2013 के बरस भाजपा में नए राष्ट्रीय अध्यक्ष के नामांकन से ठीक पहले लाल कृष्णआडवानी संघ के एक कार्यक्रम में शिरकत करने मुंबई गए थे जहाँ उनके साथ नितिन गडकरी और सर कार्यवाह भैय्या जी जोशी भी मौजूद थे । इसी दिन महाराष्ट्र में गडकरी की कंपनी पूर्ती के गडबडझाले को लेकर आयकर विभाग ने छापेमारी की कारवाही सुबह से शुरू कर दी । आडवानी की भैय्या जी जोशी से मुलाकात हुई तो ना चाहते हुए बातचीत में पूर्ती का गड़बड़झाला आ गया । आडवानी ने भैय्या जी जोशी से गडकरी पर लग रहे आरोपों से भाजपा की छवि खराब होने का मसला छेडा जिसके बाद भैय्या जी को नितिन गडकरी के साथ बंद कमरों में बातचीत के लिए मजबूर होना पड़ा । काफी मान मनोव्वल के बाद गडकरी इस बात पर राजी हुए अगर संघ को उनसे परेशानी झेलनी पड़ रही है तो वह खुद अपने पद से इस्तीफ़ा देने जा रहे हैं । आडवानी से भैय्या जी जोशी ने गडकरी का नया विकल्प सुझाने को कहा तो उन्होंने यशवंत सिन्हा का नाम सुझाया । हालाँकि पहले आडवानी सुषमा स्वराज के नाम का दाव चल चुके थे लेकिन सुषमा स्वराज खुद अध्यक्ष पद के लिए इंकार कर चुकी थी लिहाजा आडवानी ने यशवंत सिंहा का ही नाम बढाने की कोशिश की जो संघ को कतई मंजूर नहीं हुआ । बाद में गडकरी से भैय्या जी ने अपना विकल्प बताने को कहा तो उन्होंने राजनाथ सिंह का नाम सुझाया जिस पर संघ ने अपनी हामी भर दी और आडवानी को ना चाहते हुए राजनाथ सिंह को पसंद करना पड़ा । इसके बाद शाम को दिल्ली में अरुण जेटली के घर भाजपा की बैठक हुई जिसमे रामलाल मौजूद थे जिन्होंने भी राजनाथ सिंह के नाम पर सहमति बनाने में सफलता हासिल कर ली और देर रात राजनाथ सिंह को सुबह राजतिलक की तैयारी के लिए रेडी रहने का सन्देश भिजवा दिया गया । सुबह होते होते राजनाथ के घर का कोहरा भी छटता गया और इस तरह राजनाथ दूसरी बार भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने में सफल रहे ।
ऊपर का यह वाकया पार्टी मे मौजूदा गृह मंत्री राजनाथ सिंह के रुतबे और संघ मे उनकी मज़बूत पकड को बताने के लिये काफी है । वह ना केवल एक सुलझे हुए नेता है बल्कि उत्तर प्रदेश की उस नर्सरी से आते हैं जहाँ भाजपा ने हिंदुत्व का परचम एक दौर में फहराकर केंद्र में सरकार बनाने में सफलता हासिल की थी । लेकिन बड़ा सवाल यह है क्या इस बार राजनाथ उस करिश्मे को दोहरा पाने की स्थिति मे हैँ जो कभी वाजपेयी- आडवाणी और डॉ जोशी की तिकड़ी ने यू पी की सियासी जमीन पर किया था ? यह सवाल इस समय इसलिए भी पेचीदा हो चला है क्युकि यू पी सियासी बिसात में बसपा माया तो सपा अखिलेश और कांग्रेस शीला दीक्षित को लेकर पत्ते जहाँ फेंटने की स्थिति में आ चुकी हैं और पूरी तरह एक्शन माड में है वहीँ भाजपा की सियासी बिसात चेहरों की लडाई में उलझती ही जा रही है | यू पी में भाजपा एक अनार और सौ बीमार वाली स्थिति में है | पार्टी के पास मुख्यमंत्री पद के कई उम्मीदवार हैं लेकिन वह अभी तक यू पी में किसी को चेहरा नहीं बना पायी है | यू पी में भाजपा के हर नेता में इस दौर में आगे निकलने की जहाँ होड़ मची हुई है तो वही चेहरों की लड़ाई मे भाजपा की यू पी की बिसात उलझती ही जा रही है | यूपी विधानसभा चुनावों में भाजपा ने अभी तक मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित नहीं किया है जिसके लिए वरुण गाँधी से लेकर गृह मंत्री राजनाथ सिंह , केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी से लेकर महेश शर्मा , योगी आदित्यनाथ से लेकर विनय कटियार , रेल राज्य मंत्री मनोज सिन्हा से लेकर केशव प्रसाद मौर्य , लखनऊ के मेयर डॉ दिनेश शर्मा से लेकर केंद्रीय मंत्री कलराज मिश्रा के नाम हवा में तैर रहे हैं लेकिन कई कोशिशों के बाद अब लग ऐसा रहा है संघ राजनाथ सिंह को प्रोजेक्ट करके यू पी में चुनाव लड़ने की रणनीति पर काम कर रहा है | राजनाथ सिंह इस समय गृह मंत्री हैं और केंद्र की राजनीति में रम गए हैं लेकिन दो बार ना कहने के बावजूद अब उनको संघ के आमंत्रण पर शायद यू पी वापसी करनी ही पड़े | संघ से जुड़े करीबियों की मानें तो राजनाथ ने यू पी के चुनाव में खुद को चेहरा बनाए जाने से इनकार कर दिया है लेकिन मोदी और शाह की जोड़ी उनके बूते यू पी का सियासी गणित फिट करने में लगी हुई है | ऐसे में बड़ा सवाल है क्या राजनाथ आने वाले समय मे मुख्य मंत्री पद के डार्क हॉर्स साबित होंगे और सारे दावेदारों को पीछे करते हुए एक झटके में अब आगे आ जायेंगे ? ये ऐसे सवाल हैं जो लुटियंस की दिल्ली की ठंडी फिजा में इस समय तैर रहे हैं | संघ के हवाले से आ रहीं खबरों के आधार पर यू पी में भाजपा अब गृह मंत्री राजनाथ सिंह को सीएम पद का चेहरा बना सकती है | भाजपा को अब लग रहा है दिल्ली का रास्ता यू पी से गुजरता है और 2017 में अगर मोदी की झोली में उत्तर प्रदेश आ जाता है तो यह केन्द्र की आगे की राजनीती के लिए भाजपा का बड़ा मास्टर स्ट्रोक साबित हो सकता है | यही नहीं राजनाथ को आगे कर भाजपा समाज के हर तबके को अपने पक्ष में कर सकती है | राजनाथ सिंह भाजपा के वरिष्ठ नेताओं में शामिल हैं संघ उन पर मेहरबान रहा है शायद इसी के चलते उन्हें मोदी सरकार में गृह मंत्री का पद मिला | प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी उनके काम से काफी खुश हैं | भाजपा के विपक्ष में रहने के दौर में वह पार्टी के अध्यक्ष भी रहे हैं लिहाजा उनके अनुभव का पूरा लाभ भाजपा यू पी में लेने की तैयारी में है । राजनाथ के पक्ष में एक बात यह भी है कि उनकी छवि बेदाग है और वह समाज के हर तबके में सर्व स्वीकार्य हैं | कार्यकर्ताओं के लिए हमेशा घर के दरवाजें खुले रखने और लगातार संपर्क व संवाद रखने के कारण प्रदेश के कार्यकर्ताओं में राजनाथ सिंह की स्वीकार्यता बहुत ज्यादा है। उनमे सरकार सुचारु चलाने का अनुभव भी है। पार्टी के रणनीतिकारों की मानें तो उनके चेहरे को आगे करके चुनाव लड़ने से भाजपा को लाभ भी हो सकता हैं। राजनाथ के सहारे भाजपा सवर्णों , अति पिछड़ों व अति दलितो को भी अपने पक्ष में मोड़ सकती है साथ ही अल्पसंख्यकों के बीच भी उनकी अ़च्छी छवि है।
भाजपा का एक तबका वरुण गांधी के लिए लाबिंग कर रहा है लेकिन वरूण को लेकर पार्टी के भीतर एक राय नहीं बन पा रही है । भाजपा अगर ध्रवीकरण का कार्ड यू पी में खेलती है तो इस बात को लेकर असमंजस है कि उन्हें सीएम का चेहरा घोषित करने से मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण न हो जाए। यही समस्या आदित्यनाथ के साथ भी आ रही है जिनकी कट्टर हिन्दुत्ववादी छवि यू पी के सामाजिक समीकरणों की न केवल मुश्किल बड़ा सकती है बल्कि पी एम मोदी की सबका साथ सबका विकास की छवि को नुकसान पहुंच सकता है । यू पी चुनाव की उलटी गिनती शुरू है । अब ऐसी सूरत मे राजनाथ सिंह ही उत्तर प्रदेश में भाजपा का बड़ा ट्रम्प कार्ड साबित हो सकते हैं । ऐसे हालातो में राजनाथ के सामने सबसे बड़ी चुनौती यू पी में भाजपा की सरकार बनाना रहेगी । अटल बिहारी को प्रधानमंत्री बनाने में आडवानी उनके सारथी थे वहीँ राजनाथ मोदी के सारथी 2014 के लोक सभा चुनाव मे रह चुके हैँ । यू पी में भाजपा के पास इस दौर में राजनाथ को आगे करने की पहल अब ज्यादा कारगर साबित हो सकती है । कल्याण सिंह के राजस्थान के राज्यपाल बनने के बाद यू पी भाजपा में किसी सर्व मान्य नेता के नाम पर सहमति नहीं बन पा रही है तो राजनाथ को भी यू पी में अब कल्याण सिंह , केसरीनाथ त्रिपाठी , लाल जी टंडन और कलराज मिश्र जैसे नेताओं से कोई खतरा नहीं रह गया है । बेशक पी एम मोदी बेशक बनारस से सांसद हैं लेकिन वह भी यू पी की बिसात के केंद्र में हैं लेकिन यू पी का मिजाज अन्य राज्यों से अलग है वहां किसी को प्रोजेक्ट करना ही होगा । ऐसे में संघ के दवाब मे अब राजनाथ सिंह के चेहरे को आगे करने पर जोर दिया जा रहा है ।
2012 के विधान सभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को 29.13, बीएसपी को 25.91,बीजेपी को 15 और कांग्रेस को 11.65 प्रतिशत वोट मिले थे। इन वोटों के सहारे समाजवादी पार्टी 224, बसपा 80, भाजपा 47 और कांग्रेस 28 सीटों पर जीतने में सफल रही थी । फिर 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर में सपा-बसपा और कांग्रेस के तोते उड़ गये। विधान सभा चुनाव के मुकाबले बीजेपी के वोट प्रतिशत में 27 प्रतिशत से अधिक का इजाफा हुआ और 42.63 प्रतिशत वोट मिले। वहीं सपा के वोटों में करीब 7 प्रतिशत और बीएसपी के वोटों में 6 प्रतिशत गिरावट दर्ज की गई। कांग्रेस की स्थिति तो और भी बदत्तर रही। उसे 2012 के विधान सभा में मिले 11.65 प्रतिशत वोटों के मुकाबले मात्र 7.58 प्रतिशत वोटों पर ही संतोष करना पड़ा। वोट प्रतिशत में आये बदलाव के कारण बसपा का खाता नहीं खुला वहीं समाजवादी पार्टी 5 और कांग्रेस 2 सीटों पर सिमट गई थी। बीजेपी गठबंबधन के खाते में 73 सींटे आईं जिसमें 71 बीजेपी की थीं और 2 सीटें उसकी सहयोगी अपना दल की थीं। राजनाथ को यह समझना जरुरी है अगर 2014 के लोक सभा चुनाव का करिश्मा पाटी को यू पी में दोहराना है तो सभी को एकजुट रखने की बड़ी चुनौती भी अब उनके सामने है । वहीँ संघ भी अगर राजनाथ को आगे करने का मन बना चुका है तो भाजपा के लिए बिसात बिछाने की जिम्मेदारी राजनाथ के कंधो पर देनी होगी क्युकि यू पी बड़ा प्रदेश है और दिल्ली का रास्ता यू पी से ही गुजरता है । ऐसे में राजनाथ की राह में गंभीर चुनौती है । राजनाथ राजनीती की राहों पर अक्सर लड़खड़ाते भी रहे हैं। उनका ग्राफ उठता गिरता रहा है । राजनाथ के राजनीतिक सफर का श्रेय पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को भी जाता है। राजनाथ एक समय पर अटल के प्रिय नेता भी हुआ करते थे। 2009 के लोकसभा चुनावों में भाजपा की तरफ से लालकृष्ण आडवाणी को पार्टी का चेहरा बनाया गया था लेकिन मतदाताओं को आडवाणी के नेतृत्व पर पर्याप्त भरोसा नहीं था। हार का सारा ठीकरा राजनाथ पर फोड़ा गया । यू पी में कल्याण सिंह के साथ पार्टी के रिश्ते कड़वे होने में राजनाथ ने बड़ी भूमिका निभाई । उसी समय उत्तर प्रदेश में भाजपा के तीन अन्य बड़े नेताओं कलराज मिश्र, लालजी टंडन और ओम प्रकाश सिंह को भी राजनाथ ने ही किनारे कर दिया। इसके अलावा वरुण गांधी का समर्थन करने में उन्होंने जरूरत से ज्यादा सक्रियता दिखाई और शहरी क्षेत्रों में वोटरों को पार्टी से दूर भगा दिया था। इतना ही नहीं उत्तर प्रदेश में पार्टी के संगठनात्मक स्तर पर पूरी तरह निष्क्रिय हो जाने का श्रेय भी उन्हें ही दिया जाता है लेकिन पार्टी में उनके आलोचक इस बात को भूल जाते हैं कि राजनाथ खुद संघ के चहेतों में आज भी हैं। संघ के भारी दबाब के बाद राजनाथ को 200 5 में आडवाणी का उत्तराधिकारी बनाया था। उस समय ही राजनाथ खुद को संघ का वफादार साबित कर चुके थे । अपने पहले कार्यकाल में राजनाथ सिंह ने भाजपा पर पकड़ मजबूत करने में संघ की काफी मदद की थी। इस दौरान उन्होंने खुद को भी पार्टी के अंदर मजबूत किया। 2005 -2009 और 2013 -02014 में राजनाथ संघ के अनुनय के बाद ही पार्टी के अध्यक्ष बने। संघ के चहेते राजनाथ सिंह में उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार में शिक्षा मंत्री भी रह चुके हैं। उन्होंने बतौर शिक्षा मंत्री नकल-विरोधी कानून लागू करवाया था। राजनाथ ने ही वैदिक गणित को यूपी बोर्ड के पाठ्यक्रम में शामिल करवाया था। राजनाथ सिंह के विरोधी यह प्रचार करते हैं कि वह जननेता नहीं हैं और 1977 की जनता लहर के बाद उन्होंने सीधे जनता से कोई चुनाव नहीं जीता सिवाय जब वह यू पी के मुख्यमंत्री थे लेकिन उनके विरोधी यह भूल जाते हैं कि आज भाजपा में मोदी के बाद वह सबसे प्रभावी हैं । उन्होंने गाजियाबाद से पिछला लोकसभा चुनाव जीत कर अपने विरोधियों को करारा जवाब भी दे दिया है । मौजूदा दौर में अगर भाजपा को यू पी में वापसी करनी है, तो राजनाथ को फूंक फूंक कर कदम रखने होंगे । 2005 से 2016 के दौरान भाजपा में राजनाथ ने काफी उतार चढ़ाव देखे हैं और दिखा दिया कि चाहे मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी हो या केंद्रीय मंत्री या फिर पार्टी अध्यक्ष की कमान, वह कुशलता से हर जिम्मेदारी निभा सकते हैं। राजनाथ सिंह पहले भी विभिन्न संकटों के बीच पार्टी में सरताज बनकर उभरे हैं जिसमे संघ ने रजामंदी करने में महत्वपूर्ण भुमिक निभायी । अब अगर राजनाथ सिंह यू पी में कार्यकर्ताओं को एकजुट करने में कामयाब होते हैं और सरकार बना लेते हैं तो यह उनके साथ- साथ भाजपा का भी भविष्य का रास्ता तय करेगा क्युकि 2017 का यू पी चुनाव भाजपा के लिए एक बड़ा टर्निंग पॉइंट साबित हो सकता है । देखना दिलचस्प होगा क्या राजनाथ सिंह इस बार भाजपा की यू पी के मुख्यमंत्री पद की बिसात मे तुरूप का इक्का बन पाते हैं ?
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