Sunday 20 June 2021

लीजेंड मिल्खा सिंह

 

                                               


 पूर्व भारतीय लीजेंड मिल्खा सिंह दुनिया से रुखसत हो गए । कोरोना रिकवरी के दौरान शुक्रवार देर रात उन्होंने आखरी  साँस ली । ठीक पाँच दिन पहले उनकी पत्नी निर्मल कौर को भी कोरोना लील गया । मिल्खा का चंडीगढ़  स्थित पी जी आई में 15 दिनों से इलाज चल रहा था । बीते 3 जून को आक्सीजन लेवेल में गिरावट के बाद उन्हें आई सी  यू में भर्ती करवाया गया था । 

 मिल्खा सिंह का जन्म 20 नवंबर 1929 को गोविंदपुरा जो अब पाकिस्तान का भाग है , एक सिख परिवार में हुआ था ।  आज़ादी में बटवारे की  आग ने लायलपुर पंजाब के खुशहाल किसान परिवार के  ऊपर  कहर ढा दिया । नफरत भरी भीड़ ने मिल्खा के सामने उनके माँ बाप दोनों का कत्ल कर दिया लेकिन भीड़ में  घिरे उनके पिता ने उन्हें भाग मिल्खा भाग का आदेश दिया , जो उनके जीवन का बाद में मानो गुरुमंत्र ही बन गया । मिल्खा पर  इस मंत्र पर ऐसा प्रभाव पड़ा मानो वो ताउम्र ज़िंदगी की दौर में भागते ही रहे और हमेशा खुद को गतिमान बनाए रखा ।  उन्हें खेल और देश से अगाथ प्रेम था लिहाजा देश के  विभाजन के बाद उन्होनें  भारत की राह चुनी और भारतीय सेना में शामिल हो गए । मिल्खा को सेना में भर्ती होने से पहले 3 बार रिजेक्ट किया गया था । उनकी ऊंचाई भी ठीक ठाक ही थी । वे दौड़े भी , मेडिकल भी पास किया लेकिन उन्हें 3 बार सेना में भर्ती के दौरान रिजेक्ट कर दिया गया लेकिन  यह भी सच है इसके बाद वो जो भी बने तो उसमें सेना की ट्रेनिंग ने ही बड़ी भूमिका निभाई । वहीं पर खेलों की ट्रेनिंग मिली और कोच भी मिले जिसके बाद मिल्खा की  ज़िंदगी ने सही मायनों में ऊंची उड़ान भरी । 

 1956 में मिल्खा ने मेलबर्न  में आयोजित ओलंपिक खेलों में भाग लिया । वो इस अंतर्राष्ट्रीय स्पदधा में कुछ खास नहीं कर पाये लेकिन इसने भविष्य के लिए रास्ते खोलने का काम किया । 1958 में कटक में आयोजित नेशनल गेम्स में 200 मीटर  और 400मीटर  में उन्होने कई रिकार्ड अपने नाम किए । इसी साल टोक्यो में आयोजित एशियाई  खेलों में 200 मीटर  और 400 मीटर में भी उन्होनें  कई रिकार्ड अपने नाम किए । 1959 में उन्हें अर्जुन अवार्ड से भी नवाजा गया ।1960 के रोम ओलंपिक में 400 मीटर दौर में वो चौथे स्थान पर जगह बनाने में सफल हुए ।  हालांकि वह पदक जीतने से बहुत दूर रहे लेकिन  इस रेस में 45.43 सेकेंड का  समय निकाला था जो एक राष्ट्रीय रिकार्ड था , जो 40 साल तक बरकरार रहा । 

 5 बार के एशियन चैंपियन मिल्खा को 1960  में  पहली बार फ्लाइंग सिख कहा गया । उन्हें यह उपनाम पाक के  तत्कालीन राष्ट्रपति आयूब खान के द्वारा दिया गया । 1960 में अयूब खान ने इंडो पाक खेल प्रतियोगिता के लिए उन्हें पाक आमंत्रित किया था । मिल्खा  अपने बचपन में जिस देश को छोड़कर आए  , वहाँ पर वो नहीं जाना चाहते थे  लेकिन तत्कालीन  पी एम नेहरू के कहने पर भारतीय दल के लीडर के तौर पर प्रतिनिधित्व करने को राजी हुए ।  मिल्खा ने 200 मीटर स्प्रिंट में पाक के सुपर स्टार अब्दुल खलीक  को आसानी से हराकर स्वर्ण पदक अपने नाम किया और भारत देश का झण्डा पाक में बुलंदियों पर पहुंचा दिया ।  स्टेडियम में उस वक्त मौजूद सभी  दर्शक  मिल्खा के प्रदर्शन को देखकर हैरत में  पड़ गए । इस जीते के खास  मौके पर  जनरल अयूब खान ने उन्हें फ्लाइंग सिख कहकर पुकारा । पाक जरनल अयूब खान ने तब मिल्खा की पीठ ठोकते हुए कहा था मिल्खा इस आज की  इस रेस में तुम दौड़े ही नहीं तुम हवा में उड़ते  गए यहीं से मिल्खा फ्लाइंग सिख के नाम से मशहूर हुए । 

 2001 में उन्हें अर्जुन अवार्ड देने की घोषणा  भी की गयी थी लेकिन उन्होने इसे लेने से इंकार कर दिया । बाद में उन्होने इसकी वजह बताते हुए कहा आजकल देश में अवार्ड प्रसाद की तरह बांटे जाते हैं । मुझे पद्मश्री अवार्ड मिलने के बाद अर्जुन अवार्ड के लिए चुना  गया,  यह मैं कैसे बर्दाश्त कर सकता था । मिल्खा ने 1959 में राष्ट्रमंडल खेलों में भारत के लिए पहला स्वर्ण पदक अपने  नाम किया था ।  मिल्खा सिंह  ने 1962  जकार्ता एशियन  खेलों में लागातार 2 स्वर्ण पदक अपने नाम किए । उन्होने 400 मीटर रेस और 400 मीटर रिले रेस में भी स्वर्ण पदक अपने नाम किया था । इससे पहले 1958 एशियाई खेलों में 200 और 400 मीटर में भी स्वरण पदक जीता था । 56 बरस तक यह रिकार्ड कोई तोड़ नहीं सका । 2010 में कृष्ण पूनीया  ने 2010 डिस्कस थ्रो में स्वर्ण पदक हासिल किया था ।  

4 मार्च 2018 में पंजाब विश्व विद्यालय में हुए  दीक्षांत समारोह में मिल्खा को खेल रत्न  अवार्ड से नवाजा गया था  । अवार्ड मिलने के के बाद मिल्खा ने कहा था वो चाहते हैं कि उनके  मरने से पहले  कोई ओलंपिक मेडल जीतकर ले आए । उन्होने कहा था 90 साल का हो गया हूँ लेकिन दिल में ख्वाईश है कोई देश के लिए स्वर्ण पदक ओलंपिक में जीते और भारत का झण्डा लहराये ।  मिल्खा  सिंह कई बार ये कहते हुए सुने जा सकते जितनी भूख हो , उससे आधा खाइये क्योंकि बीमारियाँ पेट से शुरू होती हैं । खून शरीर में तेजी से बहेगा तो बीमारियाँ भगा देगा ।  वो  अपने  बेटे जीव मिल्खा  को कभी स्पोर्ट्स पर्सन नहीं बनाना चाहते थे ।  वह भी तब जब  उनकी पत्नी  निर्मल कौर भी खुद  एक दौर में वालीबाल की राष्ट्रीय कप्तान रह चुकी थी । अपने बेटे जीव  मिल्खा  को वो कुछ प्रोफेशनल डिग्री दिलाना चाह  रहे थे लेकिन आपकी  किस्मत में  ऊपर वाले ने जो जो लिखा होता है उसे कोई टाल ही नहीं  सकता । जब उनके बेटे को शिमला के स्कूल में भेजा तो उसने जूनियर गोल्फ में नेशनल जीता फिर अंतर्राष्ट्रीय स्पर्धा के लिए लंदन और अमरीका की राह को पकड़कर 4 बार यूरोप की चैम्पियनशिप अपने नाम की और फिर उसे भी पदम श्री मिल गया ।   

मिल्खा  सिंह पर आज  हर भारतवासी को बहुत गर्व है। वह भी तब जब  बाज़ार और  मीडिया ने खेल को उद्योग का बड़ा दर्जा दे दिया है । मिल्खा ने संसाधनों के अभाव में भी अपने वास्तविक खेल से दुनिया में भारत का नाम ऊंचा किया । आज एक दौर में खेलों में  पैसा बोल रहा है और इसे मनोरंजन का बड़ा माध्यम  बाज़ार ने बना दिया है  ऐसे दौर में मिल्खा सिंह ने खेल के माध्यम से देश के स्वाभिमान को सीधे जोड़ने का काम किया । मिल्खा ने खेल को कभी पैसे से  और  ना ही कभी ग्लैमर से जोड़ा । उनके लिए देश का झण्डा सबसे पहले था । महान खिलाड़ी के तौर पर देश उनके योगदान को कभी भुला नहीं सकता । मिल्खा हमारे सामने रोल माडल बने रहेंगे ।


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