Sunday 10 May 2015

ब्रिटेन में फिर से कैमरन सरकार



 

ब्रिटेन के आमचुनाव में प्रधानमंत्री डेविड कैमरन की कंजरवेटिव पार्टी ने एक बार फिर जीत हासिल कर सारे पूर्वानुमानो को ध्वस्त कर डाला । कहा तो यहाँ तक जा रहा था इस बार ब्रिटेन की राजनीती का ऊंट पहाड़ के नीचे बैठने जा रहा है लेकिन सारे राजनीतिक पंडितों के मुह पर ताले ही जड़ गए ।  चुनाव से पहले सभी सर्वेक्षणों में माना जा रहा था कि कंजरवेटिव और लेबर पार्टी के बीच  इस बार कड़े संघर्ष का मुकाबला होने जा रहा है। इन सब के बीच ब्रिटेन में फिर से गठबंधन सरकार बनने की अटकलें लगाई जा रही थीं लेकिन  कैमरन के करिश्माई नेतृत्व पर जनता ने इस बार मुहर लगा दी ।  कंजरवेटिव को 650 सदस्यीय हाउस ऑफ कॉमंस में 331सीटें मिली हैं। इस तरह से उसने जरूरी बहुमत के आंकड़े 326 को पार कर लिया ।
 
 कैमरन  को मिले बहुमत के  ठीक बाद मिलिबैंड ने भले ही अपने पद से इस्तीफा दे दिया है लेकिन इस चुनाव मेंलेबर पार्टी को 232 सीटों पर जीत मिली हैजबकि स्कॉटिश नेशनल पार्टी  को 56 और डेमोक्रेटिक युनियनिस्ट पार्टी तथा लिबरल डेमोकेर्ट्स को आठ-आठ सीटों से ही संतोष करना पड़ा है । जीत के बादकैमरन ने कहा कि चुनाव के नतीजों से ऐसा लग रहा है कि कंजरवेटिव पार्टी मजबूत स्थिति में है और पार्टी को इसके सकारात्मक प्रचार की बेहतर प्रतिक्रिया मिली है । 

उन्होंने कहा कि कंजरवेटिव ने अपने घोषणापत्र में कामकाजी लोगों को भी स्थान दिया था और उम्मीद भी जताई है कि वह इस नई पारी में दबाव से हटकर नई लकीर खींचकर अपने वादे पूरे करेंगे ।  बकिंघम पैलेस का दौरा करने के बाद 10 डॉउनिंग स्ट्रीट के बाहर कैमरन ने कहा कि वह अखंड राष्ट्र के लिए सरकार का नेतृत्व करेंगे और ग्रेट ब्रिटेन को और महान बनाएंगे । संकेतों को डिकोड करें तो कैमरन ने  लोगों में यह भरोसा जगाया  है कि सरकार का नेतृत्व वन नेशन के लिए करेंगे शायद यही वजह है जनता ने उनको दिल से लगाया है । अब  यूनाइटेड किंगडम को एकीकृत रखने के लिए कैमरन के सामने असल संकट सभी को साधने का बन गया है द्यपार्टी मुख्यालय में जीत से उत्साहित कार्यकर्ताओं  को संबोधित करते हुए कैमरन ने कहा यह जीत  सभी के लिए सबसे सुखद जीत है।  

साल 2010 के आम चुनाव में खंडित जनादेश आने के बाद कैमरन ने लिबरल डेमोक्रेट के साथ मिलकर सरकार बनाई थी लेकिन  इस बार ऐसी नौबत नहीं  आई । हालाँकि  सारे एक्जिट पोल त्रिशंकु सरकार की तस्वीर पेश कर रहे थे लेकिन अंत में कैमरन ने ही काँटों का ताज पहना है  ।  कैमरन ने 10 डाउनिंग स्ट्रीट के बाहर जब यह कहा  हमारी बहुमत की नई सरकार के साथ हम अपने घोषणापत्र को पूरी तरह से लागू करने में सक्षम रहेगी तो उनके अन्दर का आत्मविश्वास साफ झलक रहा था । चुनावों से पहले भी वह अपनी जीत को लेकर आशान्वित नजर आ रहे थे शायद इसकी बड़ी वजह उनका सकारात्मक प्रचार रहा । 
 
 इस चुनाव में  हेल्थ पॉलिसी  टैक्स  पॉलिसी पर उनके स्टैंड को अधिकतर लोगों ने अपना समर्थन दिया है। ब्रिटेन के यूरोपीय संघ छोड़ने को लेकर जनमत संग्रह करवाने के उनके प्रस्ताव को भी जनता ने गंभीरता से लिया है।लेबर पार्टी इसका विरोध करती रही  इस कारण लोगों ने उसे नकार दिया। जाहिर है प्रधानमंत्री के सामने सबसे बड़ी चुनौती अब सामने है क्युकि उन्होंने जो वादा किया था  वादा जो  किया है कि 2017 के अंत तक जनमत संग्रह करवाएंगे। हालांकि वह  ब्रिटेन की यूरोपीय संघ में मौजूदगी के कट्टर विरोधी नहीं हैं। 

उनका कहना है कि वे अपने देश को इस संघ में देखना चाहते हैं लेकिन जनमत संग्रह के बाद। असल में कैमरन सदस्य देशों के राष्ट्रीय हितों में ईयू का दखल कम से कम चाहते हैं क्युकि ब्रिटेन के ईयू से बाहर निकलने पर यूरोप का शक्ति संतुलन गड़बड़ा जाएगा। आखिर ब्रिटेन जी-7 का एक ताकतवर सदस्य है। वह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य  भी है।  बीते बरस स्कॉटलैंड में हुए जनमत में एकीकृत ब्रिटेन के पक्ष में जनमत  रहा था लेकिन वर्तमान चुनाव में स्कॉटलैंड की 59 संसदीय सीटों में से स्कॉटिश नेशनल पार्टी को 56 सीटों पर विजय हासिल हुई है जो स्कॉटलैंड के लिए अधिक अधिकारों की मांग कर रही है।कम समय में एसएनपी को मिले अपार जन समर्थन पर सबको आश्चर्य हो रहा है। एसएनपी से निपटना कैमरन के लिए आसान नहीं होगा। हालांकि उन्होंने स्कॉटलैंड और वेल्स को तत्काल शक्ति हस्तांतरण करने का वादा किया है   देखना होगा कैमरन इस संकट में कैसी सूझ बूझ दिखाते हैं ?

अगर जनमत संग्रह हुआ और ब्रिटेन ने ईयू से निकलने का फैसला किया तो स्कॉटलैंड पक्के तौर पर उससे अलग हो सकता है। ऐसे में देखना होगा कैमरन अंदर-बाहर ब्रिटेन के हितों को किस तरह सुरक्षित रख पाते हैं।प्रधानमंत्री डैविड कैमरन पहले ही वादा कर चुके है कि अगर वह सत्ता में लौटे तो 2017 के अंत तक यूनाइटेड किंगडम (यूके) के यूरोपीय संघ छोड़ने पर जनमत संग्रह कराएंगे. वह इस वादे से मुकर नहीं सकते हैं ।  स्कॉटलैंड का बहुमत ईयू में रहने के पक्ष में है और ग्रेट ब्रिटेन के ईयू से अलग होने की स्थिति में स्कॉटलैंड निवासी अलग देश बनाकर ईयू का सदस्य बनने के पक्ष में हो सकते हैं। यानी इस सरकार के कार्यकाल में यूरोपीय संघ के भविष्य में भी बड़ा बदलाव हो सकता है। ग्रेट ब्रिटेन ईयू से अलग होता हैतो यूरोप के कई देशों में ईयू से अलग होने के पक्षधर मजबूत हो जाएंगे।

 कैमरन को इस  पारी में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा द्य पूरी दुनिया में भले ही ब्रिटेन की गिनती विकसित देश के रूप में होती आई है लेकिन वर्तमान में ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था डावांडोल है ।  सरकारी कर्ज लगातार बढ़ रहा है तो आर्थिक सुनामी का साया अब भी मडरा रहा है द्य आई एम ऍफ की रिपोर्टो को आधार बनाएं तो आने वाले वर्षो में ब्रिटेन जी 20 में सबसे अधिक  घाटे का देश होने जा रहा है । यह कैमरन के लिए खतरे की घंटी है ।  

ब्रिटेन में मंदी की समस्या के बाद से बेरोजगारी भी एक गंभीर समस्या बन गई है इसलिए नए रोजगार के सृजन के द्वारा कैमरन को इस नयी पारी में युवाओं में उत्साह भरना होगा । कैमरन ने अगर अपने सरकारी खर्चे घटाकर और टेक्स  बढ़ाकर अपना घाटा नियंत्रित करने का खाका सही से पेश नहीं किया तो ब्रिटेन के सामने इस दौर में मुश्किलें पैदा हो सकती हैं ।  विश्व बाजार में अमरीका की बराबरी में आने के लिए ब्रिटेन के सामने चीन सबसे बड़ी चुनौती बना है ।  ब्रिटेन को कई देशो के साथ अपने आर्थिक सम्बन्ध मजबूत करने पर जोर देना  होगा द्यमध्य पूर्व में बन रहे नए समीकरण , ईरान , अफगानिस्तान  सीरिया  ई यू संकट ऐसी चुनौती बने हुए हैं जिनसे कैमरन को समझ बूझ के साथ जूझना पड़ेगा ।  



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