Saturday 21 September 2024

पितरों के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने का अनुष्ठान है श्राद्ध

पूर्वजों की आत्मा की शांति पूजा के लिए वर्ष के 15 दिन बहुत खास माने जाते हैं, इन्हें पितृ पक्ष कहा जाता है। शास्त्रों में बताया गया है कि पितृपक्ष के दौरान हमारे पूर्वज पितृलोक से धरती लोक पर आते हैं इसलिए इस दौरान पितरों के निमित्त श्राद्ध, तर्पण या पिंडदान आदि करने का विधान है।  पितृ पक्ष में सोलह श्राद्ध करने से पितरों की आत्मा तृप्त होती है और पूर्वज परिजन को खुशहाली का आशीर्वाद  देते हैं।  मान्यता है कि पितृ पक्ष में श्राद्ध करने से पितरों का ऋण चुकता हो जाता है और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है।वह परिवारजन को खुशहाली का आशीर्वाद प्रदान करते हैं।  

ऋषियों ने हमारे संपूर्ण जीवन चक्र को सोलह संस्कारों में बांधा है। जहां गर्भदान  प्रथम संस्कार है वहीँ  अंत्येष्टि अंतिम। भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण अमावस्या तक सोलह दिनों को पितृ पक्ष कहा जाता है। शास्त्रों में मनुष्यों पर उत्पन्न होते ही तीन ऋण बताए गए हैं- देव ऋण, ऋषिऋण और पितृऋण। श्राद्ध के द्वारा पितृ ऋण से निवृत्ति प्राप्त होती है इसलिए पितृ पक्ष के दौरान भक्ति पूर्वक तर्पण (पितरों को जल देना) करना चाहिए।

हिंदू धर्म में श्राद्ध और तर्पण को अत्यधिक महत्व दिया गया है। यह प्रक्रिया पितरों (पूर्वजों) के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता व्यक्त करने का एक तरीका है। शास्त्रों के अनुसार, श्राद्ध और तर्पण से पितरों की आत्मा को शाति मिलती है और उनकी कृपा से परिवार में सुख, शांति, और समृद्धि आती है।  पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान बड़ी संख्या में किया जाता है।  सही मायनों में कहा जाए तो श्राद्ध का उद्देश्य पितरों की आत्मा को तृप्ति प्रदान करना है। मान्यता है कि पितरों का आशीर्वाद न मिलने से रक्त संबंधित व्यक्ति और उसके परिवार में समस्या आ सकती है।  ब्रह्म पुराण और विष्णु पुराण सहित अन्य पुराणों के अनुसार, श्राद्ध और तर्पण के माध्यम से हम पितरों को जल. अन्न और अन्य सामग्री अर्पित करते हैं, जिससे उनको आत्मा संतुष्ट होती है।   विशेष रूप से पितृ पक्ष (सोलह श्राद्ध) में यह प्रक्रिया को जाती है।  

 भारतीय पुराणों में तीन ऋणों का उल्लेख है- देव ऋण , मनुष्य ऋण और पितृ ऋण।   देव पूजन जितना आवश्यक है पितरों के निमित्त श्राद्ध कर्म करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है।   सभी 18 महापुराणों में श्राद्ध, तर्पण और पितरों के पूजन का विभिन्न रूपों में उल्लेख मिलता है।  शास्त्रों में विशेष तिथि श्राद्ध के दिन दैहिक कर्म करने के बाद विभिन्न प्रकार के श्राद्ध होते हैं जैसे कि एकोदिष्ट श्राद्ध, नित्य श्राद्ध, नैमित्तिक श्राद्ध, सोरस श्राद्ध (सोलह बाद्ध) और महालय श्राद्ध इन्हें समय-समय पर किया जाना चाहिए क्योंकि पितरों की अपेक्षाएं और भावनाएं हमारे साथ जुड़ी होती हैं।यदि पितर अतृप्त होते हैं तो उनके रक्त संबंधी या करीबी को प्रभावित करते हैं जिससे उन्हें समस्याओं और कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। श्राद्ध के प्रतीक कुश, तिल, गाय, कौआ, कुत्ते को श्राद्ध के तत्व के प्रतीक के रूप में माना जाता है । कुश के अग्रभाग में ब्रह्मा, मध्य भाग में विष्णु,मूल भाग में भोलेशंकर भगवान का निवास माना गया है ।कौआ  यम का प्रतीक है जो दिशाओं का फलक बताता है। गौ माता तो हिंदू धर्म में सारी वैतरणी को पार लगाने वाली माता के रूप में देखा जाता है। दिन की शुरुआत से पहले गाय को पहली रोटी देने की परम्परा अपने देश में बरसों से चली आ रही है।  

 धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पितृपक्ष  या श्राद्ध पक्ष में दान का विशेष महत्व माना गया है जिससे पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। कहते हैं पितृ पक्ष के इन 15 दिनों में अपने पितरों के नाम का दान जरूर करना चाहिए जिससे महापुण्य की प्राप्ति होती है लेकिन कुछ ऐसी भी चीजें हैं जिनका पितृ पक्ष में दान नहीं करना चाहिए।  पितृ पक्ष में लोहे से बने बर्तनों का कभी भी दान नहीं करना चाहिए इसके अलावा आप चाहें तो पीतल, सोने और चांदी के बर्तनों का दान कर सकते हैं।  पितृ पक्ष में चमड़े से बनी चीजों या वस्तुएं का इस्तेमाल निषेध है। माना जाता है कि पितृ पक्ष में चमड़े का प्रयोग बहुत अशुभ होता है।  

इसके अलावा, पितृ पक्ष में पुराने कपड़े भी दान में देना अच्छा नहीं माना जाता है। पितृ पक्ष में हमेशा ब्राह्मणों को नए वस्त्र ही दान करने चाहिए।   हिंदू पूजा और सभी अनुष्ठानों में काले रंग का इस्तेमाल करना निषेध होता है, साथ ही अशुभ भी होता है इसलिए पितृ पक्ष में काले रंग के वस्त्र दान करने से बचें। पितृ पक्ष में किसी भी तरह का तेल दान में नहीं करना  चाहिए। सरसों के तेल के दान से बचना चाहिए।इसी तरह से  श्राद्ध पक्ष में पितरों को सिर्फ शुद्ध एवं ताजा भोजन ही अर्पित करना चाहिए।  पितरों को गलती से भी झूठा या बचा खाना नहीं देना चाहिए।  पितृ  पक्ष में अगर कोई जानवर या पक्षी आपके घर आए, तो उसे भोजन जरूर कराना चाहिए। मान्यता है कि  है कि पूर्वज इन रुपूण में कभी भी आपके घर आ सकते हैं। हमारे पुराने घरों में चिड़ियाँ को दाना डालने की भी पुराणी परंपरा रही है।  पितृ  पक्ष में पत्तल पर भोजन करें और ब्राह्राणों को भी पत्तल में भोजन कराएं, तो यह फलदायी होता है।  पूजा-अनुष्ठान, उद्यापन, कथा, विवाह आदि में चाहे ब्राह्मणों की परीक्षा न करें, लेकिन पितृ कार्य में अवश्य करें। समस्त लक्षणों से युक्त, हाथ का सच्चा, व्याकरण का विद्वान, शील एवं सद्गुणों से युक्त, तीन पीढ़ियों से विख्यात ब्राहाणों के द्वारा संयत रहकर श्राद्ध सम्पन्न करे तो यह परिवार के लिए फलदायी रहता है ।

 श्राद्ध पांच प्रकार के होते हैं जिनमें पितृपक्ष के श्राद्ध पार्वण श्राद्ध कहलाते हैं। इन में अपराह्न व्यापिनी तिथि की प्रधानता है। जिनकी मृत्यु तिथि का ज्ञान न हो, उनका श्राद्ध अमावस्या को करना चाहिए। श्राद्ध हमेशा मृत्यु होने वाले दिन करना चाहिए। अग्नि में जलकर, विष खाकर, दुर्घटना में या पानी में डूबकर, शस्त्र आदि से जिनकी मृत्यु हुई हो उनका श्राद्ध चर्तुदशी को करना चाहिए। आश्विन कृष्ण पक्ष में सनातन संस्कृति को मानने वाले सभी लोगों को प्रतिदिन अपने पूर्वजों का श्रद्धा पूर्वक स्मरण करना चाहिए, इससे पितर संतृप्त हो कर हमें आशीर्वाद देते हैं। आज की नई पीढ़ी इन सब चीजों को ढकोसला बताती है जो सही नहीं है।  भारतीय कर्मकांड को आज  विज्ञान  भी मान रहा है। आश्विन मास का कृष्ण पक्ष पितरों के लिए महापर्व का समय है। इसमें ये पिंडदान और तिलांजलि की आशा लेकर पृथ्वी लोक पर आते हैं इसलिए श्राद्ध का कभी भी परित्याग न करें, अपने पितरों को संतुष्ट जरूर करें तभी आपके जीवन में खुशहाली  आ सकती है ।

 पुराणों में भी श्राद्ध और तर्पण का विशेष  उल्लेख मिलता है।  विष्णु पुराण में पितरों के श्राद्ध और तर्पण का महत्त्व बताया गया है।  इसमें कहा गया है कि पितरों को अर्पित जल और अन्न से उनकी आत्मा को शांति मिलती है।  इसी तरह से  ब्रह्म पुराण  में  पितरों के लिए श्राद्ध की विधियों का विवरण इस पुराण में मिलता है जिसमें  यह भी बताया गया है कि पितरों की आत्मा को शांति प्रदान करने के लिए विशेष तिथि पर श्राद्ध करना आवश्यक है।  शिव पुराण में श्राद्ध की प्रक्रिया और इसके लाभों का उल्लेख मिलता है।  भागवत पुराण में पितरों के तर्पण और श्राद्ध की विधियां और उनका महत्व वर्णित है।  इसमें पितरों को अर्पित सामग्री की विधि भी बताई गई है।  मत्स्य पुराण में  पितरों के श्राद्ध की विभिन्न विधियों, जैसे एकोदिष्ट और नित्य श्राद्ध, का विवरण इस पुराण में मिलता है।  नारद पुराण में भी पितरों के प्रति श्राद्ध की विधियां और इसके महत्व का विस्तृत वर्णन किया गया है।  वामन पुराण में  पितरों के श्राद्ध और तर्पण की प्रक्रिया का उल्लेख मिलता है जिसमें पितरों को शांति देने के उपाय बताए गए हैं। कूर्म पुराण में  पितरों की आत्मा को शांति देने के लिए श्राद्ध की प्रक्रियाओं का वर्णन  किया गया है।  इसी तरह से लिंग पुराण में पितरों के श्राद्ध और तर्पण की विधियों का वर्णन किया गया ‌ है और यह बताया गया है कि इससे पितरों को शांति मिलती है।गरुड़ पुराण, श्रीभगवत पुराण, सत्यम्बुधि पुराण, ब्रह्मवैवर्त पुराण, स्मृति पुराण, प्रदीप पुराण, अग्नि पुराण, श्री भागवत पुराण और कालिक पुराण में भी पितरों के श्राद्ध की विधियां, आत्मा को शाति देने के लिए प्रक्रियाओं और धार्मिक महत्व के बारे में बताया गया है।

 आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में उनकी मृत्यु तिथि को (मृत्यु किसी भी मास या पक्ष में हुई हो) जल, तिल, चावल, जौ और कुश पिंड बनाकर या केवल सांकल्पिक विधि से उनका श्राद्ध करना, गौ ग्रास निकालना और उनके निमित्त ब्राह्मणों को भोजन करा देने से पितृ प्रसन्न होते हैं और उनकी प्रसन्नता हमें जीवन में पितृ ऋण और पितृ दोषों से मुक्त करा देती है। शास्त्रों के अनुसार, पितरों की आज्ञा का पालन और उनके लिए श्राद्ध करना संतान की सार्थकता को सिद्ध करता है। यह भी कहा गया है कि एक बार गया श्राद्ध करने से संतान होना सार्थक होता है. पितरों के निमित्त श्राद्ध एक महत्वपूर्ण अंग है, जो परिवार में शांति और समृद्धि का कारण बनता है।  श्राद्धकर्ता  को पितृपक्ष में क्षौर कर्म यानी बाल या नाखून नहीं कटवाने चाहिए। ब्रह्मचर्य का पालन, पान खाना, किसी भी प्रकार के नशीले पदार्थों का सेवन, तेल मालिश और परान्न भोजी ये सात बातें श्राद्धकर्ता के लिए वर्जित हैं। श्राद्ध के अंत में क्षमा प्रार्थना जरूर करें।      



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