लोकसभा के हालिया चुनाव मे भाजपा को प्रचंड जीत दिलाने वाले अमित शाह भाजपा में अब सबसे ताकतवर अध्यक्ष बन गए हैं । इसके साथ ही पार्टी और सरकार पर उन्होने अपनी पकड़ मजबूत कर ली है । अब पोटली और ब्रीफकेस के सहारे राजनीति करने वालों की नींद उड़ गई है। कारण अमित शाह है क्युकि उनकी रणनीति के आधार पर अब हर राज्य मे चुनावी बिसात ना केवल बिछाई जा रही है बल्कि बूथस्तर पर अपने कुशल प्रबंधन से शाह हारी हुई बाजी को जीतने का माद्दा भी रखते हैं शायद यही वजह है इस दौर मे शाह को चुनावी राजनीति का असल चाणक्य भी कहा जाने लगा है | प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ उनकी जुगलबंदी हर असंभव काम को संभव करने का हौसला रखती है। भाजपा को प्रचंड विजय दिलाने के बाद पार्टी में मोदी और शाह की जोड़ी एक बार फिर सब पर भारी दिखाई दी है | यह कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं अमित शाह अब भाजपा मे सबसे ताकतवर अध्यक्ष बन चुके हैं।
भारतीय जनसंघ के दौर मे भाजपा मे अटल और आडवाणी की जोड़ी खूब बनी | पोस्टरों से लेकर पार्टी के बैनरों तक में इस जोड़ी ने खूब जगह बनाई | इंडिया शाइनिंग के नारों के बीच भाजपा मे पंचसितारा संस्कृति को बढ़ावा देने की बातें भी उठी लेकिन अटल बिहारी बाजपेयी के राजनीति से सन्यास के बाद आडवाणी पार्टी के कार्यकर्ताओं और जनता मे वह भरोसा और विश्वास नहीं जगा पाये जैसा हाल के बरसों मे मोदी और शाह की जोड़ी ने जगाया है | अटलबिहारी और आडवाणी के दौर मे जो करिश्मा भाजपा पूरे देश की सियासी जमीन मे राम मंदिर के दौर मे नहीं कर सकी वह करिश्मा मोदी शाह जोड़ी ने करके तमाम विरोधी राजनीतिक दलों को इस चुनाव में पानी पिला दिया | मोादी को दुबारा पी एम बनाकर फतह करने के बाद आधुनिक राजनीति के असल चाणक्य के तौर पर भारतीय राजनीति मे एक शख्स को सही मायनों मे स्थापित कर दिया है | उस चाणक्य का नाम अमित शाह है जिनके करिश्मे के बूते 2014 मे भाजपा ने प्रचंड जीत दर्ज करवाई थी और अब 2019 में दुबारा कमल खिलाकर पूरे देश मे भाजपा की पताका लहरा दी है | आप मोदी और शाह के लाख आलोचक रहे हों लेकिन यह तो मानना पड़ेगा चुनावी राजनीति में हाल के वर्षों मे अपने कुशल प्रबंधन और चुनावी बिसात से शाह और मोदी की जोड़ी ने भारतीय राजनीति के रुख को ही बदलकर रख दिया है | मोदी जहां इन्दिरा के बाद सबसे प्रभावशाली पी एम बनने की दिशा मे मजबूती के साथ बढ़ रहे हैं वहीं अमित शाह चुनावी चाणक्य के रूप मे एक के बाद एक वह करिश्मा करते जा रहे हैं जिसकी उम्मीद किसी को नहीं थी | हाल के वर्षों मे अमित शाह ने कई राज्यों में न केवल अपनी पार्टी की उपस्थिति दर्ज करवाई है बल्कि वोट प्रतिशत भी बढ़ाया है |
शाह का जन्म 22 अक्तूबर 1964 को मुंबई में हुआ | महज 14 वर्ष की छोटी आयु में शाह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में शामिल हुए और यहीं से उनकी उभार शुरू हुआ जहां उन्होंने एबीवीपी की सदस्यता ली | 1982 में अमित शाह अहमदाबाद में छात्र संगठन एबीवीपी के सचिव बन गए | 1997 में वह भारतीय जनता युवा मोर्चा के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष बने | | साइंस से स्नातक अमित शाह कॉलेज में छात्र नेता रहे। संघ की शाखाओं में बचपन से ही जाते थे और राजनीति में आने से पहले एक स्टॉक ब्रोकर थे। शाह के करीबी कहते हैं कि उन्होंने धीरूभाई अंबानी और अन्य धनी व्यापारियों से प्रेरित होकर प्लास्टिक का धंधा शुरू किया था लेकिन जल्द ही उन्हें लगने लगा कि बिना सरकारी मदद के कोई भी बड़ा उद्योग खड़ा करना मुश्किल है। जानकार बताते हैं कि एक वरिष्ठ संघ प्रचारक ने 26 बरस के युवा शाह को उस समय संघ और भाजपा में अपनी पैठ बना नरेंद्र मोदी से मिलवाया था। मोदी उन दिनों अपनी टीम बना रहे थे। उन्हें युवा शाह के आत्मविश्वास ने काफी प्रभावित किया। शाह ने मोदी से लालकृष्ण आडवाणी का चुनाव प्रचार संभालने की इच्छा जताई। जिम्मेदारी मिल जाने के बाद शाह ने उसे बखूबी निभाया भी। आडवाणी के उस चुनाव के बाद शाह ने पार्टी में अच्छी पहचान बना ली। भाजपा और गुजरात की राजनीति को करीब से देखने वाले कई लोग मोदी और शाह के रिश्ते को 80 और 90 के दशक में आडवाणी और मोदी के रिश्ते जैसा बताते हैं। शायद यही कारण है कि मोदी को शाह में अपने उस युवा जोश की झलक दिखी और उन्होंने अपना अभिन्न सहयोगी बना लिया।
2001 में जब केशुभाई पटेल को हटाकर मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री बने तो उससे पहले ही उन्होंने अमित शाह को एक कद्दावर नेता बना दिया था। शाह 1995 में गुजरात स्टेट फाइनेंसियल कॉरपोरेशन के चेयरमैन बनाए गए। इस पद पर रहते हुए वह कुछ खास असर नहीं दिखा पाए लेकिन यहां रहते हुए उनकी नजर गुजरात के कोऑपरेटिव बैंक सेक्टर पर पड़ी। बस कुछ दिनों में वह अहमदाबाद डिस्ट्रिक्ट कोऑपरेटिव बैंक के मुखिया बन गए। उन्हीं दिनों गुजरात में मोदी का बढ़ता विरोध देखकर पार्टी ने उन्हें दिल्ली बुला लिया। लेकिन गुजरात में रहते हुए शाह मोदी के आंख-कान बने रहे और गुजरात की राजनीति की पल-पल की खबर उन्हें पहुंचाते रहे। शाह ने इस दौरान गुजरात के कोऑपरेटिव बैंक और मंडलियों पर जिस पर कई बरस से कांग्रेस का कब्जा था अपनी पकड़ मजबूत करनी शुरू कर दी।
वर्ष 2002 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की दोबारा सरकार बनी तो क्षमता सूझबूझ और वफादारी देखते हुए सरकार में सबसे कम उम्र के शाह को गृहराज्य मंत्री बनाया गया। शाह को सबसे अधिक दस मंत्रालय दिए गए और उन्हें दर्जनों कैबिनेट समितियों का सदस्य बनाया गया। उन दिनों यह चर्चा थी कि शाह पर यह मेहरबानियां केशुभाई को हटाने में मदद करने के इनाम के रूप में की गई थीं। 2002 में ही अमित शाह को पार्टी ने गुजरात के सरखेज विधानसभा से टिकट दिया। चुनाव में वह रिकॉर्ड मतों से जीत कर आए। जीत का यह आंकड़ा नरेंद्र मोदी की चुनावी जीत से भी बड़ा था। तभी से मोदी शाह के चुनावी दांवपेंच के प्रशंसक बन गए थे और अमित शाह जल्द ही गुजरात मे मोदी के बाद सबसे बड़े नेता के तौर पर उभरे।
चाहे गुजरात की कोऑपरेटिव मंडली हो या सरकारी- निजी क्षेत्र के कर्मचारियों की यूनियन शाह ने भाजपा का झंडा हर जगह लहराया। इस तरह शाह मोदी के कवच बन गए। फिर चाहे पुलिस अफसर हों या विपक्ष के नेता या गुजरात भाजपा में मोदी विरोधी सभी ने सभी को मोदी के आदेश मानने को मजबूर कर दिया। अमित शाह जैसी माइक्रो मैनेजमेंट और बूथ मैनेजमेंट की क्षमता कम ही लोगों में है। इस चुनाव में भी अमित शाह ने प्रधानमंत्री से भी ज्यादा 161 ताबड़तोड़ रैलियाँ कर डाली और अपने दम पर 300 संसदीय इलाकों में अपनी धमाकेदार उपस्थिति दर्ज कराई | कहीं चुनावी सभाएं की तो कहीं रोड शो और हर जगह खुद के चेहरे के बजाय मोदी के चेहरे को ही आगे रखने की रणनीति पर काम किया | छोटी जनसभाओं के माध्यम से भाजपा के पक्ष में पूरे देश में माहौल बनाने के साथ चुनाव के हर चरण में प्रचार प्रसार की रणनीति में बदलाव किये | इस लोकसभा में उनका ज्यादा फोकस यू पी , बंगाल , उड़ीसा , राजस्थान , मध्य प्रदेश , छत्तीसगढ़ , हिमाचल , उत्तराखंड सरीखे हिंदी पट्टी के राज्य रहे जहाँ उनके सामने बड़ी चुनौती थी यहाँ से अधिक सीटें भाजपा की झोली में जाएँ जिसमे वह पूरी तरह सफल हुए | शाह भाजपा के चुनावी नारे न केवल तय करते थे बल्कि और उन्होंने अपनी रणनीति से बड़ी संख्या में लोगों तक और नए वोटरों तक पहुंचने का खाका खींचा | इस लोकसभा चुनाव में पार्टी ने देश के उत्तर, मध्य और पश्चिमी और पूर्वोत्तर के क्षेत्रों का रंग अगर भगवा किया है तो यह अमित शाह का कुशल प्रबंधन है | हालांकि बीजेपी अभी दक्षिण भारत मेंअच्छी पहचान बनाने के लिए संघर्ष कर रही है |
अमित शाह और नरेंद्र मोदी के जीवन में कई समानताएं हैं। दोनों ने आरएसएस की शाखाओं में जाना बचपन से शुरू कर दिया था और दोनों ने अपनी जवानी में अपने जोश – अनुभव और कुशलता से वरिष्ठ नेताओं को प्रभावित किया । हालांकि शाह और मोदी के जीवन में सबसे बड़ा राजनीतिक मोड़ तब आया जब उन्हें गुजरात से बाहर निकाला गया। जहां मोदी को गुजरात में उनके खिलाफ बढ़ते विरोध के चलते निकाला गया वहीं शाह को सोहराबुद्दीन शेख फर्जी एनकाउंटर केस में फंसाया गया। दरअसल उनकी ज़िंदगी का निराशाजनक दौर तब शुरू हुआ जब गैंगस्टर सोहराबुद्दीन शेख़ और उनकी पत्नी कौसर बी के कथित फ़र्ज़ी एनकाउंटर में उनका नाम आया | सोहराबुद्दीन और उनकी पत्नी को 2005 में एनकाउंटर में मार दिया गया था, उस समय अमित शाह गुजरात के गृह मंत्री थे | अमित शाह उस केस में आज बारी हो गए हैं | अमित शाह को जब गुजरात से निकाला गया तब उन्होंने अपना डेरा दिल्ली में स्थित गुजरात भवन में डाला। यहां रहते हुए वह भाजपा के बड़े नेताओं के करीब आते गए और मोदी के लिए दिल्ली आने के रास्ते तलाशते गए और गोवा मे मोदी को राष्ट्रीय कार्यकारणी की बैठक के दौरान पीएम का चेहरा बनाने मे भी अमित शाह की बड़ी भूमिका थी |
मनमोहन सरकार के किले को भेदने के लिए भाजपा जब भाजपा चुनाव को लेकर अपनी रणनीति बना रही थी तब मोदी और शाह जानते थे कि यूपी जीते बिना दिल्ली की कुर्सी पाना नामुमकिन जैसा है। तब शाह यूपी जाना नहीं चाहते थे लेकिन गुजरात में आनंदीबेन पटेल और अन्य खेमों की पार्टी में बढ़ती पकड़ देख उन्होंने यह चुनौती स्वीकार कर ली। पार्टी की यूपी की कमान संभालते ही शाह एक राज्य के नेता से राष्ट्रीय नेता बन गए। 2014 मे उत्तर प्रदेश की 73 लोकसभा सीट भी अमित शाह के कारण पार्टी ने जीती और इसके बाद तो दो तिहाई बहुमत से अमित शाह के अध्यक्ष रहते हुए पार्टी ने यू पी की पिच पर शानदार करिश्मा कर दिखाया जिसकी उम्मीद किसी को नहीं थी | साथ ही अमित शाह के अध्यक्ष रहते हुए भाजपा 10 करोड़ सदस्यों के साथ सबसे बड़ी पार्टी भी बनी जिसके आज पास कार्यकर्ताओं की भारी भरकम फ़ौज है | 2014 में जब मोदी पी एम बने तो मात्र 5 राज्यों में भाजपा की सरकार थी लेकिन आज अमित शाह के पार्टी अध्यक्ष रहते पार्टी 19 राज्यों में सत्ता में है जो उनके करिश्मे को बताने के लिए काफी है | देश में मोदी की सफलता के पीछे शाह की प्रतिभा है और मोदी का चेहरा | केंद्र मे मोदी ने 5 बरस में जिस तरह पारदर्शी सरकार चलाई उससे प्रभावित होकर जनता ने इस लोकसभा चुनाव में भाजपा को वोट किया | उसे समाज के हर तबके का लाभ मिला है साथ ही जातीय बंधन टूटे और पहली बार परिवारवाद की राजनीति ख़त्म हुई |
2014 में मिले 31 फीसदी वोट शेयर को पीछे छोड़ते हुए भाजपा इस बार 50 फीसदी से भी अधिक वोट पा गई | जम्मू-कश्मीर से लेकर केरल , बंगाल और पूर्वोत्तर तक में भाजपा का वोोग्दान को ट शेयर बढ़ा है। खास बात यह है कि 12 बड़े और प्रमुख राज्य ऐसे हैं जहां बीजेपी को 50 फीसदी से ज्यादा वोट मिले हैं। अरुणाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, हरियाणा, गुजरात, गोवा, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तराखंड और दिल्ली में पार्टी को जबर्दस्त सफलता मिली है। यूपी में सहयोगी अपना दल के साथ पार्टी के वोट शेयर का आंकड़ा 50 फीसदी को पार कर गया है जिसके पीछे अमित शाह का चुनावी प्रबंधन ही काम किया है| हिंदी पट्टी की 226 सीटों में 202 लोकसभा सीटें पार्टी ने फतह हासिल की | यही नहीं अमित शाह ने बीते बरस से ही के उन 120 लोकसभा सीटों पर ख़ास खुद का फोकस किया था जहाँ पार्टी हार गयी थी और आज पार्टी ने तकरीबन आधी सीटें अपनी झोली में ला दी हैं जिसमें उनके योगदान को नहीं नकारा जा सकता | अमित शाह ने इस चुनाव में सिटिंग गेटिंग फार्मूला भी गुजरात की तर्ज पर लगाया जिसमें 91 नए चेहरों का बड़ा दांव उन्होंने खेला जिसमें 79 लोकसभा सीटों पर कमल खिला |
5 माह पूर्व छत्तीसगढ़ , राजस्थान , मध्य प्रदेश विधानसभा चुनावों की हार से सबक लेते हुए जिस तर्ज पर शाह ने इस बार लोकसभा की बिसात बिछाई उसकी मिसाल बहुत कम देखने को मिलती है | लोकसभा चुनावों से पहले ना केवल शाह ने पूरे एन डी ए को एकजुट रखा बल्कि देश भर की ख़ाक छानकर मोदी सरकार की नीतियों को जन जन तक पहुंचाने के लिए कार्यकर्ताओं से संवाद और मीटिंगों का दौर लगातार जारी रखा | भाजपा के संगठन विस्तार में शाह की यही दूरदृष्टि काम आई | साथ ही उन्होंने आक्रामक तरीके से विपक्ष के हर सवाल का जवाब भी दिया | राम मंदिर आंदोलन के दौर मे भी भाजपा को इतनी सीटें नहीं मिली जितनी की इस बार मिली है | इस जीत ने भारतीय जनता पार्टी की स्वीकार्यता को पूरे देश में न केवल बढ़ाया है बल्कि सही मायनों मे पी एम मोदी के कद को बढ़ाने का काम किया है | नेहरू और इंदिरा के बाद मोदी ऐसे पी एम बनने जा रहे हैं जो पूर्ण बहुमत के साथ दुबारा सरकार बनाने जा रहे हैं साथ ही इस जीत ने भाजपा मे अमित शाह को आज सबसे कामयाब अध्यक्ष और आधुनिक राजनीति के चाणक्य के तौर पर पार्टी में स्थापित कर दिया है |
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