मयूख महर
की छवि पिथौरागढ़ विधान सभा क्षेत्र में चहुंमुखी विकास करने वाले नेता की बनी है। जिला
पंचायत अध्यक्ष के अपने कार्यकाल में मयूख महर ने गाँव- गाँव तक विकास की किरण
पहुंचाई। वह परिसीमन से पूर्व जिले की कनालीछीना विधानसभा सीट का भी प्रतिनिधित्व
कर चुके हैं, जहां उन्होनें उत्तराखंड
क्रांति दल के दिग्गज नेता काशी सिंह ऐरी को पटखनी दी । 2012 के विधान सभा चुनावों
में उन्होनें पिथौरागढ़ सीट से भाजपा नेता स्वर्गीय प्रकाश पंत को पराजित कर अपनी
धमक राजधानी देहरादून में दिखा दी । अपने इस कार्यकाल में मयूख महर ने अपनी विकास
की नई सोच के साथ पिथौरागढ़ की
तस्वीर बदलने का काम किया जिसे जनता ने भी खासा सराहा लेकिन मेगा
विकास कार्यों को अंजाम दिये जाने के बाद भी उत्तराखंड के पिछले विधानसभा
चुनावों में मयूख महर को हार का सामना करना पड़ा । चुनावों के दौरान माहौल तो पूरी
तरह से उनके पक्ष में था लेकिन कुछ दिन पहले हुई प्रधानमंत्री मोदी की सभा ने पूरी
चुनावी बाजी को पलट कर रख दिया। घुमा
फिराकर बात करना उनके अंदाज में शुरुवात से शामिल नहीं रहा है। वह सिर्फ और सिर्फ
अपने काम पर फोकस रखते हैं और प्रचार- प्रसार से खुद को दूर रखते हैं। अपने
संसाधनों से कई बार वो विकास कार्यों को अंजाम देने में पीछे नहीं रहते हैं। मयूख
महर की काम करने की शैली अन्य जनप्रतिनिधियों से अलहदा रही है । जनता के हर
दर्द में सहभागी बनते हैं और उनकी समस्याओं का त्वरित समाधान भी करते हैं ।
स्वर्गीय प्रकाश पंत की मृत्यु के बाद 2019 में जब इस सीट पर
उपचुनाव हुआ तो मयूख महर ने काँग्रेस का प्रत्याशी बनने से साफ इंकार कर दिया
लेकिन 2022 के चुनाव में मयूख महर पिथौरागढ़ सीट से काँग्रेस के मजबूत प्रत्याशी
हैं । इस बार रण कुछ अलग होगा । कुछ इसी अंदाज में नई थीम के साथ मयूख इस बार 2022
की चुनावी पिच पर बैटिंग करने के लिए तैयार हैं। काँग्रेस के लिए मयूख महर की क्या
अहमियत है ये इस बात से समझा जा सकता है काँग्रेस महासचिव हरीश रावत ने इस बार उन्हें जिले की चारों
विधान सभा सीटें जिताने की बड़ी ज़िम्मेदारी सौंपी है । मयूख महर को आगे कर काँग्रेस
पार्टी के कार्यकर्ताओं में न केवल जोश भरना चाह रही है बल्कि जिले की सभी सीटें
अपने खाते में डालने की तैयारी में है । मयूख महर अपने बेबाक अंदाज के कारण जाने
जाते हैं । हर्षवर्धन पाण्डे के साथ हुई विशेष बातचीत में उन्होनें आगामी चुनावों, काँग्रेस की भूमिका , पिथौरागढ़ विधानसभा सीट पर
अपने कार्यकाल में किए गए कामों जैसे कई विषयों पर खुलकर अपनी राय को रखा है ।
प्रस्तुत
है इस बातचीत के मुख्य अंश :
अब तक राज्य का 21 साल
का सफर बड़ा कांटो भरा सफर है । जिन मुद्दों को लेकर ये राज्य बना था उसमें बहुत
सारे लोगों ने शहादत दी थी, वो सपने आज तक पूरे
नहीं हो पाये हैं । बाकी पहाड़ी राज्य के सपने को हम कहीं से कहीं तक लागू नहीं कर
पाये हैं । न हम पहाड़ में अपनी राजधानी बना पाये हैं , न ही हम अपनी मातृभाषा कुमाऊनी और गढ़वाली को एक मान्यता दे पाये हैं , न ही पहाड़ के दूरस्थ क्षेत्रों में बसने वाले उन लोगों को जिन्होनें विकास को अब तक देखा ही नहीं है, उन तक विकास की किरण
पहुंचा पाये हैं और हमारे यहाँ जो शिक्षा व्यवस्था का हाल है वो किसी से छुपा नहीं है। मैं तो ये मानूँगा कि 21 साल सारी राजनीतिक पार्टियों का
ये घालमेल था जो इन्होनें अपने राजनीतिक स्वार्थों के लिए 21 साल तक इसका प्रयोग किया । इस दौर में पार्टियां जरूर मोटी हुई हैं , मजबूत हुई हैं लेकिन जनता लुटी की लुटी रह गई हैं ।
हाल के बरसों में ये
राज्य मुख्यमंत्री उत्पादक प्रदेश बनकर रह गया है। चाहे भाजपा हो या आपकी पार्टी
काँग्रेस , दोनों के हालात एक जैसे हैं।
मुख्यमंत्री की संख्या भले ही आपकी पार्टी में भाजपा से कम है लेकिन बार – बार मुख्यमंत्री
बदलने से तो विकास कार्य प्रभावित होते हैं ?
सीएम बदलने का जो पैटर्न देश में चल चुका है वैसे
तो ये पूरे देश में चल रहा है लेकिन अपने उत्तराखंड में ये तो ज्यादा हो गया है।
कर्नाटक में गुजरात में तीन सीएम बदले गए हैं । यहाँ पर भी 3 सीएम बदल
गए हैं लेकिन ये जो पैटर्न चल रहा है इससे निश्चित ही नुकसान होता है । चूंकि सीएम
विकास करने के लिए ही बनता है न कि अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए बनता है उसका
दुष्परिणाम प्रदेश की जनता को झेलना पड़ता है। चूंकि पाँच साल चुने जाने वाले
जनप्रतिनिधि वो अपने को स्थापित करने के लिए चाहे मंत्री के रूप में हों , या सीएम के रूप में उसी लड़ाई में लड़ते रहते हैं, जनता की ओर उनका ध्यान नही होता है । जनता के संसाधनों का उसमें दुरुपयोग
किया जाता है । निश्चित रूप से मैं जो बात आपसे कर रहा हूँ आप बखूबी समझ ही रहे
हैं। तो ये सी एम बदलने का जो पैटर्न चला है उससे भी हमारे राज्य को बहुत नुकसान
हुआ है। इसमें राजनीतिक पार्टियां जो बीते 21 सालों से यहाँ पर राज कर रही हैं दोनों उतना ही दोषी भी हैं। किसी एक पार्टी को हम इसका
दोषी नहीं मान सकते । तो ये प्रथा अब राज्य में बदलनी चाहिए। अब जनता को ये सोचना
चाहिए और सोच समझकर ही वोट करना चाहिए क्योंकि कुछ लोगों ने ऐसा माहौल बना दिया है
ये राजनीति उनकी बपौती है। वो राजनीति में हमेशा चिरायु रहेंगे और जब तक
जनप्रतिनिधि को जनता उठाती नहीं बैठाती है तब तक उसमें कोई परिवर्तन नहीं आता
क्योंकि जब तक वो हारेगा नहीं तब तक काम नहीं करेगा क्योंकि वो तो ये सोचता है मैं
तो जीतकर आया हूँ मुझे अब काम करने की क्या जरूरत है । किन तरीकों से वो जीतता है वो किसी से छिपा नहीं है और वो जीतता है ।
लूट- खसोट और भ्रष्टाचार इस राज्य का पर्याय बन
चुका है। भाजपा सत्ता में आती है तो वो कहती है हम काँग्रेस के 56 घोटालों की जांच
कराएंगे। काँग्रेस सत्ता में आती है तो वो भी
भाजपा के घोटालों की जांच की बात कहती हुई दिखाई देती है लेकिन लोकायुक्त के मसले
पर सत्ता में आने के बाद मामला आगे नहीं बढ़ पाता । भाजपा ने पिछले चुनाव में सत्ता
में आने पर 100 दिन में लोकायुक्त लाने का वादा किया था लेकिन अब तक ये ठंडे बस्ते
में है। आपकी काँग्रेस की सरकार भी इस पर आगे
नहीं बढ़ पायी ? ऐसा क्यों ?
लोकायुक्त ऐसा नाम है जो पूरे देश को ढकने के लिए
यूज किया जाता है। जनता की भावनाओं को भड़काने के लिए और उनको वेवकूफ बनाने के लिए
लोकायुक्त शब्द का इस्तेमाल किया जाता है। आप जरा देखिये केंद्र में कोई लोकायुक्त
नहीं है। अन्ना हज़ारे कहते थे लोकायुक्त आना चाहिए लेकिन लोकायुक्त नहीं आया और इस
प्रदेश में भी लोकायुक्त की बातें कभी धरातल में आई ही नहीं । जो आया भी वो
कठपुतली टाइप व्यक्ति आया और उसने क्या किया जनता को ये कुछ पता नहीं चल पाया और
जहां तक भ्रष्टाचार का मसला है चाहे काँग्रेस हो या भाजपा एक मुहावरा है चोर –चोर
मौसरे भाई उससे ही बहुत कुछ साफ हो जाता है ।
पलायन पहाड़ों में एक बड़ा मसला है। कोविड काल में
कई प्रवासी अपने गांवों में आए लेकिन यहाँ ज़मीनें औने – पौने
दामों में बिक चुकी हैं। विकास की चमक मैदानों में नजर आती है पहाड़ों में वही हाल
है जो यूपी में हुआ करता था। शिक्षा , स्वास्थ्य , पेयजल जैसी समस्याओ के लिए जनता तरस रही है ?
आज हमारा युवा जो यहाँ का मूल निवासी है उसके पास
अपनी छोटी जमीन है , आज पहाड़ में कोई ऐसा नहीं होगा जिसके पास कुछ
जमीन न हो, कच्चा पक्का मकान न हो, एक
तोला सोना न हो। आप उसे उतना गरीब नहीं कह सकते, यहाँ
के संसाधनों से अपना घर न चला सके । आज हमारा युवा मैदानी इलाकों में जाकर होटलों
में बर्तन धोना पसंद करता है । अपने पुश्तैनी खेत को जोतना , बगीचों को चलना पसंद नहीं करता। घरों में रहना पसंद नहीं करता तो इसका
दोषी उतना ही है जितना हमारी सरकारें । हम लोगों की मानसिकता को नहीं बदल पाये हैं
तो वे भी उतना ही दोषी हैं क्योंकि हम पाने पहाड़ों को छोड़कर जा रहे हैं , खेती को छोड़ रहे हैं , वीरान बंजर ज़मीनें छोड़ रहे
हैं। हम आरोप लगाते हैं जंगली जानवर खेतों को नष्ट कर दे रहे हैं।फसलों को नुकसान
पहुंचा रहे हैं पर हम अपनी थाती को छोड़कर जाएंगे तो उसके दुष्परिणाम तो भुगतने ही
पड़ेंगे। आज हमको मैदानी इलाकों में बर्तन धोने तक की सुविधा नहीं मिल पा रही है ।
कोविड आया तो अंत में हम उसी जगह शरण लेने को मजबूर हुए ज्सिकों छोड़कर हम गए थे ।
जो हमारी सबसे बड़ी चूक है । हम अपनी पुश्तैनी थाती को छोड़कर जा रहे हैं जिसके
दुष्परिणाम हमें भोगने पड़ेंगे ।
क्या इस बार के चुनाव में काँग्रेस पूरी मजबूती से
एकजुट होकर चुनाव लड़ेगी ? काँग्रेस
के बारे में कहा जाता है अपने ही काँग्रेस को हराते हैं। राज्य में विकास पुरुष
स्वर्गीय तिवारी जी के दौर से ही काँग्रेस में गुटबाजी का दौर देखने को मिला है।
आपको क्या लगता है क्या काँग्रेस अभी संक्रमण काल से गुजर रही है ?
काँग्रेस संक्रमण काल से गुजर रही है ये आप
राष्ट्रीय परिपेक्ष्य में कह सकते हैं लेकिन उत्तराखंड में पार्टी साख के दौर से
गुजर रही है। आज हमारी पार्टी में नेता चुनाव जीतने के
बजाय खुद को सीएम के रूप में प्रोजेक्ट करने में लगे
हुए हैं जहां हर आदमी मंत्री बनना चाहेगा तो उस पार्टी का बंटाधार तो होना ही है और काँग्रेस उस दौर को खत्म कर दे तो प्रदेश में
भारी बहुमत से अपनी सरकार बना लेगी। इस प्रदेश को एक अच्छा
नेतृत्व देगी , ऐसा मेरा मानना है क्योंकि पिछले 5
साल डबल इंजन सरकार ने कुछ काम इस प्रदेश में नहीं किया है । तीन सीएम बदले जा चुके हैं । प्रचंड बहुमत और 57 विधायक होने के बाद भी ये
ताजुब्ब करने वाली बात है । ऐसा काम को भाजपाई ही कर सकते हैं । ये प्रदेश अब किस
स्थिति में जा रहा है जनता समझ रही है । जनता फिर से सत्ता में काँग्रेस पार्टी को
देखना चाहती है । हमारी पार्टी के बड़े नेता जो स्वार्थवश अपने को बड़े पद की दौड़
में रखे हुए हैं वो इस स्थिति को बिगाड़ भी सकते हैं, ऐसा मेरा मानना है ।
आप लंबे समय से काँग्रेस पार्टी से जुड़े हुए हैं
। व्यक्तिगत रूप से आज आपसे जानना चाहूँगा 2016 में प्रदेश काँग्रेस में जो बड़ी
टूट हुई उसके बाद कहीं न कहीं काँग्रेस राज्य में कमजोर हुई है ? कहीं
ना कहीं जो जान फूंकने की जो कोशिशें होनी चाहिए थी वो नहीं हुई और विपक्ष की
भूमिका तो हरीश रावत निभा रहे हैं । साढ़े चार साल तक वो धरना प्रदर्शन कर रहे थे ।
लोकतन्त्र में पक्ष के साथ विपक्ष की भूमिका भी जरूरी है ?
मुझे नहीं लगता 2016 की टूट के बाद से काँग्रेस
राज्य में कहीं कमजोर हुई है क्योंकि आज भी काँग्रेस का बड़ा जनाधार है
और ये जनाधार दो या चार साल का नहीं है । ये एक लंबी शताब्दी की मेहनत के बाद
जनाधार बना है । आज भी हम जैसे नेता भी इसी जनाधार के बूते खड़े हुए हैं । काँग्रेस का एक कैडर वोट है। अगर आप कह रहे हैं 2016 में जो नेता काँग्रेस
छोड़कर गए उनके जाने से पार्टी कमजोर हुई है तो अगर वो वापस आ गए तो काँग्रेस मजबूत
होगी । मुझे तो ये लगता है उनके जाने से न फर्क
पड़ा है न आने से फर्क पड़ेगा ।
जो चेहरे शुरुवात में बाहर गए क्या वे फिर से
काँग्रेस में वापस आएंगे ?
शुरुवात हो चुकी है आप देख ही रहे हैं । एक महीने
में वो दो चार औरों को भी बटोर कर ले आएंगे ।
पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने कुछ महीने
पहले बयान दिया था कुछ समय बाद राज्य में तेजी से परिस्थितियाँ बदलेंगी ? क्या लग रहा है आपको वो तो ये भी कह रहे हैं काँग्रेस के कई चेहरे भाजपा
में आने की तैयारी कर रहे हैं ।
आप मुझे एक बात बताइये विजय बहुगुणा जी ने कहा
10-15 दिन में क्या होगा आप देखिये । 10-15 दिन में तो वे
भी काँग्रेस जॉइन कर सकते हैं। उसका एक मतलब तो ये
भी निकाला जा सकता है। अगर आप देख रहे हैं काँग्रेस टूटेगी और भाजपा से जुड़ेगी तो
भाजपा से भी टूटकर कई कांग्रेस में आयंगे इसका ये मतलब भी निकाला जा सकता है। ये
जो घुमावदार बातें बहुगुणा जी ने कही हैं उसका कोई विश्वास मायने नहीं रखता ।
आप काँग्रेस की चुनावी कोर कमेटी से भी जुड़े हुए
हैं। तो क्या किसी चेहरे को आगे करके पार्टी को ये आगामी चुनाव लड़ना चाहिए । भाजपा
को सीएम के रूप में पुष्कर धामी को प्रोजेक्ट कर चुकी है लेकिन काँग्रेस ने अपना
चेहरा अभी तक नहीं दिया है । मैदान में जाने से पहले कोई न कोई चेहरा तो देना ही
होगा ? राष्ट्रीय स्तर पर परिस्थितियाँ अलग
हैं लेकिन राज्य में किसी न किसी चेहरे के साथ तो आगे जाना ही होगा ?
जहां तक मेरा मानना है इसका निर्धारण तो पार्टी
हाईकमान करेगा और जहां तक मैं समझता हूँ हमारे पास कई नेता हैं। उन सभी के सामूहिक
नेतृत्व में हमको लड़ना चाहिए और जो नए युवा चेहरे कन्हैया कुमार, जिग्नेश , हार्दिक पटेल जैसे लोग पार्टी
से जुड़ रहे हैं वो अपनी ऊर्जा इस प्रदेश को भी देंगे। ये सभी युवा हैं। इनके
ओजस्वी विचार हैं। एक्सपोजर भी है इनके पास और भविष्य की सोच और ताकत भी है। तो
ऐसे लोगों को आगे लाकर हमको चुनाव लड़ना चाहिए ताकि एक नया सोच और समझ देश को दे
सकें ।
राष्ट्रीय परिपेक्ष्य की बात मैं करूँ तो
काँग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर कोई नहीं आया है । यहाँ उत्तराखंड में आपने
चार –चार कार्यकारी अध्यक्ष बना दिये हैं । टिकटों के
चयन में उस समय परेशानी तो नहीं होगी जब इन सभी के अपने अपने गुट होंगे और वे टिकट
लेने की होड में नजर आएंगे ?
टिकटों का बंटवारा कैसे किया जाता है ये पार्टी
हाईकमान तय करेगा । जो चार अध्यक्ष की बात आप कर रहे हैं वो तो एक प्रक्रिया है
अपनी पार्टी में । हर पार्टी अपने अपने लोगों को बांधे रखती है । उस सोच के साथ ये
चार अध्यक्ष हमने बनाए । मुझे व्यक्तिगत रूप से लगता है ये सभी टिकटों को लेकर
दखलंदाजी नहीं कर पाएंगे ।
एकजुट होकर अगर उत्तराखंड में काँग्रेस लड़ती है
तो परिस्थितियाँ बदल भी सकती हैं । चार कार्यकारी अध्यक्ष बनाने के बाद भी
परिवर्तन यात्रा नेताओं के दिलों में परिवर्तन नहीं ला सकती है और कामयाब होती
नहीं दिखाई दे रही । इसे आप कैसे देख रहे हैं ?
परिवर्तन धरातल पर नहीं दिखाई दिया जो आप कह रहे
हैं । निसंदेह आप अगर आज आम आदमी को कुरेदने का प्रयास करें तो पहले ही वो
काँग्रेस को उतना प्रमोट नहीं करे , न बोले लेकिन वो
खुलकर भाजपा के खिलाफ बोल रहे हैं जो पाँच साल में उनका शोषण , अत्याचार , उत्पीड़न हुआ उससे वो त्रस्त हो
गए हैं जिसके बाद वो किस निर्दलीय की तरफ नहीं जा सकते । किसी ऐसी पार्टी की तरफ
भी नहीं जा सकते जो भाजपा की बी टीम हो तो उनका रुझान काँग्रेस की तरफ ही होगा ।
काँग्रेस पार्टी का सत्तर वर्षों का कार्यकाल ऐतिहासिक है । कुछ करप्शन हर जगह
होता है । स्वार्थी हर जगह होते हैं लेकिन काँग्रेस पार्टी द्वारा किए गए कार्यों को जनता आज भी भुला नहीं पाई है और इस देश को फिर से काँग्रेस पिछली राह
पर ले जाना चाह रही है तो निसंदेह काँग्रेस का भविष्य उज्जवल है और जनता लौटकर
काँग्रेस की तरफ ही आएगी ।
पंजाब पर आना चाहता हूँ । कुछ समय पहले वहाँ
चरणजीत सिंह चन्नी के रूप में बड़ा बदलाव हुआ । तब पंजाब के प्रभारी हरीश रावत ने
कहा उत्तराखंड में भी वे एक दलित को मुख्यमंत्री की कुर्सी में देखना चाहते हैं । इसे व्यक्तिगत रूप से आप कैसे देख रहे हैं ? क्या
परंपरागत वोट जो काँग्रेस का कोर वोटर है उसकी तरफ जाने की कोशिश हो रही है ?
परंपरागत वोट और कोर वोट आप ऐसे शब्दों का प्रयोग
कर रहे हैं जो आज की राजनीति में निरर्थक हो चुके हैं । आज महिलाएं हों या युवा , मजदूर हों वो सब जागरूक हैं । हरीश रावत जी दलित को सीएम बनाना चाह रहे
हैं तो ये उनकी अच्छी सोच है । मैं इस बात को
मानता हूँ लेकिन उस समय क्या हालत बनते हैं ? क्या समीकरण होते हैं ? किन परिस्थितियों
से पार्टी गुजरती है ये उस समय तोला जाएगा । किसको बनाया जाए किसको नहीं ?
पिथौरागढ़ विधान सभा में वही मुद्दे हैं जो राज्य
गठन से पहले के हैं । उसके बाद भी विकास कहीं दिखता नहीं
है । एक टेंडेंसी है श्रेय लेने और उदघाटन करने की, एक होड मची हुई है । इस विधानसभा क्षेत्र
की जनता भी कन्फ़्यूज्ड नजर आती है । इस बारे में
आपका क्या कहना है ?
पुराने मुद्दे जैसे आप बताइये ?
नैनी सैनी को ही ले लें, 9 सीटर विमान की ट्रायल लैंडिंग हुई उसके बाद विमान ही नहीं उड़ रहा ।
उदघाटन पर उदघाटन होते जा रहे हैं । इसी तरह स्पोर्ट्स कालेज का मामला भी लटका है ? ऐसे कई मामले आपको आज गिना सकता हूँ
मैं तो यही सुनना चाह रहा हूँ आपसे । आप नैनी
सैनी की बात कर रहे हो । थोड़ी देर के लिए स्पोर्ट्स कालेज , मेडिकल कालेज की भी बात करोगे। पेयजल की भी भी बात करोगे , सड़कों की भी , अस्पताल की भी बात करोगे ।
आधे –आधे समय यहाँ दोनों पार्टियों को कम करने को मिला ।
पाँच साल स्वर्गीय एन डी तिवारी जी ने गुजारे। उन
पर कोई आक्षेप नहीं लगा सकता , विकास नहीं हुआ।
दूसरे कार्यकाल में मुझे सौभाग्य मिला यहाँ नेतृत्व करने का। आप ये देखिये हमने
उनके प्रस्तावों की नीव रखी, साथ ही धरातल में उसको
मूर्त रूप भी दिया । जब तक संचालन करने की या
क्रियान्वयन की बात आई सरकार बदल गई । हम हार गए । आज ये प्रश्न उनसे पूछा जाना
चाहिए जिसने हमारे बाद के 5 साल निरर्थक बिता दिये । हम चंडाक तक पानी ले आए थे ।
आंवलाघाट योजना का वो पानी नहीं बाँट पाये । हम बेस अस्पताल जंगल से उठाकर लाये वो
आज तक बेस को चला नहीं पाये । हमने मेडिकल कालेज की घोषणा करवाई, 200 करोड़ स्वीकृत करवाए केंद्र से , वो आज
तक 200 करोड़ खर्च नहीं कर पाए इस कालेज के नाम पर
। हमने अपने कार्यकाल में हवाई पट्टी बनाई । आपको याद होगा अपने कार्यकाल में 2
महीने तक स्टेट प्लेन से फ्री सेवा पिथौरागढ़ वासियों को दी । याद है ना आपको, पर वो टिकट लेकर भी जहाज नहीं चला पाए । बहुत सारी ऐसी कई चीजें हैं ।
हमने पार्किंग बनाई, आज तक वो पार्किंग व्यवस्थित नहीं
है । उससे पैसा अर्जित करने की कोशिश ये नहीं कर पाए हैं । नर्सिंग कालेज हमने
जिले को दिया ये आज भी पाल कालेज हल्द्वानी से संबन्धित है । यहाँ क्लास नहीं चल
पा रही है । स्पोर्ट्स कालेज हम लेकर आए उसको ये आज तक शुरू नहीं करवा पाए । आज भी
ये स्टेडियम से ही संचालित हो रहा है । तो ये सारी चीजें काँग्रेस के कार्यकाल में
मेरे विधायक रहते हुए हुई थी जिससे पिथौरागढ़ का चहुंमुखी विकास हुआ । अंधा आदमी ही
ऐसा होगा जो कहेगा उस दौर में यहाँ विकास नहीं हुआ । विकास एक सतत प्रक्रिया है ।
हमने जो काम किए थे , उसको आगे बढ़ाने के बजाए उसको
इन्होनें ठंडे बस्ते में डालने का काम किया है । जिनके पास प्रचंड बहुमत था केंद्र
और राज्य में प्रश्न उनसे पूछा जाना चाहिए । आज ये हमारे एक काम को धरातल पर आगे
नहीं उतार पाए हैं । ये सारी ज़िम्मेदारी भाजपा की
है ।
थरकोट झील तो बन गई । रई झील का मसला लटका है । आपका क्या कहना है इस विषय में ?
रई झील का कोई मसला था ही नहीं। जब भाजपा की
सरकार थी तब ये मामला बार –बार उठता था। काँग्रेस की सरकार आई तो ये ठंडे
बस्ते में चला गया। मेरे कार्यकाल में एक मसखिरा आदमी गाड़ी में नाव लेकर घूमता था।
जब तक उस भूमि में हम मकान बनने से नहीं रोकेंगे , तब तक झील कैसे बनेगी। आज चप्पे- चप्पे पर मकान वहाँ बन चुके हैं। झील
कैसे बनेगी अब वहाँ। हमारे कार्यकाल में उस पर सर्वे हुआ। टोकन मनी भी जारी हुई ।
सबसे बड़ी समस्या सैन्य भूमि की थी। सेना ने कहा हमारी जमीन से 25 किलोमीटर तक आप कोई निर्माण कार्य नहीं करेंगे। रई में चटकेश्वर मंदिर के पास लाक किया जा
सकता था । एक बड़ी तकनीकी समस्या थी, अगर हम ऊपर बंद करते तो बड़ा खतरा था। झील से ज्यादा खर्च उसे लाक करने में आता, उस पर बात अटक गई। जहां तक थरकोट की बात
है । थरकोट झील का जीओ हमने जारी किया। टोकन मनी हमने जारी करवाई । अभी उन्होनें
काम शुरू किया । 5 साल में थरकोट झेल भी वहीं की वहीं पड़ी हुई है। खाली लीपापोती
हो रही है। कुछ काम नहीं हो रहा है। आप देख सकते
हैं ।
आंवलाघाट योजना भी आपका ही ड्रीम प्रोजेक्ट था ।
उसके बाद भी पिथौरागढ़ शहर की बड़ी आबादी को पानी नहीं मिल पा रहा है । आपने अपने
दौर में 20-30 गांवों को भी इसमें शामिल करने का ब्लू प्रिंट तैयार किया था । घाट
से अगर उस समय नई पेयजल योजना बनती तो क्या ये बेहतर होता । बड़ी आबादी की प्यास बुझा
सकती थी ?
आंवलाघाट के साथ घाट पेयजल योजना को भी चलना
चाहिए था । घाट को चलाया इन लोगों ने । आप जानते हैं कौन मंत्री थे ? कौन नेतृत्व कर रहे थे यहाँ का । 5 साल तक आल वेदर रोड के नाम पर कितना धन
इनके द्वारा लिया, ये आप पता कर सकते हैं । आज भी
घाट में मोटर में पानी नहीं आ रहा । जहां तक आंवलाघाट की बात आपने की है तो ये
हमने अपने कार्यकाल में प्रस्तावित किया । हमने वहाँ तक रोड पहुंचाई । लाइन बिछाई
। हमने चंडाक में 50 लीटर का टैंक बनाया और ट्रायल करवाया पूरे शहर में । अब जब पानी आपके पास है , स्टोरेज है सब कुछ तो उसके बाद पहल प्रशासन को जनप्रतिनिधियों को करनी
चाहिए । आप मेरे पहले 5 साल को देखिये 2012- 2017 तक आप किसी भी आदमी से जाकर
पूछिये किसी ने भी पानी को लेकर कभी किसी तरह की
कोई शिकायत नहीं की । मेरा समय में तो ठूलीगाढ़ ही था । पानी सुचारु आता था तब शहर
में । उस समय तो आंवलाघाट भी नहीं था । कभी हड़ताल
,तालाबंदी की नौबत भी नहीं आई । वो तो व्यवस्था पर है, जनप्रतिनिधि कितनी ईमानदारी से जनता तक पहुँचने की अपनी ज़िम्मेदारी को महसूस करता है ।
क्या आपको लगता है जनप्रतिनिधियों से सवाल अब सीधे जनता को करने का समय आ गया है । 5 साल अगर जनता ने आपको
बनाया है तो आपने क्या -क्या काम किए ? ये सवाल
पूछने की कुव्वत जनता को होनी चाहिए ?
इस देश को पीछे धकेलने का काम जनता ही कर रही है
। अगर जनता सवाल पूछने लग जाएगी । जब जनप्रतिनिधि से सीधे जवाब मांगने लगेगी तो वो भी सही रास्ते पर चलेगा और काम करेगा । अगर जनता
नहीं होगी तो जनप्रतिनिधि का अस्तित्व कहाँ पर है ? ये आप सोच सकते हैं। जनता ही उसे बनाती
है जनता ही उसे बिगाड़ती है । जनता अगर ज़िम्मेदारी समझ लेगी तो कोई भी नेता गलत काम
करने से डरेगा क्योंकि उसे अपना वर्तमान भी दिखेगा और भविष्य भी । ऐसे में वो गलत
काम नहीं करेगा और जनता के हितों से भी सरोकार रखेगा ।
बहुमंजिला पार्किंग भी आपका ड्रीम प्रोजेक्ट था
लेकिन इस पार्किंग का लाभ नहीं मिल पा रहा है । आए दिन जाम की समस्या से जूझना पड़
रहा है ? सीसीटीवी कैमरे भी आपने अपनी विधायक
निधि से लगाए लेकिन ये आज शहर से गायब हैं ?
जब किसी योजना में किसी व्यक्ति विशेष का स्वार्थ आ जाता है तो वो योजना जनता को कहाँ पर लाभ दे सकती है ?
बहुमंजिला पार्किंग के लिए हमने
बहुत मेहनत की । हमने जमीन के लिए एनओसी ली । इसे मल्टी स्टोरेज बनवाया। हम एक
बढ़िया खूबसूरत मार्केट भी वहाँ बनाना चाहते थे ताकि शहर की जनता को नए शहर को
देखने का मन करे । लोग उसमें घूम फिर सकें । हम इसे नैनीताल के भोटिया मार्केट
जैसा बनाना चाहते थे । जैसे ही हम हटे तो दुकानों को बदल दिया गया । आधी पार्किंग
काट दी गई । उसके ठेकेदार से अनेक प्रकार की वसूलियाँ होने लगी । पाँच साल उसने
बिल्डिंग बनाने में लगा दिये । अभी भी उसका भुगतान नहीं हो पा रहा है । दुकान
पालिका बेचे या प्रशासन, मैं नहीं जानता लेकिन जब
स्वार्थ किसी चीज में आ जाता है तो पार्किंग कैसे चलेगी ? आज नगर पालिका अपने आदमी को बैठाकर वसूली करती है तो दूसरे दिन प्रशासन
उसे हटा देता है। अब प्रशासन और पालिका ये तय नहीं कर पा रहे हैं , कहाँ से इसका उपयोग होगा ? करोड़ों की
लागत से बनी ये पार्किंग स्वार्थ के चक्कर में बेकार साबित हो रही है ।
अपने कार्यकाल में आपने जिला अस्पताल में बैड
बढ़ाने की बात भी की थी। आज की सूरते-हाल में भले ही बैड बढ़े नहीं हों लेकिन दोनों
अस्पतालों का विलय हो चुका है ।
हमारे कार्यकाल में 50 महिला और 50 पुरुष अस्पताल में बैड बढ़ाने की बात हुई थी जिसका जीओ भी जारी हो चुका था शायद
कहीं चूक हो गयी इसका क्रियान्वयन सही से नहीं हो पाया । आज उस जीओ को मर्ज कर
दिया गया है । अब जो आदमी विरोध करते थे महिला और पुरुष अस्पताल को मर्ज कर बेस
अस्पताल बनना चाहिए । जो सदन में इसका जीओ फाड़ते थे वो अपने कार्यकाल में उन दोनों
कों मर्ज कर एक अस्पताल बना रहे हैं क्योंकि वो अपनी ज़िम्मेदारी से भाग रहे हैं ।
वो दवाई नहीं दे पा रहे हैं। तकनीकी स्टाफ नहीं
दे पा रहे हैं । वहाँ पर डाक्टर, नर्स नहीं दे पा रहे
हैं। वहाँ पर बैड नहीं दे पा रहे हैं । जनता की नजरों से बचाने के लिए उन्होनें
दोनों का एकीकरण कर दिया है । महिलाओं की बीमारियाँ दूसरी तरह की होती हैं पुरुषों की अलग । कई बीमारियों का उपचार तो महिला चिकित्सक की कर सकती हैं । उन्होनें ऐसा रायता फैला दिया है वो
अस्पताल न तो दवाखाना रहा और न ही अस्पताल ।
आईसीयू भी 2018 में बनकर तैयार हुआ लेकिन उसमें
स्टाफ़ , डाक्टर आज तक तैनात नहीं हो पाये
हैं । सब कागजी घोषणाओं में नजर आता है । ट्रामा सेंटर खोलने की बात भी इसमें दर्ज
है । स्वास्थ्य सेवाएँ तो जिला मुख्यालय में ही जर्जर हैं आप देख ही रहे हैं ?
ये सरकार दान में मिले आईसीयू को भी नहीं चला पा रही है। मंगला माता ने
जो आईसीयू दान में दिया था , उसका भी नाश मार दिया है । मुख्यालय के लोगों
को आज भी आई सी यू के लिए हल्द्वानी, बरेली, लखनऊ का मुंह ताकना पड़ता है। सीधे -सीधे सरकार की ये ज़िम्मेदारी
है जनप्रतिनिधियों की है सब कुछ होते हुए भी दान में मिले आईसीयू को ये नहीं चला
पा रहे हैं । ट्रामा सैंटर
का भी चलना यहाँ जरूरी है । ये पिथौरागढ़ का दुर्भाग्य है ।
पिथौरागढ़ में अभी महिला जनप्रतिनिधि है और
महिलाओं के वोट ज्यादा हैं। आपको क्या लगता है आने वाले समय में महिलाओं के वोट
क्या यहाँ के चुनावी समीकरणों को प्रभावित करेंगे ? महिलाओं से जुड़े मुद्दों की उपेक्षा भी यहाँ हुई है ?
आज मैं आपसे यह बात पूछना चाहता हूँ, पिथौरागढ़ विधान सभा सीट से महिला विधायक है , गंगोलीहाट में भी महिला है, जिला पंचायत
अध्यक्ष में भी महिला है । 8 ब्लाक में 7 पदों पर महिला प्रमुख हैं। उसके बाद भी
महिलाएं यहाँ दर्द भोग रही हैं । उनकी समस्याओं का निदान नहीं हो पा रहा है ।
महिला ही महिला की सबसे बड़ी दुश्मन बनकर उभरी हैं ।
3 आईटीआई जिले में बंद पड़े हुए हैं । नई शिक्षा
नीति में कौशल विकास की बातें कहीं गई हैं । तकनीकी शिक्षा का तो बेड़ा गर्क हो गया
है ?
अपने यहाँ जाख पुरान , बड़ाबे , गौड़ीहाट , मडमानले , गुरना पाँच जगह आईटीआई हैं लेकिन ये सब बंद पड़े हैं । इनका फर्नीचर
तक हटा दिया गया है । आप कहते हैं हमारे बच्चों को रोजगार मिलना चाहिए। काम कैसे मिलेगा जब तक स्किल नहीं होगा । अकुशल मजदूर मिट्टी फोड़ेगा उसके
पास रोज काम नहीं होगा लेकिन स्किल के पास हुनर जरूर होगा चाहे वो मोटर मैकेनिक हो ,या इलेक्ट्रिशियन । हमने युवाओं के हुनर को तराशने के लिए ये सब खोले थे
जिससे हुनर आयेगा और युवा रोजगार खुद पैदा कर लेगा । मैंने अपने कार्यकाल में
पिथौरागढ़ में 2 पालिटेक्निक और 2 आईटीआई खुलवाई थी वो सब आज धराशाई हो चुके हैं ।
केन्द्र सरकार के पग चिन्हों पर राज्य सरकार भी चल रही है । आज नौबत इन्हें बंद
करने की आ गई है ।
आपके कार्यकाल में स्वीकृत परियोजनाओं का बजट
जारी हुआ है क्या अभी तक ?
हमारा झगड़ा सीएम से उस दौर में ये था , सवित्त जीओ जारी करवाते थे । हमने अपने प्रोजेक्टों में सभी के लिए एक बजट
स्वीकृत करवाकर विभागों को आवंटित करवाया था । काम पूरे हुए पर उनको संचालित करने
के लिए दुबारा वित्त विभाग में जाना पड़ता था । हमारे पूर्ववर्ती वित्त मंत्री उनको
स्वीकृत नहीं करा पाये तो ये उनका दुर्भाग्य है ।
चुनाव का मौसम आ रहा है तो काँग्रेस को सैनिक भी
याद आ रहे हैं । पिछले दिनों आपने बिण में पूर्व सैनिकों का एक सम्मेलन आयोजित करवाया
जिसमें पूर्व सीएम और काँग्रेस महासचिव हरीश रावत ने भी प्रतिभाग किया । अब आप 20
प्रतिशत टिकट पूर्व सैनिकों को भी देने की बात कर रहे
हैं । भाजपा आपकी टाइमिंग पर सवाल उठा रही है, साथ
ही कह रही है वन रैंक वन पैंशन हम लेकर आए?
मैंने उस सम्मेलन में मंच से ही कहा था इस
सम्मेलन के कोई कयास नहीं निकाले जाएँ । हमने सम्मेलन बुलाया एक तो सरकार ये माहौल बना रही है काँग्रेस सरकार ने पूर्व सैनिकों के लिए कुछ नहीं किया । मैंने
विस्तार से मंच से काँग्रेस सरकार के योगदान को बताया । दूसरा वो ये कहते हैं
नेहरू ने देश को बर्बाद कर दिया । मैंने उनके कार्यकाल की तमाम बातें लोगों के
सामने रखी। हमने राजनीति करने के लिए ये सम्मेलन
नहीं रखा । सैनिकों के वोट पाने के लिए भी नहीं । वन रैंक वैन पेंशन में भी कई
खामियाँ हैं । कई पूर्व सैनिकों और पैरामिलिट्री फोर्सेज को इसका लाभ आज तक नहीं
मिल पाया है ।
सेना की भर्ती लंबे समय से जिले में नहीं हो पा
रही है । अगर भविष्य में काँग्रेस सत्ता में आई तो इस दिशा में आपके द्वारा प्रयास
होंगे ?
मीडिया इस देश में सबसे बलशाली है । मैं आपसे
कहूँगा पहले काँग्रेस को सत्ता में लाएँ हम धरातल पर इसे उतारेंगे ।
भाजपा कहती है राज्य में 5 साल भाजपा और 5 साल
काँग्रेस आने का पुराना मिथक हम तोड़ेंगे ?
वो तो कुछ भी तोड़ सकते हैं ।
जब देश तोड़ने के लिए तैयार बैठे हैं तो मिथक भी तोड़ देंगे ।
किन मुद्दों को लेकर आप जनता के बीच जाएंगे ?
मैं अपने व्यक्तिगत कामों को
लेकर जाऊंगा ।
क्या मयूख महर अपने पुराने विजन को आगे बढ़ाएँगे
या इस बार कुछ नया अलग होगा क्योंकि आपकी थीम 2022 के चुनावों के लिए है ‘ इस बार रण कुछ अलग होगा’ ?
मेरी सोच अलग है । मैं पिथौरागढ़ को शिक्षा में
नंबर वन बनाना चाहता हूँ ताकि यहाँ अपने बच्चों को भेजकर माँ –बाप
गर्व महसूस कर सकें । गर्व के साथ हमारा पर्यटन यहाँ पर बढ़ेगा, व्यापार बढ़ेगा । हमारी हवाई सेवा चलेगी।हमारा मेडिकल कालेज बन जाएगा तो
अच्छी आबोहवा में इलाज कराने लोग आएंगे। आने वाले समय में इन सब चीजों पर हम विशेष
ध्यान देंगे । अगर शिक्षा है तो सब कुछ संभव है ।
क्या मयूख महर इस बार छवि बदलने की छटपटाहट में
हैं। व्यक्तिगत तौर पर जानना चाहता हूँ क्योंकि कार्यकर्ताओं की राय है आप संवाद
कम करते हैं वहीं जनता की राय है आप विकास तो करते हैं
लेकिन जनता से सीधे कनेक्ट नहीं कर पाते हैं। राजनीति में परसेप्शन जरूरी है ।
क्या इस धारणा को इस बार आप तोड़ेंगे ?
एक बात बता रहा हूँ। नेता या तो काम ही कर ले या
तो बात ही कर ले। 20 साल आपने बात करने वाले नेता को दिये । 5 साल काम करने वाले
नेता को दिये । शायद पिथौरागढ़ की जनता को मेरा काम पसंद नहीं आया तभी 5 साल वाले
नेता को उन्होनें हटा दिया और 20 साल वाले नेता को फिर से बुला लिया । अब मैं ये
सोच रहा हूँ या तो मैं गप्पी बन जाऊँ नमस्ते करूँ या मैं काम करूँ? या यूपीएससी का सेंटर , यूनिवर्सिटी लाऊं
अपनी विधानसभा के लिए। कोरोना ने युवाओं का पूरा साल खराब कर दिया है। मैं युवाओं
को उस दुख से उतारना चाहता हूँ । जनता पसंद करेगी तो फिर मौका देगी , पसंद नहीं करेगी तो फिर से घर बैठ जाएंगे क्या परेशानी है ?
हरीश रावत ने पिछले दिनों आपको पिथौरागढ़ जिले की
सारी विधानसभा सीटें जीतने की ज़िम्मेदारी दे है । इसे कितना बड़ा मानते हैं आप ?
आप रावत जी को अच्छी तरह से जानते हैं । मैं भी
जानता हूँ । वो बहुत मंझे हुए नेता हैं । वो करेंगे तो अपने मन की , लेकिन मंच से मेरा नाम लेकर उन्होनें सारा झगड़ा मेरे सिर डाल दिया है । अब
जिस प्रत्याशी को टिकट नहीं मिलेगा वो सोचेगा मयूख ने टिकट काट दिया । जिसको टिकट मिलेगा वो सोचगा मयूख ने रावत से कहकर टिकट दिलाया है । ये
बड़ा राजनीतिक पैंतरा है जिसे चालाकी से चला गया है । ज़िम्मेदारी मुझे ही दे गई है
।
क्या पिथौरागढ़ जिले में भी इस बार मिथक टूटेंगे ?
अगर टिकट सही ढंग से बांटे गए और देश , काल , परिस्थिति का ध्यान रखा गया तो 4
सीटें आ जाएंगी
भाजपा वाले अक्सर हरीश रावत को ही घेरने में लगे
रहते हैं । आपकी पार्टी में और भी कई नेता हैं लेकिन कभी भी घेरते हुए नहीं देखा ।
क्या आपको लगता है इस बार उन्हें हरीश रावत जी
से ही खतरा लग रहा है ?
एक बात बताओ आज भाजपा वाले हरीश रावत जी को घेर
रहे हैं । आज भी मरने के 50 साल बाद भी भाजपा नेहरू को घेर रही है क्योंकि जिसका
कद होगा जिसमें दम होगा उसी को घेरेंगे । आज हरीश रावत में
अगर दम है । उन्हें डर है अगर वो आ गया तो पार्टी
को खड़ा कर देगा तभी घेर रही है । मोदी आज जैसे ही
नेहरू के कद को छोटा कर रहे हैं वैसे ही रावत जी
के कद को भाजपा वाले कम कर रहे हैं । रावत ऐसे
नेता हैं जो अपने बूते राज्य में काँग्रेस की
सरकार बना सकते हैं ।
आपने अपने दम पर पिथौरागढ़ में विकास कार्यों को
अंजाम दिया लेकिन उसके बाद भी आप चुनाव हार गए ? क्या अब विकास जीत का पैमाना नहीं रहा ?
विकास अगर जीत का पैमाना नहीं है तो आने वाले
वक्त में कोई विकास नहीं करेगा । विकास जीत का पैमाना नहीं है तो आने वाले वक्त
में कोई विकास नहीं करेगा । विकास ही जीत का पैमाना है। लोगों से कई बार भूल और
चूक हो जाती है , पर अगर जनप्रतिनिधि विकास को लेकर
नहीं चलेगा तो आने वाले समय में लोकतन्त्र की जो व्यवस्था है यह चकनाचूर हो जाएगी
। हम हारे, हमारे कामों को भी किनारे कर दिया गया फिर
भी हम हमारे लोगों के बीच जा रहे हैं । हम उन
लोगों की भूल को भूलकर फिर काम करेंगे।
2017 में पिथौरागढ़ सीट पर माहौल आपके पक्ष में था
। लेकिन ऐन वक्त में मोदी जी की सभा ने खेल खराब कर दिया । हरीश रावत जी भी दो –दो
सीटों से चुनाव हार गए
राजनीति है ये। चलता है सब
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