Monday 5 July 2021

पहाड़ के सरोवर में नई उम्मीदों का ' पुष्कर '

 



उत्तराखंड  राज्य बनने के पश्चात भारतीय जनता पार्टी ने विभिन्न नेताओं को उत्तराखंड की बागडोर सौंपी, परन्तु जनता के बीच कोई चेहरा लोकप्रिय नहीं हो सका।  ऐसे समय में 2022 की चुनौतियों को देखते हुए एक व्यक्ति ने देवभूमि उत्तराखंड की सियासत में सभी का ध्यान अपनी ओर खींचा है वो नाम है युवा तुर्क पुष्कर सिंह धामी। भाजपा की सियासत में युवा मोर्चा के दो बार प्रदेश अध्यक्ष , एक बार उपाध्यक्ष  और दो बार भाजपा का विधायक होना इतना आसान नहीं है । फिर बिना मंत्री रहते हुए सीधे कई दिग्गजों की फौज को पीछे छोड़ते हुए सीधे मुख्यमंत्री का ताज ग्रहण कर ले ये राजनीति में दुर्लभ हैं लेकिन पुष्कर धामी ने अपनी क्षमताओं और संगठन में पकड़ के बूते  ये सिंहासन हासिल किया है । पुष्कर धामी का सूबे  का मुखिया बनाया जाना  भाजपा के  दूसरी पीढ़ी के सभी नेताओं के लिए बड़ा सदमा है लेकिन खाँटी जनसंघी महामहिम भगत सिंह कोश्यारी के इस मृदुभाषी चेले ने दिल्ली दरबार में अपनी मजबूत पकड़ के लिए जाने जाने वाले नेताओं को पटखनी दे यह साबित कर डाला है कि उनको कमजोर नेता समझना विरोधियों की भारी भूल है ।पुष्कर  धामी का सूबे का मुखिया बनना कई मायनों में चौंकाने वाला है। दिल्ली दरबार के करीबी होने का दावा करने वाले प्रदेश भाजपा के कुछ बड़े नेता इस घटनाक्रम से बेहद हत्‌प्रभ बताए जा रहे हैं। दरअसल,  प्रदेश में कई बार जीत के स्वाद चख चुके भाजपा के कुछ नेताओं ने खुद को दिल्ली दरबार में मीडिया के समक्ष प्रोजेक्ट किया लेकिन  आलाकमान ने पुष्कर धामी को कमान देकर मिशन 2022 के अगले मुख्यमंत्री की दौड़ में जहां एक नए उम्मीदवार का खाता तो खोल ही डाला है,  वहीं मिशन 2022 की मुनादी भी अभी से कर दी है । पुष्कर धामी अभी काफी युवा हैं और उनमें पार्टी को आगे बढ़ाने की पूरी क्षमताएँ हैं । इसी के साथ भाजपा के तमाम दिग्गजों को भी हाईकमान ने साफ संदेश दिया है है कि नेतृत्व के पास अपना आकलन करने का एक अलग सा  तरीका है।

जी हाँ , पुष्कर सिंह धामी पर लिखना एक ऐसे व्यक्ति के जज्बे को सलाम करना है, जिसके लिए राजनीति का मतलब इस दौर में जनसेवा और हर संकट का समाधान खोजना है । उनका हंसमुख , सरलता और सौम्यता से भरा व्यक्तित्व हर आम इंसान को अपनी तरफ खींच लेता है।  विचारों में आधुनिक, किंतु भारतीयता की जड़ों से गहरे जुड़े पुष्कर सिंह धामी संघ परिवार के उन सामान्य समर्पित कार्यकर्ताओं में से एक  हैं , जिनमें गहरा भारत बोध बचपन से भरा हुआ है । दो बार युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष की ज़िम्मेदारी सहजता से निभाने वाले धामी देखते ही देखते राजनीति के मैदान में रम गए । उत्तराखंड के जल,जमीन  और जंगल के साथ ही  युवाओं के रोजगार के सवाल भी किसी राजनेता की जिंदगी जीने की वजह हैं तो उसका दूसरा नाम है पुष्कर सिंह धामी । पुष्कर धामी  के रुतबे और उनकी कार्यशैली को  समझने के लिए हमें  यह जानना जरूरी है वो किस तरह अपने काम को शालीनता के साथ अंजाम तक पहुंचाते हैं । इस बात से सभी वाकिफ हैं उत्तराखंड में भाजयुमो में रहते उन्होंने राज्य में तत्कालीन काँग्रेस सरकार के सामने युवाओं के बेरोजगारी के सवाल को सड़क से लेकर विधान सभा के गेट तक उठाने में सफलता पाई जिसके बाद 2010-11 में  काँग्रेस सरकार को राज्य में लगने वाले उद्योगों में 70 फीसदी आरक्षण देने को मजबूर होना पड़ा था।  सही मायनों में कहा जाये  तो  नाउम्मीद को उम्मीद में बदलना  पुष्कर की बड़ी कला है। उनकी इस कला का लोहा विपक्षी दल के नेता भी मानते हैं। आज अगर पुष्कर की ताजपोशी पर देहरादून से लेकर हड़खोला गाँव तक जश्न है तो इसका कारण उनका युवाओं के बीच समर्पण है ।

  जिद, जिजीविषा, जीवटता और जीवंतता एक साथ किसी एक आदमी में देखनी हो तो आपको पुष्कर धामी की सेवा की साधना को समझना चाहिए।  एक ऐसा नायक जिसने एक सामान्य से परिवार में पहाड़ की बेहद खुरदरी जमीन से जिंदगी की धीमी शुरुआत की और संघ के शिक्षा वर्ग को पूर्ण करने के बाद उनके भीतर समाजसेवा का जनज्वार उमड़ने लगा और इसी राष्ट्रभक्ति के संस्कारों के बूते वो आसमान की उस ऊंचाई तक आज सीएम के रूप में  पहुंचे हैं , जहां पहुंचना किसी के लिए सपने से कम नहीं है।  राज्य भाजपा के पास पुष्कर धामी  जैसा व्यक्ति एक आम कार्यकर्ता का प्रतीक भी हैं। बहुत पुरानी बात नहीं है कि जब वे विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ता के नाते इस परिवार में आए और  युवा मोर्चा में अपनी लगातार मेहनत, श्रेष्ठ संवाद शैली और संगठन कौशल से सूबे के मुख्यमंत्री का पद भी कम उम्र में प्राप्त किया। अपनी भाव-भंगिमाओं,प्रस्तुति और वाणी से वे हमेशा यह अहसास कराते हैं कि वे आज भी दल के  एक अदने से कार्यकर्ता ही हैं। कार्यकर्ता भाव जीवित रहने के कारण वे आज के युवाओं में भी काफी लोकप्रिय हैं और जनता के बीच नागरिक भाव जगाने के प्रयासों में लगे हैं। वे जनमर्म को  बखूबी समझते हैं शायद यही वजह है शपथ ग्रहण करने से ठीक पहले पी एम मोदी के मंत्र सबका साथ और सबका विश्वास को उन्होनें अपना मूल मंत्र बताया है ।

 पुष्कर सिंह धामी उत्तराखंड के उन चुनिंदा राजनेताओं में से  हैं जिनके व्यक्तित्व में एक  गुरूत्वाकर्षण मौजूद है । युवा उन्हें देखना और सुनना पसंद करते   हैं । वे  युवाओं के भविष्य से जुड़े सवालों  के साथ ही जल , जमीन , जंगल और पलायन जैसे  विषयों को उठाते हैं और उस पर समाज की गहरी अंर्तदृष्टि मौजूद रहती है । उनके साथ युवा मोर्चा अध्यक्ष रहते हुए एक दौर में जब भी उनके  एक दो बार इंटरव्यू करने का जब भी मौका मिला तो मैं भी उनकी विलक्षण प्रतिभा और संगठानिक क्षमताओं का मुरीद हुए बिना नहीं रह सका । तब वे अपनी  मनमोहिनी मुस्कान और संगठन के लिए सारी ताकत और  संपर्कों को झोंक देने का जोश लिए युवा मोर्चे के हर आन्दोलन में युवाओं के साथ कंधे से कंधा मिलाते नजर आए  । पूरे राज्य में युवाओं का एक समूचा तंत्र केवल पुष्कर धामी के  पास है। वे संगठन और विचार की राजनीति को समझते हैं। पहाड़ की ऊबड़ खाबड़ जमीन से आने के नाते, जमीनी कार्यकर्ता की भावनाओं को पढ़ना उन्हें आता है।आपको अगर काम के प्रति लगन , समर्पण और हमेशा सकारात्मकता का भाव आज के किसी  युवा राजनेता में देखना हो तो वो  पुष्कर  से बेहतर कोई नहीं हो सकता।  वो राज्य  ऐसे  इकलौते राजनेता हैं जिसने पहाड़ की पगडंडियों से जिन्दगी की शुरुवात की और बेहद कम समय में  युवाओं के बीच लोकप्रिय  हुए हैं । अविभाजित यू पी और उत्तराखंड  में  पार्टी के सच्चे सिपाही के तौर पर उन्होंने खुद को अपने काम के बूते हर जगह साबित किया है वहीं खटीमा सरीखे मैदानी क्षेत्र से विधायक  होने के बाद भी वे कुमाऊँ व गढ़वाल दोनों मंडलों  में युवाओं के बीच  समान आधार रखते रहे हैं । इन सबके बीच  पुष्कर सिंह धामी   बेपरवाह रहते हुए शालीनता के साथ संघ व बीजेपी के घोष वाक्य "देश प्रथम, संगठन द्वितीय व व्यक्ति अंतिम" के सिद्धांत को दोहराकर अपने कार्य मे लग जाते हैं।

जब भगत सिंह कोश्यारी अन्तरिम भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री थे उस समय पुष्कर सिंह धामी ने मुख्यमंत्री कार्यालय को बखूबी संभाला  और  अपनी प्रशासनिक दक्षता से सराहनीय कार्य कर भगत सिंह कोश्यारी जी को अपना गुरु बना लिया और उनके बताए रास्ते पर राजनीति की राह का हर सफर पूरा किया । इसके अलावा तत्कालीन  सीएम बी सी खण्डूडी व निशंक सरकारों में भी सरकारी दायित्वधारी रहकर अपनी प्रतिभा के झंडे गाड़े।  शहरी विकास अनुश्रवण परिषद के उपाध्यक्ष के रूप में शहरी विकास की योजनाओं  के जरिए कायाकल्प किया । उत्तराखंड में आज की बदली परिस्थितियों  के बीच ये चर्चा आम हो चुकी है कि पुष्कर धामी ही अब उत्तराखंड भाजपा का भविष्य  हैं शायद यही वजह है अब भाजपा  पुष्कर के आसरे अपनी तीसरी पीढ़ी के नेताओं के भरोसे उत्तराखंड  के भविष्य के लिए युवाओं पर दांव खेलने को बेकरार दिखाई देती है ।  पुष्कर सिंह धामी  को कमान देकर आलाकमान ने जो संदेश दिया है  आज  उसे डिकोड किए जाने की जरूरत है ।इस बार पार्टी ने अनुभव से ज्यादा काबिलियत को तरजीह दी है जिसमें पुष्कर पूरी तरह से फिट बैठते हैं । पिछले कुछ समय से प्रदेश भाजपा में काँग्रेस से आयातित नेताओं की संख्या बढ़ी है जिनका एक मात्र उद्देश्य किसी तरह सत्ता की मलाई खाते रहना और बगावत का झण्डा बुलंद करना है ।  इन सभी की राजनीति में वैचारिक प्रतिबद्धता कुछ चीज नहीं रही । ऐसे सभी नेताओं से कन्नी काटते  हुए भाजपा आलाकमान ने  इस बार पुष्कर सिंह धामी  के रूप में नया दांव खेला है जो पार्टी का आम कार्यकर्ता है । इसमें कोई दो राय नहीं पुष्कर आज  उत्तराखंड के युवाओं की आन, बान और शान हैं। वो  उत्तराखंड के इकलौते युवा  नेता हैं जिनका पूरे  उत्तराखंड के हर कोने  में युवाओं के बीच व्यापक जनाधार है।  उनके चाहने वाले युवा आपको यमकेश्वर से लेकर धरमपुर , रायवाला से लेकर बदरीनाथ , माणा से लेकर धारचूला के पांगला,  खिर्सू  से लेकर  नेपाल के महेन्द्रनगर तक मिल जाएँगे ।  उत्तराखंड के सीमांत जनपद पिथौरागढ़ को पुष्कर धामी के सीएम बनने के बाद प्रदेश की सियासत में एक मजबूत पहचान मिली है । उनका अब तक का राजनीतिक  सफ़र उनकी व्यक्तिगत उपलब्धियों की कहानी को बखूबी बयां करता है।
 
पुष्कर सिंह धामी जहां एक ओर संघ के बहुत करीबी हैं वहीं  वे  बचपन से संघ की शाखाओं में विभिन्न प्रकल्पों के भी भागीदार रहे हैं। इसके अलावा अविभाजित उत्तरप्रदेश में विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ता के रूप में  उनकी  सक्रियता उनको अन्य नेताओं से अलग करती है । उत्तराखंड के सीमांत  जनपद पिथौरागढ़ में जन्म लेने के बाद भी उन्होनें  खटीमा जैसे मैदानी इलाकों को अपनी कर्मभूमि के रूप में चुना  और दो बार विधायक बनकर अपने काम के बूते वहाँ की जनता का दिल जीतने का काम किया है । 2012 के चुनावों से पहले एक दौर में खटीमा को काँग्रेस का मजबूत गढ़ माना जाता था लेकिन धामी ने अपनी बिसात से काँग्रेस को हर तरफ से चित्त कर दिया है । पुष्कर सिंह धामी को पिछली विधान सभा में बेहतर विधायक के सम्मान से उनके कामों के बूते नवाजा जा चुका है । धामी को राजनीति विरासत में नहीं मिली है और न ही उनके परिवार की राजनीति में में कोई पृष्ठभूमि रही है । फिर भी धामी ने अपनी मेहनत, जोश और जज्बे से उत्तराखंड की राजनीति में खुद को स्थापित किया है । एक खास बात जो उनको उत्तराखंड के अन्य नेताओं से अलग करती है वो है उनकी सादगी,  ईमानदारी और दामन पर किसी तरह का कोई दाग नहीं होना ।  उनका पहाड़ी व मैदानी दोनों  इलाकों में युवाओं के बीच जबर्दस्त जनाधार भी उत्तराखंड में उनको मजबूती प्रदान करता है । सूबे के 44 लाख से अधिक युवा वोटर को अपनी साधी चाल से सी एम रहते वो साध सकते हैं ।  युवाओं से उनका याराना देखकर हर किसी को उन पर रश्क हो जाये शायद यही वजह है भाजपा के आम कार्यकर्ता चार माह पहले त्रिवेन्द्र रावत के सी एम पद से हटने के बाद से ये  कहने लगे  थे कि पुष्कर सिंह धामी अपनी राजनीति से पहाड़ से लेकर दून तक  को  बखूबी साध सकते हैं जो आज सोलह आने सच साबित हुई है । गौरतलब है  पुष्कर सिंह धामी का नाम चार महीने पहले उपमुख्यमंत्री और कैबिनेट मंत्री  के तौर पर भी ज़ोर शोर चला था लेकिन टीम 11 में जगह बनाने में वो सफल नहीं हो पाये और मायूस से नजर आए। धामी को अपने समर्पण और काम के बूते इस बात की उम्मीद थी उन्हें समय आने पर बड़ी ज़िम्मेदारी अवश्य ही मिलेगी  शायद विधाता ने उनके लिए इससे भी दमदार स्क्रिप्ट लिखी थी जो आज सीएम के रूप में ताजपोशी  के रूप में सामने आई है ।  उनके राजनीतिक गुरु महाराष्ट्र और गोवा के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने तो 2017 में ग्राम श्रीपुर बिचवा में  विधान सभा चुनावों में एक चुनावी सभा को संबोधित करते हुए एक बार  कहा भी था पुष्कर सिंह धामी एक दिन मंत्री नहीं,  मुख्यमंत्री बनेगा  और  आज संयोग देखिये पुष्कर धामी  सीधे सी एम की कुर्सी तक जा पहुंचे हैं ।  

  हिमालय की गोद में बसे प्रकृति की अमूल्य धरोहर देवभूमि उत्तराखण्ड़ के सीमान्त जनपद पिथौरागढ की तहसील डीडीहाट वर्तमान तहसील कनालीछीना की ग्राम सभा हरखोला का तोक टुण्डी गांव में सूबेदार पद से सेवानिवृत्त हुए एक पूर्व सैनिक के घर में पुष्कर धामी का जन्म  16 सितंबर 1975 को तीन बहनों के पश्चात हुआ।  खटीमा में आर्थिक अभाव में जीवन यापन कर सरकारी स्कूलों से प्राथमिक शिक्षा ग्रहण की। धामी बचपन से ही स्काउट गाइड, एनसीसी, एनएसएस आदि से जुड़े रहे। वह स्नातकोत्तर एवं मानव संसाधन प्रबंधन और औद्योगिक संबंध में मास्टर्स की डिग्री ले चुके हैं। उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय में छात्रों को एक जुट करके निरन्तर संघर्षशील  रहते हुए उनके शैक्षणिक हितों की लडाई लडते हुए उनके अधिकार दिलाये तथा शिक्षा व्यवस्था के संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई । 1990 से 1999 तक उन्होंने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में जिले से लेकर राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर तक विभिन्न पदों में रहकर कार्य किया। प्रदेश मंत्री के पद पर रहते हुए लखनऊ में हुए अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के राष्ट्रीय सम्मेलन में संयोजक की भूमिका भी निर्वहन किया । राजनीतिक यात्रा के बढ़ते क्रम में इसके बाद उन्होने उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन में भी सक्रिय भूमिका निभाते हुए कई आन्दोलनों में प्रमुखता से भाग लेकर जन समस्याओं के निदान में गहरी दिलचस्पी दिखाई उनकी योग्यता को भांपकर इस दौरान पार्टी ने उन्हें युवामोर्चा में कमान दी । उत्तराखण्ड राज्य गठन के उपरांत पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी के साथ ओएसडी यानी सलाहकार के रूप में उनके करीब रहकर 2002 तक कार्य किया। 2002 से 2008 तक छः वर्षो तक दो बार भारतीय जनता युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष रहे। 2007 में कनालीछीना सीट से भाजपा से टिकट पाने में कामयाब नहीं हो पाये लेकिन निराश नहीं हुए । 2012 से  वह खटीमा से लगातार दो बार विधायक हैं।  2012 में भाजपा युवा मोर्चा के अध्यक्ष के तौर पर रुद्रपुर में युवा गर्जना रैली में उन्होनें  अपनी नेतृत्व  क्षमताओं को सभी के सामने बेहतर तरीके से दिखाया । चूंकि  वे कुमाऊं मंडल से आते हैं, इसलिए राज्य में भाजपा के गढ़वाल मंडल के ब्राह्मण प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक के साथ वह जातीय संतुलन में सटीक बैठते हैं। धामी की पैदाइश  सीमांत पर्वतीय जनपद पिथौरागढ़ की है  और तराई की खटीमा विधानसभा उनकी कर्मभूमि रही है, इसलिए वह पहाड़ और मैदान का संतुलन भी  बखूबी साधते हैं। उन पर न ही कोई पर्वतीय न होने का टैग लगा सकता है और न ही मैदानी न होने का लिहाजा उनकी सर्वस्वीकार्यता  और युवा शक्ति पर भरोसा देखते हुए भाजपा आलाकमान ने उनके नाम के साथ 2022 के रन में उतरने का मन बना लिया है  । भविष्य में पहाड़ में होने वाले परिसीमन को देखते हुए मैदानी इलाकों में सीटों की संख्या में इजाफा होने की संभावना है इस लिहाज से भी पुष्कर धामी भाजपा की भावी संभावनाओं को नए पंख लगा सकते हैं ।  उत्तराखंड में युवाओं के बीच अपनी पैठ बनाकर उन्होनें  अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया। उन्होंने राज्य के युवाओं में  में एक ऐसा भाव पैदा किया जिसके चलते न उनमें अपनी माटी के प्रति प्रेम पैदा हुआ बल्कि उनमें इस जमीन  काम करने की ललक भी जगी है । खटीमा में पूर्व सैनिकों के सम्मेलन से लेकर रोजगार के मेले और पलायन पर सार्थक गोष्ठियों को  आयोजित करवाकर उन्होनें  इस मामले  में खुद को एक आशावादी और विकासवादी राजनेता के रूप में पेश किया है जिसकी रगों में देश प्रेम और पल –पल उत्तराखंड के विकास की धारा बहती है । आने वाले दिनों में वो किसान आंदोलन के बाद तराई क्षेत्र में भाजपा को आगामी विधानसभा चुनाव में संभावित नुकसान को भी रोकने का माद्दा भी रखते हैं।

राजनीती में पुष्कर  होना इतना आसान नहीं है इसके लिए प्रतिभा, जुनून और  समर्पण होना चाहिए।  वो इस मामले में बहुमुखी प्रतिभा के धनी  रहे हैं।  2012 में खटीमा जीतने के बाद से ही उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और उत्तराखंड में दो बार विधायक  बनकर उत्तराखंड  के सी एम की कुर्सी तक  शानदार ढंग से एक सामान्य कार्यकर्ता के तौर पर अपनी मेहनत के बूते पहुंचे हैं । उत्तराखंड की पहाड़ी जमीन के हर  उबड़ खाबड़ रास्तों का पता पुष्कर धामी को  है। वो  युवा मोर्चा के पद पर रहते हुए व्यक्तिगत रूप से कई हजार गाँवों में गए हैं , साथ ही युवाओं से संवाद केंद्र में रहा है । इसका लोहा इनके विपक्षी  और धुर विरोधी भी मानते रहे हैं। किसी ने ठीक ही कहा है समय से बड़ा बलवान कोई नहीं। इसीलिए वे अपनी विधान सभा में विकास के काम में सबको साथ लेकर चलना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि विकासधारा में सब साथ हों, भले ही विचारधाराओं का अंतर क्यों न हो। यह सिर्फ संयोग ही नहीं है कि आज उत्तराखंड का युवा उनको एक नई नजर से देख रहा है तो ऐसे में  पुष्कर धामी का अपनी पहचान को निरंतर प्रखर बनाना साधारण नहीं है, शुभ संकेत यह है कि ये सवाल राज्य के मुखिया के जेहन में  पहले से भी हैं। हर व्यक्ति का समय होता है जब वह शिखर पर पहुंचता है ।  पुष्कर धामी  इस मामले में भी काफी धनी हैं। हरसैम की कृपा उन पर सदा बनी रही है। । उत्तराखंड में युवाओं की राजनीती के केंद्र में हर समय पुष्कर ही रहे । आज भी जब आम आदमी उनको देखता है तो उसे सहसा विश्वास नहीं होता ये वही पुष्कर है जो युवा मोर्चा के अध्यक्ष , विधायक हैं। विधायक रहते हुए  खटीमा जैसे पिछड़े इलाके में जो विकास की गंगा अपने दो बार के कार्यकाल में बहाई है उसकी मिसाल देखने को नहीं मिलती ।  पुष्कर धामी को खाली समय में जब भी मौका मिलता है तो युवाओं से  सीधा संवाद करने में वो पीछे नहीं रहते हैं । उनकी समस्याओं को मौके  पर ही निपटाने का प्रयास करते हैं । विचार को लेकर स्पष्टता, दृढ़ता और गहराई के बावजूद उनमें जड़ता नहीं थी। वे उदारमना, बौद्धिक संवाद में रूचि रखने वाले, नए विजन के साथ सोचने वाले और जीवन को बहुत सरल और व्यवस्थित ढंग से जीने वाले व्यक्ति हैं । उनके आसपास एक ऐसा आभामंडल स्वतः बन जाता है कि उनसे सीखने की ललक हर युवा नेता में होती है ।  युवा को अपने विमर्श का हिस्सा बनाना उन्हें युवाओं का महानायक  बनाता है । वे परंपरा के पथ पर आज भी आधुनिक ढंग से सोचते हैं । चुनावी बरस में धामी की सबसे बड़ी चुनौती  अब भाजपा को 2022 के चुनावों में सत्ता की दहलीज पर पहुंचाने की है ।  

सीमांत जनपद पिथौरागढ़ जिले के एक छोटे से गांव से शुरू हुई उनकी राजनीति यात्रा आज जिस पड़ाव पर है अविस्मरणीय है। एक पहाड़ी  नौजवान के  गाँव से लेकर  उत्तराखंड  मुख्यमंत्री बनने तक की कहानी  उनके जज्बे और लगन की हिमालय जैसी ऊँची उड़ान है।  पुष्कर अपनी साफगोई और बेबाकी  के लिए जाने जाते हैं और  भारतीयता के मुखर प्रवक्ता रहे हैं। अपनी युवावस्था में जिस विचारधारा को लेकर वह साथ आये उसका पालन करते हुए बिना मंत्री बने सीधे विधायक से  सी एम बनकर नयी मिसाल राज्य में पेश  की और और खुद को लंबी रेस का घोडा साबित किया है । उनके वाणी और कर्म में जो साम्य  है वह उन्हें एक कुशल जननेता बनाता है। राष्ट्रबोध और राष्ट्र  के लोगों के प्रति प्रेम उनमें कूट कूट कर भरा है। उनसे मिलने का अनुभव हमेशा सुखद अहसास करा जाता है। उम्मीद जगाना और नाउम्मीद को  उम्मीद में बदलना , युवाओं को आगे बढ़ने के लिए सदा  प्रेरित करने के मामले में उनका कोई सानी  नहीं है।  पुष्कर धामी  के साथ प्लस पॉइंट यह है वह सूबे  के सबसे युवा  सी एम होने के साथ ऊर्जावान भी हैं। कुछ तो बात है हाल ही में हुए परिवर्तन के बाद भी सोशल मीडिया पर भी युवाओं के बीच पुष्कर धामी  ट्रेंड कर रहे हैं और छाए हुए हैं ।  आज भी वे उत्तराखंड युवाओं की  एक धुरी हैं  जिसके पास युवाओं का विशाल जमावड़ा है। राज्य के युवाओं को उनसे बड़ी उम्मीदें हैं ।  एक  राजनेता के तौर पर  उनकी  यही  पहचान उन्हें  अन्य नेताओं  से  अलग  करती  है। उन्हें पता है कि उनको मिली नई जिम्मेदारी साधारण नहीं है। वे एक ऐसे परिवार के मुखिया बनाए गए हैं जिसकी परंपरा में नित्यानन्द स्वामी , भगत सिंह कोश्यारी, बी सी खण्डूड़ी, रमेश पोखरियाल निशंक ,विजय बहुगुणा , त्रिवेन्द्र सिंह रावत , तीरथ सिंह रावत  जैसे असाधारण  और कर्मठ जैसे कुशल रणनीतिकार हैं । उत्तराखंड भाजपा का संगठन साधारण नहीं है।  पुष्कर धामी की खूबी ये हैं वो सभी के साथ सहजता से बात करते हैं और अपनी शपथ से ठीक पहले वो सभी तीन पूर्व सीएम और सीनियर मंत्रियों के आशीर्वाद लेने उनके घर गए । कम समय में पार्टी को आगामी  चुनाव में सत्ता में लाने की  उनकी कोशिशें कितनी रंग लाएंगी यह तो समय बताएगा, किंतु पुष्कर धामी में दौड़ भाग करने और सरकार – संगठन में तालमेल बनाने की असाधारण क्षमताएँ हैं । पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के मूल मंत्र ‘चैरेवेति-चैरेवेति’ को वे राज्य गठन के बाद से लगातार साकार कर रहे हैं । निष्काम कर्मयोगी पुष्कर धामी  की साधना जिन्होंने देखी है वे मानेंगें कि इस  45 बरस के अदने से कार्यकर्ता को राजनीति  सब कुछ यूं हीं नहीं मिला है। उन्होनें विचारधारा के साथ  कभी कोई समझौता नहीं किया और धैर्य धारण किया  है । पुष्कर पूरे प्रदेश में युवा मोर्चे में रहते हुए घूमे हैं लिहाजा उन्हें राज्य की  बेहतर समझ है । सूबे का मुखिया  होना बहुत कठिन उत्तराधिकार है, इसे वे बखूबी समझते हैं। राजनीति में आज के युवा नेताओं में ऐसा समर्पण दूर तक देखने को नहीं मिलता । आज हर कोई राजनीति की रपटीली राह शॉर्ट कट रास्तों के आसरे तय करना चाहता है ।  निश्चय ही पुष्कर धामी ने अपनी काबिलियत से यह साबित कर दिया है उनको राज्य में कमान देने का आलाकमान का फैसला कितना जायज है । पुष्कर आज उत्तराखंड भाजपा के शिखर पर हैं, तो इसके भी खास मायने हैं,  एक तो यह कि भाजपा में साधारण काम करते हुए आप असाधारण बन सकते हैं, दूसरा यह कि सामान्य कार्यकर्ता कितनी ऊंचाई हासिल कर सकता है वे इसके भी अप्रीतम उदाहरण है।

  पुष्कर धामी  समय समय पर  युवाओं से संवाद करते हैं और उनकी समस्याओं को सुनते हैं । तीन बरस पहले पुष्कर धामी ने सर्जिकल स्ट्राइक डे पर हल्द्वानी में पूर्व सैनिकों पर पकड़ मजबूत करने के लिए भव्य कार्यक्रम  कराया था ।  खटीमा में राजनाथ सिंह गृह मंत्री रहते एक सम्मेलन में शिरकत करते हैं और उनकी तारीफ़ों के कसीदे यूं ही सबके सामने नहीं पढ़ते ।  फेसबुक,  ट्विटर , व्हाट्सएप जैसे  माध्यमों में उनकी सक्रिय भागीदारी उनकी संवेदनशीलता को दिखाती है । सही मायनों में वे  सच्चे कर्मयोगी हैं । एक बार जो ठान लेते हैं उसे पूरा करके ही दिखाते हैं ।  खटीमा  में काम करते हुए कई बार उनको देखा है । कोरोना  के दौर में भी वह खाली नहीं बैठे और 18 से 20 घंटे तक बिना रुके काम अनरवत रूप से  लोगों की समस्याओं का समाधान करते रहे । पुष्कर  की कथनी और करनी में कोई अंतर नहीं दिखता है और वो हमेशा सकारात्मक उर्जा से सरोबार रहे हैं और यही उर्जा उनको विषम परिस्थितियों में भी आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है ।  सूबे के मुखिया के तौर पर  वो आज उस  अग्निपथ पर हैं जहाँ लोगो की बड़ी अपेक्षाएं अभी भी  उनसे जुडी हैं । बेशक महामहिम भगत सिंह कोश्यारी  का आशीर्वाद उनके साथ है लेकिन उत्तराखंड में बहुसंख्यक राजपूत  वोट पर आज भी हरीश रावत का ही जादू चलता है लेकिन अब पुष्कर धामी के सी एम के चेहरे के रूप में सामने आने से हरीश रावत की मुश्किलें पूरे उत्तराखंड में बढ़नी तय हैं। पुष्कर धामी  के युवा तुर्क के रूप में भाजपा को कुमाऊँ में ऐसा दमदार चेहरा मिला है जो हरीश  रावत को उनके घर में अपने युवा जोश से हराने का माद्दा रखता है ।

 पुष्कर धामी की असल अग्नि परीक्षा का समय  अब एकदम निकट है। विधान सभा चुनाव में बेहद कम समय होने के चलते विकास की नई इमारत गढ़ते  हुए प्रदेश के सभी सीनियर और जूनियर नेताओं को साधते हुए सत्ता में भाजपा की  2022 में दमदार वापसी  करवाना उनके सामने बड़ी चुनौती है । खास तौर से पुष्कर धामी की सी एम पद पर ताजपोशी के बाद से कुमाऊँ में नाराजगी के सुर जनता में अब  धीमे पड़ गए हैं ।  यदि वह सभी बड़े नेताओं को साथ ला पाने में सफल रहते हैं तो अगले चुनाव में भाजपा पूर्ण बहुमत पा सकती है। इसके ठीक उलट यदि खेमेबाजी का दौर भाजपा के भीतर जारी रहता है तो कोई आश्चर्य नहीं कि अगली सरकार बनाने के लिए भाजपा को  नाकों चने  पर मजबूर होना पद जाये जो राज्य के हितों पर गहरा असर डालने वाला होगा। अब चूंकि पार्टी नेतृत्व को लेकर चल रही अटकलों पर केन्द्रीय नेतृत्व के फैसले ने विराम देने का काम किया है। यह देखा जाना बाकी है कि  पुष्कर धामी  कैसे  सीनियर और जूनियर को साध पाने का प्रयास करेंगे ? कांग्रेस का सूबे में भविष्य भी अब की पुष्कर धामी  की इसी राजनीति से तय होगा।  सी एम के चेहरे के रूप में पुष्कर धामी  के सामने आने के बाद अब शायद कॉंग्रेस को भी अपनी रणनीति में बदलाव करने को मजबूर होना पड़ जाये । युवा  मुख्यमंत्री धामी को इतिहास की इस घड़ी में यह अवसर मिला है कि वे इस भूगोल को उसकी तमाम समस्याओं के बीच एक नया आयाम दे सकें।  धामी के सामने चुनौतियों का विशाल पहाड़ खड़ा है । बहुत चुनौतीपूर्ण और कम समय होने के बावजूद उन्हें इन चुनौतियों को स्वीकार करना ही होगा, क्योंकि सपनों को सच करने की जिम्मेदारी  देवभूमि के भूगोल और इतिहास दोनों ने उन्हें बखूबी दी है। वैसे भी पहाड़ और मैदान की परिस्थितियों की उनको बखूबी समझ है । जाहिर है वे इन चुनौतियों से किसी भी हाल में भागना भी नहीं चाहेंगे।  

समय का पहिया बहुत तेजी से घूमता रहता है जो कुछ करना चाहते हैं उनके लिए एक- एक पल का बड़ा महत्व होता है। विधान सभा चुनाव में अब बमुश्किल 7 से 8 महीने बचे हैं। देवभूमि  में ऐसी ही जिजीविषा का धनी  युवा तुर्क के रूप में नया  इतिहास रचने जा रहा है। उसकी ताजपोशी के बाद से  युवाओं की उम्मीदें परवान चढ़  रही हैं। केंद्र में नरेंद्र मोदी के पी एम के बाद प्रदेश को युवा हृदय सम्राट के रूप में ऐसा सी एम मिला है जिसके मन में उत्तराखंड के विकास को लेकर एक अलग तरह का विजन है। दोनों 2022 के चुनावों में युवाओं के बीच इसको कैश करने की कोशिश करेंगे जिससे भाजपा की संभावनाएँ चुनाव में बेहतर हो सकेंगी । मुख्यमंत्री के सिंहासन पर ताजपोशी होने के बाद  पहाड़ की जनता उन्हें अपनी बधाई  देते हुए शायद इस बार यही कह रही है राजनीति में अपनी कप्तानी में खेलने , फील्डिंग लगाने, शाट मारने , सही टीम चुनने और अपना हुनर दिखाने के मौके बार बार नहीं मिलते इसलिए  इस बार मत चूको पुष्कर धामी !


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