आम
जनता के लिए वो एक ऐसी दीदी थी जो भोटियापड़ाव स्थित अपने संकलन आवास में दिन- रात
लोगों की सेवा में तल्लीन रहती थी। वो काँग्रेस की ऐसी इकलौती नेता रही जिसकी सियासत
में असंभव कुछ भी नहीं रहा । उन्हें कभी किसी के आगे झुकना पसंद नहीं था । सत्ता पक्ष
में रही , चाहे विपक्ष में अपनी राजनीतिक शक्ति और कौशल का कैसे इस्तेमाल करना है यह
इंदिरा से बेहतर कोई राजनेता नहीं जानता था । उत्तराखंड
की बेलगाम नौकरशाही को साधने की कला में उनका कोई सानी नहीं था । कई बार
वो कहा भी करती थी राजनेताओं को नौकरशाहों से काम निकालना आना चाहिए । अपनी इस
कला का लोहा उन्होनें ताउम्र मनाया और कभी भी उनके सत्ता में रहते नौकरशाह उनकी
राय को नहीं नकार सके और हमेशा इंदिरा के
आगे नतमस्तक रहे । इसका
बड़ा कारण उनका राज्य के हर मामले में किया गया होमवर्क था । वो सदन
में भी जाती थी तो पूरी तैयारी करके जाती थी । सदन में
सरकार में रहते सरकार को मुश्किल से बाहर कैसे निकालना है या विपक्ष में रहते
सरकार को कैसे और किन मुद्दों पर घेरा जा सकता है ? इन सबसे
पार कराने के लिए इंदिरा का नाम ही काफी था । सदन जब
नहीं चलता था तब भी आंकड़े जुबान पर याद रखती थी । मीडिया
के लिए वो ज्ञान का महासागर थी । नए नए मुद्दों पर विमर्श करना और हर पल राज्य को
विकास के मोर्चे पर आगे ले जाना तो मानो उनकी फितरत ही थी। नए
विधायकों के लिए वो किसी हेडमास्टर से कम नहीं थी । उनके
ज्ञान के महासागर के आगे सदन का हर नेता नतमस्तक रहा । जिस अंदाज में वो संसदीय कार्य
मंत्री रहते सदन चलाती थी उसकी
मिसाल उत्तराखंड की राजनीति में देखने को नहीं मिलती थी । संसदीय
कार्य मंत्री के तौर पर वो हमेशा सदन में सरकार की ढाल थी जिनके चक्रव्यूह से पार
पाना किसी भी नेता के लिए मुश्किल था । इंदिरा ऐसी नेता थी जो राज्य में पहाड़ से लेकर
मैदान तक काँग्रेस की लोकप्रिय ब्राह्मण चेहरा थी । उनके
अचानक परलोक गमन से उत्तराखंड की राजनीति में एक गंभीर शून्य उत्पन्न हो गया है । यह
बड़ी विडम्बना है भाजपा के कद्दावर नेता प्रकाश
पंत और अब काँग्रेस की दिग्गज इंदिरा के निधन के बाद उत्तराखंड की राजनीति में एक ऐसा
शून्य भर दिया है जो संसदीय ज्ञान और वित्तीय मामलों, और प्रशासनिक अनुभव में
उत्तराखंड में बेहतरीन समझे जाते थे ।
उत्तर प्रदेश में कुल चार बार एमएलसी रहना और उत्तराखंड की कांग्रेस सरकारों में
हमेशा नंबर दो बने रहना और नेता प्रतिपक्ष होना
इतना आसान नहीं है लेकिन इंदिरा हृदयेश ने हमेशा ये सब पद अपनी मेहनत से पाये । इंदिरा
ने काँग्रेस पार्टी अपना कद खुद के बूते
तैयार किया । इंदिरा उत्तराखंड में कांग्रेस पार्टी की एक ऐसी नेता रहीं जो वर्ष 2000 से आज तक लगातार सदन की विधायक रही । 2007 के
विधानसभा चुनाव को छोड़कर कभी चुनाव नहीं हारी । तब सपा
प्रत्याशी अब्दुल मतीन के मुस्लिम वोटों के ध्रुवीकरण के चलते हल्द्वानी में
रिकार्ड विकास कार्यों के बावजूद उनकी हार हुई थी । बीते
विधान सभा चुनाव में मोदी लहर में जब काँग्रेस महासचिव हरीश रावत सरीखे दिग्गज हार
गए तो इंदिरा के विकास कार्यों का ही कमाल
था हल्द्वानी में वो भाजपा प्रत्याशी को भारी अंतर से धूल चाटने में कामयाब हो
पायी ।
नेता प्रतिपक्ष डॉ इंदिरा हृदयेश पिछले चार दशक से उत्तर प्रदेश से
लेकर उत्तराखंड की राजनीति में बड़े नेताओं में शुमार रहीं । हेमवती नन्दन बहुगुणा और नारायण
दत्त तिवारी के साथ काम करते- करते इंदिरा प्रदेश की कद्दावर नेताओं में शुमार हो गयी । डॉ इंदिरा हृदयेश को पूर्व मुख्यमंत्री एनडी तिवारी
का उत्तराधिकारी माना जाता था। जहां उम्मीद की जा रही थी कि साल 2012 में हुए विधानसभा चुनाव में इंदिरा हृदयेश
को मुख्यमंत्री बनाया जाएगा वहीं इस दौर में अभी से इंदिरा की
भावी ताजपोशी को लेकर अटकलें
लगाई जा रही थीं कि 2022 में अगर कांग्रेस सत्ता पर काबिज होती
है, तो इंदिरा हृदयेश को मुख्यमंत्री का चेहरा बनाया जा सकता है लेकिन
शायद विधाता को ये सब मंजूर नहीं था । आगामी 2022 में राज्य की
मुख्यमंत्री बनने का सुनहरा
मौका उनके पास था
। कहा भी जाने लगा था डॉ
इंदिरा का करिश्मा ही कांग्रेस की जीत के
लिए काफी है, जो मौजूदा दौर में भाजपा को साधी हुई चुनौती अपनी बिछाई बिसात के
आसरे दे सकती हैं और सभी दलों
में अपनी सर्वस्वीकार्यता और अपने समीकरणों से सबको साध सकती हैं । कुमाऊँ
में नैनीताल जिले की कालाढूंगी , भीमताल , लालकुआं , रामनगर और उधमसिंहनगर की जिले की जसपुर , काशीपुर , बाजपुर , गदरपुर , रुद्रपुर , किच्छा , सितारगंज , नानकमत्ता, खटीमा की 15 सीटों के साथ पहाड़ी जिलों की कई सीटों पर उनका सीधा प्रभाव
रहा है ।
राज्य बनने के बाद से ही इन सीटों पर उनका प्रभाव टिकटों के चयन से लेकर पार्टी की
चुनावी जीत हार को प्रभावित करता रहा है । काँग्रेस हाईकमान इस बार सामूहिक
नेतृत्व में चुनाव लड़ने की बात बेशक कर रहा था
लेकिन वो हरीश रावत को सीएम चेहरा घोषित करने से
साफ मना भी कर
रहा था और पिछला चुनाव उनके नेतृत्व में
हारने के चलते अब नए लोगों को ज़िम्मेदारी देने की बात भी कर रहा था ।
ऐसे में अब नेचुरल इंदिरा हृदयेश की ही
बारी थी, लेकिन उससे पहले ही इंदिरा हृदयेश ने इस दुनिया को छोड़कर
चली गयी ।
इंदिरा हृदयेश काँग्रेस
संगठन की एक अहम बैठक में भाग लेने दिल्ली गयी हुई थी । दिल्ली
में पार्टी 2022 के चुनावों के लिए रणनीति बनाने में जहां जुटी हुई थी वहीं आगामी
विधान सभा चुनावों के लिए पार्टी की संभावनाओं के लिए भी मंथन हो रहा था । नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश नई
दिल्ली स्थित उत्तराखंड सदन में ठहरी हुईं थीं। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रीतम
सिंह , प्रदेश
प्रभारी देवेंद्र यादव और कॉंग्रेस महासचिव हरीश रावत भी उस बैठक में साथ थे। उत्तराखंड की मिशन 2022 की नीति पर निर्णय लेने के मद्देनजर
इंदिरा ने प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव के साथ बैठक की थी। उन्हें खटीमा से शुरू होने जा रही परिवर्तन
यात्रा की ज़िम्मेदारी सौंपी गई थी । सुबह दिल्ली में उनको हार्ट अटैक का
दौरा पड़ा जिसके बाद उन्हें दिल्ली के एक अस्पताल में भर्ती किया गया जहां उपचार
के दौरान का निधन हो गया। इस दौरान अस्पताल उनके पुत्र सुमित ह्रदयेश समेत
कांग्रेस के कई बड़े नेता मौजूद थे।
इस बरस मार्च में भी उनकी श्रीनगर गढ़वाल में आयोजित
कांग्रेस की जन आक्रोश रैली में शामिल होने के दौरान तबीयत खराब हो गई थी जिसके
बाद उन्हें ऋषिकेश के एम्स में एडमिट कराया गया था। इससे पहले बीते बरस भी वो कोरोना पाजीटिव
पायी गई थीं। हालांकि
उससे योद्धा
की भांति कुछ दिनों बाद उबरकर कर वो फिर से उत्तराखंड की राजनीति में
सक्रिय हुई थीं । मृत्यु से ठीक दो दिन पहले वो तेल की बढ़ती कीमतों
के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान हल्द्वानी में भी नजर आई ।
डॉ हृदयेश का सपना था कि वह एक बार सूबे की मुख्यमंत्री जरूर बनें लेकिन इसके लिए इंदिरा हृदयेश ने कभी
किसी प्रकार की लाबिंग नहीं की और ना ही पद पर आसीन किसी भी व्यक्ति को कुर्सी के
हटाने के लिए अपनी चाल चली । उन्होनें
पार्टी की सच्ची सिपाही के तौर पर हमेशा ही पार्टी आलाकमान के निर्णय का सम्मान
किया । शायद उनकी कुंडली में सीएम का राजयोग नहीं लिखा था, जो उनकी बातों और चेहरे पर यदा
- कदा साफ झलकता रहता
था ।
2012 के विधानसभा चुनाव में वो
काँग्रेस की मजबूत दावेदार रही, तो
उस दौरान कांग्रेस आलाकमान ने प्रदेश के समीकरण को देखते हुए विजय बहुगुणा को
मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपी लेकिन उनके साथ रहते हुए भी उन्होने बेहतर नतीजे राज्य को दिये । इसके बाद से जब भी नेतृत्व परिवर्तन की चर्चा चलनी शुरू हुई तब से कांग्रेस में इंदिरा हृदयेश मुख्यमंत्री
की रेस में सबसे आगे रही लेकिन ऐसा कभी नहीं हो सका और काँग्रेस
महासचिव हरीश
रावत अपनी गुगली से बाजी मार ले गए। तब भी उन्होनें हरीश रावत के साथ
रहते हुए सरकार सुचारु ढंग से चलाई । 2016 में काँग्रेस पार्टी में जब सबसे बड़ी टूट हुई
तब इंदिरा हृदयेश ऐसी नेता रही जो हरीश रावत के साथ कदम से कदम मिलाते हुए आगे बढ़ी
। ये अलग बात है कि पंडित तिवारी के
दौर से ही दोनों के बीच संबंध मधुर नहीं रहे इसके बाद जब भी सरकार के साथ खड़े होने
की बात आई तो इंदिरा टस से मस नहीं हुई । ऐसे कई मौके आए जब हरीश रावत और
डॉ इंदिरा हृदयेश में गंभीर मतभेद दिखाई दिये ,लेकिन संकटकाल में
दोनों ने पार्टी का साथ देना नहीं छोड़ा । गर्दन
में चोट के चलते जब हरीश रावत लंबे समय तक एम्स में भर्ती रहे तब उन्होनें राज्य
की कमान को बेहतर ढंग से संभाला । वो कभी
भी किसी सीएम पर हावी नहीं हुई । चाहे पंडित तिवारी
हों या विजय बहुगुणा या हरीश रावत तीनों के साथ मजबूती के साथ सरकार चलायी
और सरकार की संकटमोचक बनी । यशपाल आर्य , सुबोध उनियाल , विजय बहुगुणा , प्रीतम सिंह पँवार , सतपाल महाराज , हरक सिंह रावत जैसे दिग्गज नेताओं
ने भी इन्दिरा से बहुत कुछ सीखा । मूल्यों की राजनीति और
अपने लंबे अनुभव के चलते इंदिरा सही मायनों में पक्ष और विपक्ष दोनों की सही धुरी
थी । उनकी
राजनीति के केंद्र में शुरुवात से वंचित , शोषित और आम लोग
ही थे जिनके प्यार के चलते वो आयरन लेडी बन पायी ।
7 अप्रैल 1941 को दौंणू-दसौली ग्राम में जन्मी इंदिरा हृदयेश का बचपन गांव के साथ स्वतंत्रता
संग्राम सेनानी पिता के साथ उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद में बीता। चार बरस की उम्र में पिता
टीकाराम का निधन हो गया और उसके कुछ समय
बाद बड़े भाई भी चल बसे । मां
पर दोनों बेटियों की परवरिश की बड़ी ज़िम्मेदारी आन पड़ी लेकिन इंदिरा बचपन से
संघर्षशील रही और आगे बढ़ी । पीलीभीत में
अपने मामा के यहाँ 12 वीं तक की पढ़ाई पूर्ण की । इसके बाद लखनऊ
विवि से राजनीतिक विज्ञान में एम आए करने के बाद पी एच डी की डिग्री भी प्राप्त की
। शिक्षा पूरी करने के बाद वह
हल्द्वानी के ललित महिला कन्या इंटर कॉलेज में पहले लंबे समय तक शिक्षिका और प्रधानाचार्य भी रहीं। सामाजिक गतिविधियों में शुरुवात
से सक्रिय रही । इसी दौरान उन्होंने शिक्षक राजनीति के जरिए
संयुक्त उत्तर प्रदेश की राजनीति में पदार्पण किया और पहले 1974 से 1980 और फिर 1986 से वर्ष 2000 में उत्तराखंड बनने तक लगातार तीन बार
शिक्षक कोटे से उत्तर प्रदेश विधानपरिषद में एमएलसी रहीं। वर्ष 2000 में उत्तराखंड बनते समय इंदिरा हृदयेश और केसी सिंह बाबा ही कांग्रेस पार्टी
से विधायक थे, लिहाजा उन्हें नेता प्रतिपक्ष बनाया
गया। स्वर्गीय एन डी तिवारी का विशेष सानिध्य इंदिरा को मिलते रहा
जिसके चलते उनको वे अपना गुरु भी मानती थी । 2002
में पंडित नारायण दत्त तिवारी के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनने पर वह प्रदेश
में ‘शैडो मुख्यमंत्री’ की हैसियत में रहीं। इस बीच उनकी छवि
अपनी विधानसभा हल्द्वानी की सड़कों को चमकाने के कारण ‘विकास नेत्री’ के रूप में भी रही और
इसी दौर में उन्होनें हल्द्वानी को महानगरों की तरह विकसित करने का सपना भी देखा । राज्य
बनने के बाद उन्होनें अपनी विधानसभा सीट में विकास की गति का सेंसेक्स उच्चतम स्तर
पर रखा । गली-
गली में सड़कों को चमकाया गया और हल्द्वानी को शिक्षा से लेकर स्वास्थ्य के बड़े हब
के रूप में विकसित कराया । गौला पार में इंटरनेशल स्टेडियम का निर्माण उनका
ड्रीम प्रोजेक्ट था जिसे उन्होनें 2017
में पूर्ण करवाया । उच्च
शिक्षा निदेशालय के साथ ही उत्तराखंड मुक्त विश्व विद्यालय के निर्माण में उनकी
दूरदर्शी सोच ने काम किया ।
डॉ इंदिरा हृदयेश से मेरी
व्यक्तिगत रूप से बहुत मुलाकातें तो नहीं हुई लेकिन कई बार सेमिनारों और संगोष्ठी के दौरान मिलना हुआ । स्वर्गीय
एन डी तिवारी के सी एम रहते हल्द्वानी में उत्सव गार्डन में एक संगोष्ठी में डॉ
इंदिरा से पहली बार सामना हुआ । तब काँग्रेस की पहली निर्वाचित सरकार
राज्य में बनी थी तब उन्होनें काफी दुलार
दिखाया । उसी
दौरान उनके साथ आफ द रिकार्ड बात हुई । तब उत्तरांचल नया राज्य बना था । कई चुनौतियाँ हर मोर्चे पर थी लेकिन डॉ इंदिरा की दूरदर्शी सोच बुनियादी ढांचे को बेहतर
बनाने को लेकर शुरुवात से काम कर रही थी । उस
सेमिनार में मैंने उनकी सोच में तब राज्य की तरक्की के लिए एक नया विजन देखा था । पंडित
तिवारी की सरकार में बतौर लोक निर्माण विभाग ,राज्य संपत्ति , विज्ञान प्रोद्योगिकी , सूचना , संसदीय कार्य
मंत्री जैसे दर्जन भर से अधिक मलाईदार मंत्रालय पाकर उन्होनें ऐसी पहचान बनाई उनकी
राय की अनदेखी कोई मंत्री, संतरी ,
विधायक, अधिकारी नहीं कर पाये । नौकरशाह
तो उस दौर में थर- थर काँपते थे और अपनी हदों को पार नहीं कर पाते थे । उस समय
तो ये जुमला ही मानो चल पड़ता था जो काम सीएम रहते पंडित तिवारी जी नहीं करा सकते
थे वो इंदिरा हृदयेश के एक फोन काल से हो
जाता था । सीएम
तिवारी इंदिरा की राय का हमेशा सम्मान
करते थे और चाहकर भी नहीं नकार पाते थे । इंदिरा हृदयेश ही उस दौर में
मीडिया घरानों से सहज रिश्ते रखने के लिए जानी जाती थी । सूचना
विभाग अपने पास रखने के कारण वो सरकार की बेहतर छवि बनाने में कामयाब रही । उस दौर
को याद करें तो उत्तराखंड से प्रकाशित हर छोटे- बड़े समाचार पत्रों और समाचार
चैनलों को समान अनुपात में विज्ञापन मिलते
रहे । यह
दौर आज के दौर जैसा नहीं है जब गिने चुने चार दैनिक अखबारों और न्यूज चैनलों के सामने पूरे पेज और हर
बुलेटिन का खजाना सूचना विभाग लुटा रहा है और मीडिया का मतलब इस दौर में चंद टीवी न्यूज चैनल और चार दैनिक अखबारों को लगा
लिया जाता है।
उस दौर में कोई संपादक यह नहीं कह
सका इसको अधिक मिल गया या उसको कम। आज तो
मीडिया मैनेजर की बाजीगरी हर जगह चल रही
है । जो
मीडिया मैनेजर मुख्यमंत्री के सलाहकार बनने से पहले झोला लेकर चलते थे वो आज बी एम डब्ल्यू लेकर और करोड़ों की जमीन
के मालिक बन बैठे हैं ।
शुक्र है राज्य के मौजूदा
सीएम तीरथ सिंह रावत उस रास्ते पर बीते 100 दिन में नहीं चल रहे हैं जिस
रास्ते पर उनके पूर्ववर्ती चला करते थे जहां पर मुख्यमंत्री के स्टाफ में मीडिया
सलाहकारों की फौज लाखों के पैकेज में खड़ी कर दी जाती थी । जिस
अंदाज में डॉ इंदिरा हृदयेश ने अपने लंबे प्रशासनिक अनुभव से बिना मीडिया सलाहकार रखे सूचना विभाग
संभाला उसने राज्य में काँग्रेस की बेहतर छवि बनाने में कामयाबी पायी। लोक निर्माण
विभाग में मंत्री रहते हुए उन्होनें राज्य में बेहतर कनेक्टिविटी के लिए पहाड़ से
लेकर मैदान तक सड़कों का बड़ा जाल भी बिछाया
।
विकास पुरुष के नाम से मशहूर रहे पंडित नारायण दत्त तिवारी जी ने अपने दौर से ही अपनी
हल्द्वानी विधानसभा को माडल बनाने का सपना उन्होने सँजोया था और उसी दौर से
उन्होनें हल्द्वानी का कायाकल्प करने की
ठानी । पंडित तिवारी जी के सीएम रहते कई
प्रस्ताव उन्होनें तैयार किए और तिवारी जी से मंजूर करवाए । विकास पुरुष नारायण दत्त तिवारी
और हेमवती नन्दन बहुगुणा की छत्रछाया में कार्य
के दौरान इन्दिरा ने बहुत कुछ सीखा और दोनों ने उनके प्रस्तावों पर हामी
भरने में कभी देरी नहीं लगाई । आज पूरे
उत्तराखंड में सबसे अधिक चमक- दमक अगर हल्द्वानी में दिखाई देती है तो इसके पीछे
इंदिरा हृदयेश के योगदान और विकास पुरुष पंडित नारायण दत्त तिवारी की सोच को कभी
नहीं भुलाया जा सकता । काँग्रेस शासित राज्यों के
मुख्यमंत्रियों का सम्मेलन जब 2006 में नैनीताल में आयोजित हुआ तब उसे नैनीताल में
कराने की कार्ययोजना पंडित तिवारी जी ने
इंदिरा के कहने पर ही बनाई थी । उस समय
उत्तराखंड ज्योति के संपादक एन एस रावत हुआ करते थे । वो डॉ इंदिरा
, पंडित तिवारी और हरीश रावत के कई किस्से हमसे चाय पर चर्चा के दौरान
बताया करते थे और विकास पुरुष तिवारी राज को
इंदिरा का स्वर्ण युग बताने से परहेज नहीं करते थे । नैनीताल
में इस सम्मेलन के दौरान मैंने यह नजारा अपनी आँखों के सामने खुद देखा था । इस तीन दिवसीय सम्मेलन की परिकल्पना डॉ इंदिरा हृदयेश के रहते ही साकार हो पायी और पचमढ़ी के बाद शायद
ये आज तक का सबसे सफल सम्मेलन काँग्रेस का रहा जहां कृषि जैसे अहम मुद्दे पर पहली
बार फोकस किया गया । यहाँ पर इंदिरा के सूचना विभाग मंत्री रहते
मीडिया के लिए विशेष खातिरदारी की गयी और नैनीताल को नयी नवेली दुल्हन की तरह
सजाया गया था । नैनीताल
अतिथि गृह के अच्छे दिन इसी सम्मेलन के बूते वापस आए और नैनीताल की सड़कों को
चमकाया गया । यूं तो इस
सम्मेलन में सभी काँग्रेस शासित राज्यों के दर्जन भर से अधिक सीएम शामिल थे लेकिन सबकी नजरें इंदिरा की
प्रशासनिक दक्षता और निर्णय लेने की
क्षमता पर टिक गई । अपनी
दक्षता से इंदिरा ने तत्कालीन काँग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और
काँग्रेस शासित मुख्यमंत्रियों के सामने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया । इसी
सम्मेलन में डॉ इंदिरा का विराट स्वरूप मैंने पहली देखा था जिसकी चर्चा मैंने उत्तराखंड ज्योति के
तत्कालीन संपादक स्वर्गीय एन एस रावत से
भी कई बार की । उस सम्मेलन में वो न केवल अधिकारियों को बेहतर व्यवस्थाएँ बनाने के लिए
ज़ोर दे रही थी बल्कि मन मुताबिक कार्य तयशुदा समय में पूरा ना होने के लिए डांट
फटकार लगाने से भी पीछे नहीं आ रही थी । गरममिजाज के साथ ही उनका तल्ख
अंदाज पहली बार यहाँ देखने को मिला जब वो नौकरशाहों और अधिकारी – कर्मचारियों की
ग्राउंड जीरो पर ही क्लास लगा देती थी । कामचोरी – टालमटोल शब्द
शायद उनकी डिक्शनरी में नहीं था । वो कभी नरम भी थी तो कभी
गरम भी । जनता
से जुड़ना उन्हें बखूबी आता था और हर
जरूरतमंद की मदद को हमेशा आगे रहती थी । इंदिरा के विधायक रहते हल्द्वानी
का कायाकल्प हुआ इससे आज शायद ही कोई इंकार करे। वर्तमान
में कांग्रेस के विपक्ष में रहने के चलते इंदिरा की विधानसभा के आई एस बी टी , जमरानी बांध जैसे कई प्रोजेक्ट अधर में लटक गए । इस पर
इंदिरा काफी परेशान भी दिखती थी । वो जनता से जुड़ी हर समस्या को समाधान के चश्मे से
देखना पसंद करती थी लिहाजा अपने ड्रीम प्रोजेक्टों पर ताला लगा देखना उन्हें कभी
अच्छा नहीं लगा । इंदिरा
खुद कहा करती थी राजनीति में संबंध ही सब कुछ हैं। विचारधारा
भले ही अलग हो सकती है लेकिन मनमुटाव के लिए राजनीति में किसी तरह की जगह नहीं
होनी चाहिए । विकास
कार्यों की रफ्तार पर कभी भी राजनीति में ब्रेक
नहीं लगना चाहिए । सच
कहें तो इंदिरा भारतीय राजनीति की सियासत
का वो नायाब हीरा थी जिसे हर सियासी दांव
पेंच में महारथ हासिल थी ।
2012 से लेकर 2017 तक उन्होनें
उत्तराखंड की विजय बहुगुणा और हरीश रावत की सरकारों में वित्त , वाणिज्य कर , संसदीय कार्य ,
विधायी निर्वाचन , मनोरंजन कर , भाषा
और प्रोटोकाल जैसे कई मंत्रालय बखूबी
संभाले।
अब जबकि डॉ. इंदिरा हृदयेश हमारे बीच
नहीं हैं, इस बात पर भी चर्चा शुरू होने लगी है
कि उनके जाने से उत्तराखंड और खासतौर से कुमाऊँ में कांग्रेस की राजनीति में आया शून्य
कैसे भरा जाएगा ? यह तो तय है कि उनकी राजनीतिक विरासत उनके पुत्र सुमित हृदयेश
संभालेंगे, जो पहले से राजनीति में पदार्पण कर
चुके हैं और युवाओं में बेहद लोकप्रिय भी रहे हैं । मंडी
परिषद के अध्यक्ष रहते हुए सुमित हृदयेश ने अपने कार्यकाल में नई लेकीर खींची और
ये बताया है उन्हें राजनीति का हर हुनर मालूम है । डॉ
इंदिरा हृदयेश को हर चुनाव लड़वाने में, रणनीति बनवाने
में पर्दे के पीछे से सुमित की शुरुवात से ही बड़ी भूमिका रही है और हलदवानी विधानसभा सीट पर काँग्रेस का भविष्य अब सुमित
हृदयेश के हाथों में ही सुरक्षित रहेगा । कांग्रेस पार्टी उन पर ही भविष्य
में होने वाले चुनाव में दांव खेलेगी इन
संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता । इस बार कोरोना की दूसरी लहर ने
पूरे उत्तराखंड में कहर बरपा दिया । मैदान से लेकर पहाड़ तक त्राहिमाम मचा रहा । कुमाऊँ
का प्रवेश द्वार कहा जाने वाला हल्द्वानी भी इससे अछूता नहीं रहा । ऐसे दौर
में जनप्रतिनिधि जब अपने घरों में बैठे हुए थे तो इंदिरा हृदयेश ही ऐसी नेता रही जो सुमित हृदयेश के साथ आशा की नई
उम्मीद बनकर संकलन में जनता के बीच आई । अपने प्रयासों से कोरोना पीडि़तों तक हर संभव मदद पहुंचाने में उन्होनें
सबको पीछे छोड़ दिया । इस दौरान डॉ इंदिरा हृदयेश
ने हजारों लोगों को भोजन किट बांटी । जनसहयोग से उन्होनें
रसोई भी चलाई।
मदद पहुंचाने में ककभी भी किसी तरह की कोर कसर नहीं
छोड़ी । इंदिरा देख रही थी उनकी विधानसभा
का कोई भी
परिवार भूखा न सोए। उनके
बेटे सुमित हृदयेश का जज्बा इस कोरोना काल में नए अवतार में तब दिखा जब वो खुद
जनता से सीधे कनेक्ट हो रही थी । कोरोना के
इस विकट काल में सुमित हृदयेश दिन – रात डॉ इंदिरा के साथ जरूरतमन्द लोगों के
मसीहा बनकर सामने आए । डॉ इंदिरा के बेटे सुमित हृदयेश ने
इसी कोरोना काल में ये भी दिखाया कि अगर
जनता के बीच समाज सेवा करनी है तो जरूरी
नहीं है आप किसी पद पर हों । सुमित हृदयेश ने
अपने सहयोगियों के साथ मिलकर हल्द्वानी विधानसभा क्षेत्र के
जरूरतमन्द लोगों
के लिए निरंतर भोजन, दवाई की व्यवस्था सुनिश्चित
की । कुमाऊँ के प्रवेश द्वार हल्द्वानी
को सैनेटाइज कराने के लिए उन्होनें इंदिरा हृदयेश से विधायक निधि से लाखों
के बजट आक्सीमीटर, आक्सीजन सिलेन्डर , थर्मामीटर, सेनिटाइजर जैसे आवश्यक कीमती उपकरण स्वीकृत करवाए। कोरोनाकाल
में नौकरी गँवा चुके लोगों के लिए मुफ्त राशन उपलब्ध कराया । फ्रंट लाइन कोरोना वारियर्स के
लिए भी वो डॉ इंदिरा
हृदयेश को हर संभव इमदाद उपलब्ध कराने में पीछे नहीं थे ।
डॉ इंदिरा हृदयेश अकेली
ऐसी राजनेता थी जिनको रिश्ते निभाना दिल
से आता था । एक
बार जो उनसे मिल लिया उसका नाम वो याद रख लेती थी और अगली बार
जाने पर फिर उसे पहचान भी लेती थी । डॉ इंदिरा पक्ष में रही चाहे विपक्ष में कभी भी
जनता का काम रुका नहीं । जनता
के प्रति समर्पित ऐसा राजनेता मैंने आज तक उत्तराखंड में नहीं देखा । कमिटमेंट
किसी से कर दिया तो आप तय मानिए आपका काम हर सूरत में बनकर ही रहेगा । तकरीबन सभी दलों के नेताओं के साथ उनके
मधुर संबंध थे । सच
कहूँ तो उत्तराखंड की राजनीति में डॉ इंदिरा
हृदयेश एक अजातशत्रु थी । इंदिरा कभी भी सत्ता या विपक्ष की
राजनीति के भीतर नहीं उलझी । सत्ता
किसी भी पार्टी की उत्तराखंड में रही इंदिरा सीएम से लेकर मुख्य सचिव तक सीधी पकड़
रखती थी । इंदिरा
की कार्यशैली का राज्य का हर नेता प्रशंसक ही रहा । भाजपा के
दिवंगत नेता प्रकाश पंत के साथ जब भी राज्य की राजनीति पर मेरी चर्चा होती थी तो
ऐसा कोई प्रसंग होता था जब डॉ इंदिरा हृदयेश पर चर्चा न होती हो । सही
मायनों में इंदिरा का कद राज्य में बहुत बड़ा था । उनको
मंत्री पद के दायरे में बांधना उनकी शख्सियत के साथ अन्याय होगा ।
स्वर्गीय प्रकाश पंत जैसे संसदीय कार्यों के जानकार
भी डॉ इंदिरा हृदयेश के ज्ञान के आगे नतमस्तक थे । संसदीय
कार्य मंत्री रहते हुए वो इंदिरा जी से
अक्सर परामर्श लिया करते थे और बजट पेश करने से पहले उनसे मिलते थे जिसका जिक्र
खुद डॉ इंदिरा हृदयेश किया करती थी ।
आखिरी बार डॉ इंदिरा हृदयेश से मेरी मुलाक़ात हल्द्वानी में एम बी पी जी कालेज में एक सेमिनार के दौरान हुई । डॉ इंदिरा हृदयेश ने इस आयोजन में मंच से उत्तराखंड मुक्त विवि की स्थापना को अपनी सरकार का बड़ा विजन बताया था और हल्द्वानी को शिक्षा का हब बनाने की बात की थी । तब जे एन यू में अंतर्राष्ट्रीय मामलों के जानकार प्रोफेसर पुष्पेश पंत से भी पहली बार मेरा सामना हुआ और अपनी बात हुई । मैंने उनको अपना परिचय दिया और कहा उत्तरांचल पत्रिका में उत्तराखंड के बारे में आपके लेख गंभीर होते हैं । तब प्रोफेसर पंत ने कहा आप भी लिखते हो मैं भी लिखता हूँ । मैं आपको पढ़ता हूँ आप मुझे । इस पर ठहाका लगा । तब उस आयोजन में इंदिरा जी से मैंने व्यक्तिगत रूप से इंटरव्यू के लिए थोड़ा समय मांगा । तब उन्होनें कहा तुम तो बाबी जैसे हो कभी भी इंटरव्यू कर लो। जीवन में ज्ञान की बड़ी भूमिका है और विद्या धन से बढ़कर दूसरा कुछ भी नहीं है । तब उन्होने मंत्र दिया खूब पढ़ो और आगे बढ़ो । मेरी तरफ हाथ फेरती हुई इंदिरा बोली कभी भी घर आओ । साथ बैठते हैं और राज्य के मसलों पर चर्चा करते हैं । मैंने भी कहा जरूर समय निकाल कर आता हूँ । 2020 में देश में कोरोना का लाकडाउन लग गया और आना जाना इधर उधर कम हो गया । व्यस्तताएँ इतनी हो गई कि हल्द्वानी नहीं जा पाया । नवंबर दिसंबर में जब भी हल्द्वानी गया तो वो देहारादून थी । संकलन में उनसे मिलने की मेरी कसक अधूरी ही रह गई । शायद अब ऐसी कद्दावर राजनेता से मैं कभी नहीं मिल पाऊँगा । डॉ इंदिरा के निधन के बाद प्रदेश काँग्रेस में एक रिक्तता उभर गयी है जिसकी भरपाई कर पाना इतना आसान नहीं है।
अब कांग्रेस पार्टी के सामने नए नेता प्रतिपक्ष के चयन की बड़ी चुनौती है । इन्दिरा ने बीत चार बरस से अधिक के समय में नेता प्रतिपक्ष की ज़िम्मेदारी को बखूबी निभाया । कांग्रेस पार्टी में उनके साथ बड़े छोटे कार्यकर्ता और आम जन की बड़ी फौज थी । काँग्रेस प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह के लिए भी इंदिरा किसी गुरु से कम नहीं थी जिनकी बनाई हर रणनीति भाजपा को सड़क से विधानसभा तक घेरने के लिए काफी थी । अब बिना इंदिरा के काँग्रेस की धार कैसी होगी ये यक्ष प्रश्न है ? फिलहाल नेता प्रतिपक्ष के लिए इस समय कई नाम कतार में खड़े हैं । फिलहाल इस समय काँग्रेस में विधायक दल के उपनेता के तौर पर करन मेहरा का नाम सामने है । इंदिरा के निधन के बाद शायद काँग्रेस उनके नाम पर सहमति बनाने की कोशिश कर सकती है । जागेश्वर से विधायक और पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल का दावा भी इस पद के लिए मजबूत माना जा रहा है। पहाड़ के समीकरणों को देखते हुए नेता प्रतिपक्ष पद के लिए इस बार कुमाऊँ का दावा मजबूत नजर आता है ।
सहज और सरल स्वाभाव के धनी सबको साथ लेकर चलने की कला में माहिर युवा तुर्क प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह भी नई लीडरशिप को देखते हुए इस बार सीएम की रेस में नजर आते हैं। हरीश रावत भी दो सीटों से पिछला चुनाव हारने के बाद अभी भी मुख्यमंत्री की कुर्सी पर अपनी नजरें गड़ाए हुए हैं । पूर्व विधान सभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल भी लंबी रेस में शामिल हो सकते हैं । इंदिरा के साथ हर दौर में खड़े होने वाले उनके साथी अब धुर विरोधी रहे हरीश रावत के साथ एक बार फिर साथ आएंगे या प्रीतम जैसे युवा चेहरे के तले वे सभी एक छत के नीचे आएंगे इस पर बहुत हद तक काँग्रेस का भविष्य निर्भर करेगा । काँग्रेस के पास आगामी चुनावों में ब्राह्मण चेहरे के रूप में इंदिरा हृदयेश के जाने के बाद किशोर उपाध्याय सबसे बड़े ब्राह्मण चेहरे के रूप में अब सामने हैं जिनमें भी पार्टी अपना भविष्य सुरक्षित देख सकती है । वैसे भी चुनावों में अब बहुत कम समय बचा है । 2022 में कांग्रेस का चेहरा कौन होगा इस पर अभी से उसे सोचना होगा। केवल सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ने की घोषणा से काँग्रेस का भला मौजूदा दौर में नहीं होना है। इंदिरा हृदयेश जैसी अनुभवी नेता की कमी तो उसको खूब खलेगी वो भी तब जब चुनाव का काउन डाउन शुरू होने को है । इतना तय है इंदिरा जैसी दूरदर्शी नेता के निधन के बाद से उत्तराखंड काँग्रेस की भविष्य की राह इतनी आसान तो कतई नहीं रहने वाली । मेरी श्रद्धांजलि
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