Sunday 20 September 2015

दिल्ली में डेंगू की दहशत





 डेंगू ने राजधानी दिल्ली में पाँव तेजी से पसार लिए हैं जिससे आम आदमी में दहशत है | यूँ तो हर बरस डेंगू का प्रकोप देश में दर्ज होता है लेकिन दिल्ली में इसने अब तक के सारे आंकड़े ध्वस्त कर दिए हैं। इन दिनों राजधानी के अस्पतालों में इसका व्यापक असर देखा जा सकता है | अस्पतालों में डेंगू और संक्रामक बुखार से पीड़ित लोग हर रोज बड़ी संख्या में पहुँच रहे हैं जो यह बताने के लिए काफी हैं कि राजधानी पर किस तरह डेंगू का कहर बढ़ता जा रहा है |  सरकारी अस्पतालों में मरीजों के लिए जहाँ जगह नहीं है वहीँ प्राइवेट अस्पतालों की मौजूदा दौर में चांदी कट रही है | एक अदद  बिस्तर पाने के लिए मारामारी चल रही है और मरीजों से मनमाने पैसे लेकर इलाज करने की पूरी कोशिश दिल्ली के निजी अस्पतालों में की जा रही है जबकि  दिल्ली सरकार इन अस्पतालों के लिए सस्ते में इलाज कराने का फरमान जारी कर चुकी है | हालाँकि सरकार और स्वास्थ्य विभाग का दावा है कि डेंगू पूरी तरह नियंत्रण में है लेकिन असलियत यह है राजधानी में इससे निपटने की कोई ठोस तैयारी ही नहीं की गई है |  अब तक डेंगू से हुई मौतों के आंकड़ों में हर दिन इजाफा ही होता जा रहा है । दिल्ली के कई इलाकों में मच्छरों के प्रकोप से लोगों को बचाने के लिए फागिंग तो दूर स्वास्थ्य कर्मियों की पर्याप्त टीमें तक गठित नहीं हैं और तो और एमसीडी ने बजट में कटौती का बहाना बनाकर सारी जिम्मेदारी केजरीवाल सरकार के जिम्मे डाल दी है | जहाँ राज्य सरकार की चिंता है कि कैसे इस समस्या से पार पाया जाए दूसरी तरफ निजी अस्पतालों को  डेंगू  के इलाज के नाम पर हर पल  अपने मुनाफे की फिक्र सता रही है। अब ऐसे भयावह हालातों में गरीबों के ऊपर क्या बीत रही होगी और वह किस तरह इलाज के लिए  दिल्ली में दर दर ठोकरें खाने को मजबूर हो रहे होंगे यह समझा जा सकता है | 

बीते दिनों डेंगू से एक नन्हे मासूम अविनाश की मौत ने दिल्ली के निजी अस्पतालों का कच्चा चिट्ठा सबके सामने खोल दिया | मासूम के परिजनों का साफ़ कहना था उन्होंने  अपने इस बच्चे के इलाज के लिए कई बड़े अस्पतालों के चक्कर काटे लेकिन सबने उनके बच्चे को दवाई तो दूर बेड तक देने से इनकार कर दिया  जिसके चलते  वह बच्चा इलाज के अभाव में  तड़पता रहा और उसने दम तोड़ दिया |  अपनों के खोने का गम क्या होता है यह इस बात से समझा जा सकता है उस नन्हे मासूम के माता पिता ने  इस घटना के बाद खुद को भी मौत के गले लगा दिया जिससे सरकार के कान खड़े हो गए और  दिल्ली सरकार ने आनन फानन में निजी अस्पतालों को डेंगू से प्रभावित लोगों के इलाज करने चेतावनी भी दे डाली |  वहीँ केंद्र ने भी डेंगू से प्रभावित लोगों के  इलाज में कोई कोताही नहीं बरतने के आदेश पहले से ही दे दिए हुए हैं  लेकिन इसके बाद भी प्राइवेट अस्पतालों की मनमानी बदस्तूर जारी है |  गरीब जहाँ पर्याप्त इलाज के अभाव में परेशान हैं वहीँ अफरातफरी इतनी ज्यादा है कि मामूली बुखार पर भी लोग अपना ब्लड टेस्ट करवाने लम्बी लम्बी कतारें लगाकर खड़े हो जा रहे हैं जिससे अस्पतालों के डॉक्टरों और स्टाफ पर काम करने का दबाव बहुत ज्यादा बढ़ गया है |  

राजधानी दिल्ली में पिछले कई बरस से लगातार डेंगू का खतरा बना रहता है।  बरसात के बाद  मच्छरों की आवाजाही हर बरस शुरू होती है और यहीं से डेंगू की दस्तक शुरू हो जाती हैं लेकिन सरकारों को गरीबों की याद चुनाव के समय ही आती है | वैसे 2006 से डेंगू से हर बरस कई लोगों की जान जा रही है और आंकड़े इस बात की गवाही देते हैं बीते 8 बरस में डेंगू से एक हजार  से भी ज्यादा मौतें देश में  हो चुकी है लेकिन इसके बाद भी सरकारों की डेंगू से लड़ने की कोई पुख्ता तैयारी नहीं दिखाई देती | दिल्ली में इस बरस  डेंगू टाइप टू वायरस सबसे ज्यादा दिखाई दे रहा है जो डेंगू वन और थ्री की तुलना में ज्यादा खतरनाक माना जाता है। सरकार चाहे जो दावे करे लेकिन डेंगू टाइप टू के मरीजों की संख्या इस बार विकराल रूप धारण कर रही है|  डेंगू से होने वाली मौतों का आंकड़ा आने वाले दिनों में बढने की संभावनाओं से भी अब इनकार  नहीं किया जा सकता |  

डेंगू एडिस मच्छरों के काटने से होता है  जो घर के आसपास जमा पानी में पैदा होते हैं। यह मच्छर दिन में ज्यादा सक्रिय रहता है | तेज बुखार,शरीर पर लाल-लाल चकत्ते दिखाई देना,पूरे बदन में तेज दर्द होना,उल्टी होना ,मिचलाना जैसे  लक्षण डेंगू के शुरुवाती लक्षण हैं अगर ऐसा है तो हमें तुरंत अस्पतालों की तरफ रुख करना चाहिए और डेंगू की जांच  करानी चाहिए। समय पर फौगिंग और साफ़ सफाई ही इससे बचाव का उपाय है और आम जनता के लिए भी ऐसे हालातों में सजगता बेहद जरूरी है | 

दिल्ली में अगर अभी चुनावों का समय होता तो शायद डेंगू भी बहुत बड़ा मुद्दा बन जाता और हर पार्टी के नेता इस पर राजनीति करने से बाज नहीं आते और अपने को गरीब गोरबा जनता का सबसे बड़ा हिमायती बताने से भी पीछे नहीं रहते लेकिन अभी दिल्ली में चुनाव नहीं है सो मंत्री से लेकर मुख्यमंत्री जो अपने को सच्चा आम आदमी बताते हैं कैमरों के सामने आने से भी परहेज करते नजर आ रहे हैं | मंत्रियों के घर तो घंटों फौगिंग की जा रही है लेकिन झुग्गी झोपड़ी वाले इलाकों की तरफ सफाईकर्मी तो दूर एमसीडी के किसी कर्मचारी तक ने रुख नहीं किया है | दिल्ली में वैसे ही पानी के निकास की उचित व्यवस्था नहीं है | ऊपर से जो नाले हैं उनमे तैरता बदबूदार पानी और उस पर इस मौसम में रेंग रहे मच्छर हमारी स्वास्थ्य सेवाओं की जनसुलभ नीतियों की तरफ इशारा कराने के लिए काफी  हैं | हम स्वच्छ भारत बनाने के बड़े दावे करते हैं | महात्मा गांधी की 150 वी जयंती पर अपना घर और क़स्बा साफ करने की बात अक्सर बड़े मंचो से कहते नहीं थकते लेकिन ऐसी सफाई के क्या मायने जहाँ 2006 के बाद से हम डेंगू के मच्छर ही साफ़ नहीं कर पाए | यह हमारी लचर स्वास्थ्य सेवाओं की पोल खोलने के लिए काफी है | हर बात पर केंद्र और राज्य में तकरार कर मामला नहीं सुलझ सकता | केजरीवाल सरकार जब सत्ता में आई तो बड़े जोर शोर से शिक्षा और स्वास्थ्य का बजट दुगना कर दिए जाने की बात कर रही थी | स्वराज बजट पेश करते हुए आप ने कहा भी था स्वास्थ्य सेवा के लिए जो बजट आवंटित किया गया है वह पिछले बरस से 45 फीसदी अधिक है और अपने पहले बजट में दिल्ली की जनता के लिए वादों और इरादों की झड़ी विज्ञापनों के आसरे लगाने की कोई कोर कसार पार्टी ने नहीं छोडी लेकिन आज अगर अपनी सरकार के प्रचार प्रसार से ज्यादा इश्तिहार डेंगू से बचाव के लगाए गए होते तो राजधानी में पूरा सिस्टम इस तरह बेबस नहीं होता लेकिन सवाल सिस्टम से आगे का भी हो चला है क्युकि मौजूदा परिदृश्य में दिल्ली में सियासत के केंद्र में अब डेंगू भी आ गया है | भाजपा इस मसले पर जहाँ आप पार्टी को कोस रही है वहीँ कांग्रेस भी आप को घेरने का कोई मौका छोड़ रही लेकिन असल सच यह है यह दोनों दल उस दौर में बारी बारी से सरकार और एम सी डी में रहे हैं | ऐसे में उनकी यह जवाबदेही तो तत्कालीन समय से ही बनती थी क्युकि डेंगू दिल्ली  के लिए कोई नई बीमारी नहीं है और इसे बड़ी त्रासदी ही कहेंगे हमारे देश की सरकारें सत्ता में रहने के दौर में  डेंगू सरीखी बीमारी से निपटने के उपाय नहीं कर पाती और विपक्ष में रहने पर सत्तारूढ़ पार्टियों को कोसने का मौका नहीं चूकती | यह हमारे देश के  राजनीतिक दलों की सबसे बड़ी कमी है कि उनकी याददाश्त बहुत कमजोर होती है और वह हर बरस के अनुभवों से सीख नहीं लेती हैं | आज हमारी राजनीतिक जमात के लिए यह जरूरी है कि वह डेंगू के बढ़ते कहर को देखते हुए कुछ ऐसे कदम उठाये  जिससे अगले बरस इस  बीमारी का समूलनाश पूरे देश में हो जाए |   

डेंगू की बीमारी के बारे में तो कायदे से यही किया जाना चाहिए बरसात की शुरुवात से पहले ही प्रचार प्रसार और जागरूकता अभियानों पर ध्यान दिया जाना चाहिए लेकिन हमारी सरकारों को तो चुनावों के समय ही जनता की याद आती है | इतने दिनों में राजधानी की हालत किस तरह हो चली है यह इस बात से समझा जा सकता है सरकारी अस्पतालों में जितने मरीज पहुँच रहे हैं वहां बिस्तर मिलना तो दूर दवाइयों तक की पूरी व्यवस्था नहीं है | हमारे समाज में किस तरह असमानता है यह इस बात से महसूस किया जा सकता है जिसके पास पैसा है वह प्राइवेट में इलाज कराने से पीछे नहीं हैं वहीँ निजी अस्पतालों की तरफ देखिये वह आगे बढकर डेंगू और संक्रामक रोगियों के इलाज के लिए नि शुल्क उपचार देने की पहल तक नहीं कर सके हैं | कैसी संवेदना है प्राइवेट अस्पतालों की जो अपना सामाजिक दायित्व तक भूलकर मुनाफा बटोरने में लगे हुए हैं | ऐसे में सरकारी की यह जिम्मेदारी बनती है वह इन अस्पतालों को अपने सामाजिक कर्त्तव्य की याद दिलाएं साथ ही इन अस्पतालों में गरीब लोगों के इलाज को सुनिश्चित करवाएं |    बड़ा सवाल यह है हर साल डेंगू की रोकथाम के लिए अस्पतालों को विशेष रूप से तैयार रहने को कहा जाता है। मगर हालत यह है कि जब  डेंगू अपना कहर बरपाता है तब पूरा सिस्टम फेल हो जाता है | सरकारी अस्पतालों पर मरीजों की बीमारियों का बोझ वैसे ही अधिक होता है लेकिन जब डेंगू सरीखी बीमारियाँ पैर पसारती हैं तो आबादी के बढ़ते प्रभाव के चलते लोग निजी अस्पतालों का रुख करते हैं  लेकिन जब यह निजी अस्पताल भी अपना पूरा ध्यान कमाई और मुनाफे पर केन्द्रित कर देते हैं तो मुश्किल बड़ी हो जाती है | जब हमारी राजधानी में ऐसा हाल है तो गावों और कस्बों में क्या होगा और वहां पर सिस्टम किस तरह धराशाई हाल के दिनों में हुआ होगा उसकी भयावहता की तस्वीर दिल्ली के आकडे पेश कर देते हैं जहाँ पूरा सिस्टम डेंगू से लड़ने में फेल हो चला है और गरीबों को बुनियादी स्वास्थ्य सेवाएं भी मयस्सर नहीं हो पा रही हैं | 

बहरहाल जिस तरह दिल्ली में  डेंगू की बीमारी से निपटने में हाल के दिनों में प्राइवेट अस्पतालों की हीलाहवाली सबके सामने उजागर हुई है उस पर अब  सरकार को कठोर कदम उठाने पर विचार करना ही होगा |  डेंगू आज किसी देश में खतरनाक बीमारी नहीं रही परन्तु हमारे देश में यह अगर जानलेवा बनी हुई है तो इसका कारण लाचार स्वास्थ्य सेवाएं , सरकारों का इसके प्रति सजग ना होना और सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों की हीलाहवाली ही है |





                  

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