तो का मानना है उत्तराखंड की सरकार को पूर्णागिरी को जम्मू के "वैष्णो" देवी की तर्ज पर विकसितकरने पर विचार करना चाहिए...| वैसे ऐसी मांग वर्षो से हो रही है पर अभी तक इस पर विचार नही हो पाया है ...| राज्यसरकार को इस पर ध्यान देने की जरूरत है....| पूर्णागिरी की यात्रा तभी सार्थक मानी जाती है जब भक्त जन माता के दर्शन करने के बाद (महेंद्र नगर )नेपाल स्थितब्रहम देव " मंडी में स्थित सिद्ध नाथ बाबा के दर्शन करते है ....पूर्णागिरी के दर्शनों को लालायित लोग आज भीसाइकिल से सवारी करते है ....साइकिल से पूर्णागिरी के दर्शनों का चलन आज भी कम नही हुआ है फिर पैदलचलने वालो की भी कमी नही है ....| मेरे जैसे पग यात्री तो पूरे दिन पैदल सवारी के द्वारा माता के द्वारे जाना पसंद करते है....| आपसे गुजारिस है जब भी उत्तराखंड जाने का मन हो तो पूर्णागिरी दरबार के दर्शन अवश्य ही करे क्युकि यहाँ माता रानी आपकी हर मुराद पूरी करती है......मार्च  से  जून तक   मेलावधि के दौरान यहाँ काफी भीड़ भाड़ रहती है लेकिन जून के बाद कभी भी यहाँ आया जा सकता है.............

2 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

देवी को नमन..

अनूप पाण्डेय said...

माँ की कृपा सब पर हो ,,यही कामना है