चीन से पाकिस्तान की नजदीकियां दिनों दिन बढ़ती ही जा रही हैं। ऐसे दौर में जब पाकिस्तान के खिलाफ पूरा विश्व एकजुट हो रहा है और आतंक के मसले पर सार्क सम्मलेन तक रदद् हो चुका है तब भी चीन का उसके साथ एक जुट होकर खड़ा होना कई सवालों को तो पैदा कर रहा है । हाल के समय में हुए ब्रिक्स सम्मेलन में भारत ने सीमा पार आतंक का मसला उठाकर पाक को सीधे निशाने पर लिया इसके बाद भी चीन पाक के साथ खड़ा रहा और उसने उसके सुर में सुर मिलाया और चीनी विदेश मंत्रालय से प्रतिक्रिया आने में देरी नहीं हुई । उड़ी हमले में भारत के जवानों के शहीद होने के बाद कई देशों ने भारत का साथ दिया जबकि चीन को पाकिस्तान का साथ देना ज्यादा भाया । उसने यहां तक कह डाला अगर पाकिस्तान में युद्ध की स्थिति आ गई तो वह उसका साथ देने को तैयार है। यही नहीं चीन ने मसूद अजहर को आतंकी माने जाने से साफ़ इनकार कर दिया जबकि दुनिया जानती है मसूद अजहर पाकिस्तान स्थित जैश ए मोहम्मद का वही सरगना है जिसे भारत ने संयुक्त राष्ट्र में आतंकी घोषित करने का आवेदन किया था। उस समय चीन ने मसूद को आतंकी घोषित करने पर सीधी रोक लगाई थी। चीन की ओर से लगाई गई रोक की मियाद तीन अक्टूबर को पूरी हो गई थी। अगर चीन ने आगे आपत्ति नहीं उठाई होती तो अजहर को आतंकवादी घोषित करने वाला प्रस्ताव अपने आप पारित हो गया होता। चीन के इस अड़ियल रुख का सील भारत को भुगतान पड़ा है जब चीन की यह रोक अगले छह महीने के लिए फिर बढ़ गई है।
इसी बरस जनवरी में पठानकोट में वायुसेना अड्डे पर हमला हुआ था। इस हमले में सात भारतीय सैन्यकर्मी शहीद हो गए थे। इस हमले की जांच में भारत ने पर्याप्त सबूत जुटाए । पाक की एन आई ए की जांच टीम भी भारत आयी और हमले के तार सीधे सीधे जैश मोहम्मद से जुड़े पाए गए जिसके बाद भारत ने अजहर पर प्रतिबंध लगाने के लिए संयुक्त राष्ट्र से अपील की थी लेकिन चीन ने वीटो पावर का इस्तेमाल कर मसूद पर प्रतिबंध लगाने की भारत की कोशिश पर सीधे सीधे पानी फेर दिया । यह स्थिति उस समय की रही जब 15 में से 14 देश ऐसे थे जो मसूद को बैन किए जाने के समर्थन में थे। बीते उरी हमले में भी जैश ए मोहम्मद को जिम्मेदार ठहराया गया था। इस हमले के बाद भी जहां आतंकवाद के मुद्दे पर सारी दुनिया ने पाकिस्तान को कोसा और भारत के साथ खड़े रहे वहीं चीन ने उसकी तरफदारी कर यह जतला दिया वह पाकिस्तान के साथ अपने रिश्ते तल्ख़ नहीं करना चाहता ।
भारत पाक की इस नई दोस्ती की बड़ी वजह अतीत में चीन केसाथ खाबराब रहे भारत के सम्बन्ध भी हैं । पुराने पन्ने टटोलें तो नेहरू के दौर में हिंदी चीनी भाई भाई के दावों की धज्जियाँ चीन ने 1962 में युद्ध करके उड़ा दी जिसके बाद से भारत चीन के बीच सीमा विवाद को लेकर बयानबाजी का दौर देखने को मिलता है । इस युद्ध की आड़ में उसने भारत के एक बड़े हिस्से पर अपना कब्ज़ा जमा लिया और पाक अधिकृत कश्मीर पर पाकिस्तान के साथ मिलकर भारत के खिलाफ एक बड़ी मोर्चेबंदी में जुटा रहा । अरुणाचल प्रदेश के काफी बड़े हिस्से पर आज भी वह अपना दावा जताता रहा है और अरूणाचल के लोगों को अपने यहाँ घुसने के लिए वीजा नहीं मांगता है । रिश्तों में कड़वाहट यहीं नहीं थमती । इस बरस ही चीन ने परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह की सदस्यता के लिए भारत का खुलकर विरोध किया था। एनएसजी समूह के 48 सदस्य देशों में से ज्यादातर देश भारत के पक्ष में थे। चीन इसलिए भारत का विरोध कर रहा था क्योंकि चीन का मानना था कि भारत के एनएसजी में प्रवेश से दक्षिण एशिया में सामरिक संतुलन प्रभावित होगा और भारत एक परमाणु शक्ति बन जाएगा। वह एनएसजी में भारत की सदस्यता का खुला विरोध कर रहा था। वह अपने सामरिक आर्थिक और व्यापारिक हितों के तहत पाकिस्तान को इसका सदस्य बनाना चाहता था।मौजूद दौर में चीन पकिस्तान के जरिये अब एक नई लकीर खींचना चाहता है । पकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह के निर्माण में वह अपना बड़ा इन्वेस्टमेंट कर रहा है वहीँ शिंजिआंग प्रान्त को अब वह सीधे बलूचिस्तान से जोड़ने की आर्थिक मोर्चेबंदी की तरफ बढ़ रहा है । ईरान से एक आर्थिक गलियारा खोलने की दिशा में भी वह वह बढ़ रहा है जिसकी पहुच सीधे यूरोप तक होगी और यह मोदी के चाबहार की बड़ी काट आने वाले दिनों में हो सकती है । हाल के दिनों में पी एम मोदी ने जिस तरह अंतरराष्ट्रीय स्टार पर बलूचिस्तान के मसले को दुनिया में उठाया उसके बाद से चीन परेशान हो गया है क्योंकि वहां पर चीन बड़े पैमाने पर निवेश को बढावा दे रहा है और अगर दुनिया बलूचिस्तान को हवा देने लगेगी तो इससे उसके भी व्यापारिक हित सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे और उसको बड़ा नुकसान भुगतने को तैयार होना पड़ेगा जिससे चीन की यूरोप तक उड़ान थम सकती है । हाल के समय में यूरोप तक पहुच बनाने के लिए चीन को पापड़ बेलने पड़ रहे हैं क्यूंकि वह अपने सामन को वहां केवल समुद्री मार्ग से ही पंहुचा सकता है लेकिन बलूचिस्तान के आर्थिक गलियारे को अगर सीधे अरब देशों से जोड़ दिया जाए तो चीन यूरोप पर अपना आधिपत्य स्थापित कर सकता है ।
भारत चीन तनातनी विवादित नेताओं को वीजा देने पर भी हो चुकी है । भारत ने मध्य प्रदेश के धर्मशाला में बैठक में शामिल होने के लिए चीन के विवादित नेता डोल्कुन को वीजा दिया थाजिसे चीन एक खतरनाक अलगाववादी आतंकी नेता मानता है। डोल्कुन को वीजा देने पर चीन ने भारत से नाराजगी जताई थी। इसके बाद भारत ने ईसा का वीजा रद्द कर दिया। मसूद अजहर को आतंकी घोषित करने का तर्क भारत ने यह दिया था कि अजहर को सूची में शामिल नहीं करने से भारत और दक्षिण एशिया के अन्य देशों में आतंकवादी समूह और इसके प्रमुख से खतरा बना रहेगा। भारत ने केवल अपनी नहीं दक्षिण एशिया के देशों की सुरक्षा पर मंडरा रहे खतरे पर भी चिंता जताई थी। इससे पहले संयुक्त राष्ट्र ने 2001 में जैश ए मोहम्मद पर पाबंदी लगाई थी। इसके बाद मुंबई में 2008 में हमला होने के बाद भारत ने उस पर पाबंदी लगाने का प्रयास किया लेकिन तब भी चीन अपनी करतूत से बाज नहीं आया। तब उसने वीटो पावर का इस्तेमाल करके भारत को झटका दिया था। एक बार फिर चीन अपने इरादों में सफल रहा है। उड़ी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान को आतंकवाद के मुद्दे पर हर अंतरराष्ट्रीय मंच पर कोसने का कोई मौका नही छोड़ा है ।
ब्रिक्स सम्मेलन में भी भारत की यह कोशिश जारी रही। दुनियाभर के कई देशों ने इस मुद्दे पर पाकिस्तान की निंदा की लेकिन चीन ने पाकिस्तान के प्रति अपना रुख नरम ही रखा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ब्रिक्स सम्मेलन में नाम लिए बगैर आतंकवाद को लेकर पाकिस्तान पर हमला बोला। उन्होंने ब्रिक्स देशों के राष्ट्राध्यक्षों से कहा हमारी समृद्धि के लिए आतंकवाद सबसे गंभीर खतरा है। ब्रिक्स सम्मेलन में हिस्सा लेने आए रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमिर पुतिन ने पाक अधिकूत कश्मीर में भारत की सर्जिकल स्ट्राइक को जहाँ सही बताया वहीँ चीन का रुख पाकिस्तान की तरफ नरम ही रहा। उड़ी में सैन्य शिविर पर हुए आतंकी हमले के बाद भारत लगातार पाकिस्तान को अलग थलग करने की कोशिश कर रहा है । भारत की कई कोशिशों के बाद पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग तो पड़ गया लेकिन चीन का रुख पाकिस्तान की तरफ सॉफ्ट ही बना रहा। ब्रिक्स में प्रधानमंत्री मोदी के यह कहने के बाद कि आतंकवाद दुनिया में शांति और तरक्की के रास्ते में बहुत बड़ा रोड़ा है चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने आतंकवाद को लेकर भारत के रुख पर सहमति तो जताई लेकिन उसी के विदेश मंत्रालय ने चीनी भाषा में क्षेत्रीय समस्याओं के राजनीतिक समाधान तलाशे जाने का आह्वान कर भारत की मुश्किलों को बढ़ाने का काम किया ।
पाकिस्तान के साथ चीन के अपने राजनीतिक सामरिक और व्यापारिक स्वार्थ जुड़े हैं शायद यही वजह है इस दौर में वह हर मसले पर पर अपना रुख नरम किए हुए है । चीन ने पाकिस्तान में अपने परमाणु रिएक्टर लगा रखे हैं और वह दक्षिण एशिया में इसका बाजार बढ़ाना चाहता है।साउथ चाइना सी पर वह दुनिया को धता बताकर अपना आधिपत्य जमाने की दिशा में मजबूती के साथ बढ़ रहा है जिससे वह अमरीका तक से सीधा जोखिम लेने को तैयार है । इस दौर में अमेरिका से भारत की नजदीकी भी चीन को रास नहीं आ रही है जिसकी काट के लिए पर वह पाकिस्तान को तो साध ही रहा है बल्कि रूस को भी नयी धुरी दक्षिण एशिया में बनाना चाहता है । देखना होगा आने वाले दिनों में चीन पाक की यह जुगलबंदी दक्षिण एशिया को कितना प्रभावित कर पाती है ?
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