Friday 22 February 2013

बजट सत्र के आसरे यू पी ए छेड़ेगी चुनावी तान

जयपुर में कांग्रेस के चिंतन शिविर के दौरान गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने आतंकवाद को भगवा रंग से जोड़कर भाजपा की मुश्किलों को बढाने का ना केवल काम किया बल्कि आर एस एस को भी पहली बार गृह मंत्री के खिलाफ मोर्चाबंदी कराने को मजबूर कर दिया । इसका असर यह हुआ भाजपा ने शिंदे के खिलाफ ना केवल जगह जगह प्रदर्शन  कर उन्हें बयान वापस लेने या फिर भगवा आतंकवाद के खिलाफ सबूत पेश करने की चुनौती  ही  दे डाली । बाद में गृह मंत्री के इस बयान के असर को कांग्रेस ने देर से भांपा और सोनिया की सलाह पर इससे अपने को अलग कर बयान  से कन्नी ही  काट ली ।  हालाँकि दिग्गी राजा, मणि शंकर और हरीश रावत सरीखे खांटी कांग्रेसी नेताओ ने शिंदे की तारीफों में कसीदे पढ़ हमेशा की तरह मुस्लिम वोटरों की बांछें ही खिलाई ।

मौजूदा बजट सत्र से ठीक पहले शिंदे  ने जिस अंदाज में भाजपा के सामने माफ़ी मांगी है  उससे कई सवाल खड़े हुए हैं । मसलन क्या मौजूदा संसद के बजट सत्र  के पहले भाजपा के तगड़े विरोध और सदन के बहिष्कार के चलते तो यह कदम नहीं उठाना पड़ा है ? अगर भगवा आतंक और संघ के खिलाफ ठोस सबूत गृह मंत्रालय के पास पहले से ही थे तो शिंदे उन्हें सामने लाने से क्यों कतरा रहे थे ? क्या भगवा आतंक के आसरे आगामी लोक सभा चुनावो में यू पी ए सरकार अपना जनाधार बचाने की कोशिश कर रही है ? जेहन में यह सारे सवाल इसीलिए कौंध रहे हैं क्युकि पहली बार भाजपा के हिंदुत्व के मसले पर वापस  लौटने और नरेन्द्र मोदी को चुनाव समिति की कमान सौंपने के मद्देनजर कांग्रेस भी संघ की मांद में घुसकर हिन्दुत्व को न केवल अपने अंदाज में  आइना दिखा रही है वरन  कसाब ,अफजल सरीखे मुद्दों को लपककर अपने को भाजपा से बड़ा राष्ट्रवादी बताने पर तुली हुई है और शिंदे, दिग्गी और मणिशंकर सरीखे नेताओ को आगे कर भाजपा से दो दो हाथ करने की ठान रही है और इन सबके बीच शिंदे की माफ़ी के बाद भाजपा ने राहत ली है । कांग्रेस भी इससे बमबम है क्युकि अगर शिंदे माफ़ी नहीं मांगते तो शायद इस बार का बजट सत्र भी हंगामे की भेंट चढ़ जाता । तो क्या माना जाए इस बार बजट सत्र अब हंगामे की भेंट नहीं चढ़ेगा ? लगता ऐसा नहीं है क्युकि लोक सभा चुनावो से ठीक पहले  यह चुनावी बजट केंद्र सरकार के लिए न केवल अहम हो चला है बल्कि विपक्ष भी बहस के लिए उन  55 बिलों पर नजर गढाए बैठा है जो  इस सत्र में पारित होने हैं जिसमे सोनिया के भूमि अधिग्रहण , लोकपाल, खाद्य सुरक्षा और महिला आरक्षण सरीखे ड्रीम बिल   शामिल हैं जो २०१४ के लोक सभा चुनावो से पहले कांग्रेस की चुनावी वैतरणी पार लगा सकते हैं लेकिन यू पी ए के सहयोगियों का इन तमाम बिलों पर गतिरोध अभी भी बना हुआ है और उसके  सभी सहयोगियों को साथ लेकर चलने की मजबूरी कांग्रेस के सामने एक बड़ी चुनौती  इस समय बनी हुई है क्युकि शिमला , पचमढ़ी के बाद हाल में राहुल के जयपुर में ट्रेलर के बाद गठबंधन की लीक पर कांग्रेस के चलने के संकेत तो अभी से मिल ही रहे हैं और इस बात की गुंजाइश तो दिख ही रही है वह सहयोगियों को साथ लेकर ही किसी बिल को अमली जामा पहनाएगी ।


इस सत्र के दौरान कई गंभीर मसलो पर हमें चर्चा देखने को मिल सकती है । सत्ता पक्ष  को विपक्ष के सवालों का जवाब देने के लिए  खुद को तैयार करना  पड़ सकता है और अगर कहीं चूक हो गई तो विपक्ष इसे बड़ा मुद्दा बनाकर कांग्रेस की चुनावी वर्ष में चिंता बढ़ा सकता है । वैसे संसदीय राजनीती में यह तकाजा है हर मुद्दे पर सदन में बहस होनी चाहिए लेकिन पिछले कुछ समय से हमारे देश में संसद का हर सत्र शोर शराबे और हंगामे की भेंट ही चढ़ता  जा रहा है जो लोकतंत्र के लिए दुर्भाग्यपूर्ण  है । यू पी ए २ के पिछले बारह सत्रों में ५००  घंटे से भी  कम काम हुआ है । ज्यादातर दिनों में या तो वाक आउट हुआ है  या बिना चर्चा हुए बिल सदन के पटल पर ना केवल रखे गए हैं बल्कि पारित भी हुए हैं । यह सब देखते हुए इस बार शोर शराबे का अंदेश तो बना ही है क्युकि सदन में राष्ट्रपति के अभिभाषण के दौरान हमें विपक्षियो के मिजाज को देखकर बहती हवा का पुराना रुख दिख रहा है लेकिन शिंदे की मांफी के बाद यह उम्मीद तो बनी है इस सत्र में सदन का कामकाज सुचारू रूप से चलेगा ।


 वेस्टलैंड हेलीकाप्टर सौदा इस सत्र में कांग्रेस के लिए परेशानी पैदा कर सकता है । हालाँकि कांग्रेस ने सी बी आई से निष्पक्ष जांच की मांग दोहराई है लेकिन दिल से कांग्रेस इस मामले को लटकाना ही चाहती है वहीँ  भाजपा के जसवंत सिंह द्वारा त्यागी बन्धुओ के प्रति सॉफ्ट कॉर्नर भाजपा के नीति नियंताओ पर भी सवाल उठा रहा है क्युकि उस दौर को अगर याद करें तो सौदे को अमली जामा पहनाने की कोशिशें एन डी ए के शासन में ही शुरू हुई थी । जो भी हो सी मामले की सच्चाई देश के सामने आनी  चाहिए ।  केवल रक्षा मंत्री के इस्तीफे के नाम पर सदन में हंगामा करना और कार्यवाही बाधित करना ठीक नहीं है । इसके अलावा कोयला घोटाला इस बार भी सदन में उठने का अंदेशा बना हुआ है । इसके तार अजय संचेती से लेकर गडकरी और कांग्रेस नेता प्रकाश जाय सवाल से लेकर कई नेताओ के नाते रिश्तेदारों तक जा रहे हैं और सरकार की जांच ठन्डे बसते   में चली गई है लिहाजा एक बहस की सदन को जरुरत महसूस हो रही है । वही कैग पर सवाल उठाकर कांग्रेस ने एक बार फिर विपक्षी दलों को एक बड़ा मुद्दा दे दिया है । विपक्ष कह रहा है इस सरकार को संवैधानिक संस्थाओ पर कोई भरोसा नहीं रह गया लिहाजा वह उनके पर कतरने की तैयारी में है ।  इधर महंगाई का मुद्दा भी लम्बे समय से आम आदमी को परेशान  कर रहा है । अगर इस पर सदन में बहस होती है तो गंभीर चर्चा की नौबत आ सकती है । यह बेहद निराशाजनक है केंद्र सरकार  अपने दूसरे कार्यकाल में महंगाई दर पर अंकुश लगाने में नाकामयाब रही है । सरकार  कहती है इसके पीछे अंतर्राष्ट्रीय बाजार जिम्मेदार है लेकिन महंगाई पर यह कोई ठोस उत्तर नहीं है । माना जाता है खाद्य वस्तुओ की बड़ी कीमत के पीछे तेल की बड़ी कीमतें जिम्मेदार हैं लेकिन अब तो तेल की कीमतें घट चुकी हैं । फिर भी ना जाने क्यों यह सरकार कॉरपरेट पर दरियादिली दिखा रही है । आम आदमी को तो सब्सिडी नसीब नहीं हो रही है लेकिन कॉर्पोरेट के आगे यह  सरकार पूरी तरह नतमस्तक है ।   
     यह सवाल यू पी ए से  है आखिर क्यों वह ऐसी नीतियां बनाने में नाकामयाब रही है जिससे हम खाद्यान्न सेक्टर में आत्मनिर्भर हो सकें जबकि वह लगातार ९ वर्षो से सत्ता में बनी हुई है ? इस सत्र में महिला आरक्षण का मसला सदन में फिर से गूंज सकता है । सोनिया ने जिस तरह इसमें रूचि दिखाई है उससे एक बार फिर उम्मीद  नजर आती है लेकिन लालू, मुलायम, माया सरीखे लोग इस पर कैसे राजी होंगे यह अपने में एक बड़ा सवाल जरुर है । महिलाओ की सुरक्षा के लिए जस्टिस वर्मा कमेटी की सिफारिशों पर सरकार इसी सत्र में मुहर लगा सकती है । चुनावी वर्ष में दामिनी की मौत और लुटियंस की   दिल्ली में  भारी " फ्लेश माब " का जो कलंक यह यू पी ए सरकार  झेल रही है वह कठोर कानून के जरिये इसे दूर करना चाहती है । महिलाओ की सुरक्षा को लेकर सरकार पहली बार संवेदनशीलता का परिचय दे रही है । वहीँ  लोकपाल का मसला ऐसा है जिस पर यू पी ए की बीते दो बरस से खूब किरकिरी हुई है । पहली बार भ्रष्टाचार के मसले पर उसे इस मसले पर सिविल सोसाईटी से सीधे चुनौती  मिली है । छह राज्यों के विधान सभा चुनावो से ठीक पहले वह एक लोकपाल लाकर चुनावी राह खुद के लिए आसान करना चाहेगी । इस बार के सत्र में सभी की नजरें चिदंबरम और पहली बार रेल बजट ला रहे पवन बंसल पर भी टिकी रहेंगी  । चुनावी साल में दोनों अपने तरकश से आम आदमी को लुभाने की पूरी कोशिश करेंगे । मूल्य वृद्धि और किराये बढाने के बजाए सारा  ध्यान इस दौर में अब आम आदमी की तरफ ही रहेगा क्युकि आम आदमी का हाथ कांग्रेस अपने साथ मानती रही  है । यह अलग बात है संसद से इतर सड़क में केजरीवाल आम आदमी के नाम पर पार्टी बनाकर इस दौर में न केवल कांग्रेस को चुनौती  दे रहे हैं बल्कि वाड्रा से लेकर सलमान खुर्शीद और शीला दीक्षित से लेकर भाजपा की मुश्किलें चुनावी साल में बढ़ा रहे हैं । चिदंबरम इन सबके बीच चुनावी मौसम में जनता के बीच चुनावी बौछार  कर मनमोहनी बजट पेश कर सकते हैं । अल्पसंख्यको और दलितों के लिए जहाँ चुनावी साल में यह सरकार  कोई बड़ा फैसला ले सकती है वहीँ  सस्ती ब्याज दरो को करने और आम आदमी को सस्ती  कार , मकान खरीदने के लिए दिए जाने वाले ऋण की शर्तें आसान करने की दिशा में भी कदम बढ़ा सकते हैं ताकि एक बड़े मध्यम वर्ग को लुभाया जा सके । वहीँ किसानो के लिए कोई बड़ा पैकेज  इस दौर में मिलने की उम्मीद दिख रही है ताकि उन्हें भी खुश किया जा सके और मनमोहनी इकोनोमिक्स की थाप पर उन्हें भी नचाया जा सके । यह अलग बात है खेती बाड़ी आज घाटे का सौदा बन चुकी है । बीते ९ बरस में तीन लाख से ज्यादा किसानो ने आत्महत्या की है । सब्सिडी या बिजली उर्वरक में छूट देकर उनका भला नहीं होने जा रहा । वहीँ बेरोजगारों के लिए इस सत्र में बजट के बहाने नौकरियों का बड़ा पिटारा खुल सकता है । अभिभाषण में प्रणव के संकेत इसकी कहानी  को बखूबी बया  कर रहे हैं ।

कुल मिलकर  यू पी ए २ के केन्द्रीय बजट के रंग लोक सभा चुनावो की बिसात  में पूरी तरह सरोबार होने के आसार हैं और इसी के आसरे यू पी ए २ बजट सत्र में  चुनावी तान  छेड़ेगी इससे भी हम नहीं नकार सकते । देखना होगा क्या इस बार बजट सत्र शांतिपूर्ण ढंग से निपटता है ?

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