Monday 25 February 2019

छवि बदलने को बेकरार मोहम्मद बिन सलमान

     
            
आमतौर पर  सऊदी अरब का नाम जेहन में आते ही शेखों की अलग तरह की छवि बनती है और विलासिता पूर्ण जीवन होने के चलते यहाँ की फिजा में एक अलग तरह की शांति देखने को मिलती है शायद यही वजह है यहाँ पर मजदूर कामगारों की तादात बहुत ज्यादा है  इसीलिए यहां करीब कई  दशकों से कोई राजनीतिक हलचल नहीं हुई  लेकिन 2015  में जब से नए किंग सलमान ने सत्ता संभाली  तब से यहां राजनीतिक उथल-पुथल जारी है। असल में वजह भी सलमान बने हैं  जिन्होंने सऊदी से संबंधित कई बड़े फैसले  अपनी ताजपोशी के बाद  से लिए हैं।  आमतौर पर यह माना जाता है सऊदी अरब का समाज बहुत ही रूढ़िवादी  है लिहाजा यहाँ  कटटरपंथ किसी भी बदलाव को स्वीकार नहीं करता लेकिन मोहम्मद बिन सलमान ने अपने कार्यकाल में  भ्रष्टाचार को लेकर कई अहम फैसले लिए हैं जिससे जाहिर होता है कि वह सऊदी अरब को आधुनिक विचारों का देश बनाना चाहते हैं और अपनी खुद की छवि को  बदलने के लिए वह  बेकरार हैं और पूरी दुनिया घूमकर वह सऊदी अरब को लेकर एक नई  लकीर खींचना चाहते हैं | 

 मोहम्मद बिन सलमान सऊदी को आधुनिक बनाने और अपने सेक्युलर बनाने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन  रूढिवादी  लोग मोहम्मद बिन सलमान की आलोचना करने से बाज नहीं आते |  उन्हें लगता है कि वो बहुत तेजी से फर्राटा भर  रहे हैं | अरब संकट पर नजर रखने वाले जानकारों को लगता है  वह अपने ताबड़तोड़ कदमों और कूटरनीति  के आसरे  भ्रष्टाचार पर जीरो टालरेन्स  चाहते हैं और विदेश नीति के मोर्चे पर अपनी बिसात मजबूत करना चाहते हैं  | 

सऊदी अरब पश्चिम एशिया का एक महत्वपूर्ण देश है और तेल की मेहरबानी से उसकी हैसियत दुनिया में काफी ऊंची है लेकिन यह हैसियत इस समय कुछ डांवाडोल है, क्योंकि एक तो अभी तेल की कीमतें बहुत ऊंचे स्तर पर नहीं हैं |  घटते तेल के दामों और यमन की लड़ाई की वजह से सऊदी अरब के पास नकदी बहुत कम हो गई है । सऊदी अरब को 1979 से ईरान से तगड़ी चुनौती मिल रही है जहां शिया विचारधारा का वर्चस्व है और जिसका वहाबियों के साथ छत्तीस का आंकड़ा है। पश्चिम एशिया का सामरिक माहौल मुख्य रूप से दो संघर्ष बिंदुओं पर टिका हुआ है। एक तो अरब-इज़राइल संघर्ष जिसमें तल्खी कम हो रही है और दूसरे, शिया-सुन्नी  विवाद जो समय के साथ और ज्यादा बढ़ता जा रहा है। आईएसआईएस  की पराजय और सीरियाई गृहयुद्ध में ईरान-रूस-सीरिया की तिकड़ी के दबदबे ने ईरान के लिए रणनीतिक लाभ की राह खोली है। इसे अमेरिका, इजराइल और सऊदी अरब अपने लिए खतरनाक मान रहे हैं शायद यही वजह है तीनो अपना नया त्रिकोण अपनी बिसात बिछाने के अनुरूप बिठा  रहे हैं |   

जनवरी 2015  में किंग अब्दुल्लाह बिन अब्दुल अजीज की मौत हो गई। इसके बाद मोहम्मद बिन सलमान के पिता सलमान 79  वर्ष की उम्र में किंग बने थे। किंग सलमान ने सत्ता संभालते ही अपने बेटे मोहम्मद बिन सलमान को सत्ता के करीब करते हुए रक्षा मंत्री बना दिया। रक्षा मंत्रालय का पदभार संभालते ही मोहम्मद बिन सलमान ने मार्च 2015  में यमन के साथ युद्ध की घोषणा  कर दी। हूती विद्रोहियों ने राजधानी सना सहित यमन के कई इलाकों पर कब्जा कर लिया और यमन के राष्ट्रपति अब्दुर रहमान मंसूर को देश से भागने के लिए मजबूर कर दिया था। उस वक्त सऊदी ने यमन के राष्ट्रपति को आश्रय दिया था। सऊदी सैन्य गठबंधन ने इसी के बाद हूती विद्रोहियों को निशाना बनाना शुरू कर दिया। सऊदी अरब के इस कदम की मानवाधिकारों ने निंदा की थी।  शाह सलमान ने  एक दौर में  अपने भतीजे शहजादा नायेफ को युवराज और गृहमंत्री के पद से हटा दिया था उनकी जगह पर अपने बेटे मोहम्मद बिन सलकान को युवराज घोषित किया  तब से मोहम्मद बिन सलमान की ठसक सऊदी  अरब में बढ़ी है । मोहम्मद बिन सलमान ने अपने कार्यकाल में अहम फैसलों में अमेरिका के साथ  न केवल  रक्षा खरीद का करार किया बल्कि  सऊदी और अमेरिका के बीच करीब 100 अरब डॉलर के टैंक , आर्टिलरी , हेलीकॉप्टर और  मिसाइलों की बिक्री के करार की घोषणा की।

 अप्रैल 2016  में प्रिंस सलमान ने बड़े पैमाने पर आर्थिक विकास और सामाजिक सुधार शुरू किए जिसका मुख्य उद्देश्य था सऊदी अरब की तेल पर निर्भरता को कम करना था यही नहीं मोहम्मद बिन सलमान ने विजन 2030  नाम से देश में एक नई परियोजना शुरू की जिसके तहत 2020  तक सऊदी अरब की तेल पर निर्भरता खत्म हो जाएगी। उन्होंने इसके लिए रेगिस्तान में आधे खरब डॉलर का एक बड़ा शहर बसाने की योजना बनाई है। इस शहर में औरतों और मर्दों को एक दूसरे से मिलने-जुलने की आजादी होगी। इससे पहले इस रूढ़िवादी समाज में ऐसी बातें कभी नहीं सुनी गई थीं। सऊदी अरब को आधुनिक बनाने के पीछे एक मंशा ईरान के ख़िलाफ़ चल रहे संघर्ष में पश्चिमी देशों ख़ासकर अमरीका का समर्थन हासिल करना भी है|  

अपनी ऐसी पहल से बिन सलमान ये संदेश  दिया है  कि उनके देश में धार्मिक चरमपंथ अब ख़ात्मे की तरफ़ बढ़ रहा है | बिन सलमान के पास आने वाले समय के लिए भी योजनाएं हैं | वह स्टॉक मार्केट में दुनिया की सबसे बड़ी तेल कंपनी अरामको के शेयर बेचना चाहते हैं साथ ही उनकी मंशा  500 अरब डॉलर से बनने वाला बेहद आधुनिक निओम शहर बसाने की है  जिसका सारा काम रोबोट संभालेंगे | यही नहीं  उनका इरादा 2030 तक सऊदी अरब की तेल पर निर्भरता घटाने केलिए एक बड़ी कार्ययोजना को भी अंजाम तक पहुँचाना चाहते हैं | एक दौर ऐसा था जब सऊदी अरब दुनिया का एकमात्र ऐसा देश था जहां औरतों को गाड़ी चलाने की इजाजत नहीं थी लेकिन अब ये प्रतिबंध खत्म हो गया और यह भी सलमान के दौर में ही हुआ है |  एक ऐसे देश में  महिलाओं को गाड़ी चलाने के लिए लाइसेंस मिलने लगा है जो अपनी रूढ़िवादी और पर्दा प्रथा के चलते पहले महिलाओं को घरों से बाहर  निकलने से रोकता था  |  यह प्रिंस सलमान का ही दौर रहा जिन्होंने महिलाओं की आज़ादी की खुली वकालत कर डाली | 

2015 में किंग सलमान ने जब सऊदी की सत्ता संभाली थी उस वक्त उनके बेटे मोहम्मद बिन सलमान को कम ही लोग जानते थे। लेकिन बीते बरसों  में किंग सलमान अपने बेटे को को बहुत आगे लाए हैं। दरअसल  मोहम्मद सलमान ने कहा था कि देश को आधुनिक बनाने की योजना के तहत वह उदार इस्लाम की वापसी चाहते हैं। बीते बरस  उन्होंने आर्थिक और सामाजिक बदलाव लाने के लिए बड़े  सुधारों का पिटारा खोला था |  

सऊदी को भ्रष्टाचार मुक्त करने के युवराज मोहम्मद बिन सलमान को देश के सुरक्षाबलों को पूरी आज़ादी भी दे डाली | मोहम्मद बिन सलमान सऊदी पर पूर्ण नियंत्रण चाहते हैं। वह किसी भी ऐसे व्यक्ति को शीर्ष पद पर नहीं रहने देना चाहते जो उन्हें चुनौती दे सके। सऊदी नागरिकों में खासकर युवाओं में  मोहम्मद बिन सलमान काफी लोकप्रिय हैं  लेकिन बुजुर्ग और पुराने रूढ़िवादी उन्हें कम पसंद करते हैं। रूढ़िवादियों का कहना है कि वो कम समय में देश में अधिक बदलाव करना चाहते हैं वहीँ  सऊदी के युवा मानते हैं प्रिंस सलमान 50  वर्षों तक देश के किंग रह सकते हैं।

 भारत यात्रा पर बीते दिनों आए  मोहम्मद बिन सलमान ने कहा कि आतंकवाद और कट्टरपंथ हमारी साझी चिंता है। वह  इसके खिलाफ भारत के साथ हर संभव  सहयोग करेंगे। यही नहीं  सऊदी अरब ने आतंकवाद के खिलाफ जंग में साथ देने और खुफिया सूचनाएं साझा करने पर भी अपनी  सहमति जताई । इससे पहले ईरान और अफगानिस्तान का रुख भी पाकिस्तान के खिलाफ ही रहा है। भारत से पहले युवराज मोहम्मद बिन सलमान पाकिस्तान भी गए। यहाँ  उनका कार्यक्रम वैसे तो तीन दिन का था लेकिन पुलवामा हमले के चलते यह 2 दिन का ही रहा |  सलमान ने कर्ज में डूबे पाक को 20 बिलियन राहत पैकेज देने के लिए निवेश सौदों पर भी हस्ताक्षर किये वह भी ऐसे समय में जब पुलवामा हमले के बाद से पाक पूरी दुनिया की अआंखों में खटक रहा है |

  सऊदी अरब ने भारत के साथ सौ बिलियन डॉलर का निवेश करने पर सहमति जताई है | सऊदी के प्रिंस क्राउन सलमान बिन ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से भी मुलाक़ात की और  सऊदी की तेल कंपनी अरामको ने चीन में 10 अरब डॉलर की लागत से रिफाइनरी व पेट्रोकेमिकल कांप्लेक्स विकसित करने के करार पर हस्ताक्षर किए। इसके अलावा दोनों देशों ने 28 अरब डॉलर मूल्य के अन्य 35 आर्थिक करार पर हस्ताक्षर किए। अरामको चीन में एक रिफाइनरी विकसित करेगा जिसमें तीन लाख बैरल रोजाना तेल शोधन किया जाएगा। इसके अलावा 15 लाख टन सालाना इथिलीन क्रैकर और 13 लाख टन सालाना पैराक्सीलीन बनाने की इकाई चीनी की नोरिनको कंपनी समूह और पन्जीन सिनसेन के साथ लगाई जाएगी | 

नई कंपनी में हुआजिन अरामको पेट्रोकेमिकल में सऊदी की कंपनी की 35 फीसदी हिस्सेदारी होगी, जबकि नोरिको और पन्जीन सिनसेन की हिस्सेदारी क्रमश: 36 फीसदी और 29 फीसदी होगी। अरामको इस कंपनी को 70 फीसदी कच्चे तेल की आपूर्ति करेगी। कंपनी का संचालन 2024 से शुरू किये जाने की संभावना जताई जा रही है । 

 सऊदी अरब पाक संबंधों में  शुरुवात से ही गर्माहट रही  है | वजह  पाकिस्तान उसके  हथियारों का सबसे बड़ा आयातक है। पाकिस्तान ने जब परमाणु परीक्षण किया था तो सऊदी ने  सबसे पहले इसका खुलकर समर्थन किया था। सऊदी अरब ने 1998 से 1999 तक पाकिस्तान को 50 हजार बैरल तेल मुफ्त में दिया था। सऊदी ने ऐसा तब किया जब उस पर कई तरह के प्रतिबंध लगे थे। अफगानिस्तान से रूसी सेना वापस गई तो संयुक्त अरब अमीरात के अलावा सऊदी अरब एकमात्र देश था जिसने काबुल में तालिबान शासन का समर्थन किया था। इसके साथ ही कश्मीर मसले पर भी सऊदी अरब पाकिस्तान के साथ रहा है | 

सऊदी अरब की पाकिस्तान के साथ दोस्ती  बहले ही पहले जैसी रही हो  लेकिन वह  भारत की भी उपेक्षा भी  नहीं कर सकता क्युकि  आज भारत की हैसियत दुनिया के मुल्कों में बड़ी है जिसकी वजह भारत की  बड़ी उभरती  ताकत है |   सऊदी अरब ने अपने मौजूदा  आर्थिक हितों को साधने के लिए  भारत ,  पाक  और चीन को भी  साथ रखा है । सऊदी अरब का भारत के लिए बहुत सामरिक-रणनीतिक महत्व है। भारत की ऊर्जा सुरक्षा में उसकी बड़ी अहमियत है, क्योंकि इराक को  छोड़कर  सऊदी भारत का सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता बन गया है। पश्चिमी एशिया और खासतौर से सऊदी अरब में भारतीय बड़ी संख्या में कार्यरत हैैं। इस क्षेत्र में कार्यरत करीब 80 लाख भारतीयों में से अकेले 28 लाख तो सऊदी में ही हैं, जो भारत में हर साल  अरब डॉलर भेजते हैं।

 भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए  यह  खासी सुकून वाली खबर है | भारत और सऊदी अरब आर्थिक रूप से एक दूसरे के लिए काफी अहम हो गए हैं। 2014-15 में दोनों देशों देशों के बीच 39.4 अरब डॉलर का व्यापार हुआ था। दूसरी तरफ पाकिस्तान और सऊदी के बीच महज  6 अरब डॉलर का ही व्यापार हुआ। भारत और सऊदी में आर्थिक संबंध काफी मजबूत हैं, लेकिन पाकिस्तान और सऊदी के बीच रक्षा सम्बन्ध  मजबूत  हैं।अब भारत बाकी के खाड़ी देशों से रक्षा सम्बन्ध  भी बढ़ रहे हैं। 

प्रधानमंत्री मोदी भी सऊदी के दौरे पर  गए थे और उनका शाही इस्तेकबाल गर्मजोशी से हुआ था। यही नहीं मोदी को सऊदी का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भी दिया गया था।  सलमान की भारत यात्रा   के बाद  भारत और सऊदी के बीच रिश्ते और मजबूत होंगे इससे इंकार नहीं किया जा सकता लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए आने वाले दिनों में  सऊदी अरब की कोई भी  राजनीतिक अस्थिरता हमारी  अर्थव्यवस्था को भी  कमजोर कर सकती  है जिसके चलते  नौकरियों पर संकट खड़ा हो सकता है । अगर यह अस्थिरता  ज्यादा बढ़ती है तो फिर भारतीयों को वहां से निकालने के अलावा और कोई चारा नहीं होगा, जैसा कि वर्ष 2015 में यमन में किया गया था। इतने बड़े पैमाने पर लोगों के रोजगार खत्म होने से लाखों परिवार संकट में आ जाएंगे और भारत में भी इसके खतरनाक सामाजिक प्रभाव महसूस किए जाएंगे। हालाँकि सलमान के रहते यह आशंकाएं  निर्मूल साबित होंगी लेकिन  अपने हितों की पूर्ति के लिए भारत को एक संतुलन साधन होगा।

No comments: