चुनावी बरस में राजनीतिक छीटाकशी की कालिख एक दूसरे के खिलाफ पोतने का चलन इन दिनों तेजी से बड़ा हुआ है । बीजेपी नेता अरुण जेटली के कॉल डीटेल (सीडीआर) निकलवाने में कई पुलिस वालो की संलिप्तता अभी उजागर हुई थी कि बीते महीने भाजपा की ओर से पीएम पद के उम्मीदवार नमो के खासम-खास अमित शाह पर लगे कथित महिला के जासूसी मामले में कांग्रेस-भाजपा के बीच अब इन दिनों घमासान मच गया है। कांग्रेस जहाँ इसे महिलाओं की सुरक्षा और अस्मिता और भाजपा के डर्टी ट्रिक्स डिपार्टमेंट से जोड़कर "नमो "को कठघरे में खड़ा करने से बाज नहीं आ रही है वहीं भाजपा इसे अपने को बदनाम करने साजिश करार दे रही है । उसकी मानें तो "नमो ' के पक्ष में पूरे देश में चल रही लहर से इस समय देश की हर पार्टी न केवल घबरायी हुई है बल्कि खौफ भी खा रही है जिसके चलते चुनावी साल में विपक्षी मोदी को "इश्कजादे" बनाकर उनकी छवि को धूमिल करने की पुरजोर कोशिश कर रहे हैं ।
"नमो "के दाहिने हाथ माने जाने वाले अमित शाह पर आरोप है कि वर्ष 2 0 0 9 में निगरानी के दौरान एक युवती (माधुरी) काल्पनिक नाम के उन्होंने ना केवल फ़ोन टेप करवाये बल्कि पूरी सरकारी ख़ुफ़िया मशीनरी उस महिला के पीछे लगाकर उसकी जासूसी भी करवायी । आलम यह था कि यह महिला अगर मॉल में जाती थी तो एटीएस, क्राइम ब्रांच उसका पीछा करती थी । यही नहीं जहाज में बैठने से लेकर अपने घर माँ से मिलने तक , उसकी पल पल की खबर ली जाती थी । यह महिला खुद आर्किटेक्ट थी जो गुजरात में पुनर्निर्माण के काम के सिलसिले में मोदी से मिली । मोदी के साथ उसकी मुलाकात उस दौर में हुई जब गुजरात में भुज के भूकम्प के बाद पुनर्निर्माण का काम जोर शोर से चल रहा था । कहा तो यहाँ तक जा रहा है इस महिला के पिता ने मोदी से खुद सुरक्षा प्रदान करने की मांग की थी जिसके चलते राज्य सरकार ने उसके पीछे अपनी मशीनरी लगायी । पिता का तो यहाँ तक कहना है बेंगलुरु से अहमदाबाद तक उनकी बेटी आती जाती रहती थी इसलिए मोदी से उसका ख़याल सही से रखने का निवेदन उनके द्वारा किया गया था परन्तु इस मामले में किसी भी तरह के लिखित साक्ष्य नहीं मिले हैं । इस मामले का खुलासा बीते दिनों जीएल सिंघल और अमित शाह के बीच हुई बातचीत के ऑडियो टेप से हुआ है । इन टेपो को सुनें तो पता चलता है अगर वह महिला विमान में सवार हो रही थी तो अमित शाह अपने अधिकारियो से यह पूछते पाये गए हैं कि उस महिला के साथ विमान में कोई और तो सवार नहीं है ? 'कोबरा पोस्ट' और 'गुलेल' के अनुसार यह पूरी रिकॉर्डिंग गुजरात एटीएस के तत्कालीन एसपी जीएल सिंघल ने की । बताया जाता है नमो के खासमखास अमित शाह ने यह सब किसी 'साहेब' के इशारे पर करवाया है और एक तरह से शाह ने गुजरात का गृह राज्य मंत्री रहते हुए अपने पद का पूरी तरह गलत इस्तेमाल किया।
दरअसल इस पूरे सियासी बवाल के पीछे खोजी वेबसाइट कोबरा पोस्ट और गुलेल का वह खुलासा है जिसमें दावा किया था कि नरेंद्र मोदी के खासमखास अमित शाह ने किसी साहेब के कहने पर एक लड़की की निगरानी करवाई थी। इस दावे के पक्ष में उन ऑडियो टेप का हवाला दिया गया जिसमें कथित तौर पर अमित शाह आईपीएस अफसर जी एल सिंघला से मामले को लेकर जानकारी ले रहे हैं। अमित शाह और आईपीएस सिंघला के बीच 4 अगस्त 2009 से 6 सितंबर 2009 के बीच हुई बातचीत की ऑडियो रिकार्डिंग पेश की गई जिसमे अमित शाह, सिंघला को लड़की की पल-पल की खबर लेने का निर्देश दे रहे हैं। अमित शाह ने किसी 'साहेब' के कहने पर ऐसा करने का आदेश देने के साथ ही भावनगर के तत्कालीन निगमायुक्त प्रदीप शर्मा की निगरानी करने का भी आदेश दिया था।
सिंघल ने शाह से अपनी नजदीकी के बावजूद उनसे हुई बातचीत की कुछ रिकॉर्डिंग्स अपने पास रखी थीं। इसी साल जून में सिंघल ने इस बातचीत की 267 रिकॉर्डिंग्स सीबीआई को सौंपी जिसमे जासूसी मामले की पूरी जानकारी है। गौरतलब है कि आईपीएस अफसर सिंघला, इशरत जहां फर्जी मुठभेड़ मामले में आरोपी हैं। वे जेल में थे और उन्हें हाल ही में बेल मिली है। उन्होंने अमित शाह के साथ हुई बातचीत की ये रिकॉर्डिंग खुद की थी। ऐसी 267 रिकॉर्डिंग हैं जो उन्होंने 9 जुलाई 2013 को सीबीआई को सौंपी ।
राजनीतिक गलियारो में ऐसी घटना होना नई बात नहीं है क्युकि कई बार सत्ता पक्ष और विपक्ष अपने अपने नफा नुकसान और सियासी फायदे के अनुकूल सियासी बिसात बिछाते आये हैं । राजनीतिक पार्टियो के नेताओ के फोन टेप करवाने की घटना ने एक दौर में सियासी घमासान मचा दिया था । उस दौर को याद करें तो मुलायम से लेकर अमर सिंह , माया से लेकर जयललिता , प्रकाश करात से लेकर करूणानिधि तक ने फोन टेप किये जाने के मसले को पुरजोर ढंग से उठाया । नमो के गुजरात में भी मोदी की सरकार पर अक्सर अपने विरोधियों का फोन टैप करने के आरोप लगते रहे हैं। गुजरात के पूर्व अतिरिक्त महानिदेशक आर श्रीकुमार ने नानावती आयोग के सामने हलफनामा में कहा था कि राज्य सरकार के गृह मंत्री ने उन्हें सरकार के ही एक दूसरे मंत्री और कांग्रेस के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष शंकर सिंह बाघेला का फोन टैप करने के लिए कहा था।वहीँ गुजरात के ही एक अन्य मंत्री हरेन पांड्या ने भी अपनी हत्या से पहले फोन टैप करने की बात को न केवल उठाया बल्कि गुजरात में हंगामा मचा दिया था । अभी भी फोन टेपिंग की महाभारत हमारे देश में थमने का नाम नहीं ले रही है । कुछ दिन पहले उत्तराखंड में भाजपा के नेता प्रतिपक्ष अजय भटट ने राज्य की विजय बहुगुणा सरकार पर उनके फोन टेप किये जाने के आरोप लगाकर एक बार फिर इस बहस को तेज कर दिया है ।
'कोबरा पोस्ट' और 'गुलेल' के गुजरात को लेकर हुए हालिया खुलासे ने राजनीतिक दलो में एक ओर जहाँ फिर से तहलका मचा दिया है वहीं दूसरी तरफ प्राइवेसी के अधिकार की बहस को एक नया आयाम दे दिया है । टेलीग्राफ एक्ट के तहत सीबीआई, रॉ, आईबी, ईडी, इनकम टैक्स और पुलिस विभाग समेत कुछ दूसरी एजेंसियों को गृह विभाग के साथ मिलकर फोन कॉल टैप करने की इजाजत है। मगर यह तभी हो सकता है जब इन जांच एजेंसियों के पास कोई पुख्ता आधार हो,यदि बिना किसी आधार के कोई भी फोन टैप करता है तो कानून के मुताबिक ये मानवाधिकार का हनन माना जाएगा जिसके साबित होने पर 3 साल तक की सजा और जुर्माना शामिल है। इसके अलावा इस केस में पीछा करने का मामला भी बन सकता है जिसमें भारतीय अपराध अधिनियम में हुए हालिया बदलाव के तहत गंभीर सजा का प्रावधान है। बताते चलें कि निजता संविधान में दिया हुआ कोई मौलिक अधिकार नहीं है और ना ही इसे किसी तरह का कानूनी अधिकार माना गया है । संविधान में किसी भी अनुच्छेद में सीधे तौर पर निजता की व्याख्या नहीं की गई, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने बहुत से मुकदमों में इसे जीवन का अभिन्न अंग माना है और इसे कानूनी जामा पहनाने की बहस को नया आयाम प्रदान किया है । अब इस पूरे मामले में गुजरात सरकार अपनी खुद की जांच करवाने का बहाना ढूंढकर अपनी नाक बचाने की कोशिश कर रही है । आने वाले दिनों में इसे लेकर कोई नई लकीर खिंची जायेगी यह तो समय ही बतायेगा लेकिन जो भी हो "साहेबजादे" , "जासूसी "और "सस्पेंस" की घटना ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है "जासूसी" से पिंड छुड़ा पाना किसी के लिए इतना आसान नहीं है वह भी तब जब चुनावी डुगडुगी बजने वाली है ।
"नमो "के दाहिने हाथ माने जाने वाले अमित शाह पर आरोप है कि वर्ष 2 0 0 9 में निगरानी के दौरान एक युवती (माधुरी) काल्पनिक नाम के उन्होंने ना केवल फ़ोन टेप करवाये बल्कि पूरी सरकारी ख़ुफ़िया मशीनरी उस महिला के पीछे लगाकर उसकी जासूसी भी करवायी । आलम यह था कि यह महिला अगर मॉल में जाती थी तो एटीएस, क्राइम ब्रांच उसका पीछा करती थी । यही नहीं जहाज में बैठने से लेकर अपने घर माँ से मिलने तक , उसकी पल पल की खबर ली जाती थी । यह महिला खुद आर्किटेक्ट थी जो गुजरात में पुनर्निर्माण के काम के सिलसिले में मोदी से मिली । मोदी के साथ उसकी मुलाकात उस दौर में हुई जब गुजरात में भुज के भूकम्प के बाद पुनर्निर्माण का काम जोर शोर से चल रहा था । कहा तो यहाँ तक जा रहा है इस महिला के पिता ने मोदी से खुद सुरक्षा प्रदान करने की मांग की थी जिसके चलते राज्य सरकार ने उसके पीछे अपनी मशीनरी लगायी । पिता का तो यहाँ तक कहना है बेंगलुरु से अहमदाबाद तक उनकी बेटी आती जाती रहती थी इसलिए मोदी से उसका ख़याल सही से रखने का निवेदन उनके द्वारा किया गया था परन्तु इस मामले में किसी भी तरह के लिखित साक्ष्य नहीं मिले हैं । इस मामले का खुलासा बीते दिनों जीएल सिंघल और अमित शाह के बीच हुई बातचीत के ऑडियो टेप से हुआ है । इन टेपो को सुनें तो पता चलता है अगर वह महिला विमान में सवार हो रही थी तो अमित शाह अपने अधिकारियो से यह पूछते पाये गए हैं कि उस महिला के साथ विमान में कोई और तो सवार नहीं है ? 'कोबरा पोस्ट' और 'गुलेल' के अनुसार यह पूरी रिकॉर्डिंग गुजरात एटीएस के तत्कालीन एसपी जीएल सिंघल ने की । बताया जाता है नमो के खासमखास अमित शाह ने यह सब किसी 'साहेब' के इशारे पर करवाया है और एक तरह से शाह ने गुजरात का गृह राज्य मंत्री रहते हुए अपने पद का पूरी तरह गलत इस्तेमाल किया।
दरअसल इस पूरे सियासी बवाल के पीछे खोजी वेबसाइट कोबरा पोस्ट और गुलेल का वह खुलासा है जिसमें दावा किया था कि नरेंद्र मोदी के खासमखास अमित शाह ने किसी साहेब के कहने पर एक लड़की की निगरानी करवाई थी। इस दावे के पक्ष में उन ऑडियो टेप का हवाला दिया गया जिसमें कथित तौर पर अमित शाह आईपीएस अफसर जी एल सिंघला से मामले को लेकर जानकारी ले रहे हैं। अमित शाह और आईपीएस सिंघला के बीच 4 अगस्त 2009 से 6 सितंबर 2009 के बीच हुई बातचीत की ऑडियो रिकार्डिंग पेश की गई जिसमे अमित शाह, सिंघला को लड़की की पल-पल की खबर लेने का निर्देश दे रहे हैं। अमित शाह ने किसी 'साहेब' के कहने पर ऐसा करने का आदेश देने के साथ ही भावनगर के तत्कालीन निगमायुक्त प्रदीप शर्मा की निगरानी करने का भी आदेश दिया था।
सिंघल ने शाह से अपनी नजदीकी के बावजूद उनसे हुई बातचीत की कुछ रिकॉर्डिंग्स अपने पास रखी थीं। इसी साल जून में सिंघल ने इस बातचीत की 267 रिकॉर्डिंग्स सीबीआई को सौंपी जिसमे जासूसी मामले की पूरी जानकारी है। गौरतलब है कि आईपीएस अफसर सिंघला, इशरत जहां फर्जी मुठभेड़ मामले में आरोपी हैं। वे जेल में थे और उन्हें हाल ही में बेल मिली है। उन्होंने अमित शाह के साथ हुई बातचीत की ये रिकॉर्डिंग खुद की थी। ऐसी 267 रिकॉर्डिंग हैं जो उन्होंने 9 जुलाई 2013 को सीबीआई को सौंपी ।
राजनीतिक गलियारो में ऐसी घटना होना नई बात नहीं है क्युकि कई बार सत्ता पक्ष और विपक्ष अपने अपने नफा नुकसान और सियासी फायदे के अनुकूल सियासी बिसात बिछाते आये हैं । राजनीतिक पार्टियो के नेताओ के फोन टेप करवाने की घटना ने एक दौर में सियासी घमासान मचा दिया था । उस दौर को याद करें तो मुलायम से लेकर अमर सिंह , माया से लेकर जयललिता , प्रकाश करात से लेकर करूणानिधि तक ने फोन टेप किये जाने के मसले को पुरजोर ढंग से उठाया । नमो के गुजरात में भी मोदी की सरकार पर अक्सर अपने विरोधियों का फोन टैप करने के आरोप लगते रहे हैं। गुजरात के पूर्व अतिरिक्त महानिदेशक आर श्रीकुमार ने नानावती आयोग के सामने हलफनामा में कहा था कि राज्य सरकार के गृह मंत्री ने उन्हें सरकार के ही एक दूसरे मंत्री और कांग्रेस के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष शंकर सिंह बाघेला का फोन टैप करने के लिए कहा था।वहीँ गुजरात के ही एक अन्य मंत्री हरेन पांड्या ने भी अपनी हत्या से पहले फोन टैप करने की बात को न केवल उठाया बल्कि गुजरात में हंगामा मचा दिया था । अभी भी फोन टेपिंग की महाभारत हमारे देश में थमने का नाम नहीं ले रही है । कुछ दिन पहले उत्तराखंड में भाजपा के नेता प्रतिपक्ष अजय भटट ने राज्य की विजय बहुगुणा सरकार पर उनके फोन टेप किये जाने के आरोप लगाकर एक बार फिर इस बहस को तेज कर दिया है ।
'कोबरा पोस्ट' और 'गुलेल' के गुजरात को लेकर हुए हालिया खुलासे ने राजनीतिक दलो में एक ओर जहाँ फिर से तहलका मचा दिया है वहीं दूसरी तरफ प्राइवेसी के अधिकार की बहस को एक नया आयाम दे दिया है । टेलीग्राफ एक्ट के तहत सीबीआई, रॉ, आईबी, ईडी, इनकम टैक्स और पुलिस विभाग समेत कुछ दूसरी एजेंसियों को गृह विभाग के साथ मिलकर फोन कॉल टैप करने की इजाजत है। मगर यह तभी हो सकता है जब इन जांच एजेंसियों के पास कोई पुख्ता आधार हो,यदि बिना किसी आधार के कोई भी फोन टैप करता है तो कानून के मुताबिक ये मानवाधिकार का हनन माना जाएगा जिसके साबित होने पर 3 साल तक की सजा और जुर्माना शामिल है। इसके अलावा इस केस में पीछा करने का मामला भी बन सकता है जिसमें भारतीय अपराध अधिनियम में हुए हालिया बदलाव के तहत गंभीर सजा का प्रावधान है। बताते चलें कि निजता संविधान में दिया हुआ कोई मौलिक अधिकार नहीं है और ना ही इसे किसी तरह का कानूनी अधिकार माना गया है । संविधान में किसी भी अनुच्छेद में सीधे तौर पर निजता की व्याख्या नहीं की गई, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने बहुत से मुकदमों में इसे जीवन का अभिन्न अंग माना है और इसे कानूनी जामा पहनाने की बहस को नया आयाम प्रदान किया है । अब इस पूरे मामले में गुजरात सरकार अपनी खुद की जांच करवाने का बहाना ढूंढकर अपनी नाक बचाने की कोशिश कर रही है । आने वाले दिनों में इसे लेकर कोई नई लकीर खिंची जायेगी यह तो समय ही बतायेगा लेकिन जो भी हो "साहेबजादे" , "जासूसी "और "सस्पेंस" की घटना ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है "जासूसी" से पिंड छुड़ा पाना किसी के लिए इतना आसान नहीं है वह भी तब जब चुनावी डुगडुगी बजने वाली है ।
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