टाईम्स नाउ के मैनेजिंग एडिटर अर्णब गोस्वामी को दिए गए अपने एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने 30 बरस पहले सिख विरोधी दंगो में कांग्रेस के कुछ नेताओ के शामिल होने का बयान देकर कांग्रेस की चुनावी साल में मुश्किलो को बढ़ाने का काम किया है । इस बयान के बाद कांग्रेस जहाँ बैक फुट पर आकर खड़ी हो गई है वहीँ राहुल "राग" की इस धुरी ने सियासत को फिर दंगो की छाँव तले लाकर खड़ा कर दिया है जहाँ 2014 की लड़ाई साम्प्रदायिकता बनाम धर्मनिरपेक्षता के आमने सामने खड़ी हो गई है । इस बयान ने कांग्रेस की उन उम्मीदों पर पलीता जरुर लगा दिया है जो 2002 के गोधरा दंगो को मुद्दा बनाकर नमो की राह में कांटे खलनायक, मौत का सौदागर और राजधर्म का पालन ना करने वाला राजा के रूप में बिछाते आये हैं शायद यही वजह है अब वार रूम पॉलिटिक्स मे अपने कर्ता धर्ताओ के साथ राहुल को अपने पांच प्रवक्ता नमो को घेरने की रणनीति बनाने में अब लेने पड़े हैं । वहीँ जनता के आंदोलन से निकली आप पार्टी भी अब दिल्ली से आगे निकल लोक सभा चुनावो की बिसात अपने अनुरूप बिछा रही है जहाँ वह सिख विरोधी दंगो को भुनाकर राजनीतिक लाभ लेने की पूरी कोशिशे तेज कर रही है जिसमे सिख विरोधी दंगो की जांच के लिए अलग से एस आई टी का गठन कर झटके में सिखों के बड़े वोट बैंक को अपनी तरफ खींचने का जाल बिछाया जा रहा है ।
लोक सभा चुनावो से ठीक पहले चुनावी मॉड में दंगो की सियासत ने राजनीती का परिदृश्य उस तरफ खींच डाला है जिसकी आग में बरसो से यह देश जलता रहा है और जहाँ मजहब , जाति के नाम पर बांधकर राजनीती जनता को हमेशा प्यादा बनाकर अपनी रोटियां सेकती रही है। चूँकि कांग्रेस के सामने एंटी इंकम्बेंसी का खतरा मडरा रहा है और इस चुनावी साल में उसके सामने सबसे बड़ी चुनौती तीसरी बार चुनाव जीतने को लेकर है शायद तभी भाजपा और अकाली दल सिख दंगो में कांग्रेस को कोई ढील देने के मूड में नहीं दिख रहे जिसके चलते वह पीडितो को इन्साफ देने की मांग सड़क से लेकर संसद तक करते नजर आ रहे हैं । कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की माने तो 2002 के गुजरात दंगो में जहाँ मोदी सरकार दंगो को उकसा रही थी वहीँ 1984 के दंगो में कांग्रेस सरकार ने दंगो को रोकने की हरसंभव कोशिशें की । राहुल का यह बयान किसी के गले नहीं उतर रहा क्युकि 30 बरस पहले हुए दंगो में कांग्रेस के कई नेता न केवल शामिल रहे बल्कि वह भीड़ को उकसाने का काम भी कर रहे थे ।
इन दंगो में पौने तीन हजार से भी ज्यादा सिखों का कत्ले आम चुन चुन कर कर दिया गया था जिसकी तस्दीक नानावती आयोग की रपट करती है जिसमे सादे चार सौ से अधिक हत्या के मामले दर्ज किये गए और पांच सौ से ज्यादा ऍफ़ आई आर दर्ज हुई , सी बी आई और दिल्ली पुलिस ने काफी छानबीन भी की मगर जांच किसी नतीजे पर नहीं पहुँच सकी । सबूतो के अभाव में अब तक कई मामले या तो ख़ारिज हो गए हैं या मामलो से जुडी फाईल को रफा दफा कर दिया गया है जिसके चलते सिखों को न्याय नहीं मिल पाया है और दोषी आज भी आजाद हैं । पुख्ता सबूतो का हवाला देते हुए 49 लोगो को अब तक दोषी पाया जिनकी सजा आजीवन कारावास में बदली जा चुकी है फिर भी इन दंगो के बड़े दोषी पहुँच से बाहर हैं ।
ध्यान देने वाली बात यह है कि दंगा शुरू होने के बहत्तर घंटो तक सरकारी मशीनरी तमाशबीन बनी रही । 1984 के सिख विरोधी दंगे सिखों के खिलाफ थे । इंदिरा गाँधी की हत्या उन्ही के अंगरक्षकों द्वारा कर दी गई उसी के जवाब में ये दंगे भड़के । इन दंगो में सादे से ज्यादा मौतें हुई थी । यह हिंसक कृत्य दिल्ली पुलिस के अधिकारियो और राजीव गांधी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के सहमति से आयोजित किये गए थे। राजीव गाँधी ने तो उस दौर में कहा भी था, "जब एक बड़ा पेड़ गिरता है, तब धरती माता भी हिलती है"।
एक अनुमान के मुताबिक उस दौर में पूरे देश में तकरीबन 10 हजार सिखों को बेरहमी से कत्ल कर दिया गया था । अकेले दिल्ली में करीब 3000 सिख बच्चों, महिलाओं को मौत के घाट उतार दिया गया । हिंसा का तांडव रचा गया। घरों को लूट लिया गया और उसके बाद उन्हें आग के हवाले कर दिया गया। इतना ही नहीं जिन राज्यों में हिंसा भड़की वहां अधिकांश जगह कांग्रेस की सरकारें थीं। पूरे देश में फैले इन दंगों में सैकड़ों सिख महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया लेकिन पुलिस सिर्फ तमाशबीन बनी रही। उस दौर में प्रधान मंत्री रहे राजीव गांधी किस तरह हाथ पर हाथ धरे बैठे थे इसकी तस्दीक तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह के प्रेस सेकेटरी रहे तरलोचन सिंह ने भी की है । तरलोचन सिंह ने दावा किया है कि जब पूरा देश दंगों की आग में जल रहा था तब राष्ट्रपति के कई बार फोन करने के बाद भी राजीव गांधी उपलब्ध नहीं हुए थे। ज्ञानी जैल सिंह की गाडी के साथ उस दौर में पथराव भी हुआ था जिससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि उस दंगो में हिंसा किस तरह फैली होगी ?
चुनावी बरस में अब सिख दंगो के जिन्न ने कांग्रेस के सामने संकट बड़ा दिया है । लोक सभा चुनावो की डुगडुगी के बीच यू पी ए की मुख्य सहयोगी रही ऍन सी पी ने बीते दिनों मोदी पर अपने सुर नरम करते हुए यह कहा है कि गोधरा पर जब कोर्ट मोदी को क्लीन चिट दे चुका है और दोषियो को सजा सुनाई जा चुकी है तो फिर नमो को बार बार कठघरे में खड़ा क्यों किया जा रहा है? यही नहीं फारुख अब्दुल्ला ने भी नमो के प्रधान मंत्री बनने न बनने का फैसला जनता पर छोड़ने की बात कहकर एक नई बिसात बिछाकर कांग्रेस को अलग थलग कर दिया है । ऐसे में कांग्रेस की चिंता बढ़नी लाजमी है । वैसे1984 के दंगो में कांग्रेस की भूमिका शुरू से सवालो के घेरे में ही रही है शायद यही वजह रही कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी इस पर पूरे देश से माफ़ी मांग चुके हैं लेकिन अभी भी चौरासी के जख्म नहीं भरे हैं और इन सबके बीच सियासत हर किसी को अपने अनुरूप साध रही है ।
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