मध्यप्रदेश को भी प्रकृति ने न केवल मुक्त हस्त से संवारा है बल्कि नैसर्गिक सौंदर्य और हरियाली से आच्छादित किया है, वहीं प्रदेश सरकार ने भी वन्य प्राणी संरक्षण एवं प्रबंधन पर विशेष ध्यान देकर इसे वन्य प्राणी समृद्ध प्रदेश बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। पिछले डेढ़ दशक के दौरान श्रेष्ठ और सतत वन्य प्राणी प्रबंधन के प्रयासों से चलते आज मध्यप्रदेश देश और दुनिया में अग्रणी प्रदेश बना है । यह गर्व की बात है कि देश के 'हृदय प्रदेश ' मध्यप्रदेश को लगातार तीन बार टाइगर स्टेट का दर्जा मिला है।
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बाघों की जातियों की घटती संख्या, उनके अस्तित्व और संरक्षण संबंधी चुनौतियों के प्रति जन-जागृति के लिए अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस 29 जुलाई को प्रतिवर्ष मनाया जाता है। विश्व बाघ दिवस 29 जुलाई को मनाए जाने का निर्णय वर्ष 2010 में सेंट पीटर्सबर्ग बाघ सम्मेलन में किया गया था। इस सम्मेलन में बाघ की आबादी वाले देशों ने वादा किया था कि बहुत जल्द वे बाघों की आबादी दोगुनी कर देंगे। इस लक्ष्य को प्राप्त करने में मध्यप्रदेश ने तेजी से काम किया और प्रबंधन में निरंतरता दिखाते हुए पूरे देश में वन्यजीवों के संरक्षण और संवर्धन में अपनी महत्वपूर्ण उपस्थिति करने में सफलता पाई है। मध्यप्रदेश में पिछली गणना के अनुसार 785 बाघ हैं, जो देश में सर्वाधिक हैं। इसके बाद 563 बाघों के साथ कर्नाटक दूसरे और 560 बाघों के साथ उत्तराखंड तीसरे नंबर पर है।
मध्यप्रदेश के कुछ बाघ ऐसे हैं, जो देश-दुनिया में अपनी विशेष पहचान रखते हैं। मुन्ना, कॉलरवाली, सीता, चार्जर, बामेरा और टी1 यह कुछ ऐसे नाम हैं जो अपनी विशेषताओं के चलते अपनी विशेष पहचान बनाने में कामयाब हुए हैं। पर्टयक दूर-दूर से इन्हें देखने आते हैं और अलग तरह का अनुभव लेते हुए खुद को बड़े रोमांचित महसूस करते हैं । कान्हा टाइगर रिजर्व का मुन्ना ऐसा बाघ रहा जिसने 20 वर्ष की उम्र में दुनिया को अलविदा कहा। वह अपनी सुंदरता के साथ माथे पर बने बर्थ मार्क के कारण पूरे देश में चर्चा में रहा। वह पर्यटकों के बीच इतना लोकप्रिय रहा कि देश में सबसे ज्यादा खींची गई बाघों की तस्वीरों में उसकी भी तस्वीर शामिल है। पेंच टाइगर रिजर्व की बाघिन जिसे कॉलरवाली बाघिन के नाम से पहचान मिली, यह नाम रेडियो कॉलर लगाने के कारण दिया। इसे पेंच की सुपरमॉम के रूप में भी जाना जाता रहा है। बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के बाघ चार्जर और बाघिन सीता पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र रहे सीता अलग-अलग तरह के पोज देती तो चार्जर पयर्टकों की गाड़ियों को देखकर दहाड़ता था। बामेरा अपने अलग अंदाज, कद-काठी के लिए जाना जाता रहा है। पन्ना टाइगर रिजर्व की प्रसिद्ध बाघिन टी1 को सफल शिकारी होने के साथ नेशनल पार्क से रिजर्व में पुन: स्थापित होने वाली पहली बाघिन रही। विश्व में सर्वप्रथम अनाथ बाघ शावकों को उनके प्राकृतिक परिवेश में बढ़ाकर संरक्षित क्षेत्रों में मुक्त होकर विचरण करने का सफल प्रयास प्रदेश के कान्हा टाइगर रिजर्व में किया गया। जहां से पन्ना, सतपुड़ा, संजय, दुर्गावती टाइगर रिजर्व एवं माधव राष्ट्रीय उद्यान में बाघों को छोड़ा गया था।
बाघ की दहाड़ अब प्रदेश के टाइगर रिजर्व के बाहर भी सुनाई दे रही है। राजधानी भोपाल के शहरी इलाकों में भी बाघों की आवाजाही अब देखी जा सकती है। बाघों को राजधानी भोपाल की आबोहवा इस कदर रास आ रही है आने वाले दिनों में इनकी टेरिटरी बढ़ने की संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता। वर्ष 1973 में बाघों को विशेष संरक्षण प्रदान करने के लिए देश में टाइगर रिजर्व की स्थापना की गई थी। प्रदेश का पहला टाइगर रिजर्व 1973 में कान्हा टाइगर बना। इनमें सबसे बड़ा सतपुड़ा टाइगर रिजर्व और सबसे छोटा पेंच टाइगर रिजर्व है। मध्यप्रदेश में 7 टाइगर रिजर्व हैं जिनमें कान्हा टाईगर रिजर्व - मंडला बालाघाट, बांधवगढ टाईगर रिजर्व - उमरिया, पन्ना टाईगर रिजर्व - पन्ना, पेंच टाईगर रिजर्व - सिवनी, सतपुडा टाईगर रिजर्व - होशंगाबाद, संजय - दुबरी टाईगर रिजर्व - सीधी में तथा 7वां टाइगर रिजर्व है रानी दुर्गावती टाइगर रिजर्व है जो टाइगर रिजर्व सागर, दमोह और नरसिंहपुर जिले के दो अभयारण्य को मिलाकर बनाया गया है। इसके अलावा मध्यप्रदेश में 24 अभयारण्य हैं और 11 नेशनल पार्क हैं। अभयारण्य के रूप में पचमढ़ी, पनपथा, बोरी, पेंच-मोगली, गंगऊ, संजय- दुबरी, बगदरा, सैलाना, गांधी सागर, करेरा, नौरादेही, राष्ट्रीय चम्बल, केन, नरसिहगढ़, रातापानी, सिंघोरी, सिवनी, सरदारपुर, रालामण्डल, केन घड़ियाल, सोन चिड़िया अभयारण्य घाटीगांव, सोन घड़ियाल अभयारण्य, ओरछा और वीरांगना दुर्गावती अभयारण्य अपनी विशिष्ट पहचान के लिए देश में जाने जाते हैं। यह सुखद है कि अब प्रदेश के भीतर बाघों की संख्या टाइगर रिजर्व की सीमाओं के बाहर भी तेजी से बढ़ रही है और बाघों की हलचल शहरी इलाकों की इंसानी आबादी के बीच भी महसूस की जा रही है। सतना से लेकर सीधी , शहडोल से अमरकंटक ,डिंडौरी के लेकर मंडला तक में भी बाघों का कुनबा नई चहलकदमी कर रहा है। तीन बार टाइगर स्टेट का दर्जा हासिल करने के साथ ही राष्ट्रीय उद्यानों और संरक्षित क्षेत्रों के प्रभावी प्रबंधन में भी देश में सबसे आगे है। भारत सरकार द्वारा जारी टाइगर रिज़र्व के प्रबंधन की प्रभावशीलता मूल्यांकन रिपोर्ट में पेंच टाइगर रिजर्व ने देश में नया मुकाम हासिल किया है। इन राष्ट्रीय उद्यानों में कुशल प्रबंधन और अनेक नवाचारी तौर तरीकों को अपनाया गया है। प्रदेश के टाइगर रिजर्व क्षेत्रों और चिड़ियाघरों में भी बाघ हैं, जहां इनका संरक्षण और प्रजनन होता है। जहाँ एक तरफ हाल के वर्षों में प्रदेश सरकार ने ईको विकास समितियों को प्रभावी ढंग से पुनर्जीवित किया है वहीँ वाटरहोल बनाने और घास के मैदानों के रखरखाव और वन्य-जीव निवास स्थानों को रहने लायक बनाने के अनेक कार्यक्रम समय समय पर भी चलाये हैं जिसका जमीनी असर अब दिखाई दे रहा है।
मध्यप्रदेशके टाइगर रिजर्व क्षेत्रों में इस समय सर्वश्रेष्ठ प्रबंधन है। टाइगर राज्य का दर्जा हासिल करने के साथ ही प्रदेश राष्ट्रीय उद्यानों और संरक्षित क्षेत्रों के प्रभावी प्रबंधन में भी देश में आगे है। सतपुड़ा टाइगर रिजर्व को यूनेस्को की विश्व धरोहर की संभावित सूची में शामिल किया गया है। भारत सरकार द्वारा जारी टाइगर रिज़र्व के प्रबंधन की प्रभावशीलता मूल्यांकन रिपोर्ट में पेंच टाइगर रिजर्व ने देश में नया मुकाम हासिल किया है। बांधवगढ़, कान्हा, संजय और सतपुड़ा टाइगर रिजर्व को सर्वश्रेष्ठ प्रबंधन वाला टाइगर रिजर्व माना गया है। इन राष्ट्रीय उद्यानों में अनुपम प्रबंधन योजनाओं और नवाचारी तरीकों को अपनाया गया है। खुली जगह के साथ वन्यजीवों को तनावमुक्त वातावरण और उचित आहार की भी जरूरत होती है जिस दिशा में प्रदेश में पिछले कुछ समय से बेहतरीन कार्य हुआ है जिसके चलते बाघों की संख्या तेजी से बढ़ी है।जहाँ एक तरफ हाल के वर्षों में प्रदेश सरकार ने बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व ने बाघ पर्यटन द्वारा प्राप्त राशि का उपयोग कर ईको विकास समितियों को प्रभावी ढंग से पुनर्जीवित किया है वहीँ वाटरहोल बनाने और घास के मैदानों के रखरखाव और वन्य-जीव निवास स्थानों को रहने लायक बनाने का कार्यक्रम भी चलाया है। कान्हा-पेंच वन्य-जीव विचरण कारीडोर भारत का पहला ऐसा कारीडोर है, जिसमें कारीडोर का प्रबंधन स्थानीय समुदायों, सरकारी विभागों, अनुसंधान संस्थानों और नागरिक संगठनों द्वारा सामूहिक रूप से किया जाता है। प्रदेश में बाघों की संख्या बढ़ाने में राष्ट्रीय उद्यानों के बेहतर प्रबंधन की मुख्य भूमिका है। राज्य शासन की सहायता से कई सौ गाँवों का विस्थापन किया हगया जिससे बहुत बड़ा भू-भाग जैविक दबाव से मुक्त हुआ है। संरक्षित क्षेत्रों से गाँवों के विस्थापन के फलस्वरूप वन्य-प्राणियों के रहवास क्षेत्र का विस्तार हुआ है। कान्हा, पेंच और कूनो पालपुर के कोर क्षेत्र से सभी गाँव को विस्थापित किया जा चुका है।
बाघों की सुरक्षा के प्रति भी मध्यप्रदेश सरकार संवेदनशील है। हाल ही में हिट एंड रन की वजह से घायल हुए दो बाघ शावकों को विशेष ट्रेन के माध्यम से भोपाल लाने के निर्देश मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने दिए थे। प्रदेश में वन्य क्षेत्रों के पर्यटन से लगभग 55 से 60 करोड़ का राजस्व प्राप्त होता है, जिसका 33 प्रतिशत संयुक्त वन प्रबंधन समिति के माध्यम से ग्राम विकास में खर्च किया जाता है। वनों और वन्य प्राणियों के संरक्षण के साथ-साथ इन वन्य क्षेत्रों में पर्यटन की सुविधाएं भी मध्यप्रदेश में निरंतर बढ़ रही हैं। वर्ष 2022-23 में 26 लाख 91 हजार 797 पर्यटकों ने प्रदेश के राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों का भ्रमण किया। वन्य जीवों के संरक्षण के लिए सरकार डिजिटल तकनीक का प्रयोग कर रही है जिससे बाघों की हर गतिविधि पर नजर रखी जा रही है। बाघ संरक्षण में अत्याधुनिक तकनीकी का इस्तेमाल करने की पहल करते हुए प्रदेश के टाइगर रिजर्व ने “ड्रोन स्क्वाड” का संचालन किया है जिससे प्रत्येक महीने “ड्रोन स्क्वाड” संचालन की मासिक कार्य योजना तैयार की जाती है जिसके माध्यम से निगरानी रखने, वन्यजीवों की खोज और बचाव करने, जंगल की आग का पता लगाने और उससे रक्षा करने और मानव-पशुओं के संघर्ष को कम करने के लिये की गई है जिससे जैव-विविधता के दस्तावेज़ीकरण में भी मदद मिल रही है ।
मध्यप्रदेश ने तीन बार टाइगर राज्य का दर्जा हासिल करने के साथ ही राष्ट्रीय उद्यानों और संरक्षित क्षेत्रों के प्रभावी प्रबंधन में भी देश में शीर्ष स्थान प्राप्त किया है। बांधवगढ़, कान्हा, संजय और सतपुड़ा टाइगर रिजर्व राष्ट्रीय उद्यानों में अनुपम प्रबंधन योजनाओं और नवाचारी तरीकों को अपनाया गया है।पेंच टाइगर रिजर्व के प्रबंधन को देश में उत्कृष्ट माना गया है। बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व ने बाघ पर्यटन द्वारा प्राप्त राशि का उपयोग कर ईको विकास समितियों को प्रभावी ढंग से पुनर्जीवित किया है। वाटरहोल बनाने और घास के मैदानों के रखरखाव और वन्य-जीव निवास स्थानों को रहने लायक बनाने का कार्यक्रम भी चलाया गया है। बाघों की सुरक्षा के लिए कैमरा ट्रैप तकनीक के माध्यम से बाघों की गतिविधि पर नजर वनों में रखी जाती है और बघीरा एप की सहायता से जंगल में सफारी की गतिविधि को ट्रैक किया जाता है। कान्हा टाइगर रिजर्व ने अनूठी प्रबंधन रणनीतियों को अपनाया है। कान्हा-पेंच वन्य-जीव विचरण कारीडोर भारत का पहला ऐसा कारीडोर है, जिसमें कारीडोर का प्रबंधन स्थानीय समुदायों, सरकारी विभागों, अनुसंधान संस्थानों और नागरिक संगठनों द्वारा सामूहिक रूप से किया जाता है। पार्क प्रबंधन ने वन विभाग कार्यालय परिसर में एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र भी स्थापित किया है, जो वन विभाग के कर्मचारियों और आस-पास क्षेत्र के ग्रामीणों के लिये लाभदायी सिद्ध हुआ है।सतपुड़ा बाघ रिजर्व में सतपुड़ा नेशनल पार्क, पचमढ़ी और बोरी अभ्यारण्य से 42 गाँव को सफलतापूर्वक दूसरे स्थान पर बसाया गया है। यहाँ पर सोलर पंप और सोलर लैंप का प्रभावी उपयोग किया जा रहा है। वन्य जीव संरक्षण में अत्याधुनिक तकनीकी का इस्तेमाल करने की पहल करते हुए पन्ना टाइगर रिजर्व ने “ड्रोन स्क्वाड” का संचालन करना शुरू कर दिया है। प्रत्येक महीने “ड्रोन स्क्वाड” संचालन की मासिक कार्य- योजना तैयार की जाती है। इससे वन्य जीवों की खोज, उनके बचाव, जंगल की आग का स्त्रोत पता लगाने और उसके प्रभाव की तत्काल जानकारी जुटाने, संभावित मानव-पशु संघर्ष के खतरे को टालने और वन्य जीव संरक्षण संबंधी कानूनों का पालन करने में मदद मिल रही है।
पन्ना टाइगर रिजर्व में 'ड्रोन दस्ता' भी काफी उपयोगी साबित हुआ है। वन्य प्राणियों के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए प्रदेश स्तर पर अनुभूति कैम्प भी आयोजित किये जा रहे हैं। 'मैं भी बाघ ' थीम पर इस बार पूरे प्रदेश में विभिन्न जगहों पर आयोजन किये जा रहे हैं। ख्यमंत्री डॉ. यादव ने अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस पर जंगलों में बाघों के भविष्य को सुरक्षित करने और प्राकृतिक संतुलन बनाए रखने के लिए एकजुट होकर कार्य करने का संकल्प लेने का आहवान किया है। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि प्रदेश के राष्ट्रीय उद्यानों में बेहतर प्रबंधन से जहाँ एक ओर वन्य प्राणियों को संरक्षण मिलता है, वहीं बाघों के प्रबंधन में लगातार सुधार भी हुए हैं। बाघों के संरक्षण के लिये संवेदनशील प्रयासों की आवश्यकता होती है जो वन विभाग के सहयोग से संभव हुई है।सही मायनों में कहा जाए तो मध्यप्रदेश सरकार ने वन्य प्राणी संरक्षण की दिशा में अनेक पहल करते हुए इसे समृद्ध प्रदेश बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है जिसके नतीजे आज टाइगर स्टेट के रूप में सबके सामने हैं।
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